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जंजीरों में जकड़ा श्रद्धालु: श्रावणी मेले की घटना, धार्मिक स्वतंत्रता और अंधविश्वास – UPSC के लिए एक गहन विश्लेषण

जंजीरों में जकड़ा श्रद्धालु: श्रावणी मेले की घटना, धार्मिक स्वतंत्रता और अंधविश्वास – UPSC के लिए एक गहन विश्लेषण

चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल ही में बिहार के प्रसिद्ध श्रावणी मेले में एक असामान्य घटना ने सभी का ध्यान खींचा। एक श्रद्धालु स्वयं को जंजीरों में जकड़कर ‘कैदी बम’ के रूप में पहुंचा और दावा किया कि यह उसे ‘भोलेनाथ’ (भगवान शिव) का निर्देश था। यह घटना धार्मिक आस्था, अंधविश्वास, सार्वजनिक व्यवस्था और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सीमाओं पर एक गंभीर बहस को जन्म देती है। यह विषय UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह GS पेपर I (भारतीय समाज, कला और संस्कृति), GS पेपर II (शासन, संविधान – मौलिक अधिकार, राज्य की भूमिका), और GS पेपर IV (नीतिशास्त्र – धर्मनिष्ठा, तर्कसंगतता, सामाजिक कल्याण) से संबंधित है।


एक असाधारण घटना का बहुआयामी विश्लेषण

विषय का परिचय: आस्था, अंधविश्वास और सामाजिक ताना-बाना

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहाँ आस्था और परंपराओं का गहरा महत्व है। यहाँ विभिन्न धर्मों, संप्रदायों और मान्यताओं का एक विशाल समागम देखने को मिलता है। श्रावणी मेला, विशेष रूप से काँवर यात्रा, करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है, जहाँ वे भगवान शिव को जल चढ़ाने के लिए कठिन यात्राएँ करते हैं। यह श्रद्धा का एक अद्भुत प्रदर्शन है, जो भारतीय संस्कृति और समाज का एक अभिन्न अंग है।

परंतु, हाल ही में बिहार के श्रावणी मेले में घटी ‘कैदी बम’ श्रद्धालु की घटना ने इस आस्था के स्वरूप पर कुछ गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। स्वयं को जंजीरों में जकड़कर ‘कैदी बम’ बताना और यह दावा करना कि यह दैवीय निर्देश है, एक ओर जहाँ व्यक्तिगत आस्था की चरम सीमा को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर यह अंधविश्वास, सार्वजनिक सुरक्षा और तर्कसंगत सोच की कमी जैसे मुद्दों को भी उजागर करता है। यह घटना सिर्फ एक व्यक्तिगत कृत्य नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में व्याप्त कुछ गहरे अंतर्विरोधों और चुनौतियों का प्रतीक है, जिन्हें UPSC उम्मीदवारों को व्यापक दृष्टिकोण से समझना आवश्यक है। यह हमें मौलिक अधिकारों, विशेषकर धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की सीमाओं, राज्य की भूमिका और समाज में वैज्ञानिक सोच के विकास की आवश्यकता पर विचार करने को बाध्य करती है।

प्रमुख प्रावधान / मुख्य बिंदु: संवैधानिक परिप्रेक्ष्य और सामाजिक आयाम

यह घटना भारतीय संविधान में निहित मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार, और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के बीच संतुलन स्थापित करने की चुनौती को स्पष्ट करती है। इसे कई प्रमुख बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:

  • धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28):

    • अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता): यह अनुच्छेद अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। हालांकि, यह स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है और सार्वजनिक व्यवस्था (Public Order), नैतिकता (Morality) और स्वास्थ्य (Health) के अधीन है। ‘कैदी बम’ जैसे कृत्य सार्वजनिक व्यवस्था और स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे इस अधिकार की सीमाओं पर सवाल उठता है।
    • अनुच्छेद 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता): यह अनुच्छेद धार्मिक संस्थाओं को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता देता है। लेकिन इसमें भी सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अपवाद लागू होते हैं।
    • यह घटना दर्शाती है कि व्यक्तिगत धार्मिक आचरण कहाँ सार्वजनिक हित के साथ टकरा सकता है।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास (अनुच्छेद 51A(h) – मौलिक कर्तव्य):

    • संविधान का अनुच्छेद 51A(h) प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य निर्धारित करता है कि वह ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे’।
    • ‘भोलेनाथ के निर्देश’ पर स्वयं को जंजीरों में बांधना वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तर्कसंगत सोच के विपरीत प्रतीत होता है। यह घटना समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रसार की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
  • सार्वजनिक व्यवस्था और कानून-व्यवस्था:

    • सरकार और कानून प्रवर्तन एजेंसियों का प्राथमिक कर्तव्य सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा बनाए रखना है। ‘कैदी बम’ की वेशभूषा और उसके बयानों से दहशत फैल सकती है और भगदड़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जो सार्वजनिक व्यवस्था के लिए सीधा खतरा है।
    • ऐसे कृत्यों को सार्वजनिक उपद्रव (Public Nuisance) या यहां तक कि आत्मघाती प्रवृत्ति के रूप में देखा जा सकता है, जिन पर कानून के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
  • अंधविश्वास और सामाजिक सुधार:

    • यह घटना अंधविश्वास की गहरी जड़ों को दर्शाती है जो आधुनिक समाज में भी मौजूद हैं। भारत में अनेक राज्य (जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक) अंधविश्वास विरोधी कानून लाए हैं, जो ऐसी प्रथाओं को रोकने का प्रयास करते हैं जो लोगों को नुकसान पहुंचाती हैं या उनका शोषण करती हैं।
    • यह शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से सामाजिक सुधार की आवश्यकता पर बल देती है ताकि लोग तर्कसंगत सोच विकसित कर सकें।
  • मानसिक स्वास्थ्य का पहलू:

    • कुछ अत्यधिक असामान्य धार्मिक या स्व-हानिकारक व्यवहार मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों का संकेत भी हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को दंडित करने के बजाय उचित परामर्श और चिकित्सा सहायता की आवश्यकता हो सकती है।
    • यह प्रशासन के लिए चुनौती है कि वह आस्था और संभावित मानसिक स्वास्थ्य समस्या के बीच अंतर कैसे करे।
  • धर्मनिरपेक्षता का अर्थ:

    • भारत की धर्मनिरपेक्षता राज्य द्वारा धर्म में गैर-हस्तक्षेप की नीति है, लेकिन यह पूर्ण नहीं है। राज्य को सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप करने का अधिकार है।
    • यह घटना इस संतुलन की नाजुक प्रकृति को दर्शाती है।

पक्ष और विपक्ष (Pros and Cons)

सकारात्मक पहलू (Positives) – धार्मिक स्वतंत्रता के व्यापक संदर्भ में

हालांकि ‘कैदी बम’ घटना के सीधे सकारात्मक पहलू नहीं हैं, फिर भी यह धार्मिक स्वतंत्रता के व्यापक संदर्भ में कुछ बिंदुओं को समझने का अवसर प्रदान करती है, जिसके माध्यम से यह घटना प्रकाश में आई:

  • व्यक्तिगत आस्था का अधिकार: भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को मानने और उसका आचरण करने का मौलिक अधिकार देता है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जो व्यक्ति को अपनी आध्यात्मिकता को व्यक्त करने की छूट देता है।
  • विविधता और सहिष्णुता: धार्मिक स्वतंत्रता भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता का आधार है। यह विभिन्न धार्मिक प्रथाओं और मान्यताओं के सह-अस्तित्व को बढ़ावा देती है, जिससे समाज में सहिष्णुता और आपसी सम्मान का वातावरण बनता है।
  • आत्मिक संतुष्टि और सामाजिक सामंजस्य: लाखों लोगों के लिए धर्म आत्मिक शांति, नैतिक मार्गदर्शन और सामुदायिक जुड़ाव का स्रोत है। सामूहिक धार्मिक आयोजन (जैसे श्रावणी मेला) सामाजिक बंधन मजबूत करते हैं और लोगों को साझा पहचान का अनुभव कराते हैं।
  • सरकार का गैर-हस्तक्षेप: एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के रूप में, भारत में सरकार सामान्यतः धार्मिक मामलों में तब तक हस्तक्षेप नहीं करती जब तक कि वे सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता या स्वास्थ्य के लिए खतरा न हों। यह धार्मिक समुदायों को अपनी परंपराओं को संरक्षित रखने की स्वायत्तता देता है।

नकारात्मक पहलू / चिंताएँ (Negatives / Concerns) – ‘कैदी बम’ घटना के संदर्भ में

यह घटना कई गंभीर चिंताओं को जन्म देती है, जो धार्मिक स्वतंत्रता की सीमाओं और उसके दुरुपयोग से संबंधित हैं:

  • सार्वजनिक सुरक्षा और व्यवस्था को खतरा: स्वयं को ‘बम’ के रूप में पेश करना, चाहे वह प्रतीकात्मक ही क्यों न हो, एक घनी आबादी वाले मेले में दहशत और भगदड़ पैदा कर सकता है। यह सार्वजनिक सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के लिए सीधा खतरा है।
  • अंधविश्वास और तर्कहीनता का प्रचार: ‘दैवीय निर्देश’ के नाम पर असामान्य और संभावित रूप से हानिकारक कृत्य करना अंधविश्वास को बढ़ावा देता है। यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तर्कसंगत सोच के विकास में बाधा डालता है, जो संवैधानिक कर्तव्य (अनुच्छेद 51A(h)) है।
  • आत्म-हानि और शोषण की संभावना: ऐसे चरम व्यवहार आत्म-हानि का कारण बन सकते हैं या मानसिक रूप से कमजोर व्यक्तियों के शोषण का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं, जहाँ उन्हें किसी ‘गुरु’ या समूह द्वारा ऐसे कृत्यों के लिए उकसाया जा सकता है।
  • कानून प्रवर्तन पर बोझ: ऐसे असामान्य व्यवहारों से निपटने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों को अतिरिक्त संसाधनों और समय का उपयोग करना पड़ता है, जिससे उनका मुख्य कार्य प्रभावित होता है।
  • धर्म की बदनामी: इस प्रकार के विचित्र कृत्य अक्सर व्यापक धार्मिक समुदाय को नकारात्मक रूप में प्रस्तुत करते हैं और उनकी छवि को धूमिल करते हैं, जबकि अधिकांश धार्मिक अनुष्ठान शांतिपूर्ण और सार्थक होते हैं।
  • भेदभाव और सामाजिक विभाजन: कुछ चरमपंथी धार्मिक आचरण समाज में भेदभाव और विभाजन को बढ़ावा दे सकते हैं, विशेषकर जब वे अन्य समुदायों की भावनाओं को आहत करते हैं या उन्हें धमकी देते हैं।

चुनौतियाँ और आगे की राह (Challenges and Way Forward)

इस प्रकार की घटनाओं के कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं, जिनमें धार्मिक संवेदनशीलता, कानूनी जटिलताएँ और सामाजिक जड़ता शामिल हैं:

  • धर्म और तर्क के बीच संतुलन: यह निर्धारित करना एक बड़ी चुनौती है कि कहाँ आस्था अंधविश्वास में बदल जाती है और कहाँ राज्य को हस्तक्षेप करना चाहिए। धार्मिक भावनाएँ अक्सर गहरी और संवेदनशील होती हैं, और उनमें हस्तक्षेप से राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएँ हो सकती हैं।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव: शिक्षा के प्रसार के बावजूद, समाज के एक बड़े वर्ग में अभी भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण की कमी है, जिससे वे आसानी से अंधविश्वासी प्रथाओं या चरमपंथी व्याख्याओं के शिकार हो जाते हैं।
  • कानूनी अस्पष्टता: कुछ धार्मिक प्रथाओं को सीधे दंडित करना मुश्किल हो सकता है यदि वे सीधे तौर पर किसी को नुकसान न पहुंचाएं या किसी स्पष्ट कानून का उल्लंघन न करें। ‘सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य’ की परिभाषा अक्सर व्यक्तिपरक हो सकती है।
  • प्रशासनिक संवेदनशीलता: त्योहारों और धार्मिक आयोजनों के दौरान, प्रशासन को अत्यधिक सावधानी बरतनी पड़ती है ताकि धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचे, जबकि कानून-व्यवस्था भी बनी रहे।
  • मीडिया की भूमिका: कुछ मीडिया आउटलेट्स ऐसी घटनाओं को सनसनीखेज तरीके से पेश कर सकते हैं, जिससे अंधविश्वास को अनजाने में बढ़ावा मिल सकता है।

आगे की राह: इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक व्यापक और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें निम्नलिखित उपाय शामिल होने चाहिए:

  • शिक्षा और जागरूकता:
    • वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रचार: स्कूलों और कॉलेजों में विज्ञान शिक्षा को मजबूत करना और तार्किक सोच को बढ़ावा देना।
    • जन जागरूकता अभियान: सरकार, नागरिक समाज संगठनों और जिम्मेदार धार्मिक नेताओं द्वारा अंधविश्वास के खतरों के बारे में जागरूकता अभियान चलाना। ‘अंधश्रद्धा निर्मूलन’ जैसी संस्थाओं के कार्यों को प्रोत्साहित करना।
  • संवैधानिक प्रावधानों का सुदृढ़ कार्यान्वयन:
    • अनुच्छेद 25 की व्याख्या: न्यायालयों और प्रशासन को अनुच्छेद 25 में निहित ‘सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य’ के अपवादों की स्पष्ट और सुसंगत व्याख्या करनी चाहिए ताकि ऐसी प्रथाओं पर रोक लगाई जा सके जो इन मानदंडों का उल्लंघन करती हैं।
    • कानूनी उपाय: यदि आवश्यक हो, तो महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन और जादू-टोना विरोधी अधिनियम जैसे राज्यों के कानूनों को अन्य राज्यों में भी लागू करने पर विचार किया जा सकता है, जो हानिकारक और शोषणकारी अंधविश्वासी प्रथाओं पर रोक लगाते हैं।
  • पुलिस और प्रशासन की संवेदनशीलता:
    • पुलिस कर्मियों को ऐसे मामलों में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए ताकि वे धार्मिक संवेदनशीलता के साथ-साथ कानून-व्यवस्था और सार्वजनिक सुरक्षा के पहलुओं को संतुलित कर सकें।
    • त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली विकसित करना ताकि ऐसी किसी भी घटना को शुरुआती चरण में ही नियंत्रित किया जा सके।
  • मानसिक स्वास्थ्य सहायता:
    • यदि ऐसे कृत्यों के पीछे मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं पाई जाती हैं, तो व्यक्ति को दंडित करने के बजाय उचित मनोचिकित्सीय परामर्श और सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
    • सामुदायिक मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करना।
  • जिम्मेदार मीडिया रिपोर्टिंग:
    • मीडिया को ऐसी घटनाओं की रिपोर्टिंग करते समय सनसनीखेज से बचना चाहिए और इसके बजाय इसके सामाजिक, कानूनी और नैतिक पहलुओं पर विचारशील विश्लेषण प्रस्तुत करना चाहिए।
  • धार्मिक नेताओं की भूमिका:
    • जिम्मेदार धार्मिक नेताओं को अपने अनुयायियों को तर्कसंगतता, नैतिकता और समाज कल्याण के सिद्धांतों के अनुसार धार्मिक प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। उन्हें अंधविश्वास के खिलाफ मुखर होना चाहिए।

अंततः, ‘कैदी बम’ जैसी घटनाएँ हमें अपने समाज की जटिलताओं की याद दिलाती हैं, जहाँ आस्था, परंपरा, तर्क और कानून सभी एक साथ मौजूद हैं। एक प्रगतिशील समाज के रूप में, हमें इन सभी आयामों को संतुलित करने का प्रयास करना चाहिए ताकि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए भी सार्वजनिक सुरक्षा और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दिया जा सके। यह नागरिकों और राज्य दोनों के लिए एक सतत सीखने और अनुकूलन की प्रक्रिया है।


UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. निम्नलिखित में से कौन सा/से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 में उल्लिखित ‘सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य’ के अपवादों के अंतर्गत आ सकता/सकते है/हैं?

    1. सार्वजनिक स्थान पर अत्यधिक शोर-शराबा करने वाला धार्मिक जुलूस।
    2. मानव बलि की प्रथा।
    3. किसी धर्म को बढ़ावा देने के लिए सरकारी धन का उपयोग।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    • (a) केवल I और II
    • (b) केवल II और III
    • (c) केवल I और III
    • (d) I, II और III

    उत्तर: (a)

    व्याख्या: सार्वजनिक स्थान पर अत्यधिक शोर-शराबा करने वाला धार्मिक जुलूस सार्वजनिक व्यवस्था को भंग कर सकता है। मानव बलि की प्रथा नैतिकता और स्वास्थ्य दोनों का उल्लंघन करती है। किसी धर्म को बढ़ावा देने के लिए सरकारी धन का उपयोग अनुच्छेद 27 का उल्लंघन हो सकता है, लेकिन यह सीधे तौर पर अनुच्छेद 25 के ‘सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य’ अपवादों के अंतर्गत नहीं आता है, जो धार्मिक आचरण से संबंधित हैं।

  2. भारत के संविधान का कौन सा अनुच्छेद ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास’ करने को नागरिकों का मौलिक कर्तव्य मानता है?

    • (a) अनुच्छेद 39A
    • (b) अनुच्छेद 48A
    • (c) अनुच्छेद 51A(h)
    • (d) अनुच्छेद 50

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: अनुच्छेद 51A(h) नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों में से एक के रूप में ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास’ को निर्दिष्ट करता है।

  3. भारतीय संविधान के तहत ‘धर्मनिरपेक्षता’ के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. भारत में राज्य का कोई विशेष धर्म नहीं है।
    2. राज्य धार्मिक मामलों में तब तक हस्तक्षेप नहीं कर सकता जब तक कि वे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न करें।
    3. धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा पश्चिमी अवधारणा से भिन्न है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

    • (a) केवल I और II
    • (b) केवल II और III
    • (c) केवल I और III
    • (d) I, II और III

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: भारत में राज्य का कोई विशेष धर्म नहीं है (I)। राज्य धार्मिक मामलों में सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, स्वास्थ्य और मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में हस्तक्षेप कर सकता है (II)। भारतीय धर्मनिरपेक्षता राज्य द्वारा सभी धर्मों के प्रति तटस्थता और समानता के साथ सक्रिय समर्थन का एक जटिल मॉडल है, जो पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता (धर्म और राज्य का पूर्ण पृथक्करण) से भिन्न है (III)।

  4. श्रावणी मेले जैसी घटनाओं के संदर्भ में ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ (Public Order) पद का क्या अर्थ हो सकता है?

    1. कानून-व्यवस्था का सामान्य रखरखाव।
    2. दंगों और हिंसा की रोकथाम।
    3. अंधविश्वासी प्रथाओं का दमन।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    • (a) केवल I
    • (b) केवल I और II
    • (c) केवल II और III
    • (d) I, II और III

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ व्यापक रूप से समाज में शांति और सुरक्षा बनाए रखने को संदर्भित करता है, जिसमें कानून-व्यवस्था का सामान्य रखरखाव और दंगों व हिंसा की रोकथाम शामिल है। अंधविश्वासी प्रथाओं का दमन सीधे तौर पर ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ के तहत नहीं आता, बल्कि यह ‘नैतिकता’ या विशिष्ट कानूनों (जैसे अंधविश्वास विरोधी कानून) का विषय हो सकता है, जब तक कि वे सीधे तौर पर सार्वजनिक शांति भंग न करें।

  5. निम्नलिखित में से कौन सा कथन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत धार्मिक संप्रदायों की स्वतंत्रता का सबसे अच्छा वर्णन करता है?

    • (a) यह संप्रदायों को धर्म के आधार पर किसी भी कानून का उल्लंघन करने की पूर्ण स्वतंत्रता देता है।
    • (b) यह धार्मिक संप्रदायों को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता देता है, लेकिन सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन।
    • (c) यह संप्रदायों को अपने सदस्यों को किसी भी कानून का पालन करने से छूट देने की अनुमति देता है।
    • (d) यह संप्रदायों को असीमित धन संग्रह और उसके उपयोग की शक्ति प्रदान करता है।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: अनुच्छेद 26 धार्मिक संप्रदायों को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता देता है, लेकिन यह स्वतंत्रता भी अनुच्छेद 25 की तरह सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है। अन्य विकल्प गलत हैं क्योंकि धार्मिक स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है।

  6. भारत में ‘अंधश्रद्धा निर्मूलन’ (उन्मूलन) के प्रयासों के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा मौलिक कर्तव्य सबसे अधिक प्रासंगिक है?

    • (a) सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और हिंसा से दूर रहना।
    • (b) हमारी मिश्रित संस्कृति की समृद्ध विरासत का सम्मान करना और उसे बनाए रखना।
    • (c) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करना।
    • (d) प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना।

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: ‘अंधश्रद्धा निर्मूलन’ सीधे तौर पर तर्कहीन और हानिकारक प्रथाओं को खत्म करने से संबंधित है, जिसके लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सुधार की भावना का विकास आवश्यक है। यह अनुच्छेद 51A(h) में वर्णित मौलिक कर्तव्य से सीधा संबंध रखता है।

  7. किस समिति की सिफारिशों के आधार पर मौलिक कर्तव्यों को भारतीय संविधान में जोड़ा गया था?

    • (a) बलवंत राय मेहता समिति
    • (b) स्वर्ण सिंह समिति
    • (c) के.एम. मुंशी समिति
    • (d) अशोक मेहता समिति

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: मौलिक कर्तव्यों को 1976 के 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर भारतीय संविधान में जोड़ा गया था।

  8. भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. यह केवल भारतीय नागरिकों के लिए उपलब्ध है, विदेशियों के लिए नहीं।
    2. यह किसी भी व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
    3. राज्य द्वारा धर्म के मामलों में सामाजिक सुधार के उद्देश्य से कानून बनाए जा सकते हैं।

    उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

    • (a) केवल I और II
    • (b) केवल II और III
    • (c) केवल I और III
    • (d) I, II और III

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: अनुच्छेद 25 केवल भारतीय नागरिकों के लिए नहीं, बल्कि भारत में रहने वाले सभी व्यक्तियों (भारतीयों और विदेशियों दोनों) के लिए उपलब्ध है (I गलत)। यह किसी भी व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने की स्वतंत्रता प्रदान करता है (II सही)। अनुच्छेद 25 (2)(b) स्पष्ट रूप से राज्य को सामाजिक कल्याण और सुधार के लिए कानून बनाने या सार्वजनिक प्रकार की हिंदू धार्मिक संस्थाओं को हिंदुओं के सभी वर्गों के लिए खोलने का अधिकार देता है (III सही)।

  9. निम्नलिखित में से कौन सा संवैधानिक प्रावधान भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को सीधे प्रभावित करता है?

    1. प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द।
    2. मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 25-28)।
    3. मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद 51A)।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    • (a) केवल I और II
    • (b) केवल II और III
    • (c) केवल I और III
    • (d) I, II और III

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को स्पष्ट रूप से स्थापित करता है। मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 25-28) धार्मिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करते हुए धर्मनिरपेक्षता को व्यवहार में लाते हैं। मौलिक कर्तव्य, विशेष रूप से अनुच्छेद 51A(h) (वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास), अप्रत्यक्ष रूप से धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को बढ़ावा देते हैं।

  10. भारत में ‘सार्वजनिक नैतिकता’ (Public Morality) के संदर्भ में, सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों ने क्या भूमिका निभाई है?

    1. अदालत ने ‘नैतिकता’ को संविधान के अनुरूप विकसित होने वाली अवधारणा के रूप में व्याख्या किया है।
    2. ‘नैतिकता’ केवल बहुसंख्यक समुदाय की प्रथाओं तक सीमित है।
    3. यह व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाने का एक आधार है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

    • (a) केवल I
    • (b) केवल I और II
    • (c) केवल I और III
    • (d) I, II और III

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: सर्वोच्च न्यायालय ने ‘नैतिकता’ को ‘संवैधानिक नैतिकता’ (Constitutional Morality) के रूप में व्याख्या किया है, जो संविधान के मूल्यों और सिद्धांतों के अनुरूप विकसित होती है, न कि केवल बहुसंख्यक समुदाय की रूढ़िवादी प्रथाओं तक सीमित (I सही, II गलत)। यह धार्मिक स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाने का एक आधार रहा है, खासकर जब धार्मिक प्रथाएं मानव गरिमा या समानता के संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करती हैं (III सही)।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार और सार्वजनिक व्यवस्था एवं नैतिकता बनाए रखने के राज्य के कर्तव्य के बीच संतुलन स्थापित करने की चुनौतियाँ क्या हैं? उदाहरणों के साथ विश्लेषण कीजिए।
  2. “श्रावणी मेले में ‘कैदी बम’ की घटना न केवल व्यक्तिगत आस्था का एक चरम प्रदर्शन है, बल्कि यह समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रसार की आवश्यकता को भी रेखांकित करती है।” इस कथन के आलोक में भारतीय समाज में अंधविश्वास के कारणों और इसे कम करने के लिए मौलिक कर्तव्यों की भूमिका का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  3. धार्मिक त्योहारों और बड़े आयोजनों के दौरान ‘असामान्य’ धार्मिक प्रथाओं से निपटने में कानून प्रवर्तन एजेंसियों और स्थानीय प्रशासन को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? इन चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए एक बहुआयामी रणनीति का सुझाव दीजिए।

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