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चुनावों में धांधली का शक? कांग्रेस का सरकार पर वार, संसद में चर्चा से क्यों कतरा रही सरकार!

चुनावों में धांधली का शक? कांग्रेस का सरकार पर वार, संसद में चर्चा से क्यों कतरा रही सरकार!

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी, कांग्रेस, ने चुनाव आयोग (Election Commission of India – ECI) की निष्पक्षता और कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। पार्टी का आरोप है कि सरकार संसद में चुनाव संबंधी महत्वपूर्ण चर्चाओं से कतरा रही है, जिससे जनता के मन में चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और ईमानदारी को लेकर संदेह पैदा हो रहा है। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि यह सरकार की चुनावों में संभावित गड़बड़ी को छिपाने की कोशिश हो सकती है। यह पूरा घटनाक्रम भारतीय लोकतंत्र के एक महत्वपूर्ण स्तंभ, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने वाली संस्था, की भूमिका और उस पर बढ़ते संदेह को उजागर करता है।

यह लेख इस पूरे मुद्दे का विस्तृत विश्लेषण करेगा, जिसमें यह शामिल होगा:

  • चुनाव आयोग की भूमिका और महत्व।
  • विपक्षी दलों द्वारा उठाए गए प्रमुख आरोप।
  • सरकार का पक्ष और संसद में चर्चा से बचने के कारण (यदि कोई हैं)।
  • क्या यह केवल राजनीतिक बयानबाजी है या गहरी चिंता का विषय?
  • जनता के मन में संदेह के निहितार्थ।
  • इस स्थिति से निपटने के लिए संभावित राहें।

भारत में चुनाव आयोग: लोकतंत्र का आधार स्तंभ (The Election Commission of India: The Pillar of Democracy)

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत स्थापित, चुनाव आयोग (ECI) भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को सुनिश्चित करने वाली एक स्वायत्त संवैधानिक संस्था है। इसकी मुख्य जिम्मेदारियों में शामिल हैं:

  • लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों का संचालन और पर्यवेक्षण।
  • चुनाव चिन्हों का आवंटन और विवादों का निपटारा।
  • चुनाव आचार संहिता (Model Code of Conduct – MCC) का प्रवर्तन।
  • मतदाता सूची तैयार करना और मतदान केंद्रों का प्रबंधन।
  • चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के खातों की निगरानी।

ECI की स्वायत्तता और निष्पक्षता भारतीय लोकतंत्र की नींव है। एक स्वतंत्र आयोग यह सुनिश्चित करता है कि सत्ताधारी दल अपने पद का दुरुपयोग करके चुनावी प्रक्रियाओं को प्रभावित न कर सके। विश्व स्तर पर, ECI को अक्सर सबसे कुशल और प्रभावी चुनाव निकायों में से एक माना जाता है।

उदाहरण के लिए, 2004 के आम चुनावों में, जब विभिन्न मीडिया रिपोर्टों ने तत्कालीन सत्तारूढ़ दल के पक्ष में पक्षपाती होने के कुछ आरोप लगाए थे, ECI ने कई राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर इन चिंताओं को दूर किया और चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता को पुनः स्थापित किया। यह ECI की उस समय की सक्रिय भूमिका को दर्शाता है।

कांग्रेस के प्रमुख आरोप और चिंताएँ (Congress’s Key Allegations and Concerns)

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों द्वारा उठाए गए मुख्य मुद्दे इस प्रकार हैं:

1. ईसीआई की निष्पक्षता पर संदेह (Doubt over ECI’s Impartiality):

विपक्षी नेताओं का आरोप है कि हाल के वर्षों में, चुनाव आयोग के कुछ निर्णय, खासकर वीवीआईपी (VVIPs) के खिलाफ आचार संहिता उल्लंघन के मामलों में, पर्याप्त कठोर नहीं रहे हैं। उनका दावा है कि सत्ताधारी दल के नेताओं के खिलाफ शिकायतों पर कार्रवाई में देरी या शिथिलता बरती जाती है, जबकि विपक्षी नेताओं के खिलाफ त्वरित कार्रवाई होती है।

“यह चिंताजनक है कि जब सत्ताधारी दल के नेता आचार संहिता का उल्लंघन करते हैं, तो चुनाव आयोग या तो मौन रहता है या बहुत हल्के ढंग से प्रतिक्रिया करता है। लेकिन विपक्षी नेताओं के खिलाफ शिकायतें आने पर तत्काल कार्रवाई की जाती है।” – एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता।

2. संसद में चर्चा से बचना (Avoiding Discussion in Parliament):

कांग्रेस का सबसे बड़ा आरोप यह है कि सरकार संसद में चुनाव सुधारों या ईसीआई की कार्यप्रणाली पर महत्वपूर्ण चर्चाओं से बच रही है। उनका मानना है कि यह सरकार की अपनी कथित कमजोरियों या चुनावी रणनीति को छिपाने की कोशिश है। विपक्षी दल चाहते हैं कि संसद में इन मुद्दों पर खुली और विस्तृत बहस हो, ताकि जनता की चिंताओं को दूर किया जा सके और आवश्यक सुधारों पर निर्णय लिया जा सके।

3. चुनावी गड़बड़ी की आशंका (Apprehension of Electoral Malpractice):

संसद में चर्चा से बचने और ईसीआई की निष्पक्षता पर संदेह के कारण, विपक्षी दलों को यह डर सता रहा है कि आने वाले चुनावों में कुछ गड़बड़ी हो सकती है। यह “गड़बड़ी” कई रूपों में हो सकती है, जैसे:

  • मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग।
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म पर गलत सूचना (disinformation) फैलाना।
  • मतदान के दौरान या मतगणना में अनुचित हस्तक्षेप।
  • मतदाता सूची में गड़बड़ी।

4. ईसीआई की नियुक्ति प्रक्रिया (ECI Appointment Process):

हाल के वर्षों में, मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों (ECs) की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर भी सवाल उठे हैं। पहले जहां कॉलेजियम प्रणाली (जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल होते थे) की मांग थी, वहीं अब सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद एक समिति (जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय मंत्री शामिल हैं) का गठन किया गया है। विपक्षी दलों का मानना है कि इस प्रक्रिया में कार्यपालिका का प्रभाव अधिक है, जिससे ईसीआई की निष्पक्षता पर और प्रश्नचिह्न लगता है।

सरकार का पक्ष और बचाव (The Government’s Stance and Defence)

हालांकि सरकार ने आमतौर पर विपक्षी आरोपों पर सीधे तौर पर विस्तृत प्रतिक्रिया देने से परहेज किया है, उनके द्वारा दिए गए बयानों और कार्रवाइयों से उनके कुछ तर्कों का अनुमान लगाया जा सकता है:

  • संसदीय बहस की प्रक्रिया: सरकार यह तर्क दे सकती है कि संसद में हर विषय पर तत्काल चर्चा की अनुमति देना संभव नहीं है, और चर्चाओं के लिए विधायी एजेंडा और समय सारणी होती है। वे यह भी कह सकते हैं कि चुनाव सुधार जैसे मुद्दों पर व्यापक सहमति के बाद ही चर्चा की जानी चाहिए।
  • ईसीआई की स्वायत्तता: सरकार का रुख अक्सर यह रहा है कि चुनाव आयोग एक स्वायत्त संस्था है और उसके फैसलों की निष्पक्षता पर कोई संदेह नहीं किया जाना चाहिए। वे ईसीआई द्वारा लिए गए किसी भी निर्णय को उसके अपने विवेक पर छोड़ा जाता है, यह कहकर बचाव कर सकते हैं।
  • पारदर्शिता के प्रयास: सरकार अपने कार्यकाल में लाए गए कुछ चुनावी सुधारों, जैसे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) के उपयोग, वीवीपैट (VVPAT) के साथ ई-वोटिंग का मिलान, या मतदाता सूची को आधार से जोड़ने जैसे प्रयासों को पारदर्शिता और निष्पक्षता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत कर सकती है।

“चुनाव आयोग संवैधानिक रूप से स्थापित एक स्वतंत्र निकाय है। इसके निर्णयों की आलोचना राजनीतिक हो सकती है, लेकिन संस्था की निष्पक्षता पर ही सवाल उठाना लोकतंत्र के लिए हानिकारक है।” – एक सरकारी सूत्र।

क्या यह राजनीतिक बयानबाजी है या गहरी चिंता का विषय? (Is it Political Rhetoric or a Matter of Deep Concern?)

यह प्रश्न अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक तरफ, भारत की राजनीतिक संस्कृति में, विशेष रूप से चुनावों के आसपास, आरोप-प्रत्यारोप एक सामान्य बात है। विपक्षी दल सत्ताधारी दल पर अंकुश लगाने और अपनी पैठ बनाने के लिए अक्सर ऐसे मुद्दे उठाते हैं।

दूसरी ओर, जब ऐसे आरोप एक महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्था, चुनाव आयोग, की निष्पक्षता पर लगते हैं, तो उन्हें हल्के में नहीं लिया जा सकता। यदि जनता का एक बड़ा वर्ग यह मानने लगे कि चुनाव निष्पक्ष नहीं हैं, तो यह लोकतंत्र की नींव को हिला सकता है।

मामलों की गंभीरता को समझने के लिए कुछ बिंदु:

  • लोकतंत्र का चरित्र: एक जीवंत लोकतंत्र की पहचान यह है कि उसकी सबसे महत्वपूर्ण संस्थाएं (न्यायपालिका, चुनाव आयोग, मीडिया) निष्पक्ष मानी जाएं। यदि इनमें से किसी पर भी जन-विश्वास कम होता है, तो यह गंभीर चिंता का विषय है।
  • चुनावों का महत्व: चुनाव किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए नागरिकों की इच्छा को सरकार में बदलने का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम हैं। यदि इस प्रक्रिया पर संदेह होता है, तो वह इच्छा अनसुनी रह सकती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य: भारत, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में, अपनी चुनाव प्रक्रियाओं के लिए सम्मानित है। यदि आंतरिक रूप से इस पर सवाल उठते हैं, तो यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की छवि को प्रभावित कर सकता है।

जनता के मन में संदेह के निहितार्थ (Implications of Doubt in the Public Mind)

यदि जनता के मन में चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर संदेह पैदा होता है, तो इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं:

  1. मतदान प्रतिशत में गिरावट: यदि लोगों को लगता है कि उनके वोट का कोई मतलब नहीं है या परिणाम पूर्व-निर्धारित हैं, तो वे मतदान से विमुख हो सकते हैं।
  2. जनता के विश्वास में कमी: यह न केवल चुनाव आयोग, बल्कि संपूर्ण सरकारी प्रणाली और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में जनता के विश्वास को कम कर सकता है।
  3. राजनीतिक अस्थिरता: चुनाव परिणामों को लेकर व्यापक असंतोष राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दे सकता है।
  4. अलोकतांत्रिक तत्वों को बढ़ावा: जब लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर होती हैं, तो अलोकतांत्रिक या तानाशाही प्रवृत्तियों को फलने-फूलने का अवसर मिल सकता है।

केस स्टडी: अन्य देशों में चुनाव प्रणाली पर संदेह

कई देशों में, जब चुनाव प्रक्रिया पर संदेह पैदा हुआ है (जैसे हाल के वर्षों में कुछ पश्चिमी देशों में), तो इसने गहरा राजनीतिक विभाजन और सामाजिक अशांति को जन्म दिया है। उदाहरण के लिए, कुछ देशों में, चुनाव परिणामों को चुनौती देने के कारण अदालती मामले और सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन हुए हैं, जिसने उनकी लोकतांत्रिक स्थिरता को प्रभावित किया है। यह भारत के लिए एक चेतावनी हो सकती है।

भविष्य की राह: समाधान और सुधार (The Way Forward: Solutions and Reforms)

इस जटिल स्थिति से निपटने और लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए, निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

1. पारदर्शिता और जवाबदेही (Transparency and Accountability):

  • ईसीआई के फैसलों का विस्तृत औचित्य: चुनाव आयोग को अपने महत्वपूर्ण निर्णयों, विशेष रूप से आचार संहिता उल्लंघन से संबंधित मामलों में, जनता के लिए स्पष्ट और विस्तृत औचित्य प्रदान करना चाहिए।
  • पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया: हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम प्रणाली को नहीं अपनाया, फिर भी ईसीआई के सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता लाई जा सकती है। समिति की बैठकों के मिनट्स (Minutes) और चर्चाओं को सार्वजनिक किया जा सकता है।

2. संवाद और चर्चा (Dialogue and Discussion):

  • संसदीय बहसों को प्रोत्साहन: सरकार को संसद में चुनाव सुधारों और ईसीआई की कार्यप्रणाली पर चर्चा को प्रोत्साहित करना चाहिए, बजाय इसके कि वह इससे बचे। सभी राजनीतिक दलों के विचारों को सुना जाना चाहिए।
  • सर्वदलीय बैठकें: चुनाव आयोग को सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य दलों के साथ नियमित बैठकें आयोजित करनी चाहिए ताकि उनकी चिंताओं को समझा जा सके और सामूहिक रूप से समाधान खोजे जा सकें।

3. चुनाव सुधार (Electoral Reforms):

भारत में चुनावी सुधारों की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही है। कुछ प्रमुख क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है:

  • धनबल और बाहुबल का नियंत्रण: चुनावों में काले धन और बाहुबल के प्रयोग को रोकने के लिए और अधिक कड़े कदम उठाए जाने चाहिए।
  • पेड न्यूज़ और फेक न्यूज़: सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के साथ, पेड न्यूज़ और फेक न्यूज़ को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी तंत्र की आवश्यकता है।
  • चुनाव आयोग की शक्तियों का सुदृढ़ीकरण: आचार संहिता उल्लंघन के मामलों में आयोग के पास अधिक सशक्त दंड देने की शक्ति होनी चाहिए, ताकि उसके फैसलों का महत्व बढ़े।

4. प्रौद्योगिकी का प्रभावी उपयोग (Effective Use of Technology):

ईवीएम (EVM) और वीवीपैट (VVPAT) जैसी तकनीकों का उपयोग पारदर्शिता बढ़ाता है, लेकिन इनके संचालन और ऑडिट (Audit) की प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाया जाना चाहिए ताकि संदेह की कोई गुंजाइश न रहे।

निष्कर्ष (Conclusion):

चुनाव आयोग की निष्पक्षता भारतीय लोकतंत्र की प्राणवायु है। विपक्षी दलों द्वारा उठाए गए संदेहों को केवल राजनीतिक चाल कहकर खारिज नहीं किया जा सकता, बल्कि उन पर गंभीरता से विचार करने और समाधान खोजने की आवश्यकता है। सरकार का यह दायित्व है कि वह संसद में इस पर चर्चा से कतराने के बजाय, जनता को आश्वस्त करे कि चुनाव प्रक्रिया पूरी तरह से स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी है। जब तक जनता का चुनाव आयोग और चुनाव प्रक्रियाओं में अटूट विश्वास नहीं होगा, तब तक लोकतंत्र अपने वास्तविक उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकता। यह समय है कि सभी हितधारक मिलकर काम करें और भारत के चुनावी लोकतंत्र की अखंडता को बनाए रखें।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद चुनाव आयोग की स्थापना और शक्तियों का वर्णन करता है?
(a) अनुच्छेद 315
(b) अनुच्छेद 324
(c) अनुच्छेद 340
(d) अनुच्छेद 356
उत्तर: (b)
व्याख्या: अनुच्छेद 324 (1) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और संसद तथा राज्यों के विधानमंडलों के लिए सभी चुनावों का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण एक ‘निर्वाचन आयोग’ में निहित होगा।

2. चुनाव आयोग के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. यह एक स्थायी संवैधानिक निकाय है।
2. इसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो अन्य चुनाव आयुक्त शामिल होते हैं।
3. चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) 1 और 2
(c) 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
व्याख्या: चुनाव आयोग एक स्थायी संवैधानिक निकाय है (अनुच्छेद 324)। इसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और दो अन्य चुनाव आयुक्त (EC) होते हैं (समय के साथ इनकी संख्या परिवर्तित हो सकती है, पर वर्तमान व्यवस्था यही है)। इन सभी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

3. “चुनाव आचार संहिता” (Model Code of Conduct) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?
(a) यह भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से परिभाषित है।
(b) यह एक कानूनी रूप से बाध्यकारी प्रावधान है।
(c) यह चुनाव आयोग द्वारा राजनीतिक दलों के लिए दिशानिर्देशों का एक समूह है, जिसका पालन स्वैच्छिक होता है।
(d) यह चुनावों की घोषणा के बाद लागू होता है और चुनाव परिणाम घोषित होने तक प्रभावी रहता है।
उत्तर: (d)
व्याख्या: चुनाव आचार संहिता का उल्लेख संविधान में सीधे तौर पर नहीं है, बल्कि यह चुनाव आयोग द्वारा राजनीतिक दलों और सरकार के लिए दिशानिर्देशों का एक समूह है। हालांकि यह सीधे तौर पर कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है, पर चुनाव आयोग इसके उल्लंघन पर कार्रवाई कर सकता है (जैसे किसी पार्टी या उम्मीदवार पर प्रतिबंध लगाना)। यह चुनावों की घोषणा के साथ ही प्रभावी हो जाता है।

4. हालिया चर्चाओं के अनुसार, निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए गए हैं?
1. वीवीआईपी के खिलाफ आचार संहिता उल्लंघन के मामलों में कार्रवाई।
2. चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया।
3. मतदान के दौरान ईवीएम की सुरक्षा।
सही विकल्प का चयन करें:
(a) केवल 1
(b) 1 और 2
(c) 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
व्याख्या: कांग्रेस जैसे विपक्षी दल वीवीआईपी के खिलाफ आचार संहिता उल्लंघन के मामलों में कार्रवाई और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं। ईवीएम की सुरक्षा को आमतौर पर एक तकनीकी और प्रक्रियात्मक मुद्दा माना जाता है, जिस पर संदेह कम होता है, हालांकि इस पर भी बहस होती रहती है।

5. निम्नलिखित में से कौन सी संस्था भारत में चुनाव चिन्हों का आवंटन करती है?
(a) भारत का सर्वोच्च न्यायालय
(b) भारत का राष्ट्रपति
(c) चुनाव आयोग
(d) संसद
उत्तर: (c)
व्याख्या: चुनाव आयोग राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय और राज्यीय दलों के रूप में मान्यता देता है और उन्हें चुनाव चिन्ह आवंटित करता है।

6. संसद में चर्चा से भागने के विपक्षी दल के आरोप का संबंध मुख्य रूप से किस बात से है?
(a) चुनाव आयोग के फैसलों को चुनौती देना।
(b) सरकार द्वारा आगामी बजट सत्र को टालना।
(c) चुनाव सुधारों और ईसीआई की कार्यप्रणाली पर खुली बहस से बचना।
(d) विपक्षी सदस्यों की संसदीय सदस्यता को रद्द करना।
उत्तर: (c)
व्याख्या: समाचार के अनुसार, कांग्रेस का मुख्य आरोप यह है कि सरकार संसद में चुनाव संबंधी महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा से बच रही है।

7. किसी देश के लोकतंत्र के लिए चुनाव आयोग की निष्पक्षता क्यों महत्वपूर्ण है?
1. यह सत्ताधारी दल को अनुचित लाभ उठाने से रोकता है।
2. यह मतदाताओं का लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास बनाए रखता है।
3. यह राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करता है।
सही कूट का चयन करें:
(a) केवल 1
(b) 1 और 2
(c) 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
व्याख्या: एक निष्पक्ष चुनाव आयोग सुनिश्चित करता है कि सभी राजनीतिक दलों को समान अवसर मिले, जनता का प्रणाली पर विश्वास बना रहे, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक स्थिरता भी बनी रहती है।

8. भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों (ECs) की नियुक्ति के संबंध में हालिया एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम क्या है?
(a) उनकी नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली की स्थापना।
(b) सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय कि नियुक्ति एक समिति द्वारा की जाएगी, जिसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और मुख्य न्यायाधीश शामिल होंगे।
(c) सरकार द्वारा ईसीआई को एक संवैधानिक निकाय से एक वैधानिक निकाय में बदलना।
(d) चुनाव आयुक्तों के लिए न्यूनतम आयु सीमा का निर्धारण।
उत्तर: (b)
व्याख्या: सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक समिति (जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल हों) की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति की जाएगी। हालांकि, हालिया कानून में मुख्य न्यायाधीश की जगह एक कैबिनेट मंत्री को शामिल किया गया है। (प्रश्न में “हालिया चर्चाओं” को ध्यान में रखते हुए, यह विकल्प प्रासंगिक है, हालांकि हालिया कानून में परिवर्तन है)।

9. यदि जनता का चुनाव प्रक्रिया में विश्वास कम हो जाता है, तो इसका सबसे संभावित परिणाम क्या होगा?
(a) मतदान प्रतिशत में वृद्धि
(b) सरकार की लोकप्रियता में वृद्धि
(c) राजनीतिक प्रक्रियाओं में निष्क्रियता और मतदाता अलगाव
(d) चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में वृद्धि
उत्तर: (c)
व्याख्या: जब जनता को लगता है कि उनके वोट का कोई महत्व नहीं है या प्रक्रिया में गड़बड़ी है, तो वे मतदान से दूर रह सकते हैं, जिसे मतदाता अलगाव कहते हैं।

10. चुनाव आयोग की स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित में से कौन सा उपाय प्रभावी होगा?
1. नियुक्ति प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता।
2. आयोग के बजट को संसद की स्वीकृति से स्वतंत्र रखना।
3. आयोग को किसी भी राजनीतिक दल के खिलाफ बिना शर्त कार्रवाई करने की शक्ति देना।
सही कूट का चयन करें:
(a) केवल 1
(b) 1 और 2
(c) 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
व्याख्या: नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता और वित्तीय स्वायत्तता (जैसे बजट की स्वतंत्रता) आयोग की स्वायत्तता को मजबूत कर सकते हैं। हालांकि, आयोग के पास पहले से ही कार्रवाई करने की शक्तियां हैं, लेकिन “बिना शर्त” (unconditional) एक मजबूत शब्द है; शक्तियों का प्रयोग नियमों और प्रक्रियाओं के तहत ही होता है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. “भारतीय लोकतंत्र की विश्वसनीयता और सुदृढ़ता काफी हद तक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने वाली संस्थाओं की क्षमता और धारणा पर निर्भर करती है।” हालिया राजनीतिक विवादों के आलोक में, भारतीय चुनाव आयोग (ECI) की भूमिका, चुनौतियों और सुधार की आवश्यकता का विश्लेषण करें।
(संकेत: ECI की संवैधानिक भूमिका, पक्षपात के आरोप, नियुक्ति प्रक्रिया पर विवाद, संसदीय चर्चा से बचना, पारदर्शिता की मांग, और भविष्य के लिए सुधारों पर चर्चा करें।)

2. विपक्षी दलों द्वारा चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर उठाए गए संदेह और सरकार द्वारा संसद में चर्चा से कतराने की प्रवृत्ति, भारत में लोकतांत्रिक संस्थाओं के स्वास्थ्य के बारे में क्या संकेत देते हैं? इस मुद्दे पर एक विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करें।
(संकेत: लोकतांत्रिक संस्थाओं का महत्व, विपक्षी दलों की भूमिका, सरकार का रवैया, सार्वजनिक विश्वास पर प्रभाव, और इन संदेहों को दूर करने के उपायों पर प्रकाश डालें।)

3. चुनाव सुधार भारत में एक सतत चर्चा का विषय रहा है। हालिया घटनाक्रमों (जैसे ईसीआई पर संदेह) को ध्यान में रखते हुए, उन प्रमुख क्षेत्रों की पहचान करें जहाँ तत्काल सुधार की आवश्यकता है ताकि भारत के चुनावी लोकतंत्र की निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
(संकेत: धनबल/बाहुबल पर नियंत्रण, पेड/फेक न्यूज़, नियुक्ति प्रक्रिया, ईसीआई की शक्तियाँ, और राजनीतिक दलों की जवाबदेही जैसे बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करें।)

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