क्या आप समाजशास्त्र के मर्मज्ञ हैं? अपनी क्षमता परखें!
समाजशास्त्र की दुनिया में आपका स्वागत है, जहाँ हर दिन एक नई बौद्धिक यात्रा का आगाज़ होता है! आज हम आपके अवधारणात्मक ज्ञान और विश्लेषणात्मक कौशल की परीक्षा लेने के लिए 25 नवीन और चुनौतीपूर्ण प्रश्न लेकर आए हैं। तैयार हो जाइए, अपनीSociology की तैयारी को एक नया आयाम देने के लिए!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और दिए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘वेरस्टेहेन’ (Verstehen) की अवधारणा, जो सामाजिक क्रियाओं के पीछे व्यक्तिपरक अर्थों को समझने पर बल देती है, किस समाजशास्त्री द्वारा प्रस्तुत की गई थी?
- एमिल दुर्खीम
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मैक्स वेबर ने ‘वेरस्टेहेन’ की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसका अर्थ है ‘समझना’। यह इस बात पर जोर देता है कि समाजशास्त्रियों को सामाजिक क्रियाओं को उनके पीछे के व्यक्तिपरक अर्थों और इरादों के साथ समझना चाहिए।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा उनके व्याख्यात्मक समाजशास्त्र (interpretive sociology) का केंद्रीय तत्व है और विशेष रूप से उनकी रचना ‘इकोनॉमी एंड सोसाइटी’ में वर्णित है। यह दुर्खीम के प्रत्यक्षवाद (positivism) के विपरीत है, जो सामाजिक तथ्यों को बाहरी और वस्तुनिष्ठ मानता है।
- अincorrect विकल्प: ‘एनोमी’ (Anomie) दुर्खीम की एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जो सामाजिक मानदंडों के कमजोर पड़ने की स्थिति को दर्शाती है। ‘वर्ग संघर्ष’ (Class Conflict) कार्ल मार्क्स का केंद्रीय विचार है। जॉर्ज हर्बर्ट मीड ने ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) और ‘स्व’ (Self) के विकास की व्याख्या की है।
प्रश्न 2: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा गढ़ी गई ‘संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा भारतीय समाज में किस प्रक्रिया का वर्णन करती है?
- पश्चिमी संस्कृति का अनुकरण
- जाति पदानुक्रम में उच्च स्थिति प्राप्त करने के लिए निम्न जाति द्वारा उच्च जाति के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और विश्वासों को अपनाना
- शहरीकरण के कारण पारंपरिक मूल्य व्यवस्था का टूटना
- आधुनिक तकनीकी और संस्थागत परिवर्तन
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: संस्क्ृतिकरण, जिसे एम.एन. श्रीनिवास ने गढ़ा था, एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें निम्न जाति या जनजाति के लोग किसी उच्च जाति (आमतौर पर द्विजातियों) के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों, विचारधाराओं और जीवन शैली को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति को सुधारने का प्रयास करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा श्रीनिवास की पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ में प्रमुखता से आई। यह मुख्य रूप से सांस्कृतिक गतिशीलता (cultural mobility) का एक रूप है, न कि संरचनात्मक गतिशीलता (structural mobility) का।
- अincorrect विकल्प: ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) पश्चिमी देशों की जीवन शैली और मूल्यों को अपनाने की प्रक्रिया है। ‘शहरीकरण’ (Urbanization) गांवों से शहरों की ओर जनसंख्या के स्थानांतरण और उससे उत्पन्न सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तनों से संबंधित है। ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) एक व्यापक शब्द है जो आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में होने वाले परिवर्तनों को समाहित करता है।
प्रश्न 3: दुर्खीम के अनुसार, ‘एनोमी’ (Anomie) की स्थिति कब उत्पन्न होती है?
- जब समाज में अत्यधिक सामाजिक नियंत्रण होता है
- जब व्यक्ति अपनी पहचान खो देता है
- जब समाज में नियमों और मूल्यों का स्पष्ट अभाव हो जाता है या वे कमजोर पड़ जाते हैं
- जब व्यक्तिगत स्वतंत्रता अत्यधिक बढ़ जाती है
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एमिल दुर्खीम ने ‘एनोमी’ की अवधारणा का प्रयोग सामाजिक विघटन (social disintegration) की उस स्थिति का वर्णन करने के लिए किया जहाँ समाज के सदस्यों के बीच सामूहिक चेतना (collective consciousness) और सामाजिक एकीकरण (social integration) कमजोर पड़ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति को दिशाहीनता और अनिश्चितता का अनुभव होता है। यह तब होता है जब पारंपरिक नियम या तो अप्रचलित हो जाते हैं या उन्हें स्पष्ट रूप से प्रतिस्थापित नहीं किया जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने इसे ‘आत्महत्या’ (Suicide) और ‘समाज में श्रम विभाजन’ (The Division of Labour in Society) जैसी अपनी रचनाओं में विस्तृत किया है। यह विशेष रूप से तीव्र सामाजिक परिवर्तनों, आर्थिक संकटों या अचानक समृद्धि के समय देखा जा सकता है।
- अincorrect विकल्प: अत्यधिक सामाजिक नियंत्रण ‘एनोमी’ के विपरीत, अति-विनियमन (over-regulation) या अनुरूपता (conformity) की स्थिति पैदा कर सकता है। पहचान खोना ‘एनोमी’ का एक परिणाम हो सकता है, लेकिन यह स्वयं ‘एनोमी’ की परिभाषा नहीं है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अत्यधिक बढ़ना भी ‘एनोमी’ की ओर ले जा सकता है, लेकिन इसकी मूल जड़ सामाजिक नियमों और मूल्यों में शिथिलता है।
प्रश्न 4: मैकाइवर और पेज ने निम्नलिखित में से किसे ‘सामाजिक संरचना’ (Social Structure) का अंग नहीं माना है?
- समूह
- प्रक्रियाएँ
- प्रतीक
- प्रस्थापनाएँ (Institutions)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मैकाइवर और पेज ने अपनी पुस्तक ‘सोशियोलॉजी’ में सामाजिक संरचना को समाज के विभिन्न अंगों जैसे कि समूह, समुदाय, संस्थाएँ (प्रस्थापनाएँ), स्थिति, भूमिका, वर्ग, समिति, जनसमूह आदि के एक जटिल ताने-बाने के रूप में परिभाषित किया है। उन्होंने ‘प्रक्रियाओं’ (Processes) को सामाजिक संरचना का स्थायी अंग नहीं, बल्कि संरचना के भीतर घटित होने वाली क्रियाओं के रूप में देखा है।
- संदर्भ और विस्तार: सामाजिक प्रक्रियाएं (जैसे सहयोग, संघर्ष, समायोजन) गतिशील होती हैं, जबकि सामाजिक संरचना अपेक्षाकृत स्थिर होती है।
- अincorrect विकल्प: समूह, प्रतीक और प्रस्थापनाएँ (जैसे परिवार, राज्य, शिक्षा) मैकाइवर और पेज के अनुसार सामाजिक संरचना के अभिन्न अंग हैं, क्योंकि वे समाज के स्थापित पैटर्न और संबंधों का निर्माण करते हैं।
प्रश्न 5: निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता ‘परिवार’ (Family) को एक ‘सार्वभौमिक सामाजिक संस्था’ (Universal Social Institution) बनाती है?
- सभी संस्कृतियों में विवाह की अनिवार्यता
- बच्चों का प्रजनन और लालन-पालन
- सभी समाजों में पितृसत्तात्मक व्यवस्था का होना
- एक समान कानूनी ढाँचा
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: परिवार को सार्वभौमिक इसलिए माना जाता है क्योंकि दुनिया की सभी ज्ञात संस्कृतियों में किसी न किसी रूप में प्रजनन (reproduction) और बच्चों के लालन-पालन (nurturing/socialization) का कार्य करने वाली इकाई मौजूद होती है। यह इकाई ही परिवार का मूल कार्य है।
- संदर्भ और विस्तार: यद्यपि परिवार के स्वरूप (जैसे एकल परिवार, संयुक्त परिवार), विवाह के नियम (जैसे एकविवाह, बहुविवाह) और सत्ता की संरचना (जैसे पितृसत्ता, मातृसत्ता) विभिन्न समाजों में भिन्न हो सकती है, परंतु प्रजनन और बच्चों के समाजीकरण का कार्य एक मूलभूत आवश्यकता के रूप में हमेशा पाया जाता है।
- अincorrect विकल्प: सभी संस्कृतियों में विवाह की अनिवार्यता नहीं है (जैसे कुछ संस्कृतियों में बिना विवाह के भी संतान हो सकती है)। सभी समाजों में पितृसत्तात्मक व्यवस्था नहीं होती (मातृसत्तात्मक समाज भी रहे हैं)। एक समान कानूनी ढाँचा भी विश्वव्यापी नहीं है; कानूनी व्यवस्थाएँ सांस्कृतिक और राष्ट्रीय विशिष्टताएँ हैं।
प्रश्न 6: आर.के. मर्टन द्वारा प्रस्तावित ‘कार्यवाद’ (Functionalism) के संदर्भ में, ‘अप्रकट कार्य’ (Latent Function) से क्या तात्पर्य है?
- किसी सामाजिक संस्था का घोषित या प्रत्यक्ष उद्देश्य
- किसी सामाजिक संस्था के अनपेक्षित और अघोषित परिणाम
- किसी सामाजिक पैटर्न का विघटनकारी प्रभाव
- सामाजिक परिवर्तन की दर
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: रॉबर्ट के. मर्टन ने संरचनात्मक-प्रकार्यवाद (Structural Functionalism) के अपने परिष्कृत संस्करण में ‘कार्य’ को दो भागों में बांटा: प्रकट कार्य (Manifest Function) और अप्रकट कार्य (Latent Function)। अप्रकट कार्य वे अनपेक्षित, अनजाने या अघोषित परिणाम होते हैं जो किसी सामाजिक संस्था या क्रिया के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, कॉलेज जाने का प्रकट कार्य डिग्री प्राप्त करना और नौकरी के लिए तैयार होना है, जबकि अप्रकट कार्यों में जीवन भर के लिए दोस्त बनाना, नेटवर्क विकसित करना, या सामाजिक गतिविधियों में भाग लेना शामिल हो सकता है।
- अincorrect विकल्प: ‘प्रकट कार्य’ (Manifest Function) घोषित या प्रत्यक्ष उद्देश्य होता है। ‘विघटनकारी प्रभाव’ (Dysfunction) किसी सामाजिक पैटर्न का नकारात्मक परिणाम होता है। ‘सामाजिक परिवर्तन की दर’ (Rate of Social Change) एक अलग अवधारणा है।
प्रश्न 7: भारत में जाति व्यवस्था को समझने के लिए ‘प्रक्रियात्मक दृष्टिकोण’ (Processual Approach) का समर्थन करने वाले प्रमुख समाजशास्त्री कौन थे?
- जी.एस. घुरिये
- इरावती कर्वे
- एम.एन. श्रीनिवास
- योगेन्द्र सिंह
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एम.एन. श्रीनिवास ने जाति को एक स्थिर व्यवस्था के बजाय एक गतिशील और प्रक्रियात्मक इकाई के रूप में देखा। उन्होंने ‘संसक्ृतिकरण’ (Sanskritization) और ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) जैसी प्रक्रियाओं का अध्ययन करके दिखाया कि कैसे जाति व्यवस्था समय के साथ बदलती रहती है और विभिन्न कारकों से प्रभावित होती है।
- संदर्भ और विस्तार: उनके कार्य, विशेष रूप से ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ और ‘Caste in Modern India and Other Essays’, ने भारतीय समाजशास्त्र में प्रक्रियात्मक दृष्टिकोण को प्रमुखता दी।
- अincorrect विकल्प: जी.एस. घुरिये ने जाति व्यवस्था के स्थायित्व और उसकी विशेषताओं पर जोर दिया। इरावती कर्वे ने भी जाति पर विस्तार से लिखा, लेकिन श्रीनिवास का योगदान प्रक्रियात्मकता पर अधिक केंद्रित था। योगेन्द्र सिंह ने भारतीय समाज में परिवर्तन के सैद्धांतिक दृष्टिकोण विकसित किए, जिनमें आधुनिकीकरण और परिवर्तन की प्रक्रियाएँ शामिल हैं, लेकिन जाति की गतिशीलता को श्रीनिवास जितना प्रमुखता से नहीं उठाया।
प्रश्न 8: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के अनुसार, ‘स्व’ (Self) का विकास कैसे होता है?
- जन्मजात जैविक प्रवृत्तियों द्वारा
- सामाजिक अंतःक्रिया और दूसरों की प्रतिक्रियाओं के माध्यम से
- केवल व्यक्तिगत चिंतन और आत्म-निरीक्षण द्वारा
- अचेतन मन की संरचनाओं द्वारा
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) और चार्ल्स हॉर्टन कूली (Charles Horton Cooley) जैसे प्रतीकात्मक अंतःक्रियावादियों के अनुसार, व्यक्ति का ‘स्व’ (Self) कोई जन्मजात या स्थिर चीज नहीं है, बल्कि यह सामाजिक अंतःक्रियाओं के माध्यम से धीरे-धीरे विकसित होता है। व्यक्ति दूसरों के प्रति दूसरों की प्रतिक्रियाओं को देखकर और उनकी भूमिकाओं को ग्रहण करके स्वयं को समझता है।
- संदर्भ और विस्तार: मीड ने ‘टेकनिस’ (taking the role of the other) की प्रक्रिया को महत्वपूर्ण माना, जिसमें हम दूसरों के दृष्टिकोण को अपने अंदर आत्मसात करते हैं। कूली का ‘लुकिंग-ग्लास सेल्फ’ (Looking-glass Self) सिद्धांत भी यही बताता है कि हम स्वयं को वैसा ही समझते हैं जैसे हम दूसरों को लगता है कि हम हैं।
- अincorrect विकल्प: जन्मजात जैविक प्रवृत्तियां (a) या केवल व्यक्तिगत चिंतन (c) ‘स्व’ के निर्माण को पूरी तरह से स्पष्ट नहीं करते। अचेतन मन (d) सिगमंड फ्रायड के मनोविश्लेषण का हिस्सा है, न कि प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का।
प्रश्न 9: निम्नलिखित में से कौन मार्क्स के ‘अलगाव’ (Alienation) के सिद्धांत का एक आयाम नहीं है?
- उत्पाद से अलगाव
- उत्पादन प्रक्रिया से अलगाव
- अपनी प्रजाति-प्रकृति (Species-nature) से अलगाव
- अन्य मनुष्यों से अलगाव
- राज्य से अलगाव
उत्तर: (e)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली के तहत श्रमिक के चार मुख्य प्रकार के अलगाव का वर्णन किया था: उत्पाद से अलगाव (alienation from the product of labor), उत्पादन प्रक्रिया से अलगाव (alienation from the process of labor), अपनी प्रजाति-प्रकृति से अलगाव (alienation from his species-being/human nature), और अन्य मनुष्यों से अलगाव (alienation from other men). उन्होंने राज्य से अलगाव को सीधे अपने अलगाव सिद्धांत के एक आयाम के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया, यद्यपि राज्य अप्रत्यक्ष रूप से अलगाव को बढ़ाने वाला कारक हो सकता है।
- संदर्भ और विस्तार: मार्क्स ने इन अलगावों को विशेष रूप से ‘इकोनॉमिक एंड फिलॉसॉफिकल मैन्युस्क्रिप्ट्स ऑफ 1844’ में विस्तार से बताया है।
- अincorrect विकल्प: (a), (b), (c), और (d) सभी मार्क्स द्वारा वर्णित अलगाव के मुख्य आयाम हैं। (e) राज्य से अलगाव, अलगाव का एक परिणाम हो सकता है लेकिन मार्क्स के मूल चार आयामों में शामिल नहीं है।
प्रश्न 10: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) की अवधारणा निम्नलिखित में से किस पर केंद्रित है?
- व्यक्तिगत मनोबल का स्तर
- समाज में असमानता का व्यवस्थित वितरण
- पारिवारिक संबंधों की जटिलता
- सांस्कृतिक मूल्यों का प्रसार
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक स्तरीकरण एक व्यापक समाजशास्त्रीय अवधारणा है जो समाज के सदस्यों को उनकी शक्ति, प्रतिष्ठा और धन के आधार पर पदानुक्रमित स्तरों या ‘परतों’ में वर्गीकृत और व्यवस्थित करने की प्रक्रिया का वर्णन करती है। यह समाज में संसाधनों और अवसरों के असमान वितरण से संबंधित है।
- संदर्भ और विस्तार: स्तरीकरण व्यवस्थाएँ जैसे कि वर्ग (class), स्थिति (status), जाति (caste), और लिंग (gender) समाज में लोगों के जीवन के अवसरों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती हैं।
- अincorrect विकल्प: व्यक्तिगत मनोबल (a), पारिवारिक संबंध (c), या सांस्कृतिक मूल्य (d) सामाजिक स्तरीकरण की सीधी परिभाषा या मुख्य फोकस नहीं हैं, यद्यपि वे स्तरीकरण से प्रभावित हो सकते हैं या उसके प्रभाव को प्रतिबिंबित कर सकते हैं।
प्रश्न 11: भारत में ‘आदिवासी समुदाय’ (Tribal Communities) की प्रमुख विशेषता निम्नलिखित में से कौन सी नहीं है?
- विशिष्ट भाषा और संस्कृति
- एक सजातीय सामाजिक-आर्थिक संरचना
- भूमि से घनिष्ठ संबंध
- अलग धार्मिक मान्यताएं और प्रथाएं
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: जबकि आदिवासी समुदाय अपनी विशिष्ट भाषा, संस्कृति, भूमि से घनिष्ठ संबंध और अलग धार्मिक प्रथाओं के लिए जाने जाते हैं, वे हमेशा एक ‘सजातीय’ (homogeneous) सामाजिक-आर्थिक संरचना वाले नहीं होते। उनके बीच भी आंतरिक भिन्नताएँ, वर्ग (जैसे मुखिया, सामान्य सदस्य), धन का असमान वितरण और विभिन्न व्यावसायिक समूह पाए जा सकते हैं, भले ही यह अन्य समाजों की तुलना में कम हो।
- संदर्भ और विस्तार: ‘सजातीय’ शब्द का अर्थ है एकरूपता; आदिवासी समुदायों में भी आंतरिक विभिन्नताएँ मौजूद होती हैं।
- अincorrect विकल्प: विशिष्ट भाषा, संस्कृति, भूमि से जुड़ाव और अलग धार्मिक प्रथाएं आदिवासियों की सामान्यतः पहचानी जाने वाली विशेषताएं हैं।
प्रश्न 12: ‘शक्ति’ (Power) की वेबरियन अवधारणा का सबसे अच्छा वर्णन निम्नलिखित में से कौन सा है?
- किसी को अपनी इच्छा के विरुद्ध भी कार्य कराने की क्षमता
- सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए सहमति प्राप्त करने की क्षमता
- किसी क्षेत्र पर औपचारिक अधिकार
- सामाजिक मानदंडों का अनुपालन सुनिश्चित करने का तंत्र
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मैक्स वेबर ने शक्ति (Macht) को “एक सामाजिक संबंध में, अपनी स्वयं की इच्छा को लागू करने की संभावना, भले ही प्रतिरोध हो” के रूप में परिभाषित किया। इसका अर्थ है कि शक्ति किसी भी व्यक्ति या समूह की वह क्षमता है जिससे वह दूसरों को अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने के लिए मजबूर कर सके, चाहे वे इसके लिए सहमत हों या नहीं।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर ने सत्ता (Authority) को शक्ति के वैध रूप (legitimate form) के रूप में भी वर्गीकृत किया, जो तीन प्रकार की होती है: तार्किक-कानूनी (legal-rational), करिश्माई (charismatic) और पारंपरिक (traditional)।
- अincorrect विकल्प: (b) और (d) सत्ता (authority) से अधिक संबंधित हैं, जो शक्ति का वैध रूप है। (c) औपचारिक अधिकार (formal authority) शक्ति का एक रूप हो सकता है, लेकिन यह वेबर की शक्ति की व्यापक परिभाषा का केवल एक पहलू है।
प्रश्न 13: निम्नलिखित में से कौन सामाजिक परिवर्तन (Social Change) का ‘प्रक्रियात्मक’ (Processual) सिद्धांत नहीं है?
- विकासवाद (Evolutionism)
- चक्रीय सिद्धांत (Cyclical Theory)
- संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)
- प्रक्रियात्मक व्यवहारवाद (Processual Behaviorism)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: विकासवाद (Evolutionism), चक्रीय सिद्धांत (Cyclical Theory) और संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory) सभी सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख सैद्धांतिक दृष्टिकोण या मॉडल हैं जो परिवर्तन की प्रक्रिया और उसके कारणों को समझाने का प्रयास करते हैं। ‘प्रक्रियात्मक व्यवहारवाद’ (Processual Behaviorism) समाजशास्त्र में सामाजिक परिवर्तन का एक स्थापित सिद्धांत नहीं है, जबकि ‘व्यवहारवाद’ (Behaviorism) मनोविज्ञान का एक सिद्धांत है।
- संदर्भ और विस्तार: विकासवाद (जैसे मॉर्गन, टाइलर) समाज को एक रेखीय पथ पर सरल से जटिल की ओर विकसित होते देखता है। चक्रीय सिद्धांत (जैसे सोरोकिन, स्पेंगलर) समाज को उत्थान और पतन के चक्रों से गुजरते हुए मानते हैं। संघर्ष सिद्धांत (जैसे मार्क्स) सामाजिक परिवर्तन का मुख्य चालक वर्ग संघर्ष को मानता है।
- अincorrect विकल्प: (a), (b), और (c) सामाजिक परिवर्तन के मान्यता प्राप्त प्रक्रियात्मक सिद्धांत हैं। (d) एक प्रासंगिक समाजशास्त्रीय सिद्धांत नहीं है।
प्रश्न 14: ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) से क्या तात्पर्य है?
- किसी व्यक्ति या समूह का एक सामाजिक स्थिति से दूसरी स्थिति में जाना
- समाज के भीतर लोगों की जनसंख्या का स्थानांतरण
- सामाजिक स्तरीकरण प्रणालियों का विकास
- सामाजिक संरचनाओं में परिवर्तन
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक गतिशीलता का अर्थ है व्यक्तियों या समूहों का एक सामाजिक स्तर (जैसे वर्ग, स्थिति) से दूसरे में जाना। यह ऊपर की ओर (ऊर्ध्वाधर गतिशीलता) या नीचे की ओर (ऊर्ध्वाधर गतिशीलता) हो सकती है, या एक ही स्तर के भीतर एक स्थिति से दूसरी स्थिति में जाना (क्षैतिज गतिशीलता)।
- संदर्भ और विस्तार: गतिशीलता समाज की खुली या बंद प्रकृति को दर्शाती है। एक ‘खुले’ समाज में जहाँ गतिशीलता अधिक होती है, वहाँ सामाजिक वर्गों के बीच आवागमन अपेक्षाकृत आसान होता है।
- अincorrect विकल्प: (b) जनसंख्या का स्थानांतरण ‘प्रवास’ (migration) कहलाता है। (c) स्तरीकरण प्रणालियों का विकास ‘सामाजिक स्तरीकरण’ का अध्ययन है। (d) सामाजिक संरचनाओं में परिवर्तन ‘सामाजिक परिवर्तन’ है, न कि विशेष रूप से सामाजिक गतिशीलता।
प्रश्न 15: मैकियावेली ने सत्ता (Power) के संदर्भ में जिस ‘राज्यादेश’ (Principle of Rule) की बात की, वह निम्नलिखित में से किस पर आधारित था?
- नैतिकता और न्याय
- जनता की सहमति
- शक्ति और चतुराई
- कानूनी अधिकार
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: निकोलो मैकियावेली ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द प्रिंस’ में शासकों को सत्ता बनाए रखने के लिए व्यावहारिक सलाह दी। उन्होंने तर्क दिया कि शासक को न केवल शक्ति का प्रयोग करना चाहिए, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर चतुराई, धोखे और क्रूरता का भी सहारा लेना पड़ सकता है। उनका ‘राज्यादेश’ नैतिकता से परे, शक्ति और राजनीतिक यथार्थवाद पर केंद्रित था।
- संदर्भ और विस्तार: मैकियावेली को अक्सर यथार्थवादी राजनीतिक दर्शन का संस्थापक माना जाता है, क्योंकि उन्होंने आदर्शवाद के बजाय शक्ति की वास्तविकताओं पर जोर दिया।
- अincorrect विकल्प: मैकियावेली के अनुसार, शासक के लिए नैतिकता (a) या जनता की अनवरत सहमति (b) हमेशा सत्ता बनाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं है; अक्सर अनैतिक साधनों का भी प्रयोग करना पड़ता है। कानूनी अधिकार (d) महत्वपूर्ण है, लेकिन वह केवल एक पहलू है; शक्ति और चतुराई अधिक महत्वपूर्ण हैं।
प्रश्न 16: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा, जो समाज में भौतिक और अभौतिक संस्कृति के बीच संतुलन के टूटने को दर्शाती है, किस समाजशास्त्री से जुड़ी है?
- अल्बर्ट स्मॉल
- विलियम फीडरनर ऑग्बर्न
- चार्ल्स ब्रुक्स
- रॉबर्ट ई. पार्क
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: विलियम फीडरनर ऑग्बर्न (William F. Ogburn) ने 1922 में अपनी पुस्तक ‘सोशियोलॉजी’ में ‘सांस्कृतिक विलंब’ की अवधारणा प्रस्तुत की। यह उस स्थिति का वर्णन करती है जब समाज में भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी, आविष्कार) में तेजी से परिवर्तन होता है, जबकि अभौतिक संस्कृति (जैसे रीति-रिवाज, कानून, मूल्य, सामाजिक नियंत्रण) उस परिवर्तन के साथ तालमेल बिठाने में पिछड़ जाती है।
- संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, इंटरनेट का आविष्कार भौतिक संस्कृति का हिस्सा है, लेकिन उस पर आधारित ऑनलाइन व्यवहार के नियम और गोपनीयता कानून (अभौतिक संस्कृति) को विकसित होने में समय लगता है, जिससे ‘सांस्कृतिक विलंब’ उत्पन्न होता है।
- अincorrect विकल्प: अल्बर्ट स्मॉल, चार्ल्स ब्रुक्स और रॉबर्ट ई. पार्क प्रमुख समाजशास्त्री थे, लेकिन ‘सांस्कृतिक विलंब’ की अवधारणा विशेष रूप से ऑग्बर्न से जुड़ी है।
प्रश्न 17: भारत में ‘वर्ग’ (Class) और ‘जाति’ (Caste) के बीच संबंध को समझने के लिए, किसने तर्क दिया कि दोनों ही स्तरीकरण के समानांतर या मिश्रित रूप प्रस्तुत करते हैं?
- ए.आर. देसाई
- एन.के. बोस
- टी.बी. बॉटमोर
- ई.एम. शिफेल्स
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एन.के. बोस (N.K. Bose) ने भारतीय समाज में जाति और वर्ग के बीच जटिल संबंधों का विश्लेषण किया। उन्होंने तर्क दिया कि आधुनिक भारत में, विशेष रूप से औद्योगीकरण और शहरीकरण के प्रभाव के कारण, पारंपरिक जाति व्यवस्था पर वर्ग-आधारित स्तरीकरण का प्रभाव बढ़ रहा है। उन्होंने सुझाव दिया कि जाति एक ‘व्यवसाय-आधारित’ (occupation-based) व्यवस्था के रूप में शुरू हुई और बाद में अधिक विशुद्ध रूप से ‘पवित्रता-अशुद्धता’ (purity-pollution) पर आधारित हो गई, जबकि वर्ग आर्थिक स्थिति पर आधारित है। वे दोनों के बीच एक अंतर्संबंध और परिवर्तन की प्रक्रिया देखते थे।
- संदर्भ और विस्तार: बोस का कार्य जाति और वर्ग की गतिशील प्रकृति को समझने में महत्वपूर्ण रहा है।
- अincorrect विकल्प: ए.आर. देसाई मार्क्सवादी दृष्टिकोण से भारतीय समाज का विश्लेषण करते थे। टी.बी. बॉटमोर और ई.एम. शिफेल्स जैसे पश्चिमी समाजशास्त्रियों ने भी वर्ग और स्तरीकरण पर काम किया, लेकिन एन.के. बोस का विशेष योगदान भारतीय संदर्भ में जाति-वर्ग संबंध को प्रक्रियात्मक रूप से देखने का है।
प्रश्न 18: ‘सहमति का प्रभुत्व’ (Hegemony of Consent) की अवधारणा, जिसके अनुसार शासक वर्ग अपनी शक्ति को केवल बल से नहीं, बल्कि विचारों और संस्कृति के माध्यम से बनाए रखता है, किससे संबंधित है?
- मैक्स वेबर
- कार्ल मार्क्स
- एंटोनियो ग्राम्शी
- लुई अल्थुसर
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एंटोनियो ग्राम्शी (Antonio Gramsci) ने ‘सहमति का प्रभुत्व’ (Hegemony) की अवधारणा विकसित की, जिसमें उन्होंने समझाया कि कैसे शासक वर्ग न केवल बल (coercion) द्वारा, बल्कि बौद्धिक और नैतिक नेतृत्व (intellectual and moral leadership) द्वारा भी अपनी विचारधारा को समाज में व्यापक रूप से स्वीकार्य बना लेता है। इससे अधीन वर्ग स्वयं उस व्यवस्था को स्वीकार करने लगता है जो उनके हितों के विपरीत भी हो सकती है।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा ग्राम्शी के ‘प्रिजन नोटबुक’ (Prison Notebooks) में मिलती है। यह मार्क्स के केवल आर्थिक निर्धारणवाद के विचार को चुनौती देती है।
- अincorrect विकल्प: वेबर ने शक्ति और सत्ता के विभिन्न रूपों की बात की, लेकिन ‘सहमति का प्रभुत्व’ ग्राम्शी की विशेष देन है। मार्क्स ने आर्थिक आधार और अधिरचना की बात की, लेकिन ग्राम्शी ने इस संबंध में सांस्कृतिक और वैचारिक कारकों पर अधिक बल दिया। अल्थुसर ने ‘वैचारिक राज्य उपकरण’ (Ideological State Apparatuses) की बात की, जो ग्राम्शी से प्रेरित है, लेकिन ‘सहमति का प्रभुत्व’ सीधे तौर पर ग्राम्शी से जुड़ा है।
प्रश्न 19: समाजशास्त्र में ‘नृजाति विज्ञान’ (Ethnography) विधि का मुख्य उद्देश्य क्या है?
- एक बड़ी आबादी के सामान्यीकृत निष्कर्ष निकालना
- किसी विशेष संस्कृति या सामाजिक समूह का गहन, प्रत्यक्ष अध्ययन करना
- सांख्यिकीय डेटा का विश्लेषण करना
- सिद्धांतों को विकसित करने के लिए ऐतिहासिक अभिलेखों की जाँच करना
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: नृजाति विज्ञान (Ethnography) एक गुणात्मक (qualitative) अनुसंधान विधि है जिसमें समाजशास्त्री या मानवविज्ञानी किसी विशेष संस्कृति, समुदाय या सामाजिक समूह के जीवन का गहन, प्रत्यक्ष, और लंबे समय तक अध्ययन (fieldwork) करते हैं। इसका उद्देश्य उस समूह के सदस्यों के परिप्रेक्ष्य, व्यवहार, विश्वासों और सामाजिक संरचनाओं की गहरी समझ विकसित करना है।
- संदर्भ और विस्तार: इसमें अक्सर प्रतिभागी अवलोकन (participant observation), साक्षात्कार (interviews) और केस स्टडी (case studies) जैसी तकनीकों का प्रयोग किया जाता है।
- अincorrect विकल्प: (a) सामान्यीकृत निष्कर्ष निकालना अक्सर मात्रात्मक (quantitative) विधियों का लक्ष्य होता है। (c) सांख्यिकीय डेटा का विश्लेषण मात्रात्मक अनुसंधान का हिस्सा है। (d) ऐतिहासिक अभिलेखों की जाँच ‘ऐतिहासिक अनुसंधान’ (historical research) का हिस्सा है।
प्रश्न 20: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा, जो लोगों के बीच संबंधों, नेटवर्क और विश्वास के माध्यम से प्राप्त लाभों पर जोर देती है, को किस समाजशास्त्री ने विकसित किया?
- पियरे बॉरड्यू
- जेम्स कॉलमैन
- रॉबर्ट पुटनम
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक पूंजी की अवधारणा कई समाजशास्त्रियों द्वारा विकसित की गई है, जिनमें पियरे बॉरड्यू (Pierre Bourdieu), जेम्स कॉलमैन (James Coleman) और रॉबर्ट पुटनम (Robert Putnam) प्रमुख हैं। बॉरड्यू ने इसे व्यक्तिगत संसाधनों के रूप में देखा, कॉलमैन ने इसे सामाजिक संरचनाओं के उत्पाद के रूप में, और पुटनम ने इसे नागरिक जुड़ाव और सामुदायिक जीवन के लिए महत्वपूर्ण माना।
- संदर्भ और विस्तार: तीनों ने सामाजिक नेटवर्क और सामाजिक संबंधों के महत्व को स्वीकार किया जो व्यक्तियों और समुदायों को लाभ पहुंचाते हैं।
- अincorrect विकल्प: चूंकि तीनों विद्वानों ने इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, इसलिए ‘उपरोक्त सभी’ सबसे उपयुक्त उत्तर है।
प्रश्न 21: निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता ‘आधुनिकता’ (Modernity) से संबंधित नहीं है?
- तर्कसंगतता (Rationality)
- पूंजीवाद (Capitalism)
- औद्योगीकरण (Industrialization)
- अन्धविश्वास (Superstition)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: आधुनिकता (Modernity) का काल और उससे जुड़ी अवधारणाएं तर्कसंगतता, पूंजीवाद, औद्योगीकरण, धर्मनिरपेक्षीकरण (secularization), राष्ट्र-राज्य का उदय और व्यक्तिवाद जैसी विशेषताओं से पहचानी जाती हैं। अन्धविश्वास (Superstition) को पारंपरिक समाजों की विशेषता माना जाता है और यह आधुनिकता की तर्कसंगतता की भावना के विपरीत है।
- संदर्भ और विस्तार: आधुनिकता समाजशास्त्र में एक केंद्रीय अवधारणा है जो मध्यकाल के बाद आए बड़े सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों को संदर्भित करती है।
- अincorrect विकल्प: तर्कसंगतता, पूंजीवाद और औद्योगीकरण आधुनिकता के मूल स्तंभ हैं। अन्धविश्वास इसके विपरीत है।
प्रश्न 22: ‘संस्था’ (Institution) की समाजशास्त्रीय परिभाषा के अनुसार, यह निम्नलिखित में से किसका प्रतिनिधित्व करती है?
- व्यक्तियों के बीच अनौपचारिक संबंध
- सामाजिक रूप से स्वीकृत और स्थिर व्यवहार पैटर्न का एक समूह
- केवल सरकारी संगठन
- बाजार में वस्तुओं का विनिमय
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: समाजशास्त्र में, एक संस्था (institution) सामाजिक रूप से स्वीकृत, स्थापित और अपेक्षाकृत स्थायी व्यवहार पैटर्न, नियमों, मानदंडों और मूल्यों का एक समूह है जो समाज की किसी विशेष आवश्यकता या उद्देश्य को पूरा करता है। ये लोगों के व्यवहार को निर्देशित और नियंत्रित करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: उदाहरणों में परिवार, विवाह, शिक्षा, धर्म, राज्य और अर्थव्यवस्था शामिल हैं। इन सभी में व्यवहार के विशिष्ट नियम और अपेक्षाएं होती हैं।
- अincorrect विकल्प: (a) अनौपचारिक संबंध ‘समूह’ (group) या ‘समुदाय’ (community) का हिस्सा हो सकते हैं, लेकिन संस्था की परिभाषा नहीं। (c) सरकारी संगठन (जैसे मंत्रालय) केवल एक प्रकार की संस्था (राज्य संस्था) का हिस्सा हैं, न कि स्वयं संस्था की पूरी परिभाषा। (d) बाजार में वस्तुओं का विनिमय ‘अर्थव्यवस्था’ नामक संस्था के भीतर होने वाली एक क्रिया है।
प्रश्न 23: भारत में ‘पंथ’ (Sect) और ‘संप्रदाय’ (Denomination) के बीच अंतर करने के लिए, समाजशास्त्री अक्सर किस आधार पर विचार करते हैं?
- केंद्रीय धार्मिक ग्रंथ की उपस्थिति
- धार्मिक नेता की करिश्माई प्रकृति
- संगठनात्मक संरचना, समाज के साथ संबंध और सदस्यता की प्रकृति
- प्रार्थना की आवृत्ति
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: समाजशास्त्रीय रूप से, पंथ (Sect) आमतौर पर एक छोटा, बहिष्कार करने वाला (exclusive) धार्मिक समूह होता है जो मुख्यधारा के धर्म से अलग हो जाता है, जिसमें अक्सर सदस्यों पर कड़ी मांगें होती हैं और वे अलगाववादी रुख अपनाते हैं। इसके विपरीत, संप्रदाय (Denomination) एक बड़ा, अधिक समावेशी (inclusive) समूह होता है जो मुख्यधारा के समाज के साथ अधिक सामंजस्य स्थापित करता है और जिसकी सदस्यता अधिक उदार होती है। मुख्य अंतर उनकी संगठनात्मक संरचना, समाज के साथ उनके संबंध और उनकी सदस्यता की प्रकृति में निहित है।
- संदर्भ और विस्तार: अर्नेस्ट ट्रेलट्श (Ernst Troeltsch) और बाद में हॉवर्ड बेकर (Howard Becker) ने इन अंतरों का विश्लेषण किया।
- अincorrect विकल्प: केंद्रीय धार्मिक ग्रंथ (a), धार्मिक नेता की करिश्माई प्रकृति (b) और प्रार्थना की आवृत्ति (d) पंथों और संप्रदायों में भिन्न हो सकती है, लेकिन ये संस्थागत और समाज-संबंधी अंतर जितने मौलिक नहीं हैं।
प्रश्न 24: ‘सामाजिक नियंत्रण’ (Social Control) के निम्नलिखित रूपों में से कौन सा बाह्य नियंत्रण (External Control) का एक उदाहरण है?
- आत्म-अनुशासन
- नैतिकता का अनुपालन
- कानून और पुलिस
- शर्म और पश्चाताप की भावना
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक नियंत्रण व्यक्तियों के व्यवहार को समाज के मानदंडों और अपेक्षाओं के अनुरूप बनाने की प्रक्रिया है। इसके दो मुख्य रूप हैं: आंतरिक नियंत्रण (Internal Control), जो व्यक्ति के अपने विवेक, नैतिकता और मूल्यों के माध्यम से होता है (जैसे आत्म-अनुशासन, शर्म), और बाह्य नियंत्रण (External Control), जो समाज द्वारा बाहर से लगाए जाते हैं (जैसे कानून, पुलिस, अदालतें, दंड, पुरस्कार)।
- संदर्भ और विस्तार: कानून, पुलिस, दंड व्यवस्था सामाजिक नियंत्रण के प्रमुख बाह्य तंत्र हैं।
- अincorrect विकल्प: (a), (b) और (d) सभी आंतरिक सामाजिक नियंत्रण के उदाहरण हैं, जहाँ व्यक्ति स्वयं अपने व्यवहार को नियंत्रित करता है।
प्रश्न 25: भारत में ‘पंचायती राज’ संस्थाओं का मुख्य उद्देश्य क्या है?
- केवल ग्रामीण विकास का समन्वय करना
- स्थानीय स्तर पर स्व-शासन को बढ़ावा देना और ग्रामीण आबादी की भागीदारी सुनिश्चित करना
- शहरी क्षेत्रों में विकास योजनाओं का क्रियान्वयन
- राष्ट्रीय नीतियों का विकेंद्रीकरण
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: पंचायती राज संस्थाएं (PRIs) भारत में स्थानीय स्व-शासन की एक व्यवस्था हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य जमीनी स्तर पर, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण (democratic decentralization) को प्राप्त करना है। यह नागरिकों को स्थानीय शासन में सीधे भाग लेने का अवसर प्रदान करती है और उन्हें अपने विकास की योजना बनाने और उसे लागू करने के लिए सशक्त बनाती है।
- संदर्भ और विस्तार: 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 ने पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिया और इसे ग्रामीण भारत में स्व-शासन का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बनाया।
- अincorrect विकल्प: (a) यद्यपि ग्रामीण विकास एक महत्वपूर्ण कार्य है, यह स्व-शासन को बढ़ावा देने के व्यापक उद्देश्य का एक हिस्सा मात्र है। (c) पंचायती राज मुख्य रूप से ग्रामीण भारत से संबंधित है, शहरी क्षेत्रों के लिए नगर पालिकाएं होती हैं। (d) राष्ट्रीय नीतियों का विकेंद्रीकरण एक परिणाम है, लेकिन मुख्य उद्देश्य स्थानीय स्व-शासन और भागीदारी है।