क्या आप तैयार हैं? समाजशास्त्र की गहरी समझ के लिए आज का महा-परीक्षण
समाजशास्त्र के महारथियों, अपनी अवधारणात्मक स्पष्टता और विश्लेषणात्मक कौशल को निखारने के लिए तैयार हो जाइए! आज हम आपके लिए लेकर आए हैं एक ऐसा अभ्यास सत्र जो आपके ज्ञान की सीमा को परखेगा और आपको प्रतियोगी परीक्षाओं की राह पर और मजबूत बनाएगा। आइए, इन 25 अनूठे प्रश्नों के साथ अपने समाजशास्त्रीय सफर को एक नई दिशा दें!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और दिए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘समूह बहिर्भाव’ (Group Exclusion) की अवधारणा का संबंध निम्नलिखित में से किस समाजशास्त्रीय सिद्धांत से है?
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
- संरचनात्मक-प्रकार्यवाद
- संघर्ष सिद्धांत
- नारीवाद
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: संघर्ष सिद्धांत, विशेष रूप से मार्क्सवादी परंपरा में, सामाजिक असमानता, शक्ति असंतुलन और संसाधनों पर नियंत्रण के इर्द-गिर्द घूमता है। समूह बहिर्भाव (जैसे सामाजिक, आर्थिक, या राजनीतिक बहिष्कार) अक्सर इन संघर्षों और सत्ता संरचनाओं का परिणाम होता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: संघर्ष सिद्धांतकार जैसे कार्ल मार्क्स, मैक्स वेबर (शक्ति और प्रभुत्व के अपने विश्लेषण में), और बाद के समाजशास्त्री अक्सर यह बताते हैं कि कैसे समाज के विशिष्ट समूह (जैसे शासक वर्ग, लिंग, या जाति) अन्य समूहों को संसाधनों, अवसरों और शक्ति से वंचित करके अपना प्रभुत्व बनाए रखते हैं।
- अincorrect विकल्प: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद सूक्ष्म-स्तरीय अंतःक्रियाओं पर केंद्रित है। संरचनात्मक-प्रकार्यवाद समाज को एक एकीकृत प्रणाली के रूप में देखता है। नारीवाद लैंगिक असमानताओं पर केंद्रित है, हालांकि यह समूह बहिर्भाव से संबंधित हो सकता है, संघर्ष सिद्धांत इसका अधिक व्यापक सैद्धांतिक आधार प्रदान करता है।
प्रश्न 2: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा प्रतिपादित ‘संसकृतीकरण’ (Sanskritization) की प्रक्रिया क्या दर्शाती है?
- उच्च जातियों द्वारा निम्न जातियों के रीति-रिवाजों को अपनाना
- निम्न जातियों या जनजातियों द्वारा उच्च जातियों के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और जीवन शैली को अपनाना
- पश्चिमी संस्कृति का भारतीय समाज पर प्रभाव
- आधुनिकीकरण के कारण पारंपरिक मूल्यों का क्षरण
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: संसकृतीकरण, जैसा कि एम.एन. श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ में परिभाषित किया है, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें निम्न सामाजिक-जातीय या जनजातीय समूह किसी उच्च, अक्सर ‘द्विजा’ (dwija) जाति के अनुकरण द्वारा अपनी स्थिति सुधारने का प्रयास करते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह प्रक्रिया मुख्य रूप से संस्कृत भाषा, धार्मिक ग्रंथों, खान-पान, वेशभूषा और जीवन के अन्य पहलुओं में उच्च जातियों के नियमों और आचरण को अपनाने के माध्यम से होती है। यह सांस्कृतिक गतिशीलता का एक रूप है।
- अincorrect विकल्प: (a) विपरीत दिशा है। (c) पश्चिमीकरण को दर्शाता है, और (d) आधुनिकीकरण का एक संभावित परिणाम है, न कि संसकृतीकरण।
प्रश्न 3: जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) के अनुसार, ‘मैं’ (I) और ‘मुझे’ (Me) के द्वंद्व से व्यक्ति का स्व (Self) कैसे विकसित होता है?
- ‘मैं’ समाज के मानदंडों को आंतरिक बनाता है, और ‘मुझे’ उन मानदंडों के प्रति व्यक्ति की प्रतिक्रिया है।
- ‘मुझे’ समाज के सामान्यीकृत अन्य (Generalized Other) का प्रतिनिधित्व करता है, और ‘मैं’ व्यक्ति की अपनी तत्काल, अनियोजित प्रतिक्रिया है।
- ‘मैं’ और ‘मुझे’ दोनों ही सामाजिक अंतःक्रिया से स्वतंत्र जन्मजात विशेषताएँ हैं।
- ‘मैं’ दूसरों की अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करता है, जबकि ‘मुझे’ केवल व्यक्तिगत इच्छाओं को दर्शाता है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: मीड के स्व (Self) के विकास के सिद्धांत के अनुसार, ‘मैं’ (I) व्यक्ति की तात्कालिक, अप्रत्याशित और प्रतिक्रियाशील प्रकृति है, जबकि ‘मुझे’ (Me) समाज द्वारा आत्मसात किए गए दृष्टिकोणों, अपेक्षाओं और सामाजिक मानदंडों (सामान्यीकृत अन्य) का प्रतीक है। स्व इन दोनों के बीच निरंतर अंतःक्रिया से उत्पन्न होता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: मीड के विचारों को ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ के रूप में जाना जाता है। वह मानते थे कि स्व का विकास केवल सामाजिक अंतःक्रिया के माध्यम से होता है, विशेष रूप से भाषा और खेल (play) और खेल (game) चरणों में।
- अincorrect विकल्प: (a) ‘मैं’ और ‘मुझे’ की भूमिकाओं को गलत बताता है। (c) स्व को सामाजिक अंतःक्रिया से स्वतंत्र बताता है, जो मीड के सिद्धांत के विपरीत है। (d) ‘मैं’ को दूसरों की अपेक्षाओं और ‘मुझे’ को केवल व्यक्तिगत इच्छाओं से जोड़ता है, जो गलत व्याख्या है।
प्रश्न 4: सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) का ऐसा कौन सा रूप है जो जन्म पर आधारित होता है और जिसमें सामाजिक गतिशीलता लगभग नगण्य होती है?
- वर्ग (Class)
- जाति (Caste)
- दासता (Slavery)
- स्टेट (Estate)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: जाति व्यवस्था (Caste System) सामाजिक स्तरीकरण का एक कठोर रूप है जो जन्म पर आधारित होता है। इसमें एक व्यक्ति की सामाजिक स्थिति, व्यवसाय, विवाह और सामाजिक संबंधों के अवसर जन्म से ही निर्धारित हो जाते हैं, और इसमें गतिशीलता अत्यंत सीमित होती है।
- संदर्भ एवं विस्तार: भारतीय जाति व्यवस्था इसका प्रमुख उदाहरण है। प्रत्येक जाति की अपनी विशिष्ट भूमिकाएं, नियम और प्रतिबंध होते हैं, और अंतर-जातीय विवाह (endogamy) को आमतौर पर प्रतिबंधित किया जाता है।
- अincorrect विकल्प: वर्ग व्यवस्था में कुछ हद तक ऊर्ध्वाधर गतिशीलता संभव है। दासता भी जन्म पर आधारित हो सकती है, लेकिन यह मुख्य रूप से संपत्ति के स्वामित्व का मामला है, जबकि जाति एक अधिक व्यापक सामाजिक-धार्मिक संरचना है। स्टेट व्यवस्था (जैसे सामंतवाद में) जन्म पर आधारित थी, लेकिन जाति जितनी कठोर नहीं थी।
प्रश्न 5: एमिल दुर्खीम (Emile Durkheim) के अनुसार, समाज के सदस्यों के बीच साझा विश्वासों, मूल्यों और दृष्टिकोणों की समग्रता को क्या कहा जाता है?
- सामाजिक एकता (Social Solidarity)
- सामूहिक चेतना (Collective Consciousness)
- सांस्कृतिक मानदंड (Cultural Norms)
- सामाजिक तथ्य (Social Facts)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: दुर्खीम ने ‘सामूहिक चेतना’ (Collective Consciousness) शब्द का प्रयोग समाज के सदस्यों के बीच साझा विश्वासों, मनोवृत्तियों और ज्ञान की कुल राशि को दर्शाने के लिए किया, जो समाज को एक साथ बांधती है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह अवधारणा उनकी पुस्तक ‘The Division of Labour in Society’ में प्रमुखता से आती है, जहाँ वे इसे यांत्रिक एकता (mechanical solidarity) के आधार के रूप में समझाते हैं, जो समान समाजों में पाई जाती है।
- अincorrect विकल्प: सामाजिक एकता (Solidarity) वह परिणाम है जो सामूहिक चेतना से उत्पन्न होता है। सांस्कृतिक मानदंड व्यक्तिगत व्यवहार के नियम हैं। सामाजिक तथ्य बाहरी, बाध्यकारी सामाजिक वास्तविकताएँ हैं।
प्रश्न 6: निम्नलिखित में से कौन सा समाजशास्त्र के अध्ययन के लिए एक गुणात्मक (Qualitative) अनुसंधान पद्धति का उदाहरण है?
- सर्वेक्षण (Survey)
- सांख्यिकीय विश्लेषण (Statistical Analysis)
- नृवंशविज्ञान (Ethnography)
- प्रायोगिक विधि (Experimental Method)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: नृवंशविज्ञान (Ethnography) एक गुणात्मक अनुसंधान पद्धति है जिसमें समाजशास्त्री किसी विशिष्ट सामाजिक समूह या समुदाय के भीतर दीर्घकालिक भागीदारी अवलोकन (participant observation) के माध्यम से गहन, विस्तृत अध्ययन करता है। इसका उद्देश्य लोगों के दृष्टिकोण, व्यवहार और संस्कृति को गहराई से समझना है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह पद्धति अक्सर फील्डवर्क, गहन साक्षात्कार और नोट्स लेने पर आधारित होती है। यह ‘गहन समझ’ (Verstehen) के वेबेरियन विचार से मेल खाती है।
- अincorrect विकल्प: सर्वेक्षण, सांख्यिकीय विश्लेषण और प्रायोगिक विधियाँ मुख्य रूप से मात्रात्मक (quantitative) विधियाँ हैं जो संख्यात्मक डेटा एकत्र करने और उसका विश्लेषण करने पर केंद्रित होती हैं।
प्रश्न 7: रॉबर्ट मर्टन (Robert Merton) द्वारा प्रस्तावित ‘प्रच्छन्न प्रकार्य’ (Latent Functions) क्या हैं?
- किसी सामाजिक या सांस्कृतिक वस्तु के ऐसे अचेतन और अनपेक्षित परिणाम जो समाज के लिए हानिकारक हों।
- किसी सामाजिक या सांस्कृतिक वस्तु के ऐसे अचेतन और अनपेक्षित परिणाम जो समाज के लिए लाभदायक हों।
- किसी सामाजिक या सांस्कृतिक वस्तु के ऐसे सचेत और अपेक्षित परिणाम जो समाज के लिए लाभदायक हों।
- किसी सामाजिक या सांस्कृतिक वस्तु के ऐसे सचेत और अपेक्षित परिणाम जो समाज के लिए हानिकारक हों।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: मर्टन ने ‘प्रच्छन्न प्रकार्य’ (Latent Functions) को किसी सामाजिक संरचना, संस्था या व्यवहार के उन अनपेक्षित और अक्सर अचेतन परिणामों के रूप में परिभाषित किया है जो समाज या उसके किसी सदस्य के लिए अनुकूल होते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: मर्टन ने ‘प्रकट प्रकार्य’ (Manifest Functions) (सचेत और अपेक्षित परिणाम) और ‘प्रच्छन्न प्रकार्य’ के बीच अंतर किया। उदाहरण के लिए, एक विश्वविद्यालय की प्रकट प्रकार्य शिक्षा प्रदान करना है, जबकि प्रच्छन्न प्रकार्य सामाजिक नेटवर्क बनाना या युवा प्रेम को सुविधाजनक बनाना हो सकता है।
- अincorrect विकल्प: (a) दुःप्रकार्य (Dysfunction) को दर्शाता है। (c) प्रकट प्रकार्य (Manifest Function) को दर्शाता है। (d) प्रकट दुःप्रकार्य (Manifest Dysfunction) को दर्शाता है।
प्रश्न 8: भारतीय समाज में ‘हरिजन’ (Harijan) शब्द का प्रयोग किसने और क्यों किया?
- बी.आर. अंबेडकर, दलितों को सम्मान देने के लिए
- महात्मा गांधी, अछूतों को ईश्वर का पुत्र मानने के लिए
- जवाहरलाल नेहरू, दलितों को राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बनाने के लिए
- सरदार पटेल, राजनीतिक एकीकरण के लिए
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: महात्मा गांधी ने ‘अछूतों’ के लिए ‘हरिजन’ (ईश्वर के पुत्र) शब्द का प्रयोग किया था, ताकि उन्हें समाज में सम्मान और गरिमा मिल सके और उनकी सामाजिक स्थिति को सुधारा जा सके।
- संदर्भ एवं विस्तार: गांधीजी ने अपने साप्ताहिक प्रकाशन ‘हरिजन’ के माध्यम से इस शब्द को लोकप्रिय बनाया। हालांकि, बाद में दलित समुदायों ने इस शब्द को अपनी पहचान के लिए अस्वीकार कर दिया और ‘दलित’ शब्द को अपनाया।
- अincorrect विकल्प: अंबेडकर ने दलितों के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए लेकिन ‘हरिजन’ शब्द का प्रयोग गांधीजी ने किया। नेहरू और पटेल ने भी सामाजिक सुधार के प्रयास किए, लेकिन यह विशेष शब्द गांधीजी से जुड़ा है।
प्रश्न 9: ‘निरंकुश राजतंत्र’ (Absolute Monarchy) में सत्ता का स्रोत क्या माना जाता है?
- जनता की इच्छा
- वंशानुगत उत्तराधिकार और दैवीय अधिकार
- संसद का निर्णय
- सेना का समर्थन
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: निरंकुश राजतंत्र में, राजा की सत्ता का आधार आमतौर पर वंशानुगत उत्तराधिकार होता है, और वे अक्सर अपनी सत्ता को दैवीय अधिकार (Divine Right) से जोड़ते हैं, जिसका अर्थ है कि उनकी शक्ति सीधे ईश्वर से प्राप्त होती है और वे किसी भी सांसारिक सत्ता के प्रति जवाबदेह नहीं होते।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह राजशाही का वह रूप है जहाँ शासक की शक्ति पर कोई कानूनी या संस्थागत प्रतिबंध नहीं होता।
- अincorrect विकल्प: लोकतंत्र में जनता की इच्छा (a), संसद (c) और आधुनिक राज्यों में सेना का समर्थन (d) महत्वपूर्ण हो सकते हैं, लेकिन निरंकुश राजतंत्र में ये प्राथमिक स्रोत नहीं होते।
प्रश्न 10: निम्न में से कौन सा एक ‘द्वितीयक समूह’ (Secondary Group) का उदाहरण है?
- परिवार
- मित्र मंडली
- राजनीतिक दल
- पड़ोस
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: द्वितीयक समूह ऐसे बड़े, अवैयक्तिक और औपचारिक समूह होते हैं जो किसी विशेष उद्देश्य या हित को पूरा करने के लिए बनाए जाते हैं। राजनीतिक दल इसी श्रेणी में आता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: चार्ल्स कूली ने प्राथमिक समूह (जैसे परिवार, मित्र मंडली, पड़ोस) और द्वितीयक समूह के बीच अंतर किया था। प्राथमिक समूह अंतरंग, दीर्घकालिक संबंध वाले होते हैं, जबकि द्वितीयक समूह अधिक अस्थायी, अवैयक्तिक और लक्ष्य-उन्मुख होते हैं।
- अincorrect विकल्प: परिवार (a), मित्र मंडली (b), और पड़ोस (d) सभी प्राथमिक समूहों के उदाहरण हैं, जहाँ सदस्यों के बीच घनिष्ठ, भावनात्मक संबंध होते हैं।
प्रश्न 11: मैक्स वेबर (Max Weber) ने किस प्रकार के प्रभुत्व (Domination) को ‘परंपरागत प्रभुत्व’ (Traditional Domination) कहा है?
- सत्ता का आधार तर्कसंगत-कानूनी नियम और प्रक्रियाएँ हैं।
- सत्ता का आधार करिश्माई व्यक्तित्व और असाधारण गुण हैं।
- सत्ता का आधार स्थापित परंपराएं, रीति-रिवाज और व्यक्तिगत निष्ठा है।
- सत्ता का आधार जनमत का दबाव है।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: वेबर के अनुसार, परंपरागत प्रभुत्व वह है जहाँ सत्ता का आधार लंबे समय से चली आ रही परंपराएं, स्थापित रीति-रिवाज और किसी व्यक्ति (जैसे पैतृक मुखिया या सामंत) के प्रति व्यक्तिगत निष्ठा पर आधारित होता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: वेबर ने तीन प्रकार के आदर्श प्रभुत्व का वर्णन किया: परंपरागत, करिश्माई और तर्कसंगत-कानूनी। परंपरागत प्रभुत्व में, लोग आदेशों का पालन इसलिए करते हैं क्योंकि ऐसा हमेशा से होता रहा है और वे उस व्यक्ति के प्रति निष्ठा रखते हैं जो परंपरा द्वारा स्थापित पद पर है।
- अincorrect विकल्प: (a) तर्कसंगत-कानूनी प्रभुत्व को दर्शाता है। (b) करिश्माई प्रभुत्व को दर्शाता है। (d) जनमत का दबाव आधुनिक लोकतंत्रीय व्यवस्थाओं में प्रासंगिक हो सकता है, लेकिन परंपरागत प्रभुत्व का आधार नहीं है।
प्रश्न 12: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा का सबसे महत्वपूर्ण प्रतिपादक किसे माना जाता है?
- पियरे बोर्डीयू (Pierre Bourdieu)
- जेम्स कोलमेन (James Coleman)
- रॉबर्ट पुटनम (Robert Putnam)
- सभी उपरोक्त
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: सामाजिक पूंजी की अवधारणा को विकसित करने और लोकप्रिय बनाने में पियरे बोर्डीयू, जेम्स कोलमेन और रॉबर्ट पुटनम तीनों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। बोर्डीयू ने इसे सामाजिक संबंधों के माध्यम से प्राप्त संसाधनों के रूप में देखा, कोलमेन ने इसे समूह की संरचनाओं में मौजूद लोगों के बीच संबंधों के रूप में परिभाषित किया, और पुटनम ने इसे नागरिक समाज और सामाजिक नेटवर्क के संदर्भ में लोकप्रिय बनाया।
- संदर्भ एवं विस्तार: ये सभी विद्वान मानते हैं कि सामाजिक संबंध (जैसे विश्वास, नेटवर्क, सामान्य मानदंड) व्यक्तियों और समूहों के लिए उपयोगी संसाधन प्रदान करते हैं, जिससे सामाजिक पूंजी का निर्माण होता है।
- अincorrect विकल्प: यद्यपि प्रत्येक की अपनी विशिष्ट परिभाषाएँ और जोर हैं, तीनों को इस अवधारणा का महत्वपूर्ण प्रतिपादक माना जाता है।
प्रश्न 13: निम्नलिखित में से कौन सा ‘सामाजिक परिवर्तन’ (Social Change) का एक प्रकार है जो समाज के मूलभूत ढांचे और संगठन में बड़े पैमाने पर और स्थायी परिवर्तन से संबंधित है?
- रूपांतरण (Transformation)
- विकास (Development)
- आधुनिकीकरण (Modernization)
- अनुकूलन (Adaptation)
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: रूपांतरण (Transformation) वह प्रकार का सामाजिक परिवर्तन है जो समाज के सबसे गहरे, मूलभूत सिद्धांतों, संरचनाओं और मूल्यों में एक व्यापक, मौलिक और अक्सर तीव्र बदलाव को दर्शाता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह शब्द अक्सर क्रांतियों या बड़े पैमाने पर सामाजिक-आर्थिक आंदोलनों जैसे कि औद्योगिक क्रांति या फ्रांसीसी क्रांति के संदर्भ में प्रयोग किया जाता है, जिन्होंने समाज के पूरे ताने-बाने को बदल दिया।
- अincorrect विकल्प: विकास (b) और आधुनिकीकरण (c) परिवर्तन के प्रकार हैं, लेकिन ये हमेशा मूलभूत ढांचे में क्रांतिकारी बदलाव नहीं लाते। अनुकूलन (d) पर्यावरण या परिस्थितियों के अनुसार छोटे समायोजन को दर्शाता है।
प्रश्न 14: ‘अलंकारिक परिवार’ (Conjugal Family) का अर्थ क्या है?
- वह परिवार जिसमें केवल पति और पत्नी निवास करते हैं।
- वह परिवार जिसमें माता-पिता और उनके अविवाहित बच्चे रहते हैं।
- वह परिवार जिसमें विस्तारिक रिश्तेदार, जैसे दादा-दादी, चाचा-चाची आदि भी शामिल हों।
- वह परिवार जो किसी व्यक्ति के जन्म से बनता है।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: अलंकारिक परिवार (Conjugal Family) या नाभिकीय परिवार (Nuclear Family) का सबसे संकीर्ण रूप वह है जिसमें केवल पति और पत्नी शामिल होते हैं। यह उन परिवारों का वर्णन करता है जो विवाह पर आधारित होते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: कभी-कभी नाभिकीय परिवार में बच्चों को भी शामिल किया जाता है (माता-पिता और उनके अविवाहित बच्चे), जिसे ‘प्रजनन नाभिकीय परिवार’ (Reproductive Nuclear Family) कहते हैं। ‘अलंकारिक’ शब्द विवाह से उत्पन्न संबंधों पर अधिक जोर देता है।
- अincorrect विकल्प: (b) प्रजनन नाभिकीय परिवार या विस्तृत अर्थों में नाभिकीय परिवार को दर्शाता है। (c) विस्तारिक परिवार (Extended Family) को दर्शाता है। (d) जन्म परिवार (Family of Orientation) को दर्शाता है।
प्रश्न 15: समाज में ‘भ्रष्टाचार’ (Corruption) की बढ़ती दर को किस समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से सबसे अच्छी तरह समझा जा सकता है?
- सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने की एक स्वाभाविक प्रवृत्ति के रूप में।
- शक्तिशाली समूहों द्वारा अपने हितों को बनाए रखने का एक तरीका।
- यह व्यक्ति की नैतिक विफलता का परिणाम है।
- यह अल्प विकसित समाजों की विशेषता है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory) जैसे दृष्टिकोणों से भ्रष्टाचार को शक्तिशाली समूहों द्वारा अपने लाभ, शक्ति और संसाधनों को बनाए रखने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक रणनीति के रूप में देखा जा सकता है। यह सामाजिक असमानता और शक्ति असंतुलन का परिणाम है।
- संदर्भ एवं विस्तार: इस दृष्टिकोण के अनुसार, जो लोग सत्ता में हैं, वे अक्सर उन नियमों और प्रणालियों का दुरुपयोग या हेरफेर करते हैं जो उन्हें लाभ पहुंचाते हैं, जिससे व्यवस्था में ही भ्रष्टाचार निहित हो जाता है।
- अincorrect विकल्प: (a) प्रकार्यवाद (functionalism) के विपरीत है, जो व्यवस्था को बनाए रखने पर केंद्रित है; भ्रष्टाचार एक शिथिलता (dysfunction) है। (c) केवल व्यक्तिगत नैतिकता पर केंद्रित है, जो समस्या की संरचनात्मक जड़ों को अनदेखा करता है। (d) भ्रष्टाचार अल्प विकसित और विकसित दोनों समाजों में पाया जाता है।
प्रश्न 16: ‘अभिजन वर्ग सिद्धांत’ (Elite Theory) के प्रमुख प्रतिपादकों में से कौन शामिल हैं?
- कार्ल मार्क्स
- एमिल दुर्खीम
- विलफ्रेडो पैरेटो और गैटानो मोस्का
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: विलफ्रेडो पैरेटो और गैटानो मोस्का को अभिजन वर्ग सिद्धांत (Elite Theory) के संस्थापकों में से माना जाता है। उन्होंने तर्क दिया कि किसी भी समाज में, चाहे वह कितना भी लोकतांत्रिक क्यों न हो, एक छोटा, अल्पसंख्यक शासक वर्ग (elite) हमेशा मौजूद रहता है जो सत्ता और संसाधनों पर नियंत्रण रखता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: पैरेटो ने ‘अभिजन के परिसंचरण’ (circulation of elites) का सिद्धांत दिया, जबकि मोस्का ने ‘शासक वर्ग’ (ruling class) की अनिवार्यता पर बल दिया।
- अincorrect विकल्प: कार्ल मार्क्स वर्ग संघर्ष की बात करते हैं, लेकिन उनका मुख्य ध्यान सर्वहारा वर्ग की क्रांति पर था। दुर्खीम सामाजिक व्यवस्था और एकता पर केंद्रित थे। मीड प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद से संबंधित हैं।
प्रश्न 17: निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता ‘धर्मनिरपेक्षता’ (Secularism) के समाजशास्त्रीय अर्थ से संबंधित है?
- सभी धार्मिक अनुष्ठानों का पूर्ण उन्मूलन।
- समाज के सार्वजनिक जीवन से धर्म को अलग करना और राज्य का तटस्थ रहना।
- सभी धर्मों को समान रूप से बढ़ावा देना।
- व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता का पूर्ण अभाव।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: समाजशास्त्रीय अर्थों में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है समाज के सार्वजनिक क्षेत्रों (जैसे सरकार, शिक्षा, कानून) को धार्मिक संस्थानों और प्रभावों से अलग करना, जहाँ राज्य सभी धर्मों के प्रति तटस्थ रहता है और किसी एक धर्म का पक्ष नहीं लेता।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह व्यक्तिगत धार्मिक विश्वास या अभ्यास को प्रतिबंधित नहीं करता, बल्कि संस्थागत अलगाव पर जोर देता है।
- अincorrect विकल्प: (a) अतिवादी दृष्टिकोण है। (c) सभी धर्मों को बढ़ावा देना राज्य का सक्रिय समर्थन है, तटस्थता नहीं। (d) धर्मनिरपेक्षता व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करती है।
प्रश्न 18: ‘अलगाव’ (Alienation) की अवधारणा, जिसे मार्क्स ने औद्योगिक पूंजीवाद के संदर्भ में समझाया, उसका क्या तात्पर्य है?
- श्रमिकों का अपने काम, उत्पादन, अन्य श्रमिकों और स्वयं से अलगाव।
- समाज द्वारा बनाए गए नियमों के टूटने से उत्पन्न होने वाली अव्यवस्था।
- व्यक्ति का समाज द्वारा निर्धारित भूमिकाओं को स्वीकार न करना।
- आर्थिक असमानता के कारण व्यक्ति का अकेलापन।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: कार्ल मार्क्स के अनुसार, औद्योगिक पूंजीवाद में, श्रमिक अपने श्रम के उत्पाद (production), अपने श्रम की प्रक्रिया (process of labor), अपनी प्रजाति-सार (species-being) या मानव स्वभाव, और अन्य मनुष्यों (साथी श्रमिकों) से अलगाव महसूस करता है क्योंकि वे उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण नहीं रखते और उनके श्रम का वस्तुकरण (reification) हो जाता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह अवधारणा मार्क्स की ‘Economic and Philosophic Manuscripts of 1844’ में विस्तार से बताई गई है।
- अincorrect विकल्प: (b) दुर्खीम के ‘एनोमी’ (Anomie) से संबंधित है। (c) सामाजिक विचलन (social deviance) की ओर इशारा करता है। (d) अलगाव का एक परिणाम हो सकता है, लेकिन यह अलगाव का पूरा अर्थ नहीं है।
प्रश्न 19: निम्नलिखित में से कौन सा ‘नारीवादी सिद्धांत’ (Feminist Theory) का मुख्य सरोकार नहीं है?
- पितृसत्ता (Patriarchy) की संरचनाओं का विश्लेषण।
- लैंगिक असमानता और शक्ति असंतुलन की जांच।
- महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अनुभव।
- वर्ग संघर्ष को समाज परिवर्तन का एकमात्र चालक मानना।
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: जबकि नारीवादी सिद्धांत लैंगिक असमानताओं और पितृसत्ता के विश्लेषण पर केंद्रित है, यह अक्सर समाज परिवर्तन के अन्य कारकों, जैसे वर्ग, जाति, नस्ल आदि के साथ लिंग के अंतर्संबंधों को भी मानता है। केवल वर्ग संघर्ष को समाज परिवर्तन का एकमात्र चालक मानना मार्क्सवादी सिद्धांत का मुख्य सरोकार है, न कि सभी नारीवादी सिद्धांतों का।
- संदर्भ एवं विस्तार: विभिन्न नारीवादी धाराएँ (जैसे उदारवादी, रेडिकल, मार्क्सवादी, उत्तर-संरचनावादी) अलग-अलग कारकों पर जोर देती हैं, लेकिन पितृसत्ता और लैंगिक असमानता केंद्रीय विषय हैं।
- अincorrect विकल्प: (a), (b), और (c) सभी नारीवादी सिद्धांत के मुख्य सरोकार हैं।
प्रश्न 20: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा का प्रयोग किस संदर्भ में किया जाता है?
- जब समाज के कुछ हिस्से दूसरों की तुलना में तेजी से बदलते हैं, जिससे असंतुलन पैदा होता है।
- जब दो संस्कृतियाँ लंबे समय तक संपर्क में रहने के बाद भी अपनी पहचान नहीं खोतीं।
- जब समाज में कोई नई प्रथा या मूल्य उत्पन्न होता है।
- जब पारंपरिक प्रथाएं आधुनिक जीवन में अनुपयोगी हो जाती हैं।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: विलियम ओगबर्न (William Ogburn) द्वारा प्रतिपादित ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा उस स्थिति का वर्णन करती है जब समाज के भौतिक पहलू (जैसे प्रौद्योगिकी) गैर-भौतिक पहलुओं (जैसे कानून, मूल्य, मान्यताएं, सामाजिक संस्थाएं) की तुलना में बहुत तेजी से बदलते हैं, जिससे एक अंतर या विलंब पैदा होता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: उदाहरण के लिए, इंटरनेट की तेज गति ने संचार को बदल दिया है, लेकिन हमारे कानून और सामाजिक शिष्टाचार अभी भी इसके साथ पूरी तरह से तालमेल नहीं बिठा पाए हैं।
- अincorrect विकल्प: (b) सांस्कृतिक प्रसार या आत्मसात्तिकरण (acculturation) से संबंधित हो सकता है। (c) सांस्कृतिक नवाचार (innovation) है। (d) पतनशील संस्कृति (decadent culture) या अप्रचलित प्रथाओं से संबंधित हो सकता है।
प्रश्न 21: भारत में ‘पंचायती राज’ व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य क्या है?
- केंद्र सरकार की शक्तियों को बढ़ाना।
- स्थानीय स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करना और स्व-शासन को बढ़ावा देना।
- शहरों के विकास पर अधिक ध्यान केंद्रित करना।
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से केंद्रीकृत करना।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: पंचायती राज व्यवस्था का प्रमुख उद्देश्य जमीनी स्तर पर लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण (decentralization of power) को लागू करना, स्थानीय समुदायों को अपने शासन और विकास में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए सशक्त बनाना और स्व-शासन (self-governance) की भावना को बढ़ावा देना है।
- संदर्भ एवं विस्तार: भारत में 73वें संविधान संशोधन अधिनियम (1992) ने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया।
- अincorrect विकल्प: (a) यह विकेंद्रीकरण के सिद्धांत के विपरीत है। (c) पंचायती राज मुख्य रूप से ग्रामीण शासन से संबंधित है। (d) यह केंद्रीकरण के विपरीत, शक्तियों का हस्तांतरण करता है।
प्रश्न 22: ‘एनोमी’ (Anomie) की अवधारणा, जिसे दुर्खीम ने सामाजिक अव्यवस्था की स्थिति का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल किया, उसका सबसे सटीक अर्थ क्या है?
- समाज द्वारा निर्धारित नियमों और मानदंडों का अभाव या टूटन।
- किसी व्यक्ति का अपने परिवार से अलगाव।
- किसी व्यक्ति की नौकरी छूटना।
- समाज के प्रति गहरी निराशा और विरोध।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एमिल दुर्खीम ने ‘एनोमी’ (Anomie) को एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया जहाँ समाज के सदस्यों के लिए कोई स्पष्ट सामाजिक नियम या मानदंड नहीं होते, या वे तेजी से बदल रहे होते हैं, जिससे व्यक्ति को दिशाहीनता और अनिश्चितता का अनुभव होता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह अक्सर तीव्र सामाजिक परिवर्तनों, आर्थिक संकटों या सामाजिक मूल्यों के पतन के समय उत्पन्न होती है। यह आत्महत्या दर में वृद्धि से भी जुड़ी हुई है, जैसा कि उन्होंने अपनी पुस्तक ‘Suicide’ में बताया है।
- अincorrect विकल्प: (b) व्यक्तिगत मनोवैज्ञानिक समस्या हो सकती है। (c) आर्थिक समस्या है। (d) सामाजिक विरोध या विद्रोह हो सकता है, लेकिन एनोमी नियमों के अभाव का वर्णन करता है।
प्रश्न 23: निम्नलिखित में से कौन सा समाजशास्त्रियों का एक स्कूल (school of thought) है जो सामाजिक संरचना और उसके विभिन्न भागों के प्रकार्यात्मक योगदान पर जोर देता है?
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
- संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)
- संरचनात्मक-प्रकार्यवाद (Structural Functionalism)
- घटना विज्ञान (Phenomenology)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: संरचनात्मक-प्रकार्यवाद (Structural Functionalism) समाज को एक जटिल प्रणाली के रूप में देखता है, जिसके विभिन्न हिस्से (संरचनाएं) एक साथ मिलकर काम करते हैं ताकि समाज की स्थिरता और एकजुटता बनी रहे। यह इन हिस्सों के ‘प्रकार्यों’ (functions) के अध्ययन पर जोर देता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: एमिल दुर्खीम, ए. आर. रेडक्लिफ-ब्राउन और टैलकॉट पार्सन्स इस दृष्टिकोण के प्रमुख समर्थक थे।
- अincorrect विकल्प: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद सूक्ष्म-स्तरीय अंतःक्रियाओं पर केंद्रित है। संघर्ष सिद्धांत सामाजिक परिवर्तन और संघर्ष को मुख्य मानता है। घटना विज्ञान व्यक्तिगत चेतना और अनुभव पर केंद्रित है।
प्रश्न 24: ‘आधुनिकीकरण सिद्धांत’ (Modernization Theory) मुख्य रूप से किस पर केंद्रित है?
- समाज के पारंपरिक रूप से कृषि प्रधान समाजों से औद्योगिक और शहरी समाजों में परिवर्तन की प्रक्रिया।
- विभिन्न संस्कृतियों के बीच संपर्क और उनके मेल-मिलाप का अध्ययन।
- सामाजिक संरचनाओं के दीर्घकालिक स्थायित्व की व्याख्या।
- व्यक्तिगत मनोविज्ञान का सामाजिक व्यवहार पर प्रभाव।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: आधुनिकीकरण सिद्धांत एक व्यापक समाजशास्त्रीय और आर्थिक सिद्धांत है जो समाज के विकास के एक रैखिक मॉडल का वर्णन करता है, जिसमें पारंपरिक, मुख्य रूप से कृषि प्रधान समाजों का औद्योगिक, शहरी और प्रौद्योगिकी-संचालित समाजों में संक्रमण शामिल है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह अक्सर पश्चिमी समाजों के विकास को एक आदर्श मॉडल के रूप में प्रस्तुत करता है और सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों पर ध्यान केंद्रित करता है जो औद्योगीकरण और शहरीकरण के साथ होते हैं।
- अincorrect विकल्प: (b) सांस्कृतिक प्रसार या सं. . ्य (syncretism) से संबंधित है। (c) स्थिरतावादी दृष्टिकोण (stability-focused approach) है। (d) मनोवैज्ञानिक अध्ययन है।
प्रश्न 25: भारतीय संदर्भ में, ‘समर्थनकारी भेदभाव’ (Affirmative Action) का क्या उद्देश्य है?
- समाज के सभी वर्गों को समान अवसर प्रदान करना।
- ऐतिहासिक रूप से वंचित और शोषित समूहों को शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में अवसर प्रदान करके उनकी सामाजिक स्थिति सुधारना।
- व्यक्तिगत योग्यता के आधार पर सभी को समान व्यवहार सुनिश्चित करना।
- राजनीतिक दलों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: भारत में समर्थनकारी भेदभाव (जिसे सकारात्मक कार्रवाई या आरक्षण भी कहा जाता है) का मुख्य उद्देश्य उन सामाजिक समूहों (जैसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग) को संबोधित करना है जिन्हें ऐतिहासिक रूप से भेदभाव और बहिष्कार का सामना करना पड़ा है। इसका लक्ष्य उन्हें शिक्षा, सरकारी नौकरियों, और राजनीतिक निकायों में प्रतिनिधित्व देकर समाज की मुख्यधारा में लाना है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह भारत के संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को लागू करने का एक तरीका है।
- अincorrect विकल्प: (a) यह इसका लक्ष्य है, लेकिन ‘समर्थनकारी भेदभाव’ इस लक्ष्य को प्राप्त करने का एक विशिष्ट साधन है। (c) यह योग्यतावाद (meritocracy) का आदर्श है, लेकिन समर्थनकारी भेदभाव ऐतिहासिक असमानताओं को दूर करने के लिए हस्तक्षेप करता है। (d) इसका राजनीतिक दलों से कोई सीधा संबंध नहीं है।
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