ज्योतिष महाकुंभ: प्राचीन ज्ञान का संगम – UPSC उम्मीदवारों के लिए सम्पूर्ण विश्लेषण
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में अमर उजाला द्वारा आयोजित “ज्योतिष महाकुंभ” ने एक बार फिर ज्योतिष विद्या और इसके बहुआयामी अनुप्रयोगों पर प्रकाश डाला है। प्रतिष्ठित ज्योतिषियों और विद्वानों की उपस्थिति ने इस महाकुंभ को ज्ञान का एक महत्वपूर्ण संगम बनाया, जहाँ प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपराओं के विभिन्न पहलुओं पर गहन संवाद हुआ। यह आयोजन न केवल ज्योतिष के पारखी लोगों के लिए, बल्कि उन सभी के लिए प्रासंगिक है जो भारतीय संस्कृति, दर्शन और ज्ञान प्रणालियों की गहरी समझ विकसित करना चाहते हैं, विशेषकर UPSC जैसी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों के लिए।
यह ब्लॉग पोस्ट “ज्योतिष महाकुंभ” में हुए संवादों और ज्योतिष विद्या के महत्व को UPSC के दृष्टिकोण से विश्लेषित करेगा। हम समझेंगे कि कैसे ज्योतिष, जिसे अक्सर एक गूढ़ विषय माना जाता है, भारतीय संस्कृति, समाज और यहाँ तक कि शासन प्रणाली के विकास में भी एक भूमिका निभाता रहा है।
ज्योतिष महाकुंभ: एक ज्ञान का महासागर
“ज्योतिष महाकुंभ” जैसा आयोजन केवल वर्तमान की घटना नहीं है, बल्कि यह भारत की सदियों पुरानी ज्ञान परंपराओं को पुनर्जीवित करने और आधुनिक संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता को स्थापित करने का एक प्रयास है। इस तरह के आयोजनों में, विभिन्न ज्योतिषीय विधाओं के विशेषज्ञ एक मंच पर आकर अपने ज्ञान, अनुभव और शोध को साझा करते हैं। इस महाकुंभ में:
- प्रतिष्ठित आचार्यों की उपस्थिति: शीर्ष ज्योतिषियों और पंडितों ने अपने गहन अध्ययन और अनुभव के आधार पर महत्वपूर्ण जानकारियां साझा कीं।
- विविध विषयों पर संवाद: ज्योतिष के सिद्धांतों, अनुप्रयोगों, भविष्यवाणियों, चिकित्सा ज्योतिष, वास्तु, अंक ज्योतिष, वैदिक ज्योतिष, और नवग्रहों के प्रभाव जैसे विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा हुई।
- समकालीन प्रासंगिकता: व्यक्तिगत जीवन से लेकर सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियों के समाधान में ज्योतिष की भूमिका पर भी प्रकाश डाला गया।
UPSC की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों के लिए, ऐसे आयोजनों को समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि ये भारतीय समाज, संस्कृति और दर्शन के उन पहलुओं को उजागर करते हैं जो अक्सर पारंपरिक अध्ययन सामग्री में गहराई से शामिल नहीं होते।
UPSC के लिए ज्योतिष का महत्व: क्या यह प्रासंगिक है?
शुरुआती तौर पर, यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या ज्योतिष, जो अक्सर अंधविश्वास से जुड़ा हुआ माना जाता है, UPSC जैसी प्रतियोगी परीक्षा के लिए प्रासंगिक हो सकता है? इसका उत्तर ‘हाँ’ और ‘नहीं’ दोनों है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसे किस दृष्टिकोण से देखते हैं।
हाँ, प्रासंगिक है, अगर हम इसे इन दृष्टिकोणों से देखें:
- भारतीय संस्कृति और दर्शन का अभिन्न अंग: ज्योतिष, कर्मकांड, धर्म, और जीवन शैली के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। भारतीय संस्कृति को समझने के लिए, इसके दार्शनिक और आध्यात्मिक पहलुओं को जानना आवश्यक है, और ज्योतिष इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है।
- ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: प्राचीन काल में, ज्योतिष केवल भविष्य बताने का माध्यम नहीं था, बल्कि खगोल विज्ञान, गणित, समय मापन (पंचांग), और यहाँ तक कि नेविगेशन का भी एक रूप था। खगोल विज्ञान और इसकी ऐतिहासिक विकास को समझना UPSC के पाठ्यक्रम का हिस्सा है।
- सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन पर प्रभाव: प्राचीन समय से लेकर आज तक, ज्योतिष ने लोगों के जीवन, निर्णय लेने की प्रक्रिया, सामाजिक रीति-रिवाजों और विवाह, उत्सवों जैसे महत्वपूर्ण आयोजनों पर प्रभाव डाला है। सामाजिक संरचना और व्यवहार को समझने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारक है।
- विज्ञान और विज्ञान के प्रति भारतीय दृष्टिकोण: UPSC के विज्ञान और प्रौद्योगिकी (S&T) खंड में, हमें ‘विज्ञान की प्रकृति’, ‘विज्ञान और समाज’, और ‘विज्ञान के प्रति भारतीय दृष्टिकोण’ जैसे विषयों पर चर्चा करनी होती है। भारतीय ज्ञान प्रणालियों के संदर्भ में, प्राचीन वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समझना महत्वपूर्ण है, जिसमें ज्योतिष भी शामिल है।
- ‘अंधविश्वास’ बनाम ‘ज्ञान प्रणाली’: यह समझना महत्वपूर्ण है कि किसी भी ज्ञान प्रणाली को ‘अंधविश्वास’ की श्रेणी में डालना अक्सर सतही होता है। हमें इसके ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक जड़ों को समझना चाहिए, भले ही हम इसके वर्तमान अनुप्रयोगों को स्वीकार न करें।
नहीं, प्रासंगिक नहीं है, अगर हम इसे केवल अंधविश्वास या भविष्यवाणी के रूप में देखें:
- वैज्ञानिक आधार का अभाव: आधुनिक विज्ञान ज्योतिष के दावों को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त प्रमाण प्रस्तुत नहीं करता है। इसलिए, इसे सीधे तौर पर विज्ञान के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
- परीक्षा का मुख्य फोकस: UPSC का मुख्य उद्देश्य आधुनिक विज्ञान, प्रौद्योगिकी, अर्थशास्त्र, शासन, पर्यावरण, इतिहास और भूगोल जैसे विषयों पर उम्मीदवारों के ज्ञान का मूल्यांकन करना है। ज्योतिष सीधे तौर पर इन विषयों के मुख्य भाग में नहीं आता।
निष्कर्ष: UPSC के लिए, ज्योतिष को एक ‘ज्ञान प्रणाली’, ‘सांस्कृतिक प्रथा’, और ‘ऐतिहासिक विज्ञान’ के रूप में समझना अधिक महत्वपूर्ण है, न कि एक भविष्य कहनेवाला उपकरण के रूप में।
ज्योतिष का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य
ज्योतिष का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि मानव सभ्यता का इतिहास। प्राचीन काल से ही मनुष्य ने आकाशीय पिंडों की गति और मानव जीवन पर उनके प्रभाव का अध्ययन किया है।
भारत में ज्योतिष का विकास:
“भारत में ज्योतिष को केवल भविष्य बताने वाले शास्त्र के रूप में नहीं देखा गया, बल्कि यह जीवन जीने का एक मार्गदर्शक, ब्रह्मांड की समझ का एक उपकरण, और आध्यात्मिक उन्नति का एक माध्यम भी रहा है।”
- सिंधु घाटी सभ्यता: कुछ विद्वानों का मानना है कि सिंधु घाटी सभ्यता में भी खगोलीय ज्ञान और ज्योतिषीय प्रथाओं के प्रारंभिक रूप मौजूद थे।
- वैदिक काल: ऋग्वेद और अन्य वैदिक साहित्य में नक्षत्रों, ग्रहों और उनके प्रभावों का उल्लेख मिलता है। ‘वेदांग ज्योतिष’ को ज्योतिष का सबसे प्राचीन ग्रंथ माना जाता है, जो खगोल विज्ञान और पंचांग (समय मापन) पर केंद्रित है।
- उत्तर-वैदिक काल और मध्यकाल: इस दौरान ज्योतिष का विकास हुआ और इसे पांच मुख्य भागों में विभाजित किया गया (पंचसिद्धांत): तंत्र (ग्रहों की गति), संकल्पा (पंचांग का निर्धारण), मुहूर्त (शुभ समय का चयन), प्रश्ना (प्रश्नों के उत्तर), और होरा (जन्म कुंडली)।
- प्राचीन खगोलविद और गणितज्ञ: आर्यभट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त जैसे महान विद्वानों ने खगोल विज्ञान और ज्योतिष दोनों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वराहमिहिर की ‘बृहत् संहिता’ ज्योतिष के विभिन्न पहलुओं पर एक व्यापक ग्रंथ है।
ज्योतिष का सांस्कृतिक प्रभाव:
भारतीय समाज और संस्कृति पर ज्योतिष का गहरा प्रभाव रहा है:
- पंचांग (कैलेंडर): भारतीय पंचांग, जो ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित है, आज भी हिंदू धर्म के प्रमुख त्यौहारों, शुभ-अशुभ मुहूर्त, और दैनिक जीवन के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- विवाह और संस्कार: विवाह में वर-वधू की कुंडलियों का मिलान, मुहूर्तों का निर्धारण, और अन्य संस्कारों में ज्योतिषीय सलाह लेना एक आम प्रथा है।
- शासन और निर्णय: प्राचीन काल में, राजा और शासक महत्वपूर्ण निर्णयों, युद्धों की शुरुआत, और राज्य के कल्याण के लिए ज्योतिषियों से सलाह लेते थे।
- वास्तुकला और नगर नियोजन: वास्तु शास्त्र, जो ज्योतिष का एक उप-भाग माना जाता है, भवनों के निर्माण और नगर नियोजन में दिशाओं, ऊर्जा प्रवाह और खगोलीय संरेखण के सिद्धांतों का उपयोग करता है।
ज्योतिष के विभिन्न आयाम (UPSC परिप्रेक्ष्य से)
“ज्योतिष महाकुंभ” जैसे आयोजनों में जिन विषयों पर चर्चा होती है, उनका UPSC के लिए विभिन्न संदर्भों में अध्ययन किया जा सकता है:
1. खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी (Science & Technology)
- प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान: भारत का खगोल विज्ञान का इतिहास, आर्यभट्ट के योगदान (जैसे पृथ्वी का घूमना, पाई का मान), वराहमिहिर के कार्य।
- खगोलीय पिंडों का प्रभाव: सूर्य, चंद्रमा और अन्य ग्रहों की गति का पृथ्वी पर (ज्वार-भाटा, ऋतुएँ) वैज्ञानिक प्रभाव, न कि केवल ज्योतिषीय।
- ज्योतिषीय गणनाएं बनाम वैज्ञानिक मापन: पंचांग बनाने की प्रक्रिया, खगोलीय घटनाओं (ग्रहण, संक्रांति) का वैज्ञानिक विश्लेषण।
2. भारतीय संस्कृति और दर्शन (Indian Culture & Polity)
- भारतीय ज्ञान प्रणालियाँ: योग, आयुर्वेद, और ज्योतिष का समग्रता में अध्ययन।
- कर्म और पुनर्जन्म का सिद्धांत: ज्योतिषीय मान्यताएं अक्सर कर्म के सिद्धांत से जुड़ी होती हैं, जो भारतीय दर्शन का मूल है।
- धार्मिक अनुष्ठान और परंपराएं: त्योहारों, विवाहों और अन्य संस्कारों में ज्योतिष की भूमिका।
3. सामाजिक मुद्दे (Social Issues)
- प्रथाएं और अंधविश्वास: ज्योतिष को लेकर समाज में व्याप्त प्रथाएं, उनका सामाजिक प्रभाव, और अंधविश्वासों से उन्हें कैसे अलग किया जाए।
- सामाजिक समानता और ज्योतिष: क्या ज्योतिष ने सामाजिक भेदभाव को बढ़ावा दिया है या इसे समाप्त करने में मदद की है? (जैसे जाति व्यवस्था से संबंध)।
- व्यक्तिगत जीवन पर प्रभाव: करियर, विवाह, और स्वास्थ्य संबंधी निर्णय लेने में ज्योतिष का प्रभाव।
4. पर्यावरण (Environment)
- कृषि और मौसम: प्राचीन काल में कृषकों द्वारा मौसम की भविष्यवाणी के लिए ज्योतिषीय संकेतों का उपयोग।
- पर्यावरणीय संतुलन: वास्तु और ज्योतिष के अनुसार प्राकृतिक तत्वों (पंच महाभूत) का महत्व।
5. शासन और प्रशासन (Governance & Polity)
- नीति निर्माण में प्रभाव: क्या अतीत में शासन निर्णयों पर ज्योतिष का प्रभाव रहा है? (ऐतिहासिक उदाहरण)।
- सार्वजनिक विश्वास और ज्योतिष: समाज में ज्योतिष की स्वीकार्यता और सरकार के लिए इसे कैसे समझा जाए।
ज्योतिष: लाभ और आलोचनाएँ
किसी भी विषय का अध्ययन करते समय, उसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं को समझना महत्वपूर्ण है।
ज्योतिष के संभावित लाभ (संस्कृति और मनोविज्ञान के दृष्टिकोण से):
- मनोवैज्ञानिक संबल: यह अनिश्चितता के समय में लोगों को आशा और संबल प्रदान कर सकता है।
- आत्म-चिंतन को बढ़ावा: कुछ लोगों के लिए, यह अपने जीवन, कमजोरियों और शक्तियों पर विचार करने का एक माध्यम बन सकता है।
- सांस्कृतिक जुड़ाव: यह लोगों को अपनी जड़ों और परंपराओं से जोड़े रखने में मदद करता है।
- सामुदायिक भावना: साझा विश्वास और प्रथाएं सामुदायिक भावना को बढ़ावा दे सकती हैं।
आलोचनाएँ और चिंताएं:
- वैज्ञानिक आधार का अभाव: सबसे बड़ी आलोचना यह है कि इसके दावों का वैज्ञानिक सत्यापन नहीं है।
- अंधविश्वास को बढ़ावा: यह लोगों को कर्म करने के बजाय भाग्य पर निर्भर रहने के लिए प्रेरित कर सकता है।
- शोषण की संभावना: कमजोर और हताश लोगों का शोषण करने के लिए इसका दुरुपयोग किया जा सकता है।
- भेदभाव: कभी-कभी जाति, लिंग या अन्य आधारों पर भेदभाव को सही ठहराने के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
- निर्णय लेने में बाधा: महत्वपूर्ण जीवन निर्णयों को ज्योतिष पर आधारित करना अव्यवहारिक हो सकता है।
UPSC उम्मीदवारों के लिए आगे की राह
UPSC की तैयारी के दौरान, “ज्योतिष महाकुंभ” जैसी घटनाओं से प्राप्त ज्ञान को एक संकीर्ण दृष्टिकोण से देखने के बजाय, उसे व्यापक संदर्भ में समझना चाहिए:
- तुलनात्मक अध्ययन: भारतीय ज्ञान प्रणालियों (जैसे योग, आयुर्वेद, दर्शन) के साथ ज्योतिष की तुलना करें।
- ऐतिहासिक संदर्भ: जानें कि प्राचीन काल में इसका क्या महत्व था और यह कैसे विकसित हुआ।
- वैज्ञानिक आलोचना: वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ज्योतिष की मान्यताओं का विश्लेषण करें और उनके समर्थन या विरोध में तर्कों को समझें।
- सांस्कृतिक महत्व: भारतीय समाज और संस्कृति पर इसके प्रभाव को समझें, भले ही आप व्यक्तिगत रूप से इसे स्वीकार न करें।
- ‘ज्ञान’ बनाम ‘अंधविश्वास’: किसी भी प्रथा को ‘अंधविश्वास’ कहने से पहले उसके मूल, इतिहास और सांस्कृतिक प्रासंगिकता को समझने का प्रयास करें।
- वर्तमान मुद्दे: ‘विज्ञान और समाज’, ‘विज्ञान की प्रगति’, और ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण’ जैसे GS-III (Science & Tech) और GS-I (Society) के विषयों में इन तर्कों का उपयोग करें।
UPSC परीक्षा में सफलता केवल तथ्यात्मक ज्ञान पर निर्भर नहीं करती, बल्कि विभिन्न विषयों और विचारों को आलोचनात्मक और विश्लेषणात्मक ढंग से समझने की क्षमता पर भी निर्भर करती है। “ज्योतिष महाकुंभ” जैसे आयोजन इस समझ को बढ़ाने का एक अवसर प्रदान करते हैं, जिससे हम अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बेहतर ढंग से आत्मसात कर सकें और उसे वर्तमान संदर्भों से जोड़ सकें।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न 1: निम्नलिखित में से कौन सा वेदांग ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण योगदान है?
(a) शल्य चिकित्सा का विकास
(b) पंचांग (कैलेंडर) का निर्माण
(c) काव्य की लय
(d) मूर्तिकला की तकनीकें
उत्तर: (b) पंचांग (कैलेंडर) का निर्माण
व्याख्या: वेदांग ज्योतिष, ज्योतिष के छह वेदांगों में से एक है, जिसका मुख्य उद्देश्य खगोलीय गणनाओं द्वारा पंचांग का निर्माण करना था, जो समय मापन और पर्वों के निर्धारण के लिए आवश्यक था। - प्रश्न 2: प्राचीन भारतीय खगोलविद् वराहमिहिर की प्रसिद्ध रचना कौन सी है?
(a) आर्यभट्टीय
(b) ब्रह्मस्फुट सिद्धांत
(c) बृहत् संहिता
(d) सूर्य सिद्धांत
उत्तर: (c) बृहत् संहिता
व्याख्या: वराहमिहिर एक महान खगोलशास्त्री और ज्योतिषी थे, जिनकी ‘बृहत् संहिता’ में ज्योतिष, वास्तु, प्राकृतिक घटनाओं और अन्य विभिन्न विषयों पर विस्तृत जानकारी मिलती है। - प्रश्न 3: निम्नलिखित में से कौन सा भारतीय दर्शन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जिसका संबंध अक्सर ज्योतिषीय कर्मफल की अवधारणा से जोड़ा जाता है?
(a) अद्वैतवाद
(b) कर्म का सिद्धांत
(c) मीमांसा
(d) बौद्ध शून्यवाद
उत्तर: (b) कर्म का सिद्धांत
व्याख्या: भारतीय दर्शन में कर्म का सिद्धांत यह मानता है कि व्यक्ति अपने कर्मों के फल का भोग करता है, और ज्योतिष में अक्सर जन्म कुंडली को व्यक्ति के पूर्व जन्मों के कर्मों का परिणाम माना जाता है। - प्रश्न 4: ‘तंत्र’ (Tantra) शब्द का प्रयोग ज्योतिष के किस संदर्भ में किया जाता है?
(a) ग्रहों की पूजा
(b) मुहूर्त का निर्धारण
(c) खगोलीय पिंडों की गति का अध्ययन
(d) यज्ञ की विधि
उत्तर: (c) खगोलीय पिंडों की गति का अध्ययन
व्याख्या: ज्योतिष के पंचसिद्धांतों में ‘तंत्र’ का अर्थ ग्रहों की गति, उनकी स्थिति और खगोलीय पिंडों के व्यवहार का अध्ययन करना है। - प्रश्न 5: वास्तु शास्त्र, जो भारतीय वास्तु कला का एक हिस्सा है, किस प्राचीन ज्ञान प्रणाली से संबंधित है?
(a) आयुर्वेद
(b) योग
(c) ज्योतिष
(d) अर्थशास्त्र
उत्तर: (c) ज्योतिष
व्याख्या: वास्तु शास्त्र को ज्योतिष का एक उप-भाग माना जाता है, जो भवनों के निर्माण और दिशाओं के आधार पर ऊर्जा के प्रवाह को नियंत्रित करने के सिद्धांतों से संबंधित है। - प्रश्न 6: “ज्योतिष महाकुंभ” जैसे आयोजनों का मुख्य उद्देश्य क्या हो सकता है?
(a) केवल भविष्यवाणियां करना
(b) प्राचीन ज्ञान परंपराओं को पुनर्जीवित करना और वर्तमान संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता स्थापित करना
(c) विशुद्ध रूप से खगोलीय अनुसंधान करना
(d) अंधविश्वासों को बढ़ावा देना
उत्तर: (b) प्राचीन ज्ञान परंपराओं को पुनर्जीवित करना और वर्तमान संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता स्थापित करना
व्याख्या: ऐसे आयोजन अक्सर प्राचीन भारतीय ज्ञान को आधुनिक समाज के सामने लाने और उसके महत्व को समझाने का मंच प्रदान करते हैं। - प्रश्न 7: निम्नलिखित में से कौन सा कथन ‘विज्ञान और समाज’ (Science & Society) के संदर्भ में ज्योतिष के बारे में अधिक उपयुक्त है?
(a) यह एक सिद्ध वैज्ञानिक सिद्धांत है।
(b) इसका मुख्य रूप से वैज्ञानिक आधार है।
(c) यह एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक ज्ञान प्रणाली है, जिसके वैज्ञानिक आधार पर मतभेद हैं।
(d) यह पूरी तरह से एक अंधविश्वास है और इसका कोई सामाजिक या सांस्कृतिक महत्व नहीं है।
उत्तर: (c) यह एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक ज्ञान प्रणाली है, जिसके वैज्ञानिक आधार पर मतभेद हैं।
व्याख्या: UPSC परिप्रेक्ष्य से, ज्योतिष को एक जटिल विषय के रूप में देखा जाना चाहिए जिसमें सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक आयाम हैं, न कि केवल एक वैज्ञानिक या अंधविश्वासी लेबल के साथ। - प्रश्न 8: प्राचीन भारत में, ज्योतिष का उपयोग किस क्षेत्र में किया जाता था?
(a) केवल धार्मिक अनुष्ठान
(b) खगोल विज्ञान और समय मापन
(c) कृषि और मौसम की भविष्यवाणी
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर: (d) उपरोक्त सभी
व्याख्या: प्राचीन काल में ज्योतिष का प्रयोग समय मापन (पंचांग), खगोलीय घटनाओं को समझने, शुभ-अशुभ मुहूर्त जानने, और कृषि संबंधी कार्यों के लिए भी किया जाता था। - प्रश्न 9: ज्योतिष की आलोचना का एक मुख्य कारण क्या है?
(a) इसका अत्यधिक जटिल होना
(b) इसके दावों का वैज्ञानिक सत्यापन न होना
(c) इसका प्राचीन होना
(d) इसका सांस्कृतिक महत्व
उत्तर: (b) इसके दावों का वैज्ञानिक सत्यापन न होना
व्याख्या: आधुनिक विज्ञान के मापदंडों पर ज्योतिष के कई दावों को सत्यापित नहीं किया जा सका है, जो इसकी प्रमुख आलोचना का आधार है। - प्रश्न 10: UPSC परीक्षा में ‘भारतीय संस्कृति’ (GS-I) के तहत किस प्रकार से ज्योतिष का अध्ययन किया जाना चाहिए?
(a) ज्योतिषीय भविष्यवाणियां सीखना
(b) ज्योतिषीय प्रतीकों का अर्थ समझना
(c) भारतीय समाज, धर्म और जीवन शैली पर ज्योतिष के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रभाव का विश्लेषण करना
(d) ज्योतिष को वैज्ञानिक सिद्ध करने के तर्क खोजना
उत्तर: (c) भारतीय समाज, धर्म और जीवन शैली पर ज्योतिष के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रभाव का विश्लेषण करना
व्याख्या: GS-I के लिए, ज्योतिष को एक ऐसी प्रणाली के रूप में देखना चाहिए जिसने भारतीय समाज के विकास और उसके रीति-रिवाजों को प्रभावित किया है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न 1: भारतीय सभ्यता के विकास में ज्योतिष की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक इसके महत्व और प्रासंगिकता पर प्रकाश डालिए। (लगभग 250 शब्द)
- प्रश्न 2: ‘विज्ञान और समाज’ के संदर्भ में, ज्योतिष को एक ‘ज्ञान प्रणाली’ के रूप में कैसे देखा जा सकता है? इसकी वैज्ञानिक मान्यताओं और सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभावों के बीच के द्वंद्व का विश्लेषण करें। (लगभग 250 शब्द)
- प्रश्न 3: प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान, विशेष रूप से ‘वेदांग ज्योतिष’ और ‘आर्यभट्ट’ के योगदान के महत्व को समझाते हुए, ज्योतिष के विकास की धारा को स्पष्ट कीजिए। (लगभग 150 शब्द)
- प्रश्न 4: “ज्योतिष महाकुंभ” जैसे आयोजनों से UPSC उम्मीदवारों को किस प्रकार लाभ हो सकता है? भारतीय ज्ञान प्रणालियों को समझने के लिए ऐसे आयोजनों के महत्व पर चर्चा करें। (लगभग 150 शब्द)