क्या हिंदू धर्म में समानता धर्मांतरण को रोकेगी? एक गहन विश्लेषण
चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
हाल ही में, उत्तर प्रदेश में एक समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद ने एक विवादास्पद बयान दिया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि “जब तक हिंदू धर्म में समानता नहीं आएगी, तब तक देश में धर्मांतरण नहीं रुकेगा।” इस बयान ने देश की राजनीति और सामाजिक ताने-बाने में एक नई बहस छेड़ दी है। यह मुद्दा न केवल राजनीतिक दलों के बीच ध्रुवीकरण का कारण बन रहा है, बल्कि यह भारत जैसे विविध और बहुलवादी समाज में धार्मिक स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय और राष्ट्रीय एकता जैसे महत्वपूर्ण संवैधानिक और सामाजिक मुद्दों को भी रेखांकित करता है। UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए, इस बयान के पीछे के सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और संवैधानिक पहलुओं को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
यह ब्लॉग पोस्ट इस बयान का गहराई से विश्लेषण करेगा, जिसमें धर्मांतरण के ऐतिहासिक संदर्भ, हिंदू समाज में समानता के मुद्दे, भारत के संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता के प्रावधान, धर्मांतरण विरोधी कानूनों की प्रासंगिकता और इस जटिल मुद्दे से जुड़ी विभिन्न चुनौतियाँ और भविष्य की राहें शामिल होंगी।
धर्मांतरण: एक बहुआयामी दृष्टिकोण (Conversion: A Multidimensional Perspective)
धर्मांतरण एक ऐसा विषय है जिसके कई आयाम हैं – धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत। किसी व्यक्ति का अपने धर्म को छोड़कर दूसरे धर्म को अपनाना एक अत्यंत व्यक्तिगत निर्णय हो सकता है, लेकिन जब यह बड़े पैमाने पर होता है, या जब इसे किसी विशिष्ट सामाजिक या राजनीतिक एजेंडे से जोड़ा जाता है, तो यह एक सार्वजनिक चिंता का विषय बन जाता है।
- धार्मिक स्वतंत्रता: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है। इसमें दूसरे धर्म को अपनाने का अधिकार भी शामिल है, जब तक कि यह स्वेच्छा से और बिना किसी दबाव के हो।
- सामाजिक-आर्थिक कारण: ऐतिहासिक रूप से, कई बार धर्मांतरण सामाजिक अन्याय, उत्पीड़न, जातिगत भेदभाव या आर्थिक अवसरों की तलाश से प्रेरित रहा है। जिन समुदायों को समाज में निम्न स्थान प्राप्त होता है, उनमें अक्सर दूसरे धर्मों में जाने की प्रवृत्ति देखी गई है जो उन्हें अधिक समानता और गरिमा प्रदान करते हैं।
- प्रचार और प्रलोभन: कुछ मामलों में, धर्मांतरण को धार्मिक प्रचारकों द्वारा प्रलोभन (जैसे धन, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा) या बलपूर्वक तरीके से भी बढ़ावा दिया जाता है, जो संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन है।
- राजनीतिकरण: धर्मांतरण का मुद्दा अक्सर राजनीतिक लाभ के लिए भी उठाया जाता है, जिससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ता है और राष्ट्रीय एकता को खतरा पहुँचता है।
सपा सांसद का बयान: हिंदू धर्म में ‘समानता’ का मुद्दा (The SP MP’s Statement: The Issue of ‘Equality’ in Hinduism)
सपा सांसद के बयान का मुख्य केंद्र बिंदु हिंदू धर्म के भीतर ‘समानता’ की कमी है। यह एक ऐसा तर्क है जो सदियों से भारतीय समाज में, विशेषकर हिंदू धर्म के संदर्भ में, चला आ रहा है।
“जब तक हिंदू धर्म में समानता नहीं आएगी, तब तक देश में धर्मांतरण नहीं रुकेगा।”
इस बयान के निहितार्थों को समझने के लिए, हमें हिंदू धर्म में ऐतिहासिक और समकालीन समानता के मुद्दों पर गौर करना होगा:
- जाति व्यवस्था और भेदभाव: भारत में जाति व्यवस्था, जिसे अक्सर हिंदू धर्म से जोड़ा जाता है, ने सदियों से गंभीर असमानताएँ पैदा की हैं। दलितों और अन्य निचली जातियों के लोगों को ऐतिहासिक रूप से भेदभाव, बहिष्कार और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है। कई बार, इस भेदभाव से मुक्ति पाने के लिए लोगों ने अन्य धर्मों को अपनाया है, जहाँ उन्हें अधिक समानता का अनुभव हुआ।
- धार्मिक कर्मकांडों तक पहुँच: कुछ हिंदू परंपराओं में, सभी वर्गों के लोगों को कुछ धार्मिक अनुष्ठानों या मंदिरों में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। यद्यपि स्वतंत्रता के बाद संवैधानिक और सामाजिक सुधारों ने इसमें बदलाव लाया है, फिर भी कुछ स्थानों पर इसके अवशेष देखे जा सकते हैं।
- आधुनिक व्याख्याएँ: कई हिंदू सुधारकों और विचारकों ने हमेशा हिंदू धर्म के भीतर समानता और समावेशिता की वकालत की है। वे तर्क देते हैं कि हिंदू धर्म का मूल सिद्धांत सभी मनुष्यों की एकता और आध्यात्मिक समानता में विश्वास करता है, और जाति जैसी सामाजिक बुराइयाँ बाद में जोड़ी गईं विकृतियाँ हैं।
- समानता का अर्थ: सांसद के लिए ‘समानता’ का अर्थ शायद सामाजिक और आर्थिक समानता के साथ-साथ धार्मिक अनुष्ठानों में समान अधिकार और जातिगत पहचान से मुक्ति है। उनका तर्क यह हो सकता है कि जब तक ये सामाजिक बुराइयाँ हिंदू समाज में बनी रहेंगी, तब तक धर्मांतरण एक प्रतिक्रिया के रूप में जारी रहेगा।
संवैधानिक ढाँचा और धार्मिक स्वतंत्रता (Constitutional Framework and Religious Freedom)
भारत का संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का पुरजोर समर्थन करता है। इस संदर्भ में, सांसद के बयान की संवैधानिक वैधता और निहितार्थों को समझना महत्वपूर्ण है।
- अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार): यह कानून के समक्ष सभी नागरिकों की समानता की गारंटी देता है।
- अनुच्छेद 15 (भेदभाव का निषेध): यह धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।
- अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता): यह सभी व्यक्तियों को विवेक की स्वतंत्रता और अपने धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 26 (धार्मिक मामलों का प्रबंधन): यह धार्मिक संप्रदायों को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 29 (अल्पसंख्यकों के अधिकारों का संरक्षण): यह अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करता है।
ये अनुच्छेद स्पष्ट करते हैं कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है और अपने सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है। हालाँकि, यह अधिकार असीमित नहीं है और ‘सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य’ के अधीन है।
धर्मांतरण विरोधी कानून: संदर्भ और विवाद (Anti-Conversion Laws: Context and Controversy)
भारत के कई राज्यों ने धर्मांतरण विरोधी कानून पारित किए हैं, जिन्हें अक्सर ‘धर्मांतरण निवारण अधिनियम’ कहा जाता है। इन कानूनों का उद्देश्य जबरन, धोखे या प्रलोभन द्वारा किए गए धर्मांतरण को रोकना है।
- कानूनों का तर्क: इन कानूनों के समर्थक तर्क देते हैं कि वे अनुच्छेद 25 में दी गई धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जिन्हें धर्मांतरण के लिए मजबूर किया जाता है या धोखा दिया जाता है। उनका मानना है कि ये कानून अल्पसंख्यक समुदायों के धर्मांतरण को रोकने के लिए आवश्यक हैं, जो अक्सर ‘लालच’ या ‘बल’ का सहारा लेते हैं।
- आलोचनाएँ: दूसरी ओर, इन कानूनों के आलोचक, जिनमें कई मानवाधिकार संगठन और नागरिक समाज समूह शामिल हैं, उनका तर्क है कि ये कानून अक्सर अस्पष्ट होते हैं और इन्हें धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से ईसाइयों और मुसलमानों को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। वे मानते हैं कि ये कानून अनुच्छेद 25 के तहत धर्म के ‘प्रचार’ के अधिकार का उल्लंघन करते हैं और स्वतंत्र रूप से धर्म चुनने के व्यक्तिगत अधिकार को बाधित करते हैं।
- समानता और धर्मांतरण: सांसद का बयान इन कानूनों के पीछे के तर्क को चुनौती देता है। उनका सुझाव है कि धर्मांतरण का मूल कारण धार्मिक स्वतंत्रता का हनन नहीं, बल्कि मौजूदा धर्म (हिंदू धर्म) के भीतर मौजूद सामाजिक असमानताएँ हैं। यदि ये असमानताएँ दूर हो जाती हैं, तो धर्मांतरण की आवश्यकता ही नहीं रहेगी।
पक्ष और विपक्ष (Arguments For and Against the Statement’s Premise)
इस बयान के विभिन्न पहलुओं पर पक्ष और विपक्ष में कई तर्क दिए जा सकते हैं:
पक्ष में तर्क (Arguments in Favor):
- सामाजिक सुधार की आवश्यकता: यह बयान हिंदू समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव और सामाजिक असमानताओं की ओर इशारा करता है, जिन्हें दूर करने की अत्यंत आवश्यकता है। एक अधिक समावेशी और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण ही दीर्घकालिक समाधान हो सकता है।
- धर्मांतरण के मूल कारण का संबोधन: यदि धर्मांतरण का एक महत्वपूर्ण कारण सामाजिक अन्याय और असमानता है, तो इस मूल कारण को संबोधित करना सबसे प्रभावी रणनीति हो सकती है।
- संवैधानिक आदर्श: भारतीय संविधान सभी नागरिकों के लिए समानता और गरिमा की बात करता है। यदि हिंदू धर्म के भीतर ऐसे तत्व मौजूद हैं जो इस आदर्श का उल्लंघन करते हैं, तो उन्हें सुधारना आवश्यक है।
- शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व: जब समाज के सभी वर्ग समान महसूस करते हैं, तो सांप्रदायिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिलता है।
विपक्ष में तर्क (Arguments Against):
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार: किसी भी व्यक्ति को स्वेच्छा से धर्म बदलने का अधिकार है, चाहे उसके धर्म में कितनी भी समानता हो या न हो। यह किसी अन्य व्यक्ति या समूह का काम नहीं है कि वह तय करे कि कौन सा धर्म ‘पर्याप्त’ समान है।
- धर्मांतरण विरोधी कानूनों का औचित्य: जो लोग धर्मांतरण विरोधी कानूनों का समर्थन करते हैं, वे तर्क दे सकते हैं कि इनका उद्देश्य धर्मांतरण को रोकना नहीं, बल्कि अवैध तरीकों (बल, प्रलोभन) से होने वाले धर्मांतरण को रोकना है।
- समानता की व्याख्या: ‘समानता’ की व्याख्या व्यापक हो सकती है। क्या हिंदू धर्म में सभी सदस्यों को समान अवसर और अधिकार मिलते हैं? यह एक जटिल प्रश्न है जिस पर विभिन्न लोगों के भिन्न विचार हो सकते हैं।
- राजनीतिकरण और वोट बैंक: आलोचक यह भी तर्क दे सकते हैं कि यह बयान राजनीतिक वोटों को आकर्षित करने के लिए या किसी विशेष समुदाय को खुश करने के लिए दिया गया है, और इसका वास्तविक सामाजिक सुधार से कम लेना-देना है।
- ‘हिंदू धर्म’ का सरलीकरण: हिंदू धर्म अत्यंत विविधतापूर्ण है, जिसमें विभिन्न संप्रदाय, परंपराएँ और दर्शन शामिल हैं। किसी एक समुदाय के अनुभवों के आधार पर पूरे धर्म के बारे में सामान्यीकरण करना उचित नहीं हो सकता।
चुनौतियाँ और आगे की राह (Challenges and The Way Forward)
इस मुद्दे पर आगे बढ़ने के लिए कई चुनौतियाँ हैं, और एक समावेशी समाधान खोजने के लिए विचारशील दृष्टिकोण की आवश्यकता है:
चुनौतियाँ:
- सामाजिक असमानताओं को दूर करना: हिंदू समाज से जातिगत भेदभाव और सामाजिक असमानताओं को पूरी तरह से समाप्त करना एक दीर्घकालिक और कठिन प्रक्रिया है, जिसके लिए केवल कानूनों से नहीं, बल्कि सामाजिक मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता है।
- धार्मिक स्वतंत्रता बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा: धर्मांतरण के मुद्दे को अक्सर राष्ट्रीय सुरक्षा और जनसांख्यिकीय परिवर्तन के चश्मे से देखा जाता है, जिससे निष्पक्ष बहस मुश्किल हो जाती है।
- राजनीतिक ध्रुवीकरण: यह मुद्दा राजनीतिक दलों के लिए एक संवेदनशील विषय है, और इसे अक्सर राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिससे समाज में विभाजन बढ़ता है।
- समानता की परिभाषा: ‘समानता’ का अर्थ अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग हो सकता है। क्या इसका मतलब केवल धार्मिक अनुष्ठानों में समानता है, या आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक समानता भी?
आगे की राह:
- संवैधानिक मूल्यों का पालन: सभी को अनुच्छेद 14, 15 और 25 में निहित समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।
- सकारात्मक संवाद: विभिन्न धार्मिक समुदायों और सामाजिक समूहों के बीच खुले और सम्मानजनक संवाद को बढ़ावा देना, ताकि गलतफहमियों को दूर किया जा सके और साझा समझ विकसित की जा सके।
- सामाजिक सुधार पर ध्यान: सरकार और समाज को मिलकर जातिगत भेदभाव और सामाजिक असमानताओं को दूर करने के लिए प्रभावी कदम उठाने चाहिए, ताकि किसी को भी धार्मिक पहचान बदलने की मजबूरी महसूस न हो।
- धर्मांतरण विरोधी कानूनों की समीक्षा: धर्मांतरण विरोधी कानूनों की समीक्षा की जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे मनमाने ढंग से लागू न हों और व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता का हनन न करें।
- शिक्षा और जागरूकता: सहिष्णुता, सम्मान और विभिन्न संस्कृतियों के प्रति समझ को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा प्रणाली और जनसंचार माध्यमों का उपयोग किया जाना चाहिए।
- व्यक्तिगत चयन का सम्मान: अंततः, प्रत्येक व्यक्ति को अपनी धार्मिक पहचान चुनने का अधिकार है, जब तक कि यह स्वेच्छा से और बिना किसी दबाव के हो।
निष्कर्ष (Conclusion)
सपा सांसद का बयान, भले ही विवादास्पद हो, हिंदू धर्म के भीतर मौजूद सामाजिक असमानताओं के महत्वपूर्ण मुद्दे को सामने लाता है। यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे सामाजिक न्याय और समानता की कमी कुछ लोगों को अपने धार्मिक पहचान पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित कर सकती है। हालांकि, यह तर्क कि धर्मांतरण केवल इसलिए जारी रहेगा क्योंकि हिंदू धर्म में समानता नहीं है, मामले का सरलीकरण करता है। धर्मांतरण एक जटिल घटना है जिसके पीछे कई कारण हो सकते हैं।
UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह समझना महत्वपूर्ण है कि इस मुद्दे को केवल एक राजनीतिक बयान या धार्मिक बहस के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे सामाजिक न्याय, संवैधानिक अधिकारों और राष्ट्रीय एकता के व्यापक संदर्भ में विश्लेषित किया जाना चाहिए। भारत की धर्मनिरपेक्षता और विविधता को बनाए रखने के लिए, सभी समुदायों के बीच समानता, गरिमा और आपसी सम्मान को बढ़ावा देना सर्वोपरि है। जब तक समाज के सभी वर्ग समान रूप से सशक्त और सम्मानित महसूस नहीं करेंगे, तब तक ऐसे बयान आते रहेंगे और बहस जारी रहेगी। एक न्यायसंगत और समतावादी समाज का निर्माण ही इस समस्या का मूल समाधान हो सकता है, न कि केवल धर्मांतरण को रोकने के लिए कानून बनाना।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद सभी व्यक्तियों को विवेक की स्वतंत्रता और अपने धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का अधिकार देता है?
(a) अनुच्छेद 14
(b) अनुच्छेद 21
(c) अनुच्छेद 25
(d) अनुच्छेद 29
उत्तर: (c) अनुच्छेद 25
व्याख्या: अनुच्छेद 25 भारतीय संविधान में वर्णित धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है, जिसमें किसी भी व्यक्ति को अपने धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का अधिकार शामिल है।
2. निम्नलिखित में से कौन सा कारक पारंपरिक रूप से कुछ समुदायों द्वारा धर्मांतरण के एक कारण के रूप में उद्धृत किया गया है?
(a) धार्मिक साहित्य का अभाव
(b) सामाजिक भेदभाव और आर्थिक अवसर
(c) राजनीतिक नेतृत्व की कमी
(d) सांस्कृतिक उत्सवों की अनुपस्थिति
उत्तर: (b) सामाजिक भेदभाव और आर्थिक अवसर
व्याख्या: ऐतिहासिक रूप से, सामाजिक भेदभाव (जैसे जातिगत उत्पीड़न) और बेहतर आर्थिक अवसरों की तलाश कई बार धर्मांतरण के महत्वपूर्ण कारण रहे हैं।
3. धर्मांतरण विरोधी कानूनों को लागू करने का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?
(a) सभी के लिए समान धर्म को बढ़ावा देना
(b) जबरन, धोखे या प्रलोभन द्वारा धर्मांतरण को रोकना
(c) धार्मिक प्रचार पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना
(d) किसी विशेष धर्म के प्रभाव को बढ़ाना
उत्तर: (b) जबरन, धोखे या प्रलोभन द्वारा धर्मांतरण को रोकना
व्याख्या: धर्मांतरण विरोधी कानूनों का मुख्य तर्क यह है कि वे उन धर्मांतरणों को रोकते हैं जो स्वतंत्र इच्छा से नहीं, बल्कि दबाव या प्रलोभन से किए जाते हैं।
4. निम्नलिखित में से कौन सा भारत के संविधान में वर्णित धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर एक उचित प्रतिबंध है?
(a) सार्वजनिक व्यवस्था
(b) राष्ट्रीय पहचान
(c) सांस्कृतिक विरासत
(d) धार्मिक अनुष्ठानों की गोपनीयता
उत्तर: (a) सार्वजनिक व्यवस्था
व्याख्या: अनुच्छेद 25 में कहा गया है कि धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार ‘सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य’ के अधीन है, जिसका अर्थ है कि यह असीमित नहीं है।
5. सपा सांसद के बयान में ‘समानता’ से क्या तात्पर्य हो सकता है?
(a) केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक पहुँच
(b) जातिगत भेदभाव और सामाजिक असमानताओं से मुक्ति
(c) आर्थिक लाभ की गारंटी
(d) राजनीतिक प्रतिनिधित्व में वृद्धि
उत्तर: (b) जातिगत भेदभाव और सामाजिक असमानताओं से मुक्ति
व्याख्या: सांसद के संदर्भ में, ‘समानता’ से तात्पर्य हिंदू समाज में मौजूद जातिगत भेदभाव और सामाजिक असमानताओं से मुक्ति से है, जो धर्मांतरण का एक कारण बताई गई है।
6. ‘धर्म का प्रचार’ (Propagation of religion) का अधिकार भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में निहित है?
(a) अनुच्छेद 15
(b) अनुच्छेद 21
(c) अनुच्छेद 25(1)
(d) अनुच्छेद 26
उत्तर: (c) अनुच्छेद 25(1)
व्याख्या: अनुच्छेद 25(1) में धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का अधिकार शामिल है।
7. किस ऐतिहासिक सामाजिक बुराई को अक्सर हिंदू धर्म के संदर्भ में समानता के मुद्दे से जोड़ा जाता है?
(a) सती प्रथा
(b) बाल विवाह
(c) जाति व्यवस्था
(d) पर्दा प्रथा
उत्तर: (c) जाति व्यवस्था
व्याख्या: जाति व्यवस्था ने सदियों से हिंदू समाज में गंभीर असमानताएँ पैदा की हैं और यह अक्सर धर्मांतरण के कारणों में से एक के रूप में चर्चा में रहती है।
8. निम्नलिखित में से कौन सा भारतीय संविधान का मूल सिद्धांत है जिसके तहत सभी नागरिक धर्म, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव से सुरक्षित हैं?
(a) अनुच्छेद 14
(b) अनुच्छेद 15
(c) अनुच्छेद 16
(d) अनुच्छेद 25
उत्तर: (b) अनुच्छेद 15
व्याख्या: अनुच्छेद 15 धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर किसी भी नागरिक के विरुद्ध विभेद का प्रतिषेध करता है।
9. जब धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती दी जाती है, तो अक्सर किस संवैधानिक अधिकार के उल्लंघन का तर्क दिया जाता है?
(a) स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19)
(b) धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25)
(c) जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 21)
(d) समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14)
उत्तर: (b) धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25)
व्याख्या: आलोचक तर्क देते हैं कि धर्मांतरण विरोधी कानून अनुच्छेद 25 के तहत धर्म के प्रचार और अभ्यास के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।
10. एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की प्रमुख विशेषता क्या है?
(a) सभी नागरिकों के लिए एक राज्य धर्म का होना
(b) किसी भी धर्म को संरक्षण न देना
(c) सभी धर्मों के प्रति तटस्थता और सभी को समान स्वतंत्रता प्रदान करना
(d) केवल एक धर्म के सिद्धांतों का पालन करना
उत्तर: (c) सभी धर्मों के प्रति तटस्थता और सभी को समान स्वतंत्रता प्रदान करना
व्याख्या: एक धर्मनिरपेक्ष राज्य सभी धर्मों के प्रति तटस्थ रहता है और नागरिकों को समान धार्मिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. “सपा सांसद के इस बयान पर विचार करें कि ‘जब तक हिंदू धर्म में समानता नहीं आएगी, तब तक देश में धर्मांतरण नहीं रुकेगा।’ इस कथन का विश्लेषण करें और भारत के संदर्भ में धर्मांतरण के सामाजिक, धार्मिक और संवैधानिक पहलुओं पर चर्चा करें। धर्मांतरण विरोधी कानूनों की प्रासंगिकता और इन पर होने वाली आलोचनाओं का भी उल्लेख करें।”
2. “भारतीय संविधान धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25) सुनिश्चित करता है, लेकिन यह अधिकार पूर्ण नहीं है। सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के आधार पर इस अधिकार पर लगाए जा सकने वाले उचित प्रतिबंधों की व्याख्या करें। धर्मांतरण विरोधी कानून इन प्रतिबंधों के तहत कैसे आते हैं?”
3. “भारत में धर्मांतरण एक जटिल मुद्दा रहा है, जिसके मूल में सामाजिक, आर्थिक और व्यक्तिगत कारण हो सकते हैं। चर्चा करें कि कैसे सामाजिक असमानताएँ, विशेष रूप से ऐतिहासिक जाति व्यवस्था, धर्मांतरण के एक कारण के रूप में देखी जाती हैं। इस समस्या के समाधान के लिए आवश्यक संवैधानिक और सामाजिक सुधारों पर प्रकाश डालें।”
4. “धार्मिक स्वतंत्रता और राष्ट्रीय एकता के बीच संतुलन बनाए रखना भारत जैसे विविधतापूर्ण देश के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है। धर्मांतरण जैसे मुद्दों पर होने वाली राजनीतिक बयानबाजी इस संतुलन को कैसे प्रभावित कर सकती है? एक समावेशी समाज के निर्माण हेतु आवश्यक दृष्टिकोणों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।”