ट्रम्प का टैरिफ का वार: भारत कैसे करेगा पलटवार?
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत से आयात होने वाले स्टील और एल्यूमीनियम पर क्रमशः 25% और 10% के अतिरिक्त टैरिफ (शुल्क) लगाने की घोषणा की है। यह कदम वैश्विक व्यापार संबंधों में एक महत्वपूर्ण तनाव का संकेत है, खासकर भारत जैसे प्रमुख व्यापारिक साझेदारों के लिए। इस निर्णय का भारतीय अर्थव्यवस्था, निर्यातकों और उपभोक्ताओं पर गहरा प्रभाव पड़ने की आशंका है। ऐसे में, भारत सरकार के लिए यह समझना महत्वपूर्ण हो जाता है कि इस ‘टैरिफ युद्ध’ में वह किस प्रकार अपनी स्थिति को मजबूत कर सके और अपनी आर्थिक संप्रभुता को बनाए रख सके। यह लेख इसी संदर्भ में भारत की संभावित प्रतिक्रियाओं, रणनीतियों और उनके निहितार्थों पर एक विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जो UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
पृष्ठभूमि: टैरिफ की चिंगारी और व्यापार युद्ध की आहट
यह कोई अचानक लिया गया निर्णय नहीं है। डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति के तहत, वे उन देशों के प्रति सख्त रुख अपना रहे हैं, जिन्हें वे अमेरिकी व्यापार घाटे के लिए जिम्मेदार मानते हैं। भारत, दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के नाते, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार है। हालांकि, अमेरिका का हमेशा से यह आरोप रहा है कि भारत द्विपक्षीय व्यापार में अपनी स्थिति का अनुचित लाभ उठाता है, विशेष रूप से कुछ वस्तुओं पर उच्च टैरिफ लगाकर और कुछ उद्योगों को सब्सिडी देकर।
मुख्य बिंदु:**
- राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला:** ट्रम्प प्रशासन ने राष्ट्रीय सुरक्षा को इन टैरिफों का मुख्य कारण बताया है, विशेष रूप से स्टील पर, जिसका उपयोग रक्षा उपकरणों में भी होता है। हालांकि, आलोचक इसे संरक्षणवादी (protectionist) कदम मानते हैं।
- व्यापार घाटा:** अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करना ट्रम्प के एजेंडे का एक प्रमुख हिस्सा रहा है। वे भारत जैसे देशों से आयात पर शुल्क लगाकर अमेरिकी उत्पादों की निर्यात क्षमता को बढ़ाना चाहते हैं।
- विशिष्ट वस्तुएं:** शुरुआत में इस्पात और एल्यूमीनियम पर केंद्रित यह टैरिफ, आगे चलकर ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल्स और कृषि उत्पादों जैसे अन्य क्षेत्रों में भी विस्तारित हो सकते हैं, जिससे भारत के लिए खतरा बढ़ जाता है।
यह स्थिति UPSC के अंतर्राष्ट्रीय संबंध (International Relations) और अर्थव्यवस्था (Economy) जैसे पेपर के लिए अत्यंत प्रासंगिक है। हमें न केवल इस निर्णय के कारणों को समझना होगा, बल्कि इसके संभावित परिणामों और भारत की रणनीतियों का भी गहराई से विश्लेषण करना होगा।
भारत का दृष्टिकोण: संतुलन साधने की कला
भारत सरकार के लिए, इस परिदृश्य में प्रतिक्रिया देना एक नाजुक संतुलन बनाने वाला कार्य है। एक ओर, उसे अपनी अर्थव्यवस्था को नुकसान से बचाना है, निर्यातकों का समर्थन करना है, और दूसरी ओर, अमेरिका के साथ अपने रणनीतिक और आर्थिक संबंधों को भी बनाए रखना है। भारत ने इस मामले में मुखर रुख अपनाया है, लेकिन कूटनीतिक रास्ते भी खुले रखे हैं।
भारत के संभावित कदम:**
- कड़े व्यापारिक उपायों का जवाब:**
- प्रतिशोधात्मक टैरिफ (Retaliatory Tariffs):** अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के तहत, भारत भी जवाबी कार्रवाई के रूप में अमेरिकी उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा सकता है। यह उन भारतीय उद्योगों के लिए एक प्रभावी तरीका हो सकता है जो आयातित अमेरिकी वस्तुओं पर निर्भर हैं।
- निर्यात प्रोत्साहन:** भारतीय निर्यातकों को इन शुल्कों के प्रभाव को कम करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन या कर छूट प्रदान की जा सकती है।
- कूटनीतिक समाधान:**
- द्विपक्षीय वार्ता:** भारत और अमेरिका के बीच निरंतर बातचीत जारी है। भारत इन टैरिफों को वापस लेने या उनमें रियायत देने के लिए अमेरिका पर दबाव बना सकता है।
- विश्व व्यापार संगठन (WTO) का सहारा:** यदि कूटनीतिक प्रयास विफल होते हैं, तो भारत विश्व व्यापार संगठन (WTO) में भी इस मामले को उठा सकता है, यह तर्क देते हुए कि ये टैरिफ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों का उल्लंघन करते हैं।
- घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा:**
- ‘मेक इन इंडिया’ का विस्तार:** यह स्थिति घरेलू विनिर्माण को और बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करती है। यदि भारत अपने उत्पादन को बढ़ाता है, तो वह न केवल आयात पर निर्भरता कम कर सकता है, बल्कि निर्यात के नए अवसर भी पैदा कर सकता है।
- वैकल्पिक बाजारों की तलाश:** भारत को अपने निर्यात के लिए नए और वैकल्पिक बाजारों की तलाश करनी चाहिए, ताकि अमेरिकी बाजार पर निर्भरता कम हो सके।
यह रणनीति एक बहु-आयामी दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करती है, जिसमें तत्काल प्रतिक्रिया, दीर्घकालिक योजना और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग शामिल हैं।
स्टील और एल्यूमीनियम: क्यों हैं ये महत्वपूर्ण?
यह समझना महत्वपूर्ण है कि ट्रम्प प्रशासन ने विशेष रूप से स्टील और एल्यूमीनियम पर ही क्यों ध्यान केंद्रित किया है। ये दोनों धातुएँ आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं के लिए आधारभूत हैं और इनका उपयोग विभिन्न उद्योगों में बड़े पैमाने पर होता है।
स्टील:**
- बुनियादी ढांचा:** सड़कों, पुलों, इमारतों के निर्माण में स्टील का सर्वाधिक उपयोग होता है।
- ऑटोमोबाइल:** वाहनों के निर्माण में स्टील एक प्रमुख घटक है।
- रक्षा:** युद्धपोतों, टैंकों और अन्य सैन्य उपकरणों के निर्माण में उच्च गुणवत्ता वाले स्टील की आवश्यकता होती है।
- घरेलू उत्पाद:** घरेलू उपकरणों से लेकर विभिन्न मशीनरी तक, स्टील का उपयोग सर्वव्यापी है।
एल्यूमीनियम:**
- हल्के वाहन:** ऑटोमोबाइल और विमानन उद्योग में वजन कम करने के लिए एल्यूमीनियम का उपयोग बढ़ रहा है।
- पैकेजिंग:** खाद्य और पेय पदार्थों की पैकेजिंग में एल्यूमीनियम फॉयल का व्यापक रूप से उपयोग होता है।
- विद्युत:** बिजली के तारों और ट्रांसमिशन लाइनों में इसके अच्छे विद्युत चालकता के कारण इसका उपयोग किया जाता है।
- निर्माण:** खिड़कियों, दरवाजों और अन्य वास्तुशिल्प घटकों में भी इसका उपयोग होता है।
चूंकि भारत इन दोनों धातुओं का एक महत्वपूर्ण उत्पादक और निर्यातक है, इसलिए अमेरिकी टैरिफ का सीधा असर भारतीय निर्यातकों पर पड़ेगा। यह न केवल राजस्व का नुकसान करेगा, बल्कि संबंधित उद्योगों में रोजगार पर भी असर डाल सकता है।
संभावित प्रभाव: आर्थिक झटके और कूटनीतिक दांव-पेंच
ट्रम्प के इस कदम के दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं, जिन्हें समझना UPSC के उम्मीदवारों के लिए आवश्यक है:
भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:**
- निर्यात में कमी:** भारतीय इस्पात और एल्यूमीनियम निर्यातकों को अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो जाएगा, जिससे निर्यात में गिरावट आ सकती है।
- व्यापार असंतुलन में वृद्धि:** यदि भारत अमेरिकी टैरिफ का जवाब देता है, तो दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलन और बढ़ सकता है।
- रोजगार पर असर:** निर्यात में कमी से सीधे तौर पर स्टील और एल्यूमीनियम उद्योगों में रोजगार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- विनिर्माण लागत में वृद्धि:** यदि भारतीय निर्माता अपने उत्पादन के लिए आयातित अमेरिकी घटकों पर निर्भर हैं, तो उनकी लागत बढ़ सकती है।
वैश्विक व्यापार पर प्रभाव:**
- संरक्षणवाद का प्रसार:** एक प्रमुख अर्थव्यवस्था द्वारा इस तरह का कदम अन्य देशों को भी इसी तरह की संरक्षणवादी नीतियों को अपनाने के लिए प्रेरित कर सकता है, जिससे वैश्विक व्यापार युद्ध छिड़ सकता है।
- WTO की भूमिका पर प्रश्नचिह्न:** संरक्षणवादी उपाय विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे बहुपक्षीय संस्थानों की प्रासंगिकता और शक्ति पर भी सवाल उठाते हैं।
- आर्थिक अनिश्चितता:** इस तरह के व्यापारिक तनाव वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता को बढ़ाते हैं, जिससे निवेशक सतर्क हो जाते हैं और निवेश पर असर पड़ता है।
रणनीतिक संबंध:**
- भारत-अमेरिका संबंध:** यह स्थिति भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक संबंधों को भी प्रभावित कर सकती है, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग के लिए महत्वपूर्ण हैं।
इसे एक शतरंज के खेल की तरह देखें, जहाँ प्रत्येक चाल के कई परिणाम होते हैं। भारत को अपनी चालें सावधानी से चलनी होंगी।
भारत की कूटनीतिक रणनीतियाँ: एक गहन विश्लेषण
जब कूटनीति की बात आती है, तो भारत के पास कई विकल्प होते हैं, जिनमें से कुछ सबसे प्रभावी हो सकते हैं:
1. विश्व व्यापार संगठन (WTO) का मंच
क्यों?** WTO व्यापार से संबंधित नियमों का एक वैश्विक निकाय है। इसके नियम सदस्य देशों को गैर-भेदभावपूर्ण (non-discriminatory) और पारदर्शी व्यापार प्रथाओं का पालन करने के लिए बाध्य करते हैं।
कैसे?**
- शिकायत दर्ज करना:** भारत यह तर्क दे सकता है कि अमेरिकी टैरिफ राष्ट्रीय सुरक्षा के बहाने लगाए गए हैं, लेकिन वास्तव में ये संरक्षणवादी हैं और WTO के नियम 19 (राष्ट्रीय सुरक्षा) का दुरुपयोग करते हैं।
- मध्यस्थता और निर्णय:** WTO एक विवाद निपटान प्रणाली (Dispute Settlement System) प्रदान करता है, जहां वह ऐसे मामलों की जांच कर सकता है और यदि नियम उल्लंघन पाया जाता है, तो सदस्य देशों को नियमों का पालन करने का निर्देश दे सकता है।
“WTO नियमों के तहत, राष्ट्रीय सुरक्षा अपवाद का उपयोग अत्यंत सावधानी और पारदर्शी तरीके से किया जाना चाहिए। केवल गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा खतरों के मामले में ही ऐसे उपाय उचित ठहराए जा सकते हैं।”
चुनौतियां:** WTO की निर्णय प्रक्रिया लंबी और जटिल हो सकती है, और अमेरिका जैसे बड़े देशों के फैसलों को लागू करवाना भी एक चुनौती हो सकती है।
2. द्विपक्षीय वार्ता और रियायतें
क्यों?** यह दोनों देशों के बीच सीधे संबंधों को मजबूत करने का एक तरीका है।
कैसे?**
- खुला संवाद:** भारत को अमेरिकी अधिकारियों के साथ लगातार संवाद बनाए रखना चाहिए, अपनी चिंताओं को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए और टैरिफ के हानिकारक प्रभावों को उजागर करना चाहिए।
- पारस्परिक रियायतें (Reciprocal Concessions):** भारत अमेरिकी उत्पादों पर अपने कुछ टैरिफों को कम करने की पेशकश कर सकता है, यदि अमेरिका भी अपने टैरिफ कम करे। उदाहरण के लिए, भारत कुछ अमेरिकी कृषि उत्पादों या ऑटोमोबाइल पर अपने टैरिफ कम कर सकता है, यदि अमेरिका भारतीय स्टील और एल्यूमीनियम पर लगाए गए टैरिफ को वापस ले ले।
- ‘इक्वालिटी’ का तर्क:** भारत यह तर्क दे सकता है कि जब तक कुछ वस्तुओं पर उसके टैरिफों को “अनुचित” माना जाता है, तब तक अमेरिका को भी अपने टैरिफ को “अनुचित” माना जाना चाहिए।
चुनौतियां:** अमेरिका अपनी मांगों पर अड़ा रह सकता है, खासकर यदि उसे लगता है कि वह कूटनीतिक रूप से मजबूत स्थिति में है।
3. गठबंधन बनाना (Coalition Building)
क्यों?** अकेले लड़ने के बजाय, समान विचारधारा वाले देशों के साथ मिलकर आवाज उठाना अधिक प्रभावी हो सकता है।
कैसे?**
- अन्य प्रभावित देश:** यूरोपीय संघ (EU), चीन, जापान और अन्य देश भी अमेरिकी टैरिफ से प्रभावित हो सकते हैं। भारत इन देशों के साथ मिलकर एक साझा मंच बना सकता है ताकि अमेरिका पर सामूहिक रूप से दबाव डाला जा सके।
- अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर समन्वय:** G20, BRICS जैसे मंचों पर भी इस मुद्दे को उठाया जा सकता है, ताकि अमेरिका को बहुपक्षीय दबाव का सामना करना पड़े।
“अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में, ‘हमेशा अकेले लड़ने से अच्छा है एक समूह में मिलकर लड़ना’, यह सिद्धांत लागू होता है।”
चुनौतियां:** विभिन्न देशों के अपने-अपने हित हो सकते हैं, जिससे एक मजबूत गठबंधन बनाना मुश्किल हो सकता है।
‘मेक इन इंडिया’ और आत्मनिर्भर भारत: एक अवसर
यह संकट वास्तव में भारत के लिए अपनी आर्थिक नीतियों पर पुनर्विचार करने और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लक्ष्य को प्राप्त करने का एक अवसर हो सकता है।
लाभ:**
- घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा:** टैरिफ भारतीय कंपनियों के लिए अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने और आयातित वस्तुओं के विकल्प विकसित करने के लिए प्रोत्साहन पैदा कर सकते हैं।
- तकनीकी नवाचार:** घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए अधिक निवेश और नवाचार की आवश्यकता होगी, जिससे भारत की तकनीकी क्षमताएं बढ़ेंगी।
- रोजगार सृजन:** विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि से देश में नए रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
- आयात निर्भरता कम:** यह भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं (global supply chains) में झटकों के प्रति कम संवेदनशील बनाएगा।
कैसे?**
- नीतिगत समर्थन:** सरकार को अनुसंधान और विकास (R&D) में निवेश को बढ़ावा देना चाहिए, बुनियादी ढांचे में सुधार करना चाहिए और विनिर्माण के लिए अनुकूल नियामक वातावरण बनाना चाहिए।
- कौशल विकास:** भारतीय श्रम शक्ति को उच्च-कुशल बनाने के लिए कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश महत्वपूर्ण होगा।
इसे एक ‘आर्थिक आत्मनिर्भरता’ की ओर एक कदम के रूप में देखा जा सकता है, जहां भारत अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए आंतरिक क्षमताओं पर अधिक निर्भर हो।
आगे की राह: चुनौतियां और संभावनाएं
यह निश्चित रूप से एक जटिल स्थिति है, और भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा:
चुनौतियां
- अमेरिका का राजनीतिक दबाव:** डोनाल्ड ट्रम्प का संरक्षणवादी रवैया और ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है।
- वैश्विक आर्थिक मंदी:** यदि वैश्विक अर्थव्यवस्था पहले से ही धीमी चल रही है, तो इस तरह के टैरिफ इसे और खराब कर सकते हैं।
- तकनीकी अंतर:** कुछ क्षेत्रों में, भारत के पास अभी भी उन्नत देशों के मुकाबले तकनीकी अंतराल है, जिससे घरेलू उत्पादन बढ़ाना मुश्किल हो सकता है।
- बाजार पहुंच:** नए बाजारों की तलाश करना आसान नहीं होता, क्योंकि वहां भी प्रतिस्पर्धा मौजूद होती है।
संभावनाएं
- आर्थिक विविधीकरण:** यह भारत के लिए अपनी अर्थव्यवस्था को विभिन्न क्षेत्रों और बाजारों में विविधता लाने का एक अवसर है।
- रणनीतिक साझेदारी:** यह भारत को अपने अन्य रणनीतिक साझेदारों के साथ संबंधों को मजबूत करने का मौका दे सकता है।
- आर्थिक सुधार:** यह देश को अपनी आर्थिक कमजोरियों को दूर करने और आंतरिक सुधारों को तेज करने के लिए प्रेरित कर सकता है।
भारत को एक बहु-आयामी रणनीति पर काम करना होगा, जिसमें कूटनीति, व्यापारिक सुधार और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना शामिल है। यह न केवल इस विशेष संकट से निपटने में मदद करेगा, बल्कि भारत को दीर्घकालिक आर्थिक मजबूती की ओर भी ले जाएगा।
निष्कर्ष: एक जटिल पहेली का समाधान
अमेरिकी राष्ट्रपति के टैरिफ के निर्णय ने भारत के लिए एक जटिल पहेली प्रस्तुत की है। इस्पात और एल्यूमीनियम पर लगाए गए अतिरिक्त शुल्क न केवल प्रत्यक्ष आर्थिक नुकसान पहुंचा सकते हैं, बल्कि वैश्विक व्यापार संबंधों में भी अनिश्चितता पैदा कर सकते हैं। हालांकि, इस चुनौती को एक अवसर के रूप में भी देखा जा सकता है – भारत के लिए अपनी आर्थिक आत्मनिर्भरता को मजबूत करने, घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और अपनी कूटनीतिक क्षमताओं का प्रदर्शन करने का अवसर।
भारत की प्रतिक्रिया में न केवल प्रतिशोधात्मक उपाय शामिल होने चाहिए, बल्कि कूटनीतिक वार्ता, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहलों का प्रभावी कार्यान्वयन भी होना चाहिए। लंबी अवधि में, यह भारत को वैश्विक आर्थिक झटकों के प्रति अधिक लचीला बनाने में मदद करेगा और इसे आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर करेगा। इस तरह के भू-राजनीतिक और आर्थिक घटनाक्रमों को समझना UPSC सिविल सेवा परीक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह वैश्विक व्यवस्था और भारत की स्थिति पर गहरा प्रभाव डालता है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न 1:** हाल ही में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत से आयातित किन दो धातुओं पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा की?
(a) तांबा और जस्ता
(b) इस्पात और एल्यूमीनियम
(c) निकेल और टिन
(d) लोहा और मैंगनीज
उत्तर:** (b)
व्याख्या:** अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने राष्ट्रीय सुरक्षा के हवाला देते हुए भारत से आयातित स्टील पर 25% और एल्यूमीनियम पर 10% के अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा की थी। - प्रश्न 2:** ‘अमेरिका फर्स्ट’ (America First) नीति का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(a) अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना
(b) अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करना और घरेलू उद्योगों की रक्षा करना
(c) वैश्विक व्यापार नियमों को मजबूत करना
(d) विदेशी निवेश को आकर्षित करना
उत्तर:** (b)
व्याख्या:** ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति अमेरिकी हितों को प्राथमिकता देने पर केंद्रित है, जिसमें अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करना और घरेलू उद्योगों को संरक्षण देना शामिल है। - प्रश्न 3:** अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के उल्लंघन पर कौन सा संगठन विवादों का समाधान करता है?
(a) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)
(b) विश्व बैंक (World Bank)
(c) विश्व व्यापार संगठन (WTO)
(d) अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC)
उत्तर:** (c)
व्याख्या:** विश्व व्यापार संगठन (WTO) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित नियमों को लागू करता है और सदस्य देशों के बीच व्यापार विवादों का समाधान करता है। - प्रश्न 4:** भारत सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ पहल का प्राथमिक लक्ष्य क्या है?
(a) केवल सेवा क्षेत्र को बढ़ावा देना
(b) भारत को विनिर्माण और निवेश के लिए एक वैश्विक केंद्र बनाना
(c) निर्यात को पूरी तरह से रोकना
(d) घरेलू खपत को कम करना
उत्तर:** (b)
व्याख्या:** ‘मेक इन इंडिया’ पहल का उद्देश्य भारत में विनिर्माण को बढ़ावा देना, निवेश आकर्षित करना और देश को एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करना है। - प्रश्न 5:** ट्रम्प प्रशासन द्वारा लगाए गए टैरिफ का सबसे सीधा प्रभाव किस पर पड़ेगा?
(a) भारतीय सॉफ्टवेयर सेवाओं पर
(b) भारतीय इस्पात और एल्यूमीनियम निर्यातकों पर
(c) भारतीय पर्यटन उद्योग पर
(d) भारतीय कृषि उत्पादों के आयात पर
उत्तर:** (b)
व्याख्या:** चूंकि अमेरिका ने विशेष रूप से स्टील और एल्यूमीनियम पर टैरिफ लगाए हैं, इसलिए इन धातुओं के भारतीय निर्यातकों पर इसका सीधा और सबसे बड़ा प्रभाव पड़ेगा। - प्रश्न 6:** निम्नलिखित में से कौन सी भारत की संभावित प्रतिक्रिया नहीं हो सकती है?
(a) अमेरिकी उत्पादों पर जवाबी टैरिफ लगाना
(b) WTO में शिकायत दर्ज करना
(c) अमेरिका के साथ कूटनीतिक बातचीत करना
(d) अपने सभी निर्यात रोकना
उत्तर:** (d)
व्याख्या:** अपने सभी निर्यात रोकना भारत के आर्थिक हितों के विरुद्ध होगा और यह एक व्यवहार्य या तार्किक प्रतिक्रिया नहीं है। - प्रश्न 7:** ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान का संबंध किससे है?
(a) केवल सैन्य शक्ति बढ़ाना
(b) भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता और घरेलू क्षमताओं को मजबूत करना
(c) अन्य देशों पर निर्भरता बढ़ाना
(d) विदेशी सहायता पर पूर्ण निर्भरता
उत्तर:** (b)
व्याख्या:** ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान का मुख्य उद्देश्य भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ाना, घरेलू उत्पादन, नवाचार और कौशल विकास को बढ़ावा देना है। - प्रश्न 8:** निम्नलिखित में से कौन सा कारक अमेरिकी टैरिफ को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ता है?
(a) अमेरिकी स्मार्टफोन उत्पादन में वृद्धि
(b) स्टील के राष्ट्रीय रक्षा उपकरणों में उपयोग
(c) अमेरिकी कृषि सब्सिडी में कमी
(d) अमेरिकी सॉफ्टवेयर उद्योग का विकास
उत्तर:** (b)
व्याख्या:** ट्रम्प प्रशासन ने स्टील के राष्ट्रीय रक्षा उपकरणों में उपयोग का हवाला देते हुए इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बताया था। - प्रश्न 9:** भारत के लिए, इस स्थिति का एक संभावित लाभ क्या हो सकता है?
(a) वैश्विक व्यापार में और अधिक प्रतिबंध
(b) घरेलू विनिर्माण और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा
(c) अमेरिका पर निर्भरता में वृद्धि
(d) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अधिक अस्थिरता
उत्तर:** (b)
व्याख्या:** यह स्थिति भारत के लिए घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करने और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने का एक अवसर प्रस्तुत कर सकती है। - प्रश्न 10:** यदि भारत WTO में जाता है, तो वह क्या तर्क दे सकता है?
(a) अमेरिकी टैरिफ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के अनुसार हैं।
(b) अमेरिकी टैरिफ राष्ट्रीय सुरक्षा अपवाद का उचित उपयोग हैं।
(c) अमेरिकी टैरिफ संरक्षणवादी हैं और नियम 19 (राष्ट्रीय सुरक्षा) का दुरुपयोग करते हैं।
(d) भारत को अपने टैरिफ बढ़ाने चाहिए, भले ही अमेरिका टैरिफ कम करे।
उत्तर:** (c)
व्याख्या:** यदि भारत WTO में जाता है, तो वह यह तर्क दे सकता है कि अमेरिकी टैरिफ संरक्षणवादी हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा अपवाद का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न 1:** अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा लगाए गए अतिरिक्त टैरिफ के आलोक में, भारत के लिए ‘आत्मनिर्भर भारत’ की अवधारणा को मजबूत करने के लिए सरकार द्वारा उठाए जा सकने वाले प्रमुख आर्थिक और कूटनीतिक कदमों का विश्लेषण करें। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न 2:** भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार संबंधों पर अमेरिकी टैरिफ नीति के संभावित प्रभाव का मूल्यांकन करें। विश्व व्यापार संगठन (WTO) के माध्यम से भारत की संभावित प्रतिक्रियाओं की चर्चा करें। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न 3:** “वैश्विक व्यापार युद्धों में, संरक्षणवाद न केवल अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और शांति को भी खतरे में डालता है।” इस कथन के आलोक में, हालिया अमेरिकी टैरिफ घोषणाओं और भारत पर इसके संभावित प्रभावों पर प्रकाश डालें। (150 शब्द, 10 अंक)
- प्रश्न 4:** भारत के निर्यातकों पर अमेरिकी टैरिफ के प्रत्यक्ष प्रभाव क्या हैं, और इन प्रभावों को कम करने के लिए सरकार किस प्रकार की सहायता प्रदान कर सकती है? (150 शब्द, 10 अंक)