चक्रिय सिद्धांत
इस सिद्धांत की मूल मान्यता है कि सामाजिक परिवर्तन की गति और दिशा एक चक्र की भाँति है और इसलिए सामाजिक परिवर्तन जहाँ से आरम्भ होता है फिर वहीं स्पलेंग्लर , पैरेटो आदि हैं । म पहुँच कर समाप्त होता है – इसी प्रकार समाज में चक्र चलता रहता है । इसके मानने वालों में स्पेंगलर पै रोटो आदि है!
पी०ए०सोरोकिन (P.A.Sorokin) का उतार – चढ़ाव का सिद्धांत :
सोरोकिन ने सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया की चर्चा अपनी पुस्तक Social and Cultural Dynamics में की है।सोरोकिन का सिद्धांत Principle of Imminent socio – cultural change अर्थात् ‘ स्वाभाविक परिवर्तन ‘ के सिद्धांत पर आधारित है । इस सिद्धांत की मान्यता के अनुसार समाज में परिवर्तन होने का काल या परिवर्तन लाने वाली शक्ति स्वयं संस्कृति का अपनी प्रकृति में ही अन्तनिहित है । अर्यात परिवर्तन किसी बाहरी शक्ति के द्वारा न होकर स्वय उस संस्कृति में ही होती है ।
सोरोकिन ने तीन प्रकार की संस्कृतियों की चर्चा की है
1.भावनात्मक संस्कृति (Ideational Culture)
2.यादर्शात्मक संस्कृति (Idealistic Culture)
3.चेतनात्मक संस्कृति ( Sensate Culture )
सारोकिन के अनुसार Ideational Culture एक घोर अध्यात्मिकता की अवस्था है ठीक इसक विपरीत Sensate Culture घोर भौतिकता की अवस्था दोनों में परिवर्तन स्वभाविक रूप से होता है ।
Idealistic Sensate Ideational Idealistic
सोरोकिन के सिद्धांत को निम्न बिन्दुओं पर देखा जा सकता है –
1.सोरोकिन के अनुसार सामाजिक परिवर्तन के सिद्धांत का आधार ” स्वभाविक परिवर्तन का सिद्धात ‘ ( Principle of Imminent Change ) है । समाज या संस्कृति में परिवर्तन इस कारण होता है क्योंकि ऐसा होना ही स्वभाविक है । अर्थात् स्वयं संस्कृति की प्रकृति में ही कुछ ऐसी आन्तरिक शक्तियाँ हैं जिनके फलस्वरूप समाज या संस्कृति में परिवर्तन होता है ।
- सामाजिक परिवर्तन न तो निश्चित दिशा की ओर होती है और न ही इनकी कोई चक्रीय गति होती है यह तो केवल सांस्कृतिक व्यवस्थाओं के बीच उतार – चढ़ाव की प्रक्रिया मात्र है ।
3.सोरोकिन ने अपने Theory of Limits के आधार पर यह समझाया है कि जब कोई समाज किसी एक प्रकार की अवस्था में चरम सीमा पर पहुँच जाता है तो उस चरम अवस्था का एक विरोधी प्रभाव क्रियाशील होता है जिसके फलस्वरूप एक अवस्था से दूसरी अवस्था आ जाती है अर्थात् पहले की सांस्कृतिक व्यवस्था दूसरी सांस्कृतिक व्यवस्था में परिवर्तित हो जाती है और एक नवीन अवस्था का जन्म होता है ।
4.यह सांस्कृतिक व्यवस्था मुख्यतः दो प्रकार की होती है – चेतनात्मक सांस्कृतिक व्यवस्था व भावनात्मक सांस्कृतिक व्यवस्था उतार – चढ़ाव की प्रक्रिया इन्हीं दोनों सांस्कृतिक व्यवस्थाओं के बीच चलती रहती है ।
5.भावनात्मक तथा चेतनात्मक अवस्था के बीच एक आदर्शात्मक अवस्था होती है जिसमें . दोनों संस्कतियों के गुण पाये जाते हैं । अर्थात ये दोनों की बीच की अवस्था है ।
6.सोरोकिन का कहना है कि इन दोनों अवस्थाओं में उतार – चढ़ाव किसी निश्चित नियम के तहत नहीं बल्कि स्वभाविक व अनिश्चित तौर पर होता रहता है ।
आलोचना : सोरोकिन के सामाजिक – सांस्कृतिक गतिशीलता के सिद्धांत की आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की जाती है-
1.सोरोकिन का चिन्तन एकपक्षीय है । उन्होंने वैज्ञानिक प्रगति को घृणा कि दृष्टि से देखा है तथा उसके कल्याणकारी पक्षों की अवहेलना की है ।
2.सोरोकिन के अनुसार, सांस्कृतिक व्यवस्था में आन्तरिक शक्ति है । उन्होंने इस आन्तरिक शक्ति का स्पष्टीकरण नहीं किया है ।
3.सामाजिक परिवर्तन को एक निश्चित सीमा के साथ बांधना उनि यह है कि इस सीमा को नापने का हमारे पास कोई पैमाना नहीं है ।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि सोरोकिन ने सामाजिक मानी सिद्धांत को अत्यन्त विद्वता से समझाने का प्रयास किया है । यद्यपि न से समझाने का प्रयास किया है । यद्यपि उनके इस सिद्धांत के विरुद्ध कई आपत्तियाँ उठाई गई हैं । फिर भी यह सिद्धांत बताता है कि सामाजिक सांस्कृतिक कारक उत्तरदायी है । सांस्कृतिक कारकों में परिवर्तन यह सिद्धांत बताता है कि सामाजिक परिवर्तन के लिए है । सांस्कृतिक कारकों में परिवर्तन के फलस्वरूप सामाजिक परिवर्तन आता है , क्योंकि विचारों का क्रियात्मक रूप ही परिवर्तन है । वास्तविकता रूप ही परिवर्तन है । वास्तविकता यह है कि इस सिद्धांत ने सामाजिक परिवर्तन के एक नये मार्ग की ओर संकेत किया है ।
Spengler ने अपनी पुस्तक ” The Decline of The West ” में सामान परिवर्तन को चक्रीय आधार पर समझाने की कोशिश की है । इनका कहना है कि जन्म से किशोरावस्था , युवावस्था और प्रौढ़ावस्था के बाद पतन या विनाश के तन्त स्पाट होने लगते हैं । आरम्भ में एक सभ्यता अपने विकास के प्रारम्भिक स्तर पर होती है , जब मौतिक विकास में काफी आगे बढ़ जाती है तो उसका पतन होना आरम्भ हो जाता होयही समाज अथवा सभ्यता की वृद्धावस्था है । इसके बाद उस समाज का पतन निश्चित हो जाता है । अतः स्पेंगलर के अनुसार , समाज निम्न अवस्थाओं से गुजरती है –
1.जन्म
2.युवावस्था
3.वृद्धावस्था
4.पतन
स्पेंगलर ने संसार के आठ प्रमुख सभ्यताओं का ऐतिहासिक अध्ययन करके यह ज्ञात किया कि विकास तथा विनाश की अवस्था प्रत्येक सभ्यता में पायी जाती है ।
2.बिलफ्रेडो परेटो (Vilfredo Pareto) का अभिजात वर्ग परिभ्रमण का सिद्धांत :
इटली के विचारक विल्फ्रेडो परेटो सर्वप्रथम अर्थशास्त्री बाद में समाजशास्त्री के रूप में समाज के प्रति अपने Mechanistic view के कारण Mechanistic School के संस्थापक के रूप में जाने जाते हैं । इन्हें हम Prophet of Facism , Karl Marnx of Bourgeousic के नाम से भी जानते हैं । इस इटेलियन समाजशास्त्र के सम्पूर्ण सिद्धांत Theory of circulation of elites principle of Feticism एवं The concept of heterogeneity पर आधारित है । इन्होंने चिन्तन द्वारा सामाजिक संतुलन एवं परिवर्तन को समझने की चेष्टा की । वास्तव में इनका सम्पूर्ण सिद्धांत और विचार तत्कालीन सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों की उपज है । उसने मार्क्सवादी सिद्धांत के प्रत्यक्ष प्रतिवाद के रूप में अपनी circulation of elite के सिद्धांत को प्रतिपादित किया । परेटो मार्क्स के आर्थिक वर्ग की जगह सामाजिक वर्ग की चर्चा की जिसके अन्तर्गत उन्होंने Elite तथा Non Elite की बात कही । मार्क्स ने जहाँ समानता पर बल दिया वहीं परेटो की धारणा है कि सामाजिक व्यवस्था के संतुलन के लिए असमानता अत्यन्त जरूरी है । उनके अनुसार सामाजिक व्यवस्था विघटित तथा संग्रहित करने वाले तत्वों के सामंजस्यपूर्ण अर्थपूर्ण संतुलन से ही सामाजिक व्यवस्था सुदृढ़ होती है । समाज में असमानता Physical , Intellectual , Moral आदि सभी स्तर पर पाये जाते हैं । वे freedom , equality liberty आदि धारणाओं को वास्तविक ( reality ) नहीं मानते हैं । बल्कि उसे सिर्फ Derivations या Rediculous concept माना है । उन्होंने स्पष्ट कहा है कि किसी भी समाज में किसी भी काल में सदस्यों में पूर्णतः समानता होना असंभव है । इसने Heterogeneity of Individuals चचा करते हुए यह विचार दिया है कि प्रत्येक समाज में किसी न किसी अंधार पर ऊंच नीच का सस्तरण अवश्य होता है । इनमें कछ व्यक्ति योग्य और तीव्र होते हैं तथा कुछ लोग मंद – सुस्त होते हैं । इसके अतिरिक्त हर व्यक्ति के वातावरण सामाजिक रहन – सहन शिक्षा एवं प्रशिक्षण म भी समानता नहीं पायी जाती है । अतः स्पष्ट यह है कि हर समाज में संस्तरण किसी न किसी रूप में अवश्य स्थापित रहती है ।
उन्होंने स्पष्ट बताया है कि समाज में दो वर्ग अभिजात्य वर्ग (Etite Class) तथा गरम भिजात्य वर्ग (Non Elite Class) रहता है । Elites की संख्या कम तथा Non Elites का संख्या अपेक्षाकृत काफी अधिक होती है । समाज की चोटी पर Elite जबकि शेष व्यक्ति आधार पर रहते हैं । साधारणतः Elite वे छोटे हैं जिनका सामाजिक आर्थिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों पर नियंत्रण होता है वे कुशल बुद्धिमान तथा समर्थ होते हैं । इन्ही गुणों के आधार पर वे समाज के शासक होते हैं । ये योग्य होते हैं तथा कठिनाइयों से सामना की क्षमता रखते हैं । इसके विपरीत Non Elite अपने नैतिक स्तर तथा ज्ञान में वृद्धि से Elite बन सकता है । इस प्रकार Elite , Non Elite वर्ग में जा सकता है तथा Non Elite : Elite वर्ग में जा सकता है । यह प्रक्रिया समाज में चलती रहती है । इसी circulation की प्रक्रिया को ही परेटो ने Circulation of Elite कहा हैं । यह प्रक्रिया समाज में सदा चलती रहती है ।
परेटो के Circulation of Elite में निम्न बात निहित हैं –
I.परेटो के अनुसार कोई भी समाज या वर्ग पूर्णतः बंद या Imrnobile नहीं है ।
- अभिजात वर्ग शक्ति के अधिकारी होते हैं और यह शक्ति उन्हें भ्रष्ट कर देती है जिससे उनका पतन हो जाता है ।
III . कारण यह है कि नीचे वर्ग में भी बुद्धिमान तथा कुशल व्यक्ति होते है । जो ऊपर की ओर बढ़ते जाते हैं । परेटो के अनुसार कोई अभिजात वर्ग अधिक दिनों तक अभिजात नहीं रह सकता है । समय तथा परिस्थितियों में परिवर्तन के साथ – साथ उसका पतन भी अवश्यम्भावी है और उसका स्ट गान नए Elite Class ग्रहण करता है । अतः Pareto ने समस्त इतिहास को कुलीन तंत्रों का कब्रिस्तान कहा है । उच्च वर्ग के परिभ्रमण के फलस्वरूप समाज में निरन्तर चक्रीय रूप से परिवर्तन होता है । परेटो ने सामाजिक परिवर्तन को दो श्रेणी विशिष्ट चालकों – Residues of Combinations और Residues of Persistence of aggregates के आधार पर बताया है । प्रथम वर्ग जिसमें Residues of combinations प्रमुख होता है । वह तात्कालिक स्वार्थों पर बल देता है तथा परिवर्तनशीलता का समर्थक होता है । वह नये values तथा Ideas आदि का समर्थक होता है । दूसरा वर्ग जिसमें Residues of the Persistence of aggaregates की प्रधानता होती है । आदर्शात्मक लक्ष्यों में विश्वास करता है तथा परिवर्तन का विरोधी होता है । इन दो प्रकार के विशिष्ट चालकों के परिणामस्वरूप ही सामाजिक परिवर्तन होता है । Elite class में भी दो वर्ग होते है , Governing Elite तथा Non – Governing Elite राजनीतिक आर्थिक तथा परिणामस्वरूप ही सामाजिक परिवर्तन के लिए उत्तरदायी है । राजनीतिक क्षेत्र में चक्रिय परिवर्तन तब गतिशील होता है जब Residues of the persistence of aggragates अधिक गतिशील हो जाती है । उन्हें Lion governing elite कहा जाता है । Lion elite का कछ आदर्शवादी लक्ष्यों पर कुछ दृढ़ विश्वास होता है और इन आदर्शों की प्राप्ति के लिए ये शक्ति हिंसावादी का सहारा लेते हैं । हिंसात्मक कारवाई के परिणामस्वरूप वे अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए कूटनीति का सहारा लेता है । तब वे Lion से Fox में बदल जाते हैं । लेकिन Non Elite में foxes होते हैं और वे सदा के लिए सदा प्रयत्नशील रहते हैं । फलस्वरूप निकलकर निम्नवर्ग के fox की हाथ चली जाती है। तभी राजनीतिक क्षेत्र में परिवर्तन होता है । पेरेटो के अनुसार प्रत्येक समाज अल्प जनतंत्रों से शासित है । बल प्रयोग से उत्पन्न शासक Fox बनता है तब निम्न वर्ग द्वारा वह पदच्युत कर दिया जाता है ।
जहाँ तक आर्थिक क्षेत्र में परिवर्तन का प्रश्न है परेटो ने दो आर्थिक तथा Rentiers की चर्चा की है । इसके आय में उतार – चढ़ाव आते रहते हैं । of combination की प्रधानता होती है । पहले वर्ग के लोग आविष्कार इत्यादि होते हैं । यह वर्ग अपने आर्थिक मोह से भ्रष्टाचार का स्वयं शिकार हो उसका पतन हो जाता है और दूसरा वर्ग उसका स्थान ले लेता है ।
आदर्शात्मक सामाजिक परिवर्तन के क्षेत्र में अविश्वास और विश्वास का है । किसी एक समय में समाज में विश्वासवादियों का बोलबाला होता है । परन्त या रूढ़िवादिता के कारण अपने पतन का साधन अपने ही जुटा लेते हैं और र्थिक वर्ग Specular ते हैं । इसमें Restha कारकर्ता उद्योग कार हो जाता है । फार का चक्र चलता परन्तु वे अपनी दम और उसका स्थान का वर्ग ले लेता है ।
परेटो के अनुसार कोई भी शासक चाहे कोई भी क्षेत्र हो अधिक दिनों तक नहीं अतः परिवर्तन आवश्यभावी है । परेटो और मार्क्स के विचार मिलते – जुलते हैं । मान Change को वर्ग संघर्ष का परिणाम बताया है । पर जहाँ मार्क्स के वर्ग का आ . था वहीं परेटो के वर्ग का आधार ज्ञान और चातुर्य है | Marx के सामाजवादी समा होगा । जवकि परेटो ने हर समाज में वर्ग के अस्तित्व को अवश्यम्भावी बताया है । स्थापना के पश्चात् वर्ग संघर्ष का अंत हो गया पर परेटो के अनुसार यह एक अनत वाली प्रक्रिया है ।
परेटो ने “Circulation of Elite” काफी रोचक और व्यावहारिक होने के आलोचकों की आलोचनाओं से नहीं बच सके-
(a) परेटो ने राजनीतिक क्षेत्र में जो परिवर्तन दिखाया है वह वस्तुतः Machine दिया था । विचार से लिया गया है । “Governing Elite” का Theory Parato से पहले Mosca , तक नहीं रह सकता है समावर्स ने Social का आधार आदि जवादी समाज वर्गविक पाया है । साम्यवादी एक अनवरत चल हैक होने के बावजूद
(b) परेटो का यह सिद्धांत पूर्णतया मार्क्स विरोधी है । इसलए इसे कार्ल मार्क्स । Bourgeoisie भी कहा जाता है ।
(c) Lion , जैसे निर्दयता के साथ जब Gov . Elite Mass के साथ आ जाता है । Mad उस समय किस तरह से प्रतिक्रिया करता है उसका भी कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है ।
(d) परेटो ने अपने इस सिद्धांत में सिर्फ दो वर्गों की चर्चा की है जबकि प्रत्येक समाज विभिन्न आधारों पर कई तरह के वर्ग पाये जाते हैं । परेटो की Elite की परिभाषा भी संकलित है । वस्तुत जो बुद्धिमान चतुर या अपने क्षेत्र में अग्रगण्य होते हैं । सभी Elite कहला सकता है ।
(e) Democracy की धारणा भी परेटो की ठीक नहीं है । Democracy का मतलब या नहीं होता है कि किसी ऐसे शासन प्रणाली में सभी व्यक्ति पूर्णरूपेण समान हो और उनमें भिन्नता न हो । Democracy तो ऐसी शासन प्रणाली है जो irrespective of caste , creed , religion equal opprtunity का समर्थन करता है । इस Force को hypothetical concept घोषित करना उचित प्रतीत नहीं होता है ।
उपरोक्त आलोचनाओं के बावजूद इतना तो स्पष्ट है कि परेटो ( Parato ) के सिद्धांत में बहु । हद तक सच्चाई है । यदि हम भारतीय संदर्भ में भी अवलोकन करें तो स्पष्ट प्रतीत होता है । निम्न जाति के लोग उच्च जाति की तरह सत्ता में भागीदारी कर रहे हैं और अब वे संवैधानिक प्रतिष्ठा में काफी कमी आई है । रूप से बराबर हो गए हैं । पर उच्च जाति अपनी स्थिति से काफी नीचे गिर गई है । ब्राह्मणों की प्रतिष्ठा में काफी कमी आयी है।
A.टॉयनयी ( Toynobee ‘ s Challenge and Response Theory ) के चुनोती एवं प्रत्युत्तर का सिद्धांत :
टायनबा न विश्व की 21 सभ्यताओं का अध्ययन कर अपनी पुस्तक ” A Study of History ” में सामाजिक परिवर्तन का सिद्धांत प्रस्तत किया । उन्होंने विभिन्न सभ्यताओं के विकास का एक आदर्श प्रारूप दंढा और सिद्धांत का निर्माण किया । टायनबी के सिद्धांत को ” चुनाता एवं प्रत्युत्तर का सिद्धांत ” ( Challengee and Response Theory ) भी कहत हा अनुसार प्रत्येक सभ्यता को प्रारम्भ में प्रक्रति तथा मानव द्वारा चुनौती दी जाती हा इस चुनाता का सामना करने के लिए व्यक्ति को अनकलन की आवश्यकता होती है , व्यक्ति इस चुनाता के प्रत्युत्तर में भी सभ्यता व संस्कृति का निर्माण करता है । इसके बाद भौगोलिक चुनीतिया स्थान पर सामाजिक चुनौतियाँ दी जाती हैं । वे चुनौतियाँ समाज के भीतरी समस्याओं के रूप म अथवा बाहरी समाजों द्वारा दी जाती है ।
टॉयनवी का कहना है कि जो समाज इन चनीतियों का सामना सफलतापूर्वक कर लेता है , वह जीवित रहता है और जो ऐसा नहीं कर सकता , वह नष्ट हो जाता है । इस प्रकार एक समाज , निर्माण एवं विनाश तथा संगठन एवं विघटन के दौरे से गुजरता है । प्राकृतिक आपदाएं , सुनामी , भूकम्प , आँधी , तूफान आदि वहाँ के लोगों को प्राकृतिक चुनीतियाँ दी है जिसका प्रत्युत्तर वहाँ के लोगों ने निर्माण के द्वारा देने का प्रयास किया है । सिंधु व मेसोपोटामिया की सभ्यता के साथ ऐसा ही हुआ ।
किसी भी सिद्धांत को अपनी कुछ कमियाँ होती हैं उसी प्रकार टॉयनवी के सिद्धांत में वैज्ञानिकता कम तथा दार्शनिकता अधिक देखने को मिलती है । फिर भी उन्होंने समाज में परिवर्तन को देखने का एक नजरिया देते हैं ।