चुनावी धांधली के आरोप: कांग्रेस का EC पर ‘परमाणु बम’, चुनाव आयोग की भूमिका पर गंभीर सवाल
चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल ही में, कांग्रेस पार्टी ने भारतीय चुनाव आयोग (EC) पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि देश में होने वाले चुनाव पूर्वनियोजित (choreographed) हैं और इनमें धांधली की जा रही है। राहुल गांधी द्वारा लगाए गए इन आरोपों ने चुनावी प्रक्रियाओं की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर एक बार फिर बहस छेड़ दी है। यह मामला न केवल राजनीतिक गलियारों में बल्कि आम जनता के बीच भी चर्चा का विषय बन गया है, क्योंकि चुनावों की सत्यता देश के लोकतंत्र का आधार स्तंभ है।
यह आरोप तब लगे हैं जब देश में आगामी चुनावों की सरगर्मी तेज है। ऐसे में, कांग्रेस द्वारा लगाए गए ये आरोप न केवल चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं, बल्कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की भारतीय व्यवस्था की क्षमता पर भी संदेह पैदा करते हैं। आइए, इस मामले की गहराई में उतरें, आरोपों की प्रकृति को समझें, चुनाव आयोग की भूमिका और शक्तियों का विश्लेषण करें, और देखें कि ये आरोप भारतीय लोकतंत्र के लिए क्या मायने रखते हैं।
पृष्ठभूमि: चुनावी अखंडता पर चिंताएँ
भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते, अपनी चुनावी प्रक्रियाओं की निष्पक्षता और पारदर्शिता के लिए जाना जाता है। हालाँकि, समय-समय पर चुनावी प्रक्रियाओं, ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) की सुरक्षा, और चुनाव आयोग के कामकाज पर सवाल उठते रहे हैं। ये चिंताएँ अक्सर विपक्षी दलों द्वारा उठाई जाती हैं, खासकर चुनावों के परिणामों के बाद या जब उन्हें लगता है कि उनके साथ अनुचित व्यवहार हुआ है।
राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी द्वारा लगाए गए नवीनतम आरोप इसी व्यापक संदर्भ का हिस्सा हैं। इन आरोपों का मुख्य बिंदु यह है कि चुनावी परिदृश्य को इस तरह से तैयार किया जा रहा है कि परिणाम पूर्वनियोजित हों, जिससे मतदाताओं की वास्तविक इच्छा को दबाया जा सके। इसे ‘वोटर फ्रॉड’ या मतदाता धोखाधड़ी का ‘परमाणु बम’ कहना, आरोपों की गंभीरता को दर्शाता है।
कांग्रेस के प्रमुख आरोप: ‘निर्देशक’ चुनाव आयोग?
कांग्रेस पार्टी द्वारा लगाए गए आरोपों को विस्तार से समझना महत्वपूर्ण है। ये आरोप कई आयामों को छूते हैं, जिनमें शामिल हैं:
- पूर्वनियोजित चुनाव (Choreographed Polls): यह सबसे गंभीर आरोप है, जिसका अर्थ है कि चुनावों को इस तरह से ‘निर्देशित’ किया जा रहा है कि परिणाम एक निश्चित दिशा में ही जाएँ। इसका तात्पर्य यह हो सकता है कि चुनाव आयोग या अन्य सरकारी मशीनरी का उपयोग करके चुनावी प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित किया जा रहा है, जैसे कि चुनाव अधिसूचना जारी करना, आदर्श आचार संहिता लागू करना, या मतगणना प्रक्रिया।
- मतदाता धोखाधड़ी (Voter Fraud): यह एक व्यापक शब्द है जिसमें कई तरह की अनियमितताओं को शामिल किया जा सकता है, जैसे कि मतदाता सूची में हेरफेर, फर्जी मतदान, ईवीएम में छेड़छाड़, या मतगणना में धांधली। कांग्रेस का आरोप है कि इस प्रकार की धोखाधड़ी को होने दिया जा रहा है या इसे सक्षम किया जा रहा है।
- चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल: कांग्रेस का मुख्य निशाना चुनाव आयोग है, यह आरोप लगाते हुए कि वह निष्पक्ष और तटस्थ भूमिका निभाने में विफल हो रहा है। पार्टी का मानना है कि आयोग सत्ताधारी दल के पक्ष में झुका हुआ है और अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी को पूरा नहीं कर रहा है।
- ईवीएम पर चिंताएँ: यद्यपि विशिष्ट आरोप ईवीएम के साथ छेड़छाड़ के बारे में स्पष्ट नहीं किए गए हैं, लेकिन ‘वोटर फ्रॉड’ की सामान्य बात में अक्सर ईवीएम पर चिंताएँ शामिल होती हैं। विपक्षी दल लंबे समय से ईवीएम की सुरक्षा और हैकिंग की संभावना पर सवाल उठाते रहे हैं।
यह महत्वपूर्ण है कि इन आरोपों की पुष्टि के लिए ठोस सबूत पेश किए जाएँ। हालाँकि, राजनीतिक दलों द्वारा लगाए गए आरोप, भले ही बिना पुख्ता सबूत के हों, चुनावी प्रक्रिया की अखंडता और मतदाताओं के विश्वास पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं।
“चुनाव लोकतंत्र की आत्मा होते हैं। यदि आत्मा ही दूषित हो जाए, तो लोकतंत्र का क्या होगा?” – यह कथन उस गंभीर चिंता को व्यक्त करता है जो चुनावी निष्पक्षता के उल्लंघन से उत्पन्न होती है।
भारतीय चुनाव आयोग: भूमिका, शक्तियाँ और चुनौतियाँ
कांग्रेस के आरोपों के आलोक में, भारतीय चुनाव आयोग (EC) की भूमिका और शक्तियों को समझना अत्यंत आवश्यक है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324, चुनाव आयोग को सभी चुनावों के लिए मतदाता सूचियों की तैयारी और सभी चुनावों के संचालन, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है।
चुनाव आयोग के मुख्य कार्य:
- चुनावों का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण: राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और संसद (लोकसभा और राज्यसभा) तथा राज्यों की विधानमंडलों के चुनावों को निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से संचालित करना।
- मतदाता सूचियों की तैयारी: समय-समय पर मतदाता सूचियों को अद्यतन करना और यह सुनिश्चित करना कि सभी पात्र नागरिक मतदाता सूची में शामिल हों।
- आदर्श आचार संहिता का प्रवर्तन: चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के आचरण को विनियमित करने के लिए आदर्श आचार संहिता लागू करना।
- चुनाव प्रतीकों का आवंटन: राजनीतिक दलों को मान्यता देना और उन्हें चुनाव चिन्ह आवंटित करना।
- चुनावों के लिए कार्यक्रम तय करना: चुनाव कब होंगे, इसकी घोषणा करना।
- मतगणना और परिणाम की घोषणा: मतों की गिनती की निगरानी करना और अंतिम परिणाम घोषित करना।
चुनाव आयोग की शक्तियाँ:
चुनाव आयोग के पास अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए पर्याप्त शक्तियाँ हैं:
- कानूनी शक्तियाँ: जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 जैसे कानूनों के तहत आयोग को कई शक्तियाँ प्राप्त हैं, जैसे कि किसी उम्मीदवार या पार्टी को अयोग्य घोषित करना, मतदान रद्द करना, या नियमों का उल्लंघन करने पर कार्रवाई करना।
- न्यायिक शक्तियाँ: कुछ मामलों में, आयोग न्यायिक शक्तियों का प्रयोग कर सकता है, जैसे कि चुनाव संबंधी विवादों में निर्णय लेना।
- प्रशासनिक शक्तियाँ: चुनाव कराने के लिए आवश्यक सभी प्रशासनिक और कार्यकारी कदम उठाना।
चुनाव आयोग के समक्ष चुनौतियाँ:
अपने संवैधानिक जनादेश के बावजूद, चुनाव आयोग को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:
- राजनीतिक दबाव: सत्ताधारी दलों या अन्य शक्तिशाली संस्थाओं से निष्पक्ष रहने के लिए दबाव का सामना करना पड़ सकता है।
- तकनीकी चुनौतियाँ: ईवीएम और वीवीपैट (Voter Verified Paper Audit Trail) जैसी प्रौद्योगिकियों का प्रबंधन, सुरक्षा सुनिश्चित करना और उन पर जनता के विश्वास को बनाए रखना।
- मतदाता धोखाधड़ी को रोकना: मतदाता सूची में विसंगतियों, फर्जी मतदान और अन्य प्रकार की धोखाधड़ी को प्रभावी ढंग से रोकना।
- आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन: पार्टियों द्वारा लगातार आचार संहिता का उल्लंघन और उस पर आयोग की प्रतिक्रिया।
- मीडिया और सोशल मीडिया का प्रभाव: गलत सूचनाओं और अफवाहों को फैलने से रोकना, खासकर सोशल मीडिया के युग में।
कांग्रेस के आरोपों का विश्लेषण: क्या वाकई ‘परमाणु बम’ है?
कांग्रेस के आरोपों को ‘परमाणु बम’ कहना, निश्चित रूप से, एक प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है जिसका उद्देश्य आरोपों की गंभीरता को उजागर करना है। लेकिन क्या ये आरोप भारतीय चुनावी प्रणाली की जड़ों को हिलाने में सक्षम हैं?
- ‘पूर्वनियोजित’ चुनावों का आरोप: यह आरोप चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सबसे सीधा हमला है। यदि चुनाव पूर्वनियोजित हैं, तो इसका मतलब है कि आयोग स्वयं इस योजना का हिस्सा है या इसे रोकने में असमर्थ है। यह धारणा अत्यंत खतरनाक है क्योंकि यह मतदाताओं के लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास को कम कर देती है।
- ‘वोटर फ्रॉड’ का आरोप: यह आरोप मतदाता सूची से लेकर मतगणना तक, चुनावी प्रक्रिया के किसी भी चरण में हो सकने वाली अनियमितताओं की ओर इशारा करता है। कांग्रेस को यह स्पष्ट करना होगा कि वे किस प्रकार की धोखाधड़ी का आरोप लगा रहे हैं और इसके क्या सबूत हैं।
उपमा: कल्पना कीजिए कि एक क्रिकेट मैच चल रहा है और एक टीम के कप्तान का कहना है कि मैच फिक्स है और अंपायर ने पहले से ही तय कर लिया है कि कौन जीतेगा। यह न केवल उस मैच के परिणाम पर, बल्कि पूरे खेल की प्रतिष्ठा पर भी सवाल उठाता है। कांग्रेस के आरोप कुछ इसी तरह के हैं।
संभावित निहितार्थ:
- चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर संकट: यदि ये आरोप सत्य सिद्ध होते हैं या व्यापक रूप से स्वीकार किए जाते हैं, तो चुनाव आयोग की निष्पक्षता और कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठेंगे।
- लोकतंत्र में जनता के विश्वास में कमी: जब लोग यह मानने लगते हैं कि चुनाव निष्पक्ष नहीं हैं, तो वे मतदान प्रक्रिया से दूर हो सकते हैं, जिससे लोकतंत्र कमजोर होता है।
- कानूनी और संवैधानिक चुनौतियाँ: ऐसे आरोपों के कारण चुनावी परिणामों को कानूनी रूप से चुनौती दी जा सकती है, जिससे राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो सकती है।
अन्य राजनीतिक दलों और विशेषज्ञों की प्रतिक्रियाएँ
आमतौर पर, जब कोई प्रमुख राजनीतिक दल ऐसे गंभीर आरोप लगाता है, तो अन्य राजनीतिक दल और चुनावी विशेषज्ञ इस पर प्रतिक्रिया देते हैं।
- सत्तारूढ़ दल: सत्ताधारी दल आमतौर पर ऐसे आरोपों को खारिज करता है और उन्हें राजनीतिक हताशा का परिणाम बताता है। वे अक्सर अपनी सरकार के तहत निष्पक्ष चुनावों के ट्रैक रिकॉर्ड पर जोर देते हैं।
- अन्य विपक्षी दल: कभी-कभी अन्य विपक्षी दल इन आरोपों का समर्थन करते हैं, खासकर यदि वे स्वयं चुनावी प्रक्रिया से असंतुष्ट हों। यह विभिन्न दलों को एक साझा एजेंडे पर एकजुट कर सकता है।
- विशेषज्ञ और नागरिक समाज: चुनावी सुधारों की वकालत करने वाले विशेषज्ञ और नागरिक समाज संगठन ऐसे आरोपों का विश्लेषण करते हैं और चुनाव आयोग से स्पष्टीकरण या सुधारात्मक कार्रवाई की मांग कर सकते हैं। वे ईवीएम सुरक्षा, मतदाता सूची की गुणवत्ता, और आदर्श आचार संहिता के प्रवर्तन जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
आगे का मार्ग: सुधार और आश्वासन
चुनावी अखंडता को बनाए रखना एक निरंतर प्रक्रिया है। कांग्रेस के इन आरोपों के संदर्भ में, कुछ कदम उठाए जा सकते हैं:
कांग्रेस द्वारा उठाए जाने वाले कदम:
- सबूत पेश करें: यदि पार्टी के पास ‘वोटर फ्रॉड’ या ‘पूर्वनियोजित’ चुनावों के पुख्ता सबूत हैं, तो उन्हें सार्वजनिक रूप से और आधिकारिक माध्यमों से चुनाव आयोग और न्यायालयों के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए।
- विशिष्ट सुधारों का प्रस्ताव: केवल आरोप लगाने के बजाय, कांग्रेस को चुनावी प्रक्रिया में सुधार के लिए विशिष्ट और व्यावहारिक प्रस्ताव भी देने चाहिए।
- विभिन्न मंचों पर चर्चा: संसद, मीडिया और जनसभाओं में इन मुद्दों को उठाना चाहिए, लेकिन जिम्मेदारी के साथ।
चुनाव आयोग द्वारा उठाए जाने वाले कदम:
- पारदर्शिता बढ़ाना: चुनाव आयोग को अपनी प्रक्रियाओं में अधिक पारदर्शिता लानी चाहिए ताकि जनता का विश्वास बना रहे। ईवीएम की सुरक्षा, मतगणना प्रक्रिया, और शिकायत निवारण तंत्र को और अधिक सुलभ बनाना चाहिए।
- स्पष्टीकरण देना: आयोग को इन आरोपों का तथ्यात्मक और पारदर्शी तरीके से जवाब देना चाहिए। यदि कोई आरोप निराधार है, तो उसे वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ खारिज किया जाना चाहिए।
- सुधारों को अपनाना: यदि चुनावी प्रक्रिया में कोई खामी है, तो आयोग को उसे सुधारने के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए, जैसे कि मतदाता सूची को साफ-सुथरा रखना, या आदर्श आचार संहिता को सख्ती से लागू करना।
लोकतंत्र के लिए आवश्यक कदम:
- जागरूकता अभियान: नागरिकों को चुनावी प्रक्रियाओं के बारे में शिक्षित करना ताकि वे अनियमितताओं को पहचान सकें और रिपोर्ट कर सकें।
- मीडिया की भूमिका: मीडिया को निष्पक्ष रिपोर्टिंग करनी चाहिए और अटकलों के बजाय तथ्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
- नागरिक समाज की भागीदारी: नागरिक समाज संगठनों को चुनावी निगरानी में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
उपमा: एक जहाज के कप्तान को सुनिश्चित करना होता है कि जहाज न केवल सही दिशा में जा रहा है, बल्कि यात्रियों को भी उस पर पूरा भरोसा है। यदि यात्री यह मानने लगें कि जहाज डगमगा रहा है या कप्तान पक्षपाती है, तो यात्रा भयावह हो सकती है। चुनाव आयोग को उसी तरह जहाज के कप्तान की भूमिका निभानी होती है।
निष्कर्ष: निष्पक्षता ही लोकतंत्र की जड़ है
कांग्रेस द्वारा लगाए गए “वोटर फ्रॉड” और “पूर्वनियोजित चुनाव” के आरोप गंभीर हैं और भारतीय लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ रखते हैं। चुनाव आयोग का स्वतंत्र और निष्पक्ष कामकाज देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने की रीढ़ है। यदि इस रीढ़ में दरार आती है, तो पूरा ढांचा कमजोर हो सकता है।
यह समय है कि सभी हितधारक – राजनीतिक दल, चुनाव आयोग, मीडिया और नागरिक – चुनावी अखंडता को बनाए रखने के लिए मिलकर काम करें। आरोपों का सामना तथ्यों और पारदर्शिता से किया जाना चाहिए। यदि कोई गड़बड़ी है, तो उसे ठीक किया जाना चाहिए। यदि आरोप निराधार हैं, तो उन्हें स्पष्ट और प्रभावी ढंग से खारिज किया जाना चाहिए। अंततः, एक मजबूत लोकतंत्र के लिए मतदाताओं का विश्वास सर्वोपरि है, और यह विश्वास तभी बना रह सकता है जब चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता और सत्यता निर्विवाद हो।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न 1: भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद चुनाव आयोग को चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है?
(a) अनुच्छेद 320
(b) अनुच्छेद 324
(c) अनुच्छेद 315
(d) अनुच्छेद 305
उत्तर: (b) अनुच्छेद 324
व्याख्या: अनुच्छेद 324 भारतीय संविधान में चुनाव आयोग की स्थापना और उसके शक्तियों का प्रावधान करता है। - प्रश्न 2: निम्नलिखित में से कौन सा चुनावी प्रक्रिया में ‘वोटर फ्रॉड’ का एक संभावित रूप नहीं है?
(a) मतदाता सूची में हेरफेर
(b) फर्जी मतदान
(c) मतदाता को मतदान के लिए प्रोत्साहित करना
(d) मतगणना में धांधली
उत्तर: (c) मतदाता को मतदान के लिए प्रोत्साहित करना
व्याख्या: मतदाता को मतदान के लिए प्रोत्साहित करना चुनावी प्रक्रिया को मजबूत करता है, जबकि अन्य विकल्प धांधली का संकेत देते हैं। - प्रश्न 3: भारतीय चुनाव आयोग की निम्नलिखित में से कौन सी एक शक्ति नहीं है?
(a) राजनीतिक दलों को चुनाव चिन्ह आवंटित करना
(b) संसद के सदस्यों की अयोग्यता पर राष्ट्रपति को सलाह देना
(c) चुनाव परिणामों की न्यायिक समीक्षा करना
(d) आदर्श आचार संहिता का प्रवर्तन
उत्तर: (c) चुनाव परिणामों की न्यायिक समीक्षा करना
व्याख्या: चुनाव परिणामों की न्यायिक समीक्षा का अधिकार न्यायालयों के पास है, चुनाव आयोग के पास नहीं। - प्रश्न 4: ‘आदर्श आचार संहिता’ का संबंध निम्नलिखित में से किससे है?
(a) चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के आचरण से
(b) मतदान की गोपनीयता से
(c) चुनाव व्यय की सीमा से
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर: (d) उपरोक्त सभी
व्याख्या: आदर्श आचार संहिता चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों और सरकार के आचरण को नियंत्रित करती है। - प्रश्न 5: यदि किसी चुनाव में अनियमितताओं के कारण चुनाव आयोग द्वारा मतदान रद्द कर दिया जाता है, तो वह निम्नलिखित में से किस कानून के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग कर रहा होता है?
(a) भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324
(b) जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126
(c) जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 58A
(d) भारतीय दंड संहिता, 1860
उत्तर: (c) जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 58A
व्याख्या: धारा 58A चुनाव आयोग को विशेष परिस्थितियों में मतदान रद्द करने की शक्ति देती है। - प्रश्न 6: भारत में ‘इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन’ (EVM) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. EVM को पहली बार 1982 में केरल के एक विधानसभा क्षेत्र में प्रयुक्त किया गया था।
2. EVM का पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर 1999 के आम चुनावों में उपयोग किया गया था।
3. 2004 के आम चुनावों में पहली बार सभी लोकसभा सीटों पर EVM का उपयोग किया गया था।
उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c) केवल 1 और 3
व्याख्या: EVM का पहला प्रयोग 1982 में हुआ था, राष्ट्रीय स्तर पर 1999 में शुरू हुआ, और 2004 तक सभी लोकसभा चुनावों में व्यापक रूप से उपयोग किया गया। - प्रश्न 7: ‘इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन’ (EVM) के संदर्भ में ‘VVPAT’ का क्या अर्थ है?
(a) Voter Verification Paper Audit Trail
(b) Visible Voter Paper Audit Technology
(c) Verified Voting Paper Audit Tool
(d) Virtual Voter Paper Audit Trial
उत्तर: (a) Voter Verification Paper Audit Trail
व्याख्या: VVPAT एक ऐसी प्रणाली है जो मतदाताओं को यह सत्यापित करने की अनुमति देती है कि उनका वोट सही ढंग से दर्ज हुआ है या नहीं। - प्रश्न 8: चुनाव आयोग को एक ‘संवैधानिक निकाय’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसका क्या अर्थ है?
(a) इसका गठन संसद के एक अधिनियम द्वारा हुआ है।
(b) इसका गठन संविधान के तहत किया गया है।
(c) इसका गठन कार्यकारी आदेश द्वारा हुआ है।
(d) इसका गठन किसी अंतर-सरकारी समझौते से हुआ है।
उत्तर: (b) इसका गठन संविधान के तहत किया गया है।
व्याख्या: संवैधानिक निकाय वे होते हैं जिनका उल्लेख सीधे संविधान में होता है, जैसे कि चुनाव आयोग। - प्रश्न 9: भारत में निम्नलिखित में से कौन सी संस्था ‘चुनावी अखंडता’ (Electoral Integrity) को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है?
(a) भारतीय रिजर्व बैंक (RBI)
(b) भारतीय चुनाव आयोग (ECI)
(c) भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI)
(d) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)
उत्तर: (b) भारतीय चुनाव आयोग (ECI)
व्याख्या: चुनाव आयोग का मुख्य कार्य स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना है। - प्रश्न 10: ‘चुनावी प्रक्रिया का लोकतंत्रीकरण’ का क्या अर्थ है?
(a) केवल मतदान की प्रक्रिया को डिजिटल बनाना।
(b) यह सुनिश्चित करना कि सभी पात्र नागरिक बिना किसी बाधा के मतदान कर सकें और चुनाव निष्पक्ष हों।
(c) राजनीतिक दलों को चुनाव लड़ने के लिए सरकारी धन देना।
(d) केवल परिणामों की घोषणा को तेज करना।
उत्तर: (b) यह सुनिश्चित करना कि सभी पात्र नागरिक बिना किसी बाधा के मतदान कर सकें और चुनाव निष्पक्ष हों।
व्याख्या: चुनावी प्रक्रिया का लोकतंत्रीकरण व्यापक है और इसमें निष्पक्षता, पहुंच और पारदर्शिता शामिल है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न 1: “कांग्रेस द्वारा चुनाव आयोग पर लगाए गए ‘वोटर फ्रॉड’ और ‘पूर्वनियोजित चुनाव’ के आरोपों के आलोक में, भारतीय चुनाव आयोग की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और शक्तियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। आरोपों के कारण उत्पन्न होने वाली चुनौतियों और संभावित समाधानों पर चर्चा करें।”
- प्रश्न 2: “भारत में चुनावी अखंडता (Electoral Integrity) को बनाए रखने में चुनाव आयोग की भूमिका महत्वपूर्ण है। हाल के वर्षों में EVM पर उठाए गए सवालों और राजनीतिक दलों द्वारा लगाए गए आरोपों के संदर्भ में, आयोग के कामकाज की जाँच करें और चुनावी प्रक्रिया में विश्वास बनाए रखने के उपायों का सुझाव दें।”
- प्रश्न 3: “भारतीय लोकतंत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा चुनाव आयोग को किन शक्तियों से संपन्न किया गया है? चुनावी प्रक्रियाओं में विश्वास पैदा करने और बनाए रखने में चुनाव आयोग को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?”
- प्रश्न 4: “जब प्रमुख राजनीतिक दल चुनावी प्रक्रियाओं की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं, तो यह लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय होता है। कांग्रेस के वर्तमान आरोपों का विश्लेषण करें और ऐसे आरोपों के नागरिक समाज, राजनीतिक स्थिरता और अंतर्राष्ट्रीय छवि पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों पर प्रकाश डालें।”