ट्रम्प का 50% टैरिफ झटका: भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर? जानें सब कुछ
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक संभावित 50% के सार्वभौमिक टैरिफ (Universal Tariff) की घोषणा की है, जो सभी देशों से आयातित वस्तुओं पर लागू होगा। यह घोषणा न केवल वैश्विक व्यापारिक संबंधों में खलबली मचाने वाली है, बल्कि भारत जैसे प्रमुख व्यापारिक साझेदारों के लिए भी गंभीर चिंता का विषय है। ऐसे में, UPSC उम्मीदवारों के लिए यह समझना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है कि इस तरह की नीतिगत पहल भारतीय अर्थव्यवस्था को किस प्रकार प्रभावित कर सकती है। यह लेख इसी जटिल मुद्दे का गहन विश्लेषण करेगा, इसके विभिन्न पहलुओं को उजागर करेगा और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए संभावित परिणामों की पड़ताल करेगा।
यह कोई साधारण व्यावसायिक चाल नहीं है; यह एक ऐसी नीतिगत घोषणा है जो वैश्विक व्यापार के नियमों को फिर से परिभाषित करने की क्षमता रखती है। 50% का टैरिफ, जिसे “सार्वभौमिक” कहा जा रहा है, का अर्थ है कि यह किसी एक देश को लक्षित नहीं करेगा, बल्कि सिद्धांत रूप में, दुनिया भर से आने वाले सभी उत्पादों पर लागू होगा। यह सिद्धांत, हालांकि, व्यवहार में कितना लागू हो पाएगा, यह अपने आप में एक बड़ा प्रश्न है। लेकिन इसके संभावित प्रभाव, विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील देशों के लिए, बहुत दूरगामी हो सकते हैं।
टैरिफ क्या है और यह कैसे काम करता है? (What is a Tariff and How Does it Work?)
सरल शब्दों में, टैरिफ किसी देश द्वारा दूसरे देश से आयात की जाने वाली वस्तुओं या सेवाओं पर लगाया जाने वाला एक कर है। इसे “आयात शुल्क” (Import Duty) भी कहा जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य:
- घरेलू उद्योगों की सुरक्षा: विदेशी सामानों को महंगा बनाकर, टैरिफ घरेलू उत्पादकों को प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ने में मदद करते हैं।
- राजस्व जुटाना: सरकारें टैरिफ से प्राप्त आय का उपयोग अपने खर्चों को पूरा करने के लिए कर सकती हैं।
- व्यापार घाटे को कम करना: आयात को हतोत्साहित करके, टैरिफ देश के व्यापार घाटे (जब आयात, निर्यात से अधिक हो) को कम करने का एक उपकरण हो सकते हैं।
कल्पना कीजिए कि एक भारतीय निर्माता ₹100 में एक उत्पाद बेचता है। अगर अमेरिका में इसी तरह का उत्पाद ₹80 में बिक रहा है, तो अमेरिकी उपभोक्ता शायद अमेरिकी उत्पाद को ही पसंद करेगा। लेकिन अगर अमेरिका उस ₹80 के विदेशी उत्पाद पर 50% का टैरिफ लगा देता है, तो उसका अंतिम मूल्य ₹80 + ₹40 (टैरिफ) = ₹120 हो जाएगा। अब, अमेरिकी उपभोक्ता के लिए ₹100 का घरेलू उत्पाद सस्ता हो जाता है, और वह शायद उसे खरीदेगा। इस तरह, टैरिफ एक “रक्षा कवच” की तरह काम करता है।
ट्रम्प की 50% सार्वभौमिक टैरिफ की अवधारणा (The Concept of Trump’s 50% Universal Tariff):
डोनाल्ड ट्रम्प ने अतीत में भी टैरिफ का पुरजोर समर्थन किया है, खासकर चीन के खिलाफ। इस बार, उनका प्रस्ताव थोड़ा अलग है – यह “सार्वभौमिक” है। इसका मतलब है कि यह न केवल चीन, बल्कि यूरोपीय संघ, भारत, कनाडा, मेक्सिको, जापान, और लगभग हर उस देश पर लागू होगा जिससे अमेरिका आयात करता है।
इस प्रस्ताव के पीछे की संभावित मंशाएँ (Potential Intentions Behind This Proposal):
- “अमेरिका फर्स्ट” की नीति को मजबूत करना: यह नीति सीधे तौर पर अमेरिकी नौकरी बचाने और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के वादे पर आधारित है।
- व्यापार असंतुलन को ठीक करना: ट्रम्प प्रशासन का मानना है कि अमेरिका का दुनिया के साथ व्यापार घाटा बहुत बड़ा है, और टैरिफ इसे कम करने का एक तरीका है।
- प्रतिस्पर्धियों पर दबाव बनाना: कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह प्रस्ताव यूरोपीय संघ और अन्य प्रमुख व्यापारिक साझेदारों पर टैरिफ कम करने के लिए दबाव बनाने का एक तरीका भी हो सकता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर संभावित प्रभाव (Potential Impact on the Indian Economy):
50% का सार्वभौमिक टैरिफ भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक झटके से कम नहीं होगा। इसके प्रभाव को विभिन्न स्तरों पर देखा जा सकता है:
1. निर्यात क्षेत्र पर प्रत्यक्ष प्रभाव (Direct Impact on the Export Sector):
भारत बड़ी मात्रा में वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात अमेरिका को करता है। इनमें इंजीनियरिंग सामान, रत्न और आभूषण, कपड़ा, फार्मास्यूटिकल्स, और सूचना प्रौद्योगिकी (IT) सेवाएं प्रमुख हैं।
- निर्यात में कमी: अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पादों की कीमतें अचानक 50% तक बढ़ जाएंगी। इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं और व्यवसायों के लिए भारतीय सामान खरीदना महंगा हो जाएगा, जिससे मांग में भारी गिरावट आएगी।
- प्रतिस्पर्धात्मकता का नुकसान: जो देश अमेरिका के साथ व्यापार समझौते कर सकते हैं या जिन्हें टैरिफ में छूट मिल सकती है, वे भारतीय निर्यातकों की तुलना में अधिक प्रतिस्पर्धी हो जाएंगे।
- प्रमुख निर्यात श्रेणियों पर असर:
- रत्न और आभूषण: भारत अमेरिका को बड़ी मात्रा में हीरे और अन्य रत्न निर्यात करता है। 50% टैरिफ से इन उत्पादों की मांग घट सकती है।
- कपड़ा और परिधान: भारत के कपड़ा उद्योग के लिए अमेरिका एक बड़ा बाजार है। टैरिफ वृद्धि से यहाँ भी निर्यात प्रभावित होगा।
- ऑटोमोबाइल पार्ट्स और इंजीनियरिंग सामान: कई भारतीय कंपनियां अमेरिकी ऑटोमोबाइल और अन्य इंजीनियरिंग उद्योगों के लिए पुर्जे बनाती हैं। इन पर भी भारी असर पड़ेगा।
- फार्मास्यूटिकल्स: भारतीय जेनेरिक दवाओं के लिए अमेरिका एक महत्वपूर्ण बाजार है। टैरिफ से दवाएं महंगी होंगी, जिससे भारतीय कंपनियों के राजस्व पर असर पड़ सकता है।
2. अप्रत्यक्ष प्रभाव (Indirect Impact):
यह केवल निर्यातकों तक सीमित नहीं रहेगा; इसके व्यापक आर्थिक प्रभाव होंगे:
- रोजगार पर असर: निर्यात-उन्मुख उद्योगों में उत्पादन घटने से रोजगार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। विशेष रूप से छोटे और मध्यम उद्यम (SMEs) जो निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर हैं, वे बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं।
- भुगतान संतुलन पर दबाव: यदि निर्यात तेजी से गिरता है, जबकि आयात अपेक्षा के अनुरूप नहीं घटता है, तो भारत का चालू खाता घाटा (Current Account Deficit – CAD) बढ़ सकता है, जिससे देश की भुगतान क्षमता पर दबाव आ सकता है।
- विनिर्माण क्षेत्र का हतोत्साहन: जिन भारतीय कंपनियों को अमेरिका से पुर्जे आयात करने पड़ते हैं, उनके लिए लागत बढ़ जाएगी। इससे उत्पादन लागत बढ़ेगी और वे घरेलू स्तर पर भी कम प्रतिस्पर्धी हो जाएंगे।
- निवेश पर असर: अनिश्चितता और निर्यात में गिरावट विदेशी निवेशकों को हतोत्साहित कर सकती है, जिससे भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) पर असर पड़ सकता है।
3. सेवा क्षेत्र पर प्रभाव (Impact on the Service Sector):
हालांकि ट्रम्प के प्रस्ताव का मुख्य ध्यान वस्तुओं पर है, लेकिन अप्रत्यक्ष प्रभाव सेवा क्षेत्र पर भी पड़ सकता है।
- आईटी सेवाएं: भारत अमेरिका को बड़ी मात्रा में आईटी और आईटी-सक्षम सेवाएं (ITES) निर्यात करता है। यदि अमेरिकी कंपनियां लागत में कटौती करने के लिए अपने संचालन को कम करती हैं या घरेलू आईटी फर्मों की ओर रुख करती हैं, तो भारतीय आईटी कंपनियों के लिए राजस्व पर असर पड़ सकता है।
- आउटसोर्सिंग में कमी: टैरिफ के माहौल में, कंपनियां आउटसोर्सिंग की लागत और जोखिमों का पुनर्मूल्यांकन कर सकती हैं।
4. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर असर (Impact on Global Supply Chains):
50% का सार्वभौमिक टैरिफ वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को पूरी तरह से बाधित कर देगा। कंपनियां अपने उत्पादन और सोर्सिंग रणनीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होंगी।
- पुनर्गठन (Reshoring/Nearshoring): कुछ अमेरिकी कंपनियां उत्पादन को अमेरिका वापस लाने (Reshoring) या अमेरिका के करीब के देशों में ले जाने (Nearshoring) पर विचार कर सकती हैं, जो भारत जैसे दूर के देशों के लिए नकारात्मक हो सकता है।
- विविधीकरण (Diversification): कंपनियां अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को अधिक लचीला बनाने के लिए विभिन्न देशों में विनिर्माण फैलाने की कोशिश कर सकती हैं, जिससे भारत के लिए नई areportunities भी खुल सकती हैं, लेकिन इसके लिए अनुकूल नीतियां और इंफ्रास्ट्रक्चर चाहिए।
क्या यह “सार्वभौमिक” टैरिफ वास्तव में लागू होगा? (Will this “Universal” Tariff Actually Be Implemented?):
यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। 50% का सार्वभौमिक टैरिफ एक बहुत बड़ा कदम है और इसके कई व्यावहारिक और राजनीतिक निहितार्थ हैं:
- विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियम: ऐसे सार्वभौमिक टैरिफ WTO के नियमों का उल्लंघन कर सकते हैं, जो सदस्य देशों के बीच गैर-भेदभावपूर्ण व्यापार व्यवहार की अपेक्षा करते हैं।
- प्रतिशोधात्मक उपाय (Retaliatory Measures): अन्य देश भी जवाबी कार्रवाई के रूप में अमेरिकी सामानों पर टैरिफ लगा सकते हैं, जिससे एक “ट्रेड वॉर” (Trade War) छिड़ सकती है, जो सभी अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान पहुंचाएगी।
- घरेलू उपभोक्ता पर बोझ: अमेरिकी उपभोक्ताओं को आयातित वस्तुओं की बढ़ी हुई कीमतों का सामना करना पड़ेगा, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ सकती है और क्रय शक्ति कम हो सकती है।
- अमेरिकी व्यवसायों पर प्रभाव: जिन अमेरिकी व्यवसायों को विदेशी कच्चे माल या पुर्जों पर निर्भर रहना पड़ता है, वे भी उच्च लागत का सामना करेंगे।
यह संभव है कि ऐसी घोषणा एक “बारगेनिंग चिप” (Bargaining Chip) के रूप में की गई हो, ताकि अन्य देशों को अमेरिकी हितों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाया जा सके।
भारत के लिए संभावित रणनीतियाँ (Potential Strategies for India):
अगर ऐसी नीति लागू होती है, तो भारत को निम्नलिखित रणनीतियों पर विचार करना चाहिए:
- निर्यात बाजारों का विविधीकरण (Diversification of Export Markets): अमेरिका पर निर्भरता कम करने के लिए यूरोपीय संघ, अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और लैटिन अमेरिका जैसे अन्य बाजारों पर ध्यान केंद्रित करना।
- आयात प्रतिस्थापन (Import Substitution): उन वस्तुओं का घरेलू स्तर पर उत्पादन बढ़ाना जो वर्तमान में अमेरिका से आयात की जाती हैं, ताकि आयात बिल को कम किया जा सके।
- घरेलू मांग को बढ़ावा देना: आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए घरेलू खपत और निवेश को प्रोत्साहित करना।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था और सेवाओं पर जोर: सेवा क्षेत्र, विशेष रूप से आईटी और आईटीईएस, पर ध्यान केंद्रित करना जो टैरिफ से अपेक्षाकृत कम प्रभावित हो सकते हैं।
- रचनात्मक कूटनीति (Proactive Diplomacy): संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ बातचीत करके, संभावित रियायतों की तलाश करना या भारत के लिए विशिष्ट अपवादों (Exceptions) का अनुरोध करना।
- आपूर्ति श्रृंखलाओं का पुनर्गठन: वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में अपनी स्थिति मजबूत करने और विनिर्माण क्षमता बढ़ाने के लिए “मेक इन इंडिया” जैसी पहलों को और मजबूत करना।
ऐतिहासिक संदर्भ (Historical Context):
ट्रम्प की “अमेरिका फर्स्ट” नीति कोई नई बात नहीं है। उनके पिछले कार्यकाल में भी इसी तरह के संरक्षणवादी (Protectionist) कदम उठाए गए थे, जैसे कि चीन से आयातित वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाना और इस्पात व एल्यूमीनियम जैसे उत्पादों पर शुल्क लगाना। तब भी, भारतीय अर्थव्यवस्था ने इन उपायों के अप्रत्यक्ष प्रभावों को महसूस किया था।
“संरक्षणवाद एक ऐसी नीति है जो आयात को सीमित करके घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देती है। यह एक दोधारी तलवार है; यह कुछ उद्योगों को लाभ पहुंचा सकती है, लेकिन समग्र रूप से अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकती है क्योंकि यह प्रतिस्पर्धा को कम करती है और उपभोक्ताओं के लिए लागत बढ़ाती है।”
निष्कर्ष (Conclusion):
डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा प्रस्तावित 50% सार्वभौमिक टैरिफ, यदि लागू होता है, तो भारतीय अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण और संभावित रूप से हानिकारक प्रभाव डालेगा। यह निर्यात क्षेत्र को सीधे तौर पर प्रभावित करेगा, रोजगार सृजन को बाधित करेगा, और समग्र आर्थिक विकास पर दबाव डालेगा। हालांकि, यह प्रस्ताव अभी भी प्रारंभिक चरण में है और इसके कार्यान्वयन की राह में कई बाधाएं हैं।
UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि वे वैश्विक आर्थिक रुझानों, व्यापार नीतियों और उनके संभावित परिणामों को समझें। इस मुद्दे का विश्लेषण करते समय, केवल प्रत्यक्ष प्रभावों पर ध्यान केंद्रित न करें, बल्कि अप्रत्यक्ष और दूरगामी परिणामों, और भारत की प्रतिक्रिया के रूप में अपनाई जाने वाली संभावित रणनीतियों पर भी विचार करें। यह एक ऐसा विषय है जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, अर्थशास्त्र और भू-राजनीति के मेल पर आधारित है, जो इसे सिविल सेवा परीक्षा के लिए अत्यंत प्रासंगिक बनाता है।
भारत को इस तरह की वैश्विक अनिश्चितताओं का सामना करने के लिए अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत, लचीला और विविध बनाने की आवश्यकता है। घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना, निर्यात बाजारों का विविधीकरण, और सेवा क्षेत्र में नवाचार को प्रोत्साहित करना – ये सभी कदम भारत को भविष्य के ऐसे झटकों से निपटने में मदद कर सकते हैं।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. “टैरिफ” के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. यह एक देश द्वारा आयातित वस्तुओं पर लगाया जाने वाला कर है।
2. इसका मुख्य उद्देश्य घरेलू उद्योगों की सुरक्षा करना है।
3. टैरिफ सरकार के लिए राजस्व का स्रोत हो सकता है।
उपरोक्त में से कौन से कथन सत्य हैं?
a) केवल 1
b) 1 और 2
c) 1, 2 और 3
d) केवल 3
उत्तर: c) 1, 2 और 3
व्याख्या: तीनों कथन टैरिफ की परिभाषा और उसके उद्देश्यों के बारे में सही जानकारी देते हैं।
2. निम्नलिखित में से कौन सा देश भारत के लिए प्रमुख निर्यात गंतव्य हैं?
a) संयुक्त राज्य अमेरिका
b) यूरोपीय संघ
c) उपरोक्त दोनों
d) केवल चीन
उत्तर: c) उपरोक्त दोनों
व्याख्या: संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ दोनों ही भारत के प्रमुख निर्यात बाजार हैं, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं।
3. “सार्वभौमिक टैरिफ” (Universal Tariff) का अर्थ क्या है?
a) किसी एक विशेष देश के सभी आयातों पर लगाया जाने वाला टैरिफ।
b) किसी विशेष वस्तु के सभी देशों से आयात पर लगाया जाने वाला टैरिफ।
c) सभी देशों से आयातित सभी वस्तुओं पर लगाया जाने वाला टैरिफ।
d) केवल उन देशों पर लगाया जाने वाला टैरिफ जो व्यापार समझौता नहीं करते।
उत्तर: c) सभी देशों से आयातित सभी वस्तुओं पर लगाया जाने वाला टैरिफ।
व्याख्या: सार्वभौमिक टैरिफ का अर्थ होता है कि यह सैद्धांतिक रूप से सभी देशों से आने वाली सभी वस्तुओं पर लागू होगा।
4. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की “अमेरिका फर्स्ट” नीति का प्राथमिक लक्ष्य क्या है?
a) वैश्विक सहयोग बढ़ाना
b) अमेरिकी हितों और घरेलू उद्योगों को प्राथमिकता देना
c) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों को मजबूत करना
d) विकासशील देशों को आर्थिक सहायता प्रदान करना
उत्तर: b) अमेरिकी हितों और घरेलू उद्योगों को प्राथमिकता देना
व्याख्या: “अमेरिका फर्स्ट” नीति का मुख्य उद्देश्य अमेरिकी अर्थव्यवस्था, श्रमिकों और व्यवसायों की सुरक्षा और संवर्धन है।
5. यदि अमेरिका भारतीय निर्यातों पर 50% का टैरिफ लगाता है, तो इसका भारत की भुगतान संतुलन (Balance of Payments) पर क्या प्रभाव पड़ने की संभावना है?
a) चालू खाता अधिशेष (Current Account Surplus) बढ़ेगा।
b) चालू खाता घाटा (Current Account Deficit) कम होगा।
c) चालू खाता घाटा बढ़ सकता है, यदि निर्यात में गिरावट महत्वपूर्ण हो।
d) भुगतान संतुलन पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ेगा।
उत्तर: c) चालू खाता घाटा बढ़ सकता है, यदि निर्यात में गिरावट महत्वपूर्ण हो।
व्याख्या: निर्यात में भारी गिरावट से आय कम होगी, जिससे चालू खाता घाटा बढ़ सकता है।
6. “संरक्षणवाद” (Protectionism) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा एक उपकरण नहीं है?
a) टैरिफ (Tariff)
b) आयात कोटा (Import Quotas)
c) मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreements)
d) निर्यात सब्सिडी (Export Subsidies) – (यह प्रत्यक्ष संरक्षणवाद नहीं, बल्कि निर्यात प्रोत्साहन है, लेकिन घरेलू को लाभ पहुंचा सकता है)
उत्तर: c) मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreements)
व्याख्या: मुक्त व्यापार समझौते व्यापार बाधाओं को कम करते हैं, जबकि संरक्षणवाद का उद्देश्य उन्हें बढ़ाना होता है।
7. भारत के रत्न और आभूषण क्षेत्र पर 50% टैरिफ का संभावित प्रभाव क्या होगा?
a) अमेरिकी बाजार में मांग बढ़ेगी।
b) निर्यात में गिरावट आएगी और प्रतिस्पर्धात्मकता कम होगी।
c) घरेलू उत्पादन में वृद्धि होगी।
d) अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए कीमतें घटेंगी।
उत्तर: b) निर्यात में गिरावट आएगी और प्रतिस्पर्धात्मकता कम होगी।
व्याख्या: बढ़ी हुई कीमतें अमेरिकी मांग को कम करेंगी, जिससे निर्यात और प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित होगी।
8. “पुनर्आवास” (Reshoring) से क्या तात्पर्य है?
a) किसी देश से उत्पादन को अन्य देशों में स्थानांतरित करना।
b) उत्पादन को एक विदेशी देश से वापस मूल देश में लाना।
c) उत्पादन को दो या दो से अधिक देशों में फैलाना।
d) केवल सेवा क्षेत्र में आउटसोर्सिंग बढ़ाना।
उत्तर: b) उत्पादन को एक विदेशी देश से वापस मूल देश में लाना।
व्याख्या: पुनर्आवास (Reshoring) का अर्थ है उत्पादन गतिविधियों को विदेशी देशों से वापस अपने देश लाना।
9. विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के अनुसार, निम्नलिखित में से क्या अनुमत नहीं है?
a) किसी सदस्य देश के साथ मुक्त व्यापार समझौता करना।
b) गैर-सदस्य देशों के साथ कुछ विशिष्ट व्यापारिक संबंध रखना।
c) गैर-भेदभावपूर्ण (Non-discriminatory) व्यापार व्यवहार।
d) सभी सदस्य देशों पर मनमाने ढंग से उच्च टैरिफ लगाना।
उत्तर: d) सभी सदस्य देशों पर मनमाने ढंग से उच्च टैरिफ लगाना।
व्याख्या: WTO गैर-भेदभावपूर्ण व्यवहार और टैरिफ को सीमित करने वाले नियमों पर आधारित है।
10. भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक व्यापार झटकों के प्रति अधिक लचीला बनाने के लिए क्या आवश्यक है?
a) निर्यात बाजारों का विविधीकरण
b) घरेलू मांग को मजबूत करना
c) सेवा क्षेत्र में नवाचार
d) उपरोक्त सभी
उत्तर: d) उपरोक्त सभी
व्याख्या: अर्थव्यवस्था को अधिक लचीला बनाने के लिए कई मोर्चों पर काम करने की आवश्यकता है, जिसमें उपरोक्त सभी उपाय शामिल हैं।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. 50% के संभावित सार्वभौमिक टैरिफ के संदर्भ में, भारतीय निर्यात क्षेत्र पर पड़ने वाले प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावों का विश्लेषण करें। उन प्रमुख क्षेत्रों की पहचान करें जो सबसे अधिक प्रभावित होंगे और इन प्रभावों को कम करने के लिए भारत द्वारा अपनाई जाने वाली संभावित रणनीतियों पर चर्चा करें। (250 शब्द, 15 अंक)
2. “संरक्षणवाद” (Protectionism) एक दोधारी तलवार है। विस्तार से बताएं कि कैसे पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की “अमेरिका फर्स्ट” नीति, जिसमें उच्च टैरिफ शामिल हैं, वैश्विक व्यापार व्यवस्था और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित कर सकती है। भारत के संदर्भ में इसके निहितार्थों का मूल्यांकन करें। (250 शब्द, 15 अंक)
3. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं (Global Supply Chains) में वर्तमान अनिश्चितताओं को देखते हुए, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए “आत्मनिर्भरता” (Self-reliance) और “आपूर्ति श्रृंखला विविधीकरण” (Supply Chain Diversification) के बीच संतुलन बनाना क्यों महत्वपूर्ण है? इस संबंध में सरकार की भूमिका पर प्रकाश डालें। (150 शब्द, 10 अंक)
4. यदि संयुक्त राज्य अमेरिका वास्तव में 50% का सार्वभौमिक टैरिफ लागू करता है, तो भारत के “मेक इन इंडिया” अभियान और “निर्यात-उन्मुख विकास” (Export-oriented growth) मॉडल पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? इस चुनौती का सामना करने के लिए भारत को किन नीतिगत समायोजनों की आवश्यकता हो सकती है? (250 शब्द, 15 अंक)