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क्या राहुल गांधी का ‘भारतीय अर्थव्यवस्था मृत’ वाला बयान सच है? मोदी सरकार के 5 साल का सच

क्या राहुल गांधी का ‘भारतीय अर्थव्यवस्था मृत’ वाला बयान सच है? मोदी सरकार के 5 साल का सच

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के एक बयान का हवाला देते हुए कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था “मर चुकी है” और इसके लिए सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार जिम्मेदार है। उन्होंने यह भी कहा कि यह बात प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को छोड़कर सभी को पता है। इस बयान ने देश में एक बार फिर से आर्थिक सुस्ती और सरकार की नीतियों पर बहस छेड़ दी है। UPSC परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए, यह एक महत्वपूर्ण समसामयिक मुद्दा है, जिसके विभिन्न पहलुओं को समझना आवश्यक है।

यह ब्लॉग पोस्ट राहुल गांधी के बयान के पीछे के कारणों, भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति, सरकार के पांच वर्षों के दौरान आर्थिक प्रदर्शन, संभावित चुनौतियाँ और भविष्य की राह का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है। हमारा लक्ष्य इस जटिल मुद्दे को सरल, सुलभ और UPSC के दृष्टिकोण से प्रासंगिक बनाना है।

राहुल गांधी का बयान: संदर्भ और निहितार्थ (Rahul Gandhi’s Statement: Context and Implications)

डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था को “मर चुकी” बताने वाला बयान, जो राहुल गांधी ने उद्धृत किया, एक महत्वपूर्ण राजनीतिक वक्तव्य था। हालांकि, ट्रम्प के इस तरह के बयान अक्सर उनके अपने एजेंडे या घरेलू राजनीतिक आवश्यकताओं से प्रेरित होते हैं, फिर भी वे अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश की छवि को प्रभावित कर सकते हैं।

राहुल गांधी का इस बयान का उपयोग करके मोदी सरकार पर निशाना साधना एक राजनीतिक रणनीति है। यह दर्शाता है कि वे अर्थव्यवस्था के मुद्दे को भारतीय जनता के बीच एक महत्वपूर्ण चिंता के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। उनका यह कहना कि “प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को छोड़कर सबको पता है” इस बात पर जोर देता है कि वे सरकार को जमीनी हकीकत से बेखबर या जानबूझकर अनदेखा करने वाला बता रहे हैं।

आर्थिक मृत्यु की अवधारणा: क्या यह सच है? (The Concept of Economic Death: Is it True?)

जब कोई राजनेता या विश्लेषक अर्थव्यवस्था के “मरने” की बात करता है, तो इसका मतलब आमतौर पर यह होता है कि अर्थव्यवस्था गंभीर मंदी (recession) या ठहराव (stagnation) का सामना कर रही है। इसके कुछ प्रमुख संकेतक होते हैं:

  • धीमी या नकारात्मक जीडीपी वृद्धि (Slow or Negative GDP Growth): सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगातार गिरना या बहुत कम दर से बढ़ना।
  • उच्च बेरोजगारी दर (High Unemployment Rate): बड़ी संख्या में लोग काम की तलाश में हैं लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है।
  • कमजोर उपभोक्ता मांग (Weak Consumer Demand): लोग खर्च करने से कतराते हैं, जिससे व्यवसायों पर असर पड़ता है।
  • निवेश में गिरावट (Decline in Investment): व्यवसायों और सरकार द्वारा नई परियोजनाओं में निवेश कम होना।
  • मुद्रास्फीति या अपस्फीति (Inflation or Deflation): कीमतों में अत्यधिक वृद्धि या कमी, दोनों ही आर्थिक अस्थिरता का संकेत हो सकती हैं।
  • बढ़ता राजकोषीय घाटा (Growing Fiscal Deficit): सरकार का खर्च आय से अधिक होना।

इन संकेतकों के आधार पर, हमें यह विश्लेषण करना होगा कि क्या भारतीय अर्थव्यवस्था वास्तव में “मर” गई है, या यह एक गंभीर मंदी से गुजर रही है।

मोदी सरकार के 5 साल: आर्थिक प्रदर्शन का विश्लेषण (Modi Government’s 5 Years: Analysis of Economic Performance)

2014 में सत्ता में आने के बाद से, नरेंद्र मोदी सरकार ने कई महत्वाकांक्षी आर्थिक सुधारों और नीतियों को लागू किया है। आइए इन पांच वर्षों (2014-2019, मुख्य रूप से) के दौरान अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन का वस्तुनिष्ठ विश्लेषण करें, जैसा कि विभिन्न संकेतकों द्वारा मापा गया है:

1. सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि (GDP Growth)

  • शुरुआती साल (2014-17): सरकार के शुरुआती वर्षों में जीडीपी वृद्धि दर मजबूत रही, जो अक्सर 7% से ऊपर रही। इसे कुछ हद तक वैश्विक आर्थिक सुधार और तेल की कीमतों में गिरावट का भी लाभ मिला।
  • धीमी गति (2017-19): 2017-18 के बाद, वृद्धि दर में गिरावट देखी गई। नोटबंदी (2016) और वस्तु एवं सेवा कर (GST) के कार्यान्वयन (2017) जैसे नीतिगत झटकों का अर्थव्यवस्था पर अल्पकालिक प्रभाव पड़ा, जिससे अनौपचारिकता को बढ़ावा मिला और छोटे व मध्यम उद्यमों (SMEs) को नुकसान हुआ।
  • हालिया रुझान (Recent Trends): 2019-20 में, वृद्धि दर 4% के आसपास आ गई, जो पिछले कई वर्षों की तुलना में काफी कम थी। यह विभिन्न क्षेत्रों में मांग की कमी और निवेश में सुस्ती का परिणाम था।

“जीडीपी वृद्धि दर में गिरावट को केवल एक अस्थायी झटका मानना ​​त्रुटिपूर्ण होगा। यह संरचनात्मक मुद्दों की ओर भी इशारा करता है।”

2. बेरोजगारी (Unemployment)

  • बढ़ती दर: पिछले कुछ वर्षों में, विशेष रूप से 2017-18 के बाद, बेरोजगारी दर में वृद्धि देखी गई है। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के आंकड़ों ने इस चिंता को उजागर किया।
  • युवा बेरोजगारी: युवाओं और शिक्षित वर्ग के बीच बेरोजगारी विशेष रूप से चिंता का विषय रही है।
  • नौकरी सृजन की चुनौती: आर्थिक विकास के बावजूद, नौकरी सृजन की गति पर्याप्त नहीं रही है, जिससे रोजगार सृजन की गुणवत्ता और मात्रा दोनों पर सवाल उठते हैं।

3. निवेश (Investment)

  • निजी निवेश में सुस्ती: नोटबंदी और जीएसटी के झटकों के बाद, निजी क्षेत्र का निवेश (Private Investment) उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ा। कॉर्पोरेट क्षेत्र के बैलेंस शीट में सुधार और नीतिगत अनिश्चितताओं ने इसमें भूमिका निभाई।
  • सार्वजनिक निवेश: सरकार ने बुनियादी ढांचे (infrastructure) पर सार्वजनिक खर्च बढ़ाया, लेकिन यह निजी निवेश की कमी को पूरी तरह से पूरा नहीं कर सका।

4. उपभोक्ता मांग (Consumer Demand)

  • कमजोर मांग: ऑटोमोबाइल, रियल एस्टेट और अन्य उपभोक्ता-केंद्रित क्षेत्रों में मांग में स्पष्ट गिरावट देखी गई। इसका मुख्य कारण था बढ़ती बेरोजगारी, कम वेतन वृद्धि और सामान्य आर्थिक अनिश्चितता।
  • ग्रामीण मांग: ग्रामीण क्षेत्रों में भी मांग कमजोर रही, जो कृषि संकट और आय की कमी से प्रभावित थी।

5. राजकोषीय स्थिति (Fiscal Situation)

  • राजकोषीय घाटा: सरकार ने राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के प्रयास किए, लेकिन आर्थिक मंदी के कारण राजस्व संग्रह पर दबाव पड़ा, जिससे घाटा लक्ष्य से अधिक हो सकता है।
  • व्यय: सरकार ने आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए खर्च बढ़ाने के उपाय किए, लेकिन सीमित राजस्व के कारण यह एक नाजुक संतुलन था।

सरकार की प्रमुख आर्थिक पहलें और उनके प्रभाव (Key Economic Initiatives of the Government and Their Impact)

मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और सुधारने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं:

  • नोटबंदी (Demonetisation – 2016): इसका उद्देश्य काले धन, जाली नोटों और आतंकवाद के वित्तपोषण को खत्म करना था। हालांकि, इसने अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से बाधित किया, विशेषकर असंगठित क्षेत्र को।
  • वस्तु एवं सेवा कर (GST – 2017): भारत को एक एकीकृत राष्ट्रीय बाजार बनाने का यह एक क्रांतिकारी कदम था। इसने करों की जटिलता को कम किया, लेकिन इसके कार्यान्वयन में प्रारंभिक कठिनाइयाँ, विशेषकर SMEs के लिए, देखी गईं।
  • ‘मेक इन इंडिया’ (Make in India): विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने और भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने का लक्ष्य।
  • ‘स्टार्टअप इंडिया’ (Startup India) और ‘स्किल इंडिया’ (Skill India): युवा उद्यमिता और कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए।
  • बुनियादी ढांचा विकास: सड़क, रेलवे, बंदरगाहों और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में निवेश पर जोर।
  • डिजिटल इंडिया (Digital India): डिजिटल कनेक्टिविटी और सेवाओं को बढ़ावा देना।
  • कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती (Corporate Tax Cut – 2019): निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए कॉर्पोरेट कर की दरों में उल्लेखनीय कमी की गई।

“नीतियों का इरादा अच्छा हो सकता है, लेकिन उनका क्रियान्वयन और समय अक्सर उनके प्रभाव को निर्धारित करते हैं।”

सकारात्मक पहलू (Positive Aspects)

  • डिजिटल भुगतान में वृद्धि: डिजिटल लेन-देन में भारी वृद्धि हुई है।
  • ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (Ease of Doing Business): भारत की रैंकिंग में सुधार हुआ है।
  • राजस्व समेकन: जीएसटी ने अप्रत्यक्ष कर संग्रह को सुव्यवस्थित करने में मदद की है।
  • बुनियादी ढांचे का विस्तार: कनेक्टिविटी और लॉजिस्टिक्स में सुधार हुआ है।
  • राजकोषीय अनुशासन: सरकार ने राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखने का प्रयास किया है।

नकारात्मक पहलू और चुनौतियाँ (Negative Aspects and Challenges)

  • रोजगार सृजन: यह सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है।
  • कृषि संकट: किसानों की आय में वृद्धि नहीं हुई है, और कई क्षेत्रों में कृषि संकट बना हुआ है।
  • वित्तीय क्षेत्र की समस्याएँ: बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPAs) और NBFCs की तरलता की समस्याएँ बनी रहीं।
  • मांग की कमी: यह एक महत्वपूर्ण चिंता है जो आर्थिक विकास को बाधित कर रही है।
  • संरचनात्मक सुधारों की गति: कुछ प्रमुख संरचनात्मक सुधारों को लागू करने में धीमी गति देखी गई।

क्या अर्थव्यवस्था ‘मृत’ है? एक संतुलित दृष्टिकोण (Is the Economy ‘Dead’? A Balanced Perspective)

यह कहना कि भारतीय अर्थव्यवस्था “मर चुकी है” एक अतिशयोक्ति हो सकती है। अर्थव्यवस्था गंभीर मंदी का सामना कर रही है, और इसके कई संकेतक चिंताजनक हैं। वृद्धि दर धीमी हुई है, बेरोजगारी बढ़ी है, और उपभोक्ता मांग कमजोर है। ये सभी गंभीर समस्याएँ हैं जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।

हालांकि, अर्थव्यवस्था अभी भी विकास कर रही है, भले ही धीमी गति से। सरकार सुधारों के प्रयास कर रही है, और विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत बना हुआ है। वैश्विक स्तर पर, कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं भी धीमी वृद्धि का सामना कर रही हैं। इसलिए, “मृत” शब्द का प्रयोग शायद राजनीतिक बयानबाजी का हिस्सा है, लेकिन आर्थिक चुनौतियों की गंभीरता को कम नहीं आंकना चाहिए।

“आर्थिक स्वास्थ्य की तुलना किसी बीमार व्यक्ति से की जा सकती है। वह मर नहीं गया है, लेकिन गंभीर रूप से बीमार है और उसे तत्काल चिकित्सा की आवश्यकता है।”

भविष्य की राह: आगे क्या? (The Way Forward: What Next?)

भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और विकास को गति देने के लिए, निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  1. मांग को प्रोत्साहित करना:
    • उपभोक्ता व्यय को बढ़ावा देने के लिए लक्षित उपाय, जैसे कर प्रोत्साहन या आय सहायता।
    • रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित करना।
  2. निवेश को बढ़ावा देना:
    • निजी क्षेत्र के निवेश के लिए अनुकूल माहौल बनाना, जिसमें नीतिगत स्थिरता और नियामक स्पष्टता शामिल है।
    • कॉर्पोरेट कर में और कटौती या अन्य प्रोत्साहन पर विचार करना।
    • बुनियादी ढांचे में निवेश जारी रखना, लेकिन सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल को मजबूत करना।
  3. रोजगार सृजन:
    • विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में रोजगार सृजन पर विशेष ध्यान देना।
    • कौशल विकास कार्यक्रमों को मजबूत करना ताकि युवाओं को वर्तमान रोजगार की मांगों के अनुसार तैयार किया जा सके।
    • MSMEs क्षेत्र को मजबूत करना, जो रोजगार सृजन का एक प्रमुख स्रोत है।
  4. वित्तीय क्षेत्र को मजबूत करना:
    • बैंकिंग क्षेत्र में NPA की समस्या का समाधान करना और NBFCs की तरलता सुनिश्चित करना।
    • वित्तीय समावेशन को और गहरा करना।
  5. कृषि क्षेत्र में सुधार:
    • किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संरचनात्मक सुधारों को लागू करना।
    • बाजार पहुंच और मूल्य स्थिरता सुनिश्चित करना।
  6. संरचनात्मक सुधार:
    • भूमि, श्रम और नियामक सुधारों को सुचारू रूप से लागू करना।
    • निर्यात को बढ़ावा देने के लिए नीतियां बनाना।

राहुल गांधी के बयान को एक चेतावनी के रूप में लिया जाना चाहिए। सरकार को आलोचनाओं को सुनना चाहिए और अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए प्रभावी कदम उठाने चाहिए। यह केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि सभी हितधारकों (stakeholders) को मिलकर काम करना होगा।

निष्कर्ष (Conclusion)

राहुल गांधी का बयान, हालांकि राजनीतिक है, भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने मौजूद गंभीर चुनौतियों को रेखांकित करता है। 2014-19 की अवधि में, भारत ने मिश्रित आर्थिक प्रदर्शन देखा है। शुरुआती वर्षों में मजबूत वृद्धि के बाद, पिछले कुछ वर्षों में मंदी देखी गई है, जो मुख्य रूप से मांग की कमी, निवेश में सुस्ती और संरचनात्मक मुद्दों के कारण है।

अर्थव्यवस्था “मृत” नहीं है, लेकिन यह निश्चित रूप से एक गंभीर बीमारी से पीड़ित है। सरकार ने सुधारों का प्रयास किया है, लेकिन उनके प्रभाव और कार्यान्वयन में खामियाँ रही हैं। भविष्य की राह मांग को बढ़ावा देने, निवेश को आकर्षित करने, रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित करने और महत्वपूर्ण संरचनात्मक सुधारों को लागू करने पर निर्भर करती है। UPSC उम्मीदवारों के लिए, इस मुद्दे के विभिन्न आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक आयामों को समझना महत्वपूर्ण है, ताकि वे परीक्षा में पूछे जाने वाले सवालों का सटीक और विश्लेषणात्मक उत्तर दे सकें।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: निम्नलिखित में से कौन सा भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी का एक प्रमुख संकेतक है?

    a) सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वृद्धि

    b) घटती बेरोजगारी दर

    c) मजबूत उपभोक्ता मांग

    d) गिरती जीडीपी वृद्धि दर

    उत्तर: d) गिरती जीडीपी वृद्धि दर

    व्याख्या: जीडीपी वृद्धि दर में गिरावट या नकारात्मक वृद्धि मंदी का सबसे प्रत्यक्ष संकेत है। अन्य विकल्प आर्थिक सुधार के संकेत हैं।
  2. प्रश्न 2: 2016 में भारत सरकार द्वारा की गई नोटबंदी का मुख्य उद्देश्य क्या था?

    a) डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना

    b) काले धन, नकली नोटों और आतंकवाद के वित्तपोषण पर अंकुश लगाना

    c) कर चोरी को कम करना

    d) उपरोक्त सभी

    उत्तर: d) उपरोक्त सभी

    व्याख्या: नोटबंदी के मुख्य उद्देश्य काले धन, जाली नोटों और आतंकवाद के वित्तपोषण को समाप्त करना, कर चोरी को रोकना और डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना था।
  3. प्रश्न 3: वस्तु एवं सेवा कर (GST) को भारत में कब लागू किया गया था?

    a) 1 जुलाई 2016

    b) 1 अप्रैल 2017

    c) 1 जुलाई 2017

    d) 1 जनवरी 2018

    उत्तर: c) 1 जुलाई 2017

    व्याख्या: GST को 1 जुलाई 2017 को पूरे भारत में लागू किया गया था।
  4. प्रश्न 4: हाल के वर्षों में भारत में बेरोजगारी दर में वृद्धि का एक संभावित कारण क्या नहीं है?

    a) नौकरी सृजन की धीमी गति

    b) नोटबंदी का प्रभाव

    c) GST कार्यान्वयन की चुनौतियाँ

    d) ग्रामीण आय में वृद्धि

    उत्तर: d) ग्रामीण आय में वृद्धि

    व्याख्या: ग्रामीण आय में वृद्धि से मांग बढ़ती है और रोजगार सृजन को प्रोत्साहन मिलता है। अन्य विकल्प बेरोजगारी में वृद्धि के संभावित कारण हैं।
  5. प्रश्न 5: ‘मेक इन इंडिया’ पहल का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?

    a) सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देना

    b) विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देना और भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाना

    c) कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ाना

    d) डिजिटल साक्षरता को बढ़ाना

    उत्तर: b) विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देना और भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाना

    व्याख्या: ‘मेक इन इंडिया’ का लक्ष्य भारत को एक प्रमुख विनिर्माण गंतव्य के रूप में स्थापित करना है।
  6. प्रश्न 6: निम्नलिखित में से कौन सा ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ इंडेक्स में सुधार का सूचक है?

    a) व्यवसाय शुरू करने में आसानी

    b) अनुमतियों के लिए अधिक समय लगना

    c) अनुपालन लागत में वृद्धि

    d) श्रम कानूनों का सख्त होना

    उत्तर: a) व्यवसाय शुरू करने में आसानी

    व्याख्या: ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स व्यवसाय शुरू करने, संचालन और बंद करने में आसानी को मापता है।
  7. प्रश्न 7: भारतीय अर्थव्यवस्था को किस समस्या का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उपभोक्ता मांग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है?

    a) अत्यधिक आपूर्ति

    b) अपस्फीति (Deflation)

    c) कम क्रय शक्ति (Weak Purchasing Power)

    d) अत्यधिक विदेशी निवेश

    उत्तर: c) कम क्रय शक्ति (Weak Purchasing Power)

    व्याख्या: कम आय, बेरोजगारी और अनिश्चितता के कारण लोगों की क्रय शक्ति कम हो जाती है, जिससे मांग घट जाती है।
  8. प्रश्न 8: ‘स्टार्टअप इंडिया’ पहल का मुख्य उद्देश्य क्या है?

    a) सरकारी नौकरियों को बढ़ावा देना

    b) छोटे और मध्यम उद्यमों (SMEs) को वित्तीय सहायता प्रदान करना

    c) युवा उद्यमिता और नवाचार को बढ़ावा देना

    d) पारंपरिक उद्योगों को पुनर्जीवित करना

    उत्तर: c) युवा उद्यमिता और नवाचार को बढ़ावा देना

    व्याख्या: स्टार्टअप इंडिया का लक्ष्य भारत में स्टार्टअप्स के लिए एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है।
  9. प्रश्न 9: 2019 में भारत सरकार द्वारा की गई कॉर्पोरेट कर कटौती का उद्देश्य क्या था?

    a) कॉर्पोरेट टैक्स से राजस्व बढ़ाना

    b) निवेश को प्रोत्साहित करना और आर्थिक विकास को गति देना

    c) विदेशी कंपनियों को भारत से बाहर धकेलना

    d) छोटे व्यवसायों पर कर का बोझ बढ़ाना

    उत्तर: b) निवेश को प्रोत्साहित करना और आर्थिक विकास को गति देना

    व्याख्या: करों में कटौती से कंपनियों के पास अधिक धन उपलब्ध होता है, जिसे वे निवेश और विस्तार के लिए उपयोग कर सकते हैं।
  10. प्रश्न 10: निम्नलिखित में से कौन सा राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) का संकेतक है?

    a) सरकार की आय में वृद्धि

    b) सरकार के खर्च का सरकार की आय से अधिक होना

    c) सार्वजनिक ऋण में कमी

    d) कर संग्रह में वृद्धि

    उत्तर: b) सरकार के खर्च का सरकार की आय से अधिक होना

    व्याख्या: राजकोषीय घाटा सरकार के कुल व्यय और कुल प्राप्तियों (ऋण को छोड़कर) के बीच का अंतर है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1: राहुल गांधी द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था को “मृत” बताने वाले बयान के संदर्भ में, पिछले पांच वर्षों (2014-2019) में भारत के आर्थिक प्रदर्शन का विस्तृत विश्लेषण करें। इसमें जीडीपी वृद्धि, बेरोजगारी, निवेश और उपभोक्ता मांग जैसे प्रमुख संकेतकों पर ध्यान केंद्रित करें। (250 शब्द)
  2. प्रश्न 2: हाल के वर्षों में भारत की आर्थिक मंदी के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारकों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। सरकार द्वारा शुरू की गई नीतियों (जैसे नोटबंदी, GST) के प्रभाव का भी विश्लेषण करें। (250 शब्द)
  3. प्रश्न 3: भारतीय अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और सतत विकास को पुनः प्राप्त करने के लिए सरकार को किन प्रमुख सुधारों और नीतियों को प्राथमिकता देनी चाहिए? रोजगार सृजन और मांग प्रोत्साहन पर विशेष जोर दें। (150 शब्द)
  4. प्रश्न 4: “आर्थिक मंदी” और “आर्थिक मृत्यु” के बीच अंतर स्पष्ट करें। भारतीय संदर्भ में, क्या अर्थव्यवस्था वास्तव में “मृत” है, या यह एक गंभीर मंदी से गुजर रही है? अपने तर्क का समर्थन साक्ष्य के साथ करें। (150 शब्द)

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