ट्रम्प का ‘अप्रत्याशित’ बयान: भारत के ‘समर्पण’ आरोपों का पर्दाफाश या अमेरिका की कूटनीति का नया अध्याय?
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के एक अप्रत्याशित बयान ने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के गलियारों में हलचल मचा दी है। इस बयान को भारत में कुछ राजनीतिक हलकों द्वारा सरकार पर लगे ‘समर्पण’ के आरोपों का खंडन करने के अवसर के रूप में देखा जा रहा है। वहीं, दूसरी ओर, अमेरिका की इस नई कूटनीतिक चाल को क्षेत्रीय और वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य के लिए संभावित रूप से भ्रमित करने वाली (muddying the waters) माना जा रहा है। यह घटनाक्रम न केवल भारत की आंतरिक राजनीति पर प्रभाव डालता है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, कूटनीति की बारीकियों और भू-राजनीतिक समीकरणों को समझने वाले UPSC उम्मीदवारों के लिए भी एक महत्वपूर्ण अध्ययन का विषय है।
यह ब्लॉग पोस्ट इस जटिल घटनाक्रम का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करेगा, इसके विभिन्न पहलुओं, निहितार्थों और UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से इसकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डालेगा।
1. पृष्ठभूमि: ‘समर्पण’ के आरोप और भारत की कूटनीतिक स्थिति
किसी भी देश की विदेश नीति को अक्सर आंतरिक राजनीतिक संवाद से प्रभावित किया जाता है। भारत के संदर्भ में, ‘समर्पण’ का आरोप एक ऐसा राजनीतिक नारा बन गया है जिसका उपयोग अक्सर सरकार की कूटनीतिक पहलों या अंतर्राष्ट्रीय समझौतों पर सवाल उठाने के लिए किया जाता है। यह आरोप विशेष रूप से तब सामने आता है जब भारत किसी बड़े वैश्विक शक्ति के साथ बातचीत करता है या किसी संवेदनशील क्षेत्रीय मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करता है।
‘समर्पण’ के आरोपों का सामान्य स्वरूप:
- राष्ट्रीय हित से समझौता: आलोचक अक्सर तर्क देते हैं कि सरकार अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर राष्ट्रीय हितों से समझौता कर रही है।
- चुनावी लाभ के लिए नीतियां: कुछ आरोपों के अनुसार, सरकार घरेलू राजनीतिक लाभ के लिए विदेश नीति के उपकरणों का दुरुपयोग कर रही है।
- सुरक्षा संबंधी चिंताएं: विशेष रूप से पड़ोसी देशों या क्षेत्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर, ‘समर्पण’ के आरोप सुरक्षा ढांचे को कमजोर करने का संकेत दे सकते हैं।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि ये आरोप अक्सर राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग किए जाते हैं और इनकी प्रामाणिकता को वस्तुनिष्ठ रूप से मापना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। हालांकि, ये घरेलू राजनीतिक विमर्श को आकार देते हैं और सरकार पर अपनी कूटनीतिक नीतियों को स्पष्ट करने का दबाव बनाते हैं।
2. डोनाल्ड ट्रम्प का ‘अप्रत्याशित’ बयान: कूटनीति में एक ‘स्टॉर्म इन ए टीकप’?
डोनाल्ड ट्रम्प अपने बेबाक और अक्सर अप्रत्याशित बयानों के लिए जाने जाते हैं। उनके हालिया बयान ने, चाहे वह किसी विशिष्ट देश को संबोधित हो या एक सामान्य कूटनीतिक अवलोकन, ने भू-राजनीतिक चर्चाओं में एक नई परत जोड़ दी है। इस बयान की प्रकृति और संदर्भ को समझना महत्वपूर्ण है:
- बयान का संभावित प्रभाव: क्या यह बयान किसी विशेष देश के प्रति अमेरिकी नीति में बदलाव का संकेत है, या यह केवल ट्रम्प की विशिष्ट कूटनीतिक शैली का प्रतिबिंब है?
- ‘समर्पण’ आरोपों से संबंध: यह कैसे संभव है कि एक पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति का बयान भारत में सरकार पर लगे आंतरिक आरोपों का खंडन करने में सहायक हो? यह भारत की कूटनीतिक स्थिति और वैश्विक शक्तियों के साथ उसके संबंधों की जटिलता को दर्शाता है।
- अमेरिकी नीति का द्वंद्व: अमेरिका की विदेश नीति, खासकर जब एक ऐसे व्यक्ति से आती है जो वर्तमान राष्ट्रपति नहीं है, तो इसकी व्याख्या कैसे की जानी चाहिए? क्या यह वर्तमान प्रशासन की नीतियों के विपरीत है, या यह अमेरिकी दीर्घकालिक हितों को दर्शाता है?
एक सादृश्य: कल्पना कीजिए कि आपके पड़ोस में दो लोग बहस कर रहे हैं। अचानक, एक प्रसिद्ध व्यक्ति (जो उन दोनों से सीधे तौर पर नहीं जुड़ा है) आता है और एक पक्ष के बारे में कुछ ऐसा कहता है जिससे दूसरे पक्ष के तर्क कमजोर पड़ जाते हैं। यह बिल्कुल वैसा ही प्रभाव हो सकता है जो ट्रम्प के बयान का भारत में ‘समर्पण’ आरोपों पर हो सकता है।
3. ‘जल को गंदा करना’ (Muddying the Waters): अमेरिका की कूटनीतिक चाल का विश्लेषण
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में “जल को गंदा करना” एक मुहावरा है जिसका अर्थ है किसी स्थिति को जानबूझकर अस्पष्ट, भ्रमित या जटिल बनाना, ताकि अपने एजेंडे को आगे बढ़ाया जा सके या विरोधियों को भ्रमित किया जा सके। ट्रम्प के बयान और अमेरिका की समग्र कूटनीतिक रणनीति के संदर्भ में, इस मुहावरे का विश्लेषण कई कोणों से किया जा सकता है:
- क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में हेरफेर: क्या अमेरिका अपने इस बयान के माध्यम से किसी क्षेत्र में शक्ति संतुलन को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है?
- विशिष्ट देशों पर दबाव: क्या यह बयान किसी विशेष देश को किसी मुद्दे पर अपनी स्थिति बदलने के लिए मजबूर करने का एक तरीका है?
- गठबंधन की गतिशीलता को बदलना: अमेरिका के बयान से उसके सहयोगियों और विरोधियों के बीच क्या प्रतिक्रियाएं उत्पन्न हो सकती हैं?
- आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप: क्या यह बयान किसी अन्य देश की आंतरिक राजनीति को प्रभावित करने का एक अप्रत्यक्ष प्रयास है?
उदाहरण: शीत युद्ध के दौरान, दोनों महाशक्तियों (अमेरिका और सोवियत संघ) ने अक्सर एक-दूसरे को कमजोर करने या अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने के लिए तीसरे देशों की राजनीति में हस्तक्षेप किया, जिससे क्षेत्रीय मुद्दे और अधिक जटिल हो जाते थे। आज की दुनिया में, जहाँ सूचना युद्ध और कूटनीतिक संदेश बहुत सूक्ष्म हो सकते हैं, ऐसे बयान और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
4. भारत सरकार के लिए अवसर और चुनौतियाँ
ट्रम्प के बयान को भारत सरकार के लिए दोधारी तलवार के रूप में देखा जा सकता है:
4.1 अवसर: ‘समर्पण’ आरोप का खंडन
- कूटनीतिक बचाव: सरकार इस बयान का उपयोग यह बताने के लिए कर सकती है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से एक प्रमुख वैश्विक हस्ती, भारत की कूटनीतिक स्थिति का समर्थन करती है।
- राजनीतिक लाभ: यह घरेलू स्तर पर सरकार के विरोधियों के उन तर्कों को कमजोर कर सकता है जो ‘समर्पण’ का आरोप लगाते हैं।
- सकारात्मक छवि निर्माण: यह भारत को एक ऐसे देश के रूप में प्रस्तुत करने में मदद कर सकता है जो जिम्मेदार और संतुलित विदेश नीति का संचालन करता है।
4.2 चुनौतियाँ: ‘जल को गंदा करना’ का प्रभाव
- अमेरिका की अनिश्चित कूटनीति: यदि यह बयान अमेरिकी प्रशासन की आधिकारिक नीति से मेल नहीं खाता है, तो यह अनिश्चितता पैदा कर सकता है। भारत को यह तय करना होगा कि किस अमेरिकी बयान पर अधिक भरोसा किया जाए।
- अन्य देशों के साथ संबंध: क्या इस बयान से अन्य देशों, विशेष रूप से जिनके साथ भारत के संवेदनशील संबंध हैं, के साथ भारत के संबंध प्रभावित हो सकते हैं?
- परिभाषा का प्रश्न: ‘समर्पण’ के आरोप का खंडन करने के लिए एक बाहरी शक्ति के बयान पर निर्भर रहना, क्या यह स्वयं में एक कूटनीतिक कमजोरी है?
- भू-राजनीतिक अस्थिरता: अमेरिका की अनिश्चित कूटनीति समग्र क्षेत्रीय और वैश्विक भू-राजनीतिक स्थिरता को प्रभावित कर सकती है, जिसका अप्रत्यक्ष प्रभाव भारत पर भी पड़ सकता है।
“कूटनीति केवल शब्दों का खेल नहीं है; यह इरादों, संदर्भों और संभावित परिणामों को समझने की कला है। ट्रम्प के बयान की व्याख्या करते समय, हमें न केवल शब्दों पर, बल्कि उसके पीछे की मंशा और उसके व्यापक भू-राजनीतिक प्रभाव पर भी विचार करना होगा।”
5. UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भू-राजनीति, विदेश नीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंध
यह घटनाक्रम UPSC सिविल सेवा परीक्षा के कई महत्वपूर्ण पहलुओं से जुड़ा हुआ है:
5.1 अंतर्राष्ट्रीय संबंध (IR) और विदेश नीति
- द्विपक्षीय संबंध: यह भारत और अमेरिका के बीच संबंधों की गतिशीलता को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
- बहुध्रुवीय विश्व: यह दुनिया में बढ़ती बहुध्रुवीयता और विभिन्न शक्तियों की भूमिका पर प्रकाश डालता है।
- कूटनीतिक सिद्धांत: यह राष्ट्रों के अपने राष्ट्रीय हितों को साधने के लिए कूटनीतिक साधनों का उपयोग करने के तरीकों को दर्शाता है।
- अप्रवासी नेता और विदेश नीति: यह समझने का एक मामला है कि कैसे एक प्रमुख राजनीतिक हस्ती, भले ही वह पद पर न हो, वैश्विक कूटनीति को प्रभावित कर सकती है।
5.2 शासन (Governance) और आंतरिक राजनीति
- राजनीतिकरण: विदेश नीति का आंतरिक राजनीति में किस हद तक राजनीतिकरण किया जाता है?
- जनता का दृष्टिकोण: जनता की राय और मीडिया सरकार की कूटनीतिक पहलों को कैसे प्रभावित करते हैं?
- रक्षात्मक विदेश नीति: ‘समर्पण’ जैसे आरोपों का मुकाबला करने के लिए सरकार को कितनी रक्षात्मक विदेश नीति अपनानी पड़ती है?
5.3 भू-राजनीतिक विश्लेषण
- क्षेत्रीय सुरक्षा: यह बयान किसी विशेष क्षेत्र (जैसे इंडो-पैसिफिक) की सुरक्षा और स्थिरता को कैसे प्रभावित करता है?
- शक्ति का हस्तांतरण: क्या यह किसी शक्ति के हस्तांतरण या वैश्विक एजेंडे में बदलाव का संकेत है?
- कूटनीतिक गठबंधन: यह विभिन्न देशों के बीच मौजूदा कूटनीतिक गठबंधनों पर क्या प्रभाव डालता है?
6. भविष्य की राह: भारत की कूटनीतिक रणनीति
इस तरह की जटिलताओं के बीच, भारत को अपनी कूटनीतिक रणनीति को सतर्क और दूरदर्शी बनाए रखना होगा:
- स्पष्टता और संवाद: भारत को अपनी विदेश नीतियों के बारे में लगातार स्पष्टता बनाए रखनी चाहिए और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करनी चाहिए।
- बहु-आयामी दृष्टिकोण: विभिन्न देशों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखना महत्वपूर्ण है, ताकि किसी एक देश की नीतियों में बदलाव का भारत पर अत्यधिक प्रभाव न पड़े।
- आंतरिक विमर्श का प्रबंधन: सरकार को ‘समर्पण’ जैसे आरोपों का खंडन करने के लिए प्रभावी संचार रणनीतियों का उपयोग करना चाहिए, जो तथ्यों पर आधारित हों।
- रणनीतिक स्वायत्तता: भारत को अपनी निर्णय लेने की प्रक्रिया में रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखनी चाहिए, और बाहरी दबावों से प्रभावित हुए बिना अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
- विश्लेषणात्मक क्षमता: भू-राजनीतिक घटनाओं की सूक्ष्मता को समझने और उनके संभावित प्रभाव का अनुमान लगाने के लिए भारत की विश्लेषणात्मक क्षमता को और मजबूत करना होगा।
निष्कर्ष
डोनाल्ड ट्रम्प का अप्रत्याशित बयान, चाहे वह भारत के घरेलू ‘समर्पण’ आरोपों को कमजोर करे या अमेरिकी कूटनीति को ‘गंदा’ करे, यह अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की गतिशील और अक्सर अप्रत्याशित प्रकृति का एक शक्तिशाली उदाहरण है। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह घटनाक्रम न केवल अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति की बारीकियों को समझने का एक अवसर प्रदान करता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि कैसे भू-राजनीतिक घटनाएँ आंतरिक राजनीति और राष्ट्रीय विमर्श को प्रभावित कर सकती हैं। भारत को ऐसी स्थितियों में अपनी कूटनीतिक सूझबूझ, रणनीतिक स्वायत्तता और प्रभावी संचार का उपयोग करते हुए आगे बढ़ना होगा।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
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प्रश्न: अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में “Muddying the waters” (जल को गंदा करना) मुहावरे का सबसे उपयुक्त अर्थ क्या है?
(a) पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ावा देना।
(b) किसी स्थिति को जानबूझकर अस्पष्ट, भ्रमित या जटिल बनाना।
(c) व्यापारिक संबंधों में अनुचित प्रतिस्पर्धा करना।
(d) राजनीतिक विरोधियों के बीच पानी की आपूर्ति को नियंत्रित करना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: “Muddying the waters” एक कूटनीतिक या रणनीतिक मुहावरा है जिसका अर्थ है किसी स्थिति को जानबूझकर जटिल या अस्पष्ट बनाना, जिससे विरोधियों को भ्रमित किया जा सके या अपने एजेंडे को आगे बढ़ाया जा सके।
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प्रश्न: भारत के संदर्भ में, ‘समर्पण’ के आरोप अक्सर निम्नलिखित में से किस पर लागू होते हैं?
(a) केवल आर्थिक नीतियों पर।
(b) केवल राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर।
(c) राष्ट्रीय हितों से समझौता करने वाली कूटनीतिक पहलों पर।
(d) केवल सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों पर।
उत्तर: (c)
व्याख्या: ‘समर्पण’ के आरोप आमतौर पर तब लगते हैं जब सरकार की कूटनीतिक पहलों या अंतर्राष्ट्रीय समझौतों को राष्ट्रीय हितों से समझौता करने वाला माना जाता है, भले ही वे आर्थिक, सुरक्षा या अन्य क्षेत्रों से संबंधित हों।
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प्रश्न: एक पूर्व राष्ट्रपति के बयान का, जो वर्तमान में पद पर नहीं है, कूटनीति पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
(a) इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि वे पद पर नहीं हैं।
(b) यह सरकार की नीतियों के प्रति आंतरिक समर्थन का संकेत दे सकता है।
(c) यह एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रस्तुत कर सकता है या नीतियों को अप्रत्याशित रूप से प्रभावित कर सकता है।
(d) यह केवल घरेलू राजनीतिक विवादों को जन्म देता है।
उत्तर: (c)
व्याख्या: पूर्व नेता, अपने प्रभाव और विशेषज्ञता के कारण, अक्सर कूटनीतिक बयान देते हैं जो वर्तमान नीतियों को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकते हैं या एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रस्तुत कर सकते हैं, भले ही वे पद पर न हों।
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प्रश्न: भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में, किसी देश की ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ का क्या अर्थ है?
(a) किसी अन्य देश पर पूरी तरह से निर्भर होना।
(b) अपनी विदेश नीति और निर्णय लेने में स्वतंत्र होना।
(c) केवल सैन्य गठबंधन का हिस्सा होना।
(d) अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था पर पूर्ण नियंत्रण रखना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: रणनीतिक स्वायत्तता का अर्थ है कि एक देश बाहरी दबावों या प्रभाव से प्रभावित हुए बिना, अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार स्वतंत्र रूप से अपनी विदेश नीति और निर्णय ले सकता है।
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प्रश्न: हालिया घटनाक्रम के संदर्भ में, ‘जल को गंदा करना’ का संबंध अमेरिका की कूटनीति से कैसे जोड़ा जा सकता है?
(a) अमेरिका नई कूटनीतिक चालों से क्षेत्रीय अनिश्चितता पैदा कर सकता है।
(b) अमेरिका अपने हित साधने के लिए अस्पष्ट बयानबाजी का प्रयोग कर सकता है।
(c) अमेरिका का उद्देश्य अन्य देशों के एजेंडे को जटिल बनाना हो सकता है।
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर: (d)
व्याख्या: उपरोक्त सभी विकल्प ‘जल को गंदा करना’ के कूटनीतिक अर्थ को दर्शाते हैं, जहाँ एक देश अनिश्चितता पैदा करके, अस्पष्ट बयानों का उपयोग करके या अन्य देशों के एजेंडे को जटिल बनाकर अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास कर सकता है।
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प्रश्न: भारत की विदेश नीति में ‘संतुलित संबंध’ बनाए रखने का क्या महत्व है?
(a) केवल एक देश पर निर्भरता बढ़ाना।
(b) किसी एक देश की नीतियों में बदलाव के प्रभाव को कम करना।
(c) किसी भी अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे से पूरी तरह बचना।
(d) केवल शक्तिशाली देशों के साथ गठबंधन बनाना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: विभिन्न देशों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखने से भारत अपनी कूटनीतिक स्थिति को मजबूत करता है और किसी एक देश की नीतियों में अचानक परिवर्तन के कारण उत्पन्न होने वाले नकारात्मक प्रभावों को कम कर सकता है।
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प्रश्न: “अप्रत्याशित बयान” (outburst) की प्रकृति के बारे में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?
(a) यह हमेशा आधिकारिक नीति का प्रतिनिधित्व करता है।
(b) यह अक्सर अनौपचारिक विचार या भावनात्मक प्रतिक्रिया हो सकती है।
(c) यह केवल व्यक्तिगत राय होती है, जिसका कोई कूटनीतिक महत्व नहीं होता।
(d) यह हमेशा नियोजित और सोची-समझी कूटनीति का हिस्सा होता है।
उत्तर: (b)
व्याख्या: ‘अप्रत्याशित बयान’ अक्सर किसी पूर्व योजना के बिना, अचानक या भावनात्मक प्रतिक्रिया के रूप में दिए जाते हैं और ये हमेशा आधिकारिक नीति का प्रतिनिधित्व नहीं करते, हालांकि उनका कूटनीतिक प्रभाव हो सकता है।
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प्रश्न: भारत में ‘समर्पण’ के आरोपों को किस प्रकार देखा जाना चाहिए?
(a) केवल एक मजबूत राष्ट्रीय भावना का संकेत।
(b) सरकार की नीतियों के मूल्यांकन का एक राजनीतिक उपकरण।
(c) हमेशा तथ्यात्मक रूप से सही निष्कर्ष।
(d) कूटनीतिक विफलताओं का एकमात्र प्रमाण।
उत्तर: (b)
व्याख्या: ‘समर्पण’ के आरोप अक्सर राजनीतिक संदर्भ में सरकार की कूटनीतिक पहलों या समझौतों का मूल्यांकन करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरण होते हैं, जिनकी सत्यता राजनीतिक विमर्श पर निर्भर करती है।
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प्रश्न: यदि एक बाहरी शक्ति का बयान भारत की किसी आंतरिक राजनीतिक बहस में सहायक हो जाए, तो यह क्या दर्शाता है?
(a) भारत की विदेश नीति की पूर्ण स्वतंत्रता।
(b) अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति और आंतरिक राजनीति के बीच जटिल अंतर्संबंध।
(c) बाहरी शक्तियों पर भारत की पूर्ण निर्भरता।
(d) कूटनीतिक मामलों में भारत की पूर्ण तटस्थता।
उत्तर: (b)
व्याख्या: यह स्थिति दर्शाती है कि कैसे अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक घटनाएँ और बयान किसी देश की आंतरिक राजनीतिक बहसों और विमर्शों को प्रभावित कर सकते हैं, जो दोनों के बीच एक जटिल अंतर्संबंध को उजागर करता है।
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प्रश्न: हालिया घटनाक्रम के संदर्भ में, अमेरिका की कूटनीति के लिए ‘जल को गंदा करना’ किस प्रकार की रणनीति हो सकती है?
(a) स्पष्टता और पारदर्शिता को बढ़ाना।
(b) स्थिति को जटिल बनाकर अपने लाभ के लिए उपयोग करना।
(c) अन्य देशों के साथ सहयोग को मजबूत करना।
(d) अंतर्राष्ट्रीय नियमों का कड़ाई से पालन करना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: ‘जल को गंदा करना’ एक ऐसी कूटनीतिक रणनीति है जहाँ स्थिति को जानबूझकर जटिल बनाकर अपने रणनीतिक लाभ के लिए उपयोग किया जाता है, न कि स्पष्टता या सहयोग बढ़ाने के लिए।
मुख्य परीक्षा (Mains)
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प्रश्न: डोनाल्ड ट्रम्प के हालिया बयान को भारत में ‘समर्पण’ आरोपों के संदर्भ में कैसे देखा जा सकता है? विश्लेषण करें कि इस तरह के बाहरी बयानों का भारत की कूटनीतिक स्थिति और आंतरिक राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। (250 शब्द, 15 अंक)
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प्रश्न: “अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में ‘जल को गंदा करना’ (Muddying the waters) एक ऐसी कूटनीतिक रणनीति है जिसका उद्देश्य अस्थिरता या अनिश्चितता पैदा करके अपने हितों को साधना है।” इस कथन के आलोक में, हालिया अमेरिकी कूटनीतिक चालों और पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प के बयानों का विश्लेषण करें, और बताएं कि यह क्षेत्रीय भू-राजनीति को कैसे प्रभावित कर सकता है। (250 शब्द, 15 अंक)
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प्रश्न: भारत को अपनी विदेश नीति के संचालन में ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ बनाए रखने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान जैसी बाहरी घटनाओं को अपनी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और कूटनीतिक संतुलन को प्रभावित किए बिना कैसे प्रबंधित किया जाना चाहिए? (150 शब्द, 10 अंक)
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प्रश्न: विदेश नीति का आंतरिक राजनीति में राजनीतिकरण अक्सर देखा जाता है। ‘समर्पण’ के आरोप जैसे नारे सरकार की कूटनीतिक पहलों के लिए किस प्रकार चुनौतियां उत्पन्न करते हैं, और सरकार को इनका मुकाबला करने के लिए क्या रणनीतियां अपनानी चाहिए? (150 शब्द, 10 अंक)