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जब प्रकृति उतरी कहर बनकर: धराली की बादल फटने की भयावह कहानी, 10 जवान लापता

जब प्रकृति उतरी कहर बनकर: धराली की बादल फटने की भयावह कहानी, 10 जवान लापता

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में, उत्तराखंड के धराली क्षेत्र में हुई भयावह बादल फटने की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। कुछ ही क्षणों की तबाही में, तीन अलग-अलग स्थानों पर बादल फटने से भारी विनाश हुआ। इस प्राकृतिक आपदा ने कम से कम चार लोगों की जान ले ली, सेना के एक महत्वपूर्ण कैंप को बहा ले गई, और 10 बहादुर जवानों सहित 50 से अधिक लोगों को लापता कर दिया। यह घटना न केवल एक मानवीय त्रासदी है, बल्कि यह भारत के संवेदनशील पहाड़ी क्षेत्रों में बढ़ते भू-स्थानिक जोखिमों, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और प्रभावी आपदा प्रबंधन प्रणालियों की आवश्यकता को भी रेखांकित करती है। UPSC सिविल सेवाओं की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए, यह घटना पर्यावरण, भूविज्ञान, राष्ट्रीय सुरक्षा, सामाजिक प्रभाव और सरकार की प्रतिक्रिया जैसे विषयों के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण केस स्टडी प्रस्तुत करती है।

उत्तराखंड की धराली त्रासदी: एक विश्लेषण (The Dharali Tragedy of Uttarakhand: An Analysis)

उत्तराखंड, जिसे ‘देवभूमि’ के नाम से जाना जाता है, अपनी नैसर्गिक सुंदरता और ऊंचे हिमालयी शिखरों के लिए प्रसिद्ध है। हालांकि, यही सुंदरता इसे प्राकृतिक आपदाओं, विशेषकर बादल फटने और भूस्खलन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील भी बनाती है। धराली की यह हालिया त्रासदी एक बार फिर इस कड़वी सच्चाई को उजागर करती है कि प्रकृति का रौद्र रूप कितना विनाशकारी हो सकता है।

बादल फटना क्या है? (What is Cloudburst?)

बादल फटना एक ऐसी वायुमंडलीय घटना है जहाँ बहुत कम समय में, एक छोटे से भौगोलिक क्षेत्र में भारी मात्रा में वर्षा होती है। आम तौर पर, इसे प्रति घंटे 100 मिमी (लगभग 4 इंच) से अधिक वर्षा के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह घटना अक्सर पहाड़ी इलाकों में अधिक देखी जाती है क्योंकि:

  • पहाड़ी ढलानों पर हवा ऊपर की ओर उठने को मजबूर होती है, जिससे नमी संघनित होकर बादल बनाती है।
  • जब ये बादल किसी अवरोध (जैसे ऊंची पर्वत श्रृंखला) से टकराते हैं, तो वे अचानक फट जाते हैं, जिससे अत्यधिक वर्षा होती है।
  • पहाड़ी इलाकों में अचानक आई तीव्र धाराएँ (Flash Floods) और मलबे के बहाव (Debris Flows) का कारण बनती हैं।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बादल फटना अपने आप में एक त्वरित घटना है, लेकिन इसके परिणाम अक्सर लंबे समय तक बने रहते हैं, जैसा कि धराली त्रासदी में देखा गया। 34 सेकंड की विनाशकारी अवधि में सेना के कैंप का बह जाना इस घटना की तीव्रता का एक भयानक प्रमाण है।

धराली त्रासदी का पैमाना और प्रभाव (Scale and Impact of the Dharali Tragedy)

इस त्रासदी की भयावहता को कई आयामों में समझा जा सकता है:

  • तीव्रता और गति: घटना की 34 सेकंड की अवधि इस बात का संकेत देती है कि प्रकृति का प्रकोप कितना अचानक और शक्तिशाली था।
  • व्यापकता: तीन अलग-अलग स्थानों पर बादल फटना यह दर्शाता है कि खतरा एक सीमित क्षेत्र तक ही सीमित नहीं था, बल्कि एक बड़े भूभाग को प्रभावित कर रहा था।
  • जनहानि: चार लोगों की तत्काल मृत्यु एक दुखद घटना है।
  • लापता व्यक्ति: 50 से अधिक लोगों का लापता होना, विशेष रूप से 10 सेना के जवानों का, स्थिति की गंभीरता को और बढ़ा देता है। सेना के जवानों का लापता होना राष्ट्रीय सुरक्षा और बचाव कार्यों के लिए भी एक बड़ी चुनौती है।
  • बुनियादी ढांचे का विनाश: सेना के कैंप का बह जाना न केवल सैन्य कर्मियों के लिए एक बड़ा झटका है, बल्कि यह क्षेत्र के महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को भी प्रभावित करता है। सड़कें, पुल और संचार लाइनें भी इस तरह की आपदाओं से बुरी तरह प्रभावित होती हैं।

“बादल फटने की यह घटना प्रकृति की अप्रत्याशित शक्ति का एक क्रूर अनुस्मारक है, जो हमारे सबसे सुदूर और संवेदनशील क्षेत्रों को सबसे बुरी तरह प्रभावित करती है।”

कारण और योगदान कारक (Causes and Contributing Factors)

धराली त्रासदी के पीछे कई अंतर्संबंधित कारक हो सकते हैं:

1. भू-स्थानिक और भूवैज्ञानिक कारक (Geospatial and Geological Factors)

  • खड़ी ढलानें: उत्तराखंड जैसे हिमालयी क्षेत्र में खड़ी ढलानें पानी के तेजी से बहाव और मलबे के खिसकने के लिए आदर्श परिस्थितियाँ बनाती हैं।
  • नदी तलछट और धाराएँ: क्षेत्र की नदियाँ और धाराएँ अक्सर गाद, बोल्डर और अन्य मलबे से भरी होती हैं, जो बादल फटने पर बड़े पैमाने पर कीचड़ के प्रवाह (Mudflows) का कारण बन सकती हैं।
  • भूस्खलन की संवेदनशीलता: बादल फटने से उत्पन्न अत्यधिक जल प्रवाह मौजूदा भूस्खलन के क्षेत्रों को सक्रिय कर सकता है या नए भूस्खलन को ट्रिगर कर सकता है।

2. जलवायु परिवर्तन (Climate Change)

जलवायु परिवर्तन की भूमिका इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है:

  • चरम मौसमी घटनाएँ: वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक वर्षा की घटनाओं (जैसे बादल फटना) की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है।
  • बढ़ता तापमान: ग्लेशियरों का पिघलना भी अप्रत्यक्ष रूप से पानी की उपलब्धता को बढ़ा सकता है, जिससे बादल फटने की घटनाओं का जोखिम बढ़ सकता है, खासकर जब गर्म, आर्द्र हवाएं ठंडी हवाओं से मिलती हैं।
  • अनिश्चित वर्षा पैटर्न: जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा के पैटर्न अधिक अप्रत्याशित हो गए हैं, जिससे मौसमी अप्रत्याशितता का खतरा बढ़ गया है।

3. मानव निर्मित कारक (Anthropogenic Factors)

  • अनियोजित विकास: पहाड़ी क्षेत्रों में अनियोजित निर्माण, सड़कों का चौड़ीकरण, और बस्तियों का विस्तार अक्सर प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों को बाधित करता है और भूस्खलन के जोखिम को बढ़ाता है।
  • वनोन्मूलन: वनों की कटाई मिट्टी को अपनी पकड़ खो देती है, जिससे यह वर्षा और बहाव के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती है।
  • बुनियादी ढांचे का स्थान: सेना के कैंप जैसी महत्वपूर्ण संरचनाओं का अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण, यदि उचित भू-तकनीकी अध्ययनों के बिना किया गया हो, तो आपदाओं के प्रभाव को बढ़ा सकता है।

आपदा प्रबंधन और प्रतिक्रिया (Disaster Management and Response)

इस तरह की त्रासदियों से निपटने के लिए एक मजबूत और बहु-आयामी आपदा प्रबंधन प्रणाली की आवश्यकता होती है। धराली त्रासदी के संदर्भ में, प्रतिक्रिया और प्रबंधन के विभिन्न पहलू हैं:

1. तत्काल बचाव और राहत कार्य (Immediate Rescue and Relief Operations)

  • खोज और बचाव: लापता व्यक्तियों, विशेष रूप से सेना के जवानों को खोजने के लिए युद्धस्तर पर प्रयास आवश्यक हैं। इसमें स्थानीय एजेंसियों, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF), सेना और वायु सेना का समन्वय महत्वपूर्ण है।
  • चिकित्सा सहायता: घायलों को तत्काल चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान करना और प्रभावित समुदायों के लिए चल चिकित्सा इकाइयाँ स्थापित करना।
  • आवश्यक सामग्री: भोजन, पानी, आश्रय और दवाएं जैसे जीवन-रक्षक आपूर्ति प्रभावित क्षेत्रों में पहुंचाना।

2. पूर्व चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems)

“प्रभावी पूर्व चेतावनी प्रणाली जीवन बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों की विशेष स्थलाकृति इसे अधिक चुनौतीपूर्ण बनाती है।”

  • तकनीकी अवसंरचना: मौसम विभाग (IMD) द्वारा प्रदान की जाने वाली पूर्वानुमान सेवाओं को और मजबूत करना।
  • स्थानीय निगरानी: क्षेत्र में जमीनी स्तर पर निगरानी तंत्र को बढ़ाना, जिसमें स्थानीय समुदायों को भी शामिल किया जाए।
  • संचार: चेतावनी संदेशों को समय पर और प्रभावी ढंग से उन सभी लोगों तक पहुंचाना जो जोखिम में हैं, खासकर दूरदराज के इलाकों में।

3. दीर्घकालिक पुनर्वास और पुनर्निर्माण (Long-term Rehabilitation and Reconstruction)

  • क्षति का आकलन: प्रभावित क्षेत्रों और बुनियादी ढांचे के नुकसान का विस्तृत आकलन।
  • पुनर्निर्माण: ‘बिल्ड बैक बेटर’ (Build Back Better) सिद्धांत का पालन करते हुए, अधिक लचीला और सुरक्षित बुनियादी ढांचा बनाना। इसमें भू-तकनीकी रूप से मजबूत निर्माण सामग्री और डिज़ाइन का उपयोग शामिल है।
  • आजीविका की बहाली: प्रभावित समुदायों की आजीविका को फिर से स्थापित करने के लिए सहायता प्रदान करना।
  • भूमि उपयोग योजना: भविष्य में ऐसी घटनाओं के जोखिम को कम करने के लिए भूमि उपयोग की बेहतर योजना बनाना और विकास को अधिक टिकाऊ बनाना।

UPSC के लिए प्रासंगिकता (Relevance for UPSC)

यह घटना UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों के लिए एक महत्वपूर्ण केस स्टडी है:

A. प्रारंभिक परीक्षा (Prelims)

  • भूगोल: बादल फटने की घटनाएँ, उनका भौगोलिक वितरण, और हिमालयी क्षेत्र की भूवैज्ञानिक संरचना।
  • पर्यावरण: जलवायु परिवर्तन और चरम मौसमी घटनाओं के बीच संबंध, वनों की भूमिका।
  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी: मौसम पूर्वानुमान, उपग्रह निगरानी, और आपदा प्रबंधन में उपयोग की जाने वाली तकनीकें।

B. मुख्य परीक्षा (Mains)

  • GS-I (भूगोल/समाज): प्राकृतिक आपदाएँ और उनके सामाजिक-आर्थिक प्रभाव, पहाड़ी क्षेत्रों में शहरीकरण/विकास और इसके जोखिम।
  • GS-III (पर्यावरण/सुरक्षा): पर्यावरण संरक्षण, आपदा प्रबंधन, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए निहितार्थ (जैसे सेना के कैंपों पर प्रभाव)।
  • GS-IV (नीतिशास्त्र): निर्णय लेने में नैतिक विचार (जैसे जोखिम वाले क्षेत्रों में निर्माण), हितधारकों की जिम्मेदारी (सरकार, नागरिक)।

C. साक्षात्कार (Interview)

प्रशासनिक अधिकारी के रूप में, उम्मीदवार से ऐसे संकटों से निपटने के लिए उसकी समझ, योजना बनाने की क्षमता और नेतृत्व कौशल का परीक्षण किया जा सकता है।

चुनौतियाँ और भविष्य की राह (Challenges and Way Forward)

भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में, विशेषकर हिमालयी क्षेत्रों में, आपदा प्रबंधन कई चुनौतियों का सामना करता है:

  • पहुँच: दूरदराज के पहाड़ी इलाकों तक पहुँचना बचाव और राहत कार्यों को कठिन बना देता है।
  • संचार: मोबाइल कनेक्टिविटी और अन्य संचार माध्यमों का टूटना अक्सर सूचना के प्रवाह को बाधित करता है।
  • संसाधन: पर्याप्त वित्तीय और मानव संसाधनों की आवश्यकता, विशेषकर समय पर।
  • समन्वय: विभिन्न सरकारी एजेंसियों, सेना, नागरिक समाज और स्थानीय समुदायों के बीच प्रभावी समन्वय।
  • जागरूकता: आम जनता और स्थानीय अधिकारियों के बीच आपदाओं के जोखिमों और उनसे बचाव के उपायों के बारे में जागरूकता की कमी।

भविष्य की राह इन चुनौतियों का समाधान करने पर केंद्रित होनी चाहिए:

  • प्रौद्योगिकी का एकीकरण: उपग्रह इमेजरी, जीआईएस (GIS), और बेहतर मौसम मॉडल का उपयोग करके अधिक सटीक और समय पर चेतावनी प्रणाली विकसित करना।
  • समुदाय-आधारित आपदा प्रबंधन: स्थानीय समुदायों को प्रशिक्षित करना और उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में शामिल करना।
  • नीतिगत सुधार: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) जैसे संस्थानों को मजबूत करना और आपदा प्रबंधन कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करना।
  • जलवायु-अनुकूल विकास: विकास परियोजनाओं को पर्यावरण की दृष्टि से स्थायी बनाना और पहाड़ी पारिस्थितिक तंत्र के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना।
  • अंतः-एजेंसी सहयोग: रक्षा, गृह मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय जैसे विभिन्न मंत्रालयों के बीच मजबूत सहयोग स्थापित करना।

“यह त्रासदी केवल एक तात्कालिक संकट नहीं है, बल्कि एक चेतावनी भी है कि हमें अपने पर्यावरण के साथ अधिक सामंजस्य स्थापित करने और भविष्य की आपदाओं के लिए अधिक बेहतर ढंग से तैयार रहने की आवश्यकता है।”

धराली की त्रासदी एक दर्दनाक सबक है। हमारे हिमालयी क्षेत्र प्रकृति के कोप के प्रति नाजुक हैं, और जलवायु परिवर्तन इस नाजुकता को बढ़ा रहा है। एक विशेषज्ञ और जिम्मेदार नागरिक के रूप में, UPSC उम्मीदवारों को इन घटनाओं के मूल कारणों, उनके प्रभावों और सबसे महत्वपूर्ण, प्रभावी समाधानों को समझना चाहिए। यह सुनिश्चित करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम भविष्य में ऐसी त्रासदियों के विनाशकारी प्रभाव को कम कर सकें और अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकें, विशेषकर उन बहादुर जवानों की जो हमारी सीमाओं की रक्षा करते हुए अपना सब कुछ जोखिम में डालते हैं।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. बादल फटना एक ऐसी घटना है जहाँ एक घंटे में 100 मिमी से अधिक वर्षा होती है।
2. यह घटना मुख्य रूप से मैदानी इलाकों में देखी जाती है।
3. पहाड़ी ढलानों पर हवा का ऊपर उठना बादल फटने की एक संभावित वजह हो सकती है।
सही कथन चुनें:
a) 1 और 2
b) 2 और 3
c) 1 और 3
d) केवल 1

उत्तर: c) 1 और 3
व्याख्या: कथन 1 सही है क्योंकि यह बादल फटने की एक मानक परिभाषा है। कथन 2 गलत है क्योंकि यह मुख्य रूप से पहाड़ी इलाकों में होता है। कथन 3 सही है क्योंकि पहाड़ी इलाकों में हवा का ऊपर उठना (Orographic lift) बादल निर्माण और फटने को बढ़ावा दे सकता है।

2. हिमालयी क्षेत्र बादल फटने की घटनाओं के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील क्यों है?
1. खड़ी ढलानें
2. अस्थिर भूविज्ञान
3. अत्यधिक वनस्पति आवरण
4. तीव्र नदी प्रणालियाँ
सही कूट का प्रयोग कर उत्तर दें:
a) 1, 2 और 4
b) 2, 3 और 4
c) 1, 3 और 4
d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: a) 1, 2 और 4
व्याख्या: खड़ी ढलानें, अस्थिर भूविज्ञान (भूस्खलन की प्रवृत्ति) और तीव्र नदी प्रणालियाँ (जो मलबे को ले जा सकती हैं) इसे संवेदनशील बनाती हैं। अत्यधिक वनस्पति आवरण (3) आमतौर पर मिट्टी को बांधे रखने में मदद करता है, जिससे भूस्खलन का खतरा कम होता है, हालांकि बादल फटने की तीव्र धाराएं वनस्पति को भी बहा ले जा सकती हैं।

3. जलवायु परिवर्तन के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन बादल फटने की घटनाओं के बारे में सही है?
a) जलवायु परिवर्तन से बादल फटने की आवृत्ति और तीव्रता में कमी आती है।
b) जलवायु परिवर्तन से अत्यधिक वर्षा की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ सकती है।
c) जलवायु परिवर्तन का बादल फटने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
d) जलवायु परिवर्तन केवल ग्लेशियरों के पिघलने को प्रभावित करता है, वर्षा को नहीं।

उत्तर: b) जलवायु परिवर्तन से अत्यधिक वर्षा की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ सकती है।
व्याख्या: जलवायु परिवर्तन से अत्यधिक मौसमी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ने की संभावना है, जिसमें भारी वर्षा और बादल फटना शामिल है।

4. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) का प्राथमिक कार्य क्या है?
a) केवल आपदाओं के बाद राहत और पुनर्वास प्रदान करना।
b) आपदाओं से संबंधित सभी पहलुओं के लिए योजना, समन्वय और कार्यान्वयन का नेतृत्व करना।
c) केवल पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित करना।
d) केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आपदाओं का प्रबंधन करना।

उत्तर: b) आपदाओं से संबंधित सभी पहलुओं के लिए योजना, समन्वय और कार्यान्वयन का नेतृत्व करना।
व्याख्या: NDMA का कार्य अधिक व्यापक है, जिसमें रोकथाम, शमन, तैयारी, प्रतिक्रिया, पुनर्वास और पुनर्निर्माण शामिल है।

5. “प्रलयंकारी धारा” (Flash Flood) शब्द का प्रयोग सबसे अधिक किस संदर्भ में किया जाता है?
a) धीमी गति से बहने वाली नदी में अचानक आने वाली बाढ़।
b) सामान्य वर्षा के दौरान नदी के जल स्तर में धीरे-धीरे वृद्धि।
c) बहुत कम समय में, अचानक और तीव्र गति से आने वाली बाढ़।
d) तटीय क्षेत्रों में तूफान से आने वाली बाढ़।

उत्तर: c) बहुत कम समय में, अचानक और तीव्र गति से आने वाली बाढ़।
व्याख्या: प्रलयंकारी धाराएँ आमतौर पर बादल फटने या भारी वर्षा के कारण होती हैं और इनकी गति और तीव्रता बहुत अधिक होती है।

6. भारत में आपदा प्रबंधन में निम्नलिखित में से कौन सा संगठन प्रमुख भूमिका निभाता है?
a) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)
b) राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF)
c) केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI)
d) भारतीय रिजर्व बैंक (RBI)

उत्तर: b) राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF)
व्याख्या: NDRF विशेष रूप से आपदाओं के दौरान बचाव और राहत कार्यों के लिए प्रशिक्षित है। ISRO भी उपग्रह डेटा के माध्यम से मदद करता है, लेकिन NDRF जमीनी स्तर पर मुख्य प्रतिक्रिया बल है।

7. धराली त्रासदी जैसी घटनाओं के लिए ‘बिल्ड बैक बेटर’ (Build Back Better) सिद्धांत का क्या अर्थ है?
a) पहले जैसी ही संरचनाओं का पुनर्निर्माण करना।
b) स्थानीय संस्कृति को ध्यान में रखते हुए पुनर्निर्माण करना।
c) भविष्य में समान आपदाओं के प्रति अधिक लचीला और सुरक्षित बुनियादी ढाँचा बनाना।
d) पुनर्निर्माण में लागत को कम करना।

उत्तर: c) भविष्य में समान आपदाओं के प्रति अधिक लचीला और सुरक्षित बुनियादी ढाँचा बनाना।
व्याख्या: यह सिद्धांत आपदा के बाद की पुनर्निर्माण प्रक्रिया को सुधार के अवसर के रूप में देखता है।

8. पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने में अनियोजित विकास का क्या योगदान हो सकता है?
1. वनोन्मूलन
2. नदी के जल निकासी पैटर्न में बाधा
3. अस्थिर ढलानों पर निर्माण
4. भूमिगत जल स्तर में वृद्धि
सही कूट का प्रयोग कर उत्तर दें:
a) 1, 2 और 3
b) 2, 3 और 4
c) 1, 3 और 4
d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: d) 1, 2, 3 और 4
व्याख्या: ये सभी कारक पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन की संवेदनशीलता को बढ़ाते हैं।

9. भारत में पूर्व चेतावनी प्रणालियों (Early Warning Systems) की मुख्य चुनौती क्या है?
a) चेतावनी जारी करने के लिए पर्याप्त मौसम डेटा की कमी।
b) चेतावनी को समय पर और प्रभावी ढंग से जोखिम वाले सभी लोगों तक पहुँचाने में कठिनाई।
c) चेतावनियों की सटीकता में अत्यधिक भिन्नता।
d) अंतरराष्ट्रीय सहयोग की कमी।

उत्तर: b) चेतावनी को समय पर और प्रभावी ढंग से जोखिम वाले सभी लोगों तक पहुँचाने में कठिनाई।
व्याख्या: डेटा उपलब्ध है, लेकिन दूरदराज के इलाकों में संचार की कमी या जागरूकता की कमी अंतिम मील तक चेतावनी पहुँचाने को चुनौतीपूर्ण बनाती है।

10. धराली त्रासदी के संदर्भ में, 10 सेना के जवानों का लापता होना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए क्या निहितार्थ रखता है?
a) यह केवल एक मानवीय मुद्दा है, सुरक्षा से संबंधित नहीं।
b) यह बचाव कार्यों की जटिलता को दर्शाता है और सैन्य संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव डालता है।
c) इसका राष्ट्रीय सुरक्षा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
d) यह दिखाता है कि सेना को पहाड़ी क्षेत्रों में नहीं होना चाहिए।

उत्तर: b) यह बचाव कार्यों की जटिलता को दर्शाता है और सैन्य संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव डालता है।
व्याख्या: सेना की मौजूदगी वाले क्षेत्रों में ऐसी घटनाएँ सीधे तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी होती हैं, खासकर जब जवान हताहत या लापता हों।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. “उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएँ केवल वायुमंडलीय घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि ये जटिल अंतःक्रियाओं का परिणाम हैं जिनमें भूवैज्ञानिक, पारिस्थितिकीय और मानव-निर्मित कारक शामिल हैं। इस कथन का विश्लेषण करते हुए, ऐसे खतरों को कम करने के लिए एक एकीकृत आपदा प्रबंधन दृष्टिकोण का प्रस्ताव दें।” (250 शब्द, 15 अंक)
2. जलवायु परिवर्तन भारतीय हिमालयी क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता को कैसे बढ़ा रहा है? धराली त्रासदी के आलोक में, प्रभावी पूर्व चेतावनी प्रणालियों और सामुदायिक सहभागिता के महत्व पर प्रकाश डालें। (250 शब्द, 15 अंक)
3. आपदा प्रबंधन के ‘बिल्ड बैक बेटर’ (Build Back Better) सिद्धांत का क्या तात्पर्य है? धराली जैसे क्षेत्रों में भविष्य के विकास के लिए इस सिद्धांत को लागू करने में क्या चुनौतियाँ हैं और इन चुनौतियों का समाधान कैसे किया जा सकता है? (150 शब्द, 10 अंक)
4. हिमालयी क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के विकास (जैसे सेना के कैंप, सड़कें) और प्राकृतिक आपदाओं के बीच संतुलन बनाना एक बड़ी चुनौती है। इस चुनौती से निपटने के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए, जिसमें पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) और जोखिम-आधारित नियोजन की भूमिका शामिल हो? (150 शब्द, 10 अंक)

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