गेन-ऑफ-फंक्शन शोध: NIH प्रतिबंध, जैव-सुरक्षा और वैश्विक स्वास्थ्य का भविष्य (UPSC विस्तृत विश्लेषण)

गेन-ऑफ-फंक्शन शोध: NIH प्रतिबंध, जैव-सुरक्षा और वैश्विक स्वास्थ्य का भविष्य

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) ने ‘गेन-ऑफ-फंक्शन’ (Gain-of-Function – GoF) चिंताओं के कारण दर्जनों रोगजनक अध्ययनों को निलंबित कर दिया है। यह विषय UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह GS पेपर II – शासन (Governance), GS पेपर III – विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (Science & Technology), आंतरिक सुरक्षा (Internal Security) और GS पेपर IV – नीतिशास्त्र (Ethics) से संबंधित है। यह जैव-सुरक्षा, जैव-नियंत्रण, वैज्ञानिक नैतिकता, वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय सहयोग जैसे बहुआयामी पहलुओं को समाहित करता है।


‘गेन-ऑफ-फंक्शन’ शोध: एक विस्तृत विश्लेषण

विषय का परिचय

आज की दुनिया में, जहाँ वैज्ञानिक प्रगति तेजी से हो रही है, ‘गेन-ऑफ-फंक्शन’ (GoF) शोध ने विज्ञान और सुरक्षा के बीच एक जटिल बहस छेड़ दी है। यह सिर्फ एक तकनीकी शब्द नहीं, बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य, जैव-आतंकवाद के जोखिम और वैज्ञानिक स्वतंत्रता की सीमाओं को परिभाषित करने वाला एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। सरल शब्दों में, गेन-ऑफ-फंक्शन शोध में ऐसे परिवर्तनों के साथ सूक्ष्मजीवों (जैसे वायरस या बैक्टीरिया) का अध्ययन करना शामिल है जो उन्हें अधिक संक्रामक, विषैला (घातक), या उपचार के प्रति अधिक प्रतिरोधी बनाते हैं।

इस शोध का प्राथमिक उद्देश्य रोगजनकों (pathogens) के विकास, अनुकूलन और संचरण को समझना है, ताकि भविष्य की महामारियों को रोकने या उनका इलाज करने के लिए टीके और एंटीवायरल विकसित किए जा सकें। हालाँकि, इस शोध की अंतर्निहित प्रकृति – ‘क्षमता में वृद्धि’ – अनजाने में या दुर्भावनापूर्ण रूप से प्रयोगशाला से बाहर निकलने पर गंभीर जोखिम पैदा करती है, जैसा कि COVID-19 महामारी के संभावित प्रयोगशाला रिसाव सिद्धांत ने वैश्विक चिंता का विषय बना दिया था। इसी पृष्ठभूमि में, NIH (जो अमेरिका में चिकित्सा अनुसंधान का प्रमुख केंद्र है) का यह कदम महत्वपूर्ण है और यह दर्शाता है कि वैज्ञानिक समुदाय इन उच्च जोखिम वाले अध्ययनों से जुड़े संभावित खतरों को कितनी गंभीरता से ले रहा है। यह निर्णय जैव-सुरक्षा, नैतिकता और नियामक निरीक्षण की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है।

प्रमुख प्रावधान / मुख्य बिंदु

‘गेन-ऑफ-फंक्शन’ शोध को समझना और NIH के निलंबन के निहितार्थों का विश्लेषण करने के लिए, हमें इसकी अवधारणा, जोखिम और संबंधित सुरक्षा उपायों की गहराई से जाँच करनी होगी।

  • गेन-ऑफ-फंक्शन (GoF) शोध क्या है?
    • परिभाषा: GoF शोध से तात्पर्य उन वैज्ञानिक अध्ययनों से है जहाँ सूक्ष्मजीवों (विशेषकर वायरस और बैक्टीरिया) को आनुवंशिक रूप से संशोधित किया जाता है ताकि वे ऐसे कार्य या क्षमताएं प्राप्त कर सकें जो उनमें स्वाभाविक रूप से नहीं होतीं या जिनमें सुधार किया जाता है। इन “कार्यों” में शामिल हो सकते हैं:
      • बढ़ी हुई संक्रामकता (Increased Transmissibility): उदाहरण के लिए, एक वायरस को इस तरह से बदलना कि वह जानवरों से मनुष्यों में या एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अधिक आसानी से फैल सके।
      • बढ़ी हुई विषैलापन (Increased Virulence/Pathogenicity): रोगजनक को अधिक गंभीर बीमारी पैदा करने या मेजबान को अधिक नुकसान पहुँचाने में सक्षम बनाना।
      • इम्यून एस्केप (Immune Escape): मौजूदा टीकों या उपचारों के प्रति रोगजनक को अधिक प्रतिरोधी बनाना।
    • उद्देश्य: इस शोध का प्राथमिक उद्देश्य प्राकृतिक रूप से उभरने वाले रोगजनकों को बेहतर ढंग से समझना है, यह अनुमान लगाना कि वे कैसे विकसित हो सकते हैं, और इन ज्ञान का उपयोग नई बीमारियों के लिए टीके, एंटीवायरल और अन्य उपचार विकसित करने के लिए करना है। यह भविष्य की महामारियों के लिए तैयारी करने में मदद करता है।
    • दोहरे उपयोग का अनुसंधान (Dual Use Research of Concern – DURC): GoF शोध अक्सर DURC की श्रेणी में आता है। DURC वह शोध है जिसके वैध वैज्ञानिक उद्देश्य हैं लेकिन जिसके परिणाम का उपयोग हथियार के रूप में या सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाने के लिए भी किया जा सकता है।
  • NIH का निलंबन और इसके कारण:
    • प्रत्यक्ष कारण: NIH ने ‘लाभ-प्राप्ति’ चिंताओं (Gain-of-Function concerns) को लेकर दर्जनों रोगजनक अध्ययनों को अस्थायी रूप से रोक दिया है। यह निलंबन विशेष रूप से उन अध्ययनों पर लागू होता है जिनमें संभावित रूप से खतरनाक रोगजनकों के व्यवहार को बदलने की क्षमता होती है।
    • जोखिम मूल्यांकन (Risk Assessment): यह कदम एक सख्त जोखिम मूल्यांकन प्रक्रिया के बाद उठाया गया है, जहाँ NIH ने इन अध्ययनों से जुड़े संभावित लाभों और खतरों का पुनर्मूल्यांकन किया है। इसमें जैव-सुरक्षा प्रोटोकॉल की समीक्षा और प्रयोगशाला सुरक्षा उपायों की कठोरता का मूल्यांकन शामिल है।
    • पारदर्शिता और निरीक्षण (Transparency & Oversight): निलंबन इस बात पर जोर देता है कि उच्च-जोखिम वाले GoF शोध को असाधारण स्तर की पारदर्शिता और निरीक्षण की आवश्यकता है। यह सार्वजनिक विश्वास को बनाए रखने और संभावित दुर्भावनापूर्ण उपयोग को रोकने के लिए महत्वपूर्ण है।
  • जैव-सुरक्षा (Biosecurity) और जैव-नियंत्रण (Biocontainment):
    • जैव-सुरक्षा (Biosecurity): इसका संबंध खतरनाक जैविक एजेंटों के अनाधिकृत पहुँच, चोरी, दुरुपयोग या दुर्भावनापूर्ण रिहाई को रोकने के उपायों से है। इसमें कर्मियों की पृष्ठभूमि की जाँच, प्रयोगशाला की भौतिक सुरक्षा, एजेंटों की सूची का प्रबंधन और डेटा सुरक्षा शामिल है। यह ‘आतंकवाद’ या ‘दुर्भावनापूर्ण इरादे’ से बचाव पर अधिक केंद्रित है।
    • जैव-नियंत्रण (Biocontainment): यह प्रयोगशाला के भीतर खतरनाक जैविक एजेंटों को सुरक्षित रूप से रखने और उन्हें पर्यावरण या समुदाय में अनजाने में निकलने से रोकने के उपायों को संदर्भित करता है। इसमें विशेष प्रयोगशाला डिजाइन (जैसे नकारात्मक दबाव वाले कमरे, HEPA फिल्टर), व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE), और सख्त परिचालन प्रक्रियाएं शामिल हैं। यह ‘दुर्घटना’ से बचाव पर अधिक केंद्रित है।
    • बायोसेफ्टी स्तर (Biosafety Levels – BSL): GoF शोध में आमतौर पर उच्च बायोसेफ्टी स्तर (BSL) वाली प्रयोगशालाओं की आवश्यकता होती है। दुनिया भर में चार बायोसेफ्टी स्तर हैं, जो बढ़ते खतरे के साथ बढ़ते हैं:
      • BSL-1: उन एजेंटों के लिए जो मनुष्यों में ज्ञात बीमारी पैदा नहीं करते।
      • BSL-2: मध्यम जोखिम वाले एजेंटों के लिए जो सामान्यतः गंभीर बीमारी का कारण नहीं बनते, लेकिन मानव बीमारी पैदा कर सकते हैं (जैसे साल्मोनेला)।
      • BSL-3: गंभीर या घातक बीमारी पैदा करने वाले एजेंटों के लिए (जैसे टीबी बैक्टीरिया, सार्स वायरस)। इनमें विशेष एयरफ्लो सिस्टम और नियंत्रित पहुँच होती है।
      • BSL-4: अत्यधिक खतरनाक और आसानी से संचरित होने वाले एजेंटों के लिए जिनके लिए कोई ज्ञात टीका या उपचार नहीं है (जैसे इबोला, मारबर्ग वायरस)। इन प्रयोगशालाओं में अधिकतम नियंत्रण और पृथक्करण होता है, जिसमें पूर्ण शरीर वाले, दबाव वाले सूट पहनना भी शामिल है। GoF शोध अक्सर BSL-3 या BSL-4 में किया जाता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय विनियमन और सहयोग:
    • WHO की भूमिका: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने GoF और DURC पर कई दिशानिर्देश और रिपोर्ट जारी की हैं, जिसमें इन शोधों के लिए वैश्विक मानदंडों और विनियमन की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।
    • अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम (IHR): IHR 2005 अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों का पता लगाने, मूल्यांकन करने, सूचित करने और प्रतिक्रिया देने के लिए एक कानूनी रूप से बाध्यकारी ढाँचा प्रदान करता है, जिसमें संभावित प्रयोगशाला रिसाव भी शामिल है।
    • राष्ट्रों की भूमिका: प्रत्येक देश को अपनी जैव-सुरक्षा नीतियों और नियामक ढाँचों को मजबूत करना होगा। भारत में, जैव-प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) जैसे निकाय जैव-सुरक्षा दिशानिर्देश जारी करते हैं।

पक्ष और विपक्ष (Pros and Cons)

गेन-ऑफ-फंक्शन शोध विज्ञान और समाज के लिए महत्वपूर्ण लाभ और गंभीर जोखिम दोनों प्रस्तुत करता है। इन दोनों पहलुओं को समझना महत्वपूर्ण है।

सकारात्मक पहलू (Positives)

GoF शोध के समर्थकों का तर्क है कि इसके कई संभावित लाभ हैं जो सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए आवश्यक हैं।

  • रोगों को बेहतर ढंग से समझना (Understanding Pathogenesis): GoF शोध वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद करता है कि रोगजनक (pathogens) कैसे विकसित होते हैं, मेजबान की कोशिकाओं को कैसे संक्रमित करते हैं, और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया से कैसे बचते हैं। यह जानकारी बीमारियों के मूलभूत तंत्र को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
  • टीका और उपचार विकास (Vaccine & Therapeutic Development): इस शोध से प्राप्त अंतर्दृष्टि का उपयोग भविष्य की महामारियों के लिए प्रभावी टीके और एंटीवायरल दवाएं विकसित करने में किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि हम यह समझते हैं कि एक वायरस अधिक संक्रामक कैसे बन सकता है, तो हम उन म्यूटेशन को लक्षित करने वाले टीके डिजाइन कर सकते हैं।
  • महामारी की तैयारी (Pandemic Preparedness): GoF शोध वैज्ञानिकों को उन संभावित खतरों की पहचान करने में मदद करता है जो स्वाभाविक रूप से उभर सकते हैं। यह हमें भविष्य के प्रकोपों का अनुमान लगाने और उनसे निपटने के लिए आवश्यक तैयारियों, निगरानी प्रणालियों और प्रतिक्रिया रणनीतियों को विकसित करने में सक्षम बनाता है।
  • एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) से निपटना: जीवाणुओं में एंटीबायोटिक प्रतिरोध के विकास को समझने के लिए GoF तकनीकें उपयोगी हो सकती हैं, जिससे नए उपचारों की पहचान करने में मदद मिलती है।
  • जैव-आतंकवाद की रोकथाम (Countering Bioterrorism): विरोधाभासी रूप से, GoF शोध हमें जैव-आतंकवाद के खतरों के खिलाफ बचाव करने में भी मदद कर सकता है। यदि हम यह समझते हैं कि एक दुर्भावनापूर्ण एजेंट को कैसे विकसित किया जा सकता है, तो हम उसके खिलाफ रक्षात्मक उपाय भी विकसित कर सकते हैं।

नकारात्मक पहलू / चिंताएँ (Negatives / Concerns)

लाभ के बावजूद, GoF शोध के साथ महत्वपूर्ण और गंभीर चिंताएं जुड़ी हुई हैं, जिनके कारण NIH जैसे संगठनों ने इसे निलंबित करने का निर्णय लिया है।

  • दुर्घटना का जोखिम (Accidental Release/Lab Leaks): यह सबसे बड़ी और सबसे तात्कालिक चिंता है। एक दुर्घटनावश प्रयोगशाला रिसाव, चाहे वह मानवीय त्रुटि, उपकरण की विफलता या अप्रत्याशित घटना के कारण हो, एक महामारी को जन्म दे सकता है। GoF शोध में बनाए गए “सुपर-पैथोजन” का रिसाव विनाशकारी परिणाम दे सकता है। COVID-19 की उत्पत्ति को लेकर प्रयोगशाला रिसाव के सिद्धांत ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है।
  • जैव-आतंकवाद का जोखिम (Intentional Misuse/Bioterrorism): GoF शोध से प्राप्त ज्ञान या एजेंट गलत हाथों में पड़ सकते हैं और उनका उपयोग जैव-हथियार विकसित करने के लिए किया जा सकता है। यह एक वैश्विक सुरक्षा खतरा पैदा करता है, जिससे देशों के बीच अविश्वास और तनाव बढ़ सकता है।
  • नैतिक चिंताएँ (Ethical Concerns): आलोचकों का तर्क है कि GoF शोध “ईश्वर-सदृश” खेल के समान है, जहाँ वैज्ञानिक प्रकृति के साथ ऐसी छेड़छाड़ कर रहे हैं जिसके अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं। कुछ लोग इसे नैतिक रूप से अक्षम्य मानते हैं कि ऐसे रोगजनकों को बनाया जाए जो मानव जीवन के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं।
  • जोखिम-लाभ विश्लेषण की जटिलता (Complexity of Risk-Benefit Analysis): GoF शोध से जुड़े संभावित लाभ अक्सर काल्पनिक या दीर्घकालिक होते हैं, जबकि जोखिम बहुत ठोस और तत्काल हो सकते हैं। इन दोनों के बीच सही संतुलन बनाना अत्यंत कठिन है।
  • पारदर्शिता का अभाव (Lack of Transparency) और सार्वजनिक विश्वास (Public Trust): ऐसे शोध के संचालन में पारदर्शिता की कमी सार्वजनिक अविश्वास को जन्म देती है, खासकर जब सुरक्षा प्रोटोकॉल और दुर्घटनाओं के बारे में जानकारी गुप्त रखी जाती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय शासन की कमी (Lack of International Governance): GoF शोध पर कोई व्यापक, विश्वव्यापी नियामक ढाँचा नहीं है। विभिन्न देशों में अलग-अलग मानक हैं, जिससे ‘सबसे कमजोर कड़ी’ (weakest link) की समस्या पैदा होती है, जहाँ कम विनियमित प्रयोगशालाएं वैश्विक जोखिम पैदा कर सकती हैं।

चुनौतियाँ और आगे की राह (Challenges and Way Forward)

गेन-ऑफ-फंक्शन शोध के साथ जुड़ी जटिलताएं और जोखिम इसे दुनिया के सामने सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक, नैतिक और सुरक्षा चुनौतियों में से एक बनाते हैं। इसका प्रभावी ढंग से प्रबंधन करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

चुनौतियाँ

इस पहल/नीति/घटना के कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं, जैसे कि:

  • जोखिम-लाभ संतुलन (Balancing Risk & Reward): सबसे बड़ी चुनौती यह तय करना है कि GoF शोध के संभावित लाभ (जैसे महामारी की तैयारी) इसके जुड़े हुए जोखिमों (जैसे प्रयोगशाला रिसाव या दुर्भावनापूर्ण उपयोग) को कैसे संतुलित करते हैं। यह एक कठिन नैतिक और वैज्ञानिक दुविधा है।
  • अंतर्राष्ट्रीय समन्वय और शासन (International Coordination & Governance): GoF शोध की वैश्विक प्रकृति के बावजूद, इस पर कोई व्यापक, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमत नियामक ढाँचा या निगरानी तंत्र नहीं है। विभिन्न देशों में अलग-अलग मानक हैं, जिससे सुरक्षा में अंतराल पैदा होते हैं।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही (Transparency & Accountability): उच्च-सुरक्षा प्रयोगशालाओं में GoF शोध के संचालन में अक्सर गोपनीयता होती है, जिससे सार्वजनिक निरीक्षण और विश्वास की कमी होती है। दुर्घटनाओं या उल्लंघनों की रिपोर्टिंग और जवाबदेही तंत्र को मजबूत करना चुनौतीपूर्ण है।
  • वैज्ञानिक स्वतंत्रता बनाम सुरक्षा (Scientific Freedom vs. Security): वैज्ञानिकों का तर्क है कि शोध पर अत्यधिक प्रतिबंध लगाने से वैज्ञानिक प्रगति बाधित हो सकती है। सुरक्षा चिंताओं को वैज्ञानिक स्वतंत्रता के अधिकार के साथ कैसे संतुलित किया जाए, यह एक निरंतर बहस का विषय है।
  • सार्वजनिक धारणा और गलत सूचना (Public Perception & Misinformation): GoF शोध की जटिल प्रकृति को देखते हुए, इसे लेकर गलत सूचना और डर फैलना आसान है, जिससे सार्वजनिक विरोध और वैज्ञानिक प्रयासों के प्रति अविश्वास पैदा हो सकता है।
  • मानव पूंजी और बुनियादी ढाँचा (Human Capital and Infrastructure): उच्च-जोखिम वाले GoF शोध के लिए अत्यधिक कुशल कर्मियों और अत्याधुनिक BSL-3 या BSL-4 प्रयोगशालाओं की आवश्यकता होती है, जो विकसित देशों में भी दुर्लभ हैं और विकासशील देशों के लिए एक बड़ी बाधा है।

आगे की राह: इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें वैश्विक सहयोग, मजबूत नियामक ढाँचा और नैतिक दिशानिर्देशों का विकास शामिल होना चाहिए।

  • मजबूत नियामक ढाँचा (Robust Regulatory Framework): GoF शोध के लिए कठोर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नियामक ढाँचे विकसित करना आवश्यक है। इसमें स्पष्ट दिशानिर्देश, अनिवार्य जोखिम मूल्यांकन, लाइसेंसिंग प्रक्रियाएं, और नियमित निरीक्षण शामिल होने चाहिए। भारत को भी अपनी जैव-सुरक्षा नीतियों को और मजबूत करना चाहिए और इन वैश्विक चर्चाओं में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और मानक (International Collaboration & Standards): एक वैश्विक सहमति और मानक प्रोटोकॉल विकसित करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के नेतृत्व में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना महत्वपूर्ण है। एक देश की सुरक्षा की कमी अन्य सभी के लिए खतरा बन सकती है।
  • नैतिक दिशा-निर्देशों का विकास (Development of Ethical Guidelines): वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं और नैतिक विशेषज्ञों को एक साथ आकर GoF शोध के लिए व्यापक नैतिक दिशानिर्देश विकसित करने चाहिए, जो मानव जाति के सर्वोत्तम हित को प्राथमिकता दें।
  • वैकल्पिक शोध पद्धतियाँ (Alternative Research Methodologies): ऐसे सुरक्षित विकल्पों में निवेश करना जो उच्च जोखिम वाले GoF प्रयोगों के बिना समान अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकें (जैसे कम्प्यूटेशनल मॉडलिंग, इन विट्रो अध्ययन)।
  • जोखिम संचार और सार्वजनिक शिक्षा (Risk Communication & Public Education): GoF शोध के लाभों और जोखिमों के बारे में पारदर्शी और सुलभ तरीके से जनता को शिक्षित करना आवश्यक है, ताकि गलत सूचना को रोका जा सके और सार्वजनिक विश्वास बनाया जा सके।
  • बायोसेफ्टी इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश (Investment in Biosecurity Infrastructure): विशेष रूप से विकासशील देशों में उच्च-सुरक्षा प्रयोगशालाओं के निर्माण और रखरखाव में निवेश करना, साथ ही कर्मचारियों के लिए व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करना।
  • भारत के लिए निहितार्थ: भारत को अपने मौजूदा जैव-सुरक्षा और जैव-नियंत्रण प्रोटोकॉल की समीक्षा करनी चाहिए, विशेष रूप से उभरते रोगजनकों पर शोध के संबंध में। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय रूप से भाग लेना और वैश्विक मानदंडों को अपनाने में योगदान करना आवश्यक है। हमें अपनी स्वयं की प्रयोगशालाओं में सुरक्षा मानकों को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी और उच्च जोखिम वाले शोध के लिए स्पष्ट नीतियां बनानी होंगी।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. ‘गेन-ऑफ-फंक्शन’ (GoF) शोध के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. इसमें सूक्ष्मजीवों को संशोधित करना शामिल है ताकि वे अधिक संक्रामक या विषैले बन सकें।
    2. इसका प्राथमिक उद्देश्य भविष्य की महामारियों के लिए टीके और उपचार विकसित करना है।
    3. यह ‘दोहरे उपयोग के अनुसंधान’ (DURC) की श्रेणी में नहीं आता है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    • (a) केवल I और II
    • (b) केवल II और III
    • (c) केवल I और III
    • (d) I, II और III

    उत्तर: (a)

    व्याख्या: कथन I और II सही हैं। GoF शोध में सूक्ष्मजीवों की क्षमताओं में वृद्धि की जाती है ताकि उनके व्यवहार को समझा जा सके और उपचार विकसित किए जा सकें। कथन III गलत है क्योंकि GoF शोध अक्सर DURC की श्रेणी में आता है, जिसका अर्थ है कि इसके वैध वैज्ञानिक अनुप्रयोगों के साथ-साथ इसका दुरुपयोग भी किया जा सकता है।

  2. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन जैव-सुरक्षा (Biosecurity) को सबसे अच्छी तरह परिभाषित करता है?

    • (a) खतरनाक जैविक एजेंटों को प्रयोगशाला के भीतर सुरक्षित रूप से रखने के उपाय।
    • (b) जैविक एजेंटों के अनधिकृत पहुँच, चोरी, दुरुपयोग या दुर्भावनापूर्ण रिहाई को रोकने के उपाय।
    • (c) किसी महामारी के दौरान संक्रमित व्यक्तियों को अलग-थलग करने की प्रक्रिया।
    • (d) जैविक हथियार बनाने के लिए आनुवंशिक इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: जैव-सुरक्षा का संबंध दुर्भावनापूर्ण या अनधिकृत उपयोग से खतरनाक जैविक एजेंटों की सुरक्षा से है। विकल्प (a) जैव-नियंत्रण (Biocontainment) को परिभाषित करता है।

  3. बायोसेफ्टी स्तर (BSL) के संबंध में, BSL-4 प्रयोगशालाएँ किसके लिए डिज़ाइन की गई हैं?

    • (a) उन एजेंटों के लिए जो मनुष्यों में ज्ञात बीमारी पैदा नहीं करते।
    • (b) मध्यम जोखिम वाले एजेंटों के लिए जो गंभीर बीमारी का कारण नहीं बनते।
    • (c) गंभीर या घातक बीमारी पैदा करने वाले एजेंटों के लिए जिनके लिए टीके या उपचार उपलब्ध हैं।
    • (d) अत्यधिक खतरनाक और आसानी से संचरित होने वाले एजेंटों के लिए जिनके लिए कोई ज्ञात टीका या उपचार नहीं है।

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: BSL-4 उच्चतम सुरक्षा स्तर है, जो सबसे खतरनाक और लाइलाज रोगजनकों के साथ काम करने के लिए है, जिसमें अत्यधिक सख्त नियंत्रण और पृथक्करण प्रोटोकॉल शामिल हैं।

  4. निम्नलिखित में से कौन-सा संगठन अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम (IHR) 2005 का प्रमुख संरक्षक है?

    • (a) संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP)
    • (b) विश्व व्यापार संगठन (WTO)
    • (c) विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)
    • (d) अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA)

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम (IHR) 2005, जिसका उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिमों से निपटना है, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा प्रशासित है।

  5. NIH (National Institutes of Health) द्वारा गेन-ऑफ-फंक्शन शोध के निलंबन का प्राथमिक कारण क्या था?

    • (a) धन की कमी
    • (b) शोधकर्ताओं की कमी
    • (c) ‘गेन-ऑफ-फंक्शन’ चिंताओं से जुड़े संभावित जोखिम
    • (d) अन्य ग्रहों पर जीवन की खोज पर ध्यान केंद्रित करना

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: NIH का निलंबन मुख्य रूप से GoF शोध से जुड़े संभावित जोखिमों, विशेष रूप से प्रयोगशाला रिसाव या दुर्भावनापूर्ण उपयोग की संभावना के बारे में बढ़ती चिंताओं के कारण था।

  6. जैव-नियंत्रण (Biocontainment) और जैव-सुरक्षा (Biosecurity) के बीच मुख्य अंतर क्या है?

    • (a) जैव-नियंत्रण दुर्भावनापूर्ण कृत्यों से बचाव पर केंद्रित है, जबकि जैव-सुरक्षा दुर्घटनाओं से बचाव पर।
    • (b) जैव-नियंत्रण प्रयोगशाला के भीतर एजेंटों को सुरक्षित रखने से संबंधित है, जबकि जैव-सुरक्षा उनके अनधिकृत पहुँच को रोकने से।
    • (c) जैव-नियंत्रण केवल वायरस के लिए है, जबकि जैव-सुरक्षा बैक्टीरिया के लिए।
    • (d) कोई अंतर नहीं है, वे समानार्थी शब्द हैं।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: जैव-नियंत्रण का उद्देश्य प्रयोगशाला के भीतर खतरनाक जैविक एजेंटों को सुरक्षित रूप से रखना और उन्हें अनजाने में बाहर निकलने से रोकना है। जैव-सुरक्षा का उद्देश्य जैविक एजेंटों को अनधिकृत पहुँच, चोरी, या दुर्भावनापूर्ण उपयोग से बचाना है।

  7. GoF शोध के नकारात्मक पहलुओं में से एक ‘जोखिम-लाभ विश्लेषण की जटिलता’ है। इसका क्या अर्थ है?

    • (a) GoF शोध हमेशा लाभहीन होता है।
    • (b) GoF शोध से जुड़े संभावित लाभ और जोखिमों का मूल्यांकन करना बेहद आसान है।
    • (c) GoF शोध के संभावित लाभ प्रायः काल्पनिक या दीर्घकालिक होते हैं, जबकि जोखिम ठोस और तत्काल होते हैं, जिससे संतुलन बनाना कठिन होता है।
    • (d) यह विश्लेषण केवल सरकार द्वारा किया जा सकता है, वैज्ञानिकों द्वारा नहीं।

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: GoF शोध में यह तय करना एक बड़ी चुनौती है कि क्या अनुमानित भविष्य के लाभ (जैसे महामारी की तैयारी) उन वास्तविक और वर्तमान जोखिमों (जैसे दुर्घटना या दुरुपयोग) से अधिक हैं।

  8. निम्नलिखित में से कौन-सा देश GoF शोध पर वैश्विक मानक और विनियम स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है?

    • (a) केवल वे देश जिनके पास BSL-4 प्रयोगशालाएँ हैं।
    • (b) केवल G7 देश।
    • (c) सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश, विशेष रूप से प्रमुख वैज्ञानिक शक्तियाँ।
    • (d) केवल विकासशील देश।

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: चूंकि GoF शोध के परिणाम वैश्विक हो सकते हैं, इसलिए वैश्विक मानक और विनियम स्थापित करने के लिए सभी देशों, विशेष रूप से वैज्ञानिक रूप से उन्नत देशों के बीच व्यापक सहयोग की आवश्यकता है।

  9. ‘दोहरे उपयोग के अनुसंधान’ (Dual Use Research of Concern – DURC) की अवधारणा का सबसे अच्छा उदाहरण क्या है?

    • (a) एक सौर पैनल विकसित करना जो केवल ऊर्जा उत्पन्न करता है।
    • (b) एक नई दवा विकसित करना जिसका उपयोग केवल बीमारियों के इलाज के लिए किया जा सकता है।
    • (c) एक कृषि उपकरण विकसित करना जो फसलों की कटाई को आसान बनाता है।
    • (d) एक जीवाणु पर शोध जो मानवीय बीमारियों का इलाज कर सकता है, लेकिन जिसे जैव-हथियार के रूप में भी संशोधित किया जा सकता है।

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: DURC का तात्पर्य ऐसे शोध से है जिसके वैध वैज्ञानिक उद्देश्य हैं, लेकिन जिसके परिणाम या ज्ञान का उपयोग सार्वजनिक स्वास्थ्य या सुरक्षा को नुकसान पहुँचाने के लिए भी किया जा सकता है, जैसा कि विकल्प (d) में दर्शाया गया है।

  10. GoF शोध पर NIH के निलंबन से निम्नलिखित में से किस क्षेत्र पर सीधा प्रभाव पड़ने की संभावना है?

    • (a) अंतरिक्ष अन्वेषण प्रौद्योगिकी
    • (b) जैव-सुरक्षा और नैतिक दिशानिर्देशों का विकास
    • (c) नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत
    • (d) प्राचीन इतिहास का अध्ययन

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: NIH का निलंबन सीधे जैव-सुरक्षा, जैव-नियंत्रण और GoF शोध के लिए नैतिक दिशानिर्देशों की समीक्षा और विकास की आवश्यकता को उजागर करता है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. “गेन-ऑफ-फंक्शन’ शोध मानव जाति के लिए एक दोधारी तलवार है।” इस कथन के आलोक में, इसके संभावित लाभों और निहित जोखिमों का समालोचनात्मक विश्लेषण करें। आप इस संवेदनशील शोध को विनियमित करने के लिए कौन से अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय उपाय सुझाएँगे?
  2. जैव-सुरक्षा और जैव-नियंत्रण के बीच अंतर स्पष्ट करें। वैश्विक महामारियों के जोखिम को कम करने में ‘बायोसेफ्टी स्तर’ (BSL) प्रयोगशालाओं की भूमिका का मूल्यांकन करें। भारत को अपनी जैव-सुरक्षा अवसंरचना को मजबूत करने के लिए क्या कदम उठाने चाहिए?
  3. ‘वैज्ञानिक स्वतंत्रता’ और ‘सार्वजनिक सुरक्षा’ के बीच संतुलन स्थापित करना वर्तमान समय में एक बड़ी नीतिगत चुनौती है, विशेषकर ‘गेन-ऑफ-फंक्शन’ जैसे उच्च जोखिम वाले शोध के संदर्भ में। इस कथन का विश्लेषण करें और इस चुनौती का सामना करने के लिए एक नैतिक और नियामक ढाँचा कैसे विकसित किया जा सकता है, इस पर अपने विचार प्रस्तुत करें।

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