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क्या भारत-अमेरिका व्यापार युद्ध छिड़ने वाला है? 50% टैरिफ का पूरा सच

क्या भारत-अमेरिका व्यापार युद्ध छिड़ने वाला है? 50% टैरिफ का पूरा सच

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल के दिनों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार जगत में एक बड़ी हलचल मच गई है। संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति, डोनाल्ड ट्रम्प, ने भारत पर कड़े आर्थिक कदम उठाने का संकेत दिया है। ताजा खबर के अनुसार, अमेरिका ने भारत पर 25% का अतिरिक्त टैरिफ (आयात शुल्क) लगाने की घोषणा की है, जो कि 21 दिनों के भीतर लागू हो जाएगा। इसके साथ ही, भारत पर कुल टैरिफ दर 50% तक पहुंच जाएगी। इस फैसले के पीछे मुख्य वजह भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद को बताया जा रहा है। यह कदम न केवल भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार संबंधों को प्रभावित करेगा, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और भू-राजनीतिक समीकरणों पर भी गहरा असर डाल सकता है।

यह ब्लॉग पोस्ट इस महत्वपूर्ण घटना के विभिन्न पहलुओं का गहराई से विश्लेषण करेगा, जिसमें टैरिफ क्या है, इसके पीछे के कारण, भारत और अमेरिका पर इसके संभावित प्रभाव, और UPSC सिविल सेवा परीक्षा के दृष्टिकोण से इसकी प्रासंगिकता शामिल है।

टैरिफ (Tariff) क्या है? एक विस्तृत समझ

किसी भी आर्थिक या राजनीतिक घटना को समझने के लिए, उसके मूल सिद्धांतों को जानना महत्वपूर्ण है। यहाँ ‘टैरिफ’ शब्द बार-बार आ रहा है, तो आइए समझते हैं कि यह वास्तव में क्या है:

  • परिभाषा: टैरिफ, जिसे आयात शुल्क (Import Duty) भी कहा जाता है, एक प्रकार का कर है जो एक देश द्वारा दूसरे देश से आयात किए जाने वाले माल पर लगाया जाता है। यह मुख्य रूप से सरकारी राजस्व बढ़ाने और घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • उद्देश्य:
    • राजस्व सृजन: सरकारें टैरिफ से प्राप्त आय का उपयोग सार्वजनिक सेवाओं के वित्तपोषण के लिए कर सकती हैं।
    • घरेलू उद्योगों की सुरक्षा: जब विदेशी सामान सस्ता होता है, तो वे घरेलू उत्पादों के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। टैरिफ लगाकर, आयातित वस्तुओं को महंगा बनाया जाता है, जिससे घरेलू उत्पाद अधिक प्रतिस्पर्धी बन जाते हैं।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा: कुछ मामलों में, रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण उद्योगों (जैसे रक्षा या महत्वपूर्ण खनिजों) की सुरक्षा के लिए टैरिफ लगाए जा सकते हैं।
    • राजनीतिक हथियार: टैरिफ का उपयोग अन्य देशों पर दबाव बनाने या उनकी नीतियों को बदलने के लिए एक राजनीतिक हथियार के रूप में भी किया जा सकता है।
  • टैरिफ के प्रकार:
    • विशिष्ट टैरिफ (Specific Tariff): यह प्रति इकाई उत्पाद पर एक निश्चित राशि के रूप में लगाया जाता है (जैसे, प्रति किलोग्राम ₹50)।
    • मूल्य-आधारित टैरिफ (Ad Valorem Tariff): यह आयातित वस्तु के मूल्य के प्रतिशत के रूप में लगाया जाता है (जैसे, 10%)। वर्तमान मामले में, 25% और 50% का उल्लेख संभवतः मूल्य-आधारित टैरिफ को दर्शाता है।
    • स्लैब-आधारित टैरिफ (Compound Tariff): यह विशिष्ट और मूल्य-आधारित दोनों टैरिफ का मिश्रण हो सकता है।

एक उपमा: कल्पना कीजिए कि आपके मोहल्ले में कोई नया फलवाला आता है जो बहुत सस्ते दर पर फल बेच रहा है। आपके अपने मोहल्ले के फलवाले को बचाने के लिए, आप नियम बना सकते हैं कि बाहर से आने वाले फलवाले को हर किलो पर ₹10 अधिक लेने होंगे। यह ₹10 ही टैरिफ है, जो बाहर के फलवाले को महंगा बनाता है और आपके स्थानीय फलवाले को फायदा पहुंचाता है।

क्यों लगा भारत पर अतिरिक्त टैरिफ? कारण और संदर्भ

अमेरिकी प्रशासन द्वारा भारत पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने का मुख्य कारण ‘रूसी तेल की खरीद’ को बताया गया है। यह मामला उतना सीधा नहीं है जितना लगता है, और इसके पीछे कई भू-राजनीतिक और आर्थिक कारक जुड़े हुए हैं:

1. रूसी तेल की खरीद और अमेरिकी प्रतिबंध

  • ईरान प्रतिबंध: अमेरिका ने ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं, विशेष रूप से उसके तेल निर्यात को लेकर। ये प्रतिबंध ईरान को उसके परमाणु कार्यक्रम को लेकर नियंत्रित करने के उद्देश्य से लगाए गए हैं।
  • “महत्वपूर्ण खरीदार” सिद्धांत: अमेरिकी प्रतिबंधों में एक प्रावधान यह भी है कि जो देश ईरान से बिना अमेरिकी विशेष अनुमति के तेल खरीदते हैं, वे स्वयं अमेरिकी प्रतिबंधों के दायरे में आ सकते हैं। उन्हें या तो ईरान से तेल खरीदना बंद करना होगा या फिर अमेरिका से विशेष छूट (Waiver) लेनी होगी।
  • भारत का रुख: भारत, दुनिया के सबसे बड़े तेल आयातकों में से एक है, और उसने ऊर्जा सुरक्षा के लिए विभिन्न स्रोतों से तेल खरीदना जारी रखा है, जिसमें रूस भी शामिल है। विशेष रूप से यूक्रेन युद्ध के बाद, जब रूस ने रियायती दरों पर तेल की पेशकश की, तो भारत ने अपनी तेल खरीद बढ़ा दी।
  • अमेरिका की चिंता: अमेरिका का मानना है कि भारत का रूसी तेल खरीदना, विशेष रूप से जब यह प्रतिबंधों के तहत आया है, तो यह अमेरिकी प्रतिबंधों को कमजोर करता है और अप्रत्यक्ष रूप से रूस को आर्थिक लाभ पहुंचाता है। अमेरिका चाहता है कि उसके सहयोगी देश रूस से दूरी बनाए रखें।

2. भू-राजनीतिक दांव-पेंच

  • रूस-यूक्रेन युद्ध: यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद, पश्चिमी देशों ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाए हैं। अमेरिका चाहता है कि वैश्विक समुदाय एकजुट होकर रूस पर दबाव बनाए। भारत का रूस से तेल खरीदना, अमेरिका की नजर में, इस एकजुटता को कमजोर करता है।
  • भारत की ऊर्जा सुरक्षा: भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों का लगभग 80% आयात से पूरा करता है। रूस से रियायती दर पर तेल खरीदना भारत के लिए एक आर्थिक आवश्यकता है, खासकर जब वैश्विक तेल की कीमतें अस्थिर हैं। भारत किसी एक देश पर निर्भर नहीं रहना चाहता।
  • अमेरिका का “प्रतिद्वंद्वी” दृष्टिकोण: कुछ विश्लेषक इसे केवल तेल खरीद से जोड़कर नहीं देखते, बल्कि इसे भारत को नियंत्रित करने और उसे अपनी विदेश नीति के अनुसार ढालने के अमेरिका के व्यापक प्रयास के रूप में भी देखते हैं। अमेरिका भारत को एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार मानता है, लेकिन वह नहीं चाहता कि भारत रूस के साथ घनिष्ठ संबंध रखे।

3. व्यापार असंतुलन और अन्य मुद्दे (संभावित कारक)

  • यह संभव है कि ट्रम्प प्रशासन के तहत, वे व्यापार असंतुलन (जब एक देश दूसरे देश को जितना निर्यात करता है, उससे बहुत अधिक आयात करता है) को लेकर भी चिंतित रहे हों। हालांकि, इस विशिष्ट टैरिफ घोषणा में सीधे तौर पर इसका उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन व्यापार नीति अक्सर इन बड़े मुद्दों से जुड़ी होती है।

25% अतिरिक्त टैरिफ का क्या मतलब है? कुल 50% टैरिफ

यह समझना महत्वपूर्ण है कि 25% अतिरिक्त टैरिफ का मतलब यह नहीं है कि यह नया टैरिफ मौजूदा सभी शुल्कों को प्रतिस्थापित कर देगा। यह मौजूदा टैरिफ दरों के ऊपर एक अतिरिक्त बोझ है।

  • मौजूदा टैरिफ: यह संभव है कि भारत और अमेरिका के बीच विभिन्न वस्तुओं पर पहले से ही कुछ टैरिफ दरें लागू हों, जो द्विपक्षीय समझौतों या सामान्य व्यापार नियमों के तहत आती हैं।
  • 25% अतिरिक्त: अब, विशेष रूप से रूसी तेल खरीदने के संदर्भ में, अमेरिका ने एक नया 25% का टैरिफ जोड़ा है।
  • कुल 50%: यदि मौजूदा दरें मान लीजिए 25% थीं, तो 25% अतिरिक्त जोड़ने पर कुल दर 50% हो जाएगी। या, यदि मूल दरें कुछ और थीं, तो यह एक संचयी प्रभाव हो सकता है। सटीक “कुल 50%” की गणना आयात की जाने वाली वस्तु और उस पर लागू मूल शुल्क पर निर्भर करेगी।
  • 21 दिन की समय सीमा: यह बताता है कि यह एक तत्काल लागू होने वाला कदम नहीं है। देशों को अक्सर नए टैरिफ लागू करने से पहले एक निश्चित समय सीमा देनी होती है, ताकि वे अपनी व्यापार योजनाओं को समायोजित कर सकें या बातचीत कर सकें। यह 21 दिन की अवधि भारत को अपनी स्थिति स्पष्ट करने या अमेरिका के साथ बातचीत करने का अवसर भी दे सकती है।

उदाहरण: मान लीजिए भारत अमेरिका से कुछ खास मशीनरी का आयात करता है, जिस पर पहले से 15% टैरिफ था। अब, अगर अमेरिका रूसी तेल के कारण भारत पर 25% का “अतिरिक्त” टैरिफ लगाता है, तो नई कुल दर 15% + 25% = 40% हो सकती है। यदि किसी विशेष वस्तु पर पहले से 25% टैरिफ था, तो वह 50% हो जाएगा। यह “कुल 50%” एक समग्र संकेत है कि टैरिफ का बोझ काफी बढ़ गया है।

भारत पर संभावित प्रभाव (Potential Impact on India)

यह टैरिफ घोषणा भारत के लिए कई स्तरों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है:

1. आर्थिक प्रभाव

  • ऊर्जा लागत में वृद्धि: यदि टैरिफ सीधे तौर पर आयातित तेल पर लागू होता है, तो इससे भारत के लिए ऊर्जा आयात की लागत बढ़ जाएगी। यह न केवल सरकार के लिए बल्कि आम उपभोक्ताओं के लिए भी पेट्रोल, डीजल और अन्य पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि का कारण बन सकता है।
  • मुद्रास्फीति का दबाव: ऊर्जा लागत में वृद्धि सीधे तौर पर परिवहन लागत और विनिर्माण लागत को बढ़ाती है, जिससे समग्र मुद्रास्फीति (महंगाई) बढ़ सकती है।
  • व्यापार घाटा: यदि ऊर्जा आयात महंगा हो जाता है, तो भारत का व्यापार घाटा (आयात और निर्यात के बीच का अंतर) बढ़ सकता है, जो देश की आर्थिक स्थिरता के लिए चिंता का विषय हो सकता है।
  • निवेश पर प्रभाव: इस तरह की अप्रत्याशित व्यापार बाधाएं विदेशी निवेशकों के विश्वास को हिला सकती हैं, जिससे भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • घरेलू उद्योगों पर असर: ऊर्जा और परिवहन लागत बढ़ने से कई घरेलू उद्योगों की उत्पादन लागत बढ़ेगी, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो सकती है।

2. विदेश नीति और भू-राजनीतिक प्रभाव

  • रूस के साथ संबंध: भारत को अब रूस के साथ अपने तेल आयात को लेकर एक मुश्किल फैसला लेना पड़ सकता है। क्या वह अमेरिका के दबाव में रूस से दूरी बनाएगा, या अपनी ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता देगा? यह फैसला भारत-रूस संबंधों को प्रभावित करेगा।
  • अमेरिका के साथ संबंध: भारत अमेरिका को एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार मानता है, विशेष रूप से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए। इस टैरिफ घोषणा से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ सकता है। भारत को संतुलन बनाना होगा।
  • अन्य देशों पर प्रभाव: यदि अमेरिका भारत पर टैरिफ लगाता है, तो यह अन्य देशों के लिए एक मिसाल कायम कर सकता है जो रूस से तेल खरीद रहे हैं या अन्य अमेरिकी विरोधी नीतियों का पालन कर रहे हैं।
  • बहुपक्षीय मंच: यह मामला विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भी उठाया जा सकता है, हालांकि WTO के नियम और उनके प्रवर्तन की अपनी जटिलताएं हैं।

अमेरिका पर संभावित प्रभाव (Potential Impact on USA)

हालांकि यह कदम अमेरिका द्वारा उठाया गया है, लेकिन इसके कुछ प्रभाव अमेरिका पर भी पड़ सकते हैं:

  • भारत की प्रतिक्रिया: भारत जवाबी कार्रवाई के रूप में अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ लगा सकता है, जिससे अमेरिकी निर्यातकों को नुकसान होगा।
  • भू-राजनीतिक गठजोड़: भारत जैसे महत्वपूर्ण साझेदार के साथ संबंध खराब होने से अमेरिका के लिए इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी रणनीतिक स्थिति कमजोर हो सकती है।
  • वैश्विक ऊर्जा बाजार: भारत की आयात नीतियों में बदलाव से वैश्विक ऊर्जा बाजारों में और अधिक अस्थिरता आ सकती है।
  • घरेलू उपभोक्ता: यदि भारत जवाबी टैरिफ लगाता है, तो अमेरिकी उपभोक्ताओं को भी कुछ आयातित वस्तुओं के लिए अधिक भुगतान करना पड़ सकता है।

भारत के लिए चुनौतियाँ और कूटनीतिक उपाय

भारत के सामने अब कुछ बड़ी चुनौतियाँ हैं:

  • ऊर्जा सुरक्षा बनाम भू-राजनीति: भारत को अपनी ऊर्जा जरूरतों और अमेरिका के साथ अपने रणनीतिक संबंधों के बीच एक नाजुक संतुलन बनाना होगा।
  • प्रतिबंधों से निपटना: भारत को अमेरिकी प्रतिबंधों के कानूनी और आर्थिक पहलुओं को समझने और उनसे निपटने के लिए एक स्पष्ट रणनीति बनानी होगी।
  • रूस के साथ संबंध बनाए रखना: भारत ऐतिहासिक रूप से रूस के साथ एक मजबूत रक्षा और आर्थिक संबंध रखता है। इस संबंध को बनाए रखते हुए अमेरिका को संतुष्ट करना एक चुनौती है।

संभावित कूटनीतिक और आर्थिक उपाय:

  • अमेरिका के साथ बातचीत: भारत को तुरंत अमेरिका के साथ उच्च-स्तरीय कूटनीतिक बातचीत शुरू करनी चाहिए। इसमें अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं, रूस के साथ संबंधों की प्रकृति और अमेरिकी चिंताओं को समझना शामिल है।
  • छूट (Waiver) के लिए प्रयास: भारत उन देशों की तरह अमेरिका से विशेष छूट (Waiver) मांगने का प्रयास कर सकता है जिन्हें पहले छूट दी गई थी, यह तर्क देते हुए कि भारत ऊर्जा विविधता के लिए काम कर रहा है और रूसी तेल केवल एक स्रोत है।
  • आपूर्ति स्रोतों का विविधीकरण: भारत को अपनी ऊर्जा निर्भरता को कम करने के लिए अन्य देशों (जैसे मध्य पूर्व, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका) से तेल और गैस की खरीद को और बढ़ाना चाहिए।
  • नवीकरणीय ऊर्जा पर जोर: दीर्घकालिक समाधान के रूप में, भारत को अपनी नवीकरणीय ऊर्जा (सौर, पवन) क्षमता को तेजी से बढ़ाना चाहिए ताकि आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो सके।
  • वैश्विक मंचों का उपयोग: भारत विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे मंचों पर अपनी स्थिति स्पष्ट कर सकता है और एकतरफा टैरिफ लगाने की अमेरिका की कार्रवाई पर सवाल उठा सकता है, यदि यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों का उल्लंघन करता है।

UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

यह घटना UPSC सिविल सेवा परीक्षा के कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों को कवर करती है:

  • अंतर्राष्ट्रीय संबंध (GS Paper II): भारत-अमेरिका संबंध, भारत-रूस संबंध, भू-राजनीतिक गठजोड़, प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय संगठन और भारत की विदेश नीति।
  • अर्थव्यवस्था (GS Paper III): अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, व्यापार संतुलन, टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाएं, मुद्रास्फीति, ऊर्जा सुरक्षा, एफडीआई, भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्विक घटनाओं का प्रभाव।
  • समसामयिक मामले: वर्तमान घटनाओं की समझ और उनके विश्लेषणात्मक अध्ययन का महत्व।

विश्लेषण के बिंदु:

  • ‘रूसी तेल की खरीद’ को कारण के रूप में देखना: यह सिर्फ एक कारण है या अमेरिका की बड़ी भू-राजनीतिक रणनीति का हिस्सा?
  • भारत की प्रतिक्रिया का आकलन: क्या भारत को अमेरिका के दबाव में आना चाहिए या अपनी राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए?
  • द्विपक्षीय संबंधों पर प्रभाव: भारत-अमेरिका और भारत-रूस संबंधों पर इस घटना के दीर्घकालिक प्रभाव क्या होंगे?
  • वैश्विक व्यापार व्यवस्था पर प्रभाव: क्या यह एकतरफा कार्रवाई संरक्षणवाद (Protectionism) की ओर बढ़ते रुझान को दर्शाती है?

निष्कर्ष (Conclusion)

भारत पर अमेरिकी टैरिफ की यह घोषणा एक जटिल और बहुआयामी मुद्दा है। यह केवल आयात शुल्क का मामला नहीं है, बल्कि यह भू-राजनीति, ऊर्जा सुरक्षा, और अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति का भी खेल है। भारत को अपनी आर्थिक स्थिरता और राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए, अपनी विदेश नीति में एक मुश्किल संतुलन बनाना होगा। यह घटना भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने और बाहरी झटकों से निपटने की अपनी क्षमता को बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और भारतीय अर्थव्यवस्था के बीच गहरे संबंध को समझने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान करता है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. हालिया अमेरिकी टैरिफ घोषणा के अनुसार, भारत पर अतिरिक्त टैरिफ की दर क्या है?
a) 15%
b) 25%
c) 30%
d) 50%

उत्तर: b) 25%

व्याख्या: समाचार के अनुसार, अमेरिका ने भारत पर 25% का अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा की है।

2. अमेरिका द्वारा भारत पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने के पीछे मुख्य वजह क्या बताई गई है?
a) भारत का व्यापार घाटा
b) भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद
c) भारत का चीन के साथ व्यापार
d) भारत की टैरिफ नीतियां

उत्तर: b) भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद

व्याख्या: समाचार में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इस फैसले के पीछे मुख्य वजह भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद को बताया जा रहा है।

3. “टैरिफ” (Tariff) शब्द का अर्थ क्या है?
a) देश के भीतर उत्पादित वस्तुओं पर लगने वाला कर
b) दूसरे देश से आयात किए जाने वाले माल पर लगने वाला कर
c) निर्यात की जाने वाली वस्तुओं पर लगने वाला कर
d) सेवाओं पर लगने वाला कर

उत्तर: b) दूसरे देश से आयात किए जाने वाले माल पर लगने वाला कर

व्याख्या: टैरिफ आयात शुल्क होता है जो दूसरे देशों से आने वाले सामान पर लगाया जाता है।

4. निम्नलिखित में से कौन सा टैरिफ का एक उद्देश्य नहीं है?
a) सरकारी राजस्व बढ़ाना
b) घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना
c) अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना
d) राष्ट्रीय सुरक्षा को बनाए रखना

उत्तर: c) अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना

व्याख्या: टैरिफ अक्सर संरक्षणवादी या राजनीतिक उद्देश्यों के लिए होते हैं, और वे हमेशा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत नहीं करते, बल्कि कभी-कभी तनाव पैदा करते हैं।

5. अमेरिका द्वारा ईरान पर प्रतिबंध लगाने का मुख्य कारण क्या है?
a) ईरान की परमाणु हथियार बनाने की क्षमता
b) ईरान का आतंकवाद का समर्थन
c) ईरान और भारत के बीच व्यापारिक संबंध
d) ईरान का क्षेत्रीय विस्तारवाद

उत्तर: a) ईरान की परमाणु हथियार बनाने की क्षमता

व्याख्या: अमेरिका ने ईरान पर उसके परमाणु कार्यक्रम को लेकर प्रतिबंध लगाए हैं।

6. “महत्वपूर्ण खरीदार” (Significant Purchaser) सिद्धांत, जैसा कि अमेरिकी प्रतिबंधों में उल्लिखित है, का संबंध किससे है?
a) उन देशों से जो अमेरिका से बड़ी मात्रा में सामान खरीदते हैं।
b) उन देशों से जो प्रतिबंधों के बावजूद ईरान से तेल खरीदते हैं।
c) उन कंपनियों से जो अमेरिका में प्रमुख नियोक्ता हैं।
d) उन देशों से जो अमेरिका के प्रमुख व्यापारिक भागीदार हैं।

उत्तर: b) उन देशों से जो प्रतिबंधों के बावजूद ईरान से तेल खरीदते हैं।

व्याख्या: यह सिद्धांत उन देशों पर लागू होता है जो अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद ईरान से तेल आयात करते हैं।

7. यूक्रेन युद्ध के बाद भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद बढ़ाने के पीछे मुख्य आर्थिक कारण क्या है?
a) रूस के साथ भारत का ऐतिहासिक गठबंधन
b) रूसी तेल पर रियायती दरें
c) वैश्विक तेल आपूर्ति में व्यवधान
d) उपर्युक्त सभी

उत्तर: d) उपर्युक्त सभी

व्याख्या: रियायती दरें, ऊर्जा सुरक्षा की आवश्यकता और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की अस्थिरता जैसे कारक भारत को रूसी तेल की ओर धकेलते हैं।

8. यदि किसी देश पर “अतिरिक्त टैरिफ” लगाया जाता है, तो इसका क्या अर्थ है?
a) मौजूदा टैरिफ दर को समाप्त कर दिया गया है।
b) टैरिफ दर को दोगुना कर दिया गया है।
c) यह मौजूदा टैरिफ दरों के ऊपर एक अतिरिक्त शुल्क है।
d) यह केवल विशेष राजनीतिक कारणों से लगाया गया एक प्रतीकात्मक शुल्क है।

उत्तर: c) यह मौजूदा टैरिफ दरों के ऊपर एक अतिरिक्त शुल्क है।

व्याख्या: “अतिरिक्त” शब्द इंगित करता है कि यह मौजूदा शुल्क पर एक नई परत है।

9. टैरिफ का संभावित परिणाम क्या हो सकता है?
a) आयातित वस्तुओं की कीमतों में कमी
b) घरेलू उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि
c) व्यापार घाटे में कमी
d) विदेशी निवेश में वृद्धि

उत्तर: b) घरेलू उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि

व्याख्या: टैरिफ आयातित वस्तुओं को महंगा बनाकर घरेलू उद्योगों को लाभ पहुंचाते हैं।

10. भारत के लिए इस स्थिति में एक संभावित कूटनीतिक कदम क्या हो सकता है?
a) रूस से सभी तेल खरीद बंद कर देना।
b) अमेरिका के साथ बातचीत करके छूट (Waiver) प्राप्त करने का प्रयास करना।
c) अन्य देशों से तेल आयात पर पूरी तरह रोक लगा देना।
d) केवल चीन से तेल आयात बढ़ाना।

उत्तर: b) अमेरिका के साथ बातचीत करके छूट (Waiver) प्राप्त करने का प्रयास करना।

व्याख्या: अमेरिका से छूट की मांग करना या बातचीत करना एक सामान्य कूटनीतिक तरीका है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. “भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद” के संदर्भ में अमेरिका द्वारा भारत पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने के निर्णय के पीछे की भू-राजनीतिक और आर्थिक प्रेरणाओं का विश्लेषण करें। इस कदम के भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और ऊर्जा सुरक्षा पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। (250 शब्द)
2. संरक्षणवाद (Protectionism) और मुक्त व्यापार (Free Trade) के बीच बढ़ते तनाव के युग में, अमेरिका के टैरिफ संबंधी कदमों को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रणाली के लिए एक चुनौती के रूप में देखें। टैरिफ के कारणों, वैश्विक व्यापार पर इसके प्रभाव, और बहुपक्षीय व्यापार मंचों (जैसे WTO) के लिए इसके निहितार्थों पर चर्चा करें। (250 शब्द)
3. भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय हित है। रूसी तेल की खरीद को लेकर अमेरिकी प्रतिबंधों और टैरिफ के संदर्भ में, भारत के सामने मौजूद कूटनीतिक और आर्थिक दुविधाओं का विश्लेषण करें। भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने और अपने प्रमुख रणनीतिक साझेदारों के साथ संबंध बनाए रखने के लिए क्या कदम उठा सकता है? (250 शब्द)

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