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‘चुनने का अधिकार’ पर रूस का स्टैंड: भारत को तेल में समर्थन, अमेरिका की टैरिफ धमकी का कड़ा जवाब!

‘चुनने का अधिकार’ पर रूस का स्टैंड: भारत को तेल में समर्थन, अमेरिका की टैरिफ धमकी का कड़ा जवाब!

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में, अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीतिक मंच पर कच्चे तेल के व्यापार को लेकर एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम सामने आया है। जब संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने उन देशों के खिलाफ टैरिफ (शुल्क) लगाने की धमकी दी जो ईरान से तेल आयात करना जारी रखते हैं, तो रूस ने स्पष्ट रूप से भारत का समर्थन किया। रूस ने न केवल भारत के ‘चुनने के अधिकार’ का समर्थन किया, बल्कि अमेरिकी टैरिफ की धमकी की कड़ी आलोचना भी की। यह घटना भारत की ऊर्जा सुरक्षा, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों और वैश्विक शक्ति संतुलन के संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण है।

पृष्ठभूमि: वैश्विक ऊर्जा व्यापार और भू-राजनीतिक समीकरण

कच्चा तेल आधुनिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। इसका उत्पादन, व्यापार और मूल्य निर्धारण वैश्विक राजनीति और अर्थशास्त्र को गहराई से प्रभावित करता है। सदियों से, तेल ने देशों के बीच शक्ति संतुलन, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और यहाँ तक कि युद्धों को भी आकार दिया है। हाल के वर्षों में, वैश्विक तेल बाजार में कई महत्वपूर्ण बदलाव देखे गए हैं, जिनमें प्रमुख तेल उत्पादक देशों (जैसे OPEC+) की भूमिका, शेल तेल क्रांति, और भू-राजनीतिक तनावों का प्रभाव शामिल है।

इस परिदृश्य में, भारत एक प्रमुख ऊर्जा उपभोक्ता है। अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था और विशाल जनसंख्या को देखते हुए, भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का एक बड़ा हिस्सा आयात पर निर्भर करता है। कच्चे तेल की आपूर्ति में कोई भी व्यवधान या मूल्य में वृद्धि भारत की अर्थव्यवस्था और आम आदमी पर सीधा प्रभाव डाल सकती है।

अमेरिकी टैरिफ धमकी: ‘ईरान से तेल खरीदो या दंड भुगतो’

अमेरिकी प्रशासन ने ईरान पर अपने परमाणु कार्यक्रम को लेकर कड़े प्रतिबंध लगाए थे। इन प्रतिबंधों का एक प्रमुख हिस्सा ईरान से कच्चे तेल के आयात पर था। संयुक्त राज्य अमेरिका ने दुनिया के अन्य देशों पर भी दबाव डाला कि वे ईरान से तेल खरीदना बंद कर दें, अन्यथा उन्हें अमेरिकी बाजार में प्रवेश या अन्य आर्थिक लाभों से वंचित किया जा सकता है, या उन पर टैरिफ लगाए जा सकते हैं। यह नीति, जिसे ‘अधिकतम दबाव’ (Maximum Pressure) अभियान का हिस्सा माना गया, का उद्देश्य ईरान को बातचीत की मेज पर लाना था।

इस नीति का उद्देश्य उन देशों के लिए एक सीधा संदेश था जो ईरान से तेल का आयात कर रहे थे, जिसमें भारत भी शामिल था। अमेरिका चाहता था कि ये देश ईरान से तेल खरीदना बंद कर दें, भले ही इससे उनकी अपनी ऊर्जा सुरक्षा या अर्थव्यवस्था प्रभावित हो।

रूस का रुख: ‘भारत का अपना निर्णय’

इस जटिल स्थिति में, रूस का रुख अत्यंत महत्वपूर्ण था। रूस स्वयं एक प्रमुख तेल उत्पादक देश है और वैश्विक ऊर्जा बाजार में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी है। जब अमेरिका ने भारत को ईरान से तेल खरीदने पर टैरिफ की धमकी दी, तो रूस ने स्पष्ट किया कि वह भारत के अपने निर्णय लेने के अधिकार का समर्थन करता है।

“यह निर्णय भारत का है, यह भारत का अधिकार है। हम अपने सभी भागीदारों के साथ व्यापारिक संबंध बनाए रखना चाहते हैं।”

रूस का यह बयान कई मायनों में महत्वपूर्ण था:

  1. भारत का समर्थन: रूस ने सीधे तौर पर भारत का पक्ष लिया और अमेरिकी दबाव का विरोध किया।
  2. ‘चुनने के अधिकार’ पर जोर: इसने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने की बात कही।
  3. अमेरिकी नीति की आलोचना: यह अमेरिकी टैरिफ धमकी को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के खिलाफ एकतरफा कार्रवाई के रूप में देखा गया।
  4. भू-राजनीतिक पैंतरा: यह रूस द्वारा अमेरिका के प्रभाव को चुनौती देने और भारत के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने के प्रयास के रूप में भी देखा गया।

भारत की स्थिति: ऊर्जा सुरक्षा बनाम भू-राजनीतिक दबाव

भारत के लिए, यह एक मुश्किल स्थिति थी। एक ओर, अमेरिका के साथ भारत के रणनीतिक संबंध महत्वपूर्ण हैं, विशेषकर सुरक्षा और रक्षा के क्षेत्र में। दूसरी ओर, ईरान भारत के लिए एक महत्वपूर्ण तेल आपूर्तिकर्ता रहा है, और ईरान से तेल की खरीद को रोकना भारत की ऊर्जा सुरक्षा को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता था।

भारत ने हमेशा से अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और संप्रभु देशों के अधिकारों का सम्मान करने की नीति का पालन किया है। उसने यह स्पष्ट किया है कि ऊर्जा स्रोतों का चयन करना उसका अपना निर्णय है, जो उसकी आर्थिक और ऊर्जा सुरक्षा की आवश्यकताओं पर आधारित है। भारत ने अक्सर यह तर्क दिया है कि ऊर्जा व्यापार को भू-राजनीतिक मुद्दों से अलग रखा जाना चाहिए।

‘चुनने का अधिकार’ का महत्व: संप्रभुता और अंतर्राष्ट्रीय कानून

रूस का ‘चुनने के अधिकार’ पर जोर देना एक मौलिक सिद्धांत को रेखांकित करता है: संप्रभुता। प्रत्येक संप्रभु राष्ट्र को यह तय करने का अधिकार है कि वह किसके साथ व्यापार करे, किससे आयात करे और अपनी आर्थिक नीतियों को कैसे निर्धारित करे। अंतर्राष्ट्रीय कानून, विशेष रूप से विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे निकायों के नियम, निष्पक्ष और गैर-भेदभावपूर्ण व्यापार को बढ़ावा देते हैं।

जब कोई देश किसी तीसरे देश पर इस आधार पर दबाव डालता है कि वह किसी विशेष देश से व्यापार न करे, तो यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों का उल्लंघन माना जा सकता है। रूस ने इसी बिंदु को उठाया। यह केवल भारत और ईरान के बीच तेल व्यापार का मामला नहीं था, बल्कि यह एक मिसाल कायम करने का सवाल था कि क्या एक देश दूसरे संप्रभु देश की व्यापारिक नीतियों को निर्देशित कर सकता है।

रूस-भारत संबंध: एक रणनीतिक साझेदारी

यह घटना भारत और रूस के बीच गहरे और बहुआयामी रणनीतिक संबंधों को भी उजागर करती है। ऐतिहासिक रूप से, भारत और रूस (और पूर्व में सोवियत संघ) के बीच मजबूत संबंध रहे हैं। आज भी, दोनों देश रक्षा, ऊर्जा, अंतरिक्ष और आतंकवाद विरोधी अभियानों जैसे क्षेत्रों में घनिष्ठ सहयोग साझा करते हैं।

रूस का यह सार्वजनिक समर्थन भारत के लिए महत्वपूर्ण था क्योंकि इसने वैश्विक मंच पर भारत को कूटनीतिक बढ़ावा दिया। यह रूस के उस सिद्धांत के प्रति प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है कि वह अपने रणनीतिक सहयोगियों के हितों की रक्षा करता है, भले ही उन्हें पश्चिमी शक्तियों के दबाव का सामना करना पड़े।

भू-राजनीतिक निहितार्थ और प्रभाव

इस घटना के कई महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक निहितार्थ हैं:

  • बहुध्रुवीय विश्व का उदय: यह घटना दर्शाती है कि दुनिया एकल-ध्रुवीय प्रभुत्व से दूर जा रही है और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था मजबूत हो रही है, जहाँ विभिन्न शक्तियाँ अपने हितों के अनुसार निर्णय लेती हैं।
  • अमेरिकी प्रभाव को चुनौती: रूस का यह रुख अमेरिकी विदेश नीति की एकतरफा प्रकृति और वैश्विक शक्ति संतुलन पर इसके प्रभाव को चुनौती देता है।
  • ऊर्जा कूटनीति का महत्व: यह दिखाता है कि कैसे ऊर्जा को भू-राजनीतिक लाभ के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, और कैसे देश अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कूटनीतिक दांव-पेंच खेलते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की भूमिका: यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों और उन संस्थानों की भूमिका पर भी सवाल उठाता है जो इन नियमों को लागू करने के लिए जिम्मेदार हैं।

भारत के लिए चुनौतियाँ और अवसर

भारत के लिए, इस स्थिति ने कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियाँ और अवसर प्रस्तुत किए:

  • ऊर्जा विविधीकरण: भारत ने अपनी ऊर्जा आपूर्ति को विविधतापूर्ण बनाने के महत्व को पहचाना है, ताकि किसी एक स्रोत पर निर्भरता कम हो सके।
  • रणनीतिक स्वायत्तता: यह घटना भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखने के महत्व को रेखांकित करती है, यानी किसी भी बाहरी दबाव के आगे झुके बिना अपने राष्ट्रीय हितों में निर्णय लेने की क्षमता।
  • कूटनीतिक संतुलन: भारत को अमेरिका और रूस जैसे प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना होगा, जबकि अपने स्वयं के आर्थिक और ऊर्जा हितों की रक्षा करनी होगी।

संभावित भविष्य की राह

इस प्रकार की घटनाएँ भविष्य में भी होने की संभावना है क्योंकि वैश्विक शक्ति संतुलन बदल रहा है और विभिन्न देश अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दे रहे हैं। भारत को इन बदलती परिस्थितियों के अनुकूल ढलना होगा:

  1. ऊर्जा आयात स्रोतों का विविधीकरण: मध्य पूर्व, अफ्रीका, अमेरिका और अन्य क्षेत्रों से तेल आयात को और बढ़ाना।
  2. नवीकरणीय ऊर्जा पर जोर: ऊर्जा की मांग को पूरा करने के लिए सौर, पवन और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश बढ़ाना।
  3. रणनीतिक साझेदारी मजबूत करना: रूस, ईरान, वेनेजुएला जैसे तेल उत्पादक देशों के साथ दीर्घकालिक ऊर्जा समझौते करना।
  4. अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर वकालत: निष्पक्ष और नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रणाली की वकालत करना।

निष्कर्ष

रूस का भारत के ‘चुनने के अधिकार’ का समर्थन करना और अमेरिकी टैरिफ धमकी की आलोचना करना, कच्चे तेल के व्यापार को लेकर चल रही भू-राजनीतिक खींचतान में एक महत्वपूर्ण क्षण था। यह घटना न केवल भारत की ऊर्जा सुरक्षा को प्रभावित करती है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों और संप्रभुता के सिद्धांतों पर भी प्रकाश डालती है। रूस का रुख भारत के लिए एक कूटनीतिक समर्थन था और यह दर्शाता है कि कैसे देश बदलती वैश्विक व्यवस्था में अपने हितों की रक्षा के लिए एकजुट हो सकते हैं। भारत के लिए, यह अपनी ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने और अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने की आवश्यकता को और अधिक रेखांकित करता है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: अंतर्राष्ट्रीय तेल व्यापार के संदर्भ में, ‘अधिकतम दबाव’ (Maximum Pressure) अभियान किस देश से जुड़ा है?

    (a) रूस

    (b) ईरान

    (c) संयुक्त राज्य अमेरिका

    (d) सऊदी अरब

    उत्तर: (c) संयुक्त राज्य अमेरिका

    व्याख्या: ‘अधिकतम दबाव’ अभियान को ईरान पर परमाणु कार्यक्रम और अन्य गतिविधियों को लेकर दबाव बनाने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अपनाया गया था।

  2. प्रश्न 2: कच्चे तेल के व्यापार पर अमेरिकी टैरिफ की धमकी के जवाब में, किस देश ने भारत के ‘चुनने के अधिकार’ का समर्थन किया?

    (a) चीन

    (b) रूस

    (c) फ्रांस

    (d) जापान

    उत्तर: (b) रूस

    व्याख्या: समाचार के अनुसार, रूस ने भारत के ‘चुनने के अधिकार’ का समर्थन किया और अमेरिकी टैरिफ धमकी की आलोचना की।

  3. प्रश्न 3: भारत की ऊर्जा सुरक्षा के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य है?

    1. भारत अपनी अधिकांश कच्चे तेल की जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है।

    2. ईरान भारत के लिए एक प्रमुख तेल आपूर्तिकर्ता रहा है।

    (a) केवल 1

    (b) केवल 2

    (c) 1 और 2 दोनों

    (d) न तो 1 और न ही 2

    उत्तर: (c) 1 और 2 दोनों

    व्याख्या: भारत दुनिया के सबसे बड़े तेल उपभोक्ताओं में से एक है और अपनी घरेलू मांग का एक बड़ा हिस्सा आयात के माध्यम से पूरा करता है। ईरान ऐतिहासिक रूप से भारत के लिए एक महत्वपूर्ण तेल आपूर्तिकर्ता रहा है।

  4. प्रश्न 4: ‘चुनने का अधिकार’ (Right to choose) का सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और व्यापार में किस मौलिक अवधारणा से संबंधित है?

    (a) राष्ट्रमंडल की वरीयता

    (b) संप्रभुता

    (c) गैर-अधिभोजन

    (d) विशेषाधिकार का अभाव

    उत्तर: (b) संप्रभुता

    व्याख्या: ‘चुनने का अधिकार’ सीधे तौर पर किसी राष्ट्र की संप्रभुता से जुड़ा है, जो उसे अपने निर्णय स्वयं लेने की शक्ति देता है।

  5. प्रश्न 5: अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा बाजार में रूस की भूमिका के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. रूस तेल के प्रमुख उत्पादकों में से एक है।

    2. रूस OPEC+ का एक महत्वपूर्ण सदस्य है।

    (a) केवल 1

    (b) केवल 2

    (c) 1 और 2 दोनों

    (d) न तो 1 और न ही 2

    उत्तर: (c) 1 और 2 दोनों

    व्याख्या: रूस दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादकों में से एक है और OPEC+ (तेल निर्यातक देशों का संगठन और इसके सहयोगी) का एक प्रमुख गैर-OPEC सदस्य है, जो वैश्विक तेल उत्पादन और कीमतों को प्रभावित करता है।

  6. प्रश्न 6: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों और नीतियों को विनियमित करने वाला प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय संगठन कौन सा है?

    (a) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)

    (b) विश्व बैंक (World Bank)

    (c) विश्व व्यापार संगठन (WTO)

    (d) संयुक्त राष्ट्र (UN)

    उत्तर: (c) विश्व व्यापार संगठन (WTO)

    व्याख्या: विश्व व्यापार संगठन (WTO) वैश्विक व्यापार नियमों को स्थापित करने और बनाए रखने के लिए जिम्मेदार है।

  7. प्रश्न 7: निम्नलिखित में से किस भू-राजनीतिक घटनाक्रम का संबंध ‘बहुध्रुवीय विश्व’ (Multipolar World) की अवधारणा से है?

    (a) शीत युद्ध का अंत

    (b) गुटनिरपेक्ष आंदोलन का उदय

    (c) विभिन्न शक्तियों द्वारा एकल-ध्रुवीय प्रभुत्व को चुनौती

    (d) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का गठन

    उत्तर: (c) विभिन्न शक्तियों द्वारा एकल-ध्रुवीय प्रभुत्व को चुनौती

    व्याख्या: ‘बहुध्रुवीय विश्व’ एक ऐसी व्यवस्था को संदर्भित करता है जहाँ शक्ति किसी एक केंद्र (एकल-ध्रुवीय) या दो केंद्रों (द्विध्रुवीय) के बजाय कई शक्ति केंद्रों में वितरित होती है। जब विभिन्न देश अमेरिका जैसे प्रमुख शक्ति के प्रभुत्व को चुनौती देते हैं, तो यह बहुध्रुवीयता का संकेत है।

  8. प्रश्न 8: भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित में से कौन सी रणनीतियाँ अपना सकता है?

    1. नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश बढ़ाना।

    2. तेल आयात के लिए स्रोतों में विविधता लाना।

    3. घरेलू तेल उत्पादन बढ़ाना।

    (a) केवल 1 और 2

    (b) केवल 2 और 3

    (c) केवल 1 और 3

    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (d) 1, 2 और 3

    व्याख्या: ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने के लिए उपरोक्त सभी रणनीतियाँ महत्वपूर्ण हैं। नवीकरणीय ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करने, आयात स्रोतों में विविधता लाने और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने से ऊर्जा की आपूर्ति सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।

  9. प्रश्न 9: अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर निष्पक्ष और नियम-आधारित व्यापार प्रणाली की वकालत करने का क्या महत्व है?

    (a) यह केवल विकसित देशों को लाभ पहुँचाता है।

    (b) यह छोटे और विकासशील देशों को समान अवसर प्रदान करता है।

    (c) यह संरक्षणवाद को बढ़ावा देता है।

    (d) यह एकतरफा प्रतिबंधों को प्रोत्साहित करता है।

    उत्तर: (b) यह छोटे और विकासशील देशों को समान अवसर प्रदान करता है।

    व्याख्या: एक नियम-आधारित प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि सभी देश, चाहे उनके आकार या शक्ति कुछ भी हो, निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा में भाग ले सकें, जो छोटे और विकासशील देशों के लिए महत्वपूर्ण है।

  10. प्रश्न 10: तेल कूटनीति (Oil Diplomacy) के संदर्भ में, एक देश द्वारा दूसरे देश को टैरिफ की धमकी देना किस प्रकार का कूटनीतिक उपकरण हो सकता है?

    (a) सॉफ्ट पावर

    (b) आर्थिक दबाव

    (c) सांस्कृतिक आदान-प्रदान

    (d) मानवीय सहायता

    उत्तर: (b) आर्थिक दबाव

    व्याख्या: टैरिफ की धमकी एक देश को अपनी इच्छानुसार कार्य करने के लिए मजबूर करने के लिए एक आर्थिक दबाव की रणनीति है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1: अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा व्यापार में भू-राजनीतिक तनावों के बढ़ते प्रभाव का विश्लेषण करें। ईरान से तेल आयात के संबंध में अमेरिकी नीति और रूस की प्रतिक्रिया के आलोक में, भारत की ऊर्जा सुरक्षा और रणनीतिक स्वायत्तता के लिए क्या निहितार्थ हैं? (लगभग 250 शब्द)
  2. प्रश्न 2: ‘चुनने का अधिकार’ का सिद्धांत राष्ट्रीय संप्रभुता के लिए मौलिक है। इस सिद्धांत की प्रासंगिकता की व्याख्या करें, विशेष रूप से जब प्रमुख वैश्विक शक्तियाँ अन्य देशों की आर्थिक और व्यापारिक नीतियों को प्रभावित करने के लिए दबाव रणनीतियों का उपयोग करती हैं। (लगभग 150 शब्द)
  3. प्रश्न 3: रूस और भारत के बीच रणनीतिक साझेदारी की प्रकृति पर प्रकाश डालें। हाल की अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं, विशेष रूप से ऊर्जा कूटनीति के संदर्भ में, इस साझेदारी के भविष्य के पथ का मूल्यांकन करें। (लगभग 250 शब्द)
  4. प्रश्न 4: एक प्रमुख ऊर्जा उपभोक्ता के रूप में, भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में विविधीकरण (Diversification) और रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) का क्या महत्व है? वर्तमान वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य में इन अवधारणाओं को कैसे लागू किया जा सकता है? (लगभग 200 शब्द)

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