“कैसे पहुंचे आतंकवादी पहलगाम?”: गोगोई के सवाल ने उड़ाए होश, लोकसभा में राष्ट्रीय सुरक्षा पर छिड़ी जंग
चर्चा में क्यों? (Why in News?):
हाल ही में, संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान, जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादियों की संदिग्ध पहुंच के संबंध में एक महत्वपूर्ण और तीखी बहस छिड़ गई। प्रमुख विपक्षी नेता, श्री. बिस्वजीत गोगोई (यह मानते हुए कि शीर्षक में ‘गोगोई’ का तात्पर्य है, जबकि यह संदर्भ स्पष्ट नहीं है, यह विश्लेषण सार्वजनिक डोमेन में सबसे आम धारणा पर आधारित है), ने लोकसभा में सरकार पर जोरदार हमला बोला। उन्होंने विशेष रूप से इस घटना पर चिंता व्यक्त की और इस मूल प्रश्न को उठाया कि “आतंकवादी पहलगाम जैसे संवेदनशील क्षेत्र में कैसे पहुंच गए?” यह मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा, खुफिया तंत्र की प्रभावशीलता, आतंकवाद विरोधी रणनीतियों और सरकार की जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े करता है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का संदर्भ इस विशिष्ट घटना या इसके पीछे की खुफिया जानकारी से जुड़ा हो सकता है, जिसने इस बहस को और हवा दी।
राष्ट्रीय सुरक्षा की धुरी: पहलगाम में घुसपैठ का रहस्य
पहलगाम, कश्मीर घाटी का एक प्रमुख पर्यटन स्थल होने के साथ-साथ अपनी सामरिक महत्ता के लिए भी जाना जाता है। ऐसे क्षेत्र में आतंकवादियों की पहुंच, चाहे वह संदिग्ध ही क्यों न हो, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। यह घटना हमें उस अंतर्निहित खतरे की याद दिलाती है जिसका सामना भारत को आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में करना पड़ रहा है। लोकसभा में विपक्ष द्वारा उठाए गए प्रश्न केवल एक घटना पर टिप्पणी नहीं थे, बल्कि यह सुरक्षा एजेंसियों की सतर्कता, खुफिया जानकारी जुटाने की क्षमता और सीमा पार से होने वाली घुसपैठ को रोकने के लिए सरकार की तैयारियों पर एक व्यापक सवाल था।
श्री. गोगोई के मुख्य बिंदु और चिंताएँ:
- घुसपैठ की संभावना: सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह एक वास्तविक घुसपैठ थी, या किसी अन्य प्रकार की सुरक्षा चूक? यदि घुसपैठ हुई, तो हमारे सीमा सुरक्षा तंत्र में ऐसी कौन सी खामियां हैं जो इसे संभव बनाती हैं?
- खुफिया विफलता: क्या खुफिया एजेंसियों को आतंकवादियों की आवाजाही की भनक नहीं लगी? क्या खुफिया जानकारी का विश्लेषण और प्रसार सही समय पर हुआ?
- जवावदेही: यदि ऐसी घटनाएं होती हैं, तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? सरकार अपनी सुरक्षा एजेंसियों के प्रदर्शन के लिए जवाबदेह कैसे है?
- राजनीतिकरण: विपक्ष का यह आरोप कि सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को राजनीतिकरण कर रही है या संवेदनशील जानकारी को छुपा रही है।
UPSC के लिए प्रासंगिकता: GS-III का गहन विश्लेषण
यह घटना सीधे तौर पर संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की सिविल सेवा परीक्षा के सामान्य अध्ययन पेपर-III (GS-III) के “सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा” खंड से संबंधित है। इस मामले का विश्लेषण हमें निम्नलिखित उप-विषयों को समझने में मदद करता है:
- भारत में सुरक्षा चुनौतियाँ: सीमा पार आतंकवाद, आंतरिक सुरक्षा, वामपंथी उग्रवाद, पूर्वोत्तर में उग्रवाद।
- राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र: खुफिया एजेंसियां (RAW, IB), सैन्य बल, अर्धसैनिक बल, पुलिस, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC)।
- सुरक्षा का आधुनिकीकरण: प्रौद्योगिकी का उपयोग, निगरानी प्रणाली, साइबर सुरक्षा।
- सरकार की भूमिका और नीति: आतंकवाद विरोधी कानून, राष्ट्रीय सुरक्षा नीति, रक्षा सिद्धांत।
- अंतर्राष्ट्रीय संबंध और सुरक्षा: पड़ोसी देशों के साथ संबंध, आतंकवाद से लड़ने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग।
1. भारत में सुरक्षा चुनौतियाँ – एक विस्तृत अवलोकन
भारत एक बहुआयामी सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है। इनमें से प्रमुख हैं:
- सीमा पार आतंकवाद: पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह भारत के खिलाफ लगातार प्रॉक्सी युद्ध छेड़े हुए हैं। जम्मू और कश्मीर, पंजाब और राजस्थान जैसे राज्यों में घुसपैठ एक निरंतर खतरा है। यह पहलगाम की घटना इसी बड़े खतरे का एक संभावित लक्षण हो सकती है।
- आंतरिक सुरक्षा: देश के भीतर विभिन्न अलगाववादी आंदोलन, सांप्रदायिक हिंसा और राष्ट्र-विरोधी तत्वों की सक्रियता आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करती है।
- वामपंथी उग्रवाद (LWE): भारत के कई राज्यों में नक्सलवाद और माओवाद एक गंभीर आंतरिक सुरक्षा चुनौती बना हुआ है, जो विकास और शासन को बाधित करता है।
- पूर्वोत्तर में उग्रवाद: कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में दशकों से जारी अलगाववादी आंदोलन और उग्रवाद एक स्थायी समस्या रही है।
2. राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र – हमारी पहली रक्षा पंक्ति
भारत का राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र अत्यंत विस्तृत और जटिल है। इसमें शामिल हैं:
- खुफिया एजेंसियां:
- इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB): घरेलू खुफिया जानकारी जुटाने और आंतरिक सुरक्षा से संबंधित मामलों पर ध्यान केंद्रित करती है।
- रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW): विदेशी खुफिया जानकारी जुटाने और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित बाहरी खतरों पर काम करती है।
यह महत्वपूर्ण है कि क्या IB और RAW के बीच समन्वय और सूचना का आदान-प्रदान प्रभावी था, खासकर पहलगाम जैसे संवेदनशील क्षेत्र में संभावित खतरे के संबंध में।
- सशस्त्र बल: भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना देश की बाहरी रक्षा के लिए जिम्मेदार हैं।
- अर्धसैनिक बल: सीमा सुरक्षा बल (BSF), केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF), राष्ट्रीय राइफल्स (Rashtriya Rifles) आदि सीमा प्रबंधन और आंतरिक सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। CRPF अक्सर कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने में महत्वपूर्ण होती है।
- पुलिस: राज्य पुलिस बल कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्राथमिक रूप से जिम्मेदार हैं, लेकिन आतंकवाद विरोधी अभियानों में भी सहायता करते हैं।
- राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC): प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली यह संस्था राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित नीतिगत मुद्दों पर निर्णय लेती है और विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय स्थापित करती है।
3. सुरक्षा का आधुनिकीकरण – प्रौद्योगिकी की भूमिका
बदलते सुरक्षा परिदृश्य में, प्रौद्योगिकी का उपयोग महत्वपूर्ण हो गया है। इसमें शामिल हैं:
- निगरानी प्रणाली: सीमाओं पर बाढ़ लाइट, रडार, ड्रोन और थर्मल इमेजिंग कैमरे।
- खुफिया जानकारी का विश्लेषण: बिग डेटा एनालिटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग करके पैटर्न की पहचान करना।
- संचार: सुरक्षित और एन्क्रिप्टेड संचार प्रणालियाँ।
- साइबर सुरक्षा: सरकारी प्रणालियों और राष्ट्रीय महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचों को साइबर हमलों से बचाना।
पहलगाम मामले में, यह सवाल उठ सकता है कि क्या निगरानी प्रणाली पर्याप्त थी या क्या तकनीकी खामियों का फायदा उठाया गया।
4. सरकार की भूमिका और नीति – आतंकवाद के विरुद्ध रणनीति
सरकार की भूमिका में आतंकवाद को रोकने, उसका मुकाबला करने और उसके मूल कारणों को संबोधित करने के लिए नीतियां बनाना शामिल है।
- आतंकवाद विरोधी कानून: जैसे कि गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA)।
- राष्ट्रीय सुरक्षा नीति: यह नीति देश की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक ढाँचा प्रदान करती है।
- रक्षा सिद्धांत: भारत के रक्षा संबंध, परमाणु सिद्धांत, और सैन्य आधुनिकीकरण के लक्ष्य।
- आर्थिक और सामाजिक विकास: आतंकवाद के मूल कारणों, जैसे गरीबी, बेरोजगारी और सामाजिक-आर्थिक असमानता को दूर करना भी एक दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है।
5. अंतर्राष्ट्रीय संबंध और सुरक्षा – एक वैश्विक लड़ाई
आतंकवाद एक वैश्विक घटना है, और भारत को अपनी सुरक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।
- पड़ोसी देशों से संबंध: विशेष रूप से पाकिस्तान के साथ, जहाँ से अक्सर आतंकवाद को बढ़ावा मिलने का आरोप लगाया जाता है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: संयुक्त राष्ट्र (UN) जैसे मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, आसियान (ASEAN) जैसे क्षेत्रीय संगठनों के साथ सहयोग, और खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान।
पहलगाम मामला: सुरक्षा चक्र में संभावित सेंध?
जब पहलगाम जैसे क्षेत्र में आतंकवादियों की पहुंच की बात आती है, तो यह कई स्तरों पर सुरक्षा तंत्र की प्रभावशीलता पर सवाल उठाता है:
- प्रशासनिक विफलता: क्या स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों के बीच समन्वय में कमी थी?
- खुफिया इनपुट का अभाव: क्या समय पर और सटीक खुफिया जानकारी नहीं मिली, या मिली भी तो उस पर कार्रवाई नहीं हुई?
- लॉजिस्टिक और परिचालन क्षमता: क्या आतंकवादी हमारे सुरक्षा ग्रिड को भेदने में सफल रहे?
- संवदेनशील क्षेत्रों का प्रबंधन: क्या पहलगाम जैसे पर्यटक स्थलों पर पर्याप्त सुरक्षा जाँच और निगरानी की व्यवस्था थी?
एक उपमा: इसे एक ऐसे घर की तरह समझें जहाँ पहरेदार तैनात हैं, लेकिन चोर खिड़की से होकर अंदर घुस जाता है। सवाल यह उठता है कि क्या पहरेदार सो रहे थे, या चोर बहुत चालाक था, या खिड़की की सुरक्षा में ही कोई खामी थी?
Op Sindoor का संदर्भ, यदि किसी विशेष ऑपरेशन से जुड़ा है, तो यह दर्शाता है कि उस ऑपरेशन के दौरान या उसके बाद ऐसे संदिग्ध घटनाक्रम हुए जिन्होंने सुरक्षा एजेंसियों या सरकार की योजनाओं पर सवाल उठाए। यह इस बात का भी संकेत दे सकता है कि आतंकवादियों ने इस ‘ऑपरेशन’ की आड़ में या उससे संबंधित होने के कारण कोई गतिविधि की, जिसे तब पहलगाम में उनकी कथित उपस्थिति के रूप में देखा गया।
सरकार का पक्ष और विपक्ष के तर्क
विपक्ष के तर्क:
- सरकार सुरक्षा के मोर्चे पर विफल रही है।
- खुफिया तंत्र अपनी भूमिका निभाने में नाकाम रहा है।
- आतंकवादी हमलों को रोकने के लिए कोई ठोस रणनीति नहीं है।
- सरकार तथ्यों को छुपा रही है या जनता को गुमराह कर रही है।
- संसद में इस मुद्दे पर तत्काल और विस्तृत चर्चा की मांग।
सरकार का संभावित पक्ष:
“हम राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई समझौता नहीं करेंगे। हमारी सुरक्षा एजेंसियां अत्यंत सतर्क हैं और किसी भी खतरे का मुकाबला करने के लिए तैयार हैं। पहलगाम की घटना के संबंध में, प्रारंभिक जानकारी की जाँच की जा रही है और पूरी सच्चाई सामने लाई जाएगी। विपक्ष दुष्प्रचार फैला रहा है और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे को राजनीतिकरण कर रहा है।”
- खुफिया जानकारी की प्रकृति ही ऐसी होती है कि सब कुछ पहले से पता नहीं चल सकता।
- आतंकवादियों को घुसपैठ कराने के लिए हमेशा कुछ तत्व सक्रिय रहते हैं, लेकिन सुरक्षा बल उन्हें नाकाम कर रहे हैं।
- इस तरह की घटनाओं का राजनीतिकरण करना राष्ट्रहित में नहीं है।
- ऑपरेशन सिंदूर जैसे अभियानों की प्रकृति संवेदशील होती है और उसका सार्वजनिक डोमेन में खुलासा राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है।
चुनौतियाँ और भविष्य की राह
इस घटना से उत्पन्न प्रमुख चुनौतियाँ इस प्रकार हैं:
- खुफिया तंत्र को मजबूत करना: नवीनतम तकनीक और बेहतर मानव-आधारित खुफिया जानकारी का एकीकरण।
- समन्वय में सुधार: विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों (सेना, पुलिस, IB, RAW) के बीच सूचना साझाकरण और समन्वय को बेहतर बनाना।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग: सीमाओं और संवेदनशील क्षेत्रों में निगरानी, ट्रैकिंग और डेटा विश्लेषण के लिए AI, ड्रोन और अन्य उन्नत तकनीकों का अधिक प्रभावी उपयोग।
- जन-भागीदारी: स्थानीय आबादी का विश्वास जीतना और उन्हें खुफिया जानकारी देने के लिए प्रोत्साहित करना।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति: राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देना और सुरक्षा एजेंसियों को आवश्यक संसाधन और स्वायत्तता प्रदान करना।
- सीमा प्रबंधन: घुसपैठ को रोकने के लिए एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली को और मजबूत करना।
भविष्य की राह:
- निरंतर मूल्यांकन: सुरक्षा नीतियों और तंत्रों का नियमित मूल्यांकन और आधुनिकीकरण।
- प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: सुरक्षा कर्मियों को नवीनतम खतरों से निपटने के लिए उच्च-स्तरीय प्रशिक्षण प्रदान करना।
- पारदर्शिता और जवाबदेही: सुरक्षा में चूक के मामलों में उचित जाँच और जवाबदेही सुनिश्चित करना, बिना राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किए।
- कूटनीति: आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले देशों के खिलाफ कूटनीतिक दबाव बनाए रखना।
निष्कर्ष
पहलगाम में आतंकवादियों की कथित पहुंच का मामला केवल एक घटना नहीं है, बल्कि यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा वास्तुकला में अंतर्निहित कमजोरियों पर एक प्रकाश डालता है। लोकसभा में विपक्ष द्वारा उठाए गए सवाल महत्वपूर्ण हैं और इन्हें अनसुना नहीं किया जा सकता। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह घटना राष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी रणनीतियों, खुफिया एजेंसियों की भूमिका और सरकार की जवाबदेही जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान करती है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का संदर्भ इसे और भी जटिल बनाता है, जो यह दर्शाता है कि कैसे राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे अक्सर ऑपरेशनल विवरणों और राजनीतिक बयानों के जाल में फंस सकते हैं। इन सभी पहलुओं का समग्र और विश्लेषणात्मक अध्ययन, सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. **निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:**
1. भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) सीधे तौर पर प्रधानमंत्री के अधीन कार्य करती है।
2. खुफिया ब्यूरो (IB) मुख्य रूप से विदेशी खुफिया जानकारी के संग्रह के लिए जिम्मेदार है।
3. गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) एक नागरिक कानून है जो आतंकवाद से जुड़े कृत्यों को रोकने के लिए बनाया गया है।
उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c)
व्याख्या: कथन 1 सही है क्योंकि NSC की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं और यह एक महत्वपूर्ण नीति-निर्धारण संस्था है। कथन 2 गलत है क्योंकि IB घरेलू खुफिया जानकारी के लिए जिम्मेदार है, जबकि RAW विदेशी खुफिया जानकारी के लिए। कथन 3 सही है, UAPA एक कड़े कानून है जो आतंकवाद को रोकने के लिए है।
2. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसा संदर्भ, यदि किसी सैन्य या सुरक्षा अभियान से संबंधित हो, तो आमतौर पर किस प्रकार की जानकारी से जुड़ा हो सकता है?
(a) सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण
(b) गुप्त या संवेदनशील सैन्य/सुरक्षा अभियान
(c) आपदा राहत कार्य
(d) आर्थिक विकास योजना
उत्तर: (b)
व्याख्या: ‘ऑपरेशन’ नामकरण, विशेष रूप से सुरक्षा संदर्भ में, अक्सर गुप्त या संवेदनशील अभियानों के लिए प्रयोग किया जाता है जिसका विवरण सार्वजनिक नहीं किया जाता।
3. भारत के सुरक्षा तंत्र में, निम्नलिखित में से कौन सी एजेंसी मुख्य रूप से सीमा प्रबंधन और घुसपैठ को रोकने के लिए जिम्मेदार है?
(a) केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF)
(b) सीमा सुरक्षा बल (BSF)
(c) राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG)
(d) केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF)
उत्तर: (b)
व्याख्या: सीमा सुरक्षा बल (BSF) भारत-पाकिस्तान और भारत-बांग्लादेश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए प्राथमिक रूप से जिम्मेदार है।
4. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. वामपंथी उग्रवाद (LWE) मुख्य रूप से भारत के दक्षिणी राज्यों में एक महत्वपूर्ण चुनौती है।
2. पूर्वोत्तर भारत में कुछ अलगाववादी आंदोलन अभी भी मौजूद हैं।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर: (b)
व्याख्या: कथन 1 गलत है; LWE मुख्य रूप से भारत के पूर्वी और मध्य राज्यों (जैसे छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार) में एक महत्वपूर्ण चुनौती है। कथन 2 सही है।
5. जम्मू और कश्मीर की सुरक्षा स्थिति के संबंध में, पहलगाम जैसे क्षेत्र की संवेदनशीलता निम्नलिखित में से किस कारण से बढ़ जाती है?
(a) उच्च पर्यटन गतिविधि और बुनियादी ढांचे की उपलब्धता
(b) राज्य की राजधानी से निकटता
(c) महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों की उपस्थिति
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
व्याख्या: पहलगाम एक प्रमुख पर्यटन स्थल होने के नाते, यहाँ किसी भी घुसपैठ या आतंकी घटना का प्रभाव अधिक व्यापक होता है। इसके अलावा, इसका सामरिक स्थान और स्थानीय संवेदनशीलता इसे आतंकवादियों के लिए एक संभावित लक्ष्य बनाती है।
6. भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के प्रमुख स्तंभों में निम्नलिखित में से किसे शामिल किया जा सकता है?
1. सामरिक स्वायत्तता बनाए रखना।
2. पड़ोसी देशों के साथ सहयोग को बढ़ावा देना।
3. आतंकवाद और उग्रवाद का मुकाबला करना।
4. रक्षा क्षमताओं का आधुनिकीकरण।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (d)
व्याख्या: ये सभी भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं।
7. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. बिग डेटा एनालिटिक्स का उपयोग खुफिया जानकारी जुटाने और विश्लेषण में महत्वपूर्ण है।
2. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग सुरक्षा तंत्र की भविष्यवाणी और प्रतिक्रिया क्षमताओं को बढ़ा सकता है।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर: (c)
व्याख्या: आधुनिक सुरक्षा तंत्र में इन तकनीकों का उपयोग बहुत महत्वपूर्ण है।
8. “ऑपरेशन सिंदूर” का संदर्भ, यदि यह किसी सुरक्षा चूक से जुड़ा है, तो यह किस प्रकार की चिंता को उजागर कर सकता है?
(a) वित्तीय प्रबंधन में कुशलता
(b) परिचालन योजनाओं का सार्वजनिक प्रकटीकरण
(c) खुफिया जानकारी की प्रभावशीलता और समन्वय
(d) पर्यावरण संरक्षण पहल
उत्तर: (c)
व्याख्या: सुरक्षा अभियानों के संदर्भ में ‘ऑपरेशन’ नाम का उपयोग अक्सर संवेदनशील जानकारी की ओर इशारा करता है। यदि इस ऑपरेशन के बाद कोई चूक होती है, तो यह खुफिया जानकारी के प्रभावी उपयोग और विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय पर सवाल उठाता है।
9. राष्ट्रीय सुरक्षा के संबंध में ‘प्रॉक्सी युद्ध’ (Proxy War) शब्द का क्या अर्थ है?
(a) एक देश द्वारा सीधे युद्ध छेड़ना
(b) एक देश द्वारा अन्य देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना
(c) किसी देश द्वारा सीधे सैन्य कार्रवाई करने के बजाय, अन्य देशों या समूहों के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से विरोधियों को लक्षित करना
(d) आर्थिक प्रतिबंधों का उपयोग
उत्तर: (c)
व्याख्या: प्रॉक्सी युद्ध में, एक शक्तिशाली देश सीधे युद्ध में शामिल होने के बजाय, तीसरे पक्ष (जैसे आतंकवादी समूह) को समर्थन देकर अपने उद्देश्यों को प्राप्त करता है।
10. लोकसभा में श्री. गोगोई द्वारा उठाया गया प्रश्न “आतंकवादी पहलगाम कैसे पहुंचे?” का संबंध राष्ट्रीय सुरक्षा के किस पहलू से सबसे अधिक है?
(a) आर्थिक सहायता और आतंकवाद का वित्तपोषण
(b) सीमा प्रबंधन और खुफिया इनपुट की प्रभावशीलता
(c) अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति और संबंध
(d) सामाजिक-आर्थिक विकास के मुद्दे
उत्तर: (b)
व्याख्या: यह प्रश्न सीधे तौर पर इस बात पर केंद्रित है कि आतंकवादी देश के भीतर कैसे घुसपैठ कर पाए, जो सीमा प्रबंधन और खुफिया जानकारी की क्षमता से जुड़ा है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. “भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा को विभिन्न प्रकार के आंतरिक और बाहरी खतरों का सामना करना पड़ता है, जिनमें सीमा पार आतंकवाद एक प्रमुख चिंता का विषय है। पहलगाम जैसी घटनाओं के आलोक में, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र की प्रभावशीलता, विशेष रूप से खुफिया जानकारी जुटाने, समन्वय और प्रतिक्रिया क्षमताओं के संदर्भ में आलोचनात्मक विश्लेषण करें।”
(250 शब्द)
2. “आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में केवल सैन्य और खुफिया उपायों से परे जाकर, सामाजिक-आर्थिक विकास, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और मजबूत कानून व्यवस्था जैसे बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इस कथन का परीक्षण करें, भारत के सामने मौजूद विभिन्न सुरक्षा चुनौतियों का उल्लेख करते हुए।”
(250 शब्द)
3. “हालिया घटनाओं के मद्देनजर, भारत के सीमा प्रबंधन तंत्र में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। तकनीकी आधुनिकीकरण, मानव-खुफिया जानकारी और सीमावर्ती समुदायों के साथ समन्वय को एकीकृत करने के तरीकों पर चर्चा करें ताकि घुसपैठ को प्रभावी ढंग से रोका जा सके।”
(150 शब्द)
4. “लोकसभा में विपक्ष द्वारा सरकार से सुरक्षा से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न पूछना संसदीय लोकतंत्र की एक अनिवार्य विशेषता है। राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दे पर बहस और जवाबदेही के बीच संतुलन को कैसे बनाए रखा जाना चाहिए?”
(150 शब्द)