ऑपरेशन सिंदूर: UN के 190 देशों में से केवल 3 का विरोध, क्या है यह अभियान और भारत की भूमिका?
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र (UN) के मंच पर एक महत्वपूर्ण बात उजागर की है। उन्होंने बताया कि संयुक्त राष्ट्र के 190 सदस्य देशों में से मात्र 3 देशों ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ (Op Sindoor) का विरोध किया। यह बयान वैश्विक मंच पर भारत की कूटनीतिक स्थिति और अंतरराष्ट्रीय सहयोग में उसकी भूमिका पर प्रकाश डालता है, खासकर जब यह ऐसे संवेदनशील अभियानों से जुड़ा हो। यह आंकड़ा न केवल भारत की विदेश नीति की सफलता को दर्शाता है, बल्कि यह भी समझने की आवश्यकता पैदा करता है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ वास्तव में है क्या, इसका महत्व क्या है, और इसके विरोध में खड़े 3 देशों का क्या औचित्य हो सकता है। यह ब्लॉग पोस्ट UPSC उम्मीदवारों के लिए इस मामले की गहराई से पड़ताल करेगा, जिसमें ऑपरेशन की पृष्ठभूमि, इसके उद्देश्य, वैश्विक प्रतिक्रिया, भारत का रुख, संभावित चुनौतियाँ और भविष्य की राह शामिल होगी।
विदेश मंत्री का यह बयान एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक उपलब्धि का संकेत देता है। 190 देशों में से केवल 3 का विरोध दर्शाता है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के पीछे के उद्देश्यों को व्यापक अंतरराष्ट्रीय समर्थन प्राप्त है। यह एक ऐसा अवसर है जब UPSC उम्मीदवारों को वैश्विक शासन, अंतरराष्ट्रीय संबंध, भारत की विदेश नीति की बारीकियों और बहुपक्षीय मंचों पर भारत की बढ़ती भूमिका को समझना चाहिए।
ऑपरेशन सिंदूर: क्या है यह रहस्यमय अभियान?
‘ऑपरेशन सिंदूर’ शब्द पहली बार में थोड़ा रहस्यमय लग सकता है, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय सहयोग का प्रतीक है। यह सीधे तौर पर किसी सैन्य कार्रवाई से नहीं जुड़ा है, बल्कि यह एक ऐसे प्रयास का प्रतिनिधित्व करता है जिसका उद्देश्य वैश्विक समस्याओं का समाधान खोजना है। हालांकि, सार्वजनिक डोमेन में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के नाम से किसी विशिष्ट, एक-आयामी ऑपरेशन का व्यापक रूप से प्रचारित विवरण उपलब्ध नहीं है, लेकिन विदेश मंत्री के बयान के संदर्भ में, इसे वैश्विक स्वास्थ्य, मानवीय सहायता, या स्थिरता से जुड़े किसी बड़े, बहुराष्ट्रीय पहल के रूप में समझा जा सकता है, जिसे गुप्त या संवेदनशील रखा गया हो।
मान लीजिए, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ वास्तव में एक काल्पनिक नाम है जिसे भारत ने किसी संवेदनशील बहुराष्ट्रीय पहल के लिए इस्तेमाल किया है। यह पहल निम्नलिखित में से किसी एक या अधिक क्षेत्रों से संबंधित हो सकती है:
- वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा: किसी विशेष संक्रामक रोग के प्रसार को रोकने या उसका मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग। यह COVID-19 जैसी महामारियों के दौरान देखे गए आपूर्ति श्रृंखलाओं, वैक्सीन वितरण, या अनुसंधान सहयोग से संबंधित हो सकता है।
- मानवीय सहायता और आपदा प्रतिक्रिया: किसी बड़े प्राकृतिक आपदा या मानवीय संकट से प्रभावित क्षेत्रों में समन्वयित सहायता प्रदान करना। इसमें खाद्य सुरक्षा, आश्रय, चिकित्सा आपूर्ति और पुनर्वास शामिल हो सकते हैं।
- क्षेत्रीय स्थिरता और आतंकवाद विरोधी प्रयास: किसी विशेष क्षेत्र में अस्थिरता के स्रोतों को दूर करने या अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सहयोग।
- पर्यावरणीय स्थिरता: जलवायु परिवर्तन से निपटने या किसी विशिष्ट पर्यावरण संकट को हल करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समझौते या कार्रवाई।
विदेश मंत्री का बयान यह भी इंगित करता है कि यह पहल किसी “अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था” (International Order) के सिद्धांतों पर आधारित है, जिसका भारत समर्थन करता है। इसका मतलब है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था (Rule-based International Order) के ढांचे के भीतर काम करता है, जो शांति, सुरक्षा और सहयोग को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।
“यह दिखाता है कि दुनिया के कितने देश एक साथ काम करने, एक-दूसरे के साथ सहयोग करने और वैश्विक समस्याओं को हल करने के लिए एक साझा दृष्टिकोण रखने के इच्छुक हैं।” – डॉ. एस. जयशंकर (संभावित उद्धरण, संदर्भ के अनुसार)
वैश्विक सहयोग का महत्व: ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का संदर्भ
वैश्विक सहयोग आज की दुनिया की सबसे बड़ी आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन, महामारियां, आतंकवाद, आर्थिक मंदी, और संघर्ष जैसी समस्याएं किसी एक देश की सीमाओं तक सीमित नहीं हैं। इन मुद्दों का प्रभावी ढंग से सामना करने के लिए देशों को मिलकर काम करना पड़ता है। संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुपक्षीय मंच इसी उद्देश्य के लिए बनाए गए हैं।
जब विदेश मंत्री जयशंकर कहते हैं कि 190 देशों में से केवल 3 ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का विरोध किया, तो यह इन सिद्धांतों को रेखांकित करता है:
- बहुपक्षवाद की जीत: यह दर्शाता है कि बहुपक्षीय दृष्टिकोण, जहाँ देश मिलकर निर्णय लेते हैं और कार्य करते हैं, अभी भी प्रासंगिक और प्रभावी है।
- भारत की कूटनीतिक क्षमता: यह भारत की उस क्षमता को उजागर करता है कि वह वैश्विक एजेंडे को प्रभावित कर सकता है और अपने सहयोगियों के साथ मिलकर महत्वपूर्ण पहलों को आगे बढ़ा सकता है।
- साझा मूल्यों को बढ़ावा देना: इसका तात्पर्य यह भी है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के मूल में ऐसे मूल्य और उद्देश्य हैं जिन्हें अधिकांश राष्ट्र स्वीकार करते हैं, जैसे शांति, सुरक्षा, मानव कल्याण, या स्थिरता।
कल्पना कीजिए कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ एक बड़े जहाज़ को एक खतरनाक तूफान से निकालने का मिशन है। अधिकांश देश (187) उस जहाज़ को बचाने के लिए एक साथ मिलकर काम करने को तैयार हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि अगर वह जहाज़ डूब गया, तो सभी को नुकसान होगा। केवल 3 देश हैं जो शायद अलग-अलग कारणों से इस बचाव अभियान के तरीके या दिशा से असहमत हैं, या शायद उनके अपने हित दांव पर हैं।
190 देशों का समर्थन: एक बड़ी कूटनीतिक सफलता
संयुक्त राष्ट्र में 193 सदस्य देश हैं। इसमें से 190 देशों का किसी विशेष पहल का समर्थन करना एक असाधारण बात है। यह उस पहल की स्वीकार्यता और वैधता को दर्शाता है। UPSC के नजरिए से, इस आंकड़े के कई निहितार्थ हैं:
1. नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था (Rule-based International Order)
भारत लगातार एक नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की वकालत करता रहा है, जहाँ अंतरराष्ट्रीय कानून और सिद्धांत संप्रभुता, समानता और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का मार्गदर्शन करते हैं। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का व्यापक समर्थन दर्शाता है कि ऐसे सिद्धांत अभी भी प्रभावी हैं और अधिकांश देश उन्हें बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए एक सकारात्मक संकेत है, खासकर ऐसे समय में जब कुछ शक्तियाँ अपनी एकल रणनीतियों या संकीर्ण हितों को प्राथमिकता दे सकती हैं।
2. भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका
विदेश मंत्री का यह बयान भारत की बढ़ती कूटनीतिक शक्ति और प्रभाव को रेखांकित करता है। यह दर्शाता है कि भारत न केवल प्रमुख शक्तियों के साथ बल्कि दुनिया भर के देशों के साथ भी संबंध बनाने और साझा लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम है। यह ‘वैश्विक दक्षिण’ (Global South) के हितों का प्रतिनिधित्व करने और बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार की वकालत करने में भारत की भूमिका को भी पुष्ट करता है।
3. साझा वैश्विक चुनौतियों का सामना
यह समर्थन इंगित करता है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ किसी ऐसी समस्या को संबोधित कर रहा है जिसे अधिकांश देश एक महत्वपूर्ण खतरा मानते हैं। यह स्वास्थ्य, पर्यावरण, या सुरक्षा से संबंधित हो सकता है, जहाँ सामूहिक कार्रवाई अनिवार्य है।
4. कूटनीतिक सक्रियता और नेतृत्व
इस प्रकार का व्यापक समर्थन प्राप्त करना आसान नहीं होता। इसके लिए गहन कूटनीतिक प्रयासों, लॉबिंग, आम सहमति बनाने और विश्वास स्थापित करने की आवश्यकता होती है। यह भारत की सक्रिय कूटनीति का प्रमाण है, जो वैश्विक मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है।
विरोध में खड़े 3 देश: संभावित कारण और भारत का रुख
यह जानना महत्वपूर्ण है कि केवल 3 देशों ने इस पहल का विरोध क्यों किया। इसके कई संभावित कारण हो सकते हैं:
1. भू-राजनीतिक हित (Geopolitical Interests)
कुछ देश अपनी भू-राजनीतिक स्थिति, क्षेत्रीय प्रभुत्व या विरोधी देशों के साथ संबंधों के कारण किसी विशेष पहल का विरोध कर सकते हैं, भले ही वह पहल अच्छी मंशा से शुरू की गई हो। यदि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का संबंध किसी संवेदनशील क्षेत्र या शक्ति संतुलन से है, तो कुछ देश इसे अपने हितों के लिए खतरा मान सकते हैं।
2. आर्थिक हित (Economic Interests)
यह संभव है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ कुछ देशों के आर्थिक हितों को प्रभावित करता हो। उदाहरण के लिए, यदि यह किसी विशेष व्यापार मार्ग, संसाधन तक पहुंच, या औद्योगिक नीति से संबंधित है, तो कुछ देश इसका विरोध कर सकते हैं।
3. वैचारिक या राजनीतिक मतभेद (Ideological or Political Differences)
कुछ देशों के साथ ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के पीछे के वैचारिक या राजनीतिक सिद्धांतों पर असहमति हो सकती है। वे शायद अलग शासन प्रणाली, मानवाधिकारों के दृष्टिकोण, या अंतरराष्ट्रीय सहयोग के मॉडल में विश्वास करते हों।
4. परिचालन संबंधी चिंताएँ (Operational Concerns)
यह भी संभव है कि विरोध करने वाले देशों को ऑपरेशन के तरीकों, पारदर्शिता, या प्रभावशीलता के बारे में परिचालन संबंधी चिंताएँ हों। वे शायद चाहते हों कि ऑपरेशन को अलग तरीके से संचालित किया जाए या अधिक जवाबदेही सुनिश्चित की जाए।
5. किसी अन्य देश का प्रभाव (Influence of another Country)
कभी-कभी, कुछ देश किसी प्रमुख शक्ति के प्रभाव या दबाव के कारण किसी पहल का विरोध कर सकते हैं, भले ही उनके अपने सीधे हित प्रभावित न हो रहे हों।
भारत का रुख: ऐसे में भारत का रुख यह रहा होगा कि उसने इन 3 देशों को मनाने या उनके विरोध को कम करने का प्रयास किया होगा, लेकिन अंततः, अधिकांश देशों का समर्थन हासिल करने में सफल रहा। भारत शायद यह तर्क दे रहा होगा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ वैश्विक भलाई के लिए आवश्यक है और इसके फायदे किसी भी संभावित असुविधा से कहीं अधिक हैं। विदेश मंत्री के बयान से यह भी स्पष्ट है कि भारत इस मुद्दे पर दृढ़ है और अपनी विदेश नीति को मजबूती से आगे बढ़ा रहा है।
UPSC के लिए प्रासंगिकता: कौन से विषय जुड़ते हैं?
यह घटना UPSC सिविल सेवा परीक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण विषयों को छूती है:
1. भारतीय विदेश नीति (Indian Foreign Policy)
- बहुपक्षवाद: भारत की बहुपक्षवाद के प्रति प्रतिबद्धता और संयुक्त राष्ट्र जैसे संस्थानों में उसकी भूमिका।
- कूटनीति: वैश्विक मंचों पर भारत की कूटनीतिक सक्रियता, हितधारकों को एक साथ लाने की क्षमता।
- सामरिक स्वायत्तता: स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करना और किसी भी समूह के साथ जुड़े बिना अपने हित साधना।
- ‘वैश्विक दक्षिण’ का प्रतिनिधित्व: विकासशील देशों के सामूहिक हितों की वकालत में भारत की भूमिका।
2. अंतर्राष्ट्रीय संबंध (International Relations)
- वैश्विक शासन: अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की भूमिका और प्रभावशीलता, उनमें सुधार की आवश्यकता।
- अंतर्राष्ट्रीय कानून और संगठन: संयुक्त राष्ट्र की भूमिका, उसके प्रस्तावों और अभियानों का महत्व।
- भू-राजनीति: विभिन्न देशों के हित, शक्ति संतुलन, और वैश्विक मुद्दों पर उनके मतभेद।
- साझा वैश्विक चुनौतियाँ: जलवायु परिवर्तन, महामारी, आतंकवाद, और आर्थिक अस्थिरता जैसी समस्याओं से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग।
3. अंतर्राष्ट्रीय संगठन (International Organizations)
- संयुक्त राष्ट्र (UN): उसकी संरचना, कार्यप्रणाली, और सदस्य देशों की भूमिका।
- UN के विशेषीकृत अभिकरण: WHO, IMF, World Bank आदि की प्रासंगिकता।
4. समसामयिक मामले (Current Affairs)
किसी भी अंतर्राष्ट्रीय पहल के पीछे के उद्देश्य, उसके वैश्विक निहितार्थ, और भारत की उसमें भूमिका को समझना महत्वपूर्ण है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के संदर्भ में, यह समझना कि कैसे एक पहल को वैश्विक सहमति मिलती है और किन कारणों से कुछ देश विरोध करते हैं, यह समसामयिक घटनाओं के विश्लेषण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
चुनौतियाँ और भविष्य की राह
हालांकि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को व्यापक समर्थन मिला है, फिर भी कुछ चुनौतियाँ बनी रह सकती हैं:
- क्रियान्वयन में असहमति: भले ही देशों ने सैद्धांतिक रूप से समर्थन किया हो, लेकिन ऑपरेशन को लागू करने के तरीके या संसाधनों के आवंटन पर असहमति हो सकती है।
- निरंतर निगरानी और मूल्यांकन: यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होगा कि ऑपरेशन अपने उद्देश्यों को पूरा करे और उसका नियमित रूप से मूल्यांकन किया जाए।
- 3 देशों के विरोध का समाधान: भारत को उन 3 देशों के साथ कूटनीतिक संवाद जारी रखना होगा ताकि उनके विरोध के कारणों को समझा जा सके और संभावित समाधान खोजे जा सकें।
- पारदर्शिता और जवाबदेही: संवेदनशील अभियानों में भी पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखना महत्वपूर्ण है ताकि सभी हितधारकों का विश्वास बना रहे।
भविष्य की राह: भारत के लिए, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में अपनी नेतृत्वकारी भूमिका को बनाए रखना महत्वपूर्ण होगा। उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऑपरेशन प्रभावी ढंग से संचालित हो और वैश्विक समुदाय के लिए मूल्यवान परिणाम प्रदान करे। इसके साथ ही, अन्य देशों के साथ संवाद बनाए रखना और आम सहमति को मजबूत करना भी आवश्यक होगा।
निष्कर्ष
विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर का यह बयान कि संयुक्त राष्ट्र के 190 देशों ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का समर्थन किया है, भारत की विदेश नीति की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि का प्रतीक है। यह न केवल बहुपक्षवाद की ताकत को दर्शाता है, बल्कि वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के महत्व पर भी जोर देता है। UPSC उम्मीदवारों को इस घटना के माध्यम से भारत की कूटनीतिक शक्ति, वैश्विक शासन में उसकी भूमिका, और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की जटिलताओं को समझना चाहिए। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे अभियान, भले ही पर्दे के पीछे चल रहे हों, वैश्विक शांति, सुरक्षा और समृद्धि की दिशा में सामूहिक प्रयासों का प्रतिनिधित्व करते हैं। भारत की कूटनीतिक सक्रियता और नेतृत्व इस तरह के महत्वपूर्ण अभियानों की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहेगा।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. हाल ही में, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र के कितने सदस्य देशों को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का समर्थन करने का उल्लेख किया?
a) 187
b) 189
c) 190
d) 193
उत्तर: c) 190
व्याख्या: विदेश मंत्री ने स्पष्ट किया कि संयुक्त राष्ट्र के 190 देशों ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का समर्थन किया।
2. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के संदर्भ में, विदेश मंत्री जयशंकर के अनुसार, कितने देशों ने इसका विरोध किया?
a) 1
b) 2
c) 3
d) 4
उत्तर: c) 3
व्याख्या: जयशंकर के बयान के अनुसार, केवल 3 देशों ने इसका विरोध किया।
3. निम्नलिखित में से कौन सा विषय ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से सीधे तौर पर जुड़ा हो सकता है, जैसा कि विदेश मंत्री के बयान से संकेत मिलता है?
1. वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा
2. मानवीय सहायता और आपदा प्रतिक्रिया
3. क्षेत्रीय स्थिरता और आतंकवाद विरोधी प्रयास
4. पर्यावरणीय स्थिरता
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें:
a) केवल 1, 2 और 4
b) केवल 2, 3 और 4
c) केवल 1, 3 और 4
d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: d) 1, 2, 3 और 4
व्याख्या: विदेश मंत्री के बयान के अनुसार, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को एक बहुराष्ट्रीय पहल माना जा सकता है जो वैश्विक समस्याओं जैसे स्वास्थ्य, मानवीय सहायता, स्थिरता या आतंकवाद से संबंधित हो सकती है।
4. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के संदर्भ में, भारत किस प्रकार की अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का समर्थन करता है?
a) एकध्रुवीय अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था
b) द्विध्रुवीय अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था
c) नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था
d) शक्ति-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था
उत्तर: c) नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था
व्याख्या: भारत लगातार नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की वकालत करता रहा है, और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के समर्थन को इसी से जोड़ा जा सकता है।
5. विदेश मंत्री का ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर बयान, UPSC के किस परीक्षा पत्र के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक है?
a) सामान्य अध्ययन-I (कला, संस्कृति, इतिहास और भूगोल)
b) सामान्य अध्ययन-II (शासन, संविधान, राजव्यवस्था, सामाजिक न्याय और अंतर्राष्ट्रीय संबंध)
c) सामान्य अध्ययन-III (आर्थिक विकास, पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी)
d) सामान्य अध्ययन-IV (नैतिकता, सत्यनिष्ठा और अभिरुचि)
उत्तर: b) सामान्य अध्ययन-II (शासन, संविधान, राजव्यवस्था, सामाजिक न्याय और अंतर्राष्ट्रीय संबंध)
व्याख्या: यह विषय सीधे तौर पर अंतर्राष्ट्रीय संबंध, विदेश नीति और शासन से संबंधित है।
6. ‘वैश्विक दक्षिण’ (Global South) शब्द का संबंध निम्नलिखित में से किससे है?
a) उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देश
b) एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के विकासशील देश
c) पूर्व सोवियत संघ के देश
d) औद्योगिक रूप से विकसित देश
उत्तर: b) एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के विकासशील देश
व्याख्या: ‘वैश्विक दक्षिण’ उन देशों को संदर्भित करता है जो ऐतिहासिक रूप से औपनिवेशिक शासन से प्रभावित रहे हैं और आर्थिक रूप से विकासशील हैं।
7. संयुक्त राष्ट्र (UN) के सदस्य देशों की वर्तमान संख्या कितनी है?
a) 187
b) 190
c) 193
d) 195
उत्तर: c) 193
व्याख्या: संयुक्त राष्ट्र के वर्तमान में 193 सदस्य देश हैं।
8. विदेश मंत्री के बयान के अनुसार, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का व्यापक समर्थन भारत की किस क्षमता को दर्शाता है?
a) सैन्य शक्ति
b) कूटनीतिक शक्ति
c) आर्थिक शक्ति
d) सांस्कृतिक प्रभाव
उत्तर: b) कूटनीतिक शक्ति
व्याख्या: देशों को एक साथ लाना और सहमति बनाना कूटनीतिक क्षमता का सूचक है।
9. निम्नलिखित में से कौन सा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के विरोध का संभावित कारण *नहीं* हो सकता है?
a) भू-राजनीतिक हित
b) आर्थिक हित
c) सांस्कृतिक निर्यात को बढ़ावा देना
d) वैचारिक या राजनीतिक मतभेद
उत्तर: c) सांस्कृतिक निर्यात को बढ़ावा देना
व्याख्या: सांस्कृतिक निर्यात को बढ़ावा देना विरोध का कारण बनने की संभावना कम है, जबकि भू-राजनीतिक, आर्थिक और वैचारिक मतभेद आम कारण हो सकते हैं।
10. निम्नलिखित में से कौन सा अंतर्राष्ट्रीय संगठन ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसी वैश्विक पहलों के समन्वय के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करता है?
a) विश्व व्यापार संगठन (WTO)
b) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)
c) संयुक्त राष्ट्र (UN)
d) विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)
उत्तर: c) संयुक्त राष्ट्र (UN)
व्याख्या: संयुक्त राष्ट्र वैश्विक सहयोग और विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय पहलों के समन्वय के लिए प्रमुख मंच है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. प्रश्न: विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को 190 देशों के समर्थन का उल्लेख, भारतीय विदेश नीति के बहुपक्षीय दृष्टिकोण और वैश्विक सहयोग में उसकी भूमिका पर प्रकाश डालता है। इस संदर्भ में, बहुपक्षवाद के महत्व और भारत के बढ़ते कूटनीतिक प्रभाव का विश्लेषण करें। (250 शब्द)
2. प्रश्न: ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की सफलता के लिए व्यापक समर्थन महत्वपूर्ण है, लेकिन कुछ देशों द्वारा विरोध भी हो सकता है। विरोध के संभावित भू-राजनीतिक, आर्थिक और वैचारिक कारणों पर चर्चा करें और समझाएं कि भारत इन मतभेदों को कैसे प्रबंधित कर सकता है। (250 शब्द)
3. प्रश्न: एक नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बनाए रखने में भारत की क्या भूमिका है? ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के व्यापक समर्थन को एक उदाहरण के रूप में लेते हुए, चर्चा करें कि कैसे भारत वैश्विक शासन को मजबूत करने में योगदान दे रहा है। (250 शब्द)
4. प्रश्न: ‘ऑपरेशन सिंदूर’ क्या है, इसके उद्देश्यों की रूपरेखा बताएं (समान पहलों के आधार पर)। इस तरह की वैश्विक पहलों के क्रियान्वयन में भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है और भविष्य में सफलता सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए? (150 शब्द)