कारगिल युद्ध 1999: घुसपैठ से विजय तक, 84 दिनों का अविस्मरणीय महागाथा
चर्चा में क्यों? (Why in News?):
यह शीर्षक हमें सीधे उस निर्णायक समय में ले जाता है, जब भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल में 1999 में हुआ युद्ध हुआ था। यह न केवल एक सैन्य संघर्ष था, बल्कि राष्ट्र की अस्मिता, पराक्रम और अटूट संकल्प का प्रतीक भी था। ‘कारगिल वॉर टाइमलाइन: पाकिस्तानी आतंकियों की घुसपैठ से भारत की जीत तक, पढ़ें 1999 के उन 84 दिनों की पूरी कहानी’ – यह शीर्षक उन 84 दिनों की उस भीषण गाथा का सार प्रस्तुत करता है, जिसने भारतीय सैन्य इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ा। यह उन वीरों की शहादत को याद दिलाता है जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए और हमारे देश की विजय पताका फहराई। UPSC उम्मीदवारों के लिए, कारगिल युद्ध केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं है, बल्कि भू-राजनीति, सैन्य रणनीति, राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीति की जटिलताओं को समझने का एक महत्वपूर्ण केस स्टडी है।
परिचय: जब बर्फीली चोटियाँ बनी रणभूमि
मई 1999, भारतीय उपमहाद्वीप की बर्फीली चोटियाँ, जो शांति और पवित्रता का प्रतीक मानी जाती थीं, अचानक रणभूमि में तब्दील हो गईं। नियंत्रण रेखा (Line of Control – LoC) के पार से, पाकिस्तान की सेना और प्रशिक्षित आतंकवादियों द्वारा की गई घुसपैठ ने भारत को एक अप्रत्याशित और गंभीर संकट में डाल दिया। यह घुसपैठ मात्र सीमा उल्लंघन नहीं थी, बल्कि यह एक सुनियोजित साजिश थी जिसका उद्देश्य भारत के सामरिक रूप से महत्वपूर्ण कारगिल-द्रास क्षेत्र पर कब्जा करना और जम्मू और कश्मीर की स्थिति को जबरन बदलना था। अगले 84 दिनों तक, भारतीय सशस्त्र बलों ने अभूतपूर्व साहस, दृढ़ संकल्प और बलिदान का प्रदर्शन करते हुए, दुश्मन को खदेड़कर विजय पताका फहराई। यह युद्ध आधुनिक भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जिसने न केवल हमारी सैन्य क्षमताओं को प्रदर्शित किया, बल्कि हमारी राष्ट्रीय एकता और संप्रभुता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को भी रेखांकित किया।
पृष्ठभूमि: ऑपरेशन विजय की नींव
कारगिल युद्ध के पीछे के कारणों को समझने के लिए, हमें 1999 के पूर्ववर्ती वर्षों और द्विपक्षीय संबंधों की जटिलताओं को देखना होगा। 1998 में भारत और पाकिस्तान दोनों ने परमाणु परीक्षण किए, जिससे क्षेत्र में तनाव बढ़ गया। इसके बावजूद, तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर की ऐतिहासिक यात्रा की, जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांति और विश्वास बहाली को बढ़ावा देना था। यह यात्रा ‘लाहौर घोषणा’ के रूप में परिणत हुई, जिसमें दोनों देशों ने शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और विवादों को द्विपक्षीय रूप से हल करने की प्रतिबद्धता जताई।
“लाहौर घोषणा, जिसने आशा की एक किरण जगाई थी, उसी समय पाकिस्तान के भीतर एक गुप्त योजना को भी हवा दे रही थी। यह विरोधाभास उस जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य को दर्शाता है जो कारगिल युद्ध की ओर ले गया।”
पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख, जनरल परवेज मुशर्रफ, जिन्होंने तब सेना प्रमुख होने के साथ-साथ डीजी आईएसआई का पद भी संभाला था, ने भारत के साथ “असममित युद्ध” (asymmetric warfare) की रणनीति अपनाई। इसके तहत, सीधे सैन्य टकराव के बजाय, सीमा पार से घुसपैठ और आतंकवाद को बढ़ावा देकर भारत को अस्थिर करने का प्रयास किया गया। कारगिल सेक्टर, जिसकी ऊंचाईयां सामरिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण थीं और जहां सर्दियों के दौरान भारतीय सैनिक भारी बर्फबारी के कारण पीछे हट जाते थे, घुसपैठ के लिए एक आदर्श स्थान बन गया। पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा के पार लगभग 5 किलोमीटर (कुछ स्थानों पर और भी अधिक) घुसपैठ की और द्रास, काकसर, बटालिक और मुश्कोह जैसी महत्वपूर्ण चौकियों पर कब्जा कर लिया।
घुसपैठ: ऑपरेशन ‘बदर’ का सच
फरवरी-मार्च 1999 के दौरान, पाकिस्तान सेना की विशेष सेवा समूह (SSG) और प्रशिक्षित मुजाहिदीन के हजारों सैनिक, बर्फीले कपड़ों और भारी हथियारों से लैस होकर, नियंत्रण रेखा पार कर गए। उन्होंने भारतीय चौकियों को खाली पाया, जो सर्दियों के महीनों के दौरान परिचालन के लिए अनुपयुक्त होने के कारण खाली कर दी गई थीं। इन घुसपैठियों ने भारतीय सेना के अग्रिम ठिकानों पर कब्जा कर लिया और इन ऊंचाइयों से कारगिल-लेह राजमार्ग को आसानी से निशाना बनाया जा सकता था। यह राजमार्ग भारतीय सेना के लिए एक जीवनरेखा थी, जो लेह तक रसद और सैनिकों की आपूर्ति सुनिश्चित करता था।
शुरुआत में, भारतीय खुफिया एजेंसियों को इस घुसपैठ की सीमा और गंभीरता का पूरी तरह से अंदाजा नहीं था। पाकिस्तानी सेना ने इसे “स्थानीय चरवाहों” द्वारा किया गया आंदोलन बताया, लेकिन जैसे-जैसे अधिक जानकारी सामने आई, यह स्पष्ट हो गया कि यह एक बड़े पैमाने पर, सुनियोजित सैन्य आक्रमण था।
समयरेखा: 84 दिनों की वीरता और बलिदान
कारगिल युद्ध की समयरेखा को समझना महत्वपूर्ण है। यह केवल तारीखों का संग्रह नहीं है, बल्कि हमारे वीर सैनिकों के अदम्य साहस, रणनीतिक युद्धाभ्यास और मानवीय लागत का एक मार्मिक विवरण है।
- मई 1999: घुसपैठ का खुलासा
- 3 मई 1999: स्थानीय चरवाहों द्वारा की गई रिपोर्टों ने भारतीय सेना को कारगिल सेक्टर में घुसपैठ के बारे में पहली बार सचेत किया।
- 5 मई 1999: भारतीय सैनिकों की एक गश्ती दल को जांच के लिए भेजा गया, जिसे घुसपैठियों ने घेर लिया और शहीद कर दिया। इस घटना ने संकट की गंभीरता को उजागर किया।
- मई 1999: ऑपरेशन विजय का आरंभ
- 10 मई 1999: भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन विजय’ (Operation Vijay) की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य घुसपैठियों को खदेड़ना और खोई हुई चौकियों को पुनः प्राप्त करना था।
- 15-26 मई 1999: प्रारंभिक चरण में, भारतीय सेना ने बटालिक, द्रास और काकसर जैसे क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत की और दुश्मन के ठिकानों पर हमले शुरू किए।
- जून 1999: तीव्र लड़ाई और महत्वपूर्ण जीतें
- 8 जून 1999: भारतीय वायु सेना (IAF) ने ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ (Operation Safed Sagar) लॉन्च किया। यह एक महत्वपूर्ण मोड़ था क्योंकि भारतीय वायुसेना पहली बार भारत-पाकिस्तान युद्ध में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में शामिल हुई।
- 13 जून 1999: भारतीय सेना ने बटालिक सेक्टर में तोलोलिंग (Toloeling) हिल पर कब्जा कर लिया, जो युद्ध का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। तोलोलिंग पर कब्जा करने से द्रास और कारगिल के बीच भारतीय सेना के लिए रास्ता खुल गया।
- 20 जून 1999: भारतीय सेना ने प्वाइंट 4875 (Point 4875), जिसे अब “टॉली सिंह पोस्ट” के नाम से जाना जाता है, पर विजय प्राप्त की। इस जीत ने द्रास सेक्टर में दुश्मन की कमर तोड़ दी।
- जुलाई 1999: निर्णायक बढ़त और विजय
- 4 जुलाई 1999: भारतीय सेना ने जुबेर (Juber) पोस्ट और पॉइंट 5140 (Point 5140) पर कब्जा कर लिया।
- 5 जुलाई 1999: भारतीय सेना ने बटालिक सेक्टर में महत्वपूर्ण चौकियों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया।
- 7 जुलाई 1999: द्रास सेक्टर में अंतिम शेष मजबूत पाकिस्तानी चौकियों में से एक, प्वाइंट 4100 (Point 4100) पर भारतीय सेना ने विजय प्राप्त की।
- 14 जुलाई 1999: भारतीय सेना ने घोषणा की कि कारगिल के सभी मुख्य क्षेत्रों से घुसपैठियों को खदेड़ दिया गया है। हालांकि, छिटपुट झड़पें जारी रहीं।
- 26 जुलाई 1999: भारत ने आधिकारिक तौर पर ‘ऑपरेशन विजय’ की सफलता की घोषणा की और कारगिल विजय दिवस मनाया जाने लगा।
युद्ध के प्रमुख मोर्चे और रणनीतिक बिंदु
कारगिल युद्ध केवल एक क्षेत्र तक सीमित नहीं था, बल्कि इसके कई महत्वपूर्ण मोर्चे थे, जिनमें से प्रत्येक की अपनी रणनीतिक महत्ता थी:
- द्रास (Drass): यह सेक्टर युद्ध का केंद्र बिंदु था। भारतीय सेना ने यहां से घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए सबसे अधिक प्रयास किए। तोलोलिंग हिल और प्वाइंट 4875 जैसी चोटियों पर कब्जा अत्यंत महत्वपूर्ण था।
- बटालिक (Batalik): यह सेक्टर भी अत्यंत सामरिक था क्योंकि यहां से लेह-श्रीनगर राजमार्ग पर नियंत्रण किया जा सकता था। यहां प्वाइंट 5140 और जुबेर पोस्ट पर कब्जा महत्वपूर्ण जीतें थीं।
- काकसर (Kaksar): इस क्षेत्र में भी भारतीय सेना ने दुश्मन से लड़ाई लड़ी और अपनी चौकियों को सुरक्षित किया।
- मुश्कोह घाटी (Mushkoh Valley): इस घाटी में भी भारतीय सेना को भारी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन अंततः उन्होंने इन क्षेत्रों से भी घुसपैठियों को खदेड़ दिया।
भारतीय सेना की रणनीतियाँ और क्षमताएं
कारगिल युद्ध ने भारतीय सेना की युद्ध लड़ने की क्षमता, नेतृत्व और शौर्य का अभूतपूर्व प्रदर्शन किया। कुछ प्रमुख रणनीतिक पहल और क्षमताएं इस प्रकार थीं:
- ऊंचाई पर युद्ध (High-Altitude Warfare): भारतीय सैनिकों को अत्यधिक ऊंचाई, कम ऑक्सीजन, अत्यधिक ठंड और खड़ी चढ़ाई वाले इलाकों में युद्ध लड़ना पड़ा। यह किसी भी सेना के लिए एक बड़ी चुनौती होती है।
- आर्टिलरी का प्रभावी उपयोग: भारतीय तोपखाने (Artillery) ने दुश्मन के ठिकानों पर सटीक और भारी गोलाबारी की, जिसने पैदल सेना को आगे बढ़ने में मदद की।
- वायु सेना की भूमिका: ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ के तहत, भारतीय वायु सेना ने अपने मिग-29, मिग-21, जगुआर और मिराज 2000 जैसे लड़ाकू विमानों का उपयोग करके दुश्मन के ठिकानों पर बमबारी की। हालांकि, ऊंचाई और दुश्मन की एंटी-एयरक्राफ्ट गन के कारण वायु सेना को भी नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन उनकी भूमिका निर्णायक साबित हुई।
- infantry का नेतृत्व: पैराट्रूपर्स, ग्रेनेडियर्स, राजपुताना राइफल्स, मद्रास रेजिमेंट और भारतीय सेना के अन्य रेजिमेंट्स के वीर जवानों ने सीधे अग्रिम मोर्चे पर लड़ते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया।
- लॉजिस्टिक्स और सप्लाई चेन: इतने ऊंचे और दुर्गम इलाकों में सैनिकों और उपकरणों की आपूर्ति बनाए रखना एक बड़ी लॉजिस्टिक चुनौती थी, जिसे भारतीय सेना ने सफलतापूर्वक पूरा किया।
मानवीय लागत: वीरों का बलिदान
जीत की यह कहानी उन अनगिनत वीरों के बलिदानों से लिखी गई है, जिन्होंने अपने देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। कारगिल युद्ध में भारत के 527 वीर सैनिक शहीद हुए, जबकि 1300 से अधिक घायल हुए। इन शहीदों में कैप्टन विक्रम बत्रा, कैप्टन मनोज कुमार पांडे, लेफ्टिनेंट कर्नल ग्रेगोरियोस, राइफलमैन संजय कुमार और सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव जैसे कई ऐसे नाम शामिल हैं जिन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र और वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
“कैप्टन विक्रम बत्रा ने कहा था, ‘मैं जिऊंगा या मरूंगा, लेकिन तिरंगा हमेशा ऊंचा रहेगा।’ यह उनका और कारगिल के अन्य अनगिनत नायकों का बलिदान था जिसने हमें यह जीत दिलाई।”
यह युद्ध दिखाता है कि कैसे व्यक्तिगत साहस और देश के प्रति अटूट निष्ठा किसी भी सैन्य अभियान की सफलता की कुंजी हो सकती है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया और कूटनीतिक दबाव
कारगिल युद्ध ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान भी आकर्षित किया। शुरुआत में, कुछ पश्चिमी देशों ने पाकिस्तान की घुसपैठ को “स्थानीय संघर्ष” के रूप में देखा, लेकिन जैसे-जैसे युद्ध की सच्चाई सामने आई और भारतीय सेना ने निर्णायक कार्रवाई की, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का झुकाव भारत की ओर बढ़ता गया।
- संयुक्त राज्य अमेरिका: राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर भारतीय क्षेत्रों से पीछे हटने के लिए भारी दबाव डाला। अमेरिका ने स्पष्ट किया कि वह पाकिस्तान की कारगुजारी का समर्थन नहीं कर सकता।
- अन्य देश: रूस, फ्रांस और अन्य यूरोपीय देशों ने भी भारत की संप्रभुता का समर्थन किया और पाकिस्तान से नियंत्रण रेखा का सम्मान करने का आग्रह किया।
अंतर्राष्ट्रीय दबाव और भारत की सैन्य कार्रवाई के संयुक्त प्रभाव के कारण, पाकिस्तान को अपनी सेना और घुसपैठियों को नियंत्रण रेखा के पार वापस बुलाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
युद्ध के परिणाम और प्रभाव
कारगिल युद्ध के दूरगामी परिणाम हुए:
- सैन्य: इसने भारतीय सेना की युद्ध लड़ने की क्षमता, विशेष रूप से उच्च-ऊंचाई वाले युद्ध में, को साबित किया। इसने सेना की खुफिया क्षमताओं में सुधार की आवश्यकता को भी उजागर किया।
- राजनीतिक: भारत ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दृढ़ता से प्रदर्शित किया। वहीं, पाकिस्तान में इस हार के कारण तत्कालीन सरकार की वैधता पर सवाल उठाए गए, जिसके कुछ महीनों बाद जनरल मुशर्रफ ने तख्तापलट कर दिया।
- कूटनीतिक: इसने दक्षिण एशिया की भू-राजनीतिक स्थिति को प्रभावित किया और परमाणु हथियारों से लैस दो देशों के बीच संघर्ष के जोखिमों को उजागर किया।
- राष्ट्रीय एकता: इस युद्ध ने पूरे देश में राष्ट्रीय एकता और गौरव की भावना को मजबूत किया।
UPSC परीक्षा के लिए महत्व
UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से, कारगिल युद्ध कई विषयों के लिए प्रासंगिक है:
- भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity): राष्ट्रीय सुरक्षा, रक्षा नीति, अंतर-सेवा समन्वय।
- अंतर्राष्ट्रीय संबंध (International Relations): भारत-पाकिस्तान संबंध, भू-राजनीति, कूटनीति, परमाणु अप्रसार।
- आधुनिक इतिहास (Modern History): 1990 का दशक, भारत-पाकिस्तान युद्धों का इतिहास।
- भूगोल (Geography): नियंत्रण रेखा (LoC), सामरिक महत्व वाले क्षेत्र (कारगिल, द्रास)।
- सुरक्षा (Security): सीमा प्रबंधन, आतंकवाद, असममित युद्ध।
यह युद्ध एक केस स्टडी के रूप में काम करता है कि कैसे राजनीतिक निर्णय, सैन्य रणनीति, कूटनीति और जनशक्ति की भूमिका एक सफल अभियान में योगदान करती है।
निष्कर्ष: एक अविस्मरणीय विजय गाथा
कारगिल युद्ध 1999, 84 दिनों की वह अग्निपरीक्षा थी, जिसने भारत की सैन्य शक्ति, राष्ट्रीय संकल्प और हमारे वीर जवानों के अदम्य साहस को दुनिया के सामने प्रदर्शित किया। पाकिस्तान द्वारा की गई विश्वासघाती घुसपैठ को मुंहतोड़ जवाब देते हुए, भारतीय सशस्त्र बलों ने न केवल सामरिक चौकियों पर पुनः कब्जा किया, बल्कि अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति अपने अटूट समर्पण को भी साबित किया। यह विजय केवल सैन्य उपलब्धि नहीं थी, बल्कि यह एक राष्ट्रीय भावना का प्रतीक थी। कारगिल की बर्फीली चोटियों पर फहराता तिरंगा आज भी हमें उन नायकों की याद दिलाता है जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर हमें सुरक्षित रखा। यह युद्ध हमें सिखाता है कि दुश्मन की किसी भी चाल का जवाब दृढ़ता और संकल्प से दिया जाना चाहिए, और मातृभूमि की रक्षा सर्वोपरि है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न: 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना द्वारा शुरू किए गए ऑपरेशन का नाम क्या था?
(a) ऑपरेशन मेघदूत
(b) ऑपरेशन विजय
(c) ऑपरेशन ब्लू स्टार
(d) ऑपरेशन कैक्टस
उत्तर: (b) ऑपरेशन विजय
व्याख्या: ऑपरेशन विजय भारतीय सेना द्वारा कारगिल युद्ध के दौरान घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए चलाया गया था। ऑपरेशन मेघदूत सियाचिन पर नियंत्रण के लिए, ऑपरेशन ब्लू स्टार अमृतसर में स्वर्ण मंदिर में कार्रवाई के लिए और ऑपरेशन कैक्टस मालदीव में तख्तापलट को रोकने के लिए था। - प्रश्न: कारगिल युद्ध के संदर्भ में, ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ का संबंध किससे था?
(a) भारतीय थल सेना का विशेष अभियान
(b) भारतीय वायु सेना का हवाई अभियान
(c) भारतीय नौसेना का नौसैनिक अभ्यास
(d) कारगिल में मानवीय सहायता अभियान
उत्तर: (b) भारतीय वायु सेना का हवाई अभियान
व्याख्या: ऑपरेशन सफेद सागर भारतीय वायु सेना का कोड नाम था, जिसके तहत उसने कारगिल युद्ध में हवाई हमलों को अंजाम दिया। - प्रश्न: कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने किस प्रमुख सामरिक बिंदु पर कब्जा करके युद्ध का रुख मोड़ा?
(a) सियाचिन ग्लेशियर
(b) पोस्ट 5140
(c) तोलोलिंग हिल
(d) कराकोरम पास
उत्तर: (c) तोलोलिंग हिल
व्याख्या: तोलोलिंग हिल पर कब्जा कारगिल युद्ध का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने भारतीय सेना को द्रास और कारगिल के बीच महत्वपूर्ण आपूर्ति मार्ग को सुरक्षित करने में मदद की। - प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा क्षेत्र कारगिल युद्ध का प्रमुख युद्धक्षेत्र नहीं था?
(a) द्रास
(b) बटालिक
(c) काकसर
(d) पुंछ
उत्तर: (d) पुंछ
व्याख्या: कारगिल युद्ध मुख्य रूप से कारगिल सेक्टर के आसपास केंद्रित था, जिसमें द्रास, बटालिक और काकसर प्रमुख युद्धक्षेत्र थे। पुंछ नियंत्रण रेखा पर एक अलग सेक्टर है। - प्रश्न: कारगिल युद्ध किस वर्ष हुआ था?
(a) 1971
(b) 1999
(c) 2001
(d) 1965
उत्तर: (b) 1999
व्याख्या: कारगिल युद्ध मई से जुलाई 1999 के बीच लड़ा गया था। - प्रश्न: कारगिल युद्ध के दौरान नियंत्रण रेखा (LoC) को पार करके घुसपैठ करने वाले मुख्य बल किस देश के थे?
(a) अफगानिस्तान
(b) पाकिस्तान
(c) चीन
(d) बांग्लादेश
उत्तर: (b) पाकिस्तान
व्याख्या: पाकिस्तान की सेना और उसके द्वारा प्रशिक्षित आतंकवादियों ने नियंत्रण रेखा पार कर घुसपैठ की थी। - प्रश्न: कारगिल विजय दिवस किस तिथि को मनाया जाता है?
(a) 25 जुलाई
(b) 26 जुलाई
(c) 15 अगस्त
(d) 4 जुलाई
उत्तर: (b) 26 जुलाई
व्याख्या: 26 जुलाई 1999 को भारत ने कारगिल युद्ध में अपनी जीत की घोषणा की थी। - प्रश्न: निम्नलिखित में से किस भारतीय सैनिक को कारगिल युद्ध में उनके सर्वोच्च बलिदान के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था?
(a) मेजर सोमनाथ शर्मा
(b) कैप्टन मनोज कुमार पांडे
(c) लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल
(d) पीरू सिंह शेखावत
उत्तर: (b) कैप्टन मनोज कुमार पांडे
व्याख्या: कैप्टन मनोज कुमार पांडे को ‘ऑपरेशन विजय’ के दौरान बटालिक सेक्टर में उत्कृष्ट वीरता के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। अन्य परमवीर चक्र विजेता पहले के युद्धों में थे। - प्रश्न: कारगिल युद्ध से ठीक पहले, भारत और पाकिस्तान के नेताओं के बीच किस शहर में शांति वार्ता हुई थी, जिसे ‘लाहौर घोषणा’ के रूप में जाना जाता है?
(a) दिल्ली
(b) इस्लामाबाद
(c) लाहौर
(d) वाघा
उत्तर: (c) लाहौर
व्याख्या: फरवरी 1999 में, तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर की यात्रा की थी, जिसके परिणामस्वरूप ‘लाहौर घोषणा’ हुई। - प्रश्न: कारगिल युद्ध के दौरान, भारतीय सेना को किस प्रकार की भौगोलिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
1. अत्यधिक ऊंचाई
2. खड़ी चढ़ाई और बर्फीले इलाके
3. ऑक्सीजन की कमी
4. भारी हिमपात
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (d) 1, 2, 3 और 4
व्याख्या: कारगिल युद्ध अत्यधिक ऊंचाई, खड़ी और बर्फीले इलाकों, ऑक्सीजन की कमी और गंभीर मौसम की स्थिति जैसी गंभीर भौगोलिक चुनौतियों से भरा था, जिसने लड़ाई को और अधिक कठिन बना दिया।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न: कारगिल युद्ध (1999) को आधुनिक भारत के सैन्य इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना क्यों माना जाता है? युद्ध के प्रमुख कारणों, रणनीतिक युद्धाभ्यास और परिणामों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। (लगभग 250 शब्द)
- प्रश्न: “ऑपरेशन विजय” की सफलता में भारतीय वायु सेना की भूमिका का मूल्यांकन करें। कारगिल जैसे उच्च-ऊंचाई वाले युद्धों में वायु सेना के उपयोग से जुड़ी चुनौतियों पर भी प्रकाश डालें। (लगभग 150 शब्द)
- प्रश्न: कारगिल युद्ध के बाद भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा नीतियों में क्या परिवर्तन आए? सीमा प्रबंधन, खुफिया जानकारी और द्विपक्षीय संबंधों के संदर्भ में चर्चा करें। (लगभग 250 शब्द)
- प्रश्न: कारगिल युद्ध के दौरान विभिन्न मोर्चों पर भारतीय सैनिकों द्वारा प्रदर्शित वीरता और बलिदानों को रेखांकित करें। युद्ध की मानवीय लागत और राष्ट्रीय एकता पर इसके प्रभाव का विश्लेषण करें। (लगभग 200 शब्द)
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