औद्योगीकरण

औद्योगीकरण 

 

 औद्योगीकरण नगरीकरण का कारण और परिणाम दोनों ही हो सकता है । अक्सर यह देखा जाता है कि जहाँ पर उद्योग – धन्धे पनप जाते हैं और मशीनों के बड़े बड़े मिल व फैक्ट्रियों में उत्पादन का कार्य होता है वहाँ पर नगरीकरण की प्रक्रिया तेजी से क्रियाशील होती है , भारत में अनेक नगरों का विकास उसी प्रकार हुआ है , इस अर्थ में औद्योगीकरण नगरीकरण का कारण होता है । पर ऐसा भी होता है कि अन्य किसी कारण से नगरीकरण की प्रक्रिया सर्वप्रथम क्रियायाशील होता है और अब जब समुदाय नगर का पूर्णरूप धारण कर लेता है तो वहाँ उद्योग धन्धे का धीरे – धीरे औद्योगीकरण होता है । अवधारणा : मशीनों द्वारा , बड़े पैमाने में उत्पादन कार्यों का सम्पादन व उद्योग – धन्धों का एक स्थान में विकास की प्रक्रिया को औद्यीकरण कहते हैं । कुछ लेखकों का कथन है कि “ औद्योगीकरण का तात्पर्य बड़े पैमाने के नवीन उद्योगों का प्रारम्भ और छोटे उद्योगों का बड़े पैमाने के उद्योगों में बदलने से है । ”

वास्तविक अर्थ में , ओद्योगीकरण उद्योगों के बड़े पैमाने में विकास की एक प्रक्रिया है । विलबर्ट मूरे ( W.E.Moore ने औद्योगीकरण की परिभाषा अपनी पुस्तक Social Change , P – 91 में इस प्रकार की है : “ औद्योगीकरण वह शब्द है जिसका उपयोग आर्थिक वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में शक्ति के निर्जीव स्रोतों का व्यापक रूप से उपयोग करने के लिए किया जाता है । ” ( Industrialization in its strict sense of the term , entails the extensive use of inanimate sources of power in the production of economic goods and services . ) अतः विल्बर्ट मूरे के अनुसार , औद्योगीकरण की प्रक्रिया का मुख्य लक्ष्य अधिक से अधिक लाभ कमाना है साथ ही औद्योगीकरण का संबंध वस्तु तथा सेवाओं दोनों से है ।

 भारत में औद्योगीकरण के कारण : भारत जैसे कृषि प्रधान देश में औद्योगीकरण कारणों में सर्वप्रमुख पंचवर्षीय योजनाओं का योगदान है । दूसरी पंचवर्षीय योजना 1956-61 के बीच औद्योगीकरण की शुरुआत व्यापक रूप से हुई । साथ ही अन्य कई कारणों को निम्नलिखित बिन्दुओं से समझा जा सकता है

  1. उत्पादन की नई तकनीक : उत्पादन की नवीन प्रविधियों के आविष्कार से औद्योगीकरण की दर में काफी वृद्धि हुई है । कृषि में नवीन संकर बीजों एवं यंत्रीकरण के फलस्वरूप ही हरित क्रांति संभव हुई । नवीन कपड़ा मिलों के आविष्कार ने औद्योगीकरण को नया रूप दिया । आज सूचना क्रांति में कम्प्यूटर , इन्टरनेट के आने से विश्व में कहीं भी सूचना भेजने एवं पाने में केवल कुछ सेकेण्ड लग रहे हैं ।

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  1. प्राकृतिक संसाधन : औद्योगीकरण की सबसे बड़ी आवश्यकता है प्राकृतिक संसाधन । अगर देश में प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता न होगी तो औद्योगीकरण की गति समाप्त से , 

जाएगी । भारत में लोहे , कोयले , अभ्रक आदि खनिज सम्पत्तियों के विशाल भण्डार हैं । पेट्रोलियम भी संतोषप्रद है । जल शक्ति के क्षेत्र में भारत संसार के सबसे धनी देशों में एक है । यहाँ ऐसे वन हैं जहाँ विश्व विभिन्न बीमारियों के लिए जड़ी बूटी उपलब्ध है ।

  1. यातायात के साधन : औद्योगीकरण की प्रक्रिया में यातायात के साधनों की अवहेलना नहीं की जा सकती है । कच्चे माल , मशीन तथा श्रमिकों को उत्पादन केन्द्र तक पहुँचाने में , बने हुए माल को देश – विदेश के बाजारों तक ले जाने में तथा उद्योग धन्धों से सम्बन्धित सम्बन्धों को बनाये रखने में यातायात के साधनों के महत्त्व को स्वीकार करना ही पड़ता है । अतः यातायात के बिना औद्योगीकरण का कोई महत्त्व नहीं है ।

  1. श्रम – शक्ति की प्रचुरता : विकसित देशों की तुलना में हमारे देश में श्रम – शक्ति कहीं अधिक है । गाँव में ऐसे करोड़ों भूमिहीन मजदूर हैं जो वर्ष में अधिकतर बेरोजगार रहते हैं , वे कम मजदूरी पर उद्योगों में श्रमिकों के रूप में काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं । इनके द्वारा किये जाने वाले औद्योगिक उत्पादन की लागत भी कम होती है । यह एक ऐसी दशा है जिसके फलस्वरूप यहाँ औद्योगिक विकास सरलता से सम्भव हो सका ।

  1. आर्थिक नीतियाँ : हमारे देश में औद्योगीकरण का एक प्रमुख कारण सरकार की अधि कि और औद्योगिक नीतियाँ हैं । भारत में स्वतन्त्रता के समय से ही एक मिश्रित अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन दिया गया । इसमें आधारभूत उद्योगों को सार्वजनिक क्षेत्र में विकसित किया गया , जबकि अन्य उद्योगों का विकास निजी क्षेत्र के लिए छोड़ दिया गया । श्रम कल्याण एवं श्रम सुरक्षा के लिए ऐसे बहुत से कानून बनाये गये जिससे श्रमिकों के शोषण को रोका जा सके तथा उनकी कार्य – कुशलता को बढ़ाया जा सके । यह दशा भी औद्योगिकीकरण के विकास में सहायक सिद्ध हुई ।

  1. अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा : भारत में औद्योगीकरण के विकास का एक अन्य कारण अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में भारत द्वारा हिस्सा लेना है । वर्तमान युग में कोई भी देश अपनी अर्थिक स्थिति को केवल तभी मजबूत बना सकता है जब वह दूसरे देशों से वस्तुओं का आयात करने के साथ ही स्वयं भी विभिन्न वस्तुओं का बड़ी मात्रा में उत्पादन करके उनका दूसरे देशों को निर्यात कर सके । आयात और निर्यात के सन्तुलन से ही हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत बनती है । स्वतंत्रता के बाद भारत ने आर्थिक क्षेत्र में जैसे – जैसे अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लेना शुरू किया , यहाँ औद्योगीकरण में वृद्धि होती गई ।

7.शैक्षणिक संस्थाएँ : भारत में औद्योगीकरण के कारणों में शिक्षण संस्थाओं का बड़ा महत्त्वपूर्ण भूमिका है । शिक्षण संस्थाओं के द्वारा विभिन्न कोर्स जो कि आधुनिक उत्पादन से संबंधित है करोड़ों की संख्या में ऐसे विद्यार्थी हैं जो कि हसिल कर रहे हैं । अतः उपर्युक्त दशाओं के साथ – साथ नये आविष्कार , नगरीकरण की प्रक्रिया तथा बैंकिंग सुविधा तथा सेवा क्षेत्र का विस्तार आदि वे सहायक दशाएँ हैं जिन्होंने औद्योगीकरण के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान किया ।

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औद्योगीकरण के फलस्वरूप सामाजिक आर्थिक परिवर्तन : आज भी भारत आधारभूत रूप में गाँवों का देश है । पर आज औद्योगीकरण की प्रक्रिया भी तेजी से अपने प्रभाव का विस्तार करती जा रही है । औद्योगीकरण की प्रक्रिया ने हमारे सम्पूर्ण सामाजिक संरचना में परिवर्तन ला दिया है और हमारा सामाजिक , आर्थिक , मानसिक , राजनैतिक , सांस्कृतिक , धार्मिक एवं नैतिक जीवन एक नया मोड़ ले रहा है । औद्योगीकरण के ये प्रभाव स्वस्थ भी हैं और अस्वस्थ भी । हम संक्षेप में अब दोनों प्रकार के प्रभावों की विवेचना यहाँ करेंगे । – 

  1. सामाजिक सांस्कृतिक सम्पर्कों का विस्तृत क्षेत्र : औद्योगीकरण का एक उल्लेखनीय प्रभाव यह है कि इसके फल्स्वरूप सामाजिक सांस्कृतिक सम्पर्कों का क्षेत्र स्वतः ही बढ़ जाता है । शहरों के सामाचार पत्र – पत्रिका , पुस्तक , रेडियो , केवल नेटवर्क , इंटरनेट , टेलीफोन , मोबाइल आदि के माध्यम से दूसरे प्रातों या देशों के साथ सम्पर्क स्थापित करना सरल होता है । ये सभी तत्व सामाजिक सांस्कृतिक सम्पर्क के क्षेत्र को विस्तृत करने में सहायक सिद्ध होते हैं ।

  1. शिक्षा व प्रशिक्षण संबंधी अधिक सुविधायें : अपने बच्चों को उचित शिक्षा देने के प्रति झुकाव अधिक होता है इसलिए औद्योगीकरण के साथ साथ शिक्षा व प्रशिक्षण सम्बन्धी सुविधाओं का भी विस्तार होता जाता है । कुछ नगरों में नगरीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने में शिक्षा व प्रशिक्षण संबंधी सुविधाओं का भी विस्तार होता है । कुछ नगरों में नगरीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने में शिक्षा व प्रशिक्षण संबंध सुविधाओं का अधिक योगदान होता हैं । कम्प्यूटर तथा अनेक टेकनिकल कोर्स करके शहरों में नौकरी की सम्भावनायें बढ़ जाती हैं । इन्हीं सुविधाओं के कारण नगर का महत्त्व दिन – प्रतिदिन बढ़ता जाता है ।

  1. व्यापार और वाणिज्य का विस्तार : नगरों के विकास के साथ – साथ व्यापार और वाणिज्य की प्रगति भी निश्चित रूप में होती है क्योंकि औद्योगीकरण के साथ – साथ आबादी बढ़ती है और आबादी बढ़ने से आवश्यकतायें बढ़ती हैं और उन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यापार और वाणिज्य का विस्तार आवश्यक हो जाता है । इसलिए औद्योगीकरण के साथ – साथ नए बाजार , हाट , शॉपिक सेटर , सिनेमा , रेस्टोरेन्ट आदि का भी उद्भव होता जाता है ।

  1. यातायात व संदेशवाहन की सुविधाओं में वृद्धि : नगर के विकास के साथ – साथ यातायात व संदेशवाहन की सुविधाओं का भी प्रसार होता जाता है क्योंकि इसके बिना नगरवासियों का जीवन सुविधाजनक नहीं हो सकता । नागरिक परिस्थितियाँ यह माँग करती है । कि यातायात और संदेशवाहन के साधानों को विस्तृत किया जाय । इसलिए नगर के विकास के साथ – साथ डाकघर , टेलीफोन , रेलवे स्टेशन , केरियर सर्विस , इन्टसेट , साइबर कैफे आदि का भी विकास होता जाता है और शहर के अंदर बस तथा टैक्सी सर्विस , ऑटो रिक्शा आदि उपलब्ध होते हैं । ये सभी सुविधायें महंगी हो सकती है जो जल्दी ही नागरिक जीवन के आवश्यक अंग बन जाती हैं ।
  2. राजनैतिक शिक्षा ( Political Education ) : औद्योगीकरण की प्रक्रिया के साथ – साथ राजनैतिक दलों की क्रियाशीलता भी बढ़ जाती है । वास्तव में नगर राजनैतिक दलों का अखाड़ा होता है और वे अपने – अपने आदर्शों व सिद्धांतों को फैलाने के लिए न केवल अत्यन्त प्रयत्नशील रहते हैं अपितु एक राजनैतिक दल दूसरे दल को नीचा दिखाने के लिए भी भरसक प्रयत्न करता रहता है । फलतः राजनैतिक दाँव – पेच सीखने का अवसर नगरों में जितना मिलता है उतना गाँवों में कदापि नहीं । यह इसलिए भी सम्भव होता है क्योंकि नगर में यातायात और संदेशवाहन के साधन उन्नत स्तर पर होते हैं और उनके व पुस्तक पत्रिका , सामाचार – पत्र , रेडियो , टीवी , पोस्टर , बैनर , स्पीकर आदि के माध्यम से अन्तरराष्ट्रीय राजनैतिक जीवन में भाग होना या कम से कम उसके सम्बन्ध में जानकारी हासिल करना हमारे लिये सम्भव होता है । यह राजनैतिक शिक्षा को व्यावहारिक स्तर पर लाने में सहायक सिद्ध होता है ।
  3. सामाजिक सहनशीलता : औद्योगीकरण का एक उल्लेखनीय प्रभाव यह है कि नगर निवासियों में सामाजिक सहनशीलता पर्याप्त मात्रा में पनप जाता है । इसका कारण भी स्पष्ट है । नगरीकरण के साथ साथ विभिन्न धर्म , सम्प्रदाय जाति , वर्ग , प्रजाति , प्रान्त तथा देश के लोग आकर बस जाते हैं और प्रत्येक को एक – दूसरे के साथ मिलने – जुलने का तथा एक दूसरे को 

अधिक निकट में देखने जानने का अवसर प्राप्त होता है । इस प्रकार के सर्पक में एक – दूसरे के प्रति सहनशीलता पनपती है ।

  1. पारिवारिक मूल्य व संधान में परिवर्तन : नगरीकरण के साथ साथ पारिवारिक मूल्यों एवं संरचना में भी तेजी से परिवर्तन होता है । नगरों में बच्चे आज पूरी तरह अपने माता पिता का सम्मान नहीं कर रहे हैं , अपनी जिद्द को ही सर्वोपरि मानते हैं , विवाह अपनी पसन्द की लकड़ी या लड़के से करते हैं , कॉलेज जाने के नाम पर रोमांस देखने को मिलता है । काम – काजी लड़कियों का एफयर तो नगरों में आम बात हो गई है । प्रेम विवाहों की संख्या में वृद्धि और तलाक की में वृद्धि भी नगरों में अधिक देखने की मिलती है । मीडिया एवं संचार क्रांति ने युवा वर्ग की अत्यधिक प्रभावित किया है । वह अपने रोल मॉडल की तरह ही बनने ( at her Social Economic effects of urbanization ) रहने की चाह में रहता है । पारिवारिक कर्तव्यों की ओर उसका ध्यान नहीं है । विवाह के बाद लड़की अपने पति को अलग घर में रहने के लिए प्रेरित करती है । एकल परिवारों की संख्या बढ़ना तथा संयुक्त परिवारों का विघटन यहाँ लगातार बढ़ रहा है ।

  1. गन्दी बस्तियों का विकास : औद्योगीकरण के साथ – साथ जब औद्योगीकरण की प्रक्रिया भी चलती रहती है तो नगर की जनसंख्या अति तीव्र गति से बढ़ती चली जाती है । पर जिस अनुपात में जनसंख्या बढ़ती है उसी अनुपात में नये मकानों का निर्माण नहीं हो पाता है । इसलिए नगरीकरण का एक प्रभाव गन्दी बस्तियों का विकास होता है ।

  1. सामाजिक मूल्यों तथा संबंधों में परिवर्तन : औद्योगीकरण के साथ – साथ व्यक्तिवादी आदर्श पनपता है । नगरों में धन तथा व्यक्तिगत गुणों का अधिक महत्त्व होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति केवल अपनी ही चिन्ता करता है और अपने स्वार्थों की रक्षा हेतु जी – जान लगा देता है । उसका प्रयत्न अपने ही व्यक्ति तत्व का विकास करना तथा अधिकाधिक धन एकत्र करना है क्योंकि इन्हीं पर उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा निर्भर करती है । इसलिए नगरीकरण का एक प्रभाव व्यक्तिगत स्वार्थ की वेदी पर सामुदायिक स्वार्थ की बलि चढ़ा देना होता है । उसी प्रकार नगरीकरण के साथ – साथ व्यक्तिगत संबंध अवैयक्तिक सामाजिक संबंधों में बदल जाता है । दिल्ली , कलकत्ता , मुम्बाई जैसे बड़े नगरों में तो आठ – दस मन्जिल वाले एक ही बिल्डिंग में रहने वाले व्यक्तियों में व्यक्तिगत संबंधों का नितान्त अभाव होता है । उसी प्रकार जाति – पाँति के आधार पर भेद – भाव छुआछूत को भावना आदि । नगरीकरण के साथ – साथ दुर्बल पड़ जाते हैं और इनसे संबंधित सामाजिक मूल्य बदल जाते हैं । सामाजिक दूरी का घटना नगरीकरण का एक उल्लेखनीय प्रभाव कहा जा सकता है । एक राजनैतिक दल दूसरे दल को नीचा दिखाने लगते हैं ।

 10.मनोरंजन का व्यापारीकरण : औद्योगीकरण का एक और उल्लेखनीय प्रभाव मनोरंजन के साधनों का व्यापारीकरण है अर्थात् सिनेमा , थियेटर डिस्को क्लब , खेल कूद , केवल नेटवर्क , मोबाइल , इंटरनेट आदि मनोरंजन के सभी साधनों का आयोजन व्यापारिक संस्थाओं द्वारा किया जाता है । इसलिये इनमें शीलता या स्वस्थ प्रभाव का उतना ध्यान नहीं रखा जाता है जितना कि उन्हें दर्शकों के लिये अधिकाधिक आकर्षक बनाकर उनसे पैसा लेने के प्रति सचेत रहा जाता है ।

  1. दुर्घटना , बीमारी व गन्दगी : नगरों में दुर्घटनायें अधिक होती हैं । अधिक प्रदूषण के कारण बीमारियाँ भी अधिक होती हैं । विभिन्न उद्योगों से संबंधित अलग – अलग बीमारियाँ पनपती हैं । इतना ही नहीं नगरों में घनी आबादी होने के कारण गन्दगी भी अधिक होती है । गन्दगी के कारण भी अनेक प्रकार की बीमारियाँ नगर निवासियों की आ घेरती हैं । लाख प्रयत्न करने – 

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पर भी औद्योगीकरण के परिणाम स्वरूप होने वाली दुर्घटना , बीमारी तथा गंदगी की समस्या के टाला नहीं जा सकता ।

  1. सामुदायिक जीवन में अनिश्चितता : नगरों की यह एक प्रमुख समस्या है और समस्या इसलिए है कि इस अनिश्चितता के कारण नगरों की सामुदयिक भावना या ‘ हम ‘ की भावना पनप नहीं पाती है । जिसके कारण नगर के जीवन में एकरूपता पनप नहीं पाती है । यहाँ कोई रात को सोता है तो कोई दिन में कोई आज रोजगार में लगा है कल बेकार है । यह अनिश्चितता हर पल पर हर क्षण है । सुबह घर से गया हुआ व्यक्ति शाम को घर लौटकर आयोग भी या नहीं , इसकी भी कोई निश्चितता नहीं है । यह अनिश्चितता सामुदायिक जीवन को विघटित करने वाले तत्वों को जन्म देती हैं ।

13.सामाजिक विघटन : व्यक्ति तथा संस्थाओं की स्थिति व कार्यों में अनिश्चितता अथवा अधिक परिवर्तनशीलता सामाजिक विघटन को उत्पन्न करती है । नगरों में सामाजिक परिवर्तन की गति भी तेज होती है जिसके कारण सामाजिक विघटन उत्पन्न होता है । नगरों में बैंक फेल करने , विद्रोह होने , क्रांति अथवा युद्ध छिड़ने की भी सम्भावना अधिक होती है जिनके कारण भी सामाजिक विघटन की स्थिति उत्पन्न होती है जो कि स्वस्थ सामाजिक जीवन के लिए घाटक सिद्ध होती हैं ।

 14.परिवारिक विघटन : नगरों में परिवारों के सदस्यों में आपसी संबंध अधिक घनिष्ट नहीं होता है क्योंकि पढ़ने – लिखने , प्रशिक्षण प्राप्त करने , नौकरी करने , मनोरंजन प्राप्त करने आदि के लिए घर के अधिकतर सदस्यों को या तो ढंग एक दूसरे हो अलग है या परिवार से बाहर ही अधिक समय व्यतीत करना पड़ता है । इस कारण परिवार के सदस्यों का एक दूसरे पर नियंत्रण भी बहुत कम होता है जो कि परिवार को विघटित करने में प्रायः सहायक ही सिद्ध होता है ।

15.व्यक्तिगत विघटन : यह नगरों की एक अन्य उल्लेखनीय समस्या है । व्यक्तिगत विघटन के निम्नलिखित पांच स्वरूप नगरों में देखने को मिलते हैं जिनमें से प्रत्येक स्वयं ही एक गम्भीर समस्या है ( a ) अपराध तथा बाल – अपराध : नगरों में निर्धनता , मकानों की समस्या , बेरोजगारी , स्त्री पुरुष के अनुपात में भेद , नशाखोरी , व्यापारिक मनोरंजन , व्यापार चक्र , प्रतिस्पर्धा , परिवार का शिथिल नियंत्रण , विद्यमान होते हैं जिनके कारण नगरों में अपराध और बाल – अपराध अधिक देखने को मिलने हैं । ( b ) आत्महत्या : नगरों में निर्धनता , बेरोजगारी , असुखी पारिवारिक जीवन , प्रतिस्पर्धा में असफल होने पर जीवन के संबंध में घोर निराशा , रोमांस या प्रेम में असफलता , व्यापार में असफलता आदि की एक राजनैतिक दल दूसरे दल को नीचा दिखाने सम्भावनायें अधिक होती हैं और इनमें से किसी भी अवस्था में व्यक्ति इस प्रकार की एक असहनीय मानसिक उलझन में फंस सकता है , जिससे घुटकारा पाने के लिए वह आत्महत्या को ही चुन लेता है । यही कारण है कि गांवों की अपेक्षा नगरों में कहीं अधिक आत्महत्यायें होती हैं । ( c ) वेश्यावृत्ति : नगरों में श्रमिक वर्ग अधिक होते हैं जो कि नगरों में मकानों की समस्या तथा मंहगाई के कारण अपने बीबी बच्चों के साथ न रहकर अकेले ही रहने को बाध्य होते हैं । इसके लिए वेश्यालय मनोरंजन का एक अच्छा स्थान होता है । नगरों में पाये जाने वाली निर्धनता तथा बेरोजगारी भी अनेक स्त्रियों को वेश्यावृत्ति को बाध्य करती हैं । ( d ) नशाखोरी : मद्यपान आदि व्यक्तिगत विघटन की ही एक अभिव्यक्ति है । नगरों में यह समस्या विशेष रूप से उग्र है । इस समस्या का चरम रूप तब देखने को मिलता है जबकि नगरों 

 .. नतिक रूप से तटस्थ होती है । में बड़ी – बड़ी पार्टियों , ‘ डिनरों ‘ में जहाँ की समाज के उच्चस्तरीय ‘ सज्जनों ‘ का जमघट होता है , मद्यपान को सामाजिक प्रतिष्ठा के प्रतीक और सामान्य शिष्टाचार के रूप में स्वीकार किया है । शहरों में जो अपने जीवन में असफल हुए हैं , ऐसे व्यक्तियों की भी कमी नहीं होती है । इसको शराब की दुकानों पर लगी भीड़ से हमें यह और अधिक स्पष्ट हो जाता है । ( e ) भिक्षावृत्ति : नगरों में लोग न केवल नगरों की गरीबी , भुखमारी और बेरोजगारी से तंग आकर भीख मांगते है अपितु भिक्षावृत्ति को एक व्यापारिक रूप भी देते हैं । बड़े – बड़े नगरों में भिखारियों के मालिक होते हैं जिनका कि काम भिखरी बनाना , भिखारियों को भीख माँगने के तरीके सिखाना , उनके शरीर को इस भांति विकृत या जराजीर्ण कर देना होता है जिससे लोगों को दया – भाव अपने – आप उभरे । 17.औद्योगीकरण के अन्य सामाजिक – आर्थिक प्रभाव : पूँजीवादी अर्थ व्यावस्था का विकास राष्ट्रीय धन का असमान वितरण , आर्थिक संकट , बेकारी , औद्योगिक झगड़े , मानसिक चिन्ता और रोग , संघर्ष व प्रतिस्पर्धा , सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि , श्रम विभाजान व विशेषीकरण ‘ हम ‘ की भावना का प्रभाव आदि औद्योगीकरण के अन्य प्रभाव हैं जो कि भारत में देखने को मिलते हैं ।

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