गाजा का संकट: एक उत्पीड़ित राष्ट्र की दास्तान – यूपीएससी के लिए व्यापक विश्लेषण

गाजा का संकट: एक उत्पीड़ित राष्ट्र की दास्तान – यूपीएससी के लिए व्यापक विश्लेषण

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** गाजा पट्टी, एक छोटा सा भूभाग, दशकों से अंतर्राष्ट्रीय ध्यान का केंद्र रहा है, अक्सर संघर्ष, घेराबंदी और मानवीय संकट की सुर्खियों में। हाल ही में गाजा में लगातार बिगड़ते हालात ने इसे फिर से वैश्विक संवाद के केंद्र में ला दिया है। यह क्षेत्र एक जटिल भू-राजनीतिक पहेली का प्रतिनिधित्व करता है, जिसकी जड़ें इतिहास, धर्म, राष्ट्रवाद और अंतर्राष्ट्रीय कानून में गहराई तक जाती हैं। यह विषय UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह GS पेपर I – इतिहास (विश्व इतिहास), GS पेपर II – अंतर्राष्ट्रीय संबंध (भारत और उसके पड़ोस, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ, वैश्विक समूह), GS पेपर III – आंतरिक सुरक्षा (वैश्विक सुरक्षा चुनौतियाँ) और GS पेपर IV – नैतिकता (मानवीय संकट, युद्ध अपराध) से संबंधित है। गाजा की स्थिति केवल एक क्षेत्रीय विवाद नहीं है, बल्कि यह अंतर्राष्ट्रीय कानून, मानवाधिकारों और वैश्विक शांति के भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा भी है।


गाजा: एक उत्पीड़ित राष्ट्र की कहानी का विस्तृत विश्लेषण

विषय का परिचय

गाजा पट्टी, भूमध्य सागर के पूर्वी तट पर स्थित एक संकीर्ण भू-भाग, इजरायल और मिस्र के बीच सैंडविच है। यह दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है, जहाँ लगभग 2.3 मिलियन लोग रहते हैं, जिनमें से अधिकांश शरणार्थी या उनके वंशज हैं। दशकों से, गाजा संघर्ष और अभाव का पर्याय बन गया है, जिसे अक्सर “दुनिया की सबसे बड़ी खुली हवा वाली जेल” के रूप में वर्णित किया जाता है। इस क्षेत्र की कहानी केवल एक भौगोलिक इकाई की नहीं, बल्कि एक ऐसे समुदाय की है जिसने अनवरत रूप से उत्पीड़न, विस्थापन और मानवीय संकट का सामना किया है। गाजा की वर्तमान स्थिति को समझने के लिए, इसकी ऐतिहासिक, राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक जड़ों को गहराई से जानना आवश्यक है।

यह गाजा की त्रासदी की गहराई को समझने का एक प्रयास है, जो इसे सिर्फ एक समाचार शीर्षक से कहीं अधिक, एक मानवीय गाथा के रूप में प्रस्तुत करता है। हम इसके ऐतिहासिक संदर्भ, प्रमुख घटनाओं, वर्तमान चुनौतियों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए इसके निहितार्थों का विश्लेषण करेंगे, जिससे UPSC उम्मीदवारों को इस जटिल मुद्दे की समग्र समझ मिल सके।

प्रमुख प्रावधान / मुख्य बिंदु

गाजा की स्थिति को कई मुख्य बिंदुओं और ऐतिहासिक प्रावधानों के माध्यम से समझा जा सकता है:

  • गाजा का भौगोलिक और राजनीतिक महत्व:
    गाजा पट्टी लगभग 41 किलोमीटर लंबी और 6 से 12 किलोमीटर चौड़ी है, जिसका कुल क्षेत्रफल 365 वर्ग किलोमीटर है। इसकी रणनीतिक स्थिति इसे ऐतिहासिक व्यापार मार्गों और सैन्य गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण बनाती रही है। वर्तमान में, इसकी सीमाएँ इजरायल, मिस्र और भूमध्य सागर से लगती हैं। 2007 से, यह हमास (Hamas) के नियंत्रण में है, जो एक इस्लामी राजनीतिक और सैन्य संगठन है, जिसे कई पश्चिमी देशों द्वारा आतंकवादी समूह के रूप में नामित किया गया है। इजरायल और मिस्र ने गाजा पर कठोर नाकाबंदी लगा रखी है, जो माल और लोगों की आवाजाही को गंभीर रूप से प्रतिबंधित करती है, जिससे वहाँ की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है और मानवीय संकट गहरा गया है।
  • संघर्ष की ऐतिहासिक जड़ें:
    • ऑटोमन शासन और ब्रिटिश जनादेश (Ottoman Rule and British Mandate): आधुनिक गाजा की नींव 20वीं सदी की शुरुआत में रखी गई थी। प्रथम विश्व युद्ध के बाद, तुर्क साम्राज्य के पतन के साथ, फिलिस्तीन क्षेत्र ब्रिटिश जनादेश (British Mandate) के अधीन आ गया। इसी दौरान यहूदी राष्ट्रीय आंदोलन, ज़ायोनीवाद (Zionism) का उदय हुआ, जिसका लक्ष्य फिलिस्तीन में यहूदियों के लिए एक राष्ट्रीय घर स्थापित करना था, जबकि अरबों में फिलिस्तीनी राष्ट्रवाद भी आकार ले रहा था।
    • संयुक्त राष्ट्र विभाजन योजना (1947): द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन को एक यहूदी और एक अरब राज्य में विभाजित करने की योजना प्रस्तावित की। गाजा को अरब राज्य का हिस्सा होना था। यह योजना अरब देशों ने अस्वीकार कर दी।
    • 1948 का अरब-इजरायल युद्ध (अल-नकबा): इजरायल के निर्माण के तुरंत बाद, अरब-इजरायल युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध के परिणामस्वरूप सैकड़ों हजारों फिलिस्तीनी अपने घरों से विस्थापित हुए और गाजा में शरण ली, जिससे यह शरणार्थियों की बड़ी आबादी का केंद्र बन गया। युद्ध के बाद, गाजा मिस्र के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया। इस घटना को फिलिस्तीनियों द्वारा ‘अल-नकबा’ (विपदा) के रूप में जाना जाता है।
    • 1967 का छह दिवसीय युद्ध: 1967 के युद्ध में इजरायल ने गाजा पट्टी के साथ-साथ वेस्ट बैंक, पूर्वी यरुशलम, गोलान हाइट्स और सिनाई प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया। तब से, गाजा इजरायल के सैन्य कब्जे में रहा, जिसने यहाँ इजरायली बस्तियों का निर्माण किया।
    • पहली और दूसरी इंतिफादा (Intifada): फिलिस्तीनियों ने इजरायली कब्जे के खिलाफ कई जन-विद्रोह किए, जिन्हें इंतिफादा कहा जाता है। पहली इंतिफादा (1987-1993) और दूसरी इंतिफादा (2000-2005) ने गाजा और वेस्ट बैंक में भारी रक्तपात और विनाश देखा।
    • ओस्लो समझौता (Oslo Accords – 1993, 1995): इन समझौतों ने इजरायल और फिलिस्तीनी लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (PLO) के बीच एक शांति प्रक्रिया की शुरुआत की, जिससे फिलिस्तीनी अथॉरिटी (PA) का गठन हुआ। गाजा और वेस्ट बैंक में आंशिक स्वायत्तता दी गई, लेकिन पूर्ण संप्रभुता कभी नहीं मिली।
    • इजरायली अलगाव (2005) और हमास का नियंत्रण (2007): 2005 में, इजरायल ने गाजा से अपनी बस्तियों और सैनिकों को एकतरफा रूप से हटा लिया। इसके बाद 2006 के फिलिस्तीनी चुनावों में हमास ने जीत हासिल की, और 2007 में फतह (Fatah) के साथ हिंसक संघर्ष के बाद गाजा पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया। इसके जवाब में, इजरायल और मिस्र ने गाजा पर कठोर नाकाबंदी लगा दी।
  • वर्तमान मानवीय संकट:
    गाजा की नाकाबंदी ने इसे एक गंभीर मानवीय संकट में धकेल दिया है। यहाँ के लोग भोजन, पानी, बिजली, दवाइयों और बुनियादी सेवाओं की भारी कमी का सामना कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, गाजा की 80% से अधिक आबादी मानवीय सहायता पर निर्भर है। बेरोजगारी दर दुनिया में सबसे अधिक है, खासकर युवाओं में। स्वास्थ्य सेवा प्रणाली लगातार संघर्षों और संसाधनों की कमी से चरमराई हुई है। स्वच्छता सुविधाओं की कमी और दूषित पानी से बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय कानून और मानव अधिकार:
    गाजा की स्थिति अंतर्राष्ट्रीय कानून और मानवाधिकारों के दृष्टिकोण से अत्यंत विवादास्पद है। संयुक्त राष्ट्र और अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इजरायली कब्जे को जारी मानते हैं, भले ही 2005 में सैनिकों को वापस ले लिया गया हो। इजरायल पर चौथी जिनेवा कन्वेंशन के तहत एक “कब्जा करने वाली शक्ति” (Occupying Power) के रूप में अपनी जिम्मेदारियों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया जाता है, खासकर नाकाबंदी और नागरिकों पर बल प्रयोग के संबंध में। वहीं, हमास पर भी इजरायली नागरिकों पर रॉकेट हमले करने और मानव ढाल का उपयोग करने का आरोप है, जो अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है। संयुक्त राष्ट्र रिलीफ एंड वर्क्स एजेंसी फॉर फिलिस्तीन रिफ्यूजीस इन द नियर ईस्ट (UNRWA) गाजा में मानवीय सहायता का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया और भारत का रुख:
    विश्व के अधिकांश देश गाजा में मानवीय स्थिति पर चिंता व्यक्त करते रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने कई प्रस्ताव पारित किए हैं, लेकिन अक्सर उनका पालन नहीं किया जाता। अमेरिका इजरायल का एक प्रमुख सहयोगी है, जबकि यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र मानवीय सहायता प्रदान करते हैं और दो-राज्य समाधान का समर्थन करते हैं। भारत ऐतिहासिक रूप से फिलिस्तीनी उद्देश्य का एक मजबूत समर्थक रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में इजरायल के साथ उसके संबंध भी मजबूत हुए हैं। भारत ने हमेशा “दो-राज्य समाधान” (Two-State Solution) का समर्थन किया है, जिसमें एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य फिलिस्तीनी राज्य इजरायल के साथ शांति और सुरक्षा के साथ सह-अस्तित्व में हो। भारत मानवीय सहायता भी भेजता रहा है और संयम बरतने की अपील करता है।

पक्ष और विपक्ष (Implications and Perspectives)

गाजा की स्थिति के विभिन्न निहितार्थ और दृष्टिकोण हैं, जिन्हें समझना आवश्यक है:

सकारात्मक पहलू (Positives – Efforts and Hopes for Resolution)

गाजा की त्रासदी के बीच भी, कुछ ऐसे पहलू और प्रयास हैं जो आशा की किरण जगाते हैं, भले ही वे अक्सर चुनौतीपूर्ण हों:

  • अंतर्राष्ट्रीय मानवीय सहायता: संयुक्त राष्ट्र एजेंसियां, विशेषकर UNRWA, और विभिन्न गैर-सरकारी संगठन (NGOs) गाजा में लाखों लोगों को जीवन रक्षक सहायता, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह लाखों लोगों को भुखमरी और बीमारियों से बचाता है।
  • वैश्विक मानवाधिकार जागरूकता: गाजा की स्थिति लगातार वैश्विक मानवाधिकार संगठनों और मीडिया का ध्यान आकर्षित करती है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पर जवाबदेही और शांतिपूर्ण समाधान खोजने का दबाव बना रहता है। यह मानव अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ वैश्विक एकजुटता को दर्शाता है।
  • दो-राज्य समाधान के लिए कूटनीतिक प्रयास: अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का एक बड़ा हिस्सा, जिसमें संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और कई अरब देश शामिल हैं, अभी भी दो-राज्य समाधान को इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के स्थायी समाधान के रूप में देखते हैं। इसके लिए लगातार कूटनीतिक प्रयास जारी रहते हैं।
  • फिलिस्तीनी लचीलापन और पहचान: तमाम कठिनाइयों के बावजूद, गाजा के लोग अपनी पहचान, संस्कृति और प्रतिरोध की भावना को बनाए हुए हैं। यह उनके लिए आत्मनिर्णय के अधिकार की लड़ाई में एक आंतरिक शक्ति का स्रोत है।
  • अंतर्राष्ट्रीय कानून की प्रासंगिकता: गाजा की स्थिति अंतर्राष्ट्रीय कानून (विशेषकर मानवीय कानून) के सिद्धांतों की निरंतर प्रासंगिकता पर जोर देती है, भले ही उनका उल्लंघन होता रहे। यह युद्ध अपराधों, कब्जे और सामूहिक दंड जैसे मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय बहस को बढ़ावा देता है।

नकारात्मक पहलू / चिंताएँ (Negatives / Concerns)

गाजा की स्थिति के नकारात्मक निहितार्थ और चिंताएँ कहीं अधिक गहरी और व्यापक हैं:

  • भीषण मानवीय संकट: नाकाबंदी और बार-बार के संघर्षों के कारण गाजा में भोजन, पानी, बिजली, स्वास्थ्य सेवा और आवास की गंभीर कमी है। बच्चों में कुपोषण और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की दर बहुत अधिक है। यह एक सामूहिक दंड की स्थिति है जिसका खामियाजा निर्दोष नागरिकों को भुगतना पड़ता है।
  • राजनीतिक अस्थिरता और क्षेत्रीय प्रसार: गाजा में अस्थिरता पूरे मध्य पूर्व को प्रभावित करती है, जिससे कट्टरता और हिंसा को बढ़ावा मिल सकता है। हमास और इजरायल के बीच संघर्ष अक्सर लेबनान, सीरिया और ईरान जैसे क्षेत्रीय खिलाड़ियों को भी शामिल कर लेता है, जिससे बड़े पैमाने पर क्षेत्रीय संघर्ष का खतरा बना रहता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन और जवाबदेही की कमी: दोनों पक्षों पर अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून और मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगते रहे हैं। इजरायल पर कब्जे वाली शक्ति के रूप में अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन न करने, सामूहिक दंड और अत्यधिक बल प्रयोग का आरोप लगता है। वहीं, हमास पर रॉकेट हमलों और नागरिकों को ढाल के रूप में उपयोग करने का आरोप है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालयों और निकायों द्वारा जवाबदेही तय करने में विफलता न्याय की अवधारणा को कमजोर करती है।
  • शांति प्रक्रिया का गतिरोध: इजरायल और फिलिस्तीनियों के बीच गहरे अविश्वास, आंतरिक विभाजन (हमास और फतह के बीच), और बाहरी हस्तक्षेप ने शांति प्रक्रिया को गतिरोध में ला दिया है। दो-राज्य समाधान, जो कि एक व्यापक रूप से समर्थित प्रस्ताव है, वर्तमान में अव्यवहार्य प्रतीत होता है।
  • आर्थिक तबाही और विकास का अभाव: नाकाबंदी ने गाजा की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है। कृषि, मछली पकड़ने और छोटे उद्योगों को भारी नुकसान हुआ है, जिससे बेरोजगारी चरम पर है। पुनर्निर्माण के प्रयास लगातार संघर्षों से बाधित होते हैं, और विकास के लिए कोई दीर्घकालिक संभावना नजर नहीं आती।
  • मानसिक और सामाजिक आघात: बार-बार के संघर्षों और अस्थिरता ने गाजा के लोगों, विशेषकर बच्चों में गंभीर मनोवैज्ञानिक आघात पैदा किया है। पीढ़ियों से चली आ रही हिंसा का चक्र समाज के ताने-बाने को तोड़ रहा है।

चुनौतियाँ और आगे की राह (Challenges and Way Forward)

गाजा में शांति और स्थिरता स्थापित करने की राह में कई जटिल चुनौतियाँ हैं। इन चुनौतियों को समझना और उनसे निपटने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना बेहद महत्वपूर्ण है।

प्रमुख चुनौतियाँ:

  • गहरा अविश्वास और शत्रुता: इजरायलियों और फिलिस्तीनियों के बीच दशकों के संघर्ष ने गहरे अविश्वास और शत्रुता को जन्म दिया है, जिससे सार्थक वार्ता बहुत मुश्किल हो जाती है।
  • आंतरिक फिलिस्तीनी विभाजन: गाजा में हमास और वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी अथॉरिटी (फतह द्वारा शासित) के बीच गहरा राजनीतिक विभाजन एक एकीकृत फिलिस्तीनी आवाज को कमजोर करता है और किसी भी स्थायी समाधान तक पहुँचने में बाधा डालता है।
  • हमास की भूमिका और सुरक्षा चिंताएँ: इजरायल हमास को एक आतंकवादी संगठन मानता है और उसकी सुरक्षा चिंताओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हमास के रॉकेट हमले और हिंसा गाजा पर इजरायली नाकाबंदी को जारी रखने का एक कारण बनते हैं।
  • क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप: ईरान जैसे क्षेत्रीय खिलाड़ी हमास का समर्थन करते हैं, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका इजरायल का एक प्रमुख सहयोगी है। ये बाहरी हित अक्सर स्थिति को और जटिल बना देते हैं।
  • मानवीय संकट और पुनर्निर्माण: गाजा में बार-बार होने वाले संघर्षों से बुनियादी ढाँचा नष्ट हो जाता है और मानवीय संकट गहराता है, जिससे पुनर्निर्माण के प्रयास लगातार बाधित होते हैं।
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी: दोनों पक्षों में और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भी, इस जटिल मुद्दे के लिए एक साहसिक और स्थायी राजनीतिक समाधान खोजने के लिए आवश्यक मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी दिखाई देती है।

आगे की राह: इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें केवल सैन्य या राजनीतिक समाधानों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय मानवीय, आर्थिक और सामाजिक पहलुओं को भी शामिल किया जाना चाहिए।

  1. तत्काल मानवीय सहायता और नाकाबंदी में ढील: गाजा में जीवन रक्षक सहायता की निर्बाध पहुँच सुनिश्चित करना सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। नाकाबंदी में पर्याप्त ढील देना आवश्यक है ताकि आवश्यक वस्तुओं और निर्माण सामग्री की आपूर्ति हो सके, जिससे पुनर्निर्माण और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिले।
  2. स्थायी संघर्ष विराम और डी-एस्केलेशन: सभी पक्षों को हिंसा तुरंत बंद करनी चाहिए और तनाव को कम करने के लिए कदम उठाने चाहिए। दीर्घकालिक संघर्ष विराम तंत्र स्थापित किए जाने चाहिए, जिनकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निगरानी की जा सके।
  3. पुनर्जीवित शांति प्रक्रिया और दो-राज्य समाधान: अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को दो-राज्य समाधान के लिए एक विश्वसनीय और समयबद्ध शांति प्रक्रिया को फिर से शुरू करने के लिए ठोस प्रयास करने चाहिए। इसमें एक व्यवहार्य फिलिस्तीनी राज्य का निर्माण शामिल है, जिसकी राजधानी पूर्वी यरुशलम हो और जो इजरायल के साथ शांति और सुरक्षा में सह-अस्तित्व में हो।
  4. फिलिस्तीनी एकता: हमास और फतह के बीच आंतरिक सुलह फिलिस्तीनी लोगों के लिए एक एकीकृत और प्रभावी नेतृत्व प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण है, जो शांति वार्ताओं में एक मजबूत स्थिति प्रस्तुत कर सके।
  5. अंतर्राष्ट्रीय कानून का पालन और जवाबदेही: सभी पक्षों को अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून और मानवाधिकारों का सख्ती से पालन करना चाहिए। युद्ध अपराधों और मानवाधिकारों के हनन के सभी आरोपों की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और दोषियों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।
  6. गाजा का आर्थिक पुनर्निर्माण और विकास: गाजा की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए एक व्यापक अंतर्राष्ट्रीय योजना की आवश्यकता है, जिसमें बुनियादी ढांचे का पुनर्निर्माण, रोजगार सृजन और व्यापार संबंधों को बहाल करना शामिल हो। यह निवासियों को आशा और स्थिरता प्रदान करेगा।
  7. क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: मध्य पूर्व के देशों, संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ, अमेरिका और अन्य प्रमुख शक्तियों को इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष को हल करने के लिए एक समन्वित दृष्टिकोण अपनाने के लिए मिलकर काम करना चाहिए, जिसमें क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता भी शामिल हो।
  8. पीपल-टू-पीपल संपर्क: लंबे समय में, दोनों समुदायों के बीच समझ और विश्वास बनाने के लिए लोगों-से-लोगों के बीच संपर्क और संवाद को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. गाजा पट्टी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. यह भूमध्य सागर के पूर्वी तट पर स्थित है।
    2. इसकी सीमाएँ इजरायल और लेबनान से लगती हैं।
    3. 2007 से, यह हमास के नियंत्रण में है।

    उपरोक्त में से कितने कथन सही हैं?

    • (a) केवल एक
    • (b) केवल दो
    • (c) सभी तीन
    • (d) कोई नहीं

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: कथन (i) और (iii) सही हैं। गाजा पट्टी की सीमाएँ इजरायल और मिस्र से लगती हैं, न कि लेबनान से। इसलिए, कथन (ii) गलत है।

  2. ‘अल-नकबा’ शब्द, जो इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के संदर्भ में अक्सर उपयोग किया जाता है, निम्नलिखित में से किससे संबंधित है?

    • (a) 1967 के छह दिवसीय युद्ध में इजरायल की जीत
    • (b) 1948 के अरब-इजरायल युद्ध के दौरान फिलिस्तीनियों का विस्थापन
    • (c) हमास द्वारा गाजा पर नियंत्रण स्थापित करना
    • (d) ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: ‘अल-नकबा’ (The Catastrophe) शब्द का उपयोग 1948 के अरब-इजरायल युद्ध के परिणामस्वरूप सैकड़ों हजारों फिलिस्तीनियों के विस्थापन और अपनी मातृभूमि से उनके निर्वासन को संदर्भित करने के लिए किया जाता है।

  3. संयुक्त राष्ट्र रिलीफ एंड वर्क्स एजेंसी फॉर फिलिस्तीन रिफ्यूजीस इन द नियर ईस्ट (UNRWA) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. यह इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष में शामिल सभी पक्षों को मानवीय सहायता प्रदान करता है।
    2. यह फिलिस्तीनी शरणार्थियों को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सेवाएँ प्रदान करता है।
    3. इसका संचालन 1949 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा किया गया था।

    उपरोक्त में से कितने कथन सही हैं?

    • (a) केवल एक
    • (b) केवल दो
    • (c) सभी तीन
    • (d) कोई नहीं

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: कथन (ii) और (iii) सही हैं। UNRWA विशेष रूप से फिलिस्तीनी शरणार्थियों को मानवीय सहायता और सेवाएँ प्रदान करता है, न कि सभी पक्षों को। इसलिए, कथन (i) गलत है।

  4. ओस्लो समझौता, जो इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था, निम्नलिखित में से किस संगठन के बीच हस्ताक्षरित किया गया था?

    • (a) इजरायल और हमास
    • (b) इजरायल और फिलिस्तीनी लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (PLO)
    • (c) संयुक्त राष्ट्र और फिलिस्तीनी अथॉरिटी (PA)
    • (d) इजरायल और मिस्र

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: ओस्लो समझौता इजरायल और फिलिस्तीनी लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (PLO) के बीच हस्ताक्षरित किया गया था।

  5. चौथी जिनेवा कन्वेंशन (Fourth Geneva Convention) का प्राथमिक उद्देश्य क्या है, और यह गाजा की स्थिति से कैसे संबंधित है?

    • (a) युद्धबंदियों के अधिकारों की रक्षा करना।
    • (b) समुद्र में युद्ध के दौरान नागरिकों की रक्षा करना।
    • (c) कब्जे वाले क्षेत्रों में नागरिकों की सुरक्षा करना।
    • (d) रासायनिक हथियारों के उपयोग को प्रतिबंधित करना।

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: चौथी जिनेवा कन्वेंशन का उद्देश्य सशस्त्र संघर्ष के दौरान नागरिकों की सुरक्षा करना है, विशेष रूप से कब्जे वाले क्षेत्रों में। गाजा की स्थिति में, इजरायल को एक “कब्जा करने वाली शक्ति” के रूप में अपनी जिम्मेदारियों का पालन करने के लिए कहा जाता है, भले ही 2005 में सैनिकों को हटा लिया गया हो।

  6. भारत की विदेश नीति के संदर्भ में, इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के संबंध में भारत का पारंपरिक रुख क्या रहा है?

    • (a) इजरायल का बिना शर्त समर्थन।
    • (b) फिलिस्तीन के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन करना और दो-राज्य समाधान का पक्षधर होना।
    • (c) संघर्ष में तटस्थ रहना और किसी भी पक्ष का समर्थन न करना।
    • (d) अरब राज्यों के रुख का पालन करना।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: भारत ने ऐतिहासिक रूप से फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन किया है और एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य फिलिस्तीनी राज्य के साथ ‘दो-राज्य समाधान’ का पक्षधर रहा है, जो इजरायल के साथ शांति और सुरक्षा से सह-अस्तित्व में हो।

  7. निम्नलिखित में से कौन सा वाक्यांश गाजा पट्टी की वर्तमान स्थिति का सबसे अच्छा वर्णन करता है?

    • (a) एक सफल आर्थिक केंद्र।
    • (b) एक आत्मनिर्भर कृषि क्षेत्र।
    • (c) एक घेराबंदी वाला क्षेत्र जो गंभीर मानवीय संकट का सामना कर रहा है।
    • (d) एक पर्यटन स्थल।

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: गाजा पट्टी इजरायल और मिस्र द्वारा लगाई गई कठोर नाकाबंदी के कारण गंभीर मानवीय संकट का सामना कर रहा है, जहाँ भोजन, पानी और आवश्यक सेवाओं की भारी कमी है।

  8. छह दिवसीय युद्ध (1967) के परिणामस्वरूप इजरायल ने निम्नलिखित में से किस क्षेत्र पर कब्जा नहीं किया था?

    • (a) गाजा पट्टी
    • (b) वेस्ट बैंक
    • (c) सिनाई प्रायद्वीप
    • (d) लेबनान

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: 1967 के छह दिवसीय युद्ध में इजरायल ने गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक, पूर्वी यरुशलम, गोलान हाइट्स और सिनाई प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया था। लेबनान पर कब्जा नहीं किया गया था।

  9. निम्नलिखित में से कौन सा संघर्ष इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष का हिस्सा नहीं रहा है?

    • (a) पहली इंतिफादा
    • (b) 1948 का अरब-इजरायल युद्ध
    • (c) स्वेज संकट (1956)
    • (d) दूसरी इंतिफादा

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: स्वेज संकट (1956) मुख्य रूप से मिस्र, ब्रिटेन, फ्रांस और इजरायल के बीच स्वेज नहर के नियंत्रण को लेकर था, हालांकि इजरायल इसमें शामिल था, यह सीधे तौर पर इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के मुख्य घटनाओं में नहीं गिना जाता, जबकि अन्य विकल्प सीधे इस संघर्ष से संबंधित हैं।

  10. गाजा पट्टी में हमास के सत्ता में आने का प्रमुख कारण क्या था?

    • (a) संयुक्त राष्ट्र द्वारा सीधे सत्ता हस्तांतरण।
    • (b) 2006 के फिलिस्तीनी संसदीय चुनावों में हमास की जीत।
    • (c) मिस्र द्वारा सैन्य हस्तक्षेप।
    • (d) इजरायल के साथ सीधा शांति समझौता।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: 2006 के फिलिस्तीनी संसदीय चुनावों में हमास ने जीत हासिल की थी, और 2007 में फतह के साथ हिंसक संघर्ष के बाद गाजा पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. “गाजा पट्टी, वैश्विक भू-राजनीति में एक ज्वलंत मुद्दा है, जिसकी जड़ें इतिहास, राष्ट्रवाद और अंतर्राष्ट्रीय कानून में गहराई तक जाती हैं।” इस कथन के आलोक में, गाजा संघर्ष की ऐतिहासिक जड़ों और वर्तमान मानवीय संकट के प्रमुख कारणों का विस्तार से विश्लेषण करें। (250 शब्द)
  2. इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के स्थायी समाधान के लिए ‘दो-राज्य समाधान’ की अवधारणा को एक व्यवहार्य विकल्प माना जाता रहा है। वर्तमान क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में इस समाधान की व्यवहार्यता और चुनौतियों का समालोचनात्मक मूल्यांकन करें, विशेष रूप से गाजा की स्थिति के संदर्भ में। (250 शब्द)
  3. भारत ने इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के प्रति ऐतिहासिक रूप से एक सुसंगत नीति अपनाई है। इस संघर्ष पर भारत के रुख की ऐतिहासिक विकास यात्रा पर प्रकाश डालें और उन कारकों की पहचान करें जिन्होंने हाल के वर्षों में इसमें बदलाव लाया है। (150 शब्द)
  4. चौथी जिनेवा कन्वेंशन के तहत एक ‘कब्जा करने वाली शक्ति’ की जिम्मेदारियों की व्याख्या करें। गाजा पट्टी के संबंध में इस कन्वेंशन के संभावित उल्लंघन और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए इसके निहितार्थों का विश्लेषण करें। (250 शब्द)

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