ट्रम्प का जवाब: भारत के रूसी यूरेनियम और उर्वरक आयात दावों पर अमेरिका का रुख!
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से भारत के उन दावों के बारे में पूछा गया कि भारत रूसी यूरेनियम और उर्वरकों का आयात कर रहा है, और इस पर उनकी प्रतिक्रिया की गई। यह घटना भू-राजनीतिक और आर्थिक संबंधों के जटिल जाल को उजागर करती है, विशेष रूप से यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के संदर्भ में। यह घटना UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए अंतर्राष्ट्रीय संबंध, अर्थव्यवस्था और भू-राजनीति जैसे विषयों को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करती है।
यह ब्लॉग पोस्ट इस घटना के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत विश्लेषण करेगा, जिसमें यह भी शामिल है कि भारत रूसी यूरेनियम और उर्वरकों पर कितना निर्भर है, इन आयातों का वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य पर क्या प्रभाव पड़ता है, और संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रतिक्रिया का क्या महत्व है। हम इस मुद्दे को UPSC के दृष्टिकोण से गहराई से समझेंगे, जिसमें मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिक विश्लेषणात्मक प्रश्न और प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न शामिल होंगे।
भारत की ऊर्जा सुरक्षा और उर्वरकों की आवश्यकता (India’s Energy Security and Fertilizer Needs)
भारत की विशाल जनसंख्या और बढ़ती अर्थव्यवस्था को स्थिर ऊर्जा आपूर्ति और कृषि उत्पादन के लिए उर्वरकों की निरंतर आवश्यकता है। परमाणु ऊर्जा भारत के ऊर्जा मिश्रण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो बिजली उत्पादन में विविधता लाने और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने में मदद करती है। इसी तरह, कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, और उर्वरकों की उपलब्धता सीधे खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है।
यूरेनियम आयात:
- ऊर्जा का स्रोत: भारत के पास प्राकृतिक यूरेनियम के सीमित भंडार हैं, इसलिए अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए इसे यूरेनियम का आयात करना पड़ता है।
- आपूर्तिकर्ता: ऐतिहासिक रूप से, भारत ने विभिन्न देशों से यूरेनियम का आयात किया है, जिसमें कजाकिस्तान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और उज्बेकिस्तान जैसे देश शामिल हैं। रूस के साथ भारत के मजबूत द्विपक्षीय संबंध रहे हैं, और यदि रूस एक स्रोत के रूप में उभरा है, तो यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए एक रणनीतिक कदम हो सकता है।
- समझौते: भारत ने यूरेनियम की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कई देशों के साथ दीर्घकालिक आपूर्ति समझौते किए हैं। इन समझौतों की शर्तों और आपूर्ति श्रृंखला की जटिलताएँ महत्वपूर्ण हैं।
उर्वरक आयात:
- कृषि की मांग: भारतीय कृषि, विशेष रूप से गहन खेती वाले क्षेत्रों में, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (NPK) आधारित उर्वरकों पर बहुत अधिक निर्भर है।
- घरेलू उत्पादन बनाम आयात: भारत में उर्वरकों का घरेलू उत्पादन है, लेकिन मांग को पूरा करने के लिए आयात भी आवश्यक है। विशेष रूप से पोटाश और कुछ अन्य प्रमुख पोषक तत्वों के लिए भारत काफी हद तक आयात पर निर्भर है।
- आपूर्तिकर्ता: रूस, बेलारूस और कनाडा जैसे देश भारत के प्रमुख उर्वरक आपूर्तिकर्ताओं में से हैं। रूस विशेष रूप से पोटाश और फास्फेटिक उर्वरकों का एक महत्वपूर्ण उत्पादक और निर्यातक है।
यूक्रेन युद्ध का भू-राजनीतिक प्रभाव (Geopolitical Impact of the Ukraine War)
यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य को मौलिक रूप से बदल दिया है। इसके कारण रूस पर व्यापक अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाए गए हैं, जिससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित हुई हैं और कई देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं और रणनीतिक आकाओं पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर हुए हैं।
प्रतिबंधों का जाल:
- आर्थिक दबाव: पश्चिमी देशों ने रूस की अर्थव्यवस्था को लक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, जिसमें ऊर्जा क्षेत्र पर भी प्रभाव शामिल है।
- आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान: इन प्रतिबंधों के कारण रूसी उत्पादों, जिनमें ऊर्जा और उर्वरक शामिल हैं, के व्यापार में जटिलताएं पैदा हुई हैं। शिपिंग, बीमा और भुगतान तंत्र प्रभावित हुए हैं।
- ‘वेस्ट एंड वेस्ट’ का तर्क: कुछ विश्लेषक तर्क देते हैं कि भारत जैसे देश, जो ऐतिहासिक रूप से गुटनिरपेक्ष रहे हैं या जिनके रूस के साथ मजबूत संबंध हैं, रूस के साथ व्यापार जारी रख सकते हैं, भले ही पश्चिम द्वारा प्रतिबंध लगाए गए हों। यह ‘वेस्ट एंड वेस्ट’ (पश्चिम बनाम पश्चिम) की स्थिति को दर्शाता है, जहाँ विकासशील देश अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दे सकते हैं।
रणनीतिक स्वायत्तता:
- भारत का दृष्टिकोण: यूक्रेन युद्ध के प्रति भारत का रुख उसकी ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ की नीति का प्रतिबिंब है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में वोटिंग से परहेज किया है और रूस की निंदा करने से बचा है, साथ ही मानवीय सहायता की पेशकश भी की है।
- ऊर्जा आवश्यकताएं: भारत ने स्पष्ट किया है कि उसकी ऊर्जा सुरक्षा सर्वोपरि है। इसलिए, यदि रूसी यूरेनियम और उर्वरक लागत प्रभावी और विश्वसनीय आपूर्ति प्रदान करते हैं, तो भारत के लिए उनके साथ व्यापार जारी रखना स्वाभाविक है।
- बहु-ध्रुवीय विश्व: यह घटना भारत की बहु-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था की ओर झुकाव को भी दर्शाती है, जहां वह विभिन्न शक्तियों के साथ संबंध बनाए रखता है और अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देता है।
ट्रम्प की प्रतिक्रिया का महत्व (Significance of Trump’s Response)
डोनाल्ड ट्रम्प, जो अमेरिकी राजनीति में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं, की प्रतिक्रिया ने इस मुद्दे को और अधिक चर्चा में ला दिया है। उनकी प्रतिक्रिया को कई दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है:
‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति:
- राष्ट्रीय हित: ट्रम्प की ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति में, वह अक्सर अमेरिकी राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हैं। उनकी प्रतिक्रिया इस बात पर केंद्रित हो सकती है कि क्या इन भारतीय आयातों से सीधे तौर पर अमेरिकी हितों को कोई नुकसान हो रहा है।
- आर्थिक प्रतिस्पर्धा: यदि ट्रम्प को लगता है कि भारत के रूसी ऊर्जा स्रोत अमेरिकी ऊर्जा निर्यातों के लिए प्रतिस्पर्धा पैदा करते हैं, तो उनकी प्रतिक्रिया आलोचनात्मक हो सकती है।
भू-राजनीतिक दांव-पेंच:
- रूस पर दबाव: अमेरिका और उसके सहयोगी रूस पर यथासंभव दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। भारत के रूसी ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता बनाए रखने की खबर रूस के लिए कुछ हद तक राहत का कारण बन सकती है, जो पश्चिमी प्रतिबंधों से अलग-थलग पड़ गया है।
- पश्चिमी गठबंधन: ट्रम्प की टिप्पणी पश्चिमी गठबंधन की एकता को भी प्रभावित कर सकती है, जहाँ वे रूस के खिलाफ एक एकीकृत मोर्चा बनाए रखने का प्रयास कर रहे हैं।
ट्रम्प की राजनीतिक रणनीति:
- घरेलू राजनीति: ट्रम्प की प्रतिक्रियाएं अक्सर घरेलू राजनीति से प्रेरित होती हैं। वह ऐसे मुद्दों का उपयोग अपने समर्थकों को एकजुट करने या अपने विरोधियों पर हमला करने के लिए कर सकते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का सरलीकरण: ट्रम्प अक्सर जटिल अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को सरल शब्दों में प्रस्तुत करते हैं, जो कभी-कभी उनकी नीतियों के पीछे की बारीकियों को छिपा सकता है।
भारत के रूसी आयातों का विश्लेषण (Analysis of India’s Russian Imports)
यह समझना महत्वपूर्ण है कि भारत की रूसी यूरेनियम और उर्वरक आयात की मात्रा और महत्व क्या है, और क्या यह सचमुच ‘दावा’ है या स्थापित तथ्य।
यूरेनियम आयात:
- ईंधन चक्र: परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिए यूरेनियम एक महत्वपूर्ण घटक है। भारत के पास वर्तमान में 22 परिचालन परमाणु रिएक्टर हैं और क्षमता विस्तार की योजना है।
- आयात के स्रोत: जबकि रूस भारत को यूरेनियम का एक संभावित स्रोत हो सकता है, भारत के मुख्य आपूर्तिकर्ताओं में कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे देश रहे हैं। रूस से यूरेनियम की खरीद भारत के ऊर्जा सुरक्षा पोर्टफोलियो का एक छोटा लेकिन संभावित रूप से महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकती है।
- सुरक्षा चिंताएँ: रूस से यूरेनियम की खरीद अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के नियमों और परमाणु अप्रसार संधियों के अधीन होगी।
उर्वरक आयात:
- यूरिया, डीएपी, एमओपी: भारत मुख्य रूप से यूरिया, डाय-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) और म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) का आयात करता है।
- रूस का योगदान: रूस भारत के लिए पोटाश और फास्फेट उर्वरकों का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है। यूक्रेन युद्ध के बाद, वैश्विक उर्वरक बाजार में अस्थिरता बढ़ी है, जिससे भारत के लिए विश्वसनीय स्रोतों को सुरक्षित करना महत्वपूर्ण हो गया है।
- मूल्य संवेदनशीलता: उर्वरकों की कीमतें सीधे भारतीय किसानों की लागत को प्रभावित करती हैं। इसलिए, प्रतिस्पर्धी मूल्य पर आपूर्ति सुनिश्चित करना भारत सरकार के लिए एक प्राथमिकता है।
UPSC के लिए प्रासंगिकता (Relevance for UPSC)
यह घटना UPSC परीक्षा के विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को कवर करती है:
- अंतर्राष्ट्रीय संबंध: भारत के रूस, अमेरिका और अन्य वैश्विक शक्तियों के साथ संबंध। भू-राजनीतिक गठबंधन और राष्ट्रों के बीच शक्ति संतुलन।
- अर्थव्यवस्था: ऊर्जा सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, आयात-निर्यात नीतियां, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला, भू-राजनीति का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव।
- भू-राजनीति: यूक्रेन युद्ध के वैश्विक प्रभाव, रूस पर प्रतिबंध, बहु-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था, भारत की विदेश नीति और ‘रणनीतिक स्वायत्तता’।
- सुरक्षा: राष्ट्रीय सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, रक्षा सहयोग।
भारत की विदेश नीति के सिद्धांत (Principles of India’s Foreign Policy)
भारत की विदेश नीति कई सिद्धांतों पर आधारित है, जिन्हें समझना UPSC के उम्मीदवारों के लिए महत्वपूर्ण है:
- रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy): भारत अपनी विदेश नीति और सामरिक निर्णय लेते समय स्वतंत्र रूप से कार्य करता है, जो किसी भी प्रमुख शक्ति ब्लॉक के प्रति प्रतिबद्ध नहीं है।
- बहु-संरेखण (Multi-Alignment): भारत विभिन्न देशों के साथ, उनके हितों और वैश्विक सामरिक समीकरणों के अनुसार, संबंध बनाए रखता है।
- राष्ट्रीय हित सर्वोपरि (National Interest Paramount): भारत की विदेश नीति का प्राथमिक उद्देश्य राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना है, जिसमें आर्थिक विकास, सुरक्षा और वैश्विक मंच पर प्रभाव शामिल है।
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन की विरासत (Legacy of Non-Alignment): हालांकि शीत युद्ध समाप्त हो गया है, भारत की गुटनिरपेक्षता की भावना आज भी उसकी विदेश नीति में झलकती है, जहां वह किसी भी गुट में बंधने से बचता है।
संभावित चुनौतियाँ और अवसर (Potential Challenges and Opportunities)
इस स्थिति से भारत के लिए कुछ चुनौतियाँ और अवसर उत्पन्न होते हैं:
चुनौतियाँ:
- पश्चिमी देशों का दबाव: अमेरिका और यूरोपीय देशों से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वे भारत को रूस से दूरी बनाने के लिए प्रोत्साहित करें, जिससे भारत पर कूटनीतिक दबाव आ सकता है।
- आपूर्ति श्रृंखला की अनिश्चितता: यूक्रेन युद्ध और प्रतिबंधों के कारण रूसी आपूर्ति की विश्वसनीयता और स्थिरता अनिश्चित हो सकती है।
- अंतर्राष्ट्रीय नियमों का पालन: भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके आयात अंतर्राष्ट्रीय परमाणु अप्रसार संधियों और अन्य वैश्विक नियमों के अनुरूप हों।
- $Russia$ $Sanctions$: $भारत$ $को$ $रूस$ $से$ $लेनदेन$ $करते$ $समय$ $अमेरिकी$ $और$ $यूरोपीय$ $प्रतिबंधों$ $से$ $बचने$ $के$ $लिए$ $सावधान$ $रहना$ $होगा$, $विशेष$ $रूप$ $से$ $भुगतान$ $तंत्र$ $के$ $मामले$ $में$।
अवसर:
- ऊर्जा सुरक्षा में विविधता: यह स्थिति भारत को अपनी ऊर्जा आपूर्ति के लिए अन्य देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने या घरेलू उत्पादन बढ़ाने के अवसर प्रदान करती है।
- कूटनीतिक कौशल का प्रदर्शन: भारत अपनी कूटनीतिक कौशल का उपयोग करके बड़े देशों के दबाव के बावजूद अपने राष्ट्रीय हितों को साधने का प्रयास कर सकता है।
- वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी स्थिति मजबूत करना: यदि भारत अपनी आयात आवश्यकताओं को कुशलतापूर्वक प्रबंधित करता है, तो यह वैश्विक ऊर्जा और उर्वरक बाजारों में अपनी स्थिति को मजबूत कर सकता है।
भविष्य की राह (Future Path)
भारत के लिए भविष्य की राह कई कारकों पर निर्भर करेगी:
- रणनीतिक संवाद: भारत को अमेरिका, रूस और अन्य प्रमुख शक्तियों के साथ निरंतर संवाद बनाए रखना होगा ताकि वह अपनी स्थिति स्पष्ट कर सके और गलतफहमी को दूर कर सके।
- वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की खोज: भारत को अपनी ऊर्जा और उर्वरक आवश्यकताओं के लिए रूस के अलावा अन्य विश्वसनीय आपूर्तिकर्ताओं की पहचान करनी चाहिए और उनके साथ दीर्घकालिक समझौते करने चाहिए।
- घरेलू उत्पादन को बढ़ावा: भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने के लिए घरेलू परमाणु ऊर्जा क्षमता और उर्वरक उत्पादन को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
- अंतर्राष्ट्रीय नियमों का पालन: भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और संधियों का पालन करे, विशेष रूप से परमाणु अप्रसार के संबंध में।
निष्कर्ष (Conclusion)
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भारत के रूसी यूरेनियम और उर्वरक आयात के बारे में टिप्पणी, यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में, वैश्विक भू-राजनीतिक और आर्थिक संबंधों की जटिलता को उजागर करती है। भारत, अपनी ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ की नीति के तहत, अपने राष्ट्रीय हितों, विशेष रूप से ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा को प्राथमिकता देता है। इस स्थिति को समझना UPSC के उम्मीदवारों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, अर्थव्यवस्था और विदेश नीति के मूल सिद्धांतों को दर्शाता है। भारत को इस नाजुक संतुलन को बनाए रखते हुए अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी और साथ ही वैश्विक शक्तियों के साथ अपने संबंधों को भी प्रबंधित करना होगा।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- भारत के पास प्राकृतिक यूरेनियम के बड़े भंडार हैं।
- भारत अपनी परमाणु ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए यूरेनियम आयात पर निर्भर करता है।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
उत्तर: (b) केवल 2
व्याख्या: भारत के पास प्राकृतिक यूरेनियम के सीमित भंडार हैं, इसलिए यह अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को बनाए रखने के लिए आयात पर निर्भर करता है।
2. निम्नलिखित में से कौन सा देश भारत के लिए पोटाश उर्वरकों का एक प्रमुख निर्यातक रहा है?
- कनाडा
- रूस
- बेलारूस
- मोरक्को
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
उत्तर: (d) 1, 2, 3 और 4
व्याख्या: ये सभी देश भारत के प्रमुख उर्वरक आपूर्तिकर्ताओं में से रहे हैं, विशेष रूप से पोटाश और फास्फेटिक उर्वरकों के लिए।
3. ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ (Strategic Autonomy) का अर्थ भारत की विदेश नीति के संदर्भ में क्या है?
- किसी भी सैन्य गठबंधन में शामिल न होना।
- अपनी विदेश नीति और सामरिक निर्णय लेते समय स्वतंत्र रूप से कार्य करना, जो किसी भी प्रमुख शक्ति ब्लॉक के प्रति प्रतिबद्ध नहीं है।
- केवल गैर-पश्चिमी देशों के साथ संबंध बनाना।
- आर्थिक विकास पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करना।
उत्तर: (b) अपनी विदेश नीति और सामरिक निर्णय लेते समय स्वतंत्र रूप से कार्य करना, जो किसी भी प्रमुख शक्ति ब्लॉक के प्रति प्रतिबद्ध नहीं है।
व्याख्या: रणनीतिक स्वायत्तता भारत की विदेश नीति का एक मुख्य सिद्धांत है, जिसका अर्थ है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार स्वतंत्र निर्णय लेता है।
4. यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद, निम्नलिखित में से किस क्षेत्र पर पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर सबसे अधिक प्रतिबंध लगाए गए हैं?
- ऊर्जा क्षेत्र
- वित्तीय क्षेत्र
- प्रौद्योगिकी क्षेत्र
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान
उत्तर: (a) ऊर्जा क्षेत्र
व्याख्या: रूस की अर्थव्यवस्था को लक्षित करने के लिए पश्चिमी देशों ने ऊर्जा क्षेत्र पर महत्वपूर्ण प्रतिबंध लगाए हैं।
5. भारत की ऊर्जा सुरक्षा के संबंध में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है।
- भारत परमाणु ऊर्जा को अपने ऊर्जा मिश्रण में विविधता लाने के लिए उपयोग करता है।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
उत्तर: (c) 1 और 2 दोनों
व्याख्या: भारत आयात पर निर्भर है और ऊर्जा में विविधता के लिए परमाणु ऊर्जा का उपयोग करता है।
6. ‘म्यूरेट ऑफ पोटाश’ (Muriate of Potash – MOP) का मुख्य उपयोग क्या है?
- ऊर्जा उत्पादन
- कृषि में उर्वरक
- औद्योगिक रसायन
- इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण
उत्तर: (b) कृषि में उर्वरक
व्याख्या: MOP एक महत्वपूर्ण पोटाश उर्वरक है जो पौधों के विकास के लिए आवश्यक है।
7. निम्नलिखित में से कौन सी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी परमाणु ऊर्जा के सुरक्षित और शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार है?
- विश्व व्यापार संगठन (WTO)
- अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA)
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)
उत्तर: (b) अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA)
व्याख्या: IAEA परमाणु ऊर्जा के सुरक्षित उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए काम करती है।
8. भारत के विदेश नीति के अनुसार, ‘बहु-संरेखण’ (Multi-Alignment) का क्या अर्थ है?
- किसी भी देश के साथ गठबंधन न करना।
- विभिन्न देशों के साथ, उनके हितों और वैश्विक समीकरणों के अनुसार, संबंध बनाए रखना।
- केवल अपने पड़ोसियों के साथ संबंध बनाना।
- एक ही वैश्विक शक्ति ब्लॉक के साथ संरेखित होना।
उत्तर: (b) विभिन्न देशों के साथ, उनके हितों और वैश्विक समीकरणों के अनुसार, संबंध बनाए रखना।
व्याख्या: बहु-संरेखण भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
9. हाल के भू-राजनीतिक परिदृश्य में, रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों का उद्देश्य क्या रहा है?
- रूस की अर्थव्यवस्था को कमजोर करना।
- रूस को अंतर्राष्ट्रीय अलगाव में डालना।
- रूस को अपनी नीतियों को बदलने के लिए मजबूर करना।
- उपरोक्त सभी।
उत्तर: (d) उपरोक्त सभी।
व्याख्या: प्रतिबंधों का मुख्य उद्देश्य रूस की आर्थिक और राजनीतिक शक्ति को कम करना है।
10. भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने के लिए निम्नलिखित में से क्या कर सकता है?
- घरेलू नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना।
- अन्य देशों के साथ दीर्घकालिक ऊर्जा आपूर्ति समझौते करना।
- घरेलू जीवाश्म ईंधन उत्पादन बढ़ाना।
- सभी विकल्प।
उत्तर: (d) सभी विकल्प।
व्याख्या: ऊर्जा सुरक्षा के लिए विभिन्न स्रोतों और रणनीतियों को अपनाना आवश्यक है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. यूक्रेन युद्ध के बाद वैश्विक ऊर्जा और उर्वरक बाजारों में उत्पन्न अस्थिरता के आलोक में, भारत की ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ की नीति का विश्लेषण करें। चर्चा करें कि कैसे भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों को संतुलित करते हुए प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ अपने संबंधों का प्रबंधन कर रहा है।
2. “भारत की विदेश नीति बहु-संरेखण और राष्ट्रीय हित सर्वोपरि के सिद्धांतों पर आधारित है।” यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में भारत के रूसी यूरेनियम और उर्वरक आयात के मामले का उपयोग करते हुए इस कथन की विवेचना करें।
3. रूस पर लगाए गए पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद, भारत द्वारा रूसी यूरेनियम और उर्वरकों के संभावित आयात के भू-राजनीतिक निहितार्थों पर चर्चा करें। भारत के लिए इसमें निहित चुनौतियाँ और अवसर क्या हैं?
4. भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए उर्वरक आयात का महत्व क्या है? यूक्रेन संघर्ष के कारण वैश्विक उर्वरक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधानों के मद्देनजर, भारत अपनी उर्वरक आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए क्या कदम उठा सकता है?