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जेल का भोजन, कैदियों के अधिकार: प्रजावल रेवन्ना की बेंगलुरु जेल यात्रा के मायने

जेल का भोजन, कैदियों के अधिकार: प्रजावल रेवन्ना की बेंगलुरु जेल यात्रा के मायने

चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
हाल ही में, कर्नाटक के हासन से पूर्व सांसद प्रजावल रेवन्ना के कथित यौन उत्पीड़न के मामलों में बेंगलुरु की एक जेल में भेजे जाने की खबरों ने देश का ध्यान खींचा है। इस घटना ने न केवल एक प्रमुख राजनीतिक व्यक्ति के कानूनी सफर को उजागर किया है, बल्कि भारतीय जेल प्रणाली, कैदियों के अधिकारों और जेल में मिलने वाले भोजन की गुणवत्ता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी बहस छेड़ दी है। प्रजावल रेवन्ना के जेल पहुंचने के साथ ही, प्रति दिन 540 रुपये का खर्च और महीने में केवल दो बार मांस मिलने जैसे विवरण सामने आए हैं, जो जेल प्रबंधन और कैदियों के जीवन की यथार्थता को दर्शाते हैं। यह स्थिति UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए सामाजिक न्याय, भारतीय न्याय प्रणाली, मानवाधिकारों और शासन जैसे विषयों के संदर्भ में अत्यंत प्रासंगिक है।

यह ब्लॉग पोस्ट प्रजावल रेवन्ना के मामले को एक प्रवेश द्वार के रूप में उपयोग करते हुए, भारतीय जेलों की व्यवस्था, कैदियों के अधिकारों, जेल में भोजन की गुणवत्ता और उससे जुड़े विभिन्न पहलुओं का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करेगा। हम इस बात पर भी प्रकाश डालेंगे कि ये मुद्दे UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से कितने महत्वपूर्ण हैं और उम्मीदवार इन विषयों पर अपनी समझ को कैसे बेहतर बना सकते हैं।

जेल प्रणाली: एक अवलोकन (The Prison System: An Overview)

भारतीय जेल प्रणाली का ताना-बाना जटिल है और इसका इतिहास औपनिवेशिक काल से जुड़ा हुआ है। जेलों को केवल दंड देने के स्थान के रूप में नहीं, बल्कि अपराधियों को सुधारने और समाज में पुनः एकीकृत करने के केंद्र के रूप में देखा जाता है। हालांकि, वास्तविकता अक्सर इस आदर्श से कोसों दूर होती है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background)

  • औपनिवेशिक काल: ब्रिटिश शासन के दौरान, जेलों का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक विरोधियों को दबाना और नियंत्रण बनाए रखना था। सुधार और पुनर्वास जैसे विचार गौण थे।
  • स्वतंत्रता के बाद: स्वतंत्रता के बाद, भारत ने जेल सुधारों की दिशा में कदम बढ़ाए। जेलों को सुधार गृह के रूप में विकसित करने की बात कही गई।
  • महत्वपूर्ण समितियाँ और आयोग:
    • ऑल इंडिया प्रिज़न कमेटी (1950-51): इसने जेलों की स्थिति का जायजा लिया और सुधारों के लिए सुझाव दिए।
    • इन्हें भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी ऑन प्रिज़न रिफॉर्म्स (1980-83)।

वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ (Current Scenario and Challenges)

आज भी भारतीय जेलें कई समस्याओं से जूझ रही हैं:

  • अति-भीड़भाड़ (Overcrowding): यह सबसे गंभीर समस्याओं में से एक है। क्षमता से अधिक कैदियों के होने से संसाधनों पर दबाव पड़ता है और स्वच्छता, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा जैसे मुद्दे गंभीर हो जाते हैं।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा (Inadequate Infrastructure): कई जेलें पुरानी हैं और उनमें आधुनिक सुविधाओं का अभाव है।
  • कर्मचारियों की कमी (Staff Shortage): प्रशिक्षित और पर्याप्त संख्या में जेल कर्मचारियों का न होना एक बड़ी चुनौती है, जो जेलों के सुचारू संचालन को प्रभावित करता है।
  • कानूनी और प्रशासनिक मुद्दे (Legal and Administrative Issues): विचाराधीन कैदियों (undertrials) की बड़ी संख्या, मुकदमों में देरी और जेलों के प्रबंधन में प्रशासनिक अक्षमताएँ भी समस्याएँ पैदा करती हैं।
  • स्वास्थ्य सेवाएँ (Healthcare Services): कैदियों के लिए पर्याप्त और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता एक चिंता का विषय है।

कैदियों के अधिकार: एक कानूनी ढाँचा (Prisoners’ Rights: A Legal Framework)

भारतीय संविधान और विभिन्न कानूनों के तहत, कैदियों को भी कुछ मौलिक अधिकार प्राप्त हैं। हालाँकि, जेल की चारदीवारी में ये अधिकार अक्सर सीमित हो जाते हैं। प्रजावल रेवन्ना जैसे हाई-प्रोफाइल कैदियों और सामान्य कैदियों के अधिकारों के बीच अंतर अक्सर चर्चा का विषय बनता है, लेकिन कानूनी रूप से सभी कैदी समान माने जाते हैं।

संविधान और न्यायिक हस्तक्षेप (Constitution and Judicial Intervention)

  • अनुच्छेद 21 (Article 21): जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार। सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार यह स्पष्ट किया है कि जेल में बंद व्यक्ति भी इस अधिकार से वंचित नहीं होते। इसमें गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार, स्वच्छ भोजन, चिकित्सा सुविधाएँ, और अन्य बुनियादी आवश्यकताएँ शामिल हैं।
  • न्यायिक मिसालें (Judicial Pronouncements):

    “मानवीय गरिमा सर्वोपरि है, चाहे व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में हो।” – यह सर्वोच्च न्यायालय का एक महत्वपूर्ण कथन है जो कैदियों के अधिकारों के संदर्भ में बार-बार उद्धृत किया जाता है।

  • सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला (1980):

    सुप्रीम कोर्ट ने 1980 के दशक में जेल सुधारों पर कई महत्वपूर्ण फैसले दिए, जिन्होंने कैदियों के अधिकारों को परिभाषित करने में मदद की। इसमें कैदियों को गरिमापूर्ण व्यवहार, उचित भोजन, चिकित्सा देखभाल और परिवार से मिलने के अधिकार शामिल हैं।

विशिष्ट अधिकार (Specific Rights)

  • उचित भोजन का अधिकार (Right to Nutritious Food): कैदियों को उनकी स्वास्थ्य और श्रम के अनुसार पौष्टिक भोजन मिलना चाहिए। प्रजावल रेवन्ना के मामले में 540 रुपये प्रति दिन का खर्च इस अधिकार के तहत मिलने वाले भोजन की गुणवत्ता और लागत का संकेत देता है।
  • चिकित्सा देखभाल का अधिकार (Right to Medical Care): जेलों में पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएँ और प्रशिक्षित डॉक्टर उपलब्ध होने चाहिए।
  • स्वच्छता और रहने की उचित व्यवस्था का अधिकार (Right to Hygiene and Decent Living Conditions): जेलों में स्वच्छ शौचालय, पीने का पानी और रहने के लिए पर्याप्त जगह होनी चाहिए।
  • परिवार से मिलने का अधिकार (Right to Meet Family): कैदियों को निश्चित अंतराल पर अपने परिवार वालों से मिलने की अनुमति होनी चाहिए।
  • वकील से मिलने का अधिकार (Right to Consult a Lawyer): कैदियों को अपने वकील से मिलने और कानूनी सलाह लेने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
  • प्रताड़ना से मुक्ति का अधिकार (Freedom from Torture): किसी भी प्रकार की शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना पूरी तरह से वर्जित है।

जेल में भोजन: प्रजावल रेवन्ना का मामला और सामान्य नियम (Prison Food: Prajwal Revanna’s Case and General Norms)

प्रजावल रेवन्ना के मामले में सामने आया “महीने में दो बार मांस और 540 रुपये प्रतिदिन” का आंकड़ा कई सवाल खड़े करता है। यह आंकड़ा सामान्य कैदियों के लिए आवंटित भोजन और उसके खर्च से कितना भिन्न है, और इसके पीछे क्या नियम हैं, इसे समझना आवश्यक है।

खर्च का मापदंड (The Cost Per Diem)

  • सरकारी मानक: भारत सरकार और राज्य सरकारें जेलों में कैदियों के भोजन पर प्रति दिन एक निश्चित राशि खर्च करती हैं। यह राशि राज्य के अनुसार भिन्न हो सकती है और इसमें समय के साथ वृद्धि भी होती है।
  • 540 रुपये प्रति दिन का क्या मतलब है?:
    • यह राशि संभवतः कैदी के व्यक्तिगत खर्चों, जैसे विशेष भोजन, पैरोल पर जाने का खर्च (यदि लागू हो), या जेल की अन्य सुविधाओं के लिए आवंटित की गई हो।
    • यह राशि सीधे तौर पर जेल प्रशासन द्वारा कैदियों को दिए जाने वाले सामान्य भोजन की गुणवत्ता का संकेत नहीं देती, बल्कि यह एक व्यक्तिगत बजट या विशेष व्यवस्था का हिस्सा हो सकती है।
    • महत्वपूर्ण: जेल नियमावली के अनुसार, कुछ विशेष परिस्थितियों में, यदि कैदी या उसका परिवार अतिरिक्त खर्च वहन करने को तैयार है, तो विशेष भोजन या अन्य सुविधाएं दी जा सकती हैं। 540 रुपये प्रति दिन का आंकड़ा संभवतः इसी विशेष व्यवस्था का हिस्सा है।

भोजन की गुणवत्ता और मेनू (Food Quality and Menu)

  • संतुलित आहार: जेल मैनुअल के अनुसार, कैदियों को प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन और खनिज से भरपूर संतुलित आहार मिलना चाहिए। इसमें अनाज, दालें, सब्जियाँ, फल और दूध शामिल होना चाहिए।
  • शाकाहारी और मांसाहारी विकल्प: आमतौर पर, जेलों में कैदियों के लिए शाकाहारी और मांसाहारी दोनों विकल्प उपलब्ध कराए जाते हैं, या उनकी धार्मिक/सांस्कृतिक मान्यताओं का ध्यान रखा जाता है।
  • मांस का वितरण: “महीने में दो बार मांस” का नियम कई जेलों में आम है, खासकर जहां बजट की कमी होती है। यह कैदियों के लिए एक विशेष सुविधा मानी जाती है।
  • गुणवत्ता संबंधी चिंताएँ: हालांकि, कई रिपोर्टें जेलों में भोजन की गुणवत्ता पर सवाल उठाती हैं। अक्सर भोजन बासी, अपर्याप्त मात्रा में या पोषणहीन पाया जाता है।
  • केस स्टडी:

    कुछ वर्षों पहले, तिहाड़ जेल में कैदियों को दिए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता को लेकर कई शिकायतें सामने आई थीं, जिसके बाद निरीक्षण किए गए और सुधार के आदेश दिए गए। इसी तरह, अन्य जेलों में भी भोजन की गुणवत्ता को लेकर चिंताएँ बनी रहती हैं।

क्या हाई-प्रोफाइल कैदियों को बेहतर सुविधाएँ मिलती हैं? (Do High-Profile Inmates Get Better Facilities?)

यह एक विवादास्पद प्रश्न है। कानूनी तौर पर, सभी कैदी समान हैं। हालांकि, व्यवहार में, यह देखा गया है कि हाई-प्रोफाइल कैदियों के मामले में मीडिया और जनता का ध्यान अधिक होता है, जिससे जेल प्रशासन पर दबाव बनता है कि वे उन्हें ‘ठीक-ठाक’ सुविधाएँ प्रदान करें। इसके अतिरिक्त, उनके पास बेहतर वकील होते हैं जो उनके अधिकारों की पैरवी कर सकते हैं।

  • विशेषाधिकार या अधिकार?: विशेष भोजन या अतिरिक्त सुविधाओं की मांग अक्सर व्यक्तिगत क्षमता पर निर्भर करती है। यदि कैदी या उसका परिवार भुगतान करने को तैयार है, तो जेल प्रशासन नियमानुसार कुछ सुविधाएँ दे सकता है, बशर्ते वे दूसरों के लिए समस्या उत्पन्न न करें।
  • असमानता का आभास: यह स्थिति जेल व्यवस्था में असमानता का आभास करा सकती है, जहाँ आर्थिक और सामाजिक स्थिति के आधार पर कैदियों के अनुभव भिन्न हो सकते हैं।

UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता (Relevance for UPSC Exam)

प्रजावल रेवन्ना का मामला और जेलों से जुड़े मुद्दे UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं:

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims)

  • सामान्य अध्ययन पेपर I (इतिहास): भारतीय दंड संहिता, जेल सुधारों का ऐतिहासिक विकास।
  • सामान्य अध्ययन पेपर II (शासन, राजनीति, सामाजिक न्याय):
    • संविधान के तहत मौलिक अधिकार (विशेषकर अनुच्छेद 21)।
    • न्यायपालिका की भूमिका (PIL, न्यायिक सक्रियता)।
    • कल्याणकारी योजनाएँ और सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दे।
    • सुशासन और सार्वजनिक प्रशासन।
  • सामान्य अध्ययन पेपर III (अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी): हालाँकि प्रत्यक्ष संबंध कम है, लेकिन जेलों में संसाधनों का प्रबंधन और स्वास्थ्य सेवाएँ अप्रत्यक्ष रूप से प्रासंगिक हो सकती हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  • निबंध (Essay): “भारतीय जेल प्रणाली: सुधार की आवश्यकता”, “कैदियों के अधिकार और गरिमा”, “न्यायपालिका और सामाजिक न्याय”।
  • सामान्य अध्ययन पेपर I (समाज): समाज में अपराध, दंड और सुधार की भूमिका।
  • सामान्य अध्ययन पेपर II (शासन, राजनीति, सामाजिक न्याय):
    • प्रश्न प्रारूप: “भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के आलोक में जेल में बंद व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों की विवेचना कीजिए। भारत में जेल सुधारों के समक्ष प्रमुख चुनौतियों का उल्लेख करें।”
    • प्रश्न प्रारूप: “विचाराधीन कैदियों की बढ़ती संख्या भारतीय न्याय प्रणाली पर एक गंभीर बोझ है। इस समस्या के कारणों और निवारण के उपायों पर चर्चा कीजिए।”
    • प्रश्न प्रारूप: “जेलों में भोजन की गुणवत्ता और कैदियों के स्वास्थ्य के बीच संबंध पर प्रकाश डालिए। क्या कैदियों को बेहतर पोषण प्रदान करना एक ‘विशेषाधिकार’ या ‘अधिकार’ है?”
  • सामान्य अध्ययन पेपर IV (नैतिकता, सत्यनिष्ठा और अभिवृत्ति):
    • संवेदना, मानवीय गरिमा, सहानुभूति जैसे नैतिक मूल्य।
    • प्रशासनिक नैतिकता में सार्वजनिक धन का विवेकपूर्ण उपयोग।
    • संस्थागत पक्षपात और पूर्वाग्रह (Institutional bias and prejudice) को समझना।

आगे की राह: जेल सुधारों की आवश्यकता (The Way Forward: The Need for Prison Reforms)

प्रजावल रेवन्ना जैसे हाई-प्रोफाइल मामलों से उत्पन्न होने वाली चर्चाएँ जेल सुधारों की तात्कालिक आवश्यकता को रेखांकित करती हैं। केवल दंड पर आधारित व्यवस्था से आगे बढ़कर, हमें एक ऐसी प्रणाली की ओर बढ़ना चाहिए जो सुधार, पुनर्वास और मानवाधिकारों का सम्मान करे।

सुझाव (Suggestions)

  1. बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण: पुरानी जेलों का नवीनीकरण और नई, आधुनिक जेलों का निर्माण, जिनमें पर्याप्त स्वच्छता, वेंटिलेशन और सुरक्षा हो।
  2. कर्मचारी प्रशिक्षण और संख्या वृद्धि: जेल कर्मचारियों को नियमित प्रशिक्षण प्रदान करना और उनकी संख्या बढ़ाना, ताकि वे कैदियों के साथ मानवीय व्यवहार कर सकें और जेलों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन कर सकें।
  3. विचाराधीन कैदियों की समस्या का समाधान: न्यायिक प्रक्रियाओं में तेजी लाकर विचाराधीन कैदियों की संख्या कम करना।
  4. स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार: जेलों में डॉक्टरों, नर्सों और आवश्यक दवाओं की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करना। मानसिक स्वास्थ्य पर भी विशेष ध्यान देना।
  5. पुनर्वास और व्यावसायिक प्रशिक्षण: कैदियों को कौशल विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करना ताकि रिहाई के बाद वे समाज में सम्मानजनक जीवन जी सकें।
  6. जेलों का निरीक्षण और जवाबदेही: स्वतंत्र निरीक्षण तंत्र स्थापित करना ताकि जेलों में होने वाली अनियमितताओं पर अंकुश लगाया जा सके और जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।
  7. प्रौद्योगिकी का उपयोग: जेल प्रबंधन, कैदी निगरानी और परिवार से संपर्क के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाना।
  8. नियमों का सख्ती से पालन: जेल नियमावली का पालन सुनिश्चित करना और कैदियों के अधिकारों का किसी भी हाल में हनन न होने देना।

निष्कर्ष (Conclusion)

प्रजावल रेवन्ना का मामला, जेल में भोजन के खर्च और सुविधाओं के इर्द-गिर्द घूमता हुआ, भारतीय जेल प्रणाली की जटिलताओं और उसमें सुधार की आवश्यकता को एक बार फिर सामने लाता है। यह केवल एक व्यक्ति का मामला नहीं है, बल्कि लाखों कैदियों के अधिकारों और गरिमा का प्रश्न है। UPSC उम्मीदवारों के लिए यह आवश्यक है कि वे इन मुद्दों की तह तक जाएँ, कानूनी प्रावधानों को समझें और एक न्यायपूर्ण तथा मानवीय समाज के निर्माण में अपनी भूमिका को पहचानें। जेलें केवल दंड का स्थान नहीं, बल्कि सुधार और पुनर्वास के अवसर भी प्रदान कर सकती हैं, यदि उन्हें सही दिशा में विकसित किया जाए।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद कैदियों के लिए भी जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को सुनिश्चित करता है?
    (a) अनुच्छेद 14
    (b) अनुच्छेद 19
    (c) अनुच्छेद 21
    (d) अनुच्छेद 22

    उत्तर: (c) अनुच्छेद 21

    व्याख्या: अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा प्रदान करता है, और सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यह अधिकार जेल में बंद व्यक्तियों सहित सभी पर लागू होता है।

  2. प्रश्न 2: भारत में जेल सुधारों पर बनी पहली अखिल भारतीय समिति कौन सी थी?
    (a) जस्टिस वर्मा समिति
    (b) श्रीप्रकाश समिति
    (c) ऑल इंडिया प्रिज़न कमेटी (1950-51)
    (d) जस्टिस मलिमथ समिति

    उत्तर: (c) ऑल इंडिया प्रिज़न कमेटी (1950-51)

    व्याख्या: ऑल इंडिया प्रिज़न कमेटी (1950-51) भारत में जेल सुधारों पर बनी पहली प्रमुख समिति थी।

  3. प्रश्न 3: भारतीय जेलों में कैदियों के सामने सबसे गंभीर समस्याओं में से एक कौन सी है?
    (a) कैदियों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि
    (b) कर्मचारियों की कमी
    (c) अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा
    (d) अति-भीड़भाड़ (Overcrowding)

    उत्तर: (d) अति-भीड़भाड़ (Overcrowding)

    व्याख्या: जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों का होना एक प्रमुख समस्या है जो अन्य कई मुद्दों जैसे स्वच्छता, स्वास्थ्य और सुरक्षा को जन्म देती है।

  4. प्रश्न 4: प्रजावल रेवन्ना के मामले में प्रतिदिन 540 रुपये का खर्च निम्नलिखित में से किसे इंगित करता है?
    (a) सभी कैदियों के लिए समान भोजन का औसत खर्च
    (b) केवल विशेष श्रेणी के कैदियों के लिए आवंटित बजट
    (c) जेल कर्मचारियों का मासिक वेतन
    (d) जेल के बुनियादी ढांचे के रखरखाव का खर्च

    उत्तर: (b) केवल विशेष श्रेणी के कैदियों के लिए आवंटित बजट

    व्याख्या: समाचारों के अनुसार, यह राशि संभवतः प्रजावल रेवन्ना जैसे विशेष कैदी के लिए आवंटित व्यक्तिगत बजट या सुविधा शुल्क का हिस्सा है, न कि सामान्य कैदियों के लिए भोजन का मानक खर्च।

  5. प्रश्न 5: ‘कैदियों के अधिकार’ के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य है?
    (a) जेल में बंद होने पर सभी मौलिक अधिकार स्वतः समाप्त हो जाते हैं।
    (b) कैदियों को गरिमापूर्ण व्यवहार का अधिकार है, जिसमें उचित भोजन और चिकित्सा सुविधाएँ शामिल हैं।
    (c) कैदियों को मीडिया से बातचीत करने का पूरा अधिकार है।
    (d) केवल विचाराधीन कैदियों को ही वकील से मिलने का अधिकार है।

    उत्तर: (b) कैदियों को गरिमापूर्ण व्यवहार का अधिकार है, जिसमें उचित भोजन और चिकित्सा सुविधाएँ शामिल हैं।

    व्याख्या: अनुच्छेद 21 के तहत, कैदियों को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार है, जो उचित भोजन, चिकित्सा और सम्मानजनक व्यवहार को समाहित करता है।

  6. प्रश्न 6: निम्नलिखित में से कौन सी संस्था भारत में जेलों के प्रशासन और प्रबंधन के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है?
    (a) केंद्रीय गृह मंत्रालय
    (b) भारतीय पुलिस सेवा (IPS)
    (c) राज्य सरकारें (पुलिस और जेल विभाग)
    (d) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)

    उत्तर: (c) राज्य सरकारें (पुलिस और जेल विभाग)

    व्याख्या: भारत में ‘पुलिस’ और ‘जेल’ राज्य सूची के विषय हैं, इसलिए इनकी प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है।

  7. प्रश्न 7: ‘विचाराधीन कैदी’ (Undertrial Prisoner) का क्या अर्थ है?
    (a) वह कैदी जिसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई हो।
    (b) वह व्यक्ति जो किसी अपराध का आरोपी हो और जिस पर अभी मुकदमा चल रहा हो।
    (c) वह कैदी जिसने अपनी सजा पूरी कर ली हो।
    (d) वह कैदी जो जेल से भागने का प्रयास कर रहा हो।

    उत्तर: (b) वह व्यक्ति जो किसी अपराध का आरोपी हो और जिस पर अभी मुकदमा चल रहा हो।

    व्याख्या: विचाराधीन कैदी वे होते हैं जिन पर किसी अपराध का आरोप लगाया गया है, लेकिन उनका मुकदमा अभी लंबित है या फैसला नहीं आया है।

  8. प्रश्न 8: भारत में जेलों के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
    1. भारतीय जेलों का प्रशासन मुख्य रूप से ‘भारतीय जेल अधिनियम, 1894’ द्वारा शासित होता है।
    2. ‘कैदियों का अधिकार’ को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत विस्तारित किया गया है।
    उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सत्य है/हैं?
    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) 1 और 2 दोनों
    (d) न तो 1 और न ही 2

    उत्तर: (c) 1 और 2 दोनों

    व्याख्या: भारतीय जेल अधिनियम, 1894 अभी भी जेलों के प्रशासन का आधार है, हालांकि इसे आधुनिक बनाने की आवश्यकता है। अनुच्छेद 21 के तहत कैदियों के अधिकारों को न्यायिक निर्णयों द्वारा विस्तारित किया गया है।

  9. प्रश्न 9: जेलों में कैदियों को बेहतर पोषण और स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करने का मुख्य उद्देश्य क्या है?
    (a) कैदियों को आरामदायक जीवन प्रदान करना
    (b) कैदियों के सुधार और पुनर्वास को बढ़ावा देना
    (c) जेल प्रशासन पर वित्तीय बोझ कम करना
    (d) कैदियों के विरोध प्रदर्शनों को रोकना

    उत्तर: (b) कैदियों के सुधार और पुनर्वास को बढ़ावा देना

    व्याख्या: उचित पोषण और स्वास्थ्य सुविधाएँ कैदियों की शारीरिक और मानसिक तंदुरुस्ती के लिए आवश्यक हैं, जो उनके सुधार और समाज में पुनः एकीकरण में सहायक होती हैं।

  10. प्रश्न 10: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की जेलों में क्या भूमिका हो सकती है?
    (a) कैदियों को दंडित करने के लिए निर्णय देना
    (b) जेलों का निरीक्षण करना और कैदियों के मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच करना
    (c) जेल सुधारों के लिए कानून बनाना
    (d) जेलों के लिए धन आवंटित करना

    उत्तर: (b) जेलों का निरीक्षण करना और कैदियों के मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच करना

    व्याख्या: NHRC जेलों सहित देश भर में मानवाधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन के लिए जिम्मेदार है, जिसमें जेलों का निरीक्षण और शिकायतों की जाँच करना शामिल है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1: भारतीय जेल प्रणाली, जो सुधार और पुनर्वास के आदर्शों पर आधारित होनी चाहिए, आज भी अति-भीड़भाड़, अपर्याप्त बुनियादी ढांचे और कर्मचारियों की कमी जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रही है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के आलोक में कैदियों के मौलिक अधिकारों पर प्रकाश डालते हुए, इन चुनौतियों के समाधान के लिए व्यापक सुधारों का सुझाव दीजिए। (लगभग 250 शब्द)
  2. प्रश्न 2: ‘जेल का भोजन’ सिर्फ एक पोषण संबंधी आवश्यकता नहीं, बल्कि कैदियों के मानवाधिकारों और गरिमा का भी प्रतीक है। प्रजावल रेवन्ना के मामले में सामने आए खर्च के आंकड़ों के संदर्भ में, भारत में जेलों में भोजन की गुणवत्ता, मेनू और वितरण प्रणाली की वर्तमान स्थिति का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। क्या हाई-प्रोफाइल कैदियों को विशेष सुविधाएं मिलनी चाहिए? (लगभग 250 शब्द)
  3. प्रश्न 3: विचाराधीन कैदियों की बढ़ती संख्या भारतीय न्याय प्रणाली के लिए एक बड़ी चुनौती है, जो जेलों पर दबाव बढ़ाती है और मानवीय गरिमा को भी प्रभावित करती है। इस समस्या के मूल कारणों का पता लगाएं और इसके समाधान के लिए सुधारात्मक उपायों का सुझाव दें, जिसमें न्यायिक प्रक्रिया में तेजी और वैकल्पिक दंड विधियों का उपयोग शामिल हो। (लगभग 150 शब्द)
  4. प्रश्न 4: जेल सुधारों के संबंध में, भारत में हुई प्रमुख न्यायिक सक्रियताओं (Judicial Activism) और समितियों की सिफारिशों का वर्णन करें। इन सिफारिशों को लागू करने में क्या बाधाएं हैं और इन्हें कैसे दूर किया जा सकता है? (लगभग 150 शब्द)

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