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चुनाव आयोग पर ‘संदेह का घेरा’: संसद में चर्चा से क्यों भाग रही सरकार? क्या यह चुनावी गड़बड़ी का पर्दाफाश?

चुनाव आयोग पर ‘संदेह का घेरा’: संसद में चर्चा से क्यों भाग रही सरकार? क्या यह चुनावी गड़बड़ी का पर्दाफाश?

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** भारतीय राजनीति में एक बार फिर चुनाव आयोग (Election Commission of India – ECI) की निष्पक्षता और कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। हाल ही में, प्रमुख विपक्षी दल, कांग्रेस, ने आरोप लगाया है कि सरकार संसद में चुनाव आयोग से संबंधित महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा से कतरा रही है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि जनता के मन में चुनाव आयोग को लेकर संदेह है और सरकार का यह रवैया चुनावों में संभावित गड़बड़ी को छिपाने का प्रयास हो सकता है। यह स्थिति न केवल चुनावी प्रक्रियाओं की अखंडता पर प्रश्नचिह्न लगाती है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के स्वस्थ संचालन के लिए भी एक चिंता का विषय है।

यह आरोप-प्रत्यारोप का खेल नया नहीं है, लेकिन जिस तरह से इसे उठाया जा रहा है, वह चुनावी लोकतंत्र की संवेदनशीलता को रेखांकित करता है। ऐसे समय में जब भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करता है, संस्थाओं की विश्वसनीयता सर्वोपरि है। आइए, इस पूरे मामले की तह तक जाएं, इसके पीछे के कारणों को समझें और UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से इसके विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करें।

चुनाव आयोग: भारतीय लोकतंत्र का आधार स्तंभ (The Election Commission: A Pillar of Indian Democracy)

चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है, जिसकी स्थापना 25 जनवरी 1950 को की गई थी। इसका मुख्य कार्य देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार, चुनाव आयोग को संसद, राज्यों के विधानमंडलों, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों के संचालन, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति प्राप्त है।

चुनाव आयोग की भूमिका और जिम्मेदारियाँ:

  • निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन: जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण करना।
  • मतदाता सूचियों की तैयारी: पात्र नागरिकों को मतदाता के रूप में पंजीकृत करना और सूची को अद्यतन रखना।
  • चुनाव कार्यक्रम की घोषणा: चुनाव की तारीखों, नामांकन की अंतिम तिथि, मतदान और मतगणना की तिथियों की घोषणा करना।
  • चुनाव चिह्नों का आवंटन: राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के साथ-साथ निर्दलीय उम्मीदवारों को चुनाव चिह्न आवंटित करना।
  • आचार संहिता का प्रवर्तन: चुनावों के दौरान सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा चुनावी आचार संहिता का पालन सुनिश्चित करना।
  • मतदान की व्यवस्था: निष्पक्ष मतदान के लिए मतदान केंद्रों की स्थापना, सुरक्षा और पर्यवेक्षण की व्यवस्था करना।
  • मतगणना और परिणाम की घोषणा: निष्पक्ष मतगणना सुनिश्चित करना और विजयी उम्मीदवारों की घोषणा करना।
  • उप-चुनावों का संचालन: रिक्तियों को भरने के लिए उपचुनावों का आयोजन करना।

संक्षेप में, चुनाव आयोग एक प्रहरी की तरह कार्य करता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि लोकतंत्र का महायज्ञ बिना किसी बाधा के, निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से संपन्न हो। इसकी विश्वसनीयता ही नागरिकों के विश्वास का आधार है।

संदेह के बादल: कांग्रेस के आरोप और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य (Clouds of Doubt: Congress Allegations and the National Perspective)

कांग्रेस नेताओं द्वारा चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर उठाए गए सवाल केवल एक राजनीतिक बयानबाजी नहीं, बल्कि एक गहरी चिंता का प्रतिबिंब हैं। ये आरोप अक्सर चुनावी रणनीतियों, ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) की विश्वसनीयता, मतदाता सूची में गड़बड़ी, या राजनीतिक दलों को मिलने वाले अनुचित लाभ जैसे मुद्दों से जुड़े होते हैं।

मुख्य आरोप:

  • संसद में चर्चा से बचना: सबसे महत्वपूर्ण आरोप यह है कि सरकार संसद में चुनाव आयोग से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर खुली और व्यापक चर्चा करने से बच रही है। यह विपक्षी दलों के लिए चिंता का विषय है क्योंकि वे मानते हैं कि इससे महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों और चुनावी सुधारों पर विचार-विमर्श का अवसर समाप्त हो जाता है।
  • चुनावों में गड़बड़ी की आशंका: जब चर्चा से बचा जाता है, तो यह संदेह पैदा होता है कि क्या सरकार या सत्ताधारी दल चुनावों में किसी प्रकार की गड़बड़ी या अनुचित प्रभाव को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। यह आशंका जनता के विश्वास को कम करती है।
  • ईवीएम पर सवाल: हालांकि ईवीएम को छेड़छाड़-रोधी माना जाता है, लेकिन फिर भी समय-समय पर कुछ राजनीतिक दल और नागरिक इसके दुरुपयोग या हैकिंग की आशंका व्यक्त करते रहे हैं। इन चिंताओं पर पारदर्शी चर्चा का अभाव भी संदेह को बढ़ाता है।
  • चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया: चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर भी समय-समय पर सवाल उठाए जाते रहे हैं। निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए क्या नियुक्ति प्रक्रिया पर्याप्त पारदर्शी और गैर-पक्षपाती है, यह एक महत्वपूर्ण बहस का विषय रहा है।

जैसे एक कहावत है, “न्याय सिर्फ होना ही नहीं चाहिए, बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए।” इसी प्रकार, चुनाव आयोग को न केवल निष्पक्ष होना चाहिए, बल्कि उसकी कार्यप्रणाली को जनता और सभी राजनीतिक दलों को विश्वसनीय भी लगनी चाहिए। संदेह का वातावरण किसी भी लोकतंत्र के लिए हानिकारक होता है।

सरकार का पक्ष: संसद में चर्चा से क्यों कतराना? (The Government’s Stand: Why Shy Away from Parliamentary Discussion?)

जब विपक्ष सरकार पर संसद में चर्चा से बचने का आरोप लगाता है, तो इसके पीछे कई संभावित कारण हो सकते हैं, और यह जरूरी नहीं कि हमेशा ‘गड़बड़ी छिपाने’ का ही इरादा हो।

संभावित कारण:

  • प्रक्रियात्मक देरी से बचना: कुछ संवेदनशील मुद्दों पर गहन चर्चा से सरकारी एजेंडे में देरी हो सकती है, या ऐसे मुद्दे उठ सकते हैं जो राजनीतिक रूप से संवेदनशील हों और तत्काल समाधान न हो।
  • संसद को बाधित करने की रणनीति: कभी-कभी, सरकार यह तर्क दे सकती है कि विपक्ष द्वारा ऐसे मुद्दे उठाए जा रहे हैं जिनका उद्देश्य केवल विधायी कार्यों को बाधित करना है, न कि रचनात्मक चर्चा करना।
  • सबूतों का अभाव या कमजोरी: यदि सरकार को लगता है कि विपक्ष द्वारा उठाए गए आरोप निराधार हैं या उनके पास पर्याप्त जवाब नहीं हैं, तो वह चर्चा से बच सकती है ताकि अपनी कमजोरी उजागर न हो।
  • विधेयक या नीति का अंतिम चरण: यदि कोई संबंधित विधेयक या नीति अंतिम चरण में है, तो सरकार संसद में चर्चा के बजाय सीधे विधायी प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करना चाह सकती है।
  • रणनीतिक चुप्पी: कुछ मामलों में, सरकार विवादास्पद मुद्दों पर एक निश्चित अवधि तक चुप्पी बनाए रखना चाहती है ताकि भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को शांत किया जा सके और बाद में अधिक रणनीतिक तरीके से जवाब दिया जा सके।

हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि लोकतंत्र में, विशेषकर संसदीय प्रणालियों में, सरकार का दायित्व है कि वह जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों के प्रति जवाबदेह हो और महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा के लिए हमेशा तैयार रहे। संसद चर्चा और बहस के लिए ही है, और इससे बचना अक्सर जनता के विश्वास को ठेस पहुंचाता है।

पक्ष और विपक्ष: विभिन्न दृष्टिकोणों का विश्लेषण (Pros and Cons: Analyzing Different Perspectives)

इस पूरे मामले के कई पहलू हैं, जिन्हें समझना आवश्यक है:

विपक्ष का पक्ष (Arguments of the Opposition):

  • लोकतंत्र की रक्षा: विपक्ष का तर्क है कि चुनाव आयोग की निष्पक्षता लोकतंत्र की नींव है। यदि इस पर संदेह है, तो पूरी व्यवस्था खतरे में पड़ सकती है।
  • जवाबदेही सुनिश्चित करना: संसद ही वह मंच है जहां सरकार और संवैधानिक निकाय जवाबदेह ठहराए जाते हैं। चर्चा से बचना इस जवाबदेही को कमजोर करता है।
  • सार्वजनिक विश्वास बनाए रखना: खुली और पारदर्शी चर्चा से जनता का विश्वास बढ़ता है। संदेहों को दूर करने का यही सबसे प्रभावी तरीका है।
  • सुधारों की आवश्यकता: यदि चुनावी प्रक्रिया में कोई खामियां हैं, तो उन्हें दूर करने के लिए संसद में चर्चा और बहस आवश्यक है ताकि आवश्यक सुधार किए जा सकें।

सरकार/पक्ष का संभावित पक्ष (Government’s/Ruling Party’s Potential Stand):

  • संस्थाओं का सम्मान: सरकार यह तर्क दे सकती है कि वह चुनाव आयोग जैसी स्वतंत्र संस्थाओं की गरिमा और स्वायत्तता का सम्मान करती है और उन पर अनावश्यक सार्वजनिक बहस से बचना चाहती है।
  • राजनीतिक एजेंडा: यह भी कहा जा सकता है कि विपक्ष का यह आरोप केवल राजनीतिक लाभ उठाने या सरकार को बदनाम करने का एक प्रयास है।
  • पर्याप्त प्रक्रियाएं मौजूद: सरकार यह भी रेखांकित कर सकती है कि चुनाव आयोग के कामकाज की निगरानी के लिए पहले से ही पर्याप्त संवैधानिक और कानूनी प्रक्रियाएं मौजूद हैं।

“जब भी कोई संस्था अपनी निष्पक्षता और विश्वसनीयता खोने लगती है, तो लोकतंत्र कमजोर होने लगता है। ऐसी संस्थाओं पर उठने वाले सवालों का जवाब देना सरकार का कर्तव्य है, न कि उनसे बचना।”

चुनौतियाँ और आगे की राह (Challenges and the Way Forward)

चुनाव आयोग की निष्पक्षता और कार्यप्रणाली पर उठते सवाल कई गहरी चुनौतियों की ओर इशारा करते हैं, जिन्हें संबोधित करना आवश्यक है:

मुख्य चुनौतियाँ:

  • संस्थागत विश्वास में कमी: जनता और राजनीतिक दलों का संस्थाओं पर बढ़ता अविश्वास एक गंभीर समस्या है।
  • ध्रुवीकरण की राजनीति: राजनीतिक दलों द्वारा एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल अक्सर महत्वपूर्ण मुद्दों को गौण बना देता है।
  • पारदर्शिता का अभाव: कुछ निर्णयों और नियुक्तियों में पारदर्शिता की कमी संदेहों को हवा देती है।
  • चुनावी सुधारों की सुस्ती: कई आवश्यक चुनावी सुधारों पर राजनीतिक सहमति का अभाव है, जिसके कारण प्रक्रिया में सुधार की गति धीमी है।

आगे की राह:

  1. सक्रिय संसदीय बहस: सरकार को महत्वपूर्ण मुद्दों पर संसद में खुली और ईमानदार चर्चा के लिए तैयार रहना चाहिए। यह न केवल पारदर्शिता बढ़ाएगा बल्कि जनता को आश्वस्त भी करेगा।
  2. चुनाव आयोग की स्वायत्तता को मजबूत करना: चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया को और अधिक समावेशी और निष्पक्ष बनाने के लिए विचार-विमर्श होना चाहिए, जिसमें न्यायपालिका या विपक्ष की भूमिका भी शामिल हो, ताकि नियुक्ति प्रक्रिया पर कोई सवाल न उठे।
  3. ईवीएम पर स्पष्टीकरण और नवाचार: ईवीएम की सुरक्षा और विश्वसनीयता को लेकर यदि कोई चिंताएं हैं, तो उन्हें सार्वजनिक डोमेन में स्पष्ट किया जाना चाहिए। साथ ही, मतदाता सत्यापन पर्ची (VVPAT) के उपयोग को और अधिक सुदृढ़ किया जाना चाहिए।
  4. जागरूकता और शिक्षा: नागरिकों को चुनावी प्रक्रिया और चुनाव आयोग की भूमिका के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण है ताकि वे अफवाहों और गलत सूचनाओं का शिकार न हों।
  5. सभी हितधारकों का संवाद: सरकार, चुनाव आयोग, राजनीतिक दलों और नागरिक समाज के बीच नियमित संवाद स्थापित होना चाहिए ताकि चुनावी सुधारों पर आम सहमति बन सके।

भारत जैसे जीवंत लोकतंत्र में, चुनाव केवल मतदान की प्रक्रिया नहीं हैं, बल्कि यह जनता की आवाज का उत्सव हैं। इस उत्सव की पवित्रता और निष्पक्षता बनाए रखना सभी की जिम्मेदारी है। जब भी इस पर कोई प्रश्न उठता है, तो उस पर पर्दा डालना समाधान नहीं है, बल्कि उसे खुला और पारदर्शी बनाना ही एकमात्र मार्ग है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग की शक्तियों और कार्यों से संबंधित है।
2. चुनाव आयोग में केवल मुख्य चुनाव आयुक्त होता है।
3. चुनाव आयोग राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद और राज्य विधानमंडलों के चुनावों का संचालन करता है।
सही कथनों का चयन करें:
(a) 1 और 2
(b) 1 और 3
(c) 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
व्याख्या: कथन 1 सही है क्योंकि अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग से संबंधित है। कथन 2 गलत है क्योंकि चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और आवश्यकतानुसार अन्य चुनाव आयुक्त हो सकते हैं। कथन 3 सही है क्योंकि यह आयोग के दायरे को सही ढंग से बताता है।

2. चुनाव आयोग के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य नहीं है?
(a) यह एक स्थायी संवैधानिक संस्था है।
(b) यह राजनीतिक दलों को मान्यता देने का कार्य करता है।
(c) यह लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव का संचालन करता है।
(d) यह चुनावों के लिए एक आचार संहिता निर्धारित करता है।
उत्तर: (c)
व्याख्या: चुनाव आयोग लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव का संचालन नहीं करता है। यह कार्य संसदीय प्रक्रिया का हिस्सा है।

3. ‘चुनावी आचार संहिता’ (Model Code of Conduct) के संदर्भ में, निम्नलिखित पर विचार करें:
1. यह एक संवैधानिक प्रावधान है।
2. यह चुनावों की घोषणा के साथ ही लागू हो जाती है।
3. यह सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए बाध्यकारी है।
सही कथन का चयन करें:
(a) 1 और 2
(b) 2 और 3
(c) 1 और 3
(d) केवल 2
उत्तर: (b)
व्याख्या: चुनावी आचार संहिता एक संवैधानिक प्रावधान नहीं है, बल्कि पार्टियों के बीच एक स्वैच्छिक समझौता है जिसे चुनाव आयोग लागू करवाता है। यह चुनावों की घोषणा के साथ ही लागू हो जाती है और सभी के लिए बाध्यकारी होती है।

4. भारत में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति कौन करता है?
(a) भारत के राष्ट्रपति
(b) भारत के मुख्य न्यायाधीश
(c) भारत के प्रधानमंत्री
(d) संसद
उत्तर: (a)
व्याख्या: भारत के संविधान के अनुच्छेद 324(2) के अनुसार, चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

5. निम्नलिखित में से कौन सी चुनाव आयोग की जिम्मेदारी नहीं है?
(a) मतदाता सूचियों की तैयारी और उन्नयन।
(b) मतदान केंद्रों का प्रबंधन।
(c) चुनाव के दौरान जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत अपराधों की जाँच करना।
(d) राज्य विधानमंडलों के लिए निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना।
उत्तर: (c)
व्याख्या: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत अपराधों की जाँच का कार्य मुख्य रूप से पुलिस और न्यायपालिका का है। चुनाव आयोग चुनावी प्रक्रिया के प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करता है।

6. ‘चुनावों में गड़बड़ी’ के आरोपों के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा तंत्र चुनाव आयोग के पास मौजूद है?
1. चुनाव रद्द करना।
2. उम्मीदवारों को अयोग्य ठहराना।
3. पोलिंग बूथ पर पुनर्मतदान का आदेश देना।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) 1 और 2
(b) 2 और 3
(c) 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
व्याख्या: चुनाव आयोग के पास उपरोक्त सभी शक्तियाँ हैं ताकि निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित किए जा सकें।

7. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. चुनाव आयोग का मुख्यालय दिल्ली में है।
2. मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, होता है।
3. अन्य चुनाव आयुक्तों की शक्तियाँ और विशेषाधिकार मुख्य चुनाव आयुक्त के समान होते हैं।
सही कथन का चयन करें:
(a) 1 और 2
(b) 2 और 3
(c) 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
व्याख्या: सभी कथन सही हैं। चुनाव आयोग का मुख्यालय दिल्ली में है। कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक होता है, और अन्य चुनाव आयुक्तों के पास मुख्य चुनाव आयुक्त के समान शक्तियाँ होती हैं।

8. ‘ईवीएम’ (EVM) के संदर्भ में, निम्नलिखित पर विचार करें:
1. ईवीएम को पहली बार 1982 में केरल में इस्तेमाल किया गया था।
2. ईवीएम छेड़छाड़-रोधी (tamper-proof) होती हैं।
3. सभी ईवीएम के साथ वीवीपीएटी (VVPAT) का उपयोग अनिवार्य है।
सही कथन का चयन करें:
(a) 1 और 2
(b) 2 और 3
(c) 1 और 3
(d) केवल 2
उत्तर: (c)
व्याख्या: ईवीएम का पहला प्रयोग 1982 में केरल में किया गया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश और चुनाव आयोग के निर्देशों के अनुसार, अब सभी चुनावों में वीवीपीएटी का उपयोग अनिवार्य है। ईवीएम को छेड़छाड़-रोधी बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

9. भारतीय लोकतंत्र में चुनाव आयोग की भूमिका के बारे में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सबसे सटीक है?
(a) यह सरकार की नीतियों का निर्धारण करता है।
(b) यह संसद की बैठकों का आयोजन करता है।
(c) यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करता है।
(d) यह केवल राष्ट्रीय दलों को पंजीकृत करता है।
उत्तर: (c)
व्याख्या: चुनाव आयोग का मुख्य कार्य स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना है।

10. यदि कोई राजनीतिक दल चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन करता है, तो चुनाव आयोग निम्नलिखित में से कौन सा कदम उठा सकता है?
1. पार्टी को चेतावनी जारी करना।
2. पार्टी के चुनाव चिह्न को जब्त करना।
3. पार्टी को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करना।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) 1 और 2
(b) 2 और 3
(c) 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
व्याख्या: चुनाव आयोग आचार संहिता के उल्लंघन पर विभिन्न स्तर की कार्रवाई कर सकता है, जिसमें चेतावनी, प्रचार पर रोक, या गंभीर मामलों में उम्मीदवार या पार्टी को प्रतिबंधित करना भी शामिल है। हालाँकि, चुनाव चिह्न जब्त करने जैसी कार्रवाई अत्यधिक दुर्लभ और परिस्थितियों पर निर्भर करती है। लेकिन सैद्धांतिक रूप से, ये विकल्प उसके पास उपलब्ध हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. “चुनाव आयोग की निष्पक्षता भारतीय लोकतंत्र की रीढ़ है।” इस कथन के आलोक में, भारत में चुनाव आयोग की भूमिका, शक्तियों और चुनौतियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। उन तरीकों पर भी चर्चा करें जिनसे संस्थागत विश्वास को बढ़ाया जा सकता है। (250 शब्द)

2. सरकार द्वारा संसद में महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा से बचने के आरोपों और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर उठते संदेह के बीच संबंध का विश्लेषण करें। इस संदर्भ में, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए संसदीय चर्चा का क्या महत्व है? (250 शब्द)

3. चुनावों में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVMs) और वीवीपैट (VVPATs) की भूमिका पर चर्चा करें। ईवीएम से संबंधित वर्तमान चिंताओं और उनके समाधान के लिए संभावित उपायों का उल्लेख करें। (150 शब्द)

4. क्या विपक्षी दलों द्वारा चुनाव आयोग और सरकारी रवैये पर उठाए गए सवाल केवल राजनीतिक बयानबाजी है, या यह चुनावी प्रणाली में वास्तविक सुधार की आवश्यकता को इंगित करता है? इस पर विस्तार से चर्चा करें। (250 शब्द)

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