ऑपरेशन सिंदूर: भारत-अमेरिका VP के बीच PM की कॉल, भू-राजनीतिक दांवपेंच और कूटनीतिक तालमेल
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, प्रधान मंत्री ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अमेरिकी उपराष्ट्रपति के साथ हुई अपनी बातचीत का जिक्र किया। यह घटनाक्रम भारत-अमेरिका संबंधों की जटिलताओं, विशेष रूप से ऐसे महत्वपूर्ण सुरक्षा अभियानों के दौरान, और वैश्विक कूटनीति में संचार की भूमिका पर प्रकाश डालता है। प्रधान मंत्री के बयान ने कई सवाल खड़े किए हैं, जिससे यह विषय UPSC उम्मीदवारों के लिए भू-राजनीति, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीति के दृष्टिकोण से अध्ययन का एक महत्वपूर्ण बिंदु बन गया है।
ऑपरेशन सिंदूर, भले ही एक विशिष्ट घटना का उल्लेख करता हो, वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य में भारत की सक्रिय भूमिका और उसके प्रमुख सहयोगियों के साथ उसके संबंधों के व्यापक संदर्भ में देखा जाना चाहिए। यह बताता है कि कैसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक बातचीत, विशेष रूप से संकट के समय, न केवल राष्ट्रीय हितों को प्रभावित करती है, बल्कि वैश्विक स्थिरता को भी आकार देती है।
ऑपरेशन सिंदूर: एक भू-राजनीतिक पृष्ठभूमि (Operation Sindoor: A Geopolitical Backdrop)
ऑपरेशन सिंदूर, जैसा कि शीर्षक से पता चलता है, एक संभावित सुरक्षा अभियान या संकटकालीन प्रतिक्रिया से जुड़ा है। हालाँकि विशिष्ट विवरण सार्वजनिक डोमेन में व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं हो सकते हैं, हम ऐसे ऑपरेशनों के सामान्य संदर्भ को समझ सकते हैं। इस तरह के ऑपरेशन अक्सर:
- क्षेत्रीय अस्थिरता (Regional Instability): किसी विशेष क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले संकट, जैसे कि राजनीतिक उथल-पुथल, आतंकवाद, या मानव निर्मित आपदाएं।
- अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी (International Involvement): ऐसे संकटों में अक्सर कई देशों के हित होते हैं, खासकर यदि वे क्षेत्रीय स्थिरता, व्यापार मार्गों, या नागरिकों की सुरक्षा से संबंधित हों।
- सहयोग और समन्वय (Cooperation and Coordination): ऐसे ऑपरेशनों के सफल क्रियान्वयन के लिए अक्सर सहयोगी देशों के बीच घनिष्ठ समन्वय और सूचना साझाकरण की आवश्यकता होती है।
इस संदर्भ में, प्रधान मंत्री की अमेरिकी उपराष्ट्रपति के साथ बातचीत यह दर्शाती है कि कैसे भारत, एक प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने में सक्रिय भूमिका निभाता है और प्रमुख सहयोगियों के साथ समन्वय स्थापित करता है।
भारत-अमेरिका संबंध: एक रणनीतिक साझेदारी (India-US Relations: A Strategic Partnership)
भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच संबंध हाल के दशकों में एक मजबूत रणनीतिक साझेदारी में विकसित हुए हैं। यह साझेदारी कई स्तंभों पर टिकी हुई है:
- लोकतंत्र के साझा मूल्य (Shared Values of Democracy): दोनों देश लोकतांत्रिक शासन प्रणाली और स्वतंत्रता के सिद्धांतों को साझा करते हैं।
- आर्थिक सहयोग (Economic Cooperation): द्विपक्षीय व्यापार और निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को लाभ हुआ है।
- रक्षा सहयोग (Defense Cooperation): यह साझेदारी के सबसे मजबूत पहलुओं में से एक है, जिसमें संयुक्त सैन्य अभ्यास, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और रक्षा उपकरणों की खरीद शामिल है।
- रणनीतिक अभिसरण (Strategic Convergence): इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता, आतंकवाद का मुकाबला, और बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग जैसे मुद्दों पर दोनों देशों के हित संरेखित होते हैं।
यह पृष्ठभूमि समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि ऑपरेशन सिंदूर जैसे सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर बातचीत, भारत-अमेरिका संबंधों की गहराई और जटिलता को उजागर करती है।
संचार की भूमिका: ‘ही कॉल्ड मी सेवरल टाइम्स बट…’ (The Role of Communication: ‘He Called Me Several Times But…’)
प्रधान मंत्री के बयान का वह हिस्सा, “उन्होंने मुझे कई बार फोन किया, लेकिन…”, कूटनीतिक संचार के महत्व और बारीकियों पर प्रकाश डालता है। इस तरह के बयान कई व्याख्याओं को जन्म दे सकते हैं:
- अप्रत्याशितता (Unforeseen Circumstances): हो सकता है कि कॉल के बावजूद, कुछ अप्रत्याशित घटनाएँ हुईं हों जिन्होंने आगे की कार्रवाई को प्रभावित किया हो।
- सूचना का आदान-प्रदान (Exchange of Information): कई बार कॉल का मतलब महत्वपूर्ण जानकारी साझा करना, स्थिति का आकलन करना, या किसी विशेष कार्रवाई के लिए समर्थन प्राप्त करना हो सकता है।
- सहयोग का प्रयास (Attempt at Cooperation): यह एक संकेत हो सकता है कि दोनों पक्ष एक साझा लक्ष्य को प्राप्त करने या एक आम खतरे का सामना करने के लिए सहयोग करने का प्रयास कर रहे थे।
- कूटनीतिक शिष्टाचार (Diplomatic Etiquette): ऐसी परिस्थितियों में, नेताओं के बीच सीधा संचार अक्सर गलतफहमी को दूर करने और विश्वास बनाने के लिए महत्वपूर्ण होता है।
यह बयान उन जटिलताओं को भी दर्शाता है जो वैश्विक संकटों के दौरान होती हैं। भले ही शीर्ष स्तर पर संवाद हो, जमीनी स्तर पर निष्पादन और अप्रत्याशित घटनाएँ परिणाम को प्रभावित कर सकती हैं।
भू-राजनीतिक दांवपेंच और कूटनीतिक तालमेल (Geopolitical Stakes and Diplomatic Maneuvering)
ऑपरेशन सिंदूर जैसे अभियान अक्सर उच्च दांव वाले भू-राजनीतिक परिदृश्यों में होते हैं। प्रधान मंत्री और अमेरिकी उपराष्ट्रपति के बीच बातचीत का समय और संदर्भ महत्वपूर्ण है।
क्यों महत्वपूर्ण है यह बातचीत? (Why is this Conversation Important?)
- क्षेत्रीय स्थिरता (Regional Stability): ऐसे ऑपरेशन सीधे तौर पर किसी क्षेत्र की स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं, जो भारत और अमेरिका दोनों के रणनीतिक हितों के लिए महत्वपूर्ण है।
- शक्ति संतुलन (Balance of Power): किसी क्षेत्र में शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए प्रमुख शक्तियों के बीच समन्वय आवश्यक है।
- साझा खतरे का मुकाबला (Countering Shared Threats): आतंकवाद, समुद्री डकैती, या क्षेत्र में अस्थिरता फैलाने वाली अन्य ताकतों का मुकाबला करने के लिए सहयोग महत्वपूर्ण हो सकता है।
- साख और विश्वसनीयता (Credibility and Reliability): प्रमुख सहयोगियों के साथ प्रभावी ढंग से समन्वय करने की भारत की क्षमता उसकी कूटनीतिक साख और विश्वसनीयता को बढ़ाती है।
कूटनीतिक तालमेल कैसे काम करता है? (How does Diplomatic Maneuvering Work?)
कूटनीतिक तालमेल में कई तत्व शामिल होते हैं:
- सूचना एकत्रण और विश्लेषण (Intelligence Gathering and Analysis): जमीनी हकीकत को समझने के लिए गहन सूचना एकत्रण महत्वपूर्ण है।
- रणनीतिक संचार (Strategic Communication): अपने इरादों और नीतियों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करना, साथ ही अन्य देशों के दृष्टिकोण को समझना।
- साझा हित (Common Interests): उन क्षेत्रों की पहचान करना जहां दोनों देशों के हित समान हों और उन पर मिलकर काम करना।
- समझौता और रियायतें (Compromise and Concessions): जटिल अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में, अक्सर दोनों पक्षों को कुछ रियायतें देनी पड़ती हैं।
- बहुपक्षीय मंच (Multilateral Forums): संयुक्त राष्ट्र, जी20, या क्वाड जैसे मंचों का उपयोग कूटनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है।
प्रधान मंत्री की अमेरिकी उपराष्ट्रपति के साथ बातचीत, इस जटिल कूटनीतिक नृत्य का एक उदाहरण है, जहां राष्ट्रीय हितों की रक्षा के साथ-साथ साझेदारी को मजबूत करने का प्रयास किया जाता है।
भारत की विदेश नीति और कूटनीति: एक व्यापक दृष्टिकोण (India’s Foreign Policy and Diplomacy: A Broader Perspective)
ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में यह घटनाक्रम, भारत की विदेश नीति के व्यापक सिद्धांतों से जुड़ा है। भारत की विदेश नीति की मुख्य विशेषताएं:
- बहु-संरेखण (Multi-alignment): विभिन्न देशों के साथ संबंध बनाना, बिना किसी एक शक्ति के साथ पूरी तरह से जुड़ना।
- रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy): अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता।
- शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व (Peaceful Coexistence): अन्य देशों के साथ शांतिपूर्वक रहने और सहयोग करने पर जोर।
- विकासशील देशों का समर्थन (Support for Developing Nations): वैश्विक दक्षिण (Global South) के देशों के हितों का प्रतिनिधित्व करना।
अमेरिकी उपराष्ट्रपति के साथ बातचीत, भारत की “मेक इन इंडिया”, “आत्मनिर्भर भारत” और “सबका साथ, सबका विकास” जैसी पहलों के साथ-साथ वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में उसके सक्रिय दृष्टिकोण को दर्शाती है।
पक्ष और विपक्ष: इस कूटनीतिक बातचीत के संभावित प्रभाव (Pros and Cons: Potential Implications of this Diplomatic Conversation)
इस तरह की उच्च-स्तरीय बातचीत के कई संभावित प्रभाव हो सकते हैं:
सकारात्मक प्रभाव (Positive Implications):
- रणनीतिक गठबंधन का सुदृढ़ीकरण (Strengthening of Strategic Alliance): संकट के समय संचार, भारत-अमेरिका साझेदारी को मजबूत करता है।
- स्पष्टता और समन्वय (Clarity and Coordination): गलतफहमी को दूर करने और संयुक्त प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।
- क्षेत्रीय सुरक्षा में योगदान (Contribution to Regional Security): साझा खतरों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने में मदद मिल सकती है।
- कूटनीतिक विश्वसनीयता (Diplomatic Credibility): यह दर्शाता है कि भारत अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर एक विश्वसनीय भागीदार है।
नकारात्मक प्रभाव (Negative Implications) / चुनौतियाँ (Challenges):
- हितों का टकराव (Clash of Interests): भले ही बातचीत हो, दोनों देशों के हितों में अंतर हो सकता है।
- परिचालन संबंधी बाधाएं (Operational Hurdles): संचार के बावजूद, जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन में चुनौतियाँ आ सकती हैं।
- संवेदनशीलता और गोपनीयता (Sensitivity and Confidentiality): ऐसी बातचीत अक्सर संवेदनशील होती है, और विवरणों का लीक होना कूटनीतिक संबंधों को नुकसान पहुंचा सकता है।
- जनता की अपेक्षाएं (Public Expectations): प्रधान मंत्री का बयान जनता की अपेक्षाओं को भी बढ़ा सकता है, खासकर सुरक्षा से जुड़े मामलों में।
उदाहरण: मान लीजिए ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य किसी क्षेत्र में आतंकवादी समूह की गतिविधियों को रोकना था। भारत और अमेरिका, दोनों इस समूह को एक खतरा मानते हैं। बातचीत का उद्देश्य सूचना साझा करना, संभावित हवाई हमलों के लिए समन्वय करना, या मानवीय सहायता प्रदान करना हो सकता है। लेकिन, अगर अप्रत्याशित रूप से, उस क्षेत्र में एक गैर-लड़ाकू समूह सक्रिय हो जाता है, तो कॉल के बावजूद, प्रत्यक्ष कार्रवाई से बचा जा सकता है या रणनीति बदलनी पड़ सकती है।
चुनौतियाँ और भविष्य की राह (Challenges and the Way Forward)
इस तरह के घटनाक्रमों से भारत को कई महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:
- समन्वय तंत्र को मजबूत करना (Strengthening Coordination Mechanisms): भविष्य में, संकटों के दौरान प्रभावी और त्वरित समन्वय के लिए मौजूदा तंत्रों को और अधिक मजबूत करने की आवश्यकता है।
- सूचना युद्ध का प्रबंधन (Managing Information Warfare): गलत सूचना और दुष्प्रचार का मुकाबला करने के लिए एक मजबूत संचार रणनीति आवश्यक है।
- राष्ट्रीय हितों को संतुलित करना (Balancing National Interests): विभिन्न सहयोगियों के साथ संबंध निभाते हुए अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखना।
- लचीलापन और अनुकूलनशीलता (Resilience and Adaptability): अप्रत्याशित वैश्विक घटनाओं के प्रति लचीलापन बनाए रखना और तदनुसार अपनी नीतियों को अनुकूलित करना।
भविष्य की राह के लिए, भारत को:
- गठबंधन निर्माण को बढ़ावा देना (Promoting Alliance Building): समान विचारधारा वाले देशों के साथ रणनीतिक गठबंधन बनाना और उन्हें मजबूत करना।
- कूटनीतिक क्षमता का विस्तार (Enhancing Diplomatic Capacity): अधिक प्रभावी कूटनीति के लिए अपनी कूटनीतिक सेवाओं में निवेश करना।
- तकनीकी सहयोग (Technological Cooperation): सुरक्षा और रक्षा में तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देना, जिसमें सूचना साझाकरण प्लेटफॉर्म भी शामिल हैं।
- सार्वजनिक कूटनीति (Public Diplomacy): अपनी विदेश नीति के उद्देश्यों और सफलताओं के बारे में जनता को सूचित करना।
उदाहरण: यूक्रेन युद्ध के दौरान, भारत ने बहु-संरेखण की अपनी नीति को प्रभावी ढंग से प्रदर्शित किया। उसने रूस के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को बनाए रखा, जबकि पश्चिमी देशों के साथ अपने सहयोग को भी जारी रखा। यह उस कूटनीतिक कौशल का उदाहरण है जो भारत जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्यों में प्रदर्शित करता है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. **ऑपरेशन सिंदूर जैसे सुरक्षा अभियानों के संदर्भ में, प्रधान मंत्री और अमेरिकी उपराष्ट्रपति के बीच बातचीत का मुख्य उद्देश्य क्या हो सकता है?**
a) केवल राजनयिक शिष्टाचार बनाए रखना।
b) सूचना साझा करना, स्थिति का आकलन करना और समन्वय स्थापित करना।
c) अमेरिकी सहायता के लिए प्रत्यक्ष अनुरोध करना।
d) घरेलू राजनीतिक लाभ प्राप्त करना।
उत्तर: b)
व्याख्या: इस तरह की बातचीत का मुख्य उद्देश्य संकट के दौरान सटीक जानकारी साझा करना, स्थिति की गंभीरता का आकलन करना और संयुक्त या समन्वित कार्रवाई के लिए आधार तैयार करना होता है।
2. **भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी के मुख्य स्तंभों में निम्नलिखित में से कौन शामिल है?**
1. साझा लोकतांत्रिक मूल्य
2. मजबूत आर्थिक संबंध
3. गहरा रक्षा सहयोग
4. विज्ञान और प्रौद्योगिकी में सहयोग
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
a) केवल 1, 2 और 3
b) केवल 2, 3 और 4
c) केवल 1, 3 और 4
d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: d)
व्याख्या: भारत-अमेरिका साझेदारी इन सभी क्षेत्रों पर आधारित है, जो इसे एक व्यापक और बहुआयामी संबंध बनाती है।
3. **प्रधान मंत्री द्वारा “ही कॉल्ड मी सेवरल टाइम्स बट…” जैसे बयान का क्या अर्थ हो सकता है?**
a) अमेरिकी उपराष्ट्रपति ने सहायता की पेशकश की थी लेकिन वह अपर्याप्त थी।
b) बातचीत के बावजूद, कुछ अप्रत्याशित घटनाएँ हुईं जिन्होंने परिणाम को प्रभावित किया।
c) दोनों नेताओं के बीच संचार में कोई समस्या थी।
d) बातचीत केवल औपचारिक थी और कोई ठोस परिणाम नहीं निकला।
उत्तर: b)
व्याख्या: इस तरह के बयान अक्सर यह दर्शाते हैं कि उच्च-स्तरीय संचार के बावजूद, परिचालन या सामरिक बाधाएं मौजूद हो सकती हैं जो आगे की कार्रवाई को जटिल बनाती हैं।
4. **इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की विदेश नीति किस सिद्धांत पर आधारित है?**
a) एकपक्षीय प्रभुत्व (Unilateral Dominance)
b) पूर्ण संरेखण (Exclusive Alignment)
c) बहु-संरेखण (Multi-alignment)
d) तटस्थता (Neutrality)
उत्तर: c)
व्याख्या: भारत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में विभिन्न शक्तियों के साथ संबंध बनाए रखता है, जो उसकी बहु-संरेखण नीति को दर्शाता है।
5. **आर्थिक सहयोग के संबंध में, भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार हाल के वर्षों में:**
a) स्थिर रहा है।
b) महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा है।
c) मामूली रूप से कम हुआ है।
d) बहुत कम रहा है।
उत्तर: b)
व्याख्या: भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार और निवेश में लगातार वृद्धि देखी गई है।
6. **निम्नलिखित में से कौन सा एक “साझा खतरा” है जिसका मुकाबला भारत और अमेरिका दोनों मिलकर कर सकते हैं?**
a) जलवायु परिवर्तन
b) आतंकवाद
c) क्षेत्रीय अस्थिरता
d) उपर्युक्त सभी
उत्तर: d)
व्याख्या: भारत और अमेरिका दोनों वैश्विक और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए साझा खतरों जैसे आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और क्षेत्रीय अस्थिरता से निपटने के लिए सहयोग करते हैं।
7. **”रणनीतिक स्वायत्तता” (Strategic Autonomy) का अर्थ है:**
a) किसी अन्य देश की नीतियों का आँख बंद करके पालन करना।
b) अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की क्षमता।
c) सभी अंतर्राष्ट्रीय गठबंधनों से पूरी तरह बाहर रहना।
d) केवल आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना।
उत्तर: b)
व्याख्या: रणनीतिक स्वायत्तता का अर्थ है राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए स्वतंत्र विदेश और सुरक्षा नीति का संचालन करना।
8. **क्वाड (QUAD) समूह में निम्नलिखित में से कौन से देश शामिल हैं?**
1. भारत
2. संयुक्त राज्य अमेरिका
3. जापान
4. ऑस्ट्रेलिया
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
a) केवल 1, 2 और 3
b) केवल 2, 3 और 4
c) केवल 1, 3 और 4
d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: d)
व्याख्या: क्वाड समूह में भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं, जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता और सुरक्षा के लिए मिलकर काम करते हैं।
9. **कूटनीतिक संचार का एक महत्वपूर्ण पहलू है:**
a) सूचना को गुप्त रखना।
b) केवल अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करना।
c) दूसरे देशों के दृष्टिकोण को समझना और सूचना का प्रभावी ढंग से आदान-प्रदान करना।
d) केवल औपचारिक बैठकें आयोजित करना।
उत्तर: c)
व्याख्या: प्रभावी कूटनीतिक संचार में दूसरे के दृष्टिकोण को समझना, जानकारी का स्पष्ट आदान-प्रदान करना और विश्वास बनाना शामिल है।
10. **ऑपरेशन सिंदूर जैसे घटनाक्रमों के दौरान, भारत की “मेक इन इंडिया” पहल किस तरह से संबंधित हो सकती है?**
a) सीधे तौर पर नहीं, यह केवल आर्थिक पहल है।
b) रक्षा उपकरणों के निर्माण में आत्मनिर्भरता बढ़ाकर, जो ऐसे अभियानों में महत्वपूर्ण हो सकता है।
c) केवल घरेलू खपत के लिए।
d) विदेशी निवेश को हतोत्साहित करने के लिए।
उत्तर: b)
व्याख्या: “मेक इन इंडिया” का उद्देश्य रक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता बढ़ाना है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा अभियानों के लिए आवश्यक उपकरणों और प्रौद्योगिकियों की उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. **ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में प्रधान मंत्री और अमेरिकी उपराष्ट्रपति के बीच उच्च-स्तरीय बातचीत, भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी के विकास और जटिलताओं पर प्रकाश डालती है। इस संदर्भ में, भारत-अमेरिका संबंधों के वर्तमान स्वरूप का विश्लेषण करें और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने में इस साझेदारी के महत्व पर चर्चा करें। (250 शब्द)**
2. **”संचार कूटनीति” (Communication Diplomacy) वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों के समाधान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान प्रधान मंत्री के बयान के आलोक में, अंतर्राष्ट्रीय संकटों के प्रबंधन में प्रत्यक्ष संचार, सूचना साझाकरण और कूटनीतिक तालमेल के महत्व का मूल्यांकन करें। (250 शब्द)**
3. **भारत की विदेश नीति “बहु-संरेखण” (Multi-alignment) और “रणनीतिक स्वायत्तता” (Strategic Autonomy) के सिद्धांतों पर आधारित है। ऑपरेशन सिंदूर जैसे अभियानों के दौरान प्रमुख शक्तियों के साथ सहयोग करते हुए इन सिद्धांतों को संतुलित करने में भारत के सामने आने वाली चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा करें। (250 शब्द)**
4. **ऑपरेशन सिंदूर जैसे सुरक्षा अभियानों के सफल निष्पादन के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और समन्वय अपरिहार्य है। भारत और अमेरिका के बीच सहयोग के विभिन्न आयामों का उल्लेख करते हुए, ऐसे अभियानों में तालमेल और प्रभावी समन्वय सुनिश्चित करने में भू-राजनीतिक, आर्थिक और तकनीकी कारक कैसे योगदान करते हैं, इसका विश्लेषण करें। (250 शब्द)**