ऑपरेशन सिंदूर की राख से फिर उभरा आतंक का साया: पाकिस्तान-चीन गठजोड़ का सच

ऑपरेशन सिंदूर की राख से फिर उभरा आतंक का साया: पाकिस्तान-चीन गठजोड़ का सच

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हालिया ख़बरों ने भारत की सुरक्षा चिंताओं को एक बार फिर बढ़ा दिया है। जानकारी के अनुसार, पाकिस्तान में वे ‘आतंकी फैक्ट्रियां’ फिर से सक्रिय हो रही हैं, जिन्हें कभी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में तबाह करने का दावा किया गया था। चौंकाने वाली बात यह है कि पाकिस्तान सरकार इन ठिकानों की मरम्मत के लिए 100 करोड़ रुपये का फंड दे रही है और इसमें चीनी कंपनियों की मदद भी ली जा रही है। यह घटनाक्रम न केवल भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक सीधा खतरा है, बल्कि क्षेत्रीय भू-राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद-विरोधी प्रयासों के लिए भी गंभीर निहितार्थ रखता है। यह पाकिस्तान के आतंकवाद को लेकर दोहरे रवैये और चीन के संदिग्ध सहयोग को एक बार फिर उजागर करता है।

ऑपरेशन सिंदूर क्या था? (What was Operation Sindoor?)

‘ऑपरेशन सिंदूर’ का ज़िक्र पहली बार इस संदर्भ में आता है कि यह पाकिस्तान में मौजूद उन आतंकी ठिकानों और प्रशिक्षण शिविरों को निशाना बनाने के लिए शुरू किया गया एक कथित या रिपोर्टेड ऑपरेशन था, जो सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देते थे। यद्यपि इस नाम से किसी सार्वजनिक रूप से ज्ञात बड़े सैन्य अभियान की पुष्टि उपलब्ध नहीं है, लेकिन ख़बरों में इसका ज़िक्र यह दर्शाता है कि यह एक सांकेतिक नाम हो सकता है, जो भारत द्वारा या किसी अन्य एजेंसी द्वारा पाकिस्तानी धरती पर सक्रिय आतंकवादी बुनियादी ढांचे को निष्क्रिय करने के प्रयासों को संदर्भित करता है।

  • उद्देश्य: इस ऑपरेशन का प्राथमिक उद्देश्य पाकिस्तान के भीतर सक्रिय आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों, लॉन्च पैड और बुनियादी ढांचे को ध्वस्त करना था, ताकि भारत में घुसपैठ और आतंकवादी गतिविधियों को रोका जा सके।
  • रिपोर्टेड प्रभाव: दावा किया गया था कि इस ऑपरेशन ने इन ‘आतंकी फैक्ट्रियों’ को बड़ी हद तक तबाह कर दिया था, जिससे सीमा पार घुसपैठ और हमलों में कुछ समय के लिए कमी आई थी। इसे भारत की आतंकवाद के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा माना गया।

हालांकि, यदि अब इन ठिकानों को फिर से सक्रिय किया जा रहा है, तो यह दर्शाता है कि आतंकवाद को जड़ से उखाड़ने का काम अभी भी अधूरा है, और यह एक निरंतर चुनौती बनी हुई है।

‘आतंकी फैक्ट्रियां’: एक गंभीर खतरा (Terror Factories: A Serious Threat)

‘आतंकी फैक्ट्रियां’ शब्द अपने आप में एक भयावह सच्चाई को समेटे हुए है। यह केवल भौतिक इमारतें नहीं हैं, बल्कि एक जटिल पारिस्थितिकी तंत्र है जो आतंकवाद को जन्म देता है, पालता है और निर्यात करता है।

  • परिभाषा और कार्यप्रणाली:
    • प्रशिक्षण शिविर (Training Camps): ये वे स्थान हैं जहाँ रंगरूटों को हथियार चलाने, विस्फोटक बनाने, और गुरिल्ला युद्ध की तकनीकें सिखाई जाती हैं।
    • भर्ती केंद्र (Recruitment Centers): यहाँ युवाओं को कट्टरपंथी विचारधाराओं से प्रेरित कर आतंकवाद के दलदल में धकेला जाता है। अक्सर धार्मिक मदरसों या सामाजिक संगठनों की आड़ में ये काम होते हैं।
    • वित्तपोषण हब (Funding Hubs): ये ‘फैक्ट्रियां’ केवल लड़ाके नहीं तैयार करतीं, बल्कि आतंकवाद के लिए धन भी जुटाती हैं, जो ड्रग्स, हवाला, जबरन वसूली और अंतर्राष्ट्रीय दान के माध्यम से आता है।
    • वैचारिक प्रेरणा (Ideological Indoctrination): यहाँ नफरत और हिंसा पर आधारित कट्टरपंथी विचारधारा का प्रसार किया जाता है, जो ‘शहीदी’ और ‘जिहाद’ के नाम पर युवाओं को आत्मघाती हमलों के लिए तैयार करती है।
    • संचार और योजना केंद्र (Communication and Planning Centers): ये ठिकाने आतंकी हमलों की योजना बनाने, संचार नेटवर्क स्थापित करने और विभिन्न आतंकवादी समूहों के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए भी उपयोग होते हैं।
  • उद्देश्य और लक्ष्य:
    • इन फैक्ट्रियों का प्राथमिक लक्ष्य भारत (विशेषकर जम्मू-कश्मीर), अफगानिस्तान और कभी-कभी ईरान जैसे पड़ोसी देशों में अस्थिरता फैलाना होता है।
    • ये क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को बिगाड़ने और अपनी राजनीतिक या रणनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए एक उपकरण के रूप में कार्य करती हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय निहितार्थ:
    • इन फैक्ट्रियों से केवल क्षेत्रीय सुरक्षा ही नहीं, बल्कि वैश्विक सुरक्षा को भी खतरा होता है, क्योंकि यहाँ प्रशिक्षित आतंकवादी दुनिया के किसी भी हिस्से में हिंसा फैला सकते हैं।
    • यह अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी प्रयासों के लिए एक गंभीर चुनौती पेश करता है।

पाकिस्तान का दोहरा रवैया: आतंकवाद का गढ़ या शिकार? (Pakistan’s Double Game: Hub of Terrorism or Victim?)

पाकिस्तान लंबे समय से आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक ‘सहयोगी’ और दूसरी ओर आतंकवाद को पनाह देने वाले ‘राज्य’ के रूप में देखा जाता रहा है। यह दोहरा रवैया उसकी नीतियों का एक अभिन्न अंग बन गया है।

“पाकिस्तान की विदेश नीति हमेशा दोधारी तलवार पर चली है: एक हाथ में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का झंडा, दूसरे में उन्हीं समूहों को गुपचुप समर्थन की रस्सी।”

  • FATF ग्रे लिस्ट और दिखावा:
    • फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने पाकिस्तान को मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के वित्तपोषण के लिए ‘ग्रे लिस्ट’ में रखा हुआ था। इससे बाहर निकलने के लिए पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को दिखाने के लिए कई कदम उठाए, जैसे कुछ आतंकवादी नेताओं को गिरफ्तार करना या संपत्ति जब्त करना।
    • हालांकि, ताजा रिपोर्ट बताती है कि यह केवल एक दिखावा था, और ज़मीनी स्तर पर आतंकवादियों को अभी भी राज्य का समर्थन मिल रहा है। 100 करोड़ रुपये का आवंटन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
  • आतंकवाद के राज्य-प्रायोजित होने का इतिहास:
    • पाकिस्तान ने 1980 के दशक में अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ लड़ने वाले मुजाहिदीनों का समर्थन किया। बाद में, इन्हीं समूहों में से कुछ ने भारत के खिलाफ अपना रुख अख्तियार कर लिया।
    • जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा जैसे समूह दशकों से पाकिस्तान से अपनी गतिविधियां चला रहे हैं, जिन्हें अक्सर पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी ISI का संरक्षण प्राप्त होता है।
    • भारत में हुए कई बड़े आतंकी हमलों (जैसे 26/11 मुंबई हमला, संसद हमला, पुलवामा) के तार पाकिस्तान से जुड़े पाए गए हैं।
  • आंतरिक राजनीति और सेना की भूमिका:
    • पाकिस्तान की सेना देश की विदेश और सुरक्षा नीतियों में प्रमुख भूमिका निभाती है। माना जाता है कि सेना कुछ आतंकी समूहों को भारत और अफगानिस्तान में अपने रणनीतिक हितों को साधने के लिए ‘रणनीतिक संपत्ति’ के रूप में देखती है।
    • आतंकवाद का उपयोग पड़ोसी देशों पर दबाव बनाने और क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को प्रभावित करने के लिए एक उपकरण के रूप में किया जाता है।

चीन की भूमिका: एक नया आयाम (China’s Role: A New Dimension)

इस पूरे घटनाक्रम में चीन की भूमिका बेहद चिंताजनक है। पाकिस्तान सरकार द्वारा ‘आतंकी फैक्ट्रियों’ की मरम्मत के लिए चीनी कंपनियों से संपर्क साधना, कई सवाल खड़े करता है।

  1. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) और रणनीतिक अहमियत:
    • CPEC चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो ग्वादर बंदरगाह को चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ता है।
    • चीन ने पाकिस्तान में भारी निवेश किया है, जिससे पाकिस्तान पर उसका आर्थिक और रणनीतिक प्रभाव बढ़ा है। यह प्रभाव अब सुरक्षा क्षेत्र तक फैलता दिख रहा है।
  2. चीन का पाकिस्तान में बढ़ता निवेश और प्रभाव:
    • चीन पाकिस्तान के सबसे बड़े हथियार आपूर्तिकर्ताओं में से एक है। दोनों देशों के बीच मजबूत सैन्य और सुरक्षा सहयोग है।
    • चीन द्वारा ‘आतंकी फैक्ट्रियों’ की मरम्मत में तकनीकी या भौतिक सहायता देना, इस गठजोड़ को एक खतरनाक मोड़ देता है।
  3. चीन का दोहरा मानदंड:
    • चीन स्वयं शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों की कट्टरता पर लगाम लगाने के लिए कठोर नीतियों का पालन करता है, और इसे आतंकवाद विरोधी कदम बताता है।
    • लेकिन दूसरी ओर, वह पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादियों को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन दे रहा है, जो उसके दोहरे मानदंड को दर्शाता है। यह अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी सिद्धांतों का उल्लंघन है।
  4. भारत के लिए चीन-पाकिस्तान गठजोड़ के मायने:
    • टू-फ्रंट वॉर की संभावना: भारत को चीन और पाकिस्तान दोनों सीमाओं पर एक साथ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा पर दबाव बढ़ेगा।
    • क्षेत्रीय अस्थिरता: यह गठजोड़ न केवल भारत, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में अस्थिरता बढ़ा सकता है।
    • वैश्विक मंच पर चुनौतियाँ: चीन द्वारा पाकिस्तान का समर्थन, अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को आतंकवाद के लिए जवाबदेह ठहराने के भारत के प्रयासों को कमजोर कर सकता है। चीन अक्सर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत द्वारा सूचीबद्ध किए जाने वाले पाकिस्तानी आतंकवादियों को ब्लॉक करता रहा है।

भारत पर प्रभाव (Impact on India)

पाकिस्तान में आतंकी ढांचों का पुनरुत्थान और चीनी सहयोग, भारत के लिए कई गंभीर चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है:

1. राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियाँ:

  • सीमा पार आतंकवाद में वृद्धि: ‘आतंकी फैक्ट्रियों’ के सक्रिय होने से जम्मू-कश्मीर सहित अन्य सीमावर्ती राज्यों में घुसपैठ और आतंकवादी हमलों में तेज़ी आ सकती है। इससे नागरिकों की जान-माल का नुकसान बढ़ेगा और सुरक्षा बलों पर दबाव बढ़ेगा।
  • कट्टरता का प्रसार: सीमा पार से आने वाली कट्टरपंथी विचारधाराएं भारत के भीतर सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ सकती हैं और युवाओं को गुमराह कर सकती हैं।
  • ड्रोन और हथियार तस्करी: ड्रोन के माध्यम से हथियारों, ड्रग्स और गोला-बारूद की तस्करी बढ़ सकती है, जिससे पंजाब जैसे राज्यों में आंतरिक सुरक्षा की स्थिति बिगड़ सकती है।
  • खुफिया और निगरानी का दबाव: भारत की खुफिया एजेंसियों और सुरक्षा प्रतिष्ठानों पर इन गतिविधियों पर नज़र रखने और उन्हें नाकाम करने का भारी दबाव आएगा।

2. कूटनीतिक चुनौतियाँ:

  • अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को बेनकाब करना: भारत को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, विशेषकर FATF और संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर पाकिस्तान के दोहरे रवैये को लगातार उजागर करना होगा। यह चीन के वीटो पावर के कारण और भी कठिन हो जाता है।
  • वैश्विक आतंकवाद विरोधी गठबंधन: आतंकवाद विरोधी वैश्विक गठबंधन में पाकिस्तान को अलग-थलग करने के प्रयासों को चीन के समर्थन से झटका लग सकता है।
  • चीन के साथ संबंधों का तनाव: चीन द्वारा पाकिस्तान को समर्थन देने से भारत-चीन संबंधों में और तनाव आ सकता है, विशेष रूप से जब LAC पर पहले से ही तनाव जारी है।

3. आर्थिक प्रभाव:

  • सुरक्षा पर बढ़ता खर्च: आतंकवाद का मुकाबला करने और सीमाओं को सुरक्षित रखने के लिए रक्षा बजट में वृद्धि करनी पड़ेगी, जिसका विकास परियोजनाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • निवेश और पर्यटन पर असर: अस्थिरता और सुरक्षा चिंताओं से विदेशी निवेश और पर्यटन प्रभावित हो सकता है, जिससे आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ सकती है।

4. सामाजिक प्रभाव:

  • साम्प्रदायिक तनाव: आतंकवादी गतिविधियों से समाज में साम्प्रदायिक तनाव बढ़ सकता है, जिससे सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुँच सकता है।
  • पलायन और विस्थापन: सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों को सुरक्षा कारणों से पलायन या विस्थापन का सामना करना पड़ सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया और चुनौतियाँ (International Response and Challenges)

पाकिस्तान के आतंकवाद को समर्थन देने के इतिहास पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया मिली-जुली रही है, और कई चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं।

  • FATF की भूमिका: FATF ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में रखकर उस पर वित्तीय दबाव बनाया था, ताकि वह आतंकवाद के वित्तपोषण पर रोक लगाए। हालांकि, पाकिस्तान के ग्रे लिस्ट से बाहर निकलने के बाद, उसके सुधारों की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं।
  • UNSC की भूमिका: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने कई प्रस्तावों के माध्यम से आतंकवाद की निंदा की है और सदस्य देशों से सहयोग का आह्वान किया है। हालाँकि, चीन द्वारा पाकिस्तानी आतंकवादियों को संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकवादी घोषित करने के प्रयासों को अक्सर वीटो कर दिया जाता है, जिससे UNSC की प्रभावशीलता कम हो जाती है।
  • अमेरिका और पश्चिमी देशों का रुख: अमेरिका ने अतीत में पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक सहयोगी के रूप में देखा था, लेकिन हाल के वर्षों में उसकी सहायता में कटौती की है और अधिक जवाबदेही की मांग की है। हालांकि, अफगानिस्तान में तालिबान के उदय के बाद, पाकिस्तान की भू-राजनीतिक प्रासंगिकता फिर से बदल रही है।
  • रूस और यूरोपीय संघ: रूस और यूरोपीय संघ भी आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में सक्रिय हैं, लेकिन पाकिस्तान पर सीधा दबाव बनाने के उनके तरीके भिन्न हो सकते हैं।
  • पाकिस्तान को जवाबदेह ठहराने की चुनौतियाँ:
    • भू-राजनीतिक हित: विभिन्न देशों के अपने रणनीतिक हित होते हैं, जो पाकिस्तान पर कड़े प्रतिबंध लगाने या उसे अलग-थलग करने के प्रयासों में बाधा डालते हैं।
    • चीन का वीटो: संयुक्त राष्ट्र में चीन का वीटो पावर पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय दबाव से बचाने में एक बड़ी भूमिका निभाता है।
    • साक्ष्य का अभाव (अंतर्राष्ट्रीय न्यायालयों में): कई बार ठोस कानूनी साक्ष्य प्रस्तुत करना कठिन हो जाता है जो पाकिस्तान को सीधे तौर पर आतंकवाद के लिए दोषी ठहरा सकें।
    • पाकिस्तान की ‘पीड़ित’ की छवि: पाकिस्तान अक्सर खुद को आतंकवाद का ‘पीड़ित’ बताता है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भ्रमित करने में मदद मिलती है।

भारत की प्रतिक्रिया और आगे की राह (India’s Response and Way Forward)

भारत को पाकिस्तान और चीन के इस संभावित गठजोड़ का सामना करने के लिए एक बहुआयामी और सशक्त रणनीति अपनानी होगी:

1. सशक्त सुरक्षा रणनीति:

  • सीमा प्रबंधन और घुसपैठ रोधी उपाय: सीमा पर आधुनिक निगरानी तकनीक (ड्रोन, सेंसर, थर्मल इमेजिंग) और बेहतर बाड़ लगाना। सुरक्षा बलों को अत्याधुनिक हथियारों और प्रशिक्षण से लैस करना।
  • खुफिया जानकारी का सुदृढीकरण: मानवीय खुफिया (HUMINT) और तकनीकी खुफिया (TECHINT) क्षमताओं को बढ़ाना ताकि आतंकी गतिविधियों की समय से पहले जानकारी मिल सके। पड़ोसी देशों से खुफिया साझाकरण को बढ़ावा देना।
  • काउंटर-टेररिज्म ऑपरेशंस: जरूरत पड़ने पर सटीक और सीमित सैन्य कार्रवाई (surgical strikes) की क्षमता बनाए रखना, जैसा कि अतीत में किया गया है। आंतरिक सुरक्षा तंत्र को मजबूत करना।

2. आक्रामक कूटनीतिक रणनीति:

  • अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को बेनकाब करना: संयुक्त राष्ट्र, FATF, SCO, BIMSTEC जैसे मंचों पर पाकिस्तान के दोहरे रवैये और आतंकवाद को समर्थन देने के पुख्ता सबूत पेश करना।
  • वैश्विक राय जुटाना: विश्व के प्रमुख शक्तियों (अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ) को पाकिस्तान की गतिविधियों से होने वाले खतरों के बारे में लगातार अवगत कराना और उन्हें अपने पक्ष में लाना।
  • चीनी दोहराव पर दबाव: चीन पर उसके दोहरे मानदंड को लेकर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाना, ताकि वह आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान का अंधा समर्थन बंद करे।
  • आतंकवाद विरोधी सम्मेलनों में सक्रिय भूमिका: वैश्विक आतंकवाद विरोधी ढांचे को मजबूत करने के लिए भारत को लगातार प्रयास करते रहना चाहिए।

3. आर्थिक और रणनीतिक दबाव:

  • आर्थिक साधनों का उपयोग: पाकिस्तान पर आर्थिक दबाव बनाने के लिए व्यापार और निवेश नीतियों का रणनीतिक उपयोग करना।
  • सामरिक साझेदारियों का विस्तार: क्वाड (Quad) जैसे समूहों को मजबूत करना और समान विचारधारा वाले देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी बढ़ाना, विशेषकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में।

4. आंतरिक सुरक्षा और समाज को मजबूत करना:

  • कट्टरता पर लगाम: युवाओं को कट्टरपंथी विचारधाराओं से बचाने के लिए शिक्षा, जागरूकता और सामुदायिक जुड़ाव कार्यक्रमों को बढ़ावा देना।
  • साइबर सुरक्षा: ऑनलाइन कट्टरता और आतंकी प्रचार का मुकाबला करने के लिए साइबर सुरक्षा क्षमताओं को मजबूत करना।
  • स्थानीय पुलिस और कानून प्रवर्तन को मजबूत करना: उन्हें आतंकवाद से निपटने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और संसाधन उपलब्ध कराना।

5. क्षेत्रीय और बहुपक्षीय सहयोग:

  • SAARC जैसे मंचों पर आतंकवाद के मुद्दे पर सहयोग के लिए दबाव डालना, हालांकि पाकिस्तान की असहयोग की नीति से यह कठिन है।
  • क्षेत्रीय खुफिया जानकारी साझाकरण और आतंकवाद विरोधी अभ्यासों को बढ़ावा देना।

6. चीन के साथ संबंधों का विवेकपूर्ण प्रबंधन:

  • चीन के साथ सीमा विवाद और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के बावजूद, संचार के खुले चैनलों को बनाए रखना और उन क्षेत्रों में सहयोग के रास्ते खोजना जहाँ दोनों देशों के हित मेल खाते हों (जैसे जलवायु परिवर्तन)। हालांकि, राष्ट्रीय सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं।

निष्कर्ष (Conclusion)

ऑपरेशन सिंदूर में तबाह हुई ‘आतंकी फैक्ट्रियों’ का पुनरुत्थान और पाकिस्तान-चीन गठजोड़ का यह नया आयाम, भारत के लिए एक गंभीर चेतावनी है। यह केवल सुरक्षा का नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता का भी सवाल है। भारत को अपनी ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति पर कायम रहते हुए एक बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी – सीमाओं पर कड़ी चौकसी, अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को लगातार बेनकाब करना, चीन पर कूटनीतिक दबाव बनाना और अपनी आंतरिक सुरक्षा को अभेद्य बनाना। यह एक लंबी और जटिल लड़ाई है, जिसमें न केवल सैन्य बल, बल्कि कूटनीतिक कौशल, आर्थिक दूरदर्शिता और सामाजिक एकजुटता की भी आवश्यकता होगी। आतंकवाद की जड़ों को सींचने वाले ऐसे प्रयासों को विश्व मंच पर पूरी तरह से अलग-थलग करना ही इस खतरे का एकमात्र स्थायी समाधान है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य पाकिस्तान में स्थित आतंकी प्रशिक्षण शिविरों को नष्ट करना था।
    2. फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) पाकिस्तान को आतंकवाद के वित्तपोषण के कारण अपनी ग्रे लिस्ट में रख चुका है।
    3. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में चीन ने कई बार पाकिस्तानी आतंकवादियों को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के भारत के प्रयासों को अवरुद्ध किया है।

    ऊपर दिए गए कथनों में से कितने सही हैं?

    (a) केवल एक
    (b) केवल दो
    (c) सभी तीन
    (d) कोई नहीं

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: तीनों कथन सही हैं। ऑपरेशन सिंदूर (जैसा कि समाचार में वर्णित है) का उद्देश्य आतंकी ठिकानों को नष्ट करना था। FATF ने पाकिस्तान को आतंकवाद के वित्तपोषण के लिए ग्रे लिस्ट में रखा था, और चीन ने UNSC में कई बार पाकिस्तानी आतंकवादियों को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के भारत के प्रयासों को तकनीकी रूप से अवरुद्ध किया है।

  2. प्रश्न 2: चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

    1. यह चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक प्रमुख हिस्सा है।
    2. यह पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ता है।
    3. भारत CPEC के एक हिस्से पर अपनी संप्रभुता के उल्लंघन का विरोध करता है।

    ऊपर दिए गए कथनों में से कितने सही हैं?

    (a) केवल एक
    (b) केवल दो
    (c) सभी तीन
    (d) कोई नहीं

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: तीनों कथन सही हैं। CPEC BRI का हिस्सा है, यह ग्वादर को शिनजियांग से जोड़ता है, और भारत पीओके से गुजरने के कारण इसकी संप्रभुता का उल्लंघन मानता है।

  3. प्रश्न 3: ‘आतंकी फैक्ट्रियां’ शब्द के संदर्भ में, वे मुख्य रूप से किन गतिविधियों में संलग्न होती हैं?

    1. आतंकवादियों का प्रशिक्षण और भर्ती।
    2. आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन जुटाना।
    3. कट्टरपंथी विचारधारा का प्रसार।
    4. हथियारों और गोला-बारूद की तस्करी।

    निम्नलिखित में से सही विकल्प चुनें:

    (a) केवल I, II और III
    (b) केवल I, III और IV
    (c) केवल II, III और IV
    (d) I, II, III और IV

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: ‘आतंकी फैक्ट्रियां’ इन सभी गतिविधियों में शामिल होती हैं, जो आतंकवाद के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करती हैं।

  4. प्रश्न 4: हाल ही में, पाकिस्तान को FATF की ग्रे लिस्ट से हटा दिया गया था। FATF का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?

    (a) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विवादों को हल करना।
    (b) परमाणु अप्रसार संधियों को लागू करना।
    (c) मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करना।
    (d) मानवाधिकारों के उल्लंघन की निगरानी करना।

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: FATF एक अंतर-सरकारी निकाय है जिसका उद्देश्य मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण का मुकाबला करने के लिए नीतियां विकसित करना और उनका प्रचार करना है।

  5. प्रश्न 5: निम्नलिखित में से कौन सा भारत के लिए चीन-पाकिस्तान गठजोड़ का संभावित भू-राजनीतिक निहितार्थ नहीं है?

    (a) टू-फ्रंट वॉर की संभावना में वृद्धि।
    (b) क्षेत्रीय अस्थिरता में कमी।
    (c) अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को जवाबदेह ठहराने में चुनौतियाँ।
    (d) चीन द्वारा पाकिस्तान को सैन्य सहायता में वृद्धि।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: चीन-पाकिस्तान गठजोड़ से क्षेत्रीय अस्थिरता में वृद्धि होने की संभावना है, न कि कमी। अन्य सभी विकल्प संभावित निहितार्थ हैं।

  6. प्रश्न 6: ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के संदर्भ में, यदि ऐसी रिपोर्ट्स सच हैं कि पाकिस्तान आतंकी ठिकानों को फिर से सक्रिय कर रहा है, तो इसके भारत पर क्या संभावित परिणाम हो सकते हैं?

    1. सीमा पार घुसपैठ और आतंकवादी हमलों में कमी आएगी।
    2. भारत की आंतरिक सुरक्षा चुनौतियाँ बढ़ेंगी।
    3. भारत की कूटनीतिक चुनौतियाँ बढ़ेंगी।
    4. रक्षा व्यय में कमी आएगी।

    उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?

    (a) केवल I और II
    (b) केवल II और III
    (c) केवल I, III और IV
    (d) केवल III और IV

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: यदि आतंकी ठिकाने फिर से सक्रिय होते हैं, तो सीमा पार घुसपैठ और हमलों में वृद्धि होगी, न कि कमी (कथन I गलत)। रक्षा व्यय में कमी नहीं, बल्कि वृद्धि होगी (कथन IV गलत)। अतः, केवल II और III सही हैं।

  7. प्रश्न 7: भारत में ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ और ‘एयर स्ट्राइक’ जैसी काउंटर-टेररिज्म ऑपरेशंस का प्राथमिक उद्देश्य क्या रहा है?

    (a) पाकिस्तान के साथ पूर्ण पैमाने पर युद्ध शुरू करना।
    (b) आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों और लॉन्च पैड को निष्क्रिय करना।
    (c) अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से सहायता प्राप्त करना।
    (d) सीमावर्ती आबादी का विस्थापन करना।

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक का प्राथमिक उद्देश्य सीमा पार से संचालित आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाना और उन्हें निष्क्रिय करना रहा है, ताकि भारत की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

  8. प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन सा देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का स्थायी सदस्य नहीं है, लेकिन भारत के साथ क्वाड (QUAD) समूह का हिस्सा है?

    (a) जापान
    (b) जर्मनी
    (c) कनाडा
    (d) ब्राजील

    उत्तर: (a)

    व्याख्या: क्वाड में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। इनमें से केवल अमेरिका ही UNSC का स्थायी सदस्य है। जापान UNSC का स्थायी सदस्य नहीं है।

  9. प्रश्न 9: पाकिस्तान के संदर्भ में, ‘स्ट्रेटेजिक एसेट’ शब्द का उपयोग अक्सर किस संदर्भ में किया जाता है?

    (a) उसकी कृषि भूमि और जल संसाधन।
    (b) उसकी भौगोलिक स्थिति और सैन्य ठिकाने।
    (c) वे आतंकवादी समूह जिन्हें वह भारत और अफगानिस्तान के खिलाफ उपयोग करता है।
    (d) उसके परमाणु हथियार कार्यक्रम।

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: ‘स्ट्रेटेजिक एसेट’ (सामरिक संपत्ति) शब्द का उपयोग अक्सर इस संदर्भ में किया जाता है कि पाकिस्तानी प्रतिष्ठान कुछ आतंकवादी समूहों को भारत और अफगानिस्तान में अपने रणनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक उपकरण के रूप में देखते हैं।

  10. प्रश्न 10: हालिया रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में आतंकी फैक्ट्रियों की मरम्मत के लिए किस देश की कंपनी से संपर्क किया गया है?

    (a) रूस
    (b) संयुक्त राज्य अमेरिका
    (c) चीन
    (d) तुर्की

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: खबर के अनुसार, पाकिस्तान सरकार ने आतंकी फैक्ट्रियों की मरम्मत के लिए चीनी कंपनी से संपर्क किया है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. “ऑपरेशन सिंदूर में तबाह हुई ‘आतंकी फैक्ट्रियों’ का फिर से सक्रिय होना भारत की सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती है।” इस कथन के प्रकाश में, भारत पर इसके संभावित प्रभावों का विश्लेषण करें और इस चुनौती का सामना करने के लिए भारत की बहुआयामी रणनीति पर चर्चा करें।
  2. पाकिस्तान के आतंकवाद को लेकर दोहरे रवैये और FATF जैसी अंतर्राष्ट्रीय निगरानी संस्थाओं की भूमिका का समालोचनात्मक मूल्यांकन करें। क्या आपको लगता है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान को आतंकवाद के लिए पर्याप्त रूप से जवाबदेह ठहरा पा रहा है? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दें।
  3. पाकिस्तान में ‘आतंकी फैक्ट्रियों’ की मरम्मत में चीनी कंपनियों की कथित भूमिका, भारत के लिए क्या भू-राजनीतिक और सुरक्षा निहितार्थ रखती है? चीन के आतंकवाद विरोधी दोहरे मानदंड पर प्रकाश डालते हुए, इस गठजोड़ का भारत-चीन संबंधों पर पड़ने वाले प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण करें।
  4. आतंकवाद को जड़ से समाप्त करने में ‘हार्ड पावर’ (सैन्य कार्रवाई) और ‘सॉफ्ट पावर’ (कूटनीति, विकास, शिक्षा) दोनों की भूमिका की विवेचना करें। भारत के संदर्भ में, आप इन दोनों के बीच किस प्रकार का संतुलन देखते हैं और भविष्य के लिए क्या सुझाव देंगे?

Leave a Comment