जलती उम्मीदें, बरसती चुनौतियाँ, और ‘देश पहले’ का आह्वान: भारत के वर्तमान को समझना

जलती उम्मीदें, बरसती चुनौतियाँ, और ‘देश पहले’ का आह्वान: भारत के वर्तमान को समझना

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

भारत एक जीवंत, बहुआयामी राष्ट्र है जहाँ हर दिन नई घटनाएँ सामने आती हैं – कुछ प्रेरणादायक, कुछ चिंताजनक। आज की शीर्ष ख़बरें, जिनमें ओडिशा में एक किशोरी पर हुए जघन्य हमले से लेकर देश के कई राज्यों में आगामी बारिश के पूर्वानुमान तक, और एक सांसद की गिरफ्तारी से लेकर एक वरिष्ठ नेता के ‘देश पहले’ के आह्वान तक शामिल हैं, ये सभी हमारे समाज, हमारी शासन प्रणाली और हमारे पर्यावरण की जटिलताओं को दर्शाती हैं। एक UPSC उम्मीदवार के रूप में, इन सुर्खियों को केवल सतही जानकारी के तौर पर देखना पर्याप्त नहीं है। हमें इनके पीछे छिपे गहरे सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय आयामों को समझना होगा। यह लेख आपको इन्हीं घटनाओं के माध्यम से भारत की वर्तमान स्थिति, उससे जुड़ी चुनौतियों और भविष्य की राह को समझने में मदद करेगा, ताकि आप परीक्षा और उससे परे भी एक सुविज्ञ नागरिक बन सकें।

1. हिंसा का साया: ओडिशा की घटना और महिला सुरक्षा की चुनौती

ओडिशा में एक किशोरी को जलाए जाने की ख़बर न केवल विचलित करने वाली है, बल्कि यह हमारे समाज के एक गहरे घाव को उजागर करती है: महिलाओं और बच्चों के प्रति बढ़ती हिंसा। यह केवल एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि एक सामाजिक बीमारी का लक्षण है जहाँ शक्ति का दुरुपयोग, संवेदनहीनता और न्याय की धीमी गति अक्सर अपराधियों को बढ़ावा देती है।

क्या है मामला? (What is the matter?)

हाल ही में, ओडिशा में एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना सामने आई जहाँ एक नाबालिग लड़की को बर्बरता से जला दिया गया। इस तरह की घटनाएँ समाज के नैतिक ताने-बाने पर सवाल उठाती हैं और यह दर्शाती हैं कि महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

यह क्या दर्शाता है? (What does it signify?)

  • महिलाओं के प्रति हिंसा की भयावहता: यह घटना लैंगिक-आधारित हिंसा के सबसे क्रूरतम रूपों में से एक को दर्शाती है, जो महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ घृणित मानसिकता को रेखांकित करती है।
  • समाज में गिरते नैतिक मूल्य: ऐसी घटनाएँ समाज में बढ़ती संवेदनहीनता, कानून के डर की कमी और मानवीय मूल्यों के पतन का संकेत हैं।
  • कानून-व्यवस्था की चुनौतियाँ: यह पुलिस और न्यायपालिका के लिए इन अपराधों को रोकने, दोषियों को शीघ्र दंडित करने और पीड़ितों को न्याय दिलाने की चुनौतियों को सामने लाती है।
  • संरक्षण और पुनर्वास की आवश्यकता: ऐसी घटनाओं के पीड़ित न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक आघात से भी गुजरते हैं, जिसके लिए मजबूत संरक्षण और पुनर्वास प्रणालियों की आवश्यकता होती है।

प्रासंगिक कानूनी ढाँचा और सरकारी पहल (Relevant Legal Framework and Government Initiatives)

भारत में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए कई कानून और पहल मौजूद हैं:

  • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012: यह बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए एक व्यापक कानून है, जिसमें सख्त दंड और शीघ्र न्याय का प्रावधान है।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC): IPC की विभिन्न धाराएँ (जैसे धारा 307 – हत्या का प्रयास, धारा 326A – तेज़ाब आदि के उपयोग से गंभीर चोट पहुँचाना, धारा 354 – महिला का शील भंग करने के इरादे से हमला) ऐसे अपराधों से संबंधित हैं।
  • आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 और 2018: ये संशोधन बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामलों में अधिक सख्त दंड का प्रावधान करते हैं।
  • महिलाओं के लिए वन स्टॉप सेंटर (OSC) योजना: यह योजना हिंसा से प्रभावित महिलाओं को एक ही छत के नीचे चिकित्सा सहायता, पुलिस सहायता, कानूनी सहायता, मनोवैज्ञानिक-सामाजिक परामर्श और अस्थायी आश्रय प्रदान करती है।
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना: लैंगिक समानता और लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए।
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB): यह देश में अपराध के आंकड़े एकत्र करता है, जो नीति-निर्माण के लिए महत्वपूर्ण डेटा प्रदान करता है। NCRB की रिपोर्टें अक्सर महिला और बाल अपराधों की बढ़ती संख्या को उजागर करती हैं।

चुनौतियाँ (Challenges)

  • सामाजिक मानसिकता: पितृसत्तात्मक सोच, लैंगिक रूढ़िवादिता और महिलाओं को अधीन मानने की प्रवृत्ति अभी भी बड़े पैमाने पर मौजूद है।
  • जागरूकता की कमी: कानूनों और अधिकारों के बारे में जागरूकता की कमी, विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में।
  • न्याय में देरी: पुलिस जांच में देरी, अदालतों में मुकदमों का बोझ और लंबी न्यायिक प्रक्रियाएँ पीड़ितों के लिए न्याय को कठिन बनाती हैं।
  • अंडर-रिपोर्टिंग: सामाजिक कलंक, बदले का डर और पुलिस के प्रति अविश्वास के कारण कई अपराधों की रिपोर्ट नहीं की जाती।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: फोरेंसिक लैब, प्रशिक्षित पुलिसकर्मी और विशेष अदालतों की कमी।

आगे की राह (Way Forward)

इस चुनौती का समाधान बहुआयामी दृष्टिकोण की मांग करता है:

  • शिक्षा और संवेदीकरण: लैंगिक समानता पर बचपन से ही शिक्षा, पुरुषों और लड़कों का संवेदीकरण।
  • कानूनी प्रवर्तन में सुधार: पुलिस को लैंगिक संवेदी बनाना, त्वरित जांच, विशेष अदालतों की स्थापना और न्यायिक प्रक्रिया का सुदृढीकरण।
  • सामुदायिक भागीदारी: समाज के हर वर्ग को इस मुद्दे पर एकजुट होकर आवाज उठानी होगी और पीड़ितों का समर्थन करना होगा।
  • पीड़ितों के लिए समर्थन: मनोवैज्ञानिक परामर्श, कानूनी सहायता और आर्थिक पुनर्वास सुनिश्चित करना।
  • ज़ीरो टॉलरेंस नीति: सरकार और समाज दोनों को महिला एवं बाल अपराधों के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस की नीति अपनानी होगी।

“एक समाज की प्रगति इस बात से मापी जाती है कि वह अपने सबसे कमजोर सदस्यों के साथ कैसा व्यवहार करता है।” – महात्मा गांधी

2. प्रकृति का मिज़ाज: बारिश का पूर्वानुमान और आपदा प्रबंधन

देश के कई राज्यों में बारिश का पूर्वानुमान भारत के लिए एक सामान्य ख़बर हो सकती है, लेकिन यह मानसून, जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर विचार करने का अवसर प्रदान करती है। भारत की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर करता है, और मानसून का पैटर्न सीधे किसानों की आजीविका, खाद्य सुरक्षा और समग्र आर्थिक स्थिरता को प्रभावित करता है।

क्या है पूर्वानुमान? (What is the forecast?)

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) जैसे संस्थान नियमित रूप से देश के विभिन्न हिस्सों में बारिश और अन्य मौसमी घटनाओं का पूर्वानुमान जारी करते हैं। यह जानकारी किसानों, आपदा प्रबंधकों और आम जनता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।

मानसून की भूमिका (Role of Monsoon)

  • भारतीय अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा: भारत की 60% से अधिक कृषि भूमि वर्षा-सिंचित है। एक अच्छा मानसून कृषि उत्पादन को बढ़ावा देता है, ग्रामीण आय बढ़ाता है और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करता है।
  • जल सुरक्षा: मानसून नदियाँ, जलाशय और भूजल स्तर को रिचार्ज करता है, जिससे पेयजल, सिंचाई और उद्योगों के लिए पानी उपलब्ध होता है।
  • पारिस्थितिक संतुलन: मानसून पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने, जैव विविधता को पोषित करने और जंगलों को हरा-भरा रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

जलवायु परिवर्तन और चरम मौसमी घटनाएँ (Climate Change and Extreme Weather Events)

हाल के वर्षों में, हमने मानसून के पैटर्न में महत्वपूर्ण बदलाव देखे हैं। अनियमित वर्षा, सूखे की लंबी अवधि के बाद अचानक भारी वर्षा, और बाढ़ जैसी चरम मौसमी घटनाएँ अब अधिक आम हो गई हैं। यह जलवायु परिवर्तन का सीधा परिणाम है।

  • बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता: बाढ़, सूखा, चक्रवात और लू जैसी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है।
  • कृषि पर प्रभाव: फसलों को नुकसान, कीटों का प्रकोप, और मिट्टी का क्षरण।
  • शहरी बाढ़: अपर्याप्त जल निकासी प्रणालियों और अनियोजित शहरीकरण के कारण बड़े शहरों में भारी बारिश से बाढ़ आना एक आम समस्या बन गई है।
  • विस्थापन और आजीविका का नुकसान: आपदाएँ लाखों लोगों को विस्थापित करती हैं और उनकी आजीविका छीन लेती हैं।

आपदा प्रबंधन (Disaster Management)

भारत में आपदा प्रबंधन का एक मजबूत ढाँचा है, लेकिन लगातार बदलती चुनौतियों के लिए इसे और सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।

  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA): आपदा प्रबंधन के लिए शीर्ष निकाय, नीतियाँ और दिशानिर्देश तैयार करता है।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF): खोज और बचाव कार्यों के लिए विशेष बल।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR): इसमें पूर्व-चेतावनी प्रणाली, समुदाय-आधारित तैयारी, और आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे का निर्माण शामिल है।

चुनौतियाँ (Challenges)

  • उन्नत पूर्वानुमान: सटीक और स्थानीयकृत मौसम पूर्वानुमान प्रदान करना एक चुनौती बनी हुई है।
  • बुनियादी ढाँचे की कमी: ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बाढ़ नियंत्रण और जल निकासी के लिए पर्याप्त बुनियादी ढाँचे की कमी।
  • जवाबदेही और समन्वय: विभिन्न सरकारी विभागों और एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी।
  • जलवायु-लचीले कृषि प्रथाओं को अपनाना: किसानों के बीच ऐसी प्रथाओं को लोकप्रिय बनाना।

आगे की राह (Way Forward)

  • मौसम पूर्वानुमान का आधुनिकीकरण: उपग्रह प्रौद्योगिकी और उन्नत मॉडलिंग का उपयोग कर अधिक सटीक और समय पर पूर्वानुमान।
  • जलवायु-स्मार्ट कृषि: सूखा-प्रतिरोधी फसलों का विकास, वर्षा जल संचयन, और सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा देना।
  • शहरी नियोजन: हरित बुनियादी ढाँचे का विकास, वेटलैंड्स का संरक्षण, और प्रभावी जल निकासी प्रणालियों का निर्माण।
  • समुदाय-आधारित तैयारी: स्थानीय समुदायों को आपदाओं के लिए प्रशिक्षित और सशक्त करना।
  • लचीले बुनियादी ढाँचे का निर्माण: पुलों, सड़कों और इमारतों को चरम मौसम की घटनाओं का सामना करने में सक्षम बनाना।

“प्रकृति हमें जो देती है, हमें उसे सम्मान के साथ लेना चाहिए और उसके अनुसार अनुकूलन करना सीखना चाहिए।”

3. जवाबदेही का सवाल: सांसद की गिरफ्तारी और राजनीति का अपराधीकरण

आंध्र प्रदेश के एक सांसद की गिरफ्तारी की ख़बर राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों की बढ़ती उपस्थिति और कानून के समक्ष समानता के सिद्धांत पर फिर से बहस छेड़ती है। यह घटना दर्शाती है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है, भले ही वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो।

क्या है मामला? (What is the matter?)

हाल ही में, आंध्र प्रदेश के एक वर्तमान सांसद को एक विशिष्ट मामले के संबंध में गिरफ्तार किया गया। यह घटना सार्वजनिक जीवन में शुचिता, जवाबदेही और कानून के शासन के महत्व को रेखांकित करती है।

यह क्या दर्शाता है? (What does it signify?)

  • कानून का शासन (Rule of Law): यह दर्शाता है कि कानून के समक्ष कोई भी व्यक्ति, चाहे वह सांसद ही क्यों न हो, विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है। सभी को कानून का पालन करना होगा और अपराध करने पर जवाबदेह ठहराया जाएगा।
  • राजनीति का अपराधीकरण: यह भारत में राजनीति के अपराधीकरण की व्यापक समस्या को उजागर करता है, जहाँ आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति अक्सर चुनाव जीतते हैं और महत्वपूर्ण पदों पर आसीन होते हैं।
  • जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही: सांसद और विधायक जैसे जन प्रतिनिधि जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं। उनकी गिरफ्तारी से सार्वजनिक जीवन में नैतिकता और ईमानदारी पर सवाल उठते हैं।
  • संस्थागत भूमिका: यह न्यायपालिका, पुलिस और अन्य जांच एजेंसियों की भूमिका को सामने लाता है जो कानून व्यवस्था बनाए रखने और अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाने के लिए जिम्मेदार हैं।

संबंधित संवैधानिक प्रावधान और कानून (Related Constitutional Provisions and Laws)

  • संसद सदस्यों के विशेषाधिकार (अनुच्छेद 105): भारतीय संविधान का अनुच्छेद 105 संसद सदस्यों को कुछ विशेषाधिकार प्रदान करता है, ताकि वे अपने संसदीय कर्तव्यों का निर्वहन स्वतंत्र रूप से कर सकें। हालांकि, ये विशेषाधिकार आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी से पूर्ण छूट नहीं देते हैं। सांसद को सत्र के दौरान सिविल मामलों में गिरफ्तारी से छूट मिलती है, लेकिन आपराधिक मामलों में नहीं।
  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act), 1951: यह कानून चुनाव लड़ने के लिए अयोग्यता से संबंधित प्रावधान करता है, जिसमें आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए व्यक्तियों के लिए अयोग्यता भी शामिल है (धारा 8)।

राजनीति के अपराधीकरण के कारण और परिणाम (Causes and Consequences of Criminalization of Politics)

कारण:

  • चुनावी फंडिंग की कमी: चुनाव अभियान में धन की आवश्यकता, जिससे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग अपने ‘मनी और मसल पावर’ का इस्तेमाल करते हैं।
  • कमज़ोर कानून प्रवर्तन: आपराधिक मामलों में धीमी जांच और सुनवाई।
  • जाति और धर्म आधारित राजनीति: कुछ अपराधी अपनी पहचान का इस्तेमाल कर चुनाव जीत जाते हैं।
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी: राजनीतिक दल अक्सर अपने फायदे के लिए आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट देते हैं।

परिणाम:

  • शासन में कमी: आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों के कारण शासन की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
  • सार्वजनिक विश्वास में कमी: राजनीति और राजनेताओं के प्रति जनता का विश्वास घटता है।
  • भ्रष्टाचार में वृद्धि: ऐसे व्यक्ति अक्सर भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाते हैं।
  • कानून निर्माण पर प्रभाव: संसद और विधानसभाओं में गंभीर बहस और कानून निर्माण की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

आगे की राह (Way Forward)

  • चुनावी सुधार:
    • तेज़ न्याय: आपराधिक मामलों में विधायकों/सांसदों के खिलाफ मुकदमों की तेज़ सुनवाई के लिए विशेष अदालतों की स्थापना।
    • चुनाव आयोग को सशक्त करना: चुनाव आयोग को और अधिक शक्तियाँ देना ताकि वह आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोक सके।
    • पारदर्शी चुनावी फंडिंग: राजनीतिक दलों की फंडिंग में पारदर्शिता लाना।
  • जन जागरूकता और सक्रियता: मतदाताओं को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के प्रति जागरूक करना और उन्हें अस्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • न्यायपालिका की भूमिका: न्यायालयों को आपराधिक मामलों में शीघ्र और प्रभावी निर्णय देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।
  • आंतरिक पार्टी लोकतंत्र: राजनीतिक दलों को आंतरिक लोकतंत्र को बढ़ावा देना चाहिए ताकि टिकट वितरण में पारदर्शिता आए।

“एक लोकतंत्र तब तक स्वस्थ नहीं रह सकता जब तक कि उसके प्रतिनिधि ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ न हों।”

4. ‘देश पहले’ का आह्वान: थरूर का बयान और सार्वजनिक जीवन में नैतिकता

एक वरिष्ठ नेता द्वारा ‘देश पहले’ का आह्वान, भले ही वह किसी विशेष संदर्भ में दिया गया हो, एक महत्वपूर्ण अनुस्मारक है कि सार्वजनिक सेवा में व्यक्तिगत या पार्टीगत हितों से ऊपर राष्ट्रहित को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यह बयान सार्वजनिक जीवन में नैतिकता, राष्ट्रीय एकता और स्वस्थ राजनीतिक संवाद के महत्व को उजागर करता है।

क्या है मामला? (What is the matter?)

यह ख़बर एक सार्वजनिक व्यक्ति (शशि थरूर) के बयान को संदर्भित करती है जिसमें ‘देश पहले’ (राष्ट्र प्रथम) की भावना पर जोर दिया गया है। ऐसे बयान अक्सर राजनीतिक बहस, नीतिगत निर्णयों या राष्ट्रीय संकट के समय सामने आते हैं, जो नेताओं से एकजुटता और राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता की अपेक्षा रखते हैं।

यह क्या दर्शाता है? (What does it signify?)

  • राष्ट्रहित की सर्वोच्चता: यह इस मूलभूत सिद्धांत पर जोर देता है कि व्यक्तिगत लाभ, पार्टी की विचारधारा या क्षेत्रीय हितों से ऊपर राष्ट्र का हित सर्वोपरि होना चाहिए।
  • सार्वजनिक जीवन में नैतिकता: बयान सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी, निस्वार्थता और कर्तव्यनिष्ठा जैसे नैतिक मूल्यों के महत्व को रेखांकित करता है।
  • विभिन्न हितों का संतुलन: एक लोकतांत्रिक देश में विभिन्न दल, समूह और हित होते हैं। ‘देश पहले’ का अर्थ इन सभी हितों के बीच संतुलन स्थापित करना है ताकि राष्ट्र की प्रगति सुनिश्चित हो सके।
  • जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका: विपक्षी नेताओं द्वारा ‘देश पहले’ का आह्वान रचनात्मक आलोचना और राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर आम सहमति बनाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम हो सकता है।

लोक सेवा के मूल्य और नैतिकता (Values and Ethics in Public Service)

UPSC के पाठ्यक्रम में ‘एथिक्स, इंटीग्रिटी और एप्टीट्यूड’ एक महत्वपूर्ण खंड है। ‘देश पहले’ का सिद्धांत इन मूल्यों से सीधे जुड़ा हुआ है:

  • निष्ठा (Integrity): अपने सिद्धांतों और मूल्यों के प्रति अडिग रहना, भले ही व्यक्तिगत नुकसान उठाना पड़े।
  • निष्पक्षता (Impartiality): बिना किसी पूर्वाग्रह, पक्षपात या भेदभाव के निर्णय लेना।
  • गैर-पक्षपात (Non-partisanship): राजनीतिक या वैचारिक झुकाव से ऊपर उठकर कार्य करना।
  • वस्तुनिष्ठता (Objectivity): तथ्यों और प्रमाणों के आधार पर निर्णय लेना।
  • सहानुभूति (Empathy): दूसरों की भावनाओं और जरूरतों को समझना।
  • जवाबदेही (Accountability): अपने कार्यों और निर्णयों के लिए जवाबदेह होना।
  • पारदर्शिता (Transparency): निर्णयों और प्रक्रियाओं में खुलापन बनाए रखना।

चुनौतियाँ (Challenges)

  • दलीय राजनीति: अक्सर राजनीतिक दल अपने दलगत हितों को राष्ट्रहित से ऊपर रख देते हैं।
  • लोकलुभावनवाद: अल्पकालिक राजनीतिक लाभ के लिए ऐसे निर्णय लेना जो दीर्घकालिक रूप से देश के लिए हानिकारक हों।
  • मीडिया का ध्रुवीकरण: मीडिया द्वारा मुद्दों का ध्रुवीकरण करना, जिससे रचनात्मक बहस बाधित होती है।
  • व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा: नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ कभी-कभी राष्ट्रहित के आड़े आती हैं।

आगे की राह (Way Forward)

  • नैतिक शिक्षा: बचपन से ही नैतिक मूल्यों और नागरिक कर्तव्यों की शिक्षा देना।
  • मजबूत संस्थाएँ: संसद, न्यायपालिका, चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं को और मजबूत करना ताकि वे निष्पक्ष रूप से कार्य कर सकें।
  • जागरूक नागरिक समाज: एक सक्रिय और जागरूक नागरिक समाज जो नेताओं को उनकी जवाबदेही याद दिलाता रहे।
  • मीडिया की जिम्मेदार भूमिका: मीडिया को सनसनीखेज रिपोर्टिंग से बचकर, संतुलित और तथ्यात्मक जानकारी प्रस्तुत करनी चाहिए।
  • नेतृत्व विकास: ऐसे नेताओं को बढ़ावा देना जो दूरदर्शी हों और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखें।

“नेतृत्व का सार यह है कि आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि देश पहले आता है, पार्टी दूसरे और अंत में, आप।” – लालकृष्ण आडवाणी

निष्कर्ष (Conclusion)

आज की ये चार ख़बरें – एक किशोरी पर हमला, बारिश का पूर्वानुमान, एक सांसद की गिरफ्तारी, और ‘देश पहले’ का आह्वान – भारत के वर्तमान परिदृश्य को समझने के लिए एक सूक्ष्मदर्शी प्रदान करती हैं। ये हमें याद दिलाती हैं कि हमारा समाज कई स्तरों पर चुनौतियों का सामना कर रहा है – चाहे वह महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा हो, जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन की आवश्यकता हो, राजनीति का अपराधीकरण हो, या सार्वजनिक जीवन में नैतिक मूल्यों की कमी हो।

एक सिविल सेवक के रूप में, इन सभी मुद्दों को समग्रता में समझना और इनके समाधान के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना महत्वपूर्ण है। हमें यह समझना होगा कि ये मुद्दे अलग-थलग नहीं हैं, बल्कि एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। महिला सुरक्षा का मुद्दा सामाजिक संरचना से जुड़ा है, जो अंततः शासन की गुणवत्ता और राजनीतिक जवाबदेही को प्रभावित करता है। जलवायु परिवर्तन अर्थव्यवस्था और आजीविका को प्रभावित करता है, जिसके लिए मजबूत नीतिगत प्रतिक्रिया और प्रभावी आपदा प्रबंधन की आवश्यकता होती है। और इन सभी में, ‘देश पहले’ का सिद्धांत एक मार्गदर्शक प्रकाश होना चाहिए, जो हमें व्यक्तिगत लाभ से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में कार्य करने के लिए प्रेरित करे।

यह एक सतत सीखने की प्रक्रिया है। जैसे-जैसे देश आगे बढ़ता है, नई चुनौतियाँ सामने आती हैं और उनके समाधान के लिए नए दृष्टिकोणों की आवश्यकता होती है। एक जागरूक और प्रतिबद्ध नागरिक के रूप में, और विशेष रूप से एक भावी सिविल सेवक के रूप में, यह आपका कर्तव्य है कि आप इन जटिलताओं को समझें, उनके मूल कारणों का विश्लेषण करें और स्थायी समाधानों के लिए अपनी भूमिका निभाएँ। भारत को ऐसे सक्षम और नैतिक नेताओं और प्रशासकों की आवश्यकता है जो इन चुनौतियों का सामना कर सकें और एक समावेशी, सुरक्षित और समृद्ध भविष्य का निर्माण कर सकें।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. यह बच्चों को यौन उत्पीड़न, यौन हमला और पोर्नोग्राफी के अपराधों से बचाने के लिए एक विशेष कानून है।
    2. इस अधिनियम के तहत अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन का प्रावधान है।
    3. यह 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को बच्चा मानता है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

    1. केवल 1 और 2
    2. केवल 2 और 3
    3. केवल 1 और 3
    4. 1, 2 और 3

    उत्तर: D

    व्याख्या: POCSO अधिनियम, 2012 बच्चों को यौन उत्पीड़न, यौन हमला और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक व्यापक कानून है (कथन 1 सही है)। यह अधिनियम इन अपराधों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन का प्रावधान करता है (कथन 2 सही है)। अधिनियम की धारा 2(d) के अनुसार, 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए बच्चा माना जाता है (कथन 3 सही है)।

  2. प्रश्न 2: भारत में आपदा प्रबंधन के संबंध में, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. NDMA का अध्यक्ष भारत का प्रधान मंत्री होता है।
    2. यह आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
    3. इसका प्राथमिक कार्य आपदाओं के लिए नीति, योजना और दिशानिर्देश तैयार करना है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

    1. केवल 1 और 2
    2. केवल 2 और 3
    3. केवल 1 और 3
    4. 1, 2 और 3

    उत्तर: D

    व्याख्या: NDMA आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है (कथन 2 सही है)। इसका अध्यक्ष भारत का प्रधान मंत्री होता है (कथन 1 सही है)। NDMA का मुख्य कार्य आपदा प्रबंधन के लिए नीतियां, योजनाएं और दिशानिर्देश तैयार करना है ताकि आपदाओं के समय त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित की जा सके (कथन 3 सही है)।

  3. प्रश्न 3: भारत में मानसून के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. भारत में अधिकांश वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसून से होती है।
    2. अल नीनो (El Niño) घटना आमतौर पर भारतीय मानसून को मजबूत करती है।
    3. उत्तर-पूर्वी मानसून मुख्य रूप से तमिलनाडु तट पर वर्षा करता है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

    1. केवल 1 और 2
    2. केवल 2 और 3
    3. केवल 1 और 3
    4. 1, 2 और 3

    उत्तर: C

    व्याख्या: भारत में लगभग 75% वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसून से होती है (कथन 1 सही है)। अल नीनो घटना आमतौर पर भारतीय मानसून को कमजोर करती है, न कि मजबूत (कथन 2 गलत है)। उत्तर-पूर्वी मानसून (जिसे शीतकालीन मानसून भी कहा जाता है) मुख्य रूप से तमिलनाडु तट और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में वर्षा करता है (कथन 3 सही है)।

  4. प्रश्न 4: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act), 1951 की धारा 8 के तहत, किसी व्यक्ति को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किया जा सकता है यदि उसे किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया हो और उसे कम से कम कितने वर्ष की कैद की सज़ा सुनाई गई हो?

    1. एक वर्ष
    2. दो वर्ष
    3. तीन वर्ष
    4. चार वर्ष

    उत्तर: B

    व्याख्या: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(3) के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है और उसे कम से कम दो वर्ष की अवधि के लिए कारावास की सजा सुनाई जाती है, तो उसे ऐसे दोषसिद्धि की तारीख से और कारावास से रिहाई के बाद छह साल की अवधि के लिए चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ठहराया जाएगा।

  5. प्रश्न 5: भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद संसद के सदस्यों को उनके संसदीय कर्तव्यों के निर्वहन के संबंध में कुछ विशेषाधिकार प्रदान करता है, लेकिन आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी से पूर्ण छूट नहीं देता?

    1. अनुच्छेद 102
    2. अनुच्छेद 105
    3. अनुच्छेद 107
    4. अनुच्छेद 110

    उत्तर: B

    व्याख्या: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 105 संसद सदस्यों के विशेषाधिकारों से संबंधित है। यह उन्हें सदन में बोलने की स्वतंत्रता और प्रकाशन के संबंध में कुछ प्रतिरक्षा प्रदान करता है। हालांकि, ये विशेषाधिकार सिविल मामलों में गिरफ्तारी से छूट प्रदान करते हैं (सत्र के 40 दिन पहले और 40 दिन बाद), लेकिन आपराधिक मामलों या निवारक निरोध (preventive detention) के मामलों में गिरफ्तारी से कोई छूट नहीं देते हैं।

  6. प्रश्न 6: ‘वन स्टॉप सेंटर’ योजना, जो महिला सुरक्षा से संबंधित एक पहल है, निम्नलिखित में से किस मंत्रालय के अंतर्गत आती है?

    1. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय
    2. गृह मंत्रालय
    3. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय
    4. कानून एवं न्याय मंत्रालय

    उत्तर: A

    व्याख्या: वन स्टॉप सेंटर (OSC) योजना, जो हिंसा से प्रभावित महिलाओं को एक ही छत के नीचे सहायता प्रदान करती है, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की एक पहल है।

  7. प्रश्न 7: भारत में ‘आपदा जोखिम न्यूनीकरण (Disaster Risk Reduction – DRR)’ के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन से घटक इसमें शामिल हो सकते हैं?

    1. पूर्व-चेतावनी प्रणाली का विकास
    2. समुदाय-आधारित तैयारी और प्रशिक्षण
    3. आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे का निर्माण
    4. आपदा के बाद राहत और पुनर्वास गतिविधियाँ

    नीचे दिए गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिए:

    1. केवल 1, 2 और 3
    2. केवल 2, 3 और 4
    3. केवल 1, 3 और 4
    4. 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: D

    व्याख्या: आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) एक व्यवस्थित दृष्टिकोण है जो आपदाओं के कारणों को पहचान कर और उनके जोखिमों को कम करके समाज की भेद्यता को कम करने पर केंद्रित है। इसमें पूर्व-चेतावनी प्रणाली, समुदाय-आधारित तैयारी और प्रशिक्षण, आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे का निर्माण (जैसे बिल्डिंग कोड का पालन) और आपदा के बाद राहत और पुनर्वास गतिविधियाँ, सभी शामिल हैं ताकि आपदाओं के प्रभाव को कम किया जा सके।

  8. प्रश्न 8: ‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB)’ के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. यह गृह मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
    2. इसका मुख्य कार्य अपराधों के संबंध में आंकड़े एकत्र करना और उनका विश्लेषण करना है।
    3. ‘भारत में अपराध’ (Crime in India) रिपोर्ट NCRB द्वारा प्रकाशित की जाती है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

    1. केवल 1 और 2
    2. केवल 2 और 3
    3. केवल 1 और 3
    4. 1, 2 और 3

    उत्तर: D

    व्याख्या: NCRB गृह मंत्रालय के अधीन कार्य करता है (कथन 1 सही है)। इसका प्राथमिक कार्य देश भर में अपराध, अपराधी, पीड़ित और संपत्ति से संबंधित डेटा एकत्र करना और उनका विश्लेषण करना है (कथन 2 सही है)। NCRB प्रतिवर्ष ‘भारत में अपराध’ (Crime in India) नामक एक व्यापक रिपोर्ट प्रकाशित करता है, जो देश में अपराध के रुझानों और पैटर्नों का विवरण देती है (कथन 3 सही है)।

  9. प्रश्न 9: चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने के लिए भारत में किए गए प्रयासों के संबंध में, निम्नलिखित में से कौन सा विकल्प सबसे उपयुक्त है?

    1. इलेक्टोरल बॉन्ड योजना का कार्यान्वयन।
    2. राजनीतिक दलों के ऑडिट को अनिवार्य करना।
    3. ऑनलाइन मोड के माध्यम से छोटे दान को बढ़ावा देना।
    4. कॉर्पोरेट दान पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना।

    उत्तर: A

    व्याख्या: इलेक्टोरल बॉन्ड योजना चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से लागू की गई थी, हालांकि इसकी पारदर्शिता पर सवाल उठाए गए हैं (सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसे असंवैधानिक घोषित किया गया)। अन्य विकल्प पारदर्शिता के विभिन्न पहलुओं को संदर्भित करते हैं, लेकिन इलेक्टोरल बॉन्ड एक प्रमुख सरकारी पहल थी जिसका सीधा उद्देश्य फंडिंग को ‘पारदर्शी’ बनाना था। ऑडिट अनिवार्य करना और छोटे दान को बढ़ावा देना भी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन ‘सबसे उपयुक्त’ विकल्प उस पहल को संदर्भित करता है जो सीधे ‘पारदर्शिता’ के लिए लाई गई थी। कॉर्पोरेट दान पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव कभी-कभी दिया जाता है, लेकिन यह वर्तमान में लागू नहीं है।

  10. प्रश्न 10: सार्वजनिक सेवा में नैतिक मूल्यों के संदर्भ में, ‘गैर-पक्षपात (Non-partisanship)’ का सबसे अच्छा वर्णन निम्नलिखित में से कौन सा है?

    1. सरकारी नीतियों को बिना किसी प्रश्न के स्वीकार करना।
    2. राजनीतिक या वैचारिक झुकाव से ऊपर उठकर कार्य करना।
    3. व्यक्तिगत लाभ के लिए अपने पद का उपयोग न करना।
    4. सभी हितधारकों को समान रूप से संतुष्ट करने का प्रयास करना।

    उत्तर: B

    व्याख्या: ‘गैर-पक्षपात’ का अर्थ है कि एक लोक सेवक को अपनी व्यक्तिगत राजनीतिक मान्यताओं या किसी विशेष राजनीतिक दल के प्रति निष्ठा से प्रभावित हुए बिना कार्य करना चाहिए। उन्हें निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ रूप से निर्णय लेना चाहिए, राजनीतिक झुकाव से ऊपर उठकर कार्य करना चाहिए (कथन B सही है)। कथन A ‘आज्ञाकारिता’ को दर्शाता है, कथन C ‘अखंडता’ या ‘ईमानदारी’ को, और कथन D ‘समावेशिता’ या ‘संतुलन’ को, लेकिन ‘गैर-पक्षपात’ को सबसे सटीक रूप से कथन B परिभाषित करता है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. “ओडिशा में किशोरी को जलाए जाने जैसी घटनाएँ केवल कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं हैं, बल्कि यह समाज में गहरे बैठे पितृसत्तात्मक सोच और नैतिक पतन का भी प्रतीक हैं।” टिप्पणी कीजिए और महिला एवं बाल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए। (250 शब्द)
  2. भारत में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव और चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति को देखते हुए, आपदा प्रबंधन तंत्र को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए आप किन उपायों का सुझाव देंगे? शहरी बाढ़ और कृषि पर इसके प्रभावों के विशेष संदर्भ में चर्चा कीजिए। (250 शब्द)
  3. “जनप्रतिनिधि होने का अर्थ विशेषाधिकार प्राप्त होना नहीं, बल्कि अधिक जवाबदेह होना है।” आंध्र प्रदेश के सांसद की गिरफ्तारी के संदर्भ में, भारत में राजनीति के अपराधीकरण की समस्या का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए और इसके समाधान हेतु आवश्यक चुनावी एवं न्यायिक सुधारों पर प्रकाश डालिए। (250 शब्द)
  4. ‘देश पहले’ का आह्वान सार्वजनिक जीवन में नैतिक मूल्यों के महत्व को रेखांकित करता है। सिविल सेवकों के लिए इस सिद्धांत के निहितार्थों पर चर्चा कीजिए और समझाइए कि वे अपने निर्णयों और कार्यों में राष्ट्रहित को कैसे प्राथमिकता दे सकते हैं। (150 शब्द)

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