जब रील्स बनी मौत का फंदा: एक पिता के क्रोध और सामाजिक दबाव का दुखद अंत

जब रील्स बनी मौत का फंदा: एक पिता के क्रोध और सामाजिक दबाव का दुखद अंत

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में सामने आई एक वीभत्स घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। एक पिता द्वारा अपनी ही बेटी, राधिका यादव, की निर्मम हत्या का मामला सामने आया है। इस घटना का मूल कारण गाँव वालों के ताने और बेटी द्वारा सोशल मीडिया पर ‘रील्स’ बनाने का कथित “अपमान” बताया जा रहा है। यह सिर्फ एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि भारतीय समाज में गहरे पैठ चुकी पितृसत्ता, सम्मान की मिथ्या अवधारणा, डिजिटल युग के प्रभाव और पीढ़ियों के बीच बढ़ती खाई का एक दुखद प्रतिबिंब है। यह घटना हमें समाजशास्त्रीय, नैतिक, कानूनी और शासन संबंधी कई महत्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार करने के लिए मजबूर करती है, जो सिविल सेवा उम्मीदवारों के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं।

एक त्रासदी की परतें: ‘रील्स’ से ‘हत्या’ तक का सफर

राधिका यादव हत्याकांड सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि यह उन अदृश्य संघर्षों को उजागर करता है जो ग्रामीण भारत में आधुनिकता और परंपरा के बीच पनप रहे हैं। आइए, इस घटना के विभिन्न आयामों को गहराई से समझते हैं:

1. सामाजिक ‘सम्मान’ की मिथ्या अवधारणा और उसका दबाव

“समाज क्या कहेगा?” – यह एक ऐसा प्रश्न है जिसने अनगिनत परिवारों के फैसलों को प्रभावित किया है, और कई बार जिंदगियों को भी निगल लिया है। राधिका के मामले में, गाँव वालों के ताने और कथित ‘बेइज़्ज़ती’ ने पिता पर ऐसा दबाव बनाया कि उन्होंने अपने ही खून को खत्म कर दिया।

  • इज़्ज़त बनाम इज़्ज़त का भ्रम: भारतीय समाज में, विशेषकर ग्रामीण और रूढ़िवादी क्षेत्रों में, ‘इज़्ज़त’ (सम्मान) एक सर्वोपरि सामाजिक पूंजी मानी जाती है। यह परिवार की प्रतिष्ठा से जुड़ी होती है, और अक्सर महिलाओं के व्यवहार, पहनावे और स्वतंत्रता पर केंद्रित होती है। बेटियों को ‘परिवार की इज़्ज़त’ का रक्षक माना जाता है। ऐसे में, सोशल मीडिया पर ‘रील्स’ बनाना, जिसे कुछ लोग ‘सार्वजनिक प्रदर्शन’ या ‘निर्लज्जता’ के रूप में देखते हैं, इस इज़्ज़त पर सीधा हमला माना गया।
  • गाँव की पंचायत और सामाजिक नियंत्रण: गाँव एक सूक्ष्म समाज होता है जहाँ हर व्यक्ति एक-दूसरे को जानता है। सामाजिक नियंत्रण के अनौपचारिक साधन (जैसे ताने, गपशप, बहिष्कार की धमकी) बहुत शक्तिशाली होते हैं। राधिका के पिता पर गाँव के लोगों द्वारा किए गए अपमानजनक टिप्पणियों ने उन्हें अत्यधिक मानसिक दबाव में ला दिया, जिससे उन्होंने ‘सम्मान’ वापस पाने के लिए यह चरम कदम उठाया। यह दर्शाता है कि कैसे सामाजिक दबाव व्यक्ति की तर्कसंगतता को खत्म कर सकता है।

2. डिजिटल युग का दोहरा प्रभाव: अवसर और संघर्ष

सोशल मीडिया, विशेष रूप से ‘रील्स’ और ‘शॉर्ट वीडियो’ प्लेटफॉर्म, ग्रामीण युवाओं के बीच तेजी से लोकप्रिय हुए हैं। यह अभिव्यक्ति, मनोरंजन और यहां तक कि आजीविका का एक नया माध्यम बन गया है, लेकिन इसके साथ ही इसने नए सामाजिक संघर्षों को भी जन्म दिया है।

  • युवाओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: आज के युवा, विशेषकर लड़कियाँ, अपनी पहचान बनाने और रचनात्मकता को व्यक्त करने के लिए इन प्लेटफॉर्मों का उपयोग कर रही हैं। वे खुद को दुनिया के सामने लाना चाहती हैं, अपनी प्रतिभा दिखाना चाहती हैं, और मुख्यधारा से जुड़ना चाहती हैं।
  • परंपरा और आधुनिकता का टकराव: वहीं, अभिभावकों और बड़े-बुजुर्गों के लिए, जो एक अलग सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में पले-बढ़े हैं, यह सब ‘बेशर्मी’ या ‘असंस्कारी’ लग सकता है। वे अपनी बेटियों को ‘चार दीवारी’ के भीतर या पारंपरिक भूमिकाओं में देखना पसंद करते हैं। यहीं पर पीढ़ियों के बीच एक बड़ा टकराव उत्पन्न होता है। यह टकराव केवल राधिका के घर में नहीं, बल्कि ऐसे कई परिवारों में देखा जा सकता है।
  • डिजिटल साक्षरता का अभाव: ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर डिजिटल साक्षरता का अभाव होता है, विशेषकर अभिभावकों के बीच। वे सोशल मीडिया की प्रकृति, उसकी पहुंच और उसके संभावित उपयोग (सकारात्मक या नकारात्मक) को पूरी तरह से नहीं समझ पाते। यह समझ की कमी अक्सर डर और विरोध में बदल जाती है।

3. पितृसत्ता की गहरी जड़ें और महिला सशक्तिकरण का विरोधाभास

यह घटना पितृसत्तात्मक मानसिकता का एक ज्वलंत उदाहरण है, जहाँ पुरुषों को परिवार और विशेषकर महिलाओं के ‘नैतिक संरक्षक’ के रूप में देखा जाता है।

  • निर्णय लेने का अधिकार: पितृसत्तात्मक समाजों में, महिलाओं के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण निर्णय अक्सर पुरुषों द्वारा लिए जाते हैं। महिला की स्वतंत्रता को परिवार के पुरुषों के ‘अधिकार’ के रूप में देखा जाता है। जब कोई महिला इस अधिकार को चुनौती देती है या अपनी इच्छा से कुछ करती है, तो इसे पितृसत्तात्मक व्यवस्था पर हमला माना जाता है।
  • दोहरे मापदंड (Double Standards): अक्सर, लड़कों के लिए सोशल मीडिया पर खुद को व्यक्त करने की अधिक स्वतंत्रता होती है, जबकि लड़कियों पर ‘मर्यादा’ के नाम पर कई पाबंदियाँ लगाई जाती हैं। यह लैंगिक असमानता का स्पष्ट प्रमाण है।
  • ‘ऑनर किलिंग’ का छिपा स्वरूप: भले ही इस घटना को सीधे तौर पर ‘ऑनर किलिंग’ न कहा जाए, लेकिन इसके पीछे की भावना ‘सम्मान’ के नाम पर की गई हिंसा से मिलती-जुलती है। ‘ऑनर किलिंग’ तब होती है जब कोई व्यक्ति (विशेषकर महिला) परिवार या समुदाय के कथित ‘सम्मान’ को ठेस पहुँचाता है और उसे दंडित किया जाता है, अक्सर मौत के घाट उतारकर। यहाँ भी, ‘सम्मान’ की रक्षा के लिए हिंसा का सहारा लिया गया।

4. पीढ़ियों के बीच बढ़ता अंतराल (Generational Gap)

आधुनिकता और परंपरा के बीच की खाई, विशेषकर युवा और बुजुर्ग पीढ़ी के बीच, इस त्रासदी का एक महत्वपूर्ण कारक है।

  • विश्वदृष्टि में अंतर: युवा पीढ़ी की विश्वदृष्टि अधिक वैश्विक, व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर केंद्रित और डिजिटल प्रभावों से युक्त है। वहीं, पुरानी पीढ़ी की विश्वदृष्टि स्थानीय, सामूहिक मूल्यों पर केंद्रित और परंपरावादी है।
  • संवादहीनता: अक्सर, इन दोनों पीढ़ियों के बीच सार्थक संवाद की कमी होती है। युवा अपनी बात समझा नहीं पाते, और बुजुर्ग उनकी भावनाओं को समझ नहीं पाते। इस संवादहीनता से गलतफहमियाँ और संघर्ष बढ़ते हैं।

कानूनी और नैतिक आयाम: एक विस्तृत विश्लेषण

1. कानूनी दृष्टिकोण (Legal Perspective)

राधिका यादव हत्याकांड भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत एक गंभीर आपराधिक अपराध है।

  • हत्या (Murder – IPC Section 302): यह स्पष्ट रूप से हत्या का मामला है, जिसमें किसी व्यक्ति को मारने के इरादे से कार्य किया जाता है। दोषी को आजीवन कारावास या मृत्युदंड की सजा हो सकती है।
  • ‘ऑनर किलिंग’ की चुनौती: भारत में ‘ऑनर किलिंग’ को लेकर कोई विशिष्ट कानून नहीं है, लेकिन इसे हत्या के गंभीरतम मामलों में गिना जाता है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार ‘ऑनर किलिंग’ की निंदा की है और इसे ‘बर्बर’ और ‘अमानवीय’ कृत्य बताया है। सर्वोच्च न्यायालय ने शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ (Shakti Vahini vs Union of India, 2018) मामले में ‘ऑनर किलिंग’ को रोकने के लिए निवारक, उपचारात्मक और दंडात्मक उपाय सुझाए थे, जिनमें सामाजिक जागरूकता, पुलिस हस्तक्षेप और विशेष अदालतों का गठन शामिल था।
  • पितृसत्तात्मक हिंसा: यह घटना लैंगिक हिंसा का भी एक उदाहरण है, जहाँ पितृसत्तात्मक मानदंडों को बनाए रखने के लिए महिलाओं के खिलाफ हिंसा का प्रयोग किया जाता है।
  • कानून का शासन (Rule of Law): कोई भी सामाजिक ‘सम्मान’ या दबाव किसी व्यक्ति को कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं देता। कानून का शासन सुनिश्चित करता है कि न्यायपालिका ही दोषियों को दंडित करने की एकमात्र अधिकृत संस्था है।

2. नैतिक दुविधाएँ (Ethical Dilemmas)

यह घटना कई गहरी नैतिक दुविधाओं को जन्म देती है, जो GS-4 (Ethics, Integrity & Aptitude) के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं:

  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता बनाम पारिवारिक/सामाजिक मूल्य: एक व्यक्ति को अपनी इच्छा से जीने और खुद को व्यक्त करने की कितनी स्वतंत्रता होनी चाहिए, और कहाँ पर पारिवारिक या सामाजिक मूल्यों का सम्मान करना आवश्यक हो जाता है? राधिका के मामले में, व्यक्तिगत स्वतंत्रता को क्रूरता से कुचल दिया गया।
  • माता-पिता का अधिकार बनाम बच्चे के अधिकार: माता-पिता को अपने बच्चों को अनुशासित करने और दिशा दिखाने का अधिकार है, लेकिन क्या यह अधिकार बच्चे के जीवन के अधिकार और शारीरिक अखंडता पर हावी हो सकता है? भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार सभी नागरिकों को प्राप्त है, जिसमें अपनी गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है।
  • भावनात्मक बुद्धिमत्ता (Emotional Intelligence): राधिका के पिता का क्रोध और निराशा चरम पर पहुँच गई, जो उनकी भावनाओं को नियंत्रित करने में विफलता दर्शाती है। यदि उन्होंने अपने क्रोध को सकारात्मक तरीके से प्रबंधित किया होता या समस्या का समाधान संवाद से किया होता, तो शायद यह त्रासदी टाली जा सकती थी।
  • सामाजिक दबाव और नैतिक निर्णय: क्या कोई व्यक्ति सामाजिक दबाव के कारण अनैतिक या आपराधिक कार्य कर सकता है? यह घटना दर्शाती है कि सामाजिक दबाव कैसे एक व्यक्ति के नैतिक कम्पास को भ्रमित कर सकता है। एक नागरिक के रूप में, हमें सामाजिक अन्याय के खिलाफ खड़े होने और गलत परंपराओं को चुनौती देने का नैतिक दायित्व निभाना चाहिए।
  • कर्तव्य का संकुचित अर्थ: पिता ने अपने ‘कर्तव्य’ को परिवार के सम्मान की रक्षा के रूप में देखा, लेकिन वे अपने बच्चों के जीवन की रक्षा करने के अपने प्राथमिक कर्तव्य को भूल गए। यह कर्तव्य की संकुचित और विकृत व्याख्या है।

चुनौतियाँ और आगे की राह (Challenges and Way Forward)

राधिका यादव जैसी घटनाओं को रोकने और एक अधिक न्यायपूर्ण व संवेदनशील समाज बनाने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

चुनौतियाँ:

  1. गहरी जड़ें जमाई पितृसत्ता: सदियों से चली आ रही पितृसत्तात्मक सोच को बदलना सबसे बड़ी चुनौती है।
  2. डिजिटल साक्षरता का अभाव: ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल तकनीक के सही उपयोग और उसके जोखिमों के बारे में जागरूकता की कमी।
  3. संवादहीनता: युवा और वृद्ध पीढ़ियों के बीच प्रभावी संवाद तंत्र की कमी।
  4. मानसिक स्वास्थ्य और क्रोध प्रबंधन: ग्रामीण क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता और क्रोध जैसी भावनाओं के प्रबंधन के बारे में जागरूकता की कमी।
  5. कानून प्रवर्तन की संवेदनशीलता: पुलिस और न्यायपालिका को ऐसे मामलों में अधिक संवेदनशील और त्वरित कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

आगे की राह (Way Forward):

1. शिक्षा और जागरूकता अभियान:

  • लैंगिक संवेदनशीलता: स्कूलों के पाठ्यक्रम में लैंगिक समानता, महिलाओं के अधिकारों और सम्मान की सही परिभाषा को शामिल किया जाना चाहिए। गाँव स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए जाएँ जो पुरुषों और महिलाओं दोनों को लैंगिक समानता के महत्व के बारे में शिक्षित करें।
  • डिजिटल साक्षरता: ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों और अभिभावकों दोनों के लिए डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम चलाए जाएँ। उन्हें सोशल मीडिया के फायदे और नुकसान, ऑनलाइन सुरक्षा और जिम्मेदारी से उपयोग के बारे में बताया जाए।
  • सम्मान की अवधारणा का पुनर्गठन: ‘इज्जत’ की अवधारणा को व्यक्ति के नैतिक चरित्र, ईमानदारी और कानून के पालन से जोड़ना चाहिए, न कि परिवार की महिलाओं के व्यवहार या पहनावे से।

2. कानूनी और प्रशासनिक उपाय:

  • कड़े कानून प्रवर्तन: ‘ऑनर किलिंग’ और ऐसी अन्य हिंसा के मामलों में त्वरित जांच और दंड सुनिश्चित किया जाना चाहिए। दोषियों को मिसाल कायम करने वाली सजा मिलनी चाहिए ताकि दूसरों को ऐसी घटनाओं को अंजाम देने से रोका जा सके।
  • पुलिस की संवेदनशीलता: पुलिस अधिकारियों को लैंगिक हिंसा और सामाजिक दबाव से जुड़े मामलों से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। उन्हें पीड़ितों और उनके परिवारों को संवेदनशीलता से सुनना चाहिए।
  • परामर्श सेवाएँ: परिवारों के भीतर संघर्षों को सुलझाने के लिए समुदाय आधारित परामर्श और मध्यस्थता केंद्रों की स्थापना की जानी चाहिए, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में।

3. समुदाय की भूमिका:

  • स्वयंसेवी संगठन और एनजीओ: इन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में लैंगिक समानता, महिला अधिकारों और हिंसा के खिलाफ जागरूकता फैलाने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
  • सामुदायिक नेताओं की भूमिका: ग्राम प्रधान, धार्मिक नेता और अन्य प्रभावशाली व्यक्ति सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन के लिए प्रेरक के रूप में कार्य कर सकते हैं, पितृसत्तात्मक मानदंडों को चुनौती दे सकते हैं और लैंगिक समानता का समर्थन कर सकते हैं।
  • पीढ़ीगत संवाद: परिवारों को युवा और बुजुर्ग पीढ़ियों के बीच खुले और सम्मानजनक संवाद को बढ़ावा देना चाहिए। अभिभावकों को बच्चों की भावनाओं और आकांक्षाओं को समझने का प्रयास करना चाहिए।

4. मानसिक स्वास्थ्य सहायता:

  • ग्रामीण क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य सहायता सेवाओं तक पहुँच बढ़ाना। क्रोध प्रबंधन, तनाव और पारिवारिक संघर्षों से निपटने के लिए परामर्श सुविधाएँ उपलब्ध होनी चाहिए।

5. मीडिया की जिम्मेदारी:

  • मीडिया को ऐसी घटनाओं की रिपोर्टिंग करते समय संवेदनशीलता और जिम्मेदारी दिखानी चाहिए। उन्हें केवल सनसनीखेज पहलू पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, घटना के मूल कारणों और समाजशास्त्रीय आयामों को उजागर करना चाहिए।

निष्कर्ष (Conclusion)

राधिका यादव हत्याकांड भारतीय समाज के अंतर्विरोधों का एक मार्मिक उदाहरण है। यह दर्शाता है कि कैसे आधुनिकता की तीव्र धाराएँ भी सदियों पुरानी रूढ़ियों और पितृसत्तात्मक मूल्यों की चट्टानों से टकराकर बिखर जाती हैं। यह घटना केवल एक अपराध नहीं, बल्कि एक सामाजिक बीमारी का लक्षण है जो हमारे सामूहिक विवेक को चुनौती देता है।

एक प्रगतिशील समाज के रूप में, हमें इस त्रासदी से सीखना होगा। हमें सिर्फ कानून प्रवर्तन से आगे बढ़कर, सामाजिक मानदंडों, शिक्षा और आपसी संवाद में बदलाव लाना होगा। हमें ‘सम्मान’ की उस खोखली अवधारणा को तोड़ना होगा जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानव जीवन पर हावी हो जाती है। जब तक हर व्यक्ति, विशेषकर हर बेटी, बिना किसी डर या दबाव के अपनी पहचान और सपनों को पूरा करने के लिए स्वतंत्र नहीं होगी, तब तक ‘नए भारत’ का सपना अधूरा ही रहेगा। यह समय है जब हमें डिजिटल युग के अवसरों को समाज के लिए सुरक्षित और समावेशी बनाना होगा, न कि उन्हें संघर्ष और हिंसा का कारण बनने देना होगा।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(यहाँ 10 MCQs, उनके उत्तर और व्याख्या प्रदान करें)

  1. ‘ऑनर किलिंग’ के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. भारत में ‘ऑनर किलिंग’ को परिभाषित करने वाला कोई विशिष्ट कानून नहीं है।
    2. सर्वोच्च न्यायालय ने शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ मामले में ‘ऑनर किलिंग’ को रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे।
    3. ‘ऑनर किलिंग’ केवल अंतर-जातीय विवाहों तक ही सीमित है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
    (a) केवल 1 और 2
    (b) केवल 2 और 3
    (c) केवल 1 और 3
    (d) 1, 2 और 3
    उत्तर: (a)
    व्याख्या: कथन 1 और 2 सही हैं। भारत में ‘ऑनर किलिंग’ को लेकर कोई विशिष्ट कानून नहीं है, इसे IPC की विभिन्न धाराओं, विशेषकर हत्या (धारा 302) के तहत निपटाया जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने शक्ति वाहिनी मामले में इसे रोकने के लिए विस्तृत दिशानिर्देश दिए थे। कथन 3 गलत है क्योंकि ‘ऑनर किलिंग’ केवल अंतर-जातीय विवाहों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह परिवार या समुदाय के कथित ‘सम्मान’ को ठेस पहुँचाने वाले किसी भी कृत्य के लिए हो सकती है, जिसमें समलैंगिक संबंध, पसंद का विवाह, या यहां तक कि आधुनिक जीवन शैली अपनाना भी शामिल है।

  2. भारत में पितृसत्ता (Patriarchy) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही नहीं है/हैं?

    1. यह एक सामाजिक व्यवस्था है जहाँ पुरुषों के पास प्राथमिक शक्ति होती है और वे राजनीतिक नेतृत्व, नैतिक अधिकार, सामाजिक विशेषाधिकार और संपत्ति के नियंत्रण में प्रभावी होते हैं।
    2. भारत में पितृसत्ता ग्रामीण क्षेत्रों तक ही सीमित है और शहरी क्षेत्रों में इसका कोई प्रभाव नहीं है।
    3. पितृसत्ता महिलाओं के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा दे सकती है।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) केवल 1 और 3
    (d) केवल 2 और 3
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: कथन 1 और 3 सही हैं। पितृसत्ता पुरुषों की प्रधानता वाली एक सामाजिक व्यवस्था है और यह निश्चित रूप से महिलाओं के खिलाफ हिंसा का एक कारण बन सकती है। कथन 2 गलत है क्योंकि पितृसत्ता भारत के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में गहराई से व्याप्त है, हालांकि इसके प्रकटीकरण में अंतर हो सकता है।

  3. निम्नलिखित में से कौन-सा कारक भारतीय ग्रामीण समाज में पीढ़ियों के बीच बढ़ते अंतराल (Generational Gap) का कारण बन सकता है?

    1. सोशल मीडिया और इंटरनेट का बढ़ता प्रभाव।
    2. शिक्षा और सूचना तक बढ़ती पहुँच।
    3. ग्रामीण अर्थव्यवस्था का पारंपरिक कृषि से दूर होना।
    4. संयुक्त परिवार प्रणाली का सुदृढ़ीकरण।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
    (a) केवल 1, 2 और 3
    (b) केवल 1, 3 और 4
    (c) केवल 2, 3 और 4
    (d) 1, 2, 3 और 4
    उत्तर: (a)
    व्याख्या: कथन 1, 2 और 3 पीढ़ियों के बीच अंतराल के प्रमुख कारण हैं। सोशल मीडिया, शिक्षा और आर्थिक बदलाव युवाओं की सोच को पुरानी पीढ़ी से अलग करते हैं। कथन 4 गलत है क्योंकि संयुक्त परिवार प्रणाली का सुदृढ़ीकरण नहीं, बल्कि इसका विघटन या इसमें बदलाव, पीढ़ियों के बीच के अंतराल को बढ़ा सकता है, क्योंकि यह पारंपरिक नियंत्रण और संवाद तंत्र को कमजोर करता है।

  4. निम्नलिखित में से कौन-सा अनुच्छेद भारतीय संविधान के तहत गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार (Right to Live with Dignity) का सबसे अच्छा वर्णन करता है?
    (a) अनुच्छेद 14
    (b) अनुच्छेद 19
    (c) अनुच्छेद 21
    (d) अनुच्छेद 22
    उत्तर: (c)
    व्याख्या: अनुच्छेद 21 “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण” प्रदान करता है, और सर्वोच्च न्यायालय ने इसकी व्यापक व्याख्या करते हुए इसमें गरिमापूर्ण जीवन, स्वच्छ पर्यावरण, आजीविका, निजता आदि जैसे कई अधिकारों को शामिल किया है।
  5. सामाजिक नियंत्रण (Social Control) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-से अनौपचारिक साधन हैं?

    1. कानून और पुलिस
    2. जनमत और गपशप
    3. शिक्षा प्रणाली
    4. धर्म और नैतिकता

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
    (a) केवल 1 और 3
    (b) केवल 2 और 4
    (c) केवल 1, 2 और 4
    (d) 1, 2, 3 और 4
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: अनौपचारिक सामाजिक नियंत्रण के साधन वे होते हैं जो कानून या औपचारिक संस्थाओं के बजाय सामाजिक मानदंडों, मूल्यों और परंपराओं के माध्यम से कार्य करते हैं। जनमत, गपशप, सामाजिक बहिष्कार, धर्म और नैतिकता इसके उदाहरण हैं। कानून और पुलिस तथा शिक्षा प्रणाली औपचारिक साधन हैं।

  6. भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने के लिए कानूनी ढाँचे में शामिल हो सकते हैं:

    1. घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005
    2. आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 (निर्भया अधिनियम)
    3. दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
    (a) केवल 1
    (b) केवल 1 और 2
    (c) केवल 2 और 3
    (d) 1, 2 और 3
    उत्तर: (d)
    व्याख्या: ये सभी अधिनियम भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न को रोकने के लिए महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान हैं। घरेलू हिंसा अधिनियम घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान करता है; आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम यौन अपराधों के लिए दंड को कड़ा करता है; और दहेज प्रतिषेध अधिनियम दहेज से संबंधित हिंसा और उत्पीड़न को संबोधित करता है।

  7. डिजिटल डिवाइड (Digital Divide) शब्द का सबसे अच्छा वर्णन क्या है?
    (a) डिजिटल उपकरणों के उपयोग के लिए विभिन्न ऑपरेटिंग सिस्टमों के बीच असंगति।
    (b) समाज के विभिन्न वर्गों के बीच सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) तक पहुँच, उपयोग और/या प्रभाव में असमानता।
    (c) उच्च गति इंटरनेट कनेक्शन और डायल-अप कनेक्शन के बीच का अंतर।
    (d) ऑनलाइन गेमिंग और पारंपरिक खेलों के बीच का अंतर।
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: डिजिटल डिवाइड समाज के उन वर्गों के बीच के अंतर को संदर्भित करता है जिनके पास सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (जैसे इंटरनेट, कंप्यूटर) तक पहुँच है और जिनके पास नहीं है, या जिनके पास पहुँच है लेकिन उपयोग कौशल या गुणवत्तापूर्ण पहुँच का अभाव है।
  8. सामाजिक परिवर्तन के संदर्भ में, ‘सांस्कृतिक विलंबता’ (Cultural Lag) का क्या अर्थ है?
    (a) जब एक समाज में सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की धीमी प्रक्रिया होती है।
    (b) जब समाज की भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) गैर-भौतिक संस्कृति (जैसे सामाजिक मानदंड, मूल्य) से अधिक तेजी से बदलती है।
    (c) जब एक संस्कृति का दूसरी संस्कृति के साथ संपर्क कम हो जाता है।
    (d) जब सांस्कृतिक मूल्यों को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने में बाधा आती है।
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: सांस्कृतिक विलंबता वह स्थिति है जहाँ समाज की भौतिक संस्कृति (जैसे नई तकनीकें, गैजेट्स) गैर-भौतिक संस्कृति (जैसे विश्वास, मानदंड, मूल्य, कानून) की तुलना में तेजी से विकसित होती है। राधिका यादव के मामले में, ‘रील्स’ (भौतिक संस्कृति का उत्पाद) सामाजिक मानदंडों (गैर-भौतिक संस्कृति) से तेज गति से आई, जिससे संघर्ष उत्पन्न हुआ।
  9. भारत में परिवार की ‘इज़्ज़त’ (Honor) की अवधारणा के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?

    1. ‘इज़्ज़त’ आमतौर पर पुरुषों के व्यवहार से अधिक जुड़ी होती है और महिलाओं पर कम प्रतिबंध लगाती है।
    2. ‘इज़्ज़त’ की अवधारणा अक्सर व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बढ़ावा देती है।
    3. ‘इज़्ज़त’ की रक्षा के नाम पर सामाजिक नियंत्रण और हिंसा का प्रयोग किया जा सकता है।
    4. यह एक आधुनिक अवधारणा है जिसका पारंपरिक भारतीय समाज में कोई स्थान नहीं था।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) केवल 3
    (d) 1 और 4
    उत्तर: (c)
    व्याख्या: कथन 3 सही है। भारत में ‘इज़्ज़त’ की अवधारणा अक्सर महिलाओं के व्यवहार और उनकी ‘मर्यादा’ से अधिक जुड़ी होती है, और इसकी रक्षा के नाम पर अक्सर सामाजिक नियंत्रण और यहाँ तक कि हिंसा का भी सहारा लिया जाता है। कथन 1 गलत है क्योंकि यह महिलाओं पर अधिक प्रतिबंध लगाती है। कथन 2 गलत है क्योंकि यह अक्सर व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बाधित करती है। कथन 4 गलत है क्योंकि यह एक बहुत पुरानी और पारंपरिक अवधारणा है।

  10. सामाजिक सामंजस्य (Social Cohesion) को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा सबसे प्रभावी तरीका हो सकता है?

    1. समूहों के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना।
    2. संवाद और पारस्परिक समझ को प्रोत्साहित करना।
    3. एक ही संस्कृति के लोगों को अलग-थलग करना।
    4. सरकार के हस्तक्षेप को कम करना।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) केवल 3 और 4
    (d) 1, 2 और 4
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: सामाजिक सामंजस्य के लिए संवाद और पारस्परिक समझ आवश्यक है। प्रतिस्पर्धा बढ़ाना, अलगाव, या सरकारी हस्तक्षेप कम करना (जब आवश्यकता हो) सामंजस्य को नुकसान पहुँचा सकते हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

(यहाँ 3-4 मेन्स के प्रश्न प्रदान करें)

  1. राधिका यादव हत्याकांड भारतीय समाज में ‘सम्मान’, पितृसत्ता और डिजिटल युग के प्रभाव के अंतर्विरोधों को उजागर करता है। इस घटना के सामाजिक-सांस्कृतिक और नैतिक आयामों का विश्लेषण कीजिए तथा इसे रोकने के लिए प्रभावी समाधान सुझाइए। (250 शब्द)
  2. “डिजिटल तकनीकें जहाँ एक ओर ग्रामीण युवाओं के लिए अभिव्यक्ति और सशक्तिकरण के नए अवसर प्रदान करती हैं, वहीं दूसरी ओर वे पारंपरिक सामाजिक संरचनाओं और मूल्यों के साथ संघर्ष को भी जन्म देती हैं।” इस कथन के आलोक में, राधिका यादव हत्याकांड का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए और इस टकराव को कम करने के लिए उपायों पर चर्चा कीजिए। (250 शब्द)
  3. भारत में ‘ऑनर किलिंग’ की समस्या को संबोधित करने में कानूनी ढाँचे की सीमाओं और सामाजिक-शैक्षिक हस्तक्षेपों की आवश्यकता का मूल्यांकन कीजिए। सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करने में ‘जागरूकता’ और ‘शिक्षा’ की भूमिका पर विशेष बल दीजिए। (250 शब्द)
  4. पितृसत्तात्मक मानसिकता और सामाजिक दबाव व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानव जीवन के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकते हैं। राधिका यादव के मामले को एक केस स्टडी के रूप में लेते हुए, इस कथन की विवेचना कीजिए और नैतिक दुविधाओं पर प्रकाश डालिए। एक संवेदनशील और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण में एक सिविल सेवक की क्या भूमिका हो सकती है? (250 शब्द)

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[–SEO_TITLE–]जब रील्स बनी मौत का फंदा: एक पिता के क्रोध और सामाजिक दबाव का दुखद अंत
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जब रील्स बनी मौत का फंदा: एक पिता के क्रोध और सामाजिक दबाव का दुखद अंत

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में सामने आई एक वीभत्स घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। एक पिता द्वारा अपनी ही बेटी, राधिका यादव, की निर्मम हत्या का मामला सामने आया है। इस घटना का मूल कारण गाँव वालों के ताने और बेटी द्वारा सोशल मीडिया पर ‘रील्स’ बनाने का कथित “अपमान” बताया जा रहा है। यह सिर्फ एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि भारतीय समाज में गहरे पैठ चुकी पितृसत्ता, सम्मान की मिथ्या अवधारणा, डिजिटल युग के प्रभाव और पीढ़ियों के बीच बढ़ती खाई का एक दुखद प्रतिबिंब है। यह घटना हमें समाजशास्त्रीय, नैतिक, कानूनी और शासन संबंधी कई महत्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार करने के लिए मजबूर करती है, जो सिविल सेवा उम्मीदवारों के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं।

एक त्रासदी की परतें: ‘रील्स’ से ‘हत्या’ तक का सफर

राधिका यादव हत्याकांड सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि यह उन अदृश्य संघर्षों को उजागर करता है जो ग्रामीण भारत में आधुनिकता और परंपरा के बीच पनप रहे हैं। आइए, इस घटना के विभिन्न आयामों को गहराई से समझते हैं:

1. सामाजिक ‘सम्मान’ की मिथ्या अवधारणा और उसका दबाव

“समाज क्या कहेगा?” – यह एक ऐसा प्रश्न है जिसने अनगिनत परिवारों के फैसलों को प्रभावित किया है, और कई बार जिंदगियों को भी निगल लिया है। राधिका के मामले में, गाँव वालों के ताने और कथित ‘बेइज़्ज़ती’ ने पिता पर ऐसा दबाव बनाया कि उन्होंने अपने ही खून को खत्म कर दिया।

  • इज़्ज़त बनाम इज़्ज़त का भ्रम: भारतीय समाज में, विशेषकर ग्रामीण और रूढ़िवादी क्षेत्रों में, ‘इज़्ज़त’ (सम्मान) एक सर्वोपरि सामाजिक पूंजी मानी जाती है। यह परिवार की प्रतिष्ठा से जुड़ी होती है, और अक्सर महिलाओं के व्यवहार, पहनावे और स्वतंत्रता पर केंद्रित होती है। बेटियों को ‘परिवार की इज़्ज़त’ का रक्षक माना जाता है। ऐसे में, सोशल मीडिया पर ‘रील्स’ बनाना, जिसे कुछ लोग ‘सार्वजनिक प्रदर्शन’ या ‘निर्लज्जता’ के रूप में देखते हैं, इस इज़्ज़त पर सीधा हमला माना गया।
  • गाँव की पंचायत और सामाजिक नियंत्रण: गाँव एक सूक्ष्म समाज होता है जहाँ हर व्यक्ति एक-दूसरे को जानता है। सामाजिक नियंत्रण के अनौपचारिक साधन (जैसे ताने, गपशप, बहिष्कार की धमकी) बहुत शक्तिशाली होते हैं। राधिका के पिता पर गाँव के लोगों द्वारा किए गए अपमानजनक टिप्पणियों ने उन्हें अत्यधिक मानसिक दबाव में ला दिया, जिससे उन्होंने ‘सम्मान’ वापस पाने के लिए यह चरम कदम उठाया। यह दर्शाता है कि कैसे सामाजिक दबाव व्यक्ति की तर्कसंगतता को खत्म कर सकता है।

2. डिजिटल युग का दोहरा प्रभाव: अवसर और संघर्ष

सोशल मीडिया, विशेष रूप से ‘रील्स’ और ‘शॉर्ट वीडियो’ प्लेटफॉर्म, ग्रामीण युवाओं के बीच तेजी से लोकप्रिय हुए हैं। यह अभिव्यक्ति, मनोरंजन और यहां तक कि आजीविका का एक नया माध्यम बन गया है, लेकिन इसके साथ ही इसने नए सामाजिक संघर्षों को भी जन्म दिया है।

  • युवाओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: आज के युवा, विशेषकर लड़कियाँ, अपनी पहचान बनाने और रचनात्मकता को व्यक्त करने के लिए इन प्लेटफॉर्मों का उपयोग कर रही हैं। वे खुद को दुनिया के सामने लाना चाहती हैं, अपनी प्रतिभा दिखाना चाहती हैं, और मुख्यधारा से जुड़ना चाहती हैं।
  • परंपरा और आधुनिकता का टकराव: वहीं, अभिभावकों और बड़े-बुजुर्गों के लिए, जो एक अलग सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में पले-बढ़े हैं, यह सब ‘बेशर्मी’ या ‘असंस्कारी’ लग सकता है। वे अपनी बेटियों को ‘चार दीवारी’ के भीतर या पारंपरिक भूमिकाओं में देखना पसंद करते हैं। यहीं पर पीढ़ियों के बीच एक बड़ा टकराव उत्पन्न होता है। यह टकराव केवल राधिका के घर में नहीं, बल्कि ऐसे कई परिवारों में देखा जा सकता है।
  • डिजिटल साक्षरता का अभाव: ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर डिजिटल साक्षरता का अभाव होता है, विशेषकर अभिभावकों के बीच। वे सोशल मीडिया की प्रकृति, उसकी पहुंच और उसके संभावित उपयोग (सकारात्मक या नकारात्मक) को पूरी तरह से नहीं समझ पाते। यह समझ की कमी अक्सर डर और विरोध में बदल जाती है।

3. पितृसत्ता की गहरी जड़ें और महिला सशक्तिकरण का विरोधाभास

यह घटना पितृसत्तात्मक मानसिकता का एक ज्वलंत उदाहरण है, जहाँ पुरुषों को परिवार और विशेषकर महिलाओं के ‘नैतिक संरक्षक’ के रूप में देखा जाता है।

  • निर्णय लेने का अधिकार: पितृसत्तात्मक समाजों में, महिलाओं के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण निर्णय अक्सर पुरुषों द्वारा लिए जाते हैं। महिला की स्वतंत्रता को परिवार के पुरुषों के ‘अधिकार’ के रूप में देखा जाता है। जब कोई महिला इस अधिकार को चुनौती देती है या अपनी इच्छा से कुछ करती है, तो इसे पितृसत्तात्मक व्यवस्था पर हमला माना जाता है।
  • दोहरे मापदंड (Double Standards): अक्सर, लड़कों के लिए सोशल मीडिया पर खुद को व्यक्त करने की अधिक स्वतंत्रता होती है, जबकि लड़कियों पर ‘मर्यादा’ के नाम पर कई पाबंदियाँ लगाई जाती हैं। यह लैंगिक असमानता का स्पष्ट प्रमाण है।
  • ‘ऑनर किलिंग’ का छिपा स्वरूप: भले ही इस घटना को सीधे तौर पर ‘ऑनर किलिंग’ न कहा जाए, लेकिन इसके पीछे की भावना ‘सम्मान’ के नाम पर की गई हिंसा से मिलती-जुलती है। ‘ऑनर किलिंग’ तब होती है जब कोई व्यक्ति (विशेषकर महिला) परिवार या समुदाय के कथित ‘सम्मान’ को ठेस पहुँचाता है और उसे दंडित किया जाता है, अक्सर मौत के घाट उतारकर। यहाँ भी, ‘सम्मान’ की रक्षा के लिए हिंसा का सहारा लिया गया।

4. पीढ़ियों के बीच बढ़ता अंतराल (Generational Gap)

आधुनिकता और परंपरा के बीच की खाई, विशेषकर युवा और बुजुर्ग पीढ़ी के बीच, इस त्रासदी का एक महत्वपूर्ण कारक है।

  • विश्वदृष्टि में अंतर: युवा पीढ़ी की विश्वदृष्टि अधिक वैश्विक, व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर केंद्रित और डिजिटल प्रभावों से युक्त है। वहीं, पुरानी पीढ़ी की विश्वदृष्टि स्थानीय, सामूहिक मूल्यों पर केंद्रित और परंपरावादी है।
  • संवादहीनता: अक्सर, इन दोनों पीढ़ियों के बीच सार्थक संवाद की कमी होती है। युवा अपनी बात समझा नहीं पाते, और बुजुर्ग उनकी भावनाओं को समझ नहीं पाते। इस संवादहीनता से गलतफहमियाँ और संघर्ष बढ़ते हैं।

कानूनी और नैतिक आयाम: एक विस्तृत विश्लेषण

1. कानूनी दृष्टिकोण (Legal Perspective)

राधिका यादव हत्याकांड भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत एक गंभीर आपराधिक अपराध है।

  • हत्या (Murder – IPC Section 302): यह स्पष्ट रूप से हत्या का मामला है, जिसमें किसी व्यक्ति को मारने के इरादे से कार्य किया जाता है। दोषी को आजीवन कारावास या मृत्युदंड की सजा हो सकती है।
  • ‘ऑनर किलिंग’ की चुनौती: भारत में ‘ऑनर किलिंग’ को लेकर कोई विशिष्ट कानून नहीं है, लेकिन इसे हत्या के गंभीरतम मामलों में गिना जाता है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार ‘ऑनर किलिंग’ की निंदा की है और इसे ‘बर्बर’ और ‘अमानवीय’ कृत्य बताया है। सर्वोच्च न्यायालय ने शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ (Shakti Vahini vs Union of India, 2018) मामले में ‘ऑनर किलिंग’ को रोकने के लिए निवारक, उपचारात्मक और दंडात्मक उपाय सुझाए थे, जिनमें सामाजिक जागरूकता, पुलिस हस्तक्षेप और विशेष अदालतों का गठन शामिल था।
  • पितृसत्तात्मक हिंसा: यह घटना लैंगिक हिंसा का भी एक उदाहरण है, जहाँ पितृसत्तात्मक मानदंडों को बनाए रखने के लिए महिलाओं के खिलाफ हिंसा का प्रयोग किया जाता है।
  • कानून का शासन (Rule of Law): कोई भी सामाजिक ‘सम्मान’ या दबाव किसी व्यक्ति को कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं देता। कानून का शासन सुनिश्चित करता है कि न्यायपालिका ही दोषियों को दंडित करने की एकमात्र अधिकृत संस्था है।

2. नैतिक दुविधाएँ (Ethical Dilemmas)

यह घटना कई गहरी नैतिक दुविधाओं को जन्म देती है, जो GS-4 (Ethics, Integrity & Aptitude) के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं:

  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता बनाम पारिवारिक/सामाजिक मूल्य: एक व्यक्ति को अपनी इच्छा से जीने और खुद को व्यक्त करने की कितनी स्वतंत्रता होनी चाहिए, और कहाँ पर पारिवारिक या सामाजिक मूल्यों का सम्मान करना आवश्यक हो जाता है? राधिका के मामले में, व्यक्तिगत स्वतंत्रता को क्रूरता से कुचल दिया गया।
  • माता-पिता का अधिकार बनाम बच्चे के अधिकार: माता-पिता को अपने बच्चों को अनुशासित करने और दिशा दिखाने का अधिकार है, लेकिन क्या यह अधिकार बच्चे के जीवन के अधिकार और शारीरिक अखंडता पर हावी हो सकता है? भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार सभी नागरिकों को प्राप्त है, जिसमें अपनी गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है।
  • भावनात्मक बुद्धिमत्ता (Emotional Intelligence): राधिका के पिता का क्रोध और निराशा चरम पर पहुँच गई, जो उनकी भावनाओं को नियंत्रित करने में विफलता दर्शाती है। यदि उन्होंने अपने क्रोध को सकारात्मक तरीके से प्रबंधित किया होता या समस्या का समाधान संवाद से किया होता, तो शायद यह त्रासदी टाली जा सकती थी।
  • सामाजिक दबाव और नैतिक निर्णय: क्या कोई व्यक्ति सामाजिक दबाव के कारण अनैतिक या आपराधिक कार्य कर सकता है? यह घटना दर्शाती है कि सामाजिक दबाव कैसे एक व्यक्ति के नैतिक कम्पास को भ्रमित कर सकता है। एक नागरिक के रूप में, हमें सामाजिक अन्याय के खिलाफ खड़े होने और गलत परंपराओं को चुनौती देने का नैतिक दायित्व निभाना चाहिए।
  • कर्तव्य का संकुचित अर्थ: पिता ने अपने ‘कर्तव्य’ को परिवार के सम्मान की रक्षा के रूप में देखा, लेकिन वे अपने बच्चों के जीवन की रक्षा करने के अपने प्राथमिक कर्तव्य को भूल गए। यह कर्तव्य की संकुचित और विकृत व्याख्या है।

चुनौतियाँ और आगे की राह (Challenges and Way Forward)

राधिका यादव जैसी घटनाओं को रोकने और एक अधिक न्यायपूर्ण व संवेदनशील समाज बनाने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

चुनौतियाँ:

  1. गहरी जड़ें जमाई पितृसत्ता: सदियों से चली आ रही पितृसत्तात्मक सोच को बदलना सबसे बड़ी चुनौती है।
  2. डिजिटल साक्षरता का अभाव: ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल तकनीक के सही उपयोग और उसके जोखिमों के बारे में जागरूकता की कमी।
  3. संवादहीनता: युवा और वृद्ध पीढ़ियों के बीच प्रभावी संवाद तंत्र की कमी।
  4. मानसिक स्वास्थ्य और क्रोध प्रबंधन: ग्रामीण क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता और क्रोध जैसी भावनाओं के प्रबंधन के बारे में जागरूकता की कमी।
  5. कानून प्रवर्तन की संवेदनशीलता: पुलिस और न्यायपालिका को ऐसे मामलों में अधिक संवेदनशील और त्वरित कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

आगे की राह (Way Forward):

1. शिक्षा और जागरूकता अभियान:

  • लैंगिक संवेदनशीलता: स्कूलों के पाठ्यक्रम में लैंगिक समानता, महिलाओं के अधिकारों और सम्मान की सही परिभाषा को शामिल किया जाना चाहिए। गाँव स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए जाएँ जो पुरुषों और महिलाओं दोनों को लैंगिक समानता के महत्व के बारे में शिक्षित करें।
  • डिजिटल साक्षरता: ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों और अभिभावकों दोनों के लिए डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम चलाए जाएँ। उन्हें सोशल मीडिया के फायदे और नुकसान, ऑनलाइन सुरक्षा और जिम्मेदारी से उपयोग के बारे में बताया जाए।
  • सम्मान की अवधारणा का पुनर्गठन: ‘इज्जत’ की अवधारणा को व्यक्ति के नैतिक चरित्र, ईमानदारी और कानून के पालन से जोड़ना चाहिए, न कि परिवार की महिलाओं के व्यवहार या पहनावे से।

2. कानूनी और प्रशासनिक उपाय:

  • कड़े कानून प्रवर्तन: ‘ऑनर किलिंग’ और ऐसी अन्य हिंसा के मामलों में त्वरित जांच और दंड सुनिश्चित किया जाना चाहिए। दोषियों को मिसाल कायम करने वाली सजा मिलनी चाहिए ताकि दूसरों को ऐसी घटनाओं को अंजाम देने से रोका जा सके।
  • पुलिस की संवेदनशीलता: पुलिस अधिकारियों को लैंगिक हिंसा और सामाजिक दबाव से जुड़े मामलों से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। उन्हें पीड़ितों और उनके परिवारों को संवेदनशीलता से सुनना चाहिए।
  • परामर्श सेवाएँ: परिवारों के भीतर संघर्षों को सुलझाने के लिए समुदाय आधारित परामर्श और मध्यस्थता केंद्रों की स्थापना की जानी चाहिए, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में।

3. समुदाय की भूमिका:

  • स्वयंसेवी संगठन और एनजीओ: इन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में लैंगिक समानता, महिला अधिकारों और हिंसा के खिलाफ जागरूकता फैलाने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
  • सामुदायिक नेताओं की भूमिका: ग्राम प्रधान, धार्मिक नेता और अन्य प्रभावशाली व्यक्ति सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन के लिए प्रेरक के रूप में कार्य कर सकते हैं, पितृसत्तात्मक मानदंडों को चुनौती दे सकते हैं और लैंगिक समानता का समर्थन कर सकते हैं।
  • पीढ़ीगत संवाद: परिवारों को युवा और बुजुर्ग पीढ़ियों के बीच खुले और सम्मानजनक संवाद को बढ़ावा देना चाहिए। अभिभावकों को बच्चों की भावनाओं और आकांक्षाओं को समझने का प्रयास करना चाहिए।

4. मानसिक स्वास्थ्य सहायता:

  • ग्रामीण क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य सहायता सेवाओं तक पहुँच बढ़ाना। क्रोध प्रबंधन, तनाव और पारिवारिक संघर्षों से निपटने के लिए परामर्श सुविधाएँ उपलब्ध होनी चाहिए।

5. मीडिया की जिम्मेदारी:

  • मीडिया को ऐसी घटनाओं की रिपोर्टिंग करते समय संवेदनशीलता और जिम्मेदारी दिखानी चाहिए। उन्हें केवल सनसनीखेज पहलू पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, घटना के मूल कारणों और समाजशास्त्रीय आयामों को उजागर करना चाहिए।

निष्कर्ष (Conclusion)

राधिका यादव हत्याकांड भारतीय समाज के अंतर्विरोधों का एक मार्मिक उदाहरण है। यह दर्शाता है कि कैसे आधुनिकता की तीव्र धाराएँ भी सदियों पुरानी रूढ़ियों और पितृसत्तात्मक मूल्यों की चट्टानों से टकराकर बिखर जाती हैं। यह घटना केवल एक अपराध नहीं, बल्कि एक सामाजिक बीमारी का लक्षण है जो हमारे सामूहिक विवेक को चुनौती देता है।

एक प्रगतिशील समाज के रूप में, हमें इस त्रासदी से सीखना होगा। हमें सिर्फ कानून प्रवर्तन से आगे बढ़कर, सामाजिक मानदंडों, शिक्षा और आपसी संवाद में बदलाव लाना होगा। हमें ‘सम्मान’ की उस खोखली अवधारणा को तोड़ना होगा जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानव जीवन पर हावी हो जाती है। जब तक हर व्यक्ति, विशेषकर हर बेटी, बिना किसी डर या दबाव के अपनी पहचान और सपनों को पूरा करने के लिए स्वतंत्र नहीं होगी, तब तक ‘नए भारत’ का सपना अधूरा ही रहेगा। यह समय है जब हमें डिजिटल युग के अवसरों को समाज के लिए सुरक्षित और समावेशी बनाना होगा, न कि उन्हें संघर्ष और हिंसा का कारण बनने देना होगा।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(यहाँ 10 MCQs, उनके उत्तर और व्याख्या प्रदान करें)

  1. ‘ऑनर किलिंग’ के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. भारत में ‘ऑनर किलिंग’ को परिभाषित करने वाला कोई विशिष्ट कानून नहीं है।
    2. सर्वोच्च न्यायालय ने शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ मामले में ‘ऑनर किलिंग’ को रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे।
    3. ‘ऑनर किलिंग’ केवल अंतर-जातीय विवाहों तक ही सीमित है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
    (a) केवल 1 और 2
    (b) केवल 2 और 3
    (c) केवल 1 और 3
    (d) 1, 2 और 3
    उत्तर: (a)
    व्याख्या: कथन 1 और 2 सही हैं। भारत में ‘ऑनर किलिंग’ को लेकर कोई विशिष्ट कानून नहीं है, इसे IPC की विभिन्न धाराओं, विशेषकर हत्या (धारा 302) के तहत निपटाया जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने शक्ति वाहिनी मामले में इसे रोकने के लिए विस्तृत दिशानिर्देश दिए थे। कथन 3 गलत है क्योंकि ‘ऑनर किलिंग’ केवल अंतर-जातीय विवाहों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह परिवार या समुदाय के कथित ‘सम्मान’ को ठेस पहुँचाने वाले किसी भी कृत्य के लिए हो सकती है, जिसमें समलैंगिक संबंध, पसंद का विवाह, या यहां तक कि आधुनिक जीवन शैली अपनाना भी शामिल है।

  2. भारत में पितृसत्ता (Patriarchy) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही नहीं है/हैं?

    1. यह एक सामाजिक व्यवस्था है जहाँ पुरुषों के पास प्राथमिक शक्ति होती है और वे राजनीतिक नेतृत्व, नैतिक अधिकार, सामाजिक विशेषाधिकार और संपत्ति के नियंत्रण में प्रभावी होते हैं।
    2. भारत में पितृसत्ता ग्रामीण क्षेत्रों तक ही सीमित है और शहरी क्षेत्रों में इसका कोई प्रभाव नहीं है।
    3. पितृसत्ता महिलाओं के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा दे सकती है।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) केवल 1 और 3
    (d) केवल 2 और 3
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: कथन 1 और 3 सही हैं। पितृसत्ता पुरुषों की प्रधानता वाली एक सामाजिक व्यवस्था है और यह निश्चित रूप से महिलाओं के खिलाफ हिंसा का एक कारण बन सकती है। कथन 2 गलत है क्योंकि पितृसत्ता भारत के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में गहराई से व्याप्त है, हालांकि इसके प्रकटीकरण में अंतर हो सकता है।

  3. निम्नलिखित में से कौन-सा कारक भारतीय ग्रामीण समाज में पीढ़ियों के बीच बढ़ते अंतराल (Generational Gap) का कारण बन सकता है?

    1. सोशल मीडिया और इंटरनेट का बढ़ता प्रभाव।
    2. शिक्षा और सूचना तक बढ़ती पहुँच।
    3. ग्रामीण अर्थव्यवस्था का पारंपरिक कृषि से दूर होना।
    4. संयुक्त परिवार प्रणाली का सुदृढ़ीकरण।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
    (a) केवल 1, 2 और 3
    (b) केवल 1, 3 और 4
    (c) केवल 2, 3 और 4
    (d) 1, 2, 3 और 4
    उत्तर: (a)
    व्याख्या: कथन 1, 2 और 3 पीढ़ियों के बीच अंतराल के प्रमुख कारण हैं। सोशल मीडिया, शिक्षा और आर्थिक बदलाव युवाओं की सोच को पुरानी पीढ़ी से अलग करते हैं। कथन 4 गलत है क्योंकि संयुक्त परिवार प्रणाली का सुदृढ़ीकरण नहीं, बल्कि इसका विघटन या इसमें बदलाव, पीढ़ियों के बीच के अंतराल को बढ़ा सकता है, क्योंकि यह पारंपरिक नियंत्रण और संवाद तंत्र को कमजोर करता है।

  4. निम्नलिखित में से कौन-सा अनुच्छेद भारतीय संविधान के तहत गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार (Right to Live with Dignity) का सबसे अच्छा वर्णन करता है?
    (a) अनुच्छेद 14
    (b) अनुच्छेद 19
    (c) अनुच्छेद 21
    (d) अनुच्छेद 22
    उत्तर: (c)
    व्याख्या: अनुच्छेद 21 “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण” प्रदान करता है, और सर्वोच्च न्यायालय ने इसकी व्यापक व्याख्या करते हुए इसमें गरिमापूर्ण जीवन, स्वच्छ पर्यावरण, आजीविका, निजता आदि जैसे कई अधिकारों को शामिल किया है।
  5. सामाजिक नियंत्रण (Social Control) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-से अनौपचारिक साधन हैं?

    1. कानून और पुलिस
    2. जनमत और गपशप
    3. शिक्षा प्रणाली
    4. धर्म और नैतिकता

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
    (a) केवल 1 और 3
    (b) केवल 2 और 4
    (c) केवल 1, 2 और 4
    (d) 1, 2, 3 और 4
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: अनौपचारिक सामाजिक नियंत्रण के साधन वे होते हैं जो कानून या औपचारिक संस्थाओं के बजाय सामाजिक मानदंडों, मूल्यों और परंपराओं के माध्यम से कार्य करते हैं। जनमत, गपशप, सामाजिक बहिष्कार, धर्म और नैतिकता इसके उदाहरण हैं। कानून और पुलिस तथा शिक्षा प्रणाली औपचारिक साधन हैं।

  6. भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने के लिए कानूनी ढाँचे में शामिल हो सकते हैं:

    1. घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005
    2. आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 (निर्भया अधिनियम)
    3. दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
    (a) केवल 1
    (b) केवल 1 और 2
    (c) केवल 2 और 3
    (d) 1, 2 और 3
    उत्तर: (d)
    व्याख्या: ये सभी अधिनियम भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न को रोकने के लिए महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान हैं। घरेलू हिंसा अधिनियम घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान करता है; आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम यौन अपराधों के लिए दंड को कड़ा करता है; और दहेज प्रतिषेध अधिनियम दहेज से संबंधित हिंसा और उत्पीड़न को संबोधित करता है।

  7. डिजिटल डिवाइड (Digital Divide) शब्द का सबसे अच्छा वर्णन क्या है?
    (a) डिजिटल उपकरणों के उपयोग के लिए विभिन्न ऑपरेटिंग सिस्टमों के बीच असंगति।
    (b) समाज के विभिन्न वर्गों के बीच सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) तक पहुँच, उपयोग और/या प्रभाव में असमानता।
    (c) उच्च गति इंटरनेट कनेक्शन और डायल-अप कनेक्शन के बीच का अंतर।
    (d) ऑनलाइन गेमिंग और पारंपरिक खेलों के बीच का अंतर।
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: डिजिटल डिवाइड समाज के उन वर्गों के बीच के अंतर को संदर्भित करता है जिनके पास सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (जैसे इंटरनेट, कंप्यूटर) तक पहुँच है और जिनके पास नहीं है, या जिनके पास पहुँच है लेकिन उपयोग कौशल या गुणवत्तापूर्ण पहुँच का अभाव है।
  8. सामाजिक परिवर्तन के संदर्भ में, ‘सांस्कृतिक विलंबता’ (Cultural Lag) का क्या अर्थ है?
    (a) जब एक समाज में सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की धीमी प्रक्रिया होती है।
    (b) जब समाज की भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) गैर-भौतिक संस्कृति (जैसे सामाजिक मानदंड, मूल्य) से अधिक तेजी से बदलती है।
    (c) जब एक संस्कृति का दूसरी संस्कृति के साथ संपर्क कम हो जाता है।
    (d) जब सांस्कृतिक मूल्यों को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने में बाधा आती है।
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: सांस्कृतिक विलंबता वह स्थिति है जहाँ समाज की भौतिक संस्कृति (जैसे नई तकनीकें, गैजेट्स) गैर-भौतिक संस्कृति (जैसे विश्वास, मानदंड, मूल्य, कानून) की तुलना में तेजी से विकसित होती है। राधिका यादव के मामले में, ‘रील्स’ (भौतिक संस्कृति का उत्पाद) सामाजिक मानदंडों (गैर-भौतिक संस्कृति) से तेज गति से आई, जिससे संघर्ष उत्पन्न हुआ।
  9. भारत में परिवार की ‘इज़्ज़त’ (Honor) की अवधारणा के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?

    1. ‘इज़्ज़त’ आमतौर पर पुरुषों के व्यवहार से अधिक जुड़ी होती है और महिलाओं पर कम प्रतिबंध लगाती है।
    2. ‘इज़्ज़त’ की अवधारणा अक्सर व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बढ़ावा देती है।
    3. ‘इज़्ज़त’ की रक्षा के नाम पर सामाजिक नियंत्रण और हिंसा का प्रयोग किया जा सकता है।
    4. यह एक आधुनिक अवधारणा है जिसका पारंपरिक भारतीय समाज में कोई स्थान नहीं था।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) केवल 3
    (d) 1 और 4
    उत्तर: (c)
    व्याख्या: कथन 3 सही है। भारत में ‘इज़्ज़त’ की अवधारणा अक्सर महिलाओं के व्यवहार और उनकी ‘मर्यादा’ से अधिक जुड़ी होती है, और इसकी रक्षा के नाम पर अक्सर सामाजिक नियंत्रण और यहाँ तक कि हिंसा का भी सहारा लिया जाता है। कथन 1 गलत है क्योंकि यह महिलाओं पर अधिक प्रतिबंध लगाती है। कथन 2 गलत है क्योंकि यह अक्सर व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बाधित करती है। कथन 4 गलत है क्योंकि यह एक बहुत पुरानी और पारंपरिक अवधारणा है।

  10. सामाजिक सामंजस्य (Social Cohesion) को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा सबसे प्रभावी तरीका हो सकता है?

    1. समूहों के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना।
    2. संवाद और पारस्परिक समझ को प्रोत्साहित करना।
    3. एक ही संस्कृति के लोगों को अलग-थलग करना।
    4. सरकार के हस्तक्षेप को कम करना।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) केवल 3 और 4
    (d) 1, 2 और 4
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: सामाजिक सामंजस्य के लिए संवाद और पारस्परिक समझ आवश्यक है। प्रतिस्पर्धा बढ़ाना, अलगाव, या सरकारी हस्तक्षेप कम करना (जब आवश्यकता हो) सामंजस्य को नुकसान पहुँचा सकते हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

(यहाँ 3-4 मेन्स के प्रश्न प्रदान करें)

  1. राधिका यादव हत्याकांड भारतीय समाज में ‘सम्मान’, पितृसत्ता और डिजिटल युग के प्रभाव के अंतर्विरोधों को उजागर करता है। इस घटना के सामाजिक-सांस्कृतिक और नैतिक आयामों का विश्लेषण कीजिए तथा इसे रोकने के लिए प्रभावी समाधान सुझाइए। (250 शब्द)
  2. “डिजिटल तकनीकें जहाँ एक ओर ग्रामीण युवाओं के लिए अभिव्यक्ति और सशक्तिकरण के नए अवसर प्रदान करती हैं, वहीं दूसरी ओर वे पारंपरिक सामाजिक संरचनाओं और मूल्यों के साथ संघर्ष को भी जन्म देती हैं।” इस कथन के आलोक में, राधिका यादव हत्याकांड का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए और इस टकराव को कम करने के लिए उपायों पर चर्चा कीजिए। (250 शब्द)
  3. भारत में ‘ऑनर किलिंग’ की समस्या को संबोधित करने में कानूनी ढाँचे की सीमाओं और सामाजिक-शैक्षिक हस्तक्षेपों की आवश्यकता का मूल्यांकन कीजिए। सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करने में ‘जागरूकता’ और ‘शिक्षा’ की भूमिका पर विशेष बल दीजिए। (250 शब्द)
  4. पितृसत्तात्मक मानसिकता और सामाजिक दबाव व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानव जीवन के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकते हैं। राधिका यादव के मामले को एक केस स्टडी के रूप में लेते हुए, इस कथन की विवेचना कीजिए और नैतिक दुविधाओं पर प्रकाश डालिए। एक संवेदनशील और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण में एक सिविल सेवक की क्या भूमिका हो सकती है? (250 शब्द)

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