जयशंकर का खुलासा: आपातकाल का अंत और एक अनमोल संयोग!

जयशंकर का खुलासा: आपातकाल का अंत और एक अनमोल संयोग!

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में, हमारे विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने एक सार्वजनिक मंच पर अपने जीवन के एक असाधारण संयोग को साझा किया। उन्होंने बताया कि जिस दिन भारत में आपातकाल (Emergency) की समाप्ति हुई थी, उसी दिन उनका संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) का इंटरव्यू भी था। यह सिर्फ एक व्यक्तिगत स्मरण नहीं, बल्कि भारत के इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ और व्यक्तिगत आकांक्षाओं के बीच एक अनोखे जुड़ाव को दर्शाता है। यह घटना हमें उस दौर की जटिलताओं, उसके प्रभावों और उन अनुभवों को समझने का अवसर देती है जो हमारे सार्वजनिक जीवन को आकार देते हैं। यह हमें यह भी सोचने पर मजबूर करता है कि कैसे बड़े ऐतिहासिक घटनाक्रम व्यक्तिगत जिंदगियों पर गहरा असर डालते हैं, खासकर उन लोगों पर जो सिविल सेवा के माध्यम से राष्ट्र की सेवा करने का सपना देखते हैं।

भारत का वह विवादास्पद अध्याय: आपातकाल (The Controversial Chapter: The Emergency)

भारत में आपातकाल (1975-1977) भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काला अध्याय माना जाता है। 25 जून, 1975 को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सलाह पर अनुच्छेद 352 के तहत ‘आंतरिक अशांति’ के आधार पर राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की थी। यह घोषणा 21 महीने तक चली और इसके दूरगामी परिणाम हुए।

आपातकाल की संवैधानिक पृष्ठभूमि और प्रावधान

भारतीय संविधान के भाग XVIII में आपातकालीन प्रावधानों का उल्लेख है, जो केंद्र सरकार को किसी भी असामान्य स्थिति से निपटने के लिए असाधारण शक्तियां प्रदान करते हैं। इसके तीन मुख्य प्रकार हैं:

  1. राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352): यह युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह (पहले ‘आंतरिक अशांति’) के आधार पर घोषित किया जा सकता है। आपातकाल के दौरान, संघीय ढांचा एकात्मक हो जाता है, और मौलिक अधिकार निलंबित किए जा सकते हैं।
  2. राज्य आपातकाल/राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356): राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता पर लगाया जाता है।
  3. वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360): भारत या उसके किसी क्षेत्र की वित्तीय स्थिरता या साख को खतरा होने पर लगाया जाता है।

1975 का आपातकाल अनुच्छेद 352 के तहत ‘आंतरिक अशांति’ के आधार पर लगाया गया था।

आपातकाल के तात्कालिक कारण

कई घटनाक्रमों ने 1975 में आपातकाल के मार्ग को प्रशस्त किया:

  • राज नारायण बनाम इंदिरा गांधी केस: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 12 जून, 1975 को इंदिरा गांधी के लोक सभा चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया। उन पर चुनाव में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप था। इस फैसले ने उनके राजनीतिक भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए।
  • जेपी आंदोलन: जयप्रकाश नारायण (जेपी) के नेतृत्व में पूरे देश में सरकार विरोधी आंदोलन तेज हो गया था। यह आंदोलन भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और आर्थिक समस्याओं के खिलाफ था। जेपी ने सेना और पुलिस से सरकार के ‘अवैध’ आदेशों का पालन न करने का आह्वान किया था, जिसे सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा माना।
  • आर्थिक संकट: 1970 के दशक की शुरुआत में उच्च मुद्रास्फीति, बेरोजगारी और तेल संकट ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया था, जिससे जनता में असंतोष बढ़ रहा था।
  • रेलवे हड़ताल: 1974 में जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में एक विशाल रेलवे हड़ताल ने देश के परिवहन को पंगु बना दिया था, जिससे सरकार पर दबाव बढ़ा।

आपातकाल के दौरान उठाए गए कदम और उनके प्रभाव

आपातकाल की घोषणा के साथ ही सरकार ने कई कठोर कदम उठाए, जिनका भारतीय समाज और राजनीति पर गहरा असर पड़ा:

  • मौलिक अधिकारों का निलंबन: संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्रदत्त स्वतंत्रता के अधिकार स्वतः निलंबित हो गए। अनुच्छेद 20 और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) को छोड़कर अन्य सभी मौलिक अधिकारों को भी निलंबित कर दिया गया। मीसा (Maintenance of Internal Security Act – आंतरिक सुरक्षा रखरखाव अधिनियम) जैसे कानूनों का दुरुपयोग करते हुए बड़े पैमाने पर राजनीतिक विरोधियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया।
  • प्रेस पर सेंसरशिप: अखबारों और अन्य मीडिया पर कड़ी सेंसरशिप लागू कर दी गई। सरकार की आलोचना करने वाली खबरों को प्रकाशित करने पर रोक लगा दी गई। यह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर सीधा हमला था।
  • संवैधानिक संशोधन: इस दौरान संविधान में कई विवादित संशोधन किए गए, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण 42वां संशोधन अधिनियम, 1976 था, जिसे ‘लघु संविधान’ भी कहा जाता है। इसने संसद की सर्वोच्चता स्थापित करने और न्यायपालिका की शक्तियों को सीमित करने का प्रयास किया।
    • 42वें संशोधन के मुख्य प्रावधान:
      • लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 5 से बढ़ाकर 6 साल किया गया।
      • प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’, ‘समाजवादी’ और ‘अखंडता’ शब्द जोड़े गए।
      • राज्य सूची के कुछ विषयों को समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया गया।
      • राष्ट्रपति को कैबिनेट की सलाह मानने के लिए बाध्य किया गया।
      • न्यायिक समीक्षा की शक्ति को कम किया गया।
  • न्यायपालिका पर प्रभाव: ए.डी.एम. जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला वाद (ADM Jabalpur v Shiv Kant Shukla case) में सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया कि आपातकाल के दौरान व्यक्ति के मौलिक अधिकार, यहां तक कि अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार भी, लागू करने योग्य नहीं हैं। इसे अक्सर ‘हेबियस कॉर्पस केस’ के नाम से जाना जाता है और इसकी व्यापक आलोचना हुई।
  • बलपूर्वक नसबंदी: संजय गांधी के नेतृत्व में परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत बलपूर्वक नसबंदी अभियान चलाए गए, जिसने जनता में भारी असंतोष पैदा किया।
  • अधिकारों का हनन: नागरिकों के विरोध करने, बोलने और इकट्ठा होने के अधिकारों का बड़े पैमाने पर हनन हुआ।

आपातकाल की समाप्ति और उसके बाद का भारत

आपातकाल 21 मार्च, 1977 को समाप्त हुआ। इंदिरा गांधी ने जनवरी 1977 में लोकसभा भंग कर चुनाव कराने की घोषणा की। उन्हें विश्वास था कि जनता उनके साथ है, लेकिन परिणाम अप्रत्याशित थे।

लोकतंत्र की वापसी और नई सरकार

मार्च 1977 में हुए चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी हार का सामना करना पड़ा। विभिन्न विपक्षी दलों ने एकजुट होकर जनता पार्टी का गठन किया था और ‘लोकतंत्र बचाओ’ के नारे के साथ चुनाव लड़ा। जनता पार्टी ने ऐतिहासिक जीत हासिल की और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में केंद्र में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। यह भारतीय लोकतंत्र की लचीलापन और जनता की शक्ति का प्रमाण था।

44वां संशोधन अधिनियम, 1978

जनता पार्टी सरकार ने 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा किए गए परिवर्तनों को रद्द करने और आपातकाल के दुरुपयोग को रोकने के लिए 44वां संशोधन अधिनियम, 1978 पारित किया। इसके मुख्य प्रावधान थे:

  • लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल पुनः 5 वर्ष किया गया।
  • राष्ट्रपति को कैबिनेट की सलाह को एक बार पुनर्विचार के लिए वापस भेजने की शक्ति दी गई।
  • राष्ट्रीय आपातकाल घोषित करने के लिए ‘आंतरिक अशांति’ शब्द को ‘सशस्त्र विद्रोह’ से प्रतिस्थापित किया गया।
  • अनुच्छेद 20 और 21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों को राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सकता, यह प्रावधान जोड़ा गया। यह संविधान में एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच था।

शाह आयोग (Shah Commission)

जनता पार्टी सरकार ने आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों की जांच के लिए न्यायमूर्ति जे.सी. शाह की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया। शाह आयोग ने आपातकाल के दौरान किए गए मनमानी और अत्याचारों का विस्तृत खुलासा किया, जिसने तत्कालीन सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए।

जयशंकर का अनुभव: संयोग से कहीं अधिक (Jaishankar’s Experience: More Than Coincidence)

डॉ. एस. जयशंकर का यह बयान कि उनका UPSC इंटरव्यू आपातकाल की समाप्ति के दिन हुआ, सिर्फ एक ऐतिहासिक संयोग नहीं है, बल्कि यह कई मायनों में प्रतीकात्मक है। एक ऐसे समय में जब देश में लोकतंत्र की बहाली हो रही थी, एक युवा जयशंकर भारत की प्रतिष्ठित सिविल सेवा में प्रवेश के लिए अपनी परीक्षा दे रहे थे। यह घटना दर्शाती है कि कैसे व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं और बड़े राष्ट्रीय घटनाक्रम आपस में जुड़े होते हैं।

कल्पना कीजिए उस माहौल की: देश में अनिश्चितता और तनाव का माहौल, मौलिक अधिकारों का दमन, और फिर अचानक चुनाव की घोषणा और आपातकाल की समाप्ति की खबर। यह एक ऐसे भारत का निर्माण कर रहा था जो भविष्य के लिए नई दिशाएं तलाश रहा था। एक सिविल सेवक के रूप में, उस समय के अनुभवों ने निश्चित रूप से जयशंकर जैसे व्यक्ति के दृष्टिकोण और निर्णय लेने की क्षमता को आकार दिया होगा।

UPSC उम्मीदवारों के लिए सबक

यह घटना UPSC उम्मीदवारों के लिए कई महत्वपूर्ण सबक प्रदान करती है:

  1. इतिहास की गहरी समझ: आपातकाल सिर्फ एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति, समाज और संवैधानिक विकास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इसे केवल तथ्यों के रूप में नहीं, बल्कि इसके प्रभावों, कारणों और परिणामों के साथ समग्र रूप से समझना महत्वपूर्ण है।
  2. लोकतांत्रिक मूल्यों का महत्व: आपातकाल ने हमें लोकतंत्र, स्वतंत्रता, मौलिक अधिकारों और कानून के शासन के महत्व को गहराई से समझाया। सिविल सेवकों के लिए इन मूल्यों में अटूट विश्वास रखना और उनकी रक्षा करना अत्यंत आवश्यक है।
  3. संकट के समय शासन: आपातकाल के दौरान सिविल सेवा के विभिन्न अंगों की भूमिका विवादास्पद रही। यह घटना उम्मीदवारों को यह सोचने पर मजबूर करती है कि संकट के समय एक सिविल सेवक को नैतिक रूप से कैसे कार्य करना चाहिए, संविधान के प्रति अपनी निष्ठा कैसे बनाए रखनी चाहिए और जनता के कल्याण को प्राथमिकता कैसे देनी चाहिए।
  4. व्यक्तिगत लचीलापन और अनुकूलनशीलता: जयशंकर का अनुभव बताता है कि कैसे बड़े बदलावों के बीच भी व्यक्ति को अपने लक्ष्यों के प्रति केंद्रित रहना चाहिए। सिविल सेवक के रूप में, उन्हें अप्रत्याशित चुनौतियों और बदलती परिस्थितियों के अनुकूल होने के लिए तैयार रहना चाहिए।
  5. नैतिकता और अखंडता: आपातकाल ने नैतिकता और अखंडता के महत्व को उजागर किया। एक सिविल सेवक को हमेशा संविधान के सिद्धांतों और सार्वजनिक सेवा के उच्चतम नैतिक मानकों का पालन करना चाहिए, भले ही दबाव कितना भी क्यों न हो।

UPSC परीक्षा के लिए आपातकाल: एक व्यापक दृष्टिकोण

आपातकाल का विषय UPSC सिविल सेवा परीक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह विभिन्न जीएस (सामान्य अध्ययन) के पेपरों और इंटरव्यू में पूछा जा सकता है।

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) के लिए

  • मुख्य तथ्य और तिथियां: आपातकाल की घोषणा की तारीख (25 जून, 1975), समाप्ति की तारीख (21 मार्च, 1977)।
  • संवैधानिक प्रावधान: अनुच्छेद 352, 356, 360। ‘आंतरिक अशांति’ बनाम ‘सशस्त्र विद्रोह’ का अंतर।
  • महत्वपूर्ण संशोधन: 38वां, 39वां और विशेष रूप से 42वां और 44वां संशोधन अधिनियम। इन संशोधनों के मुख्य प्रावधान।
  • प्रमुख व्यक्तित्व: इंदिरा गांधी, जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, फखरुद्दीन अली अहमद, न्यायमूर्ति जे.सी. शाह।
  • महत्वपूर्ण केस: ए.डी.एम. जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला वाद (हेबियस कॉर्पस केस) और केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य वाद (हालांकि यह आपातकाल से ठीक पहले का है, यह ‘संविधान के मूल ढांचे’ के सिद्धांत को स्थापित करता है, जो आपातकाल के दौरान किए गए संशोधनों के संदर्भ में महत्वपूर्ण है)।
  • प्रभावित मौलिक अधिकार: विशेष रूप से अनुच्छेद 19, 20, 21।

मुख्य परीक्षा (Mains) के लिए

मुख्य परीक्षा के लिए उम्मीदवारों को आपातकाल का विश्लेषण करने की क्षमता विकसित करनी होगी।

  1. आपातकाल के कारण और औचित्य: क्या आपातकाल वास्तव में आवश्यक था? इसके पक्ष और विपक्ष में तर्क।
  2. आपातकाल के प्रभाव:
    • राजनीतिक प्रभाव: एक दलीय प्रभुत्व का अंत, जनता पार्टी का उदय, संघीय ढांचे पर प्रभाव।
    • संवैधानिक प्रभाव: 42वें और 44वें संशोधन की भूमिका, न्यायिक समीक्षा और संसद की संप्रभुता पर बहस।
    • सामाजिक प्रभाव: मौलिक अधिकारों का हनन, प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश, जबरन नसबंदी।
    • आर्थिक प्रभाव: कुछ हद तक कीमतों पर नियंत्रण, लेकिन आर्थिक विकास पर नकारात्मक असर।
  3. न्यायपालिका की भूमिका: ए.डी.एम. जबलपुर मामले में न्यायपालिका की भूमिका की आलोचना और उसके बाद के सबक। न्यायिक सक्रियता का महत्व।
  4. प्रेस और मीडिया की भूमिका: सेंसरशिप और मीडिया की जिम्मेदारी पर बहस।
  5. भारतीय लोकतंत्र पर आपातकाल के दीर्घकालिक प्रभाव: इसने भारतीय लोकतंत्र को कैसे मजबूत या कमजोर किया? लोकतांत्रिक संस्थानों की लचीलापन।
  6. शासन (Governance) और नैतिकता (Ethics) से जुड़ाव: संकट के समय सिविल सेवा और राजनीतिक नेतृत्व की नैतिक जिम्मेदारियां।
  7. तुलनात्मक अध्ययन: अन्य देशों में आपातकालीन प्रावधानों और उनके अनुभवों के साथ तुलना।
  8. सबक और भविष्य की राह: आपातकाल से हमने क्या सीखा? भविष्य में ऐसी स्थिति को रोकने के लिए क्या उपाय किए गए हैं और क्या किए जाने चाहिए? (उदा. 44वां संशोधन, स्वतंत्र न्यायपालिका, जागरूक नागरिक समाज)।

“आपातकाल ने हमें सिखाया कि लोकतंत्र कितना नाजुक हो सकता है और इसकी रक्षा के लिए निरंतर सतर्कता और संस्थागत सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है। यह भारतीय लोकतंत्र की आत्म-सुधार की क्षमता का भी एक प्रमाण है।”

निष्कर्ष

डॉ. एस. जयशंकर का व्यक्तिगत अनुभव हमें भारत के एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक क्षण की याद दिलाता है। आपातकाल सिर्फ एक अतीत का अध्याय नहीं है, बल्कि यह आज भी हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों, संवैधानिक प्रावधानों और नागरिक स्वतंत्रता पर बहस के केंद्र में है। UPSC उम्मीदवारों के लिए, इस विषय की गहराई से समझ केवल परीक्षा के लिए नहीं, बल्कि एक जिम्मेदार और संवेदनशील सिविल सेवक के रूप में उनके भविष्य के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह उन्हें संविधान के प्रति अपनी निष्ठा, लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और जनता की सेवा के प्रति अपने नैतिक दायित्वों को समझने में मदद करता है।

आपातकाल से हमने सीखा कि सत्ता का केंद्रीकरण और लोकतांत्रिक संस्थाओं का कमजोर होना कितना खतरनाक हो सकता है। 44वें संशोधन जैसे सुरक्षा उपाय यह सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए थे कि भारत को फिर कभी ऐसे दौर से न गुजरना पड़े। एक सिविल सेवक के रूप में, यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप इन सुरक्षा उपायों को बनाए रखें और संविधान के मूल सिद्धांतों की रक्षा करें, ताकि भविष्य में कभी भी किसी भी नागरिक को अपने मौलिक अधिकारों के हनन का सामना न करना पड़े। जयशंकर के इस संयोग ने हमें याद दिलाया है कि इतिहास केवल किताबों में नहीं, बल्कि हमारे जीवन के अनमोल क्षणों और भविष्य की राहों में भी जीवंत रहता है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(निम्नलिखित प्रश्नों पर विचार करें)

1. भारत में राष्ट्रीय आपातकाल (1975-77) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. यह ‘आंतरिक अशांति’ के आधार पर घोषित किया गया था।
  2. अनुच्छेद 20 और 21 के तहत मौलिक अधिकार इस दौरान भी निलंबित नहीं किए जा सकते थे।
  3. इसे पहली बार 44वें संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा ‘सशस्त्र विद्रोह’ शब्द से प्रतिस्थापित किया गया था।

उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

  1. केवल a
  2. केवल a और c
  3. केवल b और c
  4. a, b और c

उत्तर: B
व्याख्या:
कथन a सही है। 1975 का आपातकाल ‘आंतरिक अशांति’ के आधार पर घोषित किया गया था।
कथन b गलत है। ए.डी.एम. जबलपुर वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 21 सहित मौलिक अधिकार निलंबित हो सकते हैं। अनुच्छेद 20 और 21 को आपातकाल के दौरान भी निलंबित नहीं करने का प्रावधान 44वें संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा जोड़ा गया था।
कथन c सही है। 44वें संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा ‘आंतरिक अशांति’ शब्द को ‘सशस्त्र विद्रोह’ से प्रतिस्थापित किया गया था।

2. 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. इसने लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष से घटाकर 4 वर्ष कर दिया था।
  2. इसने प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ शब्द जोड़े।
  3. इसने न्यायिक समीक्षा की शक्ति को बढ़ा दिया।

उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

  1. केवल a
  2. केवल b
  3. केवल a और c
  4. a, b और c

उत्तर: B
व्याख्या:
कथन a गलत है। इसने लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष से बढ़ाकर 6 वर्ष कर दिया था (जिसे बाद में 44वें संशोधन द्वारा वापस 5 वर्ष किया गया)।
कथन b सही है। ये तीन शब्द प्रस्तावना में जोड़े गए थे।
कथन c गलत है। 42वें संशोधन ने न्यायिक समीक्षा की शक्ति को कम करने का प्रयास किया था।

3. भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद राष्ट्रपति को ‘वित्तीय आपातकाल’ घोषित करने की शक्ति प्रदान करता है?

  1. अनुच्छेद 352
  2. अनुच्छेद 356
  3. अनुच्छेद 360
  4. अनुच्छेद 365

उत्तर: C
व्याख्या: अनुच्छेद 360 राष्ट्रपति को वित्तीय आपातकाल घोषित करने की शक्ति प्रदान करता है। अनुच्छेद 352 राष्ट्रीय आपातकाल से और अनुच्छेद 356 राज्य आपातकाल/राष्ट्रपति शासन से संबंधित है।

4. किस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार भी लागू करने योग्य नहीं है?

  1. केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य
  2. मेनका गांधी बनाम भारत संघ
  3. गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य
  4. ए.डी.एम. जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला

उत्तर: D
व्याख्या: ए.डी.एम. जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला वाद (जिसे हेबियस कॉर्पस केस भी कहा जाता है) में सर्वोच्च न्यायालय ने यह विवादित फैसला सुनाया था।

5. 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?

  1. इसने राष्ट्रीय आपातकाल के लिए ‘आंतरिक अशांति’ को ‘बाहरी आक्रमण’ से प्रतिस्थापित किया।
  2. इसने राष्ट्रपति को कैबिनेट की सलाह को एक बार पुनर्विचार के लिए वापस भेजने की शक्ति दी।
  3. इसने अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रपति शासन की घोषणा को अधिकृत किया।
  4. इसने मौलिक कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा।

उत्तर: B
व्याख्या:
कथन A गलत है। इसने ‘आंतरिक अशांति’ को ‘सशस्त्र विद्रोह’ से प्रतिस्थापित किया, न कि ‘बाहरी आक्रमण’ से।
कथन B सही है। यह प्रावधान 44वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया था।
कथन C गलत है। अनुच्छेद 352 राष्ट्रीय आपातकाल से संबंधित है, राष्ट्रपति शासन अनुच्छेद 356 के तहत आता है।
कथन D गलत है। मौलिक कर्तव्यों को 42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया था।

6. आपातकाल (1975-77) के दौरान मौलिक अधिकारों के निलंबन के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन सा सत्य है?

  1. सभी मौलिक अधिकार स्वतः निलंबित हो गए।
  2. केवल अनुच्छेद 19 के तहत अधिकार निलंबित हुए।
  3. अनुच्छेद 20 और 21 के तहत अधिकार स्वतः निलंबित हो गए थे, जबकि अन्य को राष्ट्रपति आदेश से निलंबित किया जा सकता था।
  4. अनुच्छेद 19 के तहत अधिकार स्वतः निलंबित हो गए, जबकि अन्य मौलिक अधिकारों को राष्ट्रपति आदेश द्वारा निलंबित किया जा सकता था।

उत्तर: D
व्याख्या: आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 19 (छह स्वतंत्रताएँ) स्वतः निलंबित हो जाती हैं। अन्य मौलिक अधिकारों को राष्ट्रपति के आदेश से निलंबित किया जा सकता है। अनुच्छेद 20 और 21 को आपातकाल के दौरान भी निलंबित न करने का प्रावधान 44वें संशोधन (1978) द्वारा जोड़ा गया था, 1975 के आपातकाल के दौरान नहीं।

7. किस समिति/आयोग का गठन 1975 के आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों की जांच के लिए किया गया था?

  1. सरकारिया आयोग
  2. पुंछी आयोग
  3. शाह आयोग
  4. कोठारी आयोग

उत्तर: C
व्याख्या: शाह आयोग का गठन मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी सरकार द्वारा आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों की जांच के लिए किया गया था।

8. 1975 के आपातकाल के दौरान प्रेस पर लगाई गई सेंसरशिप का मुख्य उद्देश्य था:

  1. सरकार की नीतियों को बढ़ावा देना।
  2. सामाजिक सद्भाव बनाए रखना।
  3. सरकार विरोधी विचारों और आलोचनाओं को रोकना।
  4. केवल विदेशी समाचारों को नियंत्रित करना।

उत्तर: C
व्याख्या: आपातकाल के दौरान प्रेस पर कड़ी सेंसरशिप लगाई गई थी ताकि सरकार की आलोचना करने वाली खबरों और विचारों को प्रकाशित होने से रोका जा सके और विरोध को दबाया जा सके।

9. भारतीय संविधान के किस भाग में आपातकालीन प्रावधानों का उल्लेख है?

  1. भाग XV
  2. भाग XVI
  3. भाग XVII
  4. भाग XVIII

उत्तर: D
व्याख्या: भारतीय संविधान के भाग XVIII (अनुच्छेद 352 से 360) में आपातकालीन प्रावधानों का उल्लेख है।

10. जयप्रकाश नारायण (जेपी) के नेतृत्व में ‘संपूर्ण क्रांति’ आंदोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था, जो 1975 के आपातकाल से पहले महत्वपूर्ण था?

  1. केवल आर्थिक सुधारों की मांग करना।
  2. केवल राजनीतिक भ्रष्टाचार का विरोध करना।
  3. समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था में व्यापक बदलाव लाना।
  4. अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को मजबूत करना।

उत्तर: C
व्याख्या: जयप्रकाश नारायण का ‘संपूर्ण क्रांति’ आंदोलन सिर्फ आर्थिक या राजनीतिक मुद्दों तक सीमित नहीं था, बल्कि यह समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था में समग्र और व्यापक बदलाव लाने का आह्वान था, जिसका उद्देश्य एक न्यायपूर्ण और समतावादी समाज की स्थापना करना था।

मुख्य परीक्षा (Mains)

(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 250-400 शब्दों में दें)

1. 1975 के राष्ट्रीय आपातकाल के कारणों और उसके द्वारा भारतीय राजनीति, समाज तथा संवैधानिक संरचना पर पड़े दीर्घकालिक प्रभावों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। क्या आप मानते हैं कि आपातकाल भारतीय लोकतंत्र के लिए एक ‘लचीलेपन का परीक्षण’ था या ‘एक काला धब्बा’?

2. 42वें और 44वें संविधान संशोधन अधिनियम भारतीय संवैधानिक इतिहास में मील के पत्थर हैं। इन दोनों संशोधनों के प्रमुख प्रावधानों की तुलना करें और बताएं कि कैसे इन्होंने आपातकाल के अनुभवों से सबक सीखते हुए लोकतांत्रिक सुरक्षा उपायों को मजबूत किया।

3. “एक सिविल सेवक के लिए, संकट के समय संविधान के प्रति निष्ठा और नैतिक साहस सर्वोपरि है।” डॉ. एस. जयशंकर के आपातकाल और उनके UPSC इंटरव्यू से जुड़े अनुभव के संदर्भ में इस कथन का मूल्यांकन करें। सिविल सेवकों के लिए ऐसे ऐतिहासिक अनुभवों से क्या महत्वपूर्ण सबक सीखे जा सकते हैं?

4. ‘आंतरिक अशांति’ के आधार पर आपातकाल की घोषणा और बाद में इसे ‘सशस्त्र विद्रोह’ से प्रतिस्थापित करने के संवैधानिक औचित्य पर चर्चा करें। क्या भारत में आपातकालीन प्रावधानों का स्वरूप वर्तमान में लोकतांत्रिक मूल्यों और मौलिक अधिकारों के लिए पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करता है?

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