क्या है ‘ऑपरेशन सिंदूर’? ट्रम्प के दावों पर संसद में क्यों चाहिए PM का जवाब?

क्या है ‘ऑपरेशन सिंदूर’? ट्रम्प के दावों पर संसद में क्यों चाहिए PM का जवाब?

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कुछ बयानों ने भारतीय राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। ट्रम्प ने दावा किया है कि भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2020 के अमेरिकी चुनावों में उनकी मदद करने की कोशिश की थी, और उनके संबंध मोदी के साथ बहुत अच्छे थे। इन दावों पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है, विशेषकर वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने, जिन्होंने सरकार से इन बयानों पर स्पष्टीकरण मांगा है। रमेश ने व्यंग्यात्मक रूप से ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संसद में सीधे जवाब देने की मांग की है, यह कहते हुए कि “कोई सब्स्टीट्यूट बल्लेबाज नहीं चलेगा”। यह पूरा मामला न केवल भारतीय राजनीति में विपक्ष की भूमिका, सरकार की जवाबदेही और संसदीय परंपराओं पर प्रकाश डालता है, बल्कि भारत की विदेश नीति, विशेषकर गुटनिरपेक्षता के सिद्धांतों और वैश्विक मंच पर उसकी छवि पर भी महत्वपूर्ण सवाल खड़े करता है।

पूरा मामला क्या है? (What is the Whole Matter?)

डोनाल्ड ट्रम्प, अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान और उसके बाद भी, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपने ‘खास रिश्ते’ को अक्सर उजागर करते रहे हैं। हाल ही में, उन्होंने एक चुनावी रैली या साक्षात्कार में दावा किया कि भारत ने, और विशेष रूप से पीएम मोदी ने, 2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में उनकी मदद करने की कोशिश की थी। उन्होंने यह भी कहा कि उनके मोदी के साथ ‘बहुत अच्छे’ संबंध थे, और वह मोदी को पसंद करते हैं।

ट्रम्प के ये बयान ऐसे समय में आए हैं जब भारत में लोकसभा चुनाव चल रहे हैं और विभिन्न देशों के साथ भारत के संबंधों पर कड़ी नजर रखी जा रही है। इन दावों को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने गंभीरता से लिया और सरकार से स्पष्टीकरण की मांग की। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने तीन प्रमुख सवाल उठाए:

  1. क्या भारत ने वास्तव में ट्रम्प को 2020 के अमेरिकी चुनाव में मदद करने की कोशिश की? यह आरोप भारत की लोकतांत्रिक अखंडता और अन्य देशों के आंतरिक मामलों में गैर-हस्तक्षेप की उसकी स्थापित विदेश नीति के सिद्धांत के खिलाफ है।
  2. यदि ऐसा था, तो यह किसके निर्देश पर हुआ? क्या यह सरकार का आधिकारिक रुख था या किसी विशेष समूह की निजी पहल?
  3. सरकार इस मामले पर अब तक चुप क्यों है? कांग्रेस का आरोप है कि सरकार इस संवेदनशील मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है, जिससे कई तरह की अटकलें और संदेह पैदा हो रहे हैं।

जयराम रमेश ने विशेष रूप से संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सीधा जवाब मांगा। उनका जोर इस बात पर था कि केवल प्रधानमंत्री ही इस मामले पर संतोषजनक स्पष्टीकरण दे सकते हैं, और कोई अन्य मंत्री या अधिकारी इस पर ‘सब्स्टीट्यूट बल्लेबाज’ के रूप में स्वीकार्य नहीं होगा। यह मांग संसदीय जवाबदेही के उच्चतम स्तर को इंगित करती है, जहाँ प्रमुख नीतिगत मामलों पर देश के मुखिया से सीधे जवाब की अपेक्षा की जाती है।

“ऑपरेशन सिंदूर” का निहितार्थ (Implications of “Operation Sindoor”)

“ऑपरेशन सिंदूर” एक शाब्दिक सरकारी ऑपरेशन नहीं है, बल्कि यह जयराम रमेश द्वारा इस्तेमाल किया गया एक व्यंग्यात्मक और प्रतीकात्मक वाक्यांश है। इसका उपयोग शायद सरकार की किसी कथित गुप्त या सुनियोजित ‘अभियान’ या ‘प्रयास’ को संदर्भित करने के लिए किया गया है, जिसका उद्देश्य किसी विशेष राजनीतिक या कूटनीतिक लक्ष्य को प्राप्त करना था, या शायद ट्रम्प के दावों के संदर्भ में सरकार की छवि को ‘सिंदूर’ लगाकर (यानी, एक पवित्र और शुभ रंग के रूप में) चमकाने की कोशिश को दर्शाने के लिए।

भारतीय संदर्भ में, ‘सिंदूर’ शुभता, वैवाहिक स्थिति और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। इसका उपयोग राजनीतिक बयानबाजी में करना, शायद कांग्रेस के इस आरोप को रेखांकित करता है कि सरकार अपनी छवि चमकाने या किसी खास एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए सांस्कृतिक प्रतीकों या भावनाओं का उपयोग कर रही है। यह एक प्रकार का व्यंग्य है, जो सरकार की कथित चालों और रणनीति पर सवाल उठाता है। यह वाक्यांश सरकार के प्रति अविश्वास और पारदर्शिता की कमी के आरोप को व्यक्त करता है।

यह राजनीतिक बयानबाजी का एक हिस्सा है, जहाँ विपक्षी दल सरकार पर दबाव बनाने और जनता का ध्यान आकर्षित करने के लिए नए और आकर्षक वाक्यांशों का प्रयोग करते हैं। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का उपयोग इस पूरे विवाद को एक रहस्यमय और गहरे राजनीतिक षड्यंत्र के रूप में प्रस्तुत करने का एक प्रयास हो सकता है, जिससे आम जनता और मीडिया का ध्यान इस पर केंद्रित हो सके।

संसदीय लोकतंत्र में जवाबदेही का महत्व (Importance of Accountability in Parliamentary Democracy)

जयराम रमेश की प्रधानमंत्री से सीधे जवाब की मांग, भारतीय संसदीय लोकतंत्र में जवाबदेही के मूल सिद्धांत पर आधारित है। भारत में, एक संसदीय प्रणाली है जहाँ कार्यपालिका (सरकार) विधायिका (संसद) के प्रति जवाबदेह होती है। इस संदर्भ में, ‘जवाबदेही’ का अर्थ है कि सरकार को अपने कार्यों, नीतियों और निर्णयों के लिए संसद के सामने स्पष्टीकरण देना होता है।

जवाबदेही के प्रमुख पहलू:

  1. सामूहिक उत्तरदायित्व (Collective Responsibility): भारतीय संविधान का अनुच्छेद 75(3) स्पष्ट करता है कि मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। इसका मतलब है कि यदि सरकार संसद में विश्वास खो देती है, तो उसे इस्तीफा देना पड़ता है। प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद का मुखिया होने के नाते, सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख उत्तरदायी व्यक्ति होते हैं।
  2. संसदीय उपकरण (Parliamentary Devices): प्रश्नकाल, शून्यकाल, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव और विभिन्न बहसें जैसे संसदीय उपकरण सांसदों को सरकार से सवाल पूछने और उसे जवाबदेह ठहराने का अवसर देते हैं। जयराम रमेश की मांग इन उपकरणों के महत्व को रेखांकित करती है।
  3. प्रधानमंत्री का विशेष स्थान: प्रधानमंत्री न केवल सरकार के मुखिया होते हैं, बल्कि वह देश के सर्वोच्च निर्वाचित प्रतिनिधि भी होते हैं। विदेश नीति जैसे संवेदनशील मामलों पर उनका सीधा बयान न केवल देश के भीतर विश्वसनीयता प्रदान करता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी भारत की स्थिति को स्पष्ट करता है। ‘कोई सब्स्टीट्यूट बल्लेबाज नहीं चलेगा’ वाली उपमा इस बात पर जोर देती है कि प्रधानमंत्री का पद किसी और से प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता, खासकर जब राष्ट्रीय महत्व के गंभीर आरोप लगे हों। यह खेल जगत की शब्दावली का एक सशक्त उपयोग है, जो बताता है कि जब टीम का कप्तान (प्रधानमंत्री) मैदान पर हो, तो किसी और को उसकी जगह नहीं लेनी चाहिए, खासकर महत्वपूर्ण क्षणों में।
  4. पारदर्शिता और विश्वास: जनता का सरकार पर विश्वास बनाए रखने के लिए पारदर्शिता आवश्यक है। जब कोई विदेशी नेता भारत की गतिविधियों पर गंभीर आरोप लगाता है, तो सरकार का स्पष्ट और त्वरित जवाब देना महत्वपूर्ण हो जाता है। यह न केवल घरेलू राजनीतिक बहस को शांत करता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को भी सुरक्षित रखता है।

भारत की विदेश नीति और गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत (India’s Foreign Policy and Principle of Non-Alignment)

ट्रम्प के दावों से भारत की विदेश नीति के मूलभूत सिद्धांतों पर भी सवाल उठे हैं, विशेषकर गुटनिरपेक्षता (Non-Alignment) और अन्य देशों के आंतरिक मामलों में गैर-हस्तक्षेप (Non-interference in Internal Affairs of Other Countries) के सिद्धांत पर।

गुटनिरपेक्षता का ऐतिहासिक संदर्भ:

स्वतंत्रता के बाद, भारत ने दुनिया को दो प्रमुख शक्ति गुटों (अमेरिकी नेतृत्व वाला पूंजीवादी गुट और सोवियत संघ के नेतृत्व वाला समाजवादी गुट) में बंटे देखा। ऐसे में, भारत ने किसी भी गुट में शामिल न होने का फैसला किया और अपनी स्वतंत्र विदेश नीति अपनाई, जिसे गुटनिरपेक्षता कहा गया। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार निर्णय ले सके और किसी भी महाशक्ति के दबाव में न आए।

गुटनिरपेक्षता का मतलब निष्क्रियता नहीं था, बल्कि यह सक्रिय रूप से वैश्विक शांति, विकास और संप्रभुता के लिए काम करने का एक मंच था। भारत ने हमेशा संप्रभुता, समानता और एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में गैर-हस्तक्षेप के सिद्धांतों का पालन करने पर जोर दिया है।

वर्तमान संदर्भ में चुनौतियां:

एक पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति का यह दावा कि भारत ने उन्हें चुनाव में मदद करने की कोशिश की, यदि सत्य होता, तो यह भारत की गुटनिरपेक्षता और गैर-हस्तक्षेप की नीति का सीधा उल्लंघन होता। यह भारत की अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाता है और उसकी छवि को एक ऐसे देश के रूप में पेश कर सकता है जो विदेशी चुनावों में हेरफेर करने का प्रयास करता है।

हालांकि, भारत सरकार ने ट्रम्प के दावों पर कोई सीधा या आधिकारिक बयान नहीं दिया है, जिससे विपक्ष को सवाल उठाने का अवसर मिला है। भारत-अमेरिका संबंध वर्तमान में एक रणनीतिक साझेदारी में बदल गए हैं, जिसमें व्यापार, रक्षा और भू-राजनीतिक सहयोग शामिल है। ऐसे में, ट्रम्प के दावे इन संबंधों में एक अनावश्यक तनाव या गलतफहमी पैदा कर सकते हैं।

भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी विदेश नीति की स्पष्टता और अखंडता को बनाए रखे। किसी भी विदेशी चुनाव में हस्तक्षेप का आरोप, चाहे वह निराधार ही क्यों न हो, भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकता है और भविष्य के कूटनीतिक संबंधों को प्रभावित कर सकता है। भारत को यह स्पष्ट करना होगा कि उसकी नीति सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने की है और वह किसी भी देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता है।

UPSC के लिए प्रासंगिकता (Relevance for UPSC)

यह पूरा घटनाक्रम UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न खंडों के लिए अत्यधिक प्रासंगिक है:

सामान्य अध्ययन-II (General Studies-II): राजव्यवस्था, शासन और अंतर्राष्ट्रीय संबंध

  • भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity):
    • संसदीय प्रणाली: कार्यपालिका का विधायिका के प्रति उत्तरदायित्व, प्रश्नकाल, शून्यकाल, बहसें, और प्रधानमंत्री की भूमिका।
    • सरकार की जवाबदेही: सरकार को जवाबदेह ठहराने में विपक्ष की भूमिका, विश्वास और अविश्वास प्रस्ताव।
    • कार्यपालिका और विधायिका के बीच संबंध: संतुलन और नियंत्रण की प्रणाली।
    • लोकतांत्रिक मूल्य: पारदर्शिता, सुशासन, सूचना का अधिकार।
  • अंतर्राष्ट्रीय संबंध (International Relations):
    • भारत की विदेश नीति: गुटनिरपेक्षता का सिद्धांत, संप्रभुता, अन्य देशों के आंतरिक मामलों में गैर-हस्तक्षेप।
    • भारत-अमेरिका संबंध: रणनीतिक साझेदारी, रक्षा सहयोग, व्यापार, भू-राजनीतिक आयाम।
    • अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की छवि: विश्वसनीयता, नैतिक स्थिति।
    • भू-राजनीतिक घटनाक्रम: वैश्विक शक्तियों के बीच संबंध और उनके भारत पर प्रभाव।

सामान्य अध्ययन-IV (General Studies-IV): नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा और अभिरुचि

  • सत्यनिष्ठा और पारदर्शिता: सार्वजनिक जीवन में सत्यनिष्ठा का महत्व, दावों पर स्पष्टता की आवश्यकता।
  • जवाबदेही और नैतिक शासन: राजनेताओं और सरकारों की नैतिक जिम्मेदारी।
  • नैतिक दुविधाएँ: जब राष्ट्रीय हित और व्यक्तिगत संबंधों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है।

आगे की राह (Way Forward)

  1. स्पष्ट और त्वरित संचार: भारत सरकार को ऐसे संवेदनशील मामलों पर समय पर और स्पष्ट संचार बनाए रखना चाहिए। यह न केवल घरेलू राजनीतिक बहस को शांत करेगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्थिति को भी मजबूत करेगा।
  2. संसदीय प्रक्रियाओं का सम्मान: संसद बहस और जवाबदेही का सर्वोच्च मंच है। सरकार को विपक्ष के सवालों का सम्मान करना चाहिए और प्रधानमंत्री को स्वयं सदन में उपस्थित होकर राष्ट्रीय महत्व के मामलों पर स्पष्टीकरण देना चाहिए, ताकि संसदीय परंपराओं और जवाबदेही के सिद्धांत को मजबूत किया जा सके।
  3. विदेश नीति की अखंडता बनाए रखना: भारत को अपनी विदेश नीति के मूलभूत सिद्धांतों, जैसे गुटनिरपेक्षता और गैर-हस्तक्षेप, को दृढ़ता से बनाए रखना चाहिए। किसी भी ऐसे आरोप का खंडन करना महत्वपूर्ण है जो इन सिद्धांतों का उल्लंघन करता हो, ताकि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की विश्वसनीयता बनी रहे।
  4. जन जागरूकता और शिक्षा: नागरिकों को भी विदेश नीति के सिद्धांतों और संसदीय प्रक्रियाओं के बारे में शिक्षित होना चाहिए ताकि वे राजनीतिक बयानों का उचित विश्लेषण कर सकें और सरकार से उचित जवाबदेही की मांग कर सकें।
  5. मीडिया की भूमिका: मीडिया को भी सनसनीखेज रिपोर्टिंग से बचते हुए, तथ्यों पर आधारित और विश्लेषणात्मक कवरेज प्रदान करनी चाहिए ताकि जनता को सही जानकारी मिल सके।

निष्कर्ष (Conclusion)

डोनाल्ड ट्रम्प के दावों और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया ने भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है। यह सिर्फ एक राजनीतिक नोकझोंक से कहीं बढ़कर है, यह संसदीय जवाबदेही, विदेश नीति के सिद्धांतों की अखंडता और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की छवि से जुड़ा एक गंभीर मुद्दा है। एक मजबूत लोकतंत्र के लिए, सरकार का पारदर्शी होना और विपक्ष के सवालों का सामना करना आवश्यक है। यह घटनाक्रम यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए भारतीय राजव्यवस्था, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और नीतिशास्त्र के सिद्धांतों को गहराई से समझने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान करता है, ताकि वे देश के शासन और वैश्विक स्थिति से जुड़े जटिल मुद्दों का विश्लेषण कर सकें।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. प्रश्न 1: भारतीय संसदीय प्रणाली में, ‘सामूहिक उत्तरदायित्व’ का सिद्धांत कहता है कि मंत्रिपरिषद व्यक्तिगत रूप से प्रधानमंत्री के प्रति उत्तरदायी होती है।

    1. कथन 1 सही है।
    2. कथन 1 गलत है।
    3. कथन 1 आंशिक रूप से सही है।
    4. उपरोक्त में से कोई नहीं।

    उत्तर: b)
    व्याख्या: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 75(3) के अनुसार, मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है, न कि व्यक्तिगत रूप से प्रधानमंत्री के प्रति। इसका अर्थ है कि यदि एक मंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित होता है, तो पूरी मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना पड़ता है।

  2. प्रश्न 2: भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति का मुख्य उद्देश्य शीत युद्ध के दौरान किसी भी प्रमुख शक्ति गुट में शामिल न होना था।

    1. सही।
    2. गलत।

    उत्तर: a)
    व्याख्या: गुटनिरपेक्षता की नीति का मूल उद्देश्य भारत को शीत युद्ध के दौरान अमेरिकी या सोवियत ब्लॉक में शामिल होने से बचाना और अपनी स्वतंत्र विदेश नीति बनाए रखना था।

  3. प्रश्न 3: भारतीय संसद में, ‘प्रश्नकाल’ वह समय होता है जब सांसद मंत्रियों से प्रश्न पूछते हैं और मौखिक उत्तरों की अपेक्षा करते हैं।

    1. कथन सही है।
    2. कथन गलत है।

    उत्तर: a)
    व्याख्या: प्रश्नकाल संसद की कार्यवाही का पहला घंटा होता है, जिसमें सांसद सरकार से प्रश्न पूछते हैं और मंत्रियों को उनके उत्तर देने होते हैं। इसमें तारांकित, अतारांकित और अल्प सूचना प्रश्न शामिल होते हैं।

  4. प्रश्न 4: ‘ऑपरेशन सिंदूर’ हाल ही में भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया एक महत्वपूर्ण रक्षा अभियान है।

    1. सही।
    2. गलत।

    उत्तर: b)
    व्याख्या: ‘ऑपरेशन सिंदूर’ कोई वास्तविक रक्षा अभियान नहीं है; यह जयराम रमेश द्वारा इस्तेमाल किया गया एक व्यंग्यात्मक और प्रतीकात्मक वाक्यांश है जो सरकार की कथित चालों या रणनीतियों को संदर्भित करता है।

  5. प्रश्न 5: लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर केवल प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना होता है।

    1. सही।
    2. गलत।

    उत्तर: b)
    व्याख्या: अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में पारित होने पर पूरी मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना पड़ता है, क्योंकि मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है।

  6. प्रश्न 6: भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत ‘पंचशील’ के सिद्धांतों पर आधारित है, जिसमें एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में गैर-हस्तक्षेप शामिल है।

    1. सही।
    2. गलत।

    उत्तर: a)
    व्याख्या: पंचशील के सिद्धांत, जो 1954 में भारत और चीन के बीच एक समझौते से उत्पन्न हुए थे, सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांत हैं, जिनमें एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में गैर-हस्तक्षेप प्रमुख है।

  7. प्रश्न 7: भारत और अमेरिका के बीच “2+2” वार्ता रक्षा और विदेश मंत्रियों के बीच आयोजित की जाती है।

    1. सही।
    2. गलत।

    उत्तर: a)
    व्याख्या: 2+2 वार्ता एक कूटनीतिक प्रारूप है जिसमें दो देशों के रक्षा और विदेश मंत्री एक साथ मिलते हैं। भारत यह वार्ता अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और रूस जैसे देशों के साथ आयोजित करता है।

  8. प्रश्न 8: भारतीय संसद में, ‘शून्यकाल’ वह समय होता है जब सदस्य बिना किसी पूर्व सूचना के सार्वजनिक महत्व के मामले उठा सकते हैं।

    1. सही।
    2. गलत।

    उत्तर: a)
    व्याख्या: शून्यकाल प्रश्नकाल के ठीक बाद शुरू होता है और इसमें सदस्य बिना किसी पूर्व सूचना के महत्वपूर्ण मुद्दे उठा सकते हैं। यह भारत की संसदीय प्रक्रिया की एक अनूठी विशेषता है।

  9. प्रश्न 9: यदि कोई विदेशी राष्ट्राध्यक्ष किसी भारतीय चुनाव में हस्तक्षेप का दावा करता है, तो यह भारत की संप्रभुता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए चुनौती हो सकती है।

    1. सही।
    2. गलत।

    उत्तर: a)
    व्याख्या: किसी भी देश के चुनाव में बाहरी हस्तक्षेप का दावा उस देश की संप्रभुता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की अखंडता पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।

  10. प्रश्न 10: वर्तमान में, भारत की विदेश नीति मुख्य रूप से गुटनिरपेक्षता के पुराने सिद्धांतों का पालन करते हुए किसी भी वैश्विक शक्ति के साथ गहरे रणनीतिक संबंधों से बचती है।

    1. सही।
    2. गलत।

    उत्तर: b)
    व्याख्या: जबकि गुटनिरपेक्षता भारत की विदेश नीति का एक ऐतिहासिक आधार रहा है, वर्तमान में भारत ‘बहु-संरेखण’ की नीति का पालन करता है, जिसमें वह अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार विभिन्न वैश्विक शक्तियों (जैसे अमेरिका, रूस, EU) के साथ गहरे रणनीतिक संबंध बनाता है, बिना किसी एक गुट में शामिल हुए।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. “संसद में प्रधानमंत्री की सीधी प्रतिक्रिया की मांग भारतीय संसदीय प्रणाली में जवाबदेही के उच्चतम स्तर को दर्शाती है।” ट्रम्प के दावों पर जयराम रमेश की टिप्पणी के संदर्भ में इस कथन का आलोचनात्मक विश्लेषण करें।
  2. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे व्यंग्यात्मक राजनीतिक वाक्यांशों का उपयोग भारतीय राजनीति में सरकार पर दबाव बनाने और सार्वजनिक विमर्श को प्रभावित करने में कितना प्रभावी हो सकता है? विस्तार से चर्चा करें।
  3. ट्रम्प जैसे विदेशी नेताओं के बयान भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति और उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि को किस प्रकार प्रभावित कर सकते हैं? भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता और गैर-हस्तक्षेप के सिद्धांत को ऐसे दावों के बावजूद कैसे बनाए रख सकता है?

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