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चोल साम्राज्य: मोदी के ‘विकसित भारत’ का प्राचीन रोडमैप – सेना, व्यापार और अवसरों का संगम

चोल साम्राज्य: मोदी के ‘विकसित भारत’ का प्राचीन रोडमैप – सेना, व्यापार और अवसरों का संगम

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने चोल साम्राज्य को ‘विकसित भारत’ के लिए एक प्राचीन रोडमैप करार दिया है। उन्होंने चोलों की सैन्य शक्ति, समुद्री प्रभुत्व, व्यापारिक विस्तार और कुशल प्रशासन की सराहना की, यह कहते हुए कि ये तत्व आधुनिक भारत के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शक सिद्धांत प्रदान करते हैं। यह बयान न केवल भारतीय इतिहास की समृद्ध विरासत को उजागर करता है, बल्कि वर्तमान राष्ट्रीय लक्ष्यों को अतीत से जोड़कर एक शक्तिशाली संदेश भी देता है। यह ब्लॉग पोस्ट चोल साम्राज्य की उन विशिष्टताओं का विस्तृत विश्लेषण करेगा जो आज के भारत के लिए प्रासंगिक हैं, विशेष रूप से रक्षा, आर्थिक विकास और वैश्विक अवसरों की तलाश के संदर्भ में।

परिचय: जब इतिहास वर्तमान से मिलता है

भारत की भूमि ज्ञान, संस्कृति और कूटनीति की वह भूमि रही है जहाँ सदियों से महान साम्राज्यों का उदय और पतन हुआ है। इन साम्राज्यों की उपलब्धियाँ केवल अतीत के पन्ने नहीं हैं, बल्कि वे आज भी हमारे समाज, हमारी अर्थव्यवस्था और हमारी राष्ट्रीय आकांक्षाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। चोल साम्राज्य, जो नौवीं से बारहवीं शताब्दी तक दक्षिण भारत पर हावी रहा, इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है। प्रधानमंत्री मोदी का यह कहना कि चोल साम्राज्य ‘विकसित भारत’ के लिए एक प्राचीन रोडमैप जैसा है, इस बात की ओर इशारा करता है कि कैसे एक सुदूर अतीत की व्यवस्थाएं आज की आधुनिक चुनौतियों और अवसरों से जुड़ सकती हैं।

यह वक्तव्य केवल ऐतिहासिक प्रशंसा तक सीमित नहीं है। यह एक राजनीतिक और सांस्कृतिक एजेंडा भी प्रस्तुत करता है, जो भारत की प्राचीन शक्ति और क्षमता को पुनर्जीवित करने की बात करता है। जब हम ‘विकसित भारत’ की बात करते हैं, तो इसका अर्थ केवल आर्थिक समृद्धि नहीं है, बल्कि इसमें एक मजबूत राष्ट्रीय सुरक्षा, वैश्विक स्तर पर प्रभाव और अपने नागरिकों के लिए अवसरों का विस्तार भी शामिल है। चोलों ने ये सब कैसे हासिल किया, यही हमारे विश्लेषण का केंद्र बिंदु होगा।

चोल साम्राज्य: एक सिंहावलोकन

चोल साम्राज्य, जिसका केंद्र कावेरी नदी के डेल्टा क्षेत्र में था, भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली साम्राज्यों में से एक था। कारिकल, राजेंद्र चोल प्रथम और कुलोत्तुंग चोल जैसे शासकों के अधीन, चोलों ने एक विशाल क्षेत्र पर शासन किया, जिसमें वर्तमान तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल और यहां तक कि श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ हिस्सों को भी शामिल किया गया था।

चोलों की महानता के कई स्तंभ थे:

  • सैन्य शक्ति: उनकी सुसंगठित सेना, विशेष रूप से नौसेना, उन्हें दक्षिण पूर्व एशिया तक अपने प्रभाव का विस्तार करने में सक्षम बनाती थी।
  • आर्थिक समृद्धि: कृषि, व्यापार और शिल्प में उनकी दक्षता ने एक समृद्ध अर्थव्यवस्था का निर्माण किया।
  • प्रशासनिक कुशलता: विकेन्द्रीकृत स्थानीय स्व-शासन (ग्राम सभाएं) और एक कुशल नौकरशाही उनकी सफलता की कुंजी थी।
  • कला और वास्तुकला: तंजावुर के बृहदेश्वर मंदिर जैसे शानदार स्मारकों का निर्माण उनकी कलात्मक उपलब्धियों का प्रतीक है।

प्रधानमंत्री मोदी के वक्तव्य का मुख्य सार इन उपलब्धियों से वर्तमान भारत के लिए सीख लेना है। आइए, इन पहलुओं को विस्तार से देखें जो ‘विकसित भारत’ के निर्माण में प्रासंगिक हैं।

1. सेना की मजबूती: नौसैनिक शक्ति और राष्ट्रीय सुरक्षा

प्रधानमंत्री ने विशेष रूप से ‘सेना की मजबूती’ का उल्लेख किया। चोलों के संदर्भ में, यह सीधे तौर पर उनकी दुर्जेय नौसेना से जुड़ता है।

चोलों की नौसैनिक शक्ति: एक प्राचीन महाशक्ति

चोलों को भारत की सबसे शक्तिशाली नौसैनिक शक्तियों में से एक माना जाता है। उनकी नौसेना केवल तटीय रक्षा तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह एक आक्रामक और विस्तारवादी शक्ति थी।

  • सामरिक महत्व: चोल साम्राज्य की नौसेना ने उन्हें हिंद महासागर में प्रभुत्व स्थापित करने में मदद की। यह नौसेना मालदीव, लक्षद्वीप और श्रीलंका तक फैली हुई थी।
  • श्री विजय साम्राज्य पर अभियान: चोलों का सबसे उल्लेखनीय नौसैनिक अभियान राजेंद्र चोल प्रथम (1014-1044 ईस्वी) के शासनकाल में हुआ, जब उन्होंने श्री विजय साम्राज्य (वर्तमान इंडोनेशिया और मलेशिया) पर आक्रमण किया। इस अभियान ने न केवल चोलों की सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया, बल्कि यह दर्शाता है कि भारतीय सेनाएँ कितनी दूर तक अपने प्रभाव का विस्तार कर सकती थीं।
  • व्यापार मार्ग की सुरक्षा: एक मजबूत नौसेना ने चोलों को अपने विशाल समुद्री व्यापार मार्गों की रक्षा करने में सक्षम बनाया। यह उस समय महत्वपूर्ण था जब व्यापार हिंद महासागर के माध्यम से ही होता था।

आधुनिक भारत के लिए प्रासंगिकता:

आज, भारत एक ‘हिंद-प्रशांत’ (Indo-Pacific) क्षेत्र में स्थित है, जो वैश्विक शक्ति संतुलन का केंद्र बिंदु बन गया है। यहाँ एक मजबूत नौसेना केवल तटीय सुरक्षा के लिए ही नहीं, बल्कि:

  • समुद्री व्यापार की सुरक्षा: भारत का अधिकांश व्यापार समुद्री मार्गों से होता है। समुद्री डाकुओं, आतंकवाद और अन्य खतरों से इन मार्गों की रक्षा के लिए एक मजबूत नौसेना अनिवार्य है।
  • क्षेत्रीय प्रभाव: हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का बढ़ता प्रभाव उसकी नौसेना की क्षमता पर निर्भर करता है। यह भारत को एक प्रमुख समुद्री शक्ति के रूप में स्थापित करता है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा: चीन के बढ़ते नौसैनिक प्रभाव और अन्य भू-राजनीतिक चुनौतियों के मद्देनजर, भारत की नौसेना का आधुनिकीकरण और विस्तार राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सर्वोपरि है।
  • ‘मेक इन इंडिया’ और आत्मनिर्भरता: नौसेना के जहाजों और रक्षा उपकरणों का स्वदेशी निर्माण ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल को बढ़ावा देता है, जो चोलों की आत्मनिर्भरता की भावना से मेल खाता है।

उपमा: जिस प्रकार चोलों की नौसेना ने हिंद महासागर पर अपना ध्वज फहराया, उसी प्रकार आधुनिक भारत की नौसेना को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता और अपने राष्ट्रीय हितों को बनाए रखने के लिए एक प्रहरी के रूप में कार्य करना चाहिए।

2. नए अवसरों की तलाश: व्यापार, कूटनीति और वैश्वीकरण

प्रधानमंत्री का दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु ‘नए अवसरों की तलाश’ है, जिसे चोलों के आर्थिक और सांस्कृतिक विस्तार से जोड़ा जा सकता है।

चोलों का व्यापारिक साम्राज्य: एक प्राचीन वैश्वीकरण

चोल साम्राज्य एक विशाल व्यापारिक नेटवर्क का हिस्सा था। उन्होंने अपनी नौसैनिक शक्ति का उपयोग दूर-दराज के क्षेत्रों के साथ व्यापार करने के लिए किया।

  • दक्षिण पूर्व एशिया के साथ व्यापार: चोलों ने मलाया, सुमात्रा, जावा और चीन के साथ सक्रिय व्यापारिक संबंध बनाए रखे। वे काली मिर्च, रेशम, मसाले, हाथी दांत और वस्त्र जैसे उत्पादों का आयात-निर्यात करते थे।
  • आंतरिक व्यापार: कृषि उत्पादन, विशेष रूप से चावल, आंतरिक व्यापार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। कावेरी डेल्टा अपनी उपजाऊ भूमि के लिए प्रसिद्ध था।
  • शहर और बंदरगाह: तंजावुर, कावेरीपट्टिनम, पुहार और महाबलीपुरम जैसे शहर व्यापार और वाणिज्य के महत्वपूर्ण केंद्र थे।
  • मुद्रा और विनियमन: चोलों ने अपनी मुद्राएं जारी कीं और व्यापार को विनियमित करने के लिए नियम बनाए, जिससे एक स्थिर आर्थिक वातावरण बना।

आधुनिक भारत के लिए प्रासंगिकता:

आज, भारत ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘न्यू इंडिया’ के दृष्टिकोण के साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी स्थिति मजबूत करने का प्रयास कर रहा है। चोलों के अनुभव से हम सीख सकते हैं:

  • वैश्विक बाजार का लाभ उठाना: भारत को अपने उत्पादों और सेवाओं के लिए नए वैश्विक बाजारों की तलाश करनी चाहिए। पूर्वी एशिया, अफ्रीका और पश्चिमी देशों के साथ व्यापार संबंधों को मजबूत करना महत्वपूर्ण है।
  • ‘मेक इन इंडिया’ और निर्यात: भारत को विनिर्माण क्षेत्र में अपनी क्षमता बढ़ानी चाहिए और ‘मेक इन इंडिया’ को एक वैश्विक ब्रांड बनाना चाहिए। निर्यात को बढ़ावा देना आर्थिक विकास की कुंजी है।
  • नौवहन और रसद: चोलों की तरह, भारत को अपने बंदरगाहों, शिपिंग अवसंरचना और रसद को आधुनिक बनाना होगा ताकि व्यापार अधिक कुशल और लागत प्रभावी हो सके।
  • डिजिटल व्यापार और सेवाएँ: आधुनिक युग में, सूचना प्रौद्योगिकी और डिजिटल सेवाओं में भारत की मजबूत स्थिति नए अवसरों के द्वार खोलती है। IT और BPO क्षेत्रों में भारत की वैश्विक उपस्थिति चोलों के व्यापारिक विस्तार का डिजिटल रूप है।
  • पर्यटन और सांस्कृतिक कूटनीति: चोलों की कला, वास्तुकला और इतिहास भारत की सांस्कृतिक कूटनीति का एक शक्तिशाली उपकरण हो सकते हैं। पर्यटन को बढ़ावा देना न केवल आर्थिक लाभ देता है, बल्कि भारत की सॉफ्ट पावर को भी बढ़ाता है।

केस स्टडी: चोलों का श्री विजय साम्राज्य पर नौसैनिक अभियान आज के भारत के लिए एक सीख है कि कैसे कूटनीति और सैन्य शक्ति का संयोजन व्यापारिक अवसरों को सुरक्षित और विस्तारित कर सकता है। इसी प्रकार, आज भारत को क्वाड (QUAD) जैसे गठबंधनों और हिंद-प्रशांत रणनीति के माध्यम से अपने व्यापारिक और रणनीतिक हितों को बढ़ावा देना चाहिए।

3. कुशल प्रशासन और सुशासन: चोल मॉडल

हालांकि प्रधानमंत्री ने सीधे तौर पर प्रशासन का उल्लेख नहीं किया, लेकिन एक मजबूत सेना और फलते-फूलते व्यापार के लिए एक कुशल प्रशासनिक ढांचा अनिवार्य था। चोलों का प्रशासनिक मॉडल आज के सुशासन के लिए भी प्रेरणादायक है।

चोल प्रशासन की विशेषताएँ

  • विकेंद्रीकृत शासन: चोलों की सबसे अनूठी विशेषता उनकी स्थानीय स्व-शासन की व्यवस्था थी, जिसे ‘ग्राम सभाएं’ या ‘उर’ कहा जाता था। ये सभाएं गांवों के स्थानीय मामलों, जैसे भूमि प्रबंधन, कर संग्रह और न्याय का प्रबंधन करती थीं।
  • कुशल नौकरशाही: केंद्रीय स्तर पर, एक सुव्यवस्थित नौकरशाही थी जो विभिन्न विभागों, जैसे राजस्व, न्याय और सेना का प्रबंधन करती थी।
  • भूमि कर: भूमि पर आधारित कर प्रणाली अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार थी। भूमि का सर्वेक्षण और मूल्यांकन किया जाता था।
  • न्याय प्रणाली: न्याय स्थानीय स्तर पर ग्राम सभाओं द्वारा और उच्च स्तर पर राजा की अदालतों द्वारा प्रदान किया जाता था।

आधुनिक भारत के लिए प्रासंगिकता:

‘विकसित भारत’ के निर्माण के लिए केवल आर्थिक विकास पर्याप्त नहीं है; इसके लिए एक मजबूत और पारदर्शी शासन प्रणाली आवश्यक है।

  • पंचायती राज का सुदृढ़ीकरण: चोलों की ग्राम सभाएं आज के पंचायती राज संस्थानों के लिए एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। स्थानीय स्तर पर सशक्तिकरण और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ाना ‘विकसित भारत’ के लिए महत्वपूर्ण है।
  • ई-गवर्नेंस और प्रौद्योगिकी: चोलों की प्रशासनिक कुशलता को आज की तकनीक के साथ जोड़कर ई-गवर्नेंस को और बेहतर बनाया जा सकता है, जिससे पारदर्शिता और दक्षता बढ़े।
  • भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन: चोलों का प्रशासनिक ढांचा, हालांकि पूरी तरह से परिपूर्ण नहीं था, फिर भी एक व्यवस्थित प्रणाली प्रदान करता था। आज, सुशासन का अर्थ है भ्रष्टाचार मुक्त और जवाबदेह प्रशासन।
  • जन-भागीदारी: चोलों की ग्राम सभाओं में जन-भागीदारी का सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है। सरकारी योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए नागरिकों की भागीदारी आवश्यक है।

उदाहरण: यदि स्थानीय प्रशासन (जैसे ग्राम पंचायत) को अधिक अधिकार और संसाधन दिए जाएं, तो वे अपने क्षेत्र की समस्याओं को बेहतर ढंग से समझकर उनका समाधान कर सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे चोलों की ग्राम सभाएं करती थीं।

4. सांस्कृतिक और धार्मिक प्रभाव

चोलों ने कला, वास्तुकला और धर्म के क्षेत्र में भी अमूल्य योगदान दिया। तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर, यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, उनकी वास्तुकला और इंजीनियरिंग कौशल का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह सांस्कृतिक विरासत भी ‘विकसित भारत’ का एक महत्वपूर्ण आयाम है।

  • कला और वास्तुकला: द्रविड़ वास्तुकला शैली का चरमोत्कर्ष चोल काल में देखने को मिलता है। मंदिरों में स्थापित मूर्तियां, भित्ति चित्र और नक्काशी उनके कलात्मक कौशल को दर्शाते हैं।
  • साहित्य और भाषा: तमिल साहित्य का भी इस काल में विकास हुआ।
  • धार्मिक सहिष्णुता: चोल शैव धर्म के अनुयायी थे, लेकिन उन्होंने अन्य धर्मों, जैसे वैष्णव धर्म और बौद्ध धर्म के प्रति भी सहिष्णुता दिखाई।

आधुनिक भारत के लिए प्रासंगिकता:

भारत की सांस्कृतिक विविधता उसकी सबसे बड़ी शक्ति है। चोलों की तरह, भारत को अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित और बढ़ावा देना चाहिए, जो ‘सांस्कृतिक कूटनीति’ के माध्यम से देश की सॉफ्ट पावर को बढ़ाता है।

चोल रोडमैप के प्रमुख स्तंभ: एक सारांश

प्रधानमंत्री के बयान को ध्यान में रखते हुए, चोल साम्राज्य से ‘विकसित भारत’ के लिए निम्नलिखित प्रमुख सीखें प्राप्त की जा सकती हैं:

  1. रक्षात्मक और आक्रामक नौसैनिक शक्ति: अपने समुद्री हितों की रक्षा और वैश्विक मंच पर प्रभाव के लिए नौसेना का आधुनिकीकरण।
  2. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक कूटनीति: नए बाजारों की तलाश, निर्यात को बढ़ावा देना और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में सक्रिय भूमिका निभाना।
  3. स्वदेशी निर्माण और आत्मनिर्भरता: रक्षा उपकरणों से लेकर अन्य आवश्यक वस्तुओं तक, उत्पादन में आत्मनिर्भरता पर जोर।
  4. कुशल प्रशासन और जन-भागीदारी: विकेन्द्रीकृत शासन, पारदर्शिता और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके सुशासन सुनिश्चित करना।
  5. सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण: भारत की कला, वास्तुकला और परंपराओं का उपयोग राष्ट्रीय गौरव और वैश्विक पहचान को बढ़ाने के लिए करना।

चुनौतियाँ और विचार-विमर्श

हालांकि चोल साम्राज्य से प्रेरणा लेना महत्वपूर्ण है, लेकिन हमें वर्तमान की वास्तविकताओं को भी समझना होगा।

  • ऐतिहासिक तुलनाओं की सीमाएँ: चोल काल (9वीं-12वीं शताब्दी) और वर्तमान (21वीं शताब्दी) की परिस्थितियाँ बहुत भिन्न हैं। प्रौद्योगिकी, भू-राजनीति और सामाजिक संरचनाएं मौलिक रूप से बदल गई हैं।
  • आधुनिक सुरक्षा चुनौतियाँ: चोलों का मुख्य सुरक्षा खतरा क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी थे, जबकि आज भारत को साइबर सुरक्षा, आतंकवाद और गैर-पारंपरिक खतरों जैसी बहुआयामी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • आर्थिक उदारीकरण का संदर्भ: आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था उदारीकरण, वैश्वीकरण और मुक्त व्यापार पर आधारित है, जो चोलों के समय की संरक्षणवादी और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं से बहुत अलग है।
  • राजनीतिकरण की प्रवृत्ति: ऐतिहासिक साम्राज्यों का वर्तमान राजनीतिक एजेंडे के लिए उपयोग कभी-कभी अति-सरलीकरण का कारण बन सकता है, जिससे ऐतिहासिक संदर्भ की उपेक्षा हो सकती है।

blockquote: “हमें अपने अतीत से सीखना चाहिए, लेकिन हमें वर्तमान की चुनौतियों और भविष्य की संभावनाओं को भी ध्यान में रखना होगा। चोलों की भावना को अपनाना है, लेकिन आधुनिक ज्ञान और उपकरणों के साथ।”

भविष्य की राह: चोलों से सीखकर ‘विकसित भारत’ का निर्माण

प्रधानमंत्री का यह बयान एक संकेत है कि भारत अपनी प्राचीन जड़ों को मजबूत करते हुए, भविष्य की ओर अग्रसर होना चाहता है। ‘विकसित भारत’ का लक्ष्य केवल आर्थिक महाशक्ति बनना नहीं है, बल्कि एक ऐसी राष्ट्र निर्माण करना है जो अपनी सांस्कृतिक पहचान, सामरिक शक्ति और वैश्विक जिम्मेदारी में अग्रणी हो।

चोलों के रोडमैप का अनुकरण करने का अर्थ है:

  • रक्षा में आत्मनिर्भरता: एक ऐसी सेना और नौसेना का निर्माण जो किसी भी चुनौती का सामना करने में सक्षम हो, और जो स्वदेशी प्रौद्योगिकी पर आधारित हो।
  • आर्थिक विस्तार: भारत को केवल एक बड़े बाजार के रूप में नहीं, बल्कि एक प्रमुख विनिर्माण और निर्यातक देश के रूप में विकसित करना।
  • प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: आधुनिक तकनीक का उपयोग करके प्रशासन, सुरक्षा और अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना।
  • वैश्विक नेतृत्व: हिंद-प्रशांत क्षेत्र और विश्व स्तर पर शांति, स्थिरता और आर्थिक विकास में योगदान देना।

चोल साम्राज्य का उल्लेख एक ऐसे भारत की याद दिलाता है जो न केवल अपनी सीमाओं के भीतर, बल्कि वैश्विक मंच पर भी एक प्रमुख शक्ति था। इसी भावना को पुनर्जीवित करना ‘विकसित भारत’ की यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

निष्कर्ष

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा चोल साम्राज्य को ‘विकसित भारत’ के लिए एक प्राचीन रोडमैप के रूप में वर्णित करना एक दूरदर्शी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। यह हमें याद दिलाता है कि महानता केवल भविष्य की योजनाओं में नहीं, बल्कि हमारे गौरवशाली अतीत की जड़ों में भी निहित है। चोलों की सैन्य शक्ति, व्यापारिक कूटनीति और कुशल प्रशासन आज भी हमारे लिए प्रासंगिक सबक सिखाते हैं। इन प्राचीन सिद्धांतों को आधुनिक ज्ञान, प्रौद्योगिकी और वैश्विक चेतना के साथ जोड़कर, भारत निश्चित रूप से ‘विकसित भारत’ के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है, जो न केवल समृद्ध होगा, बल्कि सुरक्षित, मजबूत और वैश्विक स्तर पर सम्मानित भी होगा।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: निम्नलिखित में से कौन सा कथन चोल नौसेना की शक्ति को सबसे अच्छी तरह दर्शाता है?
    1. केवल तटीय क्षेत्रों की रक्षा करना।
    2. श्री विजय साम्राज्य पर आक्रमण सहित दक्षिण पूर्व एशिया तक अपनी पहुँच स्थापित करना।
    3. भारतीय उपमहाद्वीप के भीतर नदी मार्गों पर नियंत्रण रखना।
    4. लाल सागर में व्यापारिक जहाजों पर नियंत्रण रखना।

    उत्तर: (b)
    व्याख्या: चोल नौसेना ने श्री विजय साम्राज्य पर अपने सफल अभियान के माध्यम से दक्षिण पूर्व एशिया तक अपनी शक्ति का विस्तार किया, जो उनकी नौसैनिक प्रभुत्व को दर्शाता है।

  2. प्रश्न 2: चोल साम्राज्य का प्रधान आर्थिक आधार क्या था?
    1. खनिज निष्कर्षण
    2. पशुपालन
    3. कृषि और भूमि कर
    4. हस्तशिल्प निर्यात

    उत्तर: (c)
    व्याख्या: कावेरी डेल्टा की उपजाऊ भूमि के कारण कृषि चोलों की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार थी, और भूमि कर राजस्व का प्रमुख स्रोत था।

  3. प्रश्न 3: चोल प्रशासन में स्थानीय स्व-शासन की इकाई को क्या कहा जाता था?
    1. सभा
    2. गण
    3. ग्राम सभाएँ (उर)
    4. समिति

    उत्तर: (c)
    व्याख्या: चोलों की स्थानीय स्व-शासन की इकाई को ग्राम सभाएँ या ‘उर’ कहा जाता था, जो स्थानीय मामलों का प्रबंधन करती थीं।

  4. प्रश्न 4: प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार, चोल साम्राज्य ‘विकसित भारत’ के लिए किसका प्राचीन रोडमैप है?
    1. केवल आर्थिक विकास
    2. सेना की मजबूती और नए अवसरों की तलाश
    3. कला और संस्कृति का संरक्षण
    4. धार्मिक सहिष्णुता

    उत्तर: (b)
    व्याख्या: प्रधानमंत्री ने विशेष रूप से सेना की मजबूती और नए अवसरों (जैसे व्यापार, कूटनीति) की तलाश को चोलों से जोड़ने का उल्लेख किया।

  5. प्रश्न 5: निम्नलिखित में से कौन सा चोलों द्वारा निर्यात किए जाने वाले प्रमुख उत्पादों में से एक नहीं था?
    1. काली मिर्च
    2. रेशम
    3. कृषि औजार
    4. हाथी दांत

    उत्तर: (c)
    व्याख्या: चोलों ने काली मिर्च, रेशम, मसाले, हाथी दांत और वस्त्रों का निर्यात किया, लेकिन कृषि औजारों का बड़े पैमाने पर निर्यात उनके व्यापार का प्रमुख हिस्सा नहीं था।

  6. प्रश्न 6: चोलों के उत्कृष्ट वास्तुकला का प्रतीक कौन सा मंदिर है, जो आज यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल भी है?
    1. मीनाक्षी मंदिर
    2. शोर मंदिर
    3. बृहदेश्वर मंदिर, तंजावुर
    4. कैलाश मंदिर, एलोरा

    उत्तर: (c)
    व्याख्या: तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर चोल वास्तुकला का शिखर है और एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।

  7. प्रश्न 7: चोल साम्राज्य का प्रभाव किन भौगोलिक क्षेत्रों तक फैला था?
    1. केवल दक्षिण भारत
    2. दक्षिण भारत, श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया
    3. उत्तर भारत और मध्य एशिया
    4. पूर्वी भारत और बंगाल की खाड़ी

    उत्तर: (b)
    व्याख्या: चोलों ने न केवल दक्षिण भारत में एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया, बल्कि श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया तक भी अपना प्रभाव बढ़ाया।

  8. प्रश्न 8: आधुनिक भारत के लिए चोलों के प्रशासनिक मॉडल से निम्नलिखित में से क्या सीखा जा सकता है?
    1. पूर्णतः केंद्रीकृत शासन
    2. स्थानीय स्व-शासन (ग्राम सभाएँ) को मजबूत करना
    3. अधिकारियों की जवाबदेही कम करना
    4. भूमि कर की अनुपस्थिति

    उत्तर: (b)
    व्याख्या: चोलों की ग्राम सभाएँ स्थानीय स्व-शासन का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं, जिसे आधुनिक भारत में पंचायती राज को मजबूत करने के लिए अपनाया जा सकता है।

  9. प्रश्न 9: प्रधानमंत्री मोदी द्वारा ‘नए अवसरों की तलाश’ के संदर्भ में चोलों को किस से जोड़ा गया है?
    1. केवल धार्मिक यात्राएँ
    2. कला प्रदर्शन
    3. व्यापारिक विस्तार और कूटनीति
    4. ज्ञान और शिक्षा का प्रसार

    उत्तर: (c)
    व्याख्या: चोलों ने अपनी नौसैनिक शक्ति का उपयोग दूर-दराज के क्षेत्रों के साथ व्यापार करने और कूटनीतिक संबंध स्थापित करने के लिए किया।

  10. प्रश्न 10: ‘विकसित भारत’ की अवधारणा के लिए चोल साम्राज्य से मुख्य सीख क्या है?
    1. केवल अतीत की नकल करना
    2. प्राचीन गौरव को आधुनिक क्षमताओं और वैश्विक एकीकरण के साथ जोड़ना
    3. स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं पर पूरी तरह निर्भर रहना
    4. सैन्य शक्ति को महत्व न देना

    उत्तर: (b)
    व्याख्या: चोलों का उदाहरण हमें अपनी प्राचीन जड़ों को स्वीकार करते हुए, आधुनिक ज्ञान, प्रौद्योगिकी और वैश्विक एकीकरण के माध्यम से ‘विकसित भारत’ का निर्माण करने की प्रेरणा देता है।

    मुख्य परीक्षा (Mains)

    1. प्रश्न 1: प्रधानमंत्री मोदी के चोल साम्राज्य को ‘विकसित भारत’ के लिए एक प्राचीन रोडमैप बताने के बयान का विश्लेषण करें। विशेष रूप से, उनकी नौसैनिक शक्ति और व्यापारिक विस्तार के महत्व को समझाते हुए, वर्तमान भारत के लिए प्रासंगिकता पर प्रकाश डालें। (250 शब्द)
    2. प्रश्न 2: चोल प्रशासन की विकेन्द्रीकृत प्रकृति की विशेषताओं का वर्णन करें और बताएं कि यह आज के भारत में सुशासन और जन-भागीदारी को मजबूत करने के लिए कैसे एक मॉडल के रूप में कार्य कर सकती है। (150 शब्द)
    3. प्रश्न 3: ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ की पहलों के संदर्भ में, चोल साम्राज्य की आर्थिक नीतियों और व्यापारिक संबंधों से क्या सीखा जा सकता है? भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण में इसके निहितार्थों पर चर्चा करें। (250 शब्द)
    4. प्रश्न 4: चोलों की सैन्य शक्ति, विशेष रूप से उनकी नौसेना, ने भारतीय उपमहाद्वीप और उससे परे उनके प्रभुत्व में कैसे योगदान दिया? आधुनिक भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक हितों के लिए इस ऐतिहासिक सीख के महत्व का मूल्यांकन करें। (150 शब्द)

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