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कांपता हिमाचल, डूबता यूपी: भूस्खलन और बाढ़ का दोहरा वार – 16 जिंदगियों की हानि और 360 घरों का मलबा

कांपता हिमाचल, डूबता यूपी: भूस्खलन और बाढ़ का दोहरा वार – 16 जिंदगियों की हानि और 360 घरों का मलबा

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल के दिनों में, भारत के उत्तरी राज्यों, विशेषकर हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में, प्रकृति का रौद्र रूप देखने को मिला है। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में हुए विनाशकारी भूस्खलन ने न केवल महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे, जैसे कि एक फ्लाईओवर को नुकसान पहुँचाया है, बल्कि सड़कों को अवरुद्ध कर दिया है और जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है। वहीं, उत्तर प्रदेश में उफनती नदियों ने बड़े पैमाने पर बाढ़ की स्थिति पैदा कर दी है, जिसके परिणामस्वरूप सैकड़ों घर बह गए हैं और कम से कम 16 अनमोल जिंदगियों का दुखद अंत हुआ है। यह घटनाक्रम भारत के सामने आने वाली जलवायु परिवर्तन, अनियोजित शहरीकरण और आपदा प्रबंधन की चुनौतियों को फिर से उजागर करता है।

यह ब्लॉग पोस्ट इस गंभीर स्थिति का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करेगा, जिसमें घटनाओं के पीछे के कारणों, उनके प्रभावों, संबंधित सरकारी नीतियों, और भविष्य में ऐसी त्रासदियों से निपटने के लिए आवश्यक कदमों पर प्रकाश डाला जाएगा। यह विशेष रूप से UPSC सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह आपदा प्रबंधन, पर्यावरण, भूगोल, और सामाजिक न्याय जैसे विषयों के लिए प्रासंगिक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

1. घटना का विस्तृत अवलोकन: दो राज्यों की दास्तान (Detailed Overview of the Incident: A Tale of Two States)

हाल की घटनाओं को समझने के लिए, हमें भौगोलिक रूप से भिन्न, लेकिन आपदा की मार झेलने वाले इन दो राज्यों के परिदृश्य को देखना होगा:

1.1 हिमाचल प्रदेश: पहाड़ों का दरकना

* **मंडी में भूस्खलन:** हिमाचल प्रदेश, अपनी सुरम्य पहाड़ियों के लिए जाना जाता है, लेकिन यह भूस्खलन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र है। हालिया भूस्खलन, विशेष रूप से मंडी जिले में, एक चिंताजनक संकेत है।
* **मुख्य घटना:** मंडी में हुए भूस्खलन के कारण एक महत्वपूर्ण फ्लाईओवर सहित स्थानीय बुनियादी ढांचे में दरारें आ गईं।
* **प्रभाव:**
* **यातायात व्यवधान:** राष्ट्रीय राजमार्गों और स्थानीय सड़कों का अवरुद्ध होना।
* **बुनियादी ढांचे को नुकसान:** सड़कें, पुल, फ्लाईओवर और अन्य महत्वपूर्ण निर्माणों का क्षतिग्रस्त होना।
* **आर्थिक क्षति:** पर्यटन और स्थानीय व्यापार पर सीधा असर।
* **स्थानीय लोगों का विस्थापन:** भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करना।
* **सुरक्षा चिंताएँ:** बार-बार होने वाले भूस्खलन से लोगों के जीवन को निरंतर खतरा।

1.2 उत्तर प्रदेश: नदियों का उग्र रूप

* **बाढ़ का तांडव:** उत्तर प्रदेश, जो गंगा, यमुना, घाघरा, शारदा जैसी प्रमुख नदियों के मैदानी इलाकों में स्थित है, मानसून के दौरान अक्सर बाढ़ का सामना करता है। इस बार की बाढ़ अधिक विनाशकारी साबित हुई है।
* **मुख्य घटना:** कई नदियाँ उफान पर होने के कारण निचले इलाकों में गंभीर बाढ़ आ गई।
* **प्रभाव:**
* **360 मकानों का ढहना:** हजारों परिवार बेघर हो गए, जिससे बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक संकट पैदा हुआ।
* **16 लोगों की मौत:** यह आंकड़ा पिछले दो दिनों की शुरुआती रिपोर्टों पर आधारित है, और यह दुखद है कि जान-माल का नुकसान हुआ है। (वास्तविक आंकड़ा बढ़ सकता है)।
* **कृषि का विनाश:** बाढ़ के पानी ने खेतों को तबाह कर दिया, जिससे किसानों की आजीविका पर गहरा असर पड़ा।
* **महामारी का खतरा:** बाढ़ के बाद स्वच्छ पेयजल की कमी और दूषित पानी से बीमारियों, जैसे कि डायरिया और टाइफाइड, के फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
* **बुनियादी ढांचे का नुकसान:** सड़कें, पुल और गाँव बाढ़ में बह गए।

ये दोनों घटनाएँ, भले ही भौगोलिक रूप से भिन्न हों, एक ही अंतर्निहित समस्या की ओर इशारा करती हैं – प्रकृति के प्रकोप के सामने हमारे बुनियादी ढांचे और तैयारी की कमजोरियाँ।

2. कारणों का विश्लेषण: क्यों ढह रहे हैं हमारे पहाड़ और क्यों उफन रही हैं हमारी नदियाँ? (Analysis of Causes: Why are Our Mountains Collapsing and Rivers Swelling?)

इन विनाशकारी घटनाओं के पीछे कई जटिल कारण हैं, जिन्हें समझना UPSC की तैयारी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है:

2.1 जलवायु परिवर्तन (Climate Change):

  • अतिवृष्टि (Intense Rainfall): जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून की वर्षा अत्यधिक तीव्र हो गई है। कम समय में भारी मात्रा में बारिश होने से नदियाँ तेजी से उफान पर आती हैं और भूस्खलन की संभावना बढ़ जाती है।
  • मौसम का अनिश्चित पैटर्न (Erratic Weather Patterns): अनिश्चित और अप्रत्याशित वर्षा पैटर्न, जिसमें लंबे सूखे के बाद अचानक भारी बारिश शामिल है, मिट्टी की संरचना को कमजोर करता है और भूस्खलन को बढ़ावा देता है।
  • ग्लेशियरों का पिघलना (Melting Glaciers): उच्च हिमालयी क्षेत्रों में, तापमान वृद्धि के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे नदियों में पानी की मात्रा बढ़ रही है और बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है।

2.2 अनियोजित शहरीकरण और अवसंरचना विकास (Unplanned Urbanization and Infrastructure Development):

  • पहाड़ों पर निर्माण (Construction on Hillsides): पर्वतीय क्षेत्रों में, विशेषकर ढलानों पर, अनियोजित निर्माण और सड़कों का निर्माण भूगर्भीय स्थिरता को बिगाड़ देता है। निर्माण के दौरान की जाने वाली खुदाई और मलबा डंपिंग से भूस्खलन की संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
  • वन्यजीवों का विनाश (Deforestation): निर्माण और विस्तार के लिए वनों की कटाई से मिट्टी को जकड़े रखने वाली वनस्पति का क्षरण होता है, जिससे मिट्टी का कटाव और भूस्खलन आसान हो जाता है।
  • नदी तटीय क्षेत्रों में अतिक्रमण (Encroachment on Riverbanks): मैदानी इलाकों में, नदियों के किनारों और बाढ़ के मैदानों पर अनियोजित निर्माण और बसावट से बाढ़ का प्रभाव विनाशकारी हो जाता है। जब नदियाँ उफान पर आती हैं, तो ये अतिक्रमण सीधे बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं।
  • खराब जल निकासी व्यवस्था (Poor Drainage Systems): शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अपर्याप्त या जाम जल निकासी व्यवस्था, वर्षा जल को प्रभावी ढंग से बाहर निकालने में विफल रहती है, जिससे जलभराव और बाढ़ की स्थिति बिगड़ती है।

2.3 प्राकृतिक कारक (Natural Factors):

  • भूवैज्ञानिक संरचना (Geological Structure): हिमालयी क्षेत्र युवा और अस्थिर भूवैज्ञानिक संरचनाओं पर स्थित है, जो इसे भूकंप और भूस्खलन के प्रति स्वाभाविक रूप से संवेदनशील बनाते हैं।
  • नदी प्रणालियों का विकास (River System Dynamics): नदियों के प्राकृतिक प्रवाह पथ में मानव हस्तक्षेप, जैसे कि तटबंधों का निर्माण या नदी तल में परिवर्तन, अप्रत्याशित परिणाम दे सकता है।

2.4 विनियामक और प्रवर्तन चूक (Regulatory and Enforcement Lapses):

  • कमजोर पर्यावरण प्रभाव आकलन (Weak Environmental Impact Assessments – EIAs): निर्माण परियोजनाओं के लिए EIA प्रक्रियाएं अक्सर कमजोर होती हैं या उनका ठीक से पालन नहीं किया जाता है।
  • भवन नियमों का उल्लंघन (Violation of Building Codes): अनधिकृत निर्माण और मौजूदा नियमों का उल्लंघन सुरक्षा मानकों को खतरे में डालता है।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण (Disaster Risk Reduction – DRR) में निवेश की कमी: प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों, शमन उपायों और सामुदायिक लचीलापन के निर्माण में पर्याप्त निवेश की कमी।

ये सभी कारक मिलकर एक ‘परफेक्ट स्टॉर्म’ बनाते हैं, जहाँ प्रकृति का प्रकोप, मानव निर्मित कमियाँ के साथ मिलकर तबाही मचाता है।

3. प्रभाव: जान-माल से लेकर अर्थव्यवस्था तक (Impacts: From Life and Property to the Economy)

इन आपदाओं के प्रभाव दूरगामी और बहुआयामी होते हैं:

3.1 मानवीय प्रभाव (Human Impact):

  • जीवन की हानि (Loss of Life): जैसा कि यूपी में देखा गया, 16 लोगों की मौत एक गंभीर दुखद घटना है। यह संख्या अक्सर बढ़ सकती है।
  • विस्थापन और बेघर होना (Displacement and Homelessness): 360 से अधिक घरों का ढहना हजारों लोगों को बेघर बनाता है, जिन्हें अस्थायी आश्रय और दीर्घकालिक पुनर्वास की आवश्यकता होती है।
  • मानसिक आघात (Psychological Trauma): जीवित बचे लोग अक्सर आतंक, हानि और भविष्य की अनिश्चितता से जूझते हैं।
  • स्वास्थ्य संकट (Health Crisis): बाढ़ के बाद जल-जनित बीमारियों का प्रकोप, साफ पानी और स्वच्छता की कमी।

3.2 आर्थिक प्रभाव (Economic Impact):

  • बुनियादी ढांचे का विनाश (Destruction of Infrastructure): सड़कों, पुलों, बिजली लाइनों और संचार नेटवर्क का नुकसान। मंडी में फ्लाईओवर का क्षतिग्रस्त होना कनेक्टिविटी और व्यापार के लिए बड़ी बाधा है।
  • कृषि और पशुधन का नुकसान (Loss of Agriculture and Livestock): बाढ़ से फसलें बर्बाद हो जाती हैं, जिससे किसानों की आजीविका पर सीधा असर पड़ता है। पशुधन की हानि भी एक बड़ा झटका है।
  • आजीविका का नुकसान (Loss of Livelihood): छोटे व्यवसायों, पर्यटन और दैनिक मजदूरी पर निर्भर लोगों की आय का नुकसान।
  • पुनर्निर्माण की लागत (Cost of Reconstruction): क्षतिग्रस्त बुनियादी ढांचे और घरों के पुनर्निर्माण में अरबों रुपये का खर्च आता है, जो सरकार और पीड़ितों दोनों पर भारी बोझ डालता है।
  • पर्यटन पर असर: हिमाचल जैसे राज्यों में, जहाँ पर्यटन मुख्य आय स्रोत है, ऐसे भूस्खलन और सड़कों का बंद होना पर्यटन सीजन को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।

3.3 सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव (Social and Environmental Impact):

  • सामाजिक विघटन (Social Disruption): समुदायों का विस्थापन और घरों का टूटना सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ सकता है।
  • भूमि क्षरण (Land Degradation): भूस्खलन से उपजाऊ भूमि का नुकसान होता है।
  • जल स्रोतों का प्रदूषण (Pollution of Water Sources): बाढ़ का पानी सीवेज और औद्योगिक कचरे को जल स्रोतों में मिला सकता है।
  • पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव (Impact on Ecosystems): वनों की कटाई और भूमि उपयोग में परिवर्तन स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित करते हैं।

यह कहना गलत नहीं होगा कि ये आपदाएँ एक ‘डेफिसिट डिसऑर्डर’ पैदा करती हैं – मानवीय, आर्थिक और पर्यावरणीय।

4. सरकारी प्रतिक्रिया और नीतियाँ (Government Response and Policies)

ऐसी त्रासदियों के प्रति सरकार की प्रतिक्रिया और मौजूदा नीतियाँ निम्नलिखित क्षेत्रों में केंद्रित होती हैं:

4.1 तत्काल राहत और बचाव (Immediate Relief and Rescue):

  • खोज और बचाव अभियान (Search and Rescue Operations): राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) की टीमें अक्सर सबसे पहले प्रतिक्रिया देती हैं।
  • आश्रय और भोजन (Shelter and Food): प्रभावित लोगों के लिए अस्थायी आश्रय, भोजन, पानी और चिकित्सा सहायता की व्यवस्था।
  • चिकित्सा सुविधाएँ (Medical Facilities): घायलों का उपचार और बीमारियों के प्रकोप को रोकने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय।
  • सुरक्षित क्षेत्रों में स्थानांतरण (Evacuation to Safe Zones): खतरनाक क्षेत्रों से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाना।

4.2 दीर्घकालिक पुनर्वास और पुनर्निर्माण (Long-term Rehabilitation and Reconstruction):

  • वित्तीय सहायता (Financial Assistance): क्षतिग्रस्त घरों और आजीविका के लिए मुआवजा और वित्तीय सहायता प्रदान करना।
  • बुनियादी ढांचे का पुनर्निर्माण (Reconstruction of Infrastructure): क्षतिग्रस्त सड़कों, पुलों, स्कूलों और अस्पतालों का पुनर्निर्माण।
  • आवास पुनर्वास (Housing Rehabilitation): बेघर लोगों के लिए स्थायी आवास का निर्माण।
  • आजीविका बहाली (Livelihood Restoration): प्रभावित समुदायों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना और कृषि सहायता प्रदान करना।

4.3 आपदा प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय नीतियाँ (National Policies for Disaster Management):

  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority – NDMA): यह निकाय नीतियों के निर्माण, योजना और आपदा प्रबंधन के समन्वय के लिए जिम्मेदार है।
  • आपदा न्यूनीकरण और प्रबंधन अधिनियम, 2005 (Disaster Management Act, 2005): यह अधिनियम आपदा प्रबंधन के लिए कानूनी और संस्थागत ढाँचा प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया निधि (National Disaster Response Fund – NDRF): अप्रत्याशित आपदाओं से निपटने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan on Climate Change – NAPCC): जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन और शमन के उपाय।
  • राष्ट्रीय शहरीकरण नीति (National Urbanization Policy) और राष्ट्रीय ग्रामीण विकास नीतियाँ: ये नीतियाँ अक्सर भूमि उपयोग योजना और टिकाऊ निर्माण प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करती हैं।

“हमारी सबसे बड़ी कमजोरी हमारे अपने ज्ञान को लागू न कर पाना है। हम जानते हैं कि क्या करना है, लेकिन अक्सर हम उसे करने में विफल रहते हैं।”

5. चुनौतियाँ और गंभीर चिंताएँ (Challenges and Serious Concerns)

इन आपदाओं से निपटने और भविष्य को सुरक्षित बनाने में भारत को कई महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:

  • जल्दी चेतावनी प्रणालियों का अप्रभावी होना (Ineffectiveness of Early Warning Systems): जबकि कई चेतावनी प्रणालियाँ मौजूद हैं, उनका प्रभावी संचार, पहुंच और लोगों द्वारा उन पर कार्रवाई करना एक चुनौती बनी हुई है।
  • आपदा-पूर्व तैयारी में कमी (Lack of Pre-disaster Preparedness): शमन उपायों, जैसे कि मजबूत निर्माण मानकों को लागू करना, बाढ़ नियंत्रण उपायों में निवेश, और भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों की मैपिंग और प्रबंधन में अक्सर देरी होती है।
  • अनुपालन और प्रवर्तन की कमी (Lack of Compliance and Enforcement): पर्यावरण नियमों, भवन कोडों और भूमि उपयोग योजनाओं का कमजोर प्रवर्तन अनियोजित विकास को बढ़ावा देता है।
  • संस्थागत समन्वय का अभाव (Lack of Institutional Coordination): विभिन्न सरकारी एजेंसियां, राज्य सरकारें और स्थानीय निकाय अक्सर प्रभावी ढंग से समन्वय नहीं कर पाते हैं, जिससे प्रतिक्रिया धीमी हो जाती है।
  • धन की कमी (Funding Constraints): आपदा प्रबंधन और पुनर्निर्माण के लिए पर्याप्त धन आवंटित करना एक बड़ी चुनौती है, विशेषकर जब बजट प्राथमिकताओं में अन्य विकास क्षेत्र भी हों।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता (Vulnerability to Climate Change): जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बढ़ते जा रहे हैं, हमारी मौजूदा अवसंरचना और नीतियां तेजी से अपर्याप्त साबित हो रही हैं।
  • जागरूकता और सामुदायिक भागीदारी का अभाव (Lack of Awareness and Community Participation): आम जनता में आपदा जोखिमों और सुरक्षा उपायों के बारे में जागरूकता की कमी है, और सामुदायिक स्तर पर सक्रिय भागीदारी अक्सर कम होती है।

6. भविष्य की राह: एक सुदृढ़ और लचीला भारत (The Way Forward: A Resilient India)

इन त्रासदियों से सबक लेते हुए, भारत को एक अधिक लचीला और सुरक्षित भविष्य बनाने के लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है:

6.1 बेहतर आपदा जोखिम न्यूनीकरण (Improved Disaster Risk Reduction – DRR):

  • स्मार्ट योजना और जोखिम-आधारित विकास (Smart Planning and Risk-Based Development): भूवैज्ञानिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों, बाढ़ के मैदानों और भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों की विस्तृत मैपिंग। विकास परियोजनाओं को इन जोखिमों को ध्यान में रखकर ही मंजूरी दी जानी चाहिए।
  • मजबूत भवन संहिता और उनका प्रवर्तन (Stronger Building Codes and Their Enforcement): भूकंपीय और बाढ़-प्रतिरोधी निर्माण के लिए कड़े भवन कोड बनाना और उनका सख्ती से पालन सुनिश्चित करना।
  • हरित अवसंरचना (Green Infrastructure): वनीकरण, प्राकृतिक जल निकासी को बढ़ावा देना, और टिकाऊ निर्माण सामग्री का उपयोग करना।
  • बाढ़ नियंत्रण और भूस्खलन शमन (Flood Control and Landslide Mitigation): नदियों के किनारों को मजबूत करना, तटबंधों का निर्माण, और भूस्खलन को रोकने के लिए इंजीनियरिंग समाधान (जैसे रिटेनिंग वॉल, जियो-टेक्सटाइल) लागू करना।

6.2 प्रौद्योगिकी और नवाचार का उपयोग (Leveraging Technology and Innovation):

  • उन्नत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Advanced Early Warning Systems): मौसम पूर्वानुमान, उपग्रह इमेजरी, और ग्राउंड-आधारित सेंसर का उपयोग करके वास्तविक समय की चेतावनी प्रणालियों में सुधार।
  • डिजिटल मैपिंग और GIS (Digital Mapping and GIS): जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान और निगरानी के लिए भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) का प्रभावी उपयोग।
  • आधुनिक संचार (Modern Communication): आपदा के दौरान सूचना के निर्बाध प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए मजबूत संचार नेटवर्क।

6.3 नीति और शासन में सुधार (Policy and Governance Improvements):

  • संस्थागत समन्वय को मजबूत करना (Strengthening Institutional Coordination): विभिन्न सरकारी एजेंसियों, आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों, और स्थानीय निकायों के बीच बेहतर तालमेल।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही (Transparency and Accountability): आपदा प्रतिक्रिया और पुनर्वास में पारदर्शिता सुनिश्चित करना और सार्वजनिक धन के उपयोग में जवाबदेही तय करना।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी (Private Sector Participation): आपदा प्रबंधन प्रौद्योगिकियों और समाधानों में निवेश को प्रोत्साहित करना।
  • आपदा बीमा (Disaster Insurance): व्यक्तियों और व्यवसायों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने के लिए आपदा बीमा को बढ़ावा देना।

6.4 जन जागरूकता और क्षमता निर्माण (Public Awareness and Capacity Building):

  • शिक्षा और प्रशिक्षण (Education and Training): स्कूलों और समुदायों में आपदा जोखिम जागरूकता और प्राथमिक उपचार का प्रशिक्षण देना।
  • सामुदायिक भागीदारी (Community Participation): स्थानीय समुदायों को आपदा प्रबंधन योजनाओं के निर्माण और कार्यान्वयन में सक्रिय रूप से शामिल करना।
  • आपातकालीन तैयारी किट (Emergency Preparedness Kits): परिवारों को आपात स्थिति के लिए तैयार रहने के लिए प्रोत्साहित करना।

6.5 जलवायु कार्रवाई (Climate Action):

  • उत्सर्जन में कमी (Reducing Emissions): ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबद्धताएँ।
  • अनुकूलन रणनीतियाँ (Adaptation Strategies): जलवायु परिवर्तन के अपरिहार्य प्रभावों के अनुकूल होने के लिए नीतियाँ और परियोजनाएँ।

हिमाचल का मंडी और उत्तर प्रदेश के बाढ़ग्रस्त क्षेत्र हमें एक कड़ा संदेश देते हैं: प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाए बिना हमारा विकास अधूरा और असुरक्षित है। अब समय आ गया है कि हम केवल प्रतिक्रिया देने के बजाय सक्रिय रूप से तैयारी करें, और शमन को प्राथमिकता दें।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. निम्नलिखित में से कौन सा कारक हिमाचल प्रदेश जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन की संभावना को बढ़ाता है?

  1. A) भारी वर्षा और उच्च ढलान
  2. B) वनस्पति का आवरण और मजबूत भूविज्ञान
  3. C) अत्यधिक शहरीकरण और कम निर्माण घनत्व
  4. D) कम भूकंपीय गतिविधि

उत्तर: A) भारी वर्षा और उच्च ढलान

व्याख्या: भारी वर्षा मिट्टी को संतृप्त करके उसे अस्थिर करती है, और उच्च ढलान गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव को बढ़ाते हैं, दोनों ही भूस्खलन के प्रमुख कारण हैं।

2. भारत में बाढ़ के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार नदियाँ कौन सी हैं, जो उत्तर प्रदेश जैसे मैदानी राज्यों से होकर बहती हैं?

  1. A) सिंधु, झेलम, चिनाब
  2. B) ब्रह्मपुत्र, गंगा, घाघरा, कोसी
  3. C) गोदावरी, कृष्णा, कावेरी
  4. D) महानदी, नर्मदा, ताप्ती

उत्तर: B) ब्रह्मपुत्र, गंगा, घाघरा, कोसी

व्याख्या: गंगा, घाघरा, कोसी और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियाँ अपने बड़े जलग्रहण क्षेत्रों और मानसून पर निर्भरता के कारण उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में विनाशकारी बाढ़ का कारण बनती हैं।

3. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) का गठन किस अधिनियम के तहत किया गया था?

  1. A) पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
  2. B) राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005
  3. C) भारतीय संविधान का अनुच्छेद 253
  4. D) आपदा राहत और पुनर्वास अधिनियम, 1971

उत्तर: B) राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005

व्याख्या: NDMA का गठन आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 द्वारा किया गया था, जिसने भारत में आपदा प्रबंधन के लिए संस्थागत ढाँचा स्थापित किया।

4. भूस्खलन की घटनाओं को बढ़ाने में निम्नलिखित में से कौन सा मानव-जनित कारक महत्वपूर्ण है?

  1. A) वनों की कटाई और पहाड़ों पर अनियोजित निर्माण
  2. B) भूमि उपयोग का विवेकपूर्ण नियोजन
  3. C) स्थानीय समुदायों का सक्रिय पहाड़ी प्रबंधन
  4. D) भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों की प्रभावी मैपिंग

उत्तर: A) वनों की कटाई और पहाड़ों पर अनियोजित निर्माण

व्याख्या: वनस्पति को हटाने और ढलानों पर निर्माण करने से मिट्टी की पकड़ कमजोर होती है, जिससे भूस्खलन की संभावना बढ़ जाती है।

5. जलवायु परिवर्तन का एक संभावित परिणाम क्या है जो बाढ़ की घटनाओं को बढ़ा सकता है?

  1. A) ग्रीष्मकाल का लंबा होना
  2. B) मानसून की वर्षा की तीव्रता में वृद्धि
  3. C) भूजल स्तर में कमी
  4. D) रेगिस्तानीकरण में कमी

उत्तर: B) मानसून की वर्षा की तीव्रता में वृद्धि

व्याख्या: जलवायु परिवर्तन से मौसम के चरम प्रभाव बढ़ रहे हैं, जिसमें कम समय में अत्यधिक बारिश शामिल है, जिससे नदियों में बाढ़ का खतरा बढ़ता है।

6. निम्नलिखित में से कौन सी तकनीक भूस्खलन के खतरों के मूल्यांकन और निगरानी में सहायक हो सकती है?

  1. A) केवल पारंपरिक खगोलीय अवलोकन
  2. B) दूरसंवेदन (Remote Sensing) और भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS)
  3. C) केवल मौखिक इतिहास संग्रह
  4. D) पवन ऊर्जा उत्पादन

उत्तर: B) दूरसंवेदन (Remote Sensing) और भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS)

व्याख्या: रिमोट सेंसिंग और GIS उपग्रहों और अन्य तकनीकों का उपयोग करके भूमि की स्थलाकृति, वनस्पति और भूगर्भीय संरचनाओं का विश्लेषण करने में मदद करते हैं, जिससे जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है।

7. बाढ़ के बाद जल-जनित बीमारियों के प्रसार को रोकने के लिए निम्नलिखित में से कौन सा एक महत्वपूर्ण उपाय है?

  1. A) दूषित जल स्रोतों का उपयोग जारी रखना
  2. B) स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करना और स्वच्छता बनाए रखना
  3. C) अधिक से अधिक लोगों को भीड़-भाड़ वाले राहत शिविरों में रखना
  4. D) सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को बंद करना

उत्तर: B) स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करना और स्वच्छता बनाए रखना

व्याख्या: बाढ़ के बाद डायरिया, टाइफाइड जैसी बीमारियों का प्रसार दूषित पानी और खराब स्वच्छता के कारण होता है, इसलिए सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता बनाए रखना महत्वपूर्ण है।

8. ‘आपदा के प्रति लचीलापन’ (Resilience to Disaster) से आप क्या समझते हैं?

  1. A) आपदाओं को होने से रोकना
  2. B) आपदाओं से उबरने, अनुकूलन करने और विकसित होने की क्षमता
  3. C) आपदाओं के प्रति पूरी तरह से असुरक्षित रहना
  4. D) केवल तत्काल बचाव कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना

उत्तर: B) आपदाओं से उबरने, अनुकूलन करने और विकसित होने की क्षमता

व्याख्या: लचीलापन न केवल आपदा का सामना करने की क्षमता है, बल्कि उससे सीखकर और मजबूत होकर वापस आने की क्षमता भी है।

9. हिमाचल प्रदेश जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में कनेक्टिविटी बनाए रखने के लिए कौन से बुनियादी ढांचे के विकल्प अधिक टिकाऊ हो सकते हैं?

  1. A) केवल बड़े और भारी पुल
  2. B) भूस्खलन-रोधी सुरंगें, बेहतर जल निकासी वाली सड़कें और स्थानीय सामग्री का उपयोग
  3. C) कच्चे और असुरक्षित पहाड़ी रास्तों को बढ़ावा देना
  4. D) सड़क निर्माण के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई

उत्तर: B) भूस्खलन-रोधी सुरंगें, बेहतर जल निकासी वाली सड़कें और स्थानीय सामग्री का उपयोग

व्याख्या: टिकाऊ अवसंरचना में ऐसी डिज़ाइन शामिल होती हैं जो स्थानीय भूविज्ञान और जलवायु को ध्यान में रखती हैं, जैसे कि भूस्खलन शमन सुविधाएँ और पर्यावरण के अनुकूल निर्माण विधियाँ।

10. बाढ़ के मैदानों पर अनियोजित निर्माण से किस प्रकार की समस्या उत्पन्न होती है?

  1. A) नदियों के प्राकृतिक प्रवाह में सुधार
  2. B) बाढ़ का प्रभाव कम हो जाता है
  3. C) बाढ़ की विभीषिका और जान-माल का नुकसान बढ़ जाता है
  4. D) जल संसाधनों का कुशल प्रबंधन

उत्तर: C) बाढ़ की विभीषिका और जान-माल का नुकसान बढ़ जाता है

व्याख्या: बाढ़ के मैदान वे क्षेत्र होते हैं जहाँ नदियाँ स्वाभाविक रूप से फैलती हैं। इन क्षेत्रों में निर्माण करने से जब नदी उफान पर आती है तो संपत्तियों और जीवन को सीधा खतरा होता है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. भूस्खलन और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएँ भारत में बार-बार क्यों हो रही हैं? जलवायु परिवर्तन, अनियोजित शहरीकरण और अवसंरचना विकास के संदर्भ में इन घटनाओं के पीछे के कारणों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। (250 शब्द, 15 अंक)

2. हिमाचल प्रदेश के मंडी में हालिया भूस्खलन और उत्तर प्रदेश में बाढ़ की घटनाओं के मानवीय, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभावों का विश्लेषण करें। आपदा के बाद तत्काल राहत और दीर्घकालिक पुनर्वास के लिए सरकार की भूमिका और उसकी प्रभावशीलता पर भी प्रकाश डालें। (250 शब्द, 15 अंक)

3. भारत को भविष्य में भूस्खलन और बाढ़ जैसी आपदाओं के प्रति अधिक लचीला बनाने के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए? आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR), प्रौद्योगिकी के उपयोग, नीतिगत सुधारों और सामुदायिक भागीदारी के संदर्भ में सुझाव दें। (150 शब्द, 10 अंक)

4. ‘आपदा-प्रवणता’ (Disaster Vulnerability) की अवधारणा की व्याख्या करें और बताएं कि कैसे विभिन्न कारक, जैसे कि सामाजिक-आर्थिक स्थिति, पर्यावरण निम्नीकरण और शासन, किसी क्षेत्र की भेद्यता को बढ़ा सकते हैं, जैसा कि हाल की हिमाचल और उत्तर प्रदेश की घटनाओं में देखा गया है। (150 शब्द, 10 अंक)

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