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ट्रम्प की धमकियां, मोदी का डर? अडाणी पर अमेरिकी जांच से भारत की मज़बूरी का सच

ट्रम्प की धमकियां, मोदी का डर? अडाणी पर अमेरिकी जांच से भारत की मज़बूरी का सच

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने एक तीखा राजनीतिक बयान जारी कर देश की राजनीति में नई हलचल मचा दी है। गांधी ने आरोप लगाया है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत को धमका रहे हैं, और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस दबाव का सामना करने में असमर्थ हैं। उनके अनुसार, इस स्थिति का मुख्य कारण अडाणी समूह के खिलाफ अमेरिका में चल रही विभिन्न जांचें हैं, जिनके चलते भारत सरकार के ‘हाथ बंधे’ हुए हैं। यह आरोप न केवल घरेलू राजनीतिक विमर्श का केंद्र बन गया है, बल्कि भारत-अमेरिका संबंधों, कॉर्पोरेट गवर्नेंस, और भू-राजनीतिक दांव-पेंच पर भी महत्वपूर्ण सवाल खड़े करता है। UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए, यह मामला अंतर्राष्ट्रीय संबंध, अर्थव्यवस्था, राजनीति और समसामयिक घटनाओं की गहरी समझ के लिए एक उत्कृष्ट केस स्टडी प्रस्तुत करता है।

1. आरोप की पृष्ठभूमि: क्या हैं अडाणी समूह के खिलाफ अमेरिकी जांचें?

राहुल गांधी के आरोपों को समझने के लिए, सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि अडाणी समूह के खिलाफ अमेरिका में किस प्रकार की जांचें चल रही हैं। यह मामला तब प्रमुखता से उभ जब हिंडनबर्ग रिसर्च ने जनवरी 2023 में एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें अडाणी समूह पर स्टॉक में हेरफेर और लेखांकन धोखाधड़ी (accounting fraud) का आरोप लगाया गया। इसके बाद, अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग (Securities and Exchange Commission – SEC) और अमेरिकी न्याय विभाग (Department of Justice – DOJ) जैसी अमेरिकी नियामक संस्थाओं ने समूह की विभिन्न व्यावसायिक प्रथाओं, विशेषकर उसके शेयर मूल्यांकन और विदेशी संस्थाओं के साथ लेनदेन की जांच शुरू की।

“किसी भी कॉर्पोरेट घराने के खिलाफ विदेशी नियामक जांच, विशेषकर जो अमेरिकी कानून के तहत आती हो, वह स्वतः ही वैश्विक वित्तीय बाजारों में हलचल मचा देती है। जब यह जांच किसी ऐसे समूह से जुड़ी हो जिसके राष्ट्रीय महत्व के बुनियादी ढांचे (national infrastructure) में बड़े निवेश हों, तो यह भू-राजनीतिक आयाम भी ले लेती है।”

इन जांचों का मुख्य केंद्र यह समझना है कि क्या अडाणी समूह ने अमेरिकी निवेशकों को गुमराह किया या किसी भी तरह के अवैध वित्तीय तरीकों का इस्तेमाल किया। हालांकि ये जांचें सीधे तौर पर भारतीय सरकार के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन अडाणी समूह के भारत के प्रमुख औद्योगिक और ऊर्जा क्षेत्रों में विशाल उपस्थिति को देखते हुए, इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था और सरकार की नीतियों पर पड़ना स्वाभाविक है।

2. राहुल गांधी का आरोप: ‘ट्रम्प की धमकी’ और ‘मोदी की मज़बूरी’

राहुल गांधी के बयान को अगर तोड़कर देखें, तो इसमें दो प्रमुख बिंदु हैं:

  • ट्रम्प की धमकी: इसका तात्पर्य यह है कि डोनाल्ड ट्रम्प, जो अमेरिकी राजनीति में एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं और भविष्य में फिर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हो सकते हैं, अडाणी समूह की जांच का इस्तेमाल भारत पर दबाव बनाने के लिए कर रहे हैं। यह ‘धमकी’ शायद इस रूप में हो सकती है कि यदि भारत उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं चलता है, तो वे जांच को और आगे बढ़ा सकते हैं या कोई अन्य आर्थिक/राजनीतिक कदम उठा सकते हैं।
  • मोदी का सामना न कर पाना: गांधी का आरोप है कि इन धमकियों के आगे प्रधानमंत्री मोदी कमजोर पड़ रहे हैं और वह इस स्थिति का प्रभावी ढंग से सामना नहीं कर पा रहे हैं। इसके पीछे का कारण वे अडाणी समूह की अमेरिकी जांच बताते हैं, जिससे भारत के आर्थिक हित प्रभावित हो सकते हैं।
  • ‘हाथ बंधे’ होने का तात्पर्य: सबसे महत्वपूर्ण बात ‘हाथ बंधे हैं’ (hands are tied) वाले कथन से है। इसका सीधा मतलब यह है कि अडाणी समूह से जुड़े मामले में भारत सरकार कोई भी ऐसा कदम उठाने में झिझक रही है या असमर्थ है जो अमेरिका को नाराज कर सकता है। यह झिझक इसलिए है क्योंकि अमेरिकी जांच का प्रभाव इतना बड़ा हो सकता है कि वह भारत के आर्थिक हितों या वैश्विक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकता है।

2.1. भू-राजनीतिक कोण: क्या यह सिर्फ एक राजनीतिक बयान है?

UPSC उम्मीदवारों को इस आरोप का विश्लेषण करते समय केवल राजनीतिक चश्मे से नहीं देखना चाहिए। इसके पीछे कई भू-राजनीतिक और आर्थिक तर्क हो सकते हैं:

  • अंतर्राष्ट्रीय दबाव का उपयोग: इतिहास गवाह है कि बड़े देश अक्सर आर्थिक या नियामक जांचों का इस्तेमाल छोटे देशों पर राजनीतिक दबाव बनाने के लिए करते हैं। अमेरिका, अपनी वैश्विक आर्थिक शक्ति के कारण, ऐसे साधनों का प्रयोग करने में सक्षम है।
  • ट्रम्प की ‘डील-मेकिंग’ शैली: डोनाल्ड ट्रम्प अपनी ‘डील-मेकिंग’ (deal-making) की शैली के लिए जाने जाते हैं, जहाँ वह अक्सर किसी भी मुद्दे को सौदेबाजी के उपकरण के रूप में उपयोग करते हैं। यदि वह भारत के साथ किसी अन्य द्विपक्षीय मुद्दे पर बातचीत कर रहे हैं, तो अडाणी जांच को एक दांव के रूप में इस्तेमाल करना उनके लिए अस्वाभाविक नहीं होगा।
  • भारत की विदेश नीति की स्वायत्तता: राहुल गांधी का बयान सीधे तौर पर भारत की विदेश नीति की स्वायत्तता (sovereignty) पर सवाल उठाता है। क्या भारत अपनी विदेश नीति को बाहरी दबावों से मुक्त रखकर चला पा रहा है?

3. अडाणी समूह की जांच और भारत का हित: एक जटिल समीकरण

अडाणी समूह भारत के कुछ सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में एक प्रमुख खिलाड़ी है, जिसमें बंदरगाह, हवाई अड्डे, बिजली उत्पादन, नवीकरणीय ऊर्जा, ट्रांसमिशन और वितरण, कोयला, एल्यूमीनियम, सीमेंट, पेट्रोकेमिकल्स, और रियल एस्टेट शामिल हैं। इन क्षेत्रों का सीधा संबंध राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास से है।

3.1. जांचों का संभावित प्रभाव:

  • शेयरों में गिरावट और निवेशकों का विश्वास: हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद से अडाणी समूह की कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट आई है, जिससे हजारों करोड़ रुपये के बाजार पूंजीकरण का नुकसान हुआ है। इससे न केवल समूह के निवेशकों बल्कि भारतीय शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) के विश्वास पर भी असर पड़ सकता है।
  • ऋण और वित्तपोषण: समूह का ऋण-आधारित विस्तार काफी अधिक है। यदि अमेरिकी जांचों के कारण इसे अंतरराष्ट्रीय ऋण प्राप्त करने में कठिनाई होती है, तो यह न केवल समूह के भविष्य के विस्तार को प्रभावित करेगा, बल्कि भारत के बुनियादी ढांचा विकास परियोजनाओं को भी धीमा कर सकता है।
  • विनियामक और कानूनी परिणाम: यदि जांच में अनियमितताएं पाई जाती हैं, तो अडाणी समूह पर भारी जुर्माना लग सकता है, या इसके कुछ प्रमोटरों पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं, जैसे कि महत्वपूर्ण संपत्तियों का स्वामित्व बदलना या उन्हें पुनर्गठन के लिए मजबूर होना।

3.2. भारत सरकार की स्थिति:

ऐसी स्थिति में, भारत सरकार के पास कुछ ही विकल्प होते हैं:

  • पूरी तरह से तटस्थ रहना: सरकार यह कह सकती है कि यह दो निजी कंपनियों (हिंडनबर्ग और अडाणी) के बीच का मामला है और वह इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगी।
  • नियम-आधारित दृष्टिकोण: भारत की अपनी नियामक संस्थाएं (जैसे SEBI) भी इस मामले की जांच कर सकती हैं और यदि कोई भारतीय कानून का उल्लंघन पाया जाता है तो कार्रवाई कर सकती हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: यदि अमेरिकी जांच में सूचनाओं के आदान-प्रदान की आवश्यकता होती है, तो भारत को अमेरिकी एजेंसियों के साथ सहयोग करना पड़ सकता है, लेकिन यह सहयोग हमेशा राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर किया जाएगा।

राहुल गांधी का आरोप इसी तीसरे बिंदु पर केंद्रित है। उनका मानना है कि भारत सरकार अमेरिकी दबाव के कारण सक्रिय रूप से अपनी जांच नहीं कर पा रही है या प्रभावी ढंग से सहयोग नहीं कर पा रही है, क्योंकि इससे अडाणी समूह को सीधे तौर पर प्रभावित करने का जोखिम है, जो बदले में भारत के आर्थिक और राजनीतिक हितों को नुकसान पहुंचा सकता है।

4. भारत-अमेरिका संबंध: एक बहुआयामी साझेदारी

भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के संबंध पिछले कुछ दशकों में महत्वपूर्ण रूप से विकसित हुए हैं। ये संबंध अब केवल सैन्य और सुरक्षा सहयोग तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इसमें रणनीतिक साझेदारी, आर्थिक सहयोग, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, और लोगों के बीच संपर्क (people-to-people ties) भी शामिल हैं।

4.1. साझेदारी के महत्वपूर्ण स्तंभ:

  • रणनीतिक साझेदारी: इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए, भारत और अमेरिका दोनों के लिए एक-दूसरे के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखना रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है।
  • आर्थिक संबंध: अमेरिका भारत के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदारों में से एक है, और भारतीय कंपनियां अमेरिका में भारी निवेश करती हैं। इसी तरह, अमेरिकी कंपनियां भारत में प्रमुख निवेशक हैं।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार: दोनों देश विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में सहयोग करते हैं, जो भारत के ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के लिए महत्वपूर्ण है।

4.2. असहमति के बिंदु और तनाव:

इन मजबूत संबंधों के बावजूद, दोनों देशों के बीच कुछ असहमति के बिंदु भी हैं, जैसे:

  • व्यापारिक टैरिफ और प्रतिबंध: ऐतिहासिक रूप से, व्यापारिक मुद्दों पर दोनों देशों में कुछ मतभेद रहे हैं।
  • रूस से रक्षा खरीद: भारत द्वारा रूसी एस-400 मिसाइल प्रणाली की खरीद पर अमेरिका ने चिंता व्यक्त की है, हालांकि उसने प्रतिबंधों से छूट दी है।
  • मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मूल्य: कभी-कभी, अमेरिकी प्रशासन भारत में कुछ आंतरिक नीतियों या घटनाओं पर चिंता व्यक्त कर सकता है, जिसे भारत अपने संप्रभु मामलों में हस्तक्षेप मानता है।

यह वह संदर्भ है जहाँ राहुल गांधी का आरोप फिट बैठता है। उनका इशारा यह है कि अमेरिका, विशेषकर ट्रम्प जैसे पूर्व राष्ट्रपति, भारत के साथ अपनी मजबूत साझेदारी का उपयोग अप्रत्यक्ष रूप से अपने हितों को साधने के लिए कर सकते हैं, खासकर जब बात एक बड़े अमेरिकी नियामक जांच की हो।

5. UPSC परीक्षा के लिए विश्लेषण: क्यों यह विषय महत्वपूर्ण है?

यह पूरा मामला UPSC सिविल सेवा परीक्षा के कई महत्वपूर्ण पहलुओं को छूता है:

5.1. अंतर्राष्ट्रीय संबंध (GS-II):

  • भारत-अमेरिका संबंध: द्विपक्षीय संबंधों की गतिशीलता, साझेदारी के विभिन्न आयाम, और संभावित तनाव बिंदु।
  • भू-राजनीति: वैश्विक शक्ति संतुलन, क्षेत्रीय गतिशीलता (जैसे इंडो-पैसिफिक), और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर देशों की भूमिका।
  • अमेरिकी विदेश नीति: विशेषकर ‘अमेरिका फर्स्ट’ जैसी नीतियां और उनका वैश्विक प्रभाव।
  • अंतर्राष्ट्रीय कानून और संधियाँ: देशों के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान और सहयोग के कानूनी ढांचे।

5.2. अर्थव्यवस्था (GS-III):

  • कॉर्पोरेट गवर्नेंस: पारदर्शिता, जवाबदेही, और वित्तीय रिपोर्टिंग के मानक।
  • विदेशी निवेश: एफडीआई (FDI) का महत्व, एफआईआई (FII) का प्रभाव, और विदेशी नियामक जांचों का बाजार पर असर।
  • बुनियादी ढांचा विकास: भारत की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की वित्तपोषण और उनसे जुड़ी चुनौतियाँ।
  • वित्तीय बाजार: शेयर बाजार की अस्थिरता, निवेशक विश्वास, और नियामक तंत्र।

5.3. राजनीति और शासन (GS-II):

  • संसदीय लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका: सरकार की नीतियों पर सवाल उठाना, जवाबदेही सुनिश्चित करना।
  • मीडिया की भूमिका: समसामयिक मुद्दों को उठाना और जनमत तैयार करना।
  • प्रधानमंत्री कार्यालय की शक्तियां और सीमाएं: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दबावों का सामना करना।
  • कानून का शासन: चाहे वह घरेलू हो या अंतर्राष्ट्रीय।

5.4. नैतिकता (GS-IV):

  • ईमानदारी और पारदर्शिता: कॉर्पोरेट और सरकारी दोनों स्तरों पर।
  • सार्वजनिक धन का प्रबंधन: राष्ट्रीय संपत्ति और संसाधनों का कुशल उपयोग।
  • हितों का टकराव (Conflict of Interest): राजनीतिक और व्यावसायिक हितों का मिश्रण।

6. आगे की राह: चुनौतियाँ और समाधान

यह स्थिति भारत के लिए कई चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है:

  • संवैधानिक संप्रभुता बनाए रखना: यह सुनिश्चित करना कि भारत की नीतियां बाहरी दबावों से प्रभावित न हों।
  • आर्थिक विकास को गति देना: बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश को सुचारू रखना, भले ही किसी बड़े समूह से जुड़े मुद्दे हों।
  • निवेशक विश्वास को बहाल करना: घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों को आश्वस्त करना कि भारत एक पारदर्शी और सुसंगत नियामक वातावरण प्रदान करता है।
  • राजनीतिक विमर्श को परिपक्व करना: राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक नीतियों पर होने वाली चर्चाओं को तथ्यों और राष्ट्रहित के आधार पर आगे बढ़ाना, न कि केवल राजनीतिक लाभ के लिए।

6.1. संभावित समाधान:

  • नियामक निकायों को सशक्त करना: SEBI और अन्य भारतीय नियामक निकायों को स्वतंत्र रूप से काम करने और आवश्यक जांच करने के लिए पर्याप्त शक्ति और संसाधन प्रदान करना।
  • पारदर्शिता बढ़ाना: सरकार और कॉर्पोरेट जगत दोनों को अधिक पारदर्शी होने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की रणनीति: अमेरिका जैसी शक्तियों के साथ ऐसे तंत्र विकसित करना जहाँ सूचनाओं का आदान-प्रदान हो लेकिन भारत की संप्रभुता पर आंच न आए।
  • विविधतापूर्ण आर्थिक संबंध: किसी एक देश या समूह पर अत्यधिक निर्भरता कम करना।

निष्कर्ष

राहुल गांधी का बयान, भले ही राजनीतिक धरातल पर किया गया हो, भारत के लिए एक महत्वपूर्ण सवाल उठाता है: क्या हम वैश्विक मंच पर अपनी आर्थिक और राजनीतिक संप्रभुता को प्रभावी ढंग से बनाए रखने में सक्षम हैं? अडाणी समूह के खिलाफ अमेरिकी जांचें और उन पर आधारित राजनीतिक आरोप, भारत-अमेरिका संबंधों की जटिलता, कॉर्पोरेट जगत की शक्ति, और राष्ट्रीय हित की रक्षा जैसे मुद्दों पर प्रकाश डालते हैं। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह आवश्यक है कि वे इस घटना को सतही राजनीतिक बयानबाजी से ऊपर उठाकर, इसके गहन भू-राजनीतिक, आर्थिक और शासन संबंधी निहितार्थों को समझें। यह समझना महत्वपूर्ण है कि भारत अपनी विदेश और आर्थिक नीतियों को कैसे संचालित करता है, खासकर तब जब उस पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव हो, और ऐसे दबावों का सामना करने में उसकी कितनी क्षमता है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. हाल के राजनीतिक विमर्श में ‘अडाणी समूह के खिलाफ अमेरिकी जांच’ का उल्लेख किन देशों के बीच संबंधों को प्रभावित करता है?
a) भारत-चीन
b) भारत-रूस
c) भारत-अमेरिका
d) भारत-यूरोपीय संघ
उत्तर: c) भारत-अमेरिका
व्याख्या: समाचार के अनुसार, अडाणी समूह के खिलाफ अमेरिकी नियामक जांचों का उल्लेख भारत-अमेरिका संबंधों के संदर्भ में किया गया है।

2. हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट, जिसने अडाणी समूह पर आरोप लगाए, मुख्य रूप से किस प्रकार की अनियमितताओं का दावा करती है?
a) पर्यावरणीय उल्लंघन
b) स्टॉक में हेरफेर और लेखांकन धोखाधड़ी
c) श्रम कानूनों का उल्लंघन
d) कर चोरी
उत्तर: b) स्टॉक में हेरफेर और लेखांकन धोखाधड़ी
व्याख्या: हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में अडाणी समूह पर स्टॉक में हेरफेर और लेखांकन धोखाधड़ी का आरोप लगाया था।

3. निम्नलिखित में से कौन सी अमेरिकी नियामक संस्थाएं अडाणी समूह की जांच में शामिल हो सकती हैं?
1. अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग (SEC)
2. अमेरिकी न्याय विभाग (DOJ)
3. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)
4. विश्व व्यापार संगठन (WTO)
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
a) केवल 1 और 2
b) केवल 1, 2 और 3
c) केवल 2 और 4
d) केवल 1, 3 और 4
उत्तर: a) केवल 1 और 2
व्याख्या: SEC और DOJ प्रमुख अमेरिकी नियामक संस्थाएं हैं जो वित्तीय बाजारों और आपराधिक जांचों को देखती हैं। IMF और WTO सीधे तौर पर ऐसी कॉर्पोरेट जांचों में शामिल नहीं होते।

4. राहुल गांधी के बयान के अनुसार, अडाणी समूह की अमेरिकी जांच से भारत सरकार के ‘हाथ बंधे’ होने का क्या तात्पर्य है?
a) भारत सरकार जांच में सहयोग कर रही है।
b) भारत सरकार अमेरिकी दबाव के आगे कार्रवाई करने में असमर्थ है।
c) भारत सरकार को जांच के बारे में जानकारी नहीं है।
d) अमेरिका ने भारत सरकार पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं।
उत्तर: b) भारत सरकार अमेरिकी दबाव के आगे कार्रवाई करने में असमर्थ है।
व्याख्या: ‘हाथ बंधे होना’ का अर्थ है कि बाहरी कारक (जैसे अमेरिकी जांच का संभावित प्रभाव) भारत सरकार को स्वतंत्र रूप से कार्रवाई करने से रोक रहे हैं।

5. अडाणी समूह के भारत में प्रमुख व्यावसायिक क्षेत्र क्या हैं?
1. बंदरगाह और हवाई अड्डे
2. नवीकरणीय ऊर्जा
3. दूरसंचार
4. रक्षा उत्पादन
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
a) केवल 1 और 2
b) केवल 1, 2 और 3
c) केवल 1, 3 और 4
d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: a) केवल 1 और 2
व्याख्या: अडाणी समूह के प्रमुख क्षेत्रों में बंदरगाह, हवाई अड्डे, बिजली, नवीकरणीय ऊर्जा, ट्रांसमिशन आदि शामिल हैं। दूरसंचार और रक्षा उत्पादन उनके मुख्य व्यावसायिक क्षेत्र नहीं माने जाते, हालांकि भविष्य में विस्तार की संभावना हो सकती है।

6. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) किस प्रकार की भूमिका निभाता है?
a) सदस्य देशों के बीच व्यापार विवादों को सुलझाना
b) वैश्विक वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा देना और आर्थिक सहयोग को सुगम बनाना
c) सैन्य गठबंधन का नेतृत्व करना
d) पर्यावरण संरक्षण के लिए नीतियां बनाना
उत्तर: b) वैश्विक वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा देना और आर्थिक सहयोग को सुगम बनाना
व्याख्या: IMF का मुख्य कार्य वैश्विक वित्तीय स्थिरता बनाए रखना और देशों को आर्थिक सहायता प्रदान करना है।

7. UPSC के अनुसार, भारत-अमेरिका संबंधों का महत्वपूर्ण स्तंभ क्या है?
1. रणनीतिक साझेदारी
2. आर्थिक सहयोग
3. प्रौद्योगिकी हस्तांतरण
4. केवल सांस्कृतिक आदान-प्रदान
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
a) केवल 1, 2 और 3
b) केवल 1 और 4
c) केवल 2 और 3
d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: a) केवल 1, 2 और 3
व्याख्या: भारत-अमेरिका संबंध केवल सांस्कृतिक आदान-प्रदान तक सीमित नहीं हैं, बल्कि रणनीतिक, आर्थिक और तकनीकी सहयोग भी इसके महत्वपूर्ण स्तंभ हैं।

8. ‘अमेरिका फर्स्ट’ (America First) नीति का प्रमुख प्रवर्तक कौन सा अमेरिकी राष्ट्रपति रहा है?
a) जो बाइडेन
b) डोनाल्ड ट्रम्प
c) बराक ओबामा
d) जॉर्ज डब्लू. बुश
उत्तर: b) डोनाल्ड ट्रम्प
व्याख्या: डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी विदेश नीति के मूल में ‘अमेरिका फर्स्ट’ के सिद्धांत को रखा था, जिसका अर्थ था अमेरिकी हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देना।

9. कॉर्पोरेट गवर्नेंस (Corporate Governance) का मुख्य उद्देश्य क्या है?
a) शेयरधारकों के लाभ को अधिकतम करना, चाहे परिणाम कुछ भी हों।
b) कंपनी के संचालन में पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्षता सुनिश्चित करना।
c) केवल सरकार के नियमों का पालन करना।
d) कर्मचारियों को कम से कम वेतन देना।
उत्तर: b) कंपनी के संचालन में पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्षता सुनिश्चित करना।
व्याख्या: कॉर्पोरेट गवर्नेंस का उद्देश्य कंपनी के सभी हितधारकों (शेयरधारकों, कर्मचारियों, ग्राहकों, समाज) के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करना है।

10. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) या भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) जैसी संस्थाएं किस प्रकार के मुद्दों को विनियमित करती हैं?
a) केवल रक्षा सौदे
b) केवल अंतरिक्ष अन्वेषण
c) भारतीय वित्तीय बाजार और कंपनियों के कामकाज
d) केवल कृषि मूल्य निर्धारण
उत्तर: c) भारतीय वित्तीय बाजार और कंपनियों के कामकाज
व्याख्या: SEBI भारतीय शेयर बाजार और कंपनियों के सार्वजनिक निर्गमों (public issues) को विनियमित करता है, जबकि RBI बैंकिंग और मौद्रिक नीति को देखता है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. “अडाणी समूह के खिलाफ अमेरिकी जांचें भारत की आर्थिक संप्रभुता और विदेश नीति को कैसे प्रभावित कर सकती हैं? इसके भू-राजनीतिक निहितार्थों का विश्लेषण करें।”
*(विश्लेषण करें कि कैसे एक देश की आंतरिक कॉर्पोरेट जांचें दूसरे देश की आर्थिक स्थिरता, अंतर्राष्ट्रीय निवेश प्रवाह, और वैश्विक शक्ति समीकरणों को प्रभावित कर सकती हैं, विशेष रूप से भारत-अमेरिका जैसे महत्वपूर्ण संबंधों के संदर्भ में।)*

2. “भारत-अमेरिका संबंधों की बहुआयामी प्रकृति पर चर्चा करें। वर्तमान राजनीतिक विमर्श में विदेशी नियामक जांचों का उपयोग कैसे द्विपक्षीय संबंधों में तनाव पैदा कर सकता है?”
*(भारत-अमेरिका संबंधों के रणनीतिक, आर्थिक, तकनीकी और सुरक्षा पहलुओं पर प्रकाश डालें। फिर, बताएं कि कैसे घरेलू राजनीतिक आरोप, जो विदेशी जांचों से जुड़े हों, इन संबंधों की जटिलता को कैसे उजागर करते हैं और संभावित तनाव के बिंदु कैसे बन सकते हैं।)*

3. “कॉर्पोरेट गवर्नेंस के महत्व को स्पष्ट करें। भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने में सरकार और नियामक निकायों की भूमिका क्या है, खासकर जब अंतर्राष्ट्रीय जांचें लंबित हों?”
*(कॉर्पोरेट गवर्नेंस के मूल सिद्धांतों, भारत में इसके महत्व, और SEBI जैसे नियामकों की भूमिका पर चर्चा करें। बताएं कि कैसे अंतर्राष्ट्रीय जांचें भारतीय नियामक ढांचे के लिए एक चुनौती पेश करती हैं और पारदर्शिता तथा जवाबदेही को मजबूत करने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं।)*

4. “विपक्षी दलों द्वारा सरकार की नीतियों और अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार पर उठाए जाने वाले सवालों के महत्व का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। क्या ऐसे आरोप राष्ट्रीय हितों की रक्षा में सहायक होते हैं या वे केवल राजनीतिक लाभ के लिए होते हैं?”
*(लोकतांत्रिक व्यवस्था में विपक्ष की भूमिका पर चर्चा करें। विश्लेषण करें कि सरकार की विदेश और आर्थिक नीतियों पर उनके सवाल कैसे राष्ट्रीय हित को प्रभावित कर सकते हैं – चाहे सकारात्मक रूप से (जवाबदेही बढ़ाकर) या नकारात्मक रूप से (भ्रम पैदा करके)।)*

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