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चीन ने ज़मीन कब हड़पी? SC का राहुल गांधी से अहम सवाल: क्या है पुख्ता जानकारी?

चीन ने ज़मीन कब हड़पी? SC का राहुल गांधी से अहम सवाल: क्या है पुख्ता जानकारी?

चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी से एक महत्वपूर्ण सवाल पूछा है। यह सवाल देश की सुरक्षा और राष्ट्रीय अखंडता जैसे संवेदनशील मुद्दों से जुड़ा है। सर्वोच्च न्यायालय ने राहुल गांधी से यह जानने का प्रयास किया कि चीन द्वारा भारतीय भूमि पर कथित अतिक्रमण के बारे में उनके पास क्या पुख्ता जानकारी है, और इस जानकारी का स्रोत क्या है। यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस तरह के गंभीर आरोप बिना पुख्ता आधार के देश में भ्रम और अस्थिरता पैदा कर सकते हैं। न्यायालय का यह प्रश्न भारत-चीन सीमा विवाद की जटिलताओं, सूचना की प्रामाणिकता और सार्वजनिक बयानों के प्रभाव जैसे पहलुओं को उजागर करता है।

राहुल गांधी के बयान, जिन्होंने अक्सर चीन द्वारा भारतीय भूमि पर कब्जा करने का आरोप लगाया है, ने राजनीतिक बहस को हवा दी है। ऐसे में, सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप इस मामले को एक नई दिशा देता है, जहाँ न केवल आरोपों की सत्यता पर सवाल उठता है, बल्कि एक जिम्मेदार नागरिक और नेता के तौर पर ऐसे संवेदनशील मामलों पर सार्वजनिक बयानों के औचित्य पर भी विचार किया जाता है। यह स्थिति UPSC की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा, भारत-चीन संबंध, कूटनीति, और सूचना के प्रसार से जुड़े विभिन्न पहलुओं को गहराई से समझने का एक अनूठा अवसर प्रदान करती है।

भारत-चीन सीमा विवाद: एक जटिल पहेली (India-China Border Dispute: A Complex Puzzle)

भारत और चीन के बीच लगभग 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा है, जो तीन क्षेत्रों में बंटी हुई है: पश्चिमी क्षेत्र (लद्दाख), मध्य क्षेत्र (उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश) और पूर्वी क्षेत्र (सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश)। इस सीमा का एक बड़ा हिस्सा अभी भी अविभाजित (undemarcated) या अस्पष्ट (undefined) है, जिसने दशकों से दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बना हुआ है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background):

  • 1962 का भारत-चीन युद्ध: यह युद्ध सीमा विवाद का सबसे बड़ा और सबसे विवादास्पद पहलू है। इस युद्ध में भारत को भारी हार का सामना करना पड़ा था, और इसके परिणामस्वरूप अक्साई चिन (Aksai Chin) का एक बड़ा क्षेत्र चीन के नियंत्रण में आ गया।
  • मैकमोहन रेखा (McMahon Line): यह रेखा 1914 के शिमला समझौते में खींची गई थी और इसे भारत पश्चिमी और पूर्वी क्षेत्रों में अपनी सीमा मानता है। हालाँकि, चीन इस रेखा को कभी भी मान्यता नहीं दी और अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता रहा है।
  • वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control – LAC): 1962 के युद्ध के बाद, एक अस्थायी युद्धविराम रेखा बनी, जिसे वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) कहा गया। यह रेखा पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों में भिन्न है और दोनों देशों के बीच समझ का एक बड़ा बिंदु है।

सीमा विवाद के मुख्य बिंदु (Key Points of Border Dispute):

  • अक्साई चिन (Aksai Chin): यह क्षेत्र सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है और चीन ने इस पर कब्जा कर लिया है, जिससे भारत का दावा कमजोर हुआ है।
  • अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh): चीन इसे “दक्षिण तिब्बत” का हिस्सा मानता है और इस पर अपना दावा करता है।
  • अन्य क्षेत्र: लद्दाख में चांग ला (Changk La), डोकलम (Doklam) के आसपास का क्षेत्र, और अन्य संवेदनशील बिंदु जहाँ घुसपैठ के आरोप लगते रहे हैं।

भारत-चीन सीमा विवाद सिर्फ भूमि के टुकड़े का नहीं है; यह रणनीतिक वर्चस्व, आर्थिक हित और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा एक जटिल मुद्दा है। दोनों देश LAC पर अपनी-अपनी व्याख्याएँ रखते हैं, और अक्सर सैन्य गतिविधियों और सीमा गश्त के दौरान गलतफहमियाँ और टकराव की स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।

राहुल गांधी के आरोप और सर्वोच्च न्यायालय का प्रश्न (Rahul Gandhi’s Allegations and the Supreme Court’s Question)

राहुल गांधी ने कई बार आरोप लगाया है कि चीन ने भारतीय भूमि पर कब्जा कर लिया है, खासकर 2020 के गलवान घाटी (Galwan Valley) संघर्ष के बाद। उनके बयानों का मुख्य जोर यह रहा है कि भारत सरकार इस वास्तविकता को स्वीकार नहीं कर रही है और जनता को गुमराह कर रही है। उन्होंने अक्सर “56 इंच की छाती” जैसे व्यंग्यात्मक शब्दों का प्रयोग करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर चीन के सामने झुकने का आरोप लगाया है।

सर्वोच्च न्यायालय का प्रश्न (The Supreme Court’s Question):

सर्वोच्च न्यायालय का प्रश्न सीधे तौर पर राहुल गांधी के दावों की प्रामाणिकता से जुड़ा है। न्यायालय यह जानना चाहता है कि:

“आपके पास क्या पुख्ता जानकारी है जिससे आप कह सकते हैं कि चीन ने भारतीय जमीन हड़पी है?”

और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि:

“यदि आप सच्चे भारतीय होते, तो आप ऐसा (यह आरोप) नहीं कहते।”

यह दूसरा भाग विशेष रूप से संवेदनशील है। यह न केवल सूचना की सत्यता पर सवाल उठाता है, बल्कि आरोप लगाने वाले की देशभक्ति पर भी एक अप्रत्यक्ष प्रश्नचिह्न लगाता है। न्यायालय की यह टिप्पणी सार्वजनिक बयानों के निहितार्थों और राष्ट्रीय भावना पर उनके प्रभाव को दर्शाती है।

सूचना की प्रामाणिकता और राष्ट्रीय सुरक्षा (Authenticity of Information and National Security)

किसी भी देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सटीक और विश्वसनीय जानकारी का होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। जब कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति, विशेषकर एक प्रमुख विपक्षी नेता, ऐसे गंभीर आरोप लगाता है, तो यह आम जनता में भ्रम, भय और सरकार के प्रति अविश्वास पैदा कर सकता है।

सूचना के स्रोत (Sources of Information):

  • सरकारी रिपोर्ट: रक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, और खुफिया एजेंसियों द्वारा जारी की गई रिपोर्टें।
  • सैन्य स्रोत: प्रत्यक्षदर्शी सैन्य अधिकारियों या सैनिकों से प्राप्त जानकारी।
  • सैटेलाइट इमेजरी: भू-स्थानिक डेटा जो भूमि पर परिवर्तन दिखा सकता है।
  • खुफिया जानकारी: विभिन्न खुफिया स्रोतों से प्राप्त जानकारी।
  • पत्रकारिता जांच: स्वतंत्र पत्रकारों द्वारा की गई गहन जांच और रिपोर्टिंग।

पुख्ता जानकारी का महत्व (Importance of Concrete Evidence):

  • सत्यता की पुष्टि: बिना पुख्ता सबूत के आरोप केवल अफवाहें होते हैं, जो देश को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
  • गलत सूचना का खंडन: सरकार को आरोपों का प्रभावी ढंग से खंडन करने के लिए सटीक जानकारी की आवश्यकता होती है।
  • कूटनीतिक संतुलन: सीमा विवाद जैसे संवेदनशील मुद्दों पर कूटनीतिक बातचीत के लिए तथ्यों का होना आवश्यक है।
  • सार्वजनिक विश्वास: जनता का सरकार पर विश्वास बनाए रखने के लिए पारदर्शिता और सत्यता का महत्व है।

राहुल गांधी द्वारा दिए गए बयानों के पीछे उनके अपने स्रोतों से प्राप्त जानकारी हो सकती है, या वे विभिन्न रिपोर्टों और विश्लेषणों पर आधारित हो सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय का प्रश्न इस बात पर केंद्रित है कि क्या ये स्रोत इतने विश्वसनीय हैं कि उन पर आधारित होकर देश की सुरक्षा और सार्वजनिक भावना को प्रभावित करने वाले बयान दिए जा सकें।

“सच्चे भारतीय” पर टिप्पणी: देशभक्ति और नागरिक दायित्व (The “True Indian” Remark: Patriotism and Civic Duty)

सर्वोच्च न्यायालय का यह कहना कि “सच्चे भारतीय होते तो ऐसा नहीं कहते,” कई मायनों में गहरा अर्थ रखता है। यह टिप्पणी सीधे तौर पर राष्ट्रीयता और देशभक्ति की भावना को छूती है।

इस टिप्पणी के निहितार्थ (Implications of the Remark):

  • देशभक्ति का मानदंड: यह एक ऐसी कसौटी प्रस्तुत करता है जहाँ सरकार की नीतियों का समर्थन करना या उसकी आलोचना न करना देशभक्ति का पैमाना बन जाता है।
  • नागरिक दायित्व: यह सवाल उठाता है कि क्या एक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह राष्ट्रहित के किसी भी कार्य या बयान का आँख बंद करके समर्थन करे, या फिर वह आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपना सकता है।
  • राजनीतिक हथियार: अक्सर, “देशभक्ति” का उपयोग राजनीतिक विरोधियों को चुप कराने या उन्हें बदनाम करने के लिए एक हथियार के रूप में किया जाता है। न्यायालय की यह टिप्पणी अनजाने में इस राजनीतिक खेल को और बल दे सकती है।
  • कानूनी और नैतिक सीमाएं: क्या किसी व्यक्ति की देशभक्ति पर सवाल उठाना किसी न्यायाधीश के लिए उचित है? क्या यह न्यायिक नैतिकता के दायरे में आता है?

लोकतंत्र में, आलोचना को राष्ट्र-विरोधी गतिविधि के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। वास्तव में, सरकार की नीतियों की आलोचना, यदि रचनात्मक और तथ्यात्मक हो, तो व्यवस्था को बेहतर बनाने में मदद करती है। लेकिन जब आरोप निराधार हों और देश में अस्थिरता पैदा करें, तब उन्हें संबोधित करने की आवश्यकता होती है।

पक्ष और विपक्ष (Arguments For and Against)

यह मामला दो विरोधी दृष्टिकोणों को जन्म देता है:

पक्ष में तर्क (Arguments in Favor of SC’s Questioning):

  • राष्ट्रीय सुरक्षा: यदि कांग्रेस नेता के पास चीन द्वारा भूमि हड़पने के बारे में कोई विश्वसनीय जानकारी है, तो उसे सार्वजनिक रूप से साझा करने के बजाय, उसे उचित सरकारी एजेंसियों के साथ साझा किया जाना चाहिए ताकि उन पर कार्रवाई हो सके। ऐसे आरोप जिनका कोई पुख्ता आधार नहीं है, देश की सुरक्षा और कूटनीतिक प्रयासों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
  • अफवाहों पर नियंत्रण: सार्वजनिक बयानों से होने वाली अफवाहों को रोकने के लिए न्यायालय की ओर से स्पष्टीकरण मांगना आवश्यक है, खासकर जब वे राष्ट्रीय हित से जुड़े हों।
  • जवाबदेही: सार्वजनिक हस्तियों को अपने बयानों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, खासकर जब वे राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर हों।
  • सरकारी रुख का समर्थन: यह तर्क दिया जा सकता है कि सरकार ने हमेशा सीमा पर यथास्थिति बनाए रखने के प्रयास किए हैं और चीन के साथ बातचीत जारी रखी है। ऐसे में, बिना किसी ठोस सबूत के सरकार पर आरोप लगाना अनुचित है।

विपक्ष में तर्क (Arguments Against SC’s Questioning):

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: एक लोकतांत्रिक देश में, नागरिकों को, विशेषकर निर्वाचित प्रतिनिधियों को, सरकार की नीतियों की आलोचना करने का अधिकार है। यह अधिकार राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर कुचला नहीं जाना चाहिए, जब तक कि वह सीधे तौर पर राज्य के रहस्यों का खुलासा न करे।
  • विपक्षी दल की भूमिका: विपक्षी दलों का एक महत्वपूर्ण कार्य सरकार की गलतियों को उजागर करना और जनता को सूचित करना है। यदि उन्हें लगता है कि सरकार कुछ छिपा रही है, तो उन्हें आवाज उठाने का अधिकार है।
  • “सच्चे भारतीय” की टिप्पणी: यह टिप्पणी एक खतरनाक मिसाल कायम कर सकती है, जहाँ सरकार के आलोचकों को “देशद्रोही” या “गैर-भारतीय” करार दिया जा सकता है। यह एक तानाशाही प्रवृत्ति का संकेत हो सकता है।
  • सूचना का सार्वजनिकरण: क्या सीमा पर अतिक्रमण से संबंधित सारी जानकारी गुप्त रखी जानी चाहिए, भले ही उसका जनता पर सीधा प्रभाव पड़ रहा हो? कुछ जानकार मानते हैं कि जनता को सूचित रखने की भी आवश्यकता होती है।

चुनौतियाँ और आगे की राह (Challenges and The Way Forward)

इस मामले में कई चुनौतियाँ हैं:

चुनौतियाँ (Challenges):

  • सूचना की गोपनीयता: राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े कई तथ्य और खुफिया जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती, जिससे स्वतंत्र सत्यापन मुश्किल हो जाता है।
  • राजनीतिकरण: सीमा विवाद जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे अक्सर अत्यधिक राजनीतिकृत हो जाते हैं, जिससे वस्तुनिष्ठ चर्चा मुश्किल हो जाती है।
  • सबूतों का अभाव: सार्वजनिक मंचों पर आरोप लगाने वाले के पास अक्सर ठोस, गैर-गोपनीय सबूत नहीं होते हैं, जिससे मामला “मेरी बात, तुम्हारी बात” तक सीमित रह जाता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय संबंध: चीन जैसे शक्तिशाली पड़ोसी के साथ सीमा विवाद पर सार्वजनिक बयानबाजी को सावधानी से संभाला जाना चाहिए ताकि द्विपक्षीय संबंधों को और अधिक नुकसान न पहुंचे।

आगे की राह (The Way Forward):

  • पारदर्शिता और जवाबदेही: सरकार को जहां तक संभव हो, सीमा की स्थिति के बारे में जनता को सूचित रखना चाहिए, बिना राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किए।
  • सटीक सूचना का प्रसार: सभी राजनीतिक दलों को जिम्मेदारी से कार्य करना चाहिए और ऐसे बयानों से बचना चाहिए जो बिना पुख्ता सबूत के देश में अविश्वास और विभाजन पैदा करें।
  • कूटनीतिक समाधान: सीमा विवाद का समाधान बातचीत और कूटनीति के माध्यम से ही संभव है। इस प्रक्रिया में राजनीतिक दलों के बीच एक आम सहमति का होना महत्वपूर्ण है।
  • न्यायिक संतुलन: न्यायालय को व्यक्तिगत बयानों के मामले में संतुलन बनाए रखना चाहिए, जहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान हो, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के सिद्धांतों का भी ध्यान रखा जाए। “सच्चे भारतीय” जैसे शब्दों का प्रयोग न्यायिक संयम के दायरे में आना चाहिए।
  • मीडिया की भूमिका: मीडिया को विश्वसनीय स्रोतों पर आधारित रिपोर्टिंग करनी चाहिए और सनसनीखेज या अप्रमाणित दावों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने से बचना चाहिए।

राहुल गांधी को सर्वोच्च न्यायालय के सवाल का जवाब देते समय, उन्हें न केवल कानूनी रूप से, बल्कि राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए भी बहुत सोच-समझकर उत्तर देना होगा। इस जवाब का प्रभाव न केवल उनके राजनीतिक करियर पर पड़ेगा, बल्कि भारत की राजनीतिक और राष्ट्रीय सुरक्षा की चर्चाओं पर भी इसका गहरा असर होगा।

UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता (Relevance for UPSC Exam)

यह मामला UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है:

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims):

  • भारत-चीन सीमा: मैकमोहन रेखा, LAC, प्रमुख सीमा विवाद क्षेत्र (अक्साई चिन, अरुणाचल प्रदेश)।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा: राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाले कारक, सीमा प्रबंधन, खुफिया जानकारी का महत्व।
  • भारतीय संविधान: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19), नागरिक के कर्तव्य (अनुच्छेद 51A)।
  • न्यायपालिका: सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका, जनहित याचिकाएं (PIL), न्यायिक सक्रियता।

मुख्य परीक्षा (Mains):

  • GS-II: अंतर्राष्ट्रीय संबंध (भारत-चीन संबंध), द्विपक्षीय समझौते, सीमा विवाद, भारतीय विदेश नीति।
  • GS-II: भारतीय राजव्यवस्था (कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका के बीच संबंध, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता)।
  • GS-III: राष्ट्रीय सुरक्षा (सीमा पार आतंकवाद, सीमा प्रबंधन, सुरक्षा चुनौतियाँ), विज्ञान और प्रौद्योगिकी (सैटेलाइट इमेजरी, निगरानी)।
  • निबंध (Essay): राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन, देशभक्ति की अवधारणा, जनहित में पारदर्शिता।

यह एक ऐसा विषय है जो वर्तमान घटनाओं से सीधे तौर पर जुड़ा है और UPSC उम्मीदवारों को समकालीन मुद्दों पर अपनी विश्लेषणात्मक क्षमता दिखाने का अवसर प्रदान करता है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न: मैकमोहन रेखा निम्नलिखित में से किन देशों के बीच सीमा का निर्धारण करती है?
    (a) भारत और पाकिस्तान
    (b) भारत और चीन
    (c) भारत और नेपाल
    (d) भारत और म्यांमार
    उत्तर: (b) भारत और चीन
    व्याख्या: मैकमोहन रेखा 1914 के शिमला समझौते के तहत खींची गई थी और यह भारत के पूर्वोत्तर राज्यों (मुख्य रूप से अरुणाचल प्रदेश) और तिब्बत (जो अब चीन का हिस्सा है) के बीच सीमा बनाती है। चीन इसे मान्यता नहीं देता।
  2. प्रश्न: वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) का संबंध निम्नलिखित में से किन देशों के बीच के सीमावर्ती क्षेत्र से है?
    (a) भारत और नेपाल
    (b) भारत और भूटान
    (c) भारत और चीन
    (d) भारत और बांग्लादेश
    उत्तर: (c) भारत और चीन
    व्याख्या: LAC भारत और चीन के बीच एक सैन्य सीमांकन रेखा है, जो 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद से विद्यमान है।
  3. प्रश्न: 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद निम्नलिखित में से कौन सा क्षेत्र चीन के नियंत्रण में आ गया था?
    (a) सिक्किम
    (b) लद्दाख का कुछ हिस्सा (अक्साई चिन)
    (c) तवांग
    (d) नागालैंड
    उत्तर: (b) लद्दाख का कुछ हिस्सा (अक्साई चिन)
    व्याख्या: 1962 के युद्ध में चीन ने अक्साई चिन पर कब्जा कर लिया था, जो सामरिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
  4. प्रश्न: भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों से संबंधित है?
    (a) अनुच्छेद 50
    (b) अनुच्छेद 51A
    (c) अनुच्छेद 51
    (d) अनुच्छेद 52
    उत्तर: (b) अनुच्छेद 51A
    व्याख्या: अनुच्छेद 51A भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों को सूचीबद्ध करता है, जो राष्ट्र के प्रति नागरिक के दायित्वों को परिभाषित करते हैं।
  5. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाला एक कारक नहीं है?
    (a) प्रभावी सीमा प्रबंधन
    (b) मजबूत खुफिया तंत्र
    (c) सार्वजनिक बयानों में अतिशयोक्ति और अप्रमाणित दावे
    (d) संतुलित विदेश नीति
    उत्तर: (d) संतुलित विदेश नीति
    व्याख्या: संतुलित विदेश नीति राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करती है, जबकि अप्रमाणित दावे और अतिशयोक्ति अक्सर इसे कमजोर करते हैं।
  6. प्रश्न: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किसी ऐसे सार्वजनिक व्यक्ति से जानकारी मांगना जिसके सार्वजनिक बयानों से राष्ट्रीय हित प्रभावित हो सकता है, निम्नलिखित में से किस न्यायिक सिद्धांत के तहत आता है?
    (a) न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism)
    (b) न्यायिक संयम (Judicial Restraint)
    (c) न्याय की प्रक्रिया (Due Process of Law)
    (d) प्राकृतिक न्याय (Natural Justice)
    उत्तर: (a) न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism)
    व्याख्या: जब न्यायालय अपने पारंपरिक क्षेत्राधिकार से आगे बढ़कर सार्वजनिक महत्व के मुद्दों में हस्तक्षेप करता है, तो उसे न्यायिक सक्रियता कहा जाता है।
  7. प्रश्न: “पांचवीं पीढ़ी” के सूचना युद्ध (Information Warfare) का एक महत्वपूर्ण पहलू क्या है?
    (a) केवल पारंपरिक सैन्य शक्ति का प्रदर्शन
    (b) दुष्प्रचार (Disinformation) और मनोवैज्ञानिक संचालन
    (c) केवल कूटनीतिक माध्यमों का उपयोग
    (d) केवल आर्थिक प्रतिबंध लगाना
    उत्तर: (b) दुष्प्रचार (Disinformation) और मनोवैज्ञानिक संचालन
    व्याख्या: पाँचवीं पीढ़ी के युद्ध में सूचना और मनोविज्ञान को हथियार बनाया जाता है, जिसमें दुष्प्रचार और गलत सूचना फैलाना शामिल है।
  8. प्रश्न: राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित सूचनाओं की गोपनीयता बनाए रखने के पीछे प्राथमिक कारण क्या है?
    (a) विपक्षी दलों को सूचना से वंचित रखना
    (b) जनता में भ्रम फैलाना
    (c) देश के रणनीतिक हितों की रक्षा करना
    (d) अंतरराष्ट्रीय मीडिया की आलोचना से बचना
    उत्तर: (c) देश के रणनीतिक हितों की रक्षा करना
    व्याख्या: संवेदनशील जानकारी को गुप्त रखना देश की सुरक्षा, रक्षा योजनाओं और कूटनीतिक स्थिति को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक है।
  9. प्रश्न: “अक्साई चिन” क्षेत्र पर भारत और चीन के बीच विवाद का मुख्य कारण क्या है?
    (a) यह क्षेत्र सामरिक रूप से चीन के लिए मध्य एशिया से जुड़ाव प्रदान करता है।
    (b) यह क्षेत्र खनिज संसाधनों से समृद्ध है।
    (c) यह क्षेत्र भारत के लिए एक महत्वपूर्ण वायुसेना बेस है।
    (d) दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक धार्मिक मतभेद हैं।
    उत्तर: (a) यह क्षेत्र सामरिक रूप से चीन के लिए मध्य एशिया से जुड़ाव प्रदान करता है।
    व्याख्या: अक्साई चिन चीन के शिनजियांग प्रांत को तिब्बत से जोड़ता है, जिससे यह चीन के लिए अत्यंत सामरिक महत्व रखता है।
  10. प्रश्न: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 (1)(a) निम्नलिखित में से किस अधिकार से संबंधित है?
    (a) समानता का अधिकार
    (b) स्वतंत्रता का अधिकार
    (c) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार
    (d) धर्म का अधिकार
    उत्तर: (c) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार
    व्याख्या: अनुच्छेद 19(1)(a) सभी नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है, हालांकि इस पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न: भारत-चीन सीमा विवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करें। राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से इस विवाद के महत्व पर प्रकाश डालिए। (250 शब्द)
  2. प्रश्न: एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में, राष्ट्रीय सुरक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन कैसे बनाए रखा जाना चाहिए? सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सार्वजनिक बयानों के संबंध में पूछे गए प्रश्नों के संदर्भ में चर्चा करें। (250 शब्द)
  3. प्रश्न: “राष्ट्रीय सुरक्षा” के नाम पर सूचना की गोपनीयता और जनता की पारदर्शिता की मांग के बीच की रेखा को परिभाषित करें। भारत-चीन सीमा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर यह दुविधा कैसे उत्पन्न होती है? (150 शब्द)
  4. प्रश्न: “देशभक्ति” की अवधारणा को अक्सर राजनीतिक बहस में हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। एक जिम्मेदार नागरिक और एक निर्वाचित प्रतिनिधि के रूप में, राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए सरकार की आलोचना करने के नैतिक और संवैधानिक दायित्वों पर चर्चा करें। (150 शब्द)

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