‘गुरुजी’ को अंतिम विदाई: शिबू सोरेन के निधन से झारखंड की राजनीति में क्या बदलेगा?
चर्चा में क्यों? (Why in News?):
हाल ही में, झारखंड की राजनीति के एक दिग्गज, ‘गुरुजी’ के नाम से पुकारे जाने वाले शिबू सोरेन का निधन हो गया। वे अपने बेटे हेमंत सोरेन द्वारा मुखाग्नि के साथ पंचतत्व में विलीन हो गए। यह घटना न केवल एक राजनीतिक युग के अंत का प्रतीक है, बल्कि झारखंड के राजनीतिक, सामाजिक और आदिवासी आंदोलनों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय का समापन भी है। शिबू सोरेन का व्यक्तित्व और उनकी राजनीतिक यात्रा राज्य के गठन और पहचान से गहराई से जुड़ी हुई है। उनके निधन ने एक बार फिर झारखंड की राजनीति, क्षेत्रीय दलों की भूमिका, आदिवासी अधिकारों और उनके राजनीतिक उत्तराधिकार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को चर्चा के केंद्र में ला दिया है, जो UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
शिबू सोरेन: एक परिचय (Shibu Soren: An Introduction)
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को बिहार (अब झारखंड) के एक आदिवासी परिवार में हुआ था। उन्होंने अपना जीवन मुख्य रूप से झारखंड को एक अलग राज्य बनाने के संघर्ष और आदिवासी अधिकारों की लड़ाई के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और दशकों तक इसके नेता रहे। उनकी राजनीतिक यात्रा बेहद उतार-चढ़ाव भरी रही, जिसमें उन्होंने मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री और संसद सदस्य जैसे विभिन्न महत्वपूर्ण पदों का निर्वहन किया।
“झारखंड, मेरा जन्मस्थान, मेरी कर्मभूमि। यहाँ के आदिवासियों का संघर्ष मेरा संघर्ष है।” – शिबू सोरेन (अनुमानित उद्धरण, उनके जीवनकाल के आदर्शों को दर्शाता है)
उन्हें अक्सर ‘गुरुजी’ कहा जाता था, जो उनके अनुयायियों और समर्थकों के बीच उनके प्रति सम्मान और श्रद्धा को दर्शाता है। यह उपाधि केवल एक नेता के लिए नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक, एक संरक्षक और एक ऐसे व्यक्ति के लिए प्रयोग की जाती है जिसने अपने लोगों के जीवन में गहरा प्रभाव डाला हो।
पृष्ठभूमि: झारखंड आंदोलन और शिबू सोरेन की भूमिका (Background: The Jharkhand Movement and Shibu Soren’s Role)
भारत के पूर्वी भाग में स्थित झारखंड क्षेत्र, जो खनिज संपदा से समृद्ध है, लंबे समय से एक अलग राज्य की मांग कर रहा था। इस क्षेत्र के आदिवासी समुदाय, जैसे संथाल, मुंडा, उरांव, और हो, बाहरी लोगों (बाहरी, ढुकू) द्वारा अपने संसाधनों और संस्कृति के शोषण के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। 1970 के दशक में, यह आंदोलन तेज हुआ और शिबू सोरेन इस आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक बनकर उभरे।
मुख्य बिंदु:**
- आदिवासी पहचान और अधिकार: शिबू सोरेन ने आदिवासी समुदायों के आत्मनिर्णय, भूमि अधिकारों और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के लिए आवाज उठाई।
- भूमि अधिग्रहण और शोषण: उन्होंने आदिवासियों से उनकी जमीन छीने जाने और प्राकृतिक संसाधनों के शोषण के खिलाफ व्यापक अभियान चलाया।
- झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM): 1972 में, विनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर उन्होंने JMM की स्थापना की, जो झारखंड राज्य की मांग का मुख्य राजनीतिक मंच बन गया।
- “The Forest Act, 1927” और “Chota Nagpur Tenancy Act, 1908” जैसे कानूनों का विरोध: इन कानूनों ने आदिवासी समुदायों के पारंपरिक भूमि अधिकारों को प्रभावित किया था, जिसका शिबू सोरेन ने कड़ा विरोध किया।
- लोकप्रिय आंदोलन: उनके नेतृत्व में, JMM ने रैलियों, धरनों, और कभी-कभी उग्र आंदोलनों के माध्यम से अपनी मांगों को सरकार तक पहुंचाया।
यह संघर्ष दशकों तक चला और अंततः 15 नवंबर 2000 को झारखंड को बिहार से अलग करके भारत का 28वां राज्य बनाया गया। शिबू सोरेन इस ऐतिहासिक उपलब्धि के एक प्रमुख वास्तुकार थे।
शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर: एक विस्तृत विश्लेषण (Shibu Soren’s Political Journey: A Detailed Analysis)
शिबू सोरेन का राजनीतिक करियर सिर्फ झारखंड राज्य की मांग तक सीमित नहीं था, बल्कि यह कई राष्ट्रीय स्तर के मंचों पर भी फैला हुआ था।
1. झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेता:**
* वे JMM के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और पार्टी के निर्विवाद नेता रहे।
* उनकी अध्यक्षता में, JMM ने झारखंड में कई बार सरकारें बनाईं और प्रमुख विपक्षी दल के रूप में भी कार्य किया।
* पार्टी का मूल एजेंडा आदिवासी कल्याण, क्षेत्रीय विकास और राज्य की स्वायत्तता पर केंद्रित रहा।
2. मुख्यमंत्री के रूप में:**
* शिबू सोरेन ने झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में कई बार कार्यभार संभाला। हालांकि, उनका कार्यकाल अक्सर राजनीतिक अस्थिरता और गठबंधन सरकारों की चुनौतियों से घिरा रहा।
* पहली बार 2005 में, फिर 2008-2009 में और उसके बाद 2009-2010 में उन्होंने मुख्यमंत्री पद संभाला।
* उनके मुख्यमंत्रित्व काल में, राज्य में सुशासन, भ्रष्टाचार पर लगाम और विकास योजनाओं को लागू करने जैसी महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
3. केंद्रीय मंत्री के रूप में:**
* उन्होंने केंद्र सरकार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार में कोयला मंत्री रहे।
* कोयला मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल विवादास्पद भी रहा, जिसमें कोयला आवंटन से जुड़े कुछ मामले चर्चा में आए।
4. संसद सदस्य के रूप में:**
* वे कई बार लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य चुने गए।
* संसद में उन्होंने झारखंड के मुद्दों, आदिवासी अधिकारों और कोयला क्षेत्र से जुड़े मामलों पर अपनी आवाज उठाई।
सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव (Cultural and Social Impact)
शिबू सोरेन का प्रभाव केवल राजनीति तक सीमित नहीं था। वे आदिवासी समुदायों के लिए एक सांस्कृतिक प्रतीक भी थे।
- आदिवासी संस्कृति का संरक्षण: उन्होंने पारंपरिक आदिवासी कला, संगीत, और जीवन शैली को बढ़ावा देने का प्रयास किया।
- सरहुल और सोहराई जैसे त्योहारों का महत्व: ये त्योहार झारखंड के आदिवासियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, और शिबू सोरेन ने उनके संरक्षण और प्रचार में भूमिका निभाई।
- सामुदायिक नेतृत्व: वे अपने समुदाय के बीच एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखे जाते थे जो उनकी समस्याओं को समझता और उनके लिए लड़ता था।
हेमंत सोरेन और राजनीतिक उत्तराधिकार (Hemant Soren and Political Succession)
शिबू सोरेन के पुत्र, हेमंत सोरेन, झारखंड की राजनीति में एक प्रमुख व्यक्ति बन गए हैं। वे स्वयं झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और JMM के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं।
- पार्टी का भविष्य: शिबू सोरेन के निधन के बाद, JMM और झारखंड की राजनीति में हेमंत सोरेन की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई है।
- विरासत का निर्वहन: यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि हेमंत सोरेन अपने पिता की राजनीतिक और वैचारिक विरासत को कितनी अच्छी तरह आगे बढ़ाते हैं।
- चुनौतियाँ: हेमंत सोरेन को न केवल पार्टी के भीतर नेतृत्व बनाए रखना है, बल्कि राज्य की विकास संबंधी और राजनीतिक चुनौतियों का भी सामना करना है।
शिबू सोरेन के निधन का राजनीतिक विश्लेषण: भविष्य की राह (Political Analysis of Shibu Soren’s Demise: The Path Ahead)
शिबू सोरेन का निधन झारखंड की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। इसका भविष्य पर कई तरह से प्रभाव पड़ सकता है:
1. JMM की स्थिति:**
* मजबूती या कमजोरी? शिबू सोरेन पार्टी के लिए एक केंद्रीय ध्रुव थे। उनके जाने के बाद, क्या पार्टी में आंतरिक कलह बढ़ेगी या हेमंत सोरेन के नेतृत्व में अधिक मजबूती आएगी, यह देखना बाकी है।
* जमीनी जुड़ाव: JMM का जमीनी जुड़ाव अभी भी मजबूत है, लेकिन नेतृत्व परिवर्तन हमेशा एक परीक्षा होती है।
2. क्षेत्रीय दलों का भविष्य:**
* राष्ट्रीय दलों पर निर्भरता: झारखंड जैसे राज्यों में क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व रहा है। शिबू सोरेन जैसे नेताओं का जाना, क्षेत्रीय दलों के सामने नेतृत्व परिवर्तन की एक बड़ी चुनौती पेश करता है।
* गठबंधन की राजनीति: JMM अक्सर अन्य दलों के साथ गठबंधन में सरकारें बनाता रहा है। भविष्य में भी यह प्रवृत्ति जारी रहने की संभावना है।
3. आदिवासी राजनीति में बदलाव:**
* आदिवासी नेता की भूमिका: शिबू सोरेन ने आदिवासी राजनीति को एक दिशा दी थी। उनके निधन के बाद, क्या कोई नया आदिवासी नेता उभर कर आएगा या हेमंत सोरेन इस भूमिका को निभाएंगे, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।
* आदिवासी मुद्दों की प्रासंगिकता: उनके निधन के बावजूद, आदिवासी अधिकारों और उनके कल्याण से जुड़े मुद्दे झारखंड में हमेशा प्रासंगिक रहेंगे।
4. संघीय ढांचे पर प्रभाव:**
* राज्य की स्वायत्तता: शिबू सोरेन राज्य की स्वायत्तता और विशेष प्रावधानों के प्रबल समर्थक थे। उनके अनुभव को केंद्र और राज्य संबंधों में देखा जा सकता है।
* नीति-निर्माण: उनके विचारों का प्रभाव भविष्य की नीतियों पर भी पड़ सकता है, खासकर उन नीतियों पर जो आदिवासी कल्याण और संसाधन प्रबंधन से संबंधित हैं।
UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता (Relevance for UPSC Exam)
शिबू सोरेन का जीवन और उनकी राजनीतिक यात्रा UPSC परीक्षा के कई पहलुओं से जुड़ी हुई है:
- भारतीय राजनीति: क्षेत्रीय दलों का उदय, गठबंधन की राजनीति, नेतृत्व परिवर्तन।
- भारतीय संविधान: पांचवीं अनुसूची (Fifth Schedule) और छठी अनुसूची (Sixth Schedule) के प्रावधान, जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन, स्वायत्तशासी परिषदों की भूमिका।
- सामाजिक न्याय: आदिवासी अधिकार, भूमि अधिकार, भूमि अधिग्रहण कानून, भूमि सुधार।
- आधुनिक इतिहास: झारखंड आंदोलन, राज्यों का पुनर्गठन, विभिन्न राज्यों के गठन के पीछे के कारण।
- सरकार की नीतियां: कोयला क्षेत्र, खनिज संपदा का प्रबंधन, वन अधिकार कानून।
- इंटरनल सिक्योरिटी: आदिवासी उग्रवाद (हालांकि शिबू सोरेन का मार्ग अहिंसक रहा, लेकिन आंदोलन के कुछ चरण उग्र थे), नक्सलवाद से संबंध (संभावित)।
चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा (Challenges and Future Direction)
शिबू सोरेन के राजनीतिक सफर और उनके निधन के बाद के परिदृश्य में कई चुनौतियाँ हैं:
- JMM का एकीकरण: यह सुनिश्चित करना कि पार्टी शिबू सोरेन की अनुपस्थिति में एकजुट रहे।
- नेतृत्व का संक्रमण: हेमंत सोरेन को न केवल पार्टी बल्कि राज्य की जटिल राजनीति को भी संभालना होगा।
- आदिवासी विकास: झारखंड अभी भी गरीबी, बेरोजगारी और अविकसित बुनियादी ढांचे जैसी समस्याओं से जूझ रहा है। इन पर प्रभावी कदम उठाने होंगे।
- चुनावों का सामना: आगामी चुनावों में पार्टी को अपने प्रदर्शन को बनाए रखना या सुधारना होगा।
- संसाधन प्रबंधन: खनिज संपदा के उचित उपयोग और उससे होने वाली आय का लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाना एक बड़ी चुनौती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
शिबू सोरेन का निधन एक ऐसे युग का अंत है जिसने झारखंड के राजनीतिक और सामाजिक ताने-बाने को आकार दिया। ‘गुरुजी’ ने अपने लोगों के अधिकारों और राज्य की पहचान के लिए एक लंबा और संघर्षपूर्ण जीवन जिया। उनका अंतिम संस्कार सिर्फ एक व्यक्ति का विदाई समारोह नहीं था, बल्कि यह एक ऐसे राजनीतिक युग का समापन था जिसने झारखंड को एक पहचान दी। अब यह देखना बाकी है कि उनकी विरासत उनके बेटे और पार्टी कैसे आगे बढ़ाते हैं, और झारखंड की राजनीति भविष्य में किस दिशा में करवट लेती है। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह घटना भारतीय राजनीति, सामाजिक आंदोलनों और संघीय ढांचे की जटिलताओं को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करती है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. झारखंड राज्य की मांग का मुख्य कारण क्या था?
- आर्थिक असमानता
- सांस्कृतिक पहचान का संरक्षण और संसाधनों पर नियंत्रण
- राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d) उपरोक्त सभी
व्याख्या: झारखंड आंदोलन के पीछे आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक कारण थे। आदिवासियों का मानना था कि बाहरी लोगों द्वारा उनके संसाधनों का शोषण किया जा रहा है और उनकी सांस्कृतिक पहचान खतरे में है। राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी भी एक प्रमुख कारण थी।
2. शिबू सोरेन ने किस प्रमुख राजनीतिक दल की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई?
- भारतीय जनता पार्टी (BJP)
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC)
- झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM)
- राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP)
उत्तर: (c) झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM)
व्याख्या: शिबू सोरेन ने 1972 में विनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की थी, जो झारखंड राज्य की मांग का प्रमुख राजनीतिक मंच बना।
3. शिबू सोरेन को आमतौर पर किस उपाधि से जाना जाता था?
- बाबू
- गुरुजी
- दादा
- साहेब
उत्तर: (b) गुरुजी
व्याख्या: शिबू सोरेन को उनके अनुयायियों और समर्थकों द्वारा सम्मानपूर्वक ‘गुरुजी’ कहा जाता था, जो एक मार्गदर्शक और संरक्षक का प्रतीक था।
4. निम्नलिखित में से कौन सा अधिनियम आदिवासी समुदायों के भूमि अधिकारों से संबंधित है और जिसका विरोध अक्सर किया जाता रहा है?
- भारतीय वन अधिनियम, 1927
- छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908
- संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम, 1949
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d) उपरोक्त सभी
व्याख्या: ये सभी अधिनियम आदिवासी क्षेत्रों में भूमि स्वामित्व और उपयोग से संबंधित हैं और अक्सर इन पर आदिवासियों के अधिकारों के हनन का आरोप लगाया गया है, जिसका शिबू सोरेन जैसे नेताओं ने विरोध किया।
5. झारखंड राज्य का गठन कब हुआ था?
- 15 नवंबर 1999
- 15 नवंबर 2000
- 20 नवंबर 2000
- 20 नवंबर 2001
उत्तर: (b) 15 नवंबर 2000
व्याख्या: बिहार पुनर्गठन अधिनियम, 2000 के तहत 15 नवंबर 2000 को झारखंड को बिहार से अलग कर भारत का 28वां राज्य बनाया गया।
6. शिबू सोरेन ने केंद्र सरकार में किस मंत्रालय का कार्यभार संभाला था?
- रक्षा मंत्रालय
- वित्त मंत्रालय
- कोयला मंत्रालय
- ग्रामीण विकास मंत्रालय
उत्तर: (c) कोयला मंत्रालय
व्याख्या: शिबू सोरेन ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली UPA सरकार में कोयला मंत्री के रूप में कार्य किया था।
7. भारतीय संविधान की कौन सी अनुसूची जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है?
- तीसरी अनुसूची
- चौथी अनुसूची
- पांचवीं अनुसूची
- दसवीं अनुसूची
उत्तर: (c) पांचवीं अनुसूची
व्याख्या: पांचवीं अनुसूची उन जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित है जो अनुसूचित क्षेत्र के रूप में नामित हैं, जैसे कि झारखंड के कुछ क्षेत्र।
8. झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का मुख्य चुनावी एजेंडा क्या रहा है?
- आदिवासी कल्याण और क्षेत्रीय विकास
- औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना
- शहरी आधारभूत संरचना का विकास
- अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देना
उत्तर: (a) आदिवासी कल्याण और क्षेत्रीय विकास
व्याख्या: JMM का मुख्य ध्यान हमेशा आदिवासी समुदायों के अधिकारों, उनके कल्याण और झारखंड क्षेत्र के सर्वांगीण विकास पर रहा है।
9. निम्नलिखित में से कौन सा शिबू सोरेन के बेटे हैं और वर्तमान में झारखंड की राजनीति में एक प्रमुख व्यक्ति हैं?
- अर्जुन मुंडा
- रघुवर दास
- हेमंत सोरेन
- बाबूलाल मरांडी
उत्तर: (c) हेमंत सोरेन
व्याख्या: हेमंत सोरेन, शिबू सोरेन के पुत्र हैं और उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला है और JMM के कार्यकारी अध्यक्ष हैं।
10. झारखंड राज्य की खनिज संपदा के संबंध में शिबू सोरेन की क्या भूमिका रही?
- उन्होंने खनिजों के निजीकरण का समर्थन किया।
- उन्होंने आदिवासी समुदायों के भूमि और खनिज अधिकारों पर जोर दिया।
- उन्होंने खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की वकालत की।
- उन्होंने केवल औद्योगिक विकास पर ध्यान केंद्रित किया।
उत्तर: (b) उन्होंने आदिवासी समुदायों के भूमि और खनिज अधिकारों पर जोर दिया।
व्याख्या: शिबू सोरेन ने हमेशा यह सुनिश्चित करने की वकालत की कि झारखंड के प्राकृतिक संसाधनों, विशेष रूप से खनिजों से प्राप्त लाभों का उचित वितरण हो और आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा की जाए।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. शिबू सोरेन के नेतृत्व में झारखंड आंदोलन ने एक अलग राज्य की मांग को कैसे आगे बढ़ाया? इस आंदोलन के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आयामों का विश्लेषण करें और यह बताएं कि आदिवासी अधिकारों के संदर्भ में इसकी क्या प्रासंगिकता रही।
2. झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के एक प्रमुख नेता के रूप में शिबू सोरेन की राजनीतिक यात्रा का विस्तृत मूल्यांकन करें। उनके मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्यकाल की प्रमुख उपलब्धियों और चुनौतियों पर प्रकाश डालें।
3. शिबू सोरेन के निधन के बाद, झारखंड की क्षेत्रीय राजनीति में क्या बदलाव देखे जा सकते हैं? JMM की भविष्य की संभावनाओं, नेतृत्व संक्रमण और आदिवासी राजनीति पर इसके संभावित प्रभावों का विश्लेषण करें।
4. भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए, झारखंड जैसे राज्यों में आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन और उनके अधिकारों की रक्षा में शिबू सोरेन जैसे नेताओं की भूमिका और उनके योगदान का समालोचनात्मक परीक्षण करें।