ग्रामीण तथा नगरीय समुदाय में तुलना
( Comparison between Rural and Urban Community )
ग्रामीण तथा नगरीय समुदाय सैद्धान्तिक दृष्टि से अलग – अलग है किन्तु व्यावहारिक रूप से वे इतने घले – मिले ॥ हैं कि उनकी विलगता को इंगित करना कठिन प्रतीत होता है । शायद ही ऐसा कोई समुदाय है जो पूर्णत : ग्रामीण ” है या नगरीय । इसका कारण यह है कि ग्रामीण समुदाय में भा नगरीय समुदाय के अनेक तत्त्व मिलते हैं और गीय समदाय में भी ग्रामीण समुदाय की बहुत सारी विशेषताएं मिलती हैं । सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी एक तरफ नगरों में व्यवसाय , अन्ध विश्वास , ओझा तथा ग्रामीण पोशाके देखने को मिलती है वहाँ दूसरी ओर गाँव में शहरी वस्त्र , भोजन , भाषा तथा व्यक्तिवादिता इत्यादि दिखाई पड़ता है । वास्तव में यह स्थिति ‘ ग्रामीण नगरी निरन्तरता ‘ की है जिसे ‘ Rural urban Continuum ‘ कहा जाता है । अर्थात गाँव में भी शहरों के लक्षण पाये जाते हैं और शहरों में भी गाँव के लक्षण दिखाई पड़ते हैं । ये दोनों विपरीत समुदाय नहीं बल्कि एक निरन्तरता के दो अलग – अलग छोड़ है ।
काइवर तथो पेज ‘ ( Maclver & Page ) ने अपनी पस्तक ‘ Society ‘ ग्रामीण और नगरीय समुदाय । की तुलना में तीन कठिनाइयों की चर्चा की है ।
गाँव और नगर में केवल मात्रा का अन्तर है ( Rural and urban difference is a Matter of Degree ) – वास्तव में गाँव और नगर के बीच सिर्फ भाषा का अन्तर होता है । इनके बीच अन्तर की कोई स्पष्ट रेखा नहीं खींची जा सकती । मेकाइवर तथा पेज ने इसके सन्दर्भ में लिखा है ” परन्तु दोनों के बीच इतना स्पष्ट अन्तर नहीं है कि यह बताया जा सके कि कहाँ नगर समाप्त होता है और कहाँ गाँव प्रारम्भ होता है ” कहने का अभिप्राय यह है कि इनके बीच जनसंख्या अथवा क्षेत्रफल की भी कोई निश्चित कसौटी नहीं है ।
नगरों में विभिन्न पर्यावरण ( The Manifold Environment within the city ) – ग्रामीण एवं नगरीय समुदाय की तुलना में एक कठिनाई यह भी है कि नगर में विभिन्न पर्यावरण पाये जाते हैं । भिन्न – भिन्न स्थानों पर भिन्न – भिन्न विशेषताएँ पाई जाती है । नगरों में विभिन्न जाति , प्रजाति , भाषा , धर्म सम्प्रदाय , वर्ग एवं व्यवसाय से सम्बन्धित व्यक्ति पाये जाते हैं । फलस्वरूप नगर में विभिन्न पर्यावरण उत्पन्न होते है ।
गाँव एवं नगर की परिवर्तनशील प्रगति ( The charging character of city and village ) ग्रामीण एवं नगरीय समुदाय स्थायी विशेषता वाले नहीं होते बल्कि परविर्तनशील प्रकृति के होते हैं । नगरीकरण एवं औद्योगीकरण की प्रक्रिया , नगरों की संस्कृति , आचार – विचार , व्यवहार एवं व्यवसाय ने नगर से लगे गाँवों को प्रभावित तथा परिवर्तित किया है । वे निरन्तर नगरीय क्षेत्र में मिलते जा रहे हैं । दूसरी ओर गाँव वाले जब काम करने के लिए शहरों में आते हैं तो वे अपने साथ नगरीय विशेषताओं को गाँव में ले जाते हैं । इससे ग्रामीण समुदाय में नगरीय विशेषताओं का प्रसार हो रहा है । दोनों के बीच परस्पर आदान – प्रदान भी चलती रहती है । इन कठिनाइयों के कारण नगरीय एवं ग्रामीण समुदाय में तुलना करना कठिन हो जाता है । यहाँ कुछ प्रमुख अन्तरों का विवेचन प्रस्तुत है । ग्रामीण तथा नगरीय समुदाय में अन्तर के प्रमुख आधार निम्नलिखित है – –
ग्रामीण तथा नगरीय समुदाय में अन्तर
( Distinction between Rural and Urban Community )
विभिन्न समाजशास्त्रियों ने ग्रामीण एवं नगरीय समुदाय में अन्तर के भिन्न – भिन्न आधारों की चर्चा की । सबसे पहले सोरोकिन और जिमरमैन के द्वारा बताये गये अन्तरों की विवेचा करेंगे । इन लोगों ने ग्रामीण एवं नगरीय समुदाय में अन्तर के आठ आधारों पर चर्चा की है
. व्यवसाय के आधार पर ( On the basis of Occupation ) – ग्रामीण समुदाय में अधिकतर लोग ऐसे हैं जो गैर – कषि कार्यों से जुड़े होते हैं । इसके विपरीत नगरीय समुदाय में लोग यान्त्रिक कार्यों , वाणिज्य व्यवसाय तथा सरकारी नौकरिया में लग रहत है । नगरी म सरकारी नियमों के तहत या प्रशासकीय अनुकूल नौकरी की जाती है ।
. पर्यावरण ( On the basis of Environment ) – गाँवों में लोगों का प्रकति से प है । ये लोग प्राकृतिक पर्यावरण पर अधिक निभर करत है । लोग धूप , वर्षा तथा आँधी इत्यादि को प्रत्यक्ष रूप से सदाय में लोग मानव निर्मित पर्यावरण पर अधिक निर्भर करते हैं । उदाहरणस्वरूप में वातानुकूल परेलगाडियों में चलना , शीतधारों तथा रसायन मिश्रित ( Chemically preserved ) घोल में रखे हुए फल तथा खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल करना इत्यादि ।
समदाय का आकार ( On the bais of size of community ) – ग्रामीण समुदाय कामा होता है जबकि नगरीय समुदायों का आकार बहुत बड़ा होता है ।
. जनसंख्या का घनत्व ( On the basis of densitvof population ) – ग्रामीण समुदाय का घनत्व कम होता है जबकि नगरीय समुदाय में जनसंख्या का घनत्व अपेक्षाकृत अधिक हाता हा कहना तात्पर्य यह है कि गाँव में प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में शहरों की अपेक्षा गाँव में लोग कम रहत ह अथात् नगरपा एवं घनत्व में सकारात्मक सम्बन्ध पाये जाते है ।
. जनसंख्या में समरूपता और विषमरूपता ( On the basis of homogeneityand heterogenemy of population ) – ग्रामीण समुदाय में समरूपता पायी जाती है . अर्थात समान प्रजाति , भाषा , पहनावा तथा आचार – विचार के लोग होते हैं । उनकी जीवन – शैली एक – सी होती है । दूसरी ओर नगरीय समुदाय में विषमरूपता पायी जाती है अर्थात् विभिन्न प्रजाति , भाषा , धर्म , पहनावा तथा आचार – विचार के लोग होते हैं ।
सामाजिक विभेदीकरण तथा स्तरीकरण ( On the basis of Social differentiation and Stratification ) ग्रामीण समुदाय में सामाजिक विभेदीकरण तथा स्तरीकरण के आधार बहुत कम होते हैं । भारतीय गाँव में जाति के आधार पर स्तरीकरण पाया जाता है । इस संस्तरण में ब्राह्मण , वैश्य तथा शुद्र क्रमशः होते हैं । नगरीय समुदाय में सामाजिक स्तरीकरण तथा विभेदीकरण के विभिन्न आधार पाये जाते हैं । शहरों में स्तरीकरण वर्ग – व्यवस्था के रूप में पाया जाता है । वर्ग में स्तरीकरण का आधार धन , शिक्षा , व्यवसाय तथा पद इत्यादि होता है । इन्हीं के आधार पर उच्च वर्ग , मध्यम वर्ग तथा निम्न वर्ग का निर्माण होता है । जिस प्रकार प्रत्येक जाति के अन्तर्गत उपजातियाँ पायी जाती है उसी प्रकार प्रत्येक वर्ग में तीन वर्ग ( जैसे उच्चवर्ग में उच्च – उच्च , उच्च मध्यम तथा उच्च निम्न ) होते है ।
गतिशीलता ( On the basis of Mobility ) – ग्रामीण समुदाय में नगरीय समुदाय की अपेक्षा स्थानीय तथा सामाजिक गतिशीलता कम पायी जाती है । प्रायः लोग अपने जातीय – व्यवसाय से अथवा परम्परागत – व्यवसाय से जुड़े होते हैं । उदाहरणस्वरूप धोबी कपड़ा धोने का काम , बढ़ई लकड़ी का काम , ब्राह्मण पूजा – पाठ का काम करते हैं । ये व्यवसाय जजमानी व्यवस्था को जन्म देते हैं । इस व्यवस्था के द्वारा प्रत्येक जाति अपने पेशा द्वारा दूसरी जाति की सेवा देता है तथा सेवा प्राप्त करता है । किन्तु नगरों में ऐसी बात नहीं होती । यहाँ जब चाहें लोग अपने व्यवसाय को बदल सकते हैं । जहाँ उन्हें अच्छा अवसर मिलता है वहाँ चले जाते हैं । नगरों में गतिशीलता के अनेक रूप देखने को मिलते हैं ; जैसे – क्षेत्रीय व स्थानीय गतिशीलता , व्यवसायिक गतिशीलता , सांस्कृतिक गतिशीलता इत्यादि ।
अन्त : क्रिया का व्यवस्था ( On the basis of interaction ) – ग्रामीण समुदाय में एक व्यक्ति का सम्पर्क कम लोगों से होता है फलस्वरूप उनके अन्तःक्रिया का क्षेत्र प्राय : सीमित होता है उनके बीच प्राथमिक सम्बन्धों की प्रधानता होती है । गाँवों में लोगों के बीच के सम्बन्ध व्यक्तिगत व स्थायी सम्बन्ध होते हैं । इन सम्बन्धों में सहजता , सादगी तथा निष्ठा पायी जाती है । इसके विपरीत नगरीय समुदाय में एक व्यक्ति का सम्पर्क बहत व्यापक होता है । अर्थात् उनके अन्त : क्रिया का दायरा विस्तृत होता है । उनके बीच द्वितीयक सम्बन्धों की प्रधानता होती है । इन सम्बन्धों में जटिलता , बनावटीपन तथा स्वार्थ पाया जाता है । नगरों में लोगों के बीच के सम्बन्ध सतही तथा अस्थायी होते हैं ।
श्री देसाई A . R . Desai ) ने भी मामीण तथा नगरीय समुदाय में अन्तर के नौ आधारों की चर्चा की
1 . व्यवसाय सम्बन्धी भेद
2 . पर्यावरण सम्बन्धी भेद
3 . समुदायों के आकार सम्बन्धी भेद
4 . जनसंख्या के घनत्व सम्बन्धी भेद
5 . जनसंख्या की सजातीयता तथा विजातीयता सम्बन्धी भेद
6 . सामाजिक गतिशीलता सम्बन्धी भेद
7 . प्रव्रजन ( Migration ) की दिशा सम्बन्धी भेद
8 . सामाजिक विभेदीकरण तथा स्तरीकरण सम्बन्धी भेद ।
9 . सामाजिक अन्त : क्रिया की पद्धति में भेद ।
रिचार्ड डेवी ( Richard Dewev ) ने पाँच आधारों पर नगरीय एवं ग्रामीण समुदायों के अन्तरा का स्पष्ट किया है
1 . अज्ञात स्थिति
2 . श्रम विभाजन
3 . सामाजिक और आर्थिक भिन्नता
4 . अवैयक्तिक तथा औपचारिक सामाजिक सम्बन्ध
5 . व्यक्तिगत पृष्ठभूमि में स्वतन्त्र पद प्राप्त करने की आकांक्षा तथा प्रयल ।
उपरोक्त विद्वानों के विचारों के अतिरिक्त ग्रामीण एवं नगरीय समुदाय में अन्तर को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है ।
. पयावरण के आधार पर अन्तर ( Contraston the basis of environment ) – पर्यावरण के आधार पर ग्रामीण समुदाय प्रकृति के बहुत निकट होता है । वे लोग स्वच्छ हवा तथा निर्मल जल का आनन्द लेते हैं । वे कड़ी धूप तथा वर्षा को भी सहते हैं । इसके विपरीत नगरीय समुदाय में लोग प्रकृति से दूर कृत्रिम वातावरण में । रहते हैं । वे तरह – तरह के प्रदूषण ( जल , प्रदूषण , वायु , ध्वनि , प्रदूषण इत्यादि ) के शिकार होते हैं । गाँव के लोग ताजी सब्जी तथा फल खाते है जबकि शहरों में लोग बासी , शीत घरों में रखा हुआ तथा डब्बा में बन्द किया हुआ चीज खाते हैं ।
. अपरिचय बोध ( Anonymity ) – नगरीय समुदाय में एक प्रभुत्व लक्षण होता है – अपरिचय बोध । शहरों के एक ही मुहल्ले में रहने वाले लोग , एक बड़े व ऊँची – ऊँची मकानों में रहने वाले लोग एक – दूसरे को नहीं जानते । गाँव में प्रत्येक व्यक्ति अन्य दूसरे व्यक्ति को जानता है । इतना ही नहीं सभी एक – दूसरे के जीवन चर्चा तथा सगे – सम्बन्धियों से भी परिचित होते हैं ।
. एक सबके लिए तथा सब एक के लिए ( One for all and all for one ) – ग्रामीण समुदाय में व्यक्तियों के बीच असीमित सहयोग पाया जाता है । सभी लोग एक – दूसरे की मदद करते है तथा किसी एक को कुछ भी होने पर सभी लोग उसमें सहभागी होते हैं । शहरों में लोगों के बीच सहभागिता की कमी पायी जाती है । नगरीय समुदाय में व्यक्ति उन्हीं लोगों के साथ सहभाग करता है जो उसके प्रकार्यात्मक समूह के सदस्य होते हैं । जिनसे उनको जरूरत नहीं पड़ती उनसे वे मतलब नहीं रखते ।
. सामाजिक स्तरीकरण के आधार में अन्तर ( Contrast on the basis of social stratification ) ग्रामीण तथा नगरीय समुदाय में सामाजिक स्तरीकरण के आधारों में अन्तर पाया जाता है । गाँव में स्तरीकरण का आधार जन्म , उम्र , लिंग तथा जातीय संस्तरण होता है जबकि शहरी में शिक्षा , व्यवसाय , धन तथा पद इत्यादि होता है । गाँव में जिसे जो स्थिति एक बार प्राप्त हो जाती है , उसमें परिवर्तन नहीं होता जबकि शहरों में लोगों की स्थिति में परिवर्तन सम्भव होता है । लोग अपने प्रयास व प्रयत्न के द्वारा अपनी स्थिति में परिवर्तन लाते हैं । नगरों में वर्गीय विषमताएँ पायी जाती है । धनी गरीब के बीच सामाजिक दूरी होती है । गाँव में इस प्रकार की तरी लोगों के बीच नहीं होती ।
. आर्थिक जीवन के आधार पर अन्तर ( Contrast on the basis of economic life ) – ग्रामीण समदाय में लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती होता है । इसके साथ छोटे – छोटे कुटीर उद्योग धन्धे भी होते है । इसके विभाजन तथा विशेषीकरण का अभाव पाया जाता है । प्रायः लोग अपने व्यवसाय से सम्बन्धित सभी बातों की जानकारी रखते हैं । उदाहरणस्वरूप वह जानता है कि वह कौन से मौसम में कौन कौन – सा खाद डालेगा पशु बीमार है तो उसका उपचार क्या है ? इत्यादि । इसके विपरीत शहरों में विभिन्न प्रकार के व्यवसाय होते हैं और वहाँ श्रम – विभाजन तथा विशेषीकरण भी पाया जाता है । हर चीज के विशेषज्ञ होते है जो अपने क्षेत्र के सम्बन्ध में काफी जानकारी रखते है । जिन लोगों को जैसी जरूरत होती है वे वैसे लोगों से सलाह लेते है । नगरों में वर्ग – संघर्ष देखने को मिलता है । गाँव में ऐसी बात नहीं होती . धनी और अमीर के बीच बड़ी खाई नहीं होती ।
. जनसंख्या के आधार पर अन्तर ( Contrast on the basis of population ) – गाँव म जनसख्या का आकार तथा उसका घनत्व शहरों की तुलना में कम होता है । नगरों में विभिन्न प्रजाति , धर्म , तथा संस्कृति के लोग एक साथ रहते हैं जबकि गाँव में समान भाषा , संस्कृति तथा आचारविचार हैं । गांवों में सभी लोगों की जीवन – शैली एक होती है जबकि शहरों में अपने – अपने ढंग का जीवन जात हो
. सामाजिक सम्बन्धों में अन्तर ( Contrast on the basis of social relations . घामक सम्बन्ध पाये जाते हैं जबकि शहरों में द्वितीय सम्बन्धों की प्रधानता होती है । गांवों में लाग दिखावटी , औपचारिक तथा बनावटी सम्बन्ध रखते हैं । उनका जीवन सरल व सादा होता है । शहरों में लोगों क बीच औपचारिक सम्बन्ध होते हैं । वे व्यक्तिगत स्वार्थ तथा उद्देश्य प्रेरित होकर सम्बन्ध बनाते तथा खत्म करते है । गिस्ट तथा हेलबर्ट ‘ ( Gist and Halbert ) के अनुसार ” नगर वैयक्तिक सम्बन्धों की अपेक्षा अवैयक्तिक सम्बन्धों को अधिक प्रोत्साहन देता है । “
. सांस्कृतिक जीवन में अन्तर ( Contrast on the basis of cultural life ) – गाँव में लोग धर्म प्रधान जीवन व्यतीत करते हैं । उनके जीवन में परम्परा तथा रूढ़ियों का अधिक महत्त्व होता है । इसके विपरीत शहरा में लोग धार्मिक कार्यों में अधिक रूचि नहीं लेते हैं । नगरों में शिक्षा तथा विज्ञान का प्रभाव अधिक होता है । यहाँ की संस्कृति परिवर्तनशील होती है । गाँव की संस्कृति स्थिर प्रकृति की होती है ।
. सामाजिक गतिशीलता के आधार पर अन्तर ( Contrast on the basis of social control ) – गाँव | में सामाजिक नियन्त्रण अनौपचारिक साधनों के द्वारा होता है । परिवार , धर्म , लोकाचार प्रथा तथा परम्परा के द्वारा लोगों का व्यवहार नियमित तथा निर्मित होता है । किन्तु शहरों में जनसंख्या अधिक होने के कारण सामाजिक नियन्त्रण के द्वितीयक साधनों का प्रयोग होता है । कानून , जनमत , न्यायालय , सेना तथा पुलिस के द्वारा लोगों का व्यवहार नियन्त्रित होता है । औपचारिक साधन के पास बल रहते हुए भी वे उतना प्रभावशाली नहीं होता जितना की अनौपचारिक साधन होते हैं । धर्म , प्रथा , परम्परा आदि को मनवाने के लिए कोई बाहरी दबाव अथवा बल नहीं होता किन्तु लोग सरलता से इनकी अवहेलना नहीं कर पाते ।
. सामाजिक नियन्त्रण के आधार पर अन्तर ( Contraston the basisof socialmobility ) – ग्रामीण समुदाय की अपेक्षा नगरीय समुदाय में गतिशीलता अधिक पायी जाती है । शहरों में गतिशीलता के अनेक श्रोत होते हैं । वैसे अवसर होते हैं जिसके फलस्वरूप लोग अपनी स्थिति तथा पद में परिवर्तन ला पाते हैं । दूसरी ओर गाँव में गतिशीलता कम पायी जाती है । कृषि मुख्य व्यवसाय होने के कारण लोग एक स्थान से बँध जाते हैं । व्यवसायों में बहुलता नहीं होने के कारण लोगों की स्थिति में जल्द सुधार नहीं होता । गाँव में गतिशीलता के स्रोतों की कमी होती है । पूरी सामाजिक संरचना ऐसी होती है जो लोगों की गतिशीलता के अवसर प्रदान नहीं करते ।
गाँव तथा शहरी जीवन में अन्तर है किन्तु दोनों एक – दूसरे से बिलकुल अलग नहीं है । ये आपास में अभिन्न रूप से जुड़े हैं । वास्तव में वे एक ही समाज व्यवस्था के दो अलग – अलग स्वरूप प्रतीत होते हैं । न तो गाँव पूर्णतः स्वावलम्बी है और न ही नगर । व्यावहारिक रूप में कहीं भी पूर्ण शहर या गाँव पाना सम्भव नहीं है