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चुनाव आयोग की साख पर ग्रहण: संसद की चुप्पी और जनता का संदेह – क्या चुनावी अखंडता खतरे में है?

चुनाव आयोग की साख पर ग्रहण: संसद की चुप्पी और जनता का संदेह – क्या चुनावी अखंडता खतरे में है?

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, एक प्रमुख विपक्षी दल के वरिष्ठ नेता ने देश के चुनाव आयोग (ECI) की निष्पक्षता और कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उनका आरोप है कि सरकार संसद में इस मुद्दे पर खुली चर्चा से बच रही है, जिससे यह आशंका और प्रबल हो गई है कि कहीं यह चुनावी प्रक्रिया में संभावित गड़बड़ी को छिपाने का प्रयास तो नहीं है। यह बयान देश के लोकतांत्रिक ढांचे के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सीधे तौर पर उस संस्था की अखंडता पर चोट करता है जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है।

यह मामला केवल एक राजनीतिक दल के आरोप तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र के मूल स्तंभों – निष्पक्ष चुनाव, संस्थागत विश्वसनीयता और सरकारी पारदर्शिता – पर एक गंभीर बहस को जन्म देता है। UPSC सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए, इस मुद्दे का विश्लेषण राजनीतिक बयानबाजी से परे जाकर संवैधानिक प्रावधानों, चुनावी सुधारों और लोकतांत्रिक सुशासन के व्यापक संदर्भ में करना आवश्यक है।

भारतीय लोकतंत्र में चुनाव आयोग की भूमिका: एक संवैधानिक प्रहरी

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार, भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों का संचालन सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग (ECI) की स्थापना की गई है। यह एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है, जो राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और संसद व राज्य विधानमंडलों के सदस्यों के चुनावों की अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण के लिए जिम्मेदार है। इसकी स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए, मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के समान ही विशेषाधिकार और सुरक्षा प्रदान की गई है।

“स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव किसी भी लोकतंत्र की जीवनरेखा होते हैं। चुनाव आयोग, भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों के साथ, इस जीवनरेखा को बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण प्रहरी है।”

चुनाव आयोग की मुख्य जिम्मेदारियों में शामिल हैं:

  • निर्वाचक नामावली तैयार करना: पात्र नागरिकों को मतदाता के रूप में पंजीकृत करना और यह सुनिश्चित करना कि सूची अद्यतन और त्रुटि रहित हो।
  • चुनावों की अधिसूचना जारी करना: मतदान की तारीखों और प्रक्रिया की घोषणा करना।
  • अभियान अवधि का प्रबंधन: आदर्श आचार संहिता (MCC) को लागू करना और सभी राजनीतिक दलों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना।
  • मतदान और मतगणना का पर्यवेक्षण: सुचारू और पारदर्शी मतदान और मतगणना प्रक्रिया सुनिश्चित करना।
  • चुनावों के परिणामों की घोषणा: विजयी उम्मीदवारों की घोषणा करना।
  • विवादों का निपटारा: चुनावी कदाचार से संबंधित शिकायतों की जांच करना और उन पर कार्रवाई करना।

संदेह के बादल: आरोप और जनधारणा

विपक्षी नेताओं द्वारा उठाए गए मुख्य आरोप चुनाव आयोग की निष्पक्षता और तटस्थता पर केंद्रित हैं। जब विपक्षी दल यह महसूस करते हैं कि चुनाव आयोग सत्ताधारी दल के प्रति पक्षपाती हो रहा है या उनकी शिकायतों पर प्रभावी कार्रवाई नहीं कर रहा है, तो जनता में एक गहरा संदेह पैदा होता है। इस संदेह के पीछे कई संभावित कारण हो सकते हैं:

  • समयबद्ध निर्णय का अभाव: कई बार, आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन या अन्य चुनावी अनियमितताओं पर चुनाव आयोग के निर्णय में देरी देखी गई है। यह देरी आलोचकों को यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या आयोग पर कोई दबाव है।
  • शिकायतों पर निष्क्रियता: विपक्षी दलों का आरोप है कि उनके द्वारा की गई गंभीर शिकायतों पर चुनाव आयोग या तो कार्रवाई नहीं करता है या बहुत मामूली कार्रवाई करता है, जिससे चुनाव प्रक्रिया की अखंडता पर प्रश्नचिन्ह लगता है।
  • नियुक्तियों का मुद्दा: चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया पर भी अक्सर सवाल उठाए जाते हैं। विशेष रूप से, जब मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में सरकार की भूमिका प्रमुख होती है, तो यह आशंकाएं जन्म लेती हैं कि क्या नियुक्त व्यक्ति वास्तव में निष्पक्ष रहेगा। (ध्यान दें: हालिया सुप्रीम कोर्ट के फैसले और पारित कानून इस पर प्रकाश डालते हैं)।
  • समान अवसर का अभाव: चुनाव प्रचार के दौरान, यह आरोप लग सकता है कि सत्ताधारी दल अपने विशेषाधिकारों का अनुचित लाभ उठाता है, और चुनाव आयोग इस पर अंकुश लगाने में विफल रहता है।

जब ऐसे आरोप लगाए जाते हैं, तो संसद में इन पर चर्चा होना एक स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है। संसद नागरिकों के प्रति सरकार और उसकी एजेंसियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने का मंच है। सरकार का संसद में चर्चा से बचना, जैसा कि आरोप लगाया जा रहा है, इस धारणा को बल देता है कि वह इन आरोपों का सामना करने या स्पष्टीकरण देने से कतरा रही है। यह “क्या ये चुनावों में गड़बड़ी को छिपाने की कोशिश है?” वाले सवाल को और गहरा करता है।

सरकारी दृष्टिकोण और संसद में चर्चा से बचने के निहितार्थ

सरकार का पक्ष अक्सर यह हो सकता है कि चुनाव आयोग एक स्वायत्त संस्था है और उसके निर्णयों पर राजनीतिक टीका-टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त, वे यह भी कह सकते हैं कि संसद में चर्चा से बचना किसी “गड़बड़ी” को छिपाने के लिए नहीं, बल्कि अनावश्यक राजनीतिकरण को रोकने या किसी अन्य विधायी प्राथमिकता के कारण हो सकता है।

“संसद केवल कानून बनाने का स्थान नहीं है, बल्कि यह सार्वजनिक चिंताओं को व्यक्त करने और सरकार से जवाबदेही मांगने का भी एक मंच है।”

हालांकि, सरकार द्वारा संसद में चर्चा से बचने के कुछ गंभीर निहितार्थ हो सकते हैं:

  • विश्वास में कमी: जनता का संस्थाओं पर विश्वास कम हो जाता है, खासकर जब उन्हें लगता है कि सरकार विपक्ष की जायज चिंताओं को अनसुना कर रही है।
  • पारदर्शिता पर प्रश्न: पारदर्शिता की कमी से संदेह और अविश्वास बढ़ता है।
  • लोकतांत्रिक प्रक्रिया का क्षरण: संसद में खुली बहस लोकतांत्रिक विमर्श का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस बहस से बचना एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए हानिकारक हो सकता है।
  • भविष्य के लिए मिसाल: यदि सरकारें महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा से बचने लगती हैं, तो यह भविष्य के लिए एक खतरनाक मिसाल कायम करती है।

चुनावी अखंडता पर संभावित प्रभाव

यदि जनता का चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं पर से विश्वास उठ जाता है, तो इसका सीधा प्रभाव चुनावी अखंडता पर पड़ता है। अखंडता का मतलब केवल मतपत्रों की गिनती में गड़बड़ी न होना नहीं है, बल्कि यह भी है कि पूरी प्रक्रिया निष्पक्ष, पारदर्शी और सभी के लिए समान हो।

जनता का संदेह कैसे अखंडता को प्रभावित करता है?

  • मतदान प्रतिशत में कमी: यदि लोगों को लगता है कि चुनाव परिणाम पूर्वनिर्धारित हैं या प्रक्रिया निष्पक्ष नहीं है, तो वे मतदान करने से कतरा सकते हैं।
  • चुनाव परिणामों की वैधता पर प्रश्न: भले ही चुनाव तकनीकी रूप से निष्पक्ष हों, संदेह की उपस्थिति परिणामों की वैधता को कमजोर कर सकती है।
  • सामाजिक अशांति: गंभीर संदेह के मामले में, खासकर यदि आरोप व्यापक होते हैं, तो यह चुनावों के बाद सामाजिक अशांति को जन्म दे सकता है।
  • लोकतंत्र पर दीर्घकालिक प्रभाव: एक ऐसी व्यवस्था जहाँ नागरिकों को अपनी लोकतांत्रिक संस्थाओं पर भरोसा नहीं है, वह अंततः लोकतंत्र को कमजोर करती है।

UPSC परीक्षा के लिए विश्लेषणात्मक ढांचा

UPSC उम्मीदवारों को इस मुद्दे को केवल एक राजनीतिक घटना के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि इसे निम्नलिखित कोणों से विश्लेषित करना चाहिए:

  1. संवैधानिक ढांचा: अनुच्छेद 324, चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति, सेवा की शर्तें, और उनकी शक्तियों का विश्लेषण।
  2. न्यायिक हस्तक्षेप: चुनाव आयोग से संबंधित विभिन्न अदालती फैसले, विशेष रूप से नियुक्ति प्रक्रिया से संबंधित (जैसे मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और पदावधि) अधिनियम, 2023, और इससे पहले के सुप्रीम कोर्ट के फैसले)।
  3. चुनावी सुधार: निष्पक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए आवश्यक चुनावी सुधारों पर चर्चा।
  4. संस्थागत स्वायत्तता: चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता और उन्हें बनाए रखने की चुनौतियां।
  5. लोकतांत्रिक जवाबदेही: संसद की भूमिका, विपक्ष का महत्व और सरकार की पारदर्शिता के प्रति प्रतिबद्धता।
  6. जनता का विश्वास: संस्थाओं पर जनता का विश्वास बनाए रखने में मीडिया, नागरिक समाज और राजनीतिक दलों की भूमिका।

आगे की राह: निष्पक्षता और विश्वास की बहाली

भारतीय लोकतंत्र को मजबूत बनाए रखने के लिए, चुनाव आयोग की निष्पक्षता और जनता का उस पर विश्वास बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  • नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार: यह सुनिश्चित करना कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया यथासंभव निष्पक्ष और पारदर्शी हो, जिसमें गैर-सरकारी भागीदारी (जैसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुझाया गया) का भी समावेश हो।
  • आदर्श आचार संहिता का सशक्त प्रवर्तन: आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन पर त्वरित और निर्णायक कार्रवाई करना, ताकि किसी भी दल को अनुचित लाभ न मिले।
  • पारदर्शिता में वृद्धि: चुनाव आयोग को अपने निर्णयों और प्रक्रियाओं में अधिक पारदर्शिता अपनानी चाहिए, जिससे जनता को उनकी निष्पक्षता पर संदेह न हो।
  • संसद में रचनात्मक संवाद: सरकार को महत्वपूर्ण मुद्दों पर विपक्ष के साथ रचनात्मक संवाद में शामिल होना चाहिए और संसद में चर्चा से कतराना नहीं चाहिए।
  • जन जागरूकता अभियान: नागरिकों को चुनावी प्रक्रिया के महत्व और चुनाव आयोग की भूमिका के बारे में जागरूक करना।
  • तकनीकी उन्नयन: चुनावी प्रक्रियाओं में नवीनतम तकनीक को अपनाना, लेकिन साथ ही यह सुनिश्चित करना कि तकनीक सुरक्षा और निष्पक्षता से समझौता न करे।

निष्कर्षतः, जब चुनाव आयोग जैसी महत्वपूर्ण संस्था की साख पर संदेह उठता है, और सरकार संसद में चर्चा से कतराती है, तो यह भारतीय लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर संकेत है। चुनावी अखंडता को बनाए रखने और जनता के विश्वास को पुनः स्थापित करने के लिए, सभी हितधारकों को सक्रिय भूमिका निभानी होगी। चुनाव आयोग को अपनी स्वायत्तता और निष्पक्षता के उच्चतम मानकों को बनाए रखना होगा, सरकार को पारदर्शी होना होगा, और विपक्ष को रचनात्मक आलोचना प्रदान करनी होगी। केवल सामूहिक प्रयास से ही हम अपनी चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता और हमारे लोकतंत्र की मजबूती सुनिश्चित कर सकते हैं।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद भारत के चुनाव आयोग की स्थापना का प्रावधान करता है?
(a) अनुच्छेद 315
(b) अनुच्छेद 324
(c) अनुच्छेद 356
(d) अनुच्छेद 370
उत्तर: (b) अनुच्छेद 324
व्याख्या: अनुच्छेद 324 भारतीय संविधान में चुनाव आयोग की स्थापना, उसके कार्यों, शक्तियों और संरचना का प्रावधान करता है।

2. चुनाव आयोग के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. यह भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और संसद के सदस्यों के चुनावों का संचालन करता है।
2. यह राज्य विधानमंडलों के सदस्यों के चुनावों का संचालन भी करता है।
3. यह एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है।
उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) केवल 1
(b) 1 और 2
(c) 1, 2 और 3
(d) केवल 3
उत्तर: (c) 1, 2 और 3
व्याख्या: चुनाव आयोग भारत में सभी महत्वपूर्ण चुनावों (राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद और राज्य विधानमंडल) का संचालन करता है और यह एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है।

3. मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) को पद से कैसे हटाया जा सकता है?
(a) भारत के राष्ट्रपति द्वारा सीधे आदेश से
(b) संसद के दोनों सदनों द्वारा महाभियोग प्रक्रिया द्वारा
(c) सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से
(d) प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा
उत्तर: (b) संसद के दोनों सदनों द्वारा महाभियोग प्रक्रिया द्वारा
व्याख्या: मुख्य चुनाव आयुक्त को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समान ही महाभियोग प्रक्रिया द्वारा हटाया जा सकता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित करना होता है।

4. निम्नलिखित में से कौन सा ‘आदर्श आचार संहिता’ (Model Code of Conduct) के अंतर्गत नहीं आता है?
(a) मंत्री द्वारा सरकारी वाहनों का चुनावी प्रचार के लिए उपयोग।
(b) चुनाव प्रचार के दौरान किसी विशेष धर्म के नाम पर वोट मांगना।
(c) मतदान दिवस पर मतदाताओं को पहचान पत्र जारी करना।
(d) किसी ऐसे व्यक्ति को मतदान करने से रोकना जो मतदाता सूची में है।
उत्तर: (c) मतदान दिवस पर मतदाताओं को पहचान पत्र जारी करना।
व्याख्या: मतदाताओं को पहचान पत्र जारी करना चुनाव आयोग की एक प्रक्रियात्मक जिम्मेदारी है, न कि आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन। आदर्श आचार संहिता चुनाव प्रचार को विनियमित करती है।

5. चुनाव आयोग के संदर्भ में, ‘समान अवसर’ (Level Playing Field) सुनिश्चित करने का क्या अर्थ है?
(a) सभी पार्टियों को समान मात्रा में धन खर्च करने की अनुमति देना।
(b) सभी पार्टियों को समान मीडिया कवरेज सुनिश्चित करना।
(c) यह सुनिश्चित करना कि सत्ताधारी दल अपनी स्थिति का अनुचित लाभ न उठाए।
(d) सभी उम्मीदवारों के लिए समान संख्या में रैलियां आयोजित करना।
उत्तर: (c) यह सुनिश्चित करना कि सत्ताधारी दल अपनी स्थिति का अनुचित लाभ न उठाए।
व्याख्या: समान अवसर का अर्थ है कि सभी राजनीतिक दलों को निष्पक्ष रूप से चुनाव लड़ने का मौका मिले, जिसमें सत्ताधारी दल अपनी प्रशासनिक शक्ति का दुरुपयोग न करे।

6. हाल के वर्षों में, चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया पर विवाद का मुख्य कारण क्या रहा है?
(a) चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया ही नहीं है।
(b) नियुक्ति में सरकार की अत्यधिक शक्ति और विपक्ष का सीमित परामर्श।
(c) केवल सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की ही नियुक्ति हो सकती है।
(d) नियुक्ति प्रक्रिया में अत्यधिक पारदर्शिता का अभाव।
उत्तर: (b) नियुक्ति में सरकार की अत्यधिक शक्ति और विपक्ष का सीमित परामर्श।
व्याख्या: नियुक्ति प्रक्रिया में सरकार के पक्षपात की आशंका और विपक्ष को पर्याप्त परामर्श न देने जैसे मुद्दे विवाद का कारण रहे हैं। (हालांकि, नया कानून लागू हुआ है)।

7. यदि जनता का चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं पर से विश्वास उठ जाता है, तो इसका सबसे संभावित दीर्घकालिक परिणाम क्या होगा?
(a) मतदान प्रतिशत में वृद्धि।
(b) राजनीतिक स्थिरता में वृद्धि।
(c) लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जनता की भागीदारी में कमी।
(d) चुनाव परिणामों की वैधता पर कम विवाद।
उत्तर: (c) लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जनता की भागीदारी में कमी।
व्याख्या: विश्वास की कमी से मतदाता हतोत्साहित हो सकते हैं, जिससे मतदान प्रतिशत कम हो सकता है और अंततः लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर ही प्रश्नचिन्ह लग सकता है।

8. चुनाव आयोग को ‘लोकतंत्र का प्रहरी’ क्यों कहा जाता है?
(a) क्योंकि यह केवल चुनावों की निगरानी करता है।
(b) क्योंकि यह निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनावों को सुनिश्चित करके लोकतंत्र की रक्षा करता है।
(c) क्योंकि यह चुनाव चिन्ह आवंटित करता है।
(d) क्योंकि यह राजनीतिक दलों का पंजीकरण करता है।
उत्तर: (b) क्योंकि यह निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनावों को सुनिश्चित करके लोकतंत्र की रक्षा करता है।
व्याख्या: चुनाव आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करके लोकतांत्रिक प्रणाली को सुचारू रूप से चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

9. संसद में चर्चा से बचने के सरकार के कार्य के संबंध में, विपक्षी दल क्या आरोप लगा सकते हैं?
(a) सरकार वित्तीय घाटे को छिपाने की कोशिश कर रही है।
(b) सरकार चुनावी प्रक्रिया में संभावित गड़बड़ी को छिपाने का प्रयास कर रही है।
(c) सरकार संसद की शक्ति को कम करने का प्रयास कर रही है।
(d) सरकार अंतर्राष्ट्रीय दबाव से बचने की कोशिश कर रही है।
उत्तर: (b) सरकार चुनावी प्रक्रिया में संभावित गड़बड़ी को छिपाने का प्रयास कर रही है।
व्याख्या: समाचार के संदर्भ में, विपक्षी दल अक्सर यह आरोप लगाते हैं कि सरकार महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा से बचकर किसी गड़बड़ी या अपने गलत कार्यों को छिपाने का प्रयास कर रही है।

10. **निम्नलिखित में से कौन सा भारतीय संविधान का अनुच्छेद चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तों से संबंधित है?**
(a) अनुच्छेद 325
(b) अनुच्छेद 326
(c) अनुच्छेद 327
(d) अनुच्छेद 327 (स्पष्ट रूप से सीधे नहीं, लेकिन अनुच्छेदों के संदर्भ में)
उत्तर: (d) (स्पष्ट रूप से सीधे नहीं, लेकिन अनुच्छेदों के संदर्भ में)
व्याख्या: अनुच्छेद 324 (5) चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तों को विनियमित करने के लिए संसद को शक्ति प्रदान करता है। हालांकि सीधे तौर पर कोई अनुच्छेद सेवा की शर्तों को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं करता, लेकिन यह अनुच्छेद 324 के तहत संसद को यह अधिकार देता है। (यह प्रश्न थोड़ा जटिल है और संदर्भ-आधारित है)।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत स्थापित चुनाव आयोग की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। वर्तमान परिदृश्य में, जब चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए जा रहे हैं, तो संस्थागत विश्वसनीयता और चुनावी अखंडता को बनाए रखने के लिए क्या सुधार आवश्यक हैं?
2. “चुनावों में समान अवसर” (Level Playing Field) की अवधारणा की व्याख्या करें। भारत में यह सुनिश्चित करने में चुनाव आयोग की क्या भूमिका है, और इस संबंध में सरकार के संसद में चर्चा से बचने के निहितार्थ क्या हो सकते हैं?
3. लोकतांत्रिक संस्थाओं पर जनता का विश्वास चुनावी प्रक्रिया की वैधता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत में चुनाव आयोग की साख पर उठे संदेह के कारणों का विश्लेषण करें और इस विश्वास को बहाल करने के लिए उठाए जा सकने वाले कदमों पर प्रकाश डालें।
4. भारतीय लोकतंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्व पर चर्चा करें। सरकार द्वारा महत्वपूर्ण मुद्दों पर संसद में चर्चा से बचना, विशेष रूप से चुनाव आयोग से संबंधित आरोपों के जवाब में, इन सिद्धांतों को कैसे प्रभावित करता है?

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