उपराष्ट्रपति के इस्तीफे पर गरमाई राजनीति: खरगे का ‘परदाफाश’ – पीएम और धनखड़ ही बताएं क्या हुआ?
चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
भारतीय राजनीति में उस समय हलचल मच गई जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे की अटकलों पर एक तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। खरगे ने इस पूरे मामले को सीधे उपराष्ट्रपति धनखड़ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच का बताते हुए कहा कि इन दोनों को ही बताना चाहिए कि असल में क्या चल रहा है। खरगे के इस बयान ने न केवल राजनीतिक गलियारों में बल्कि मीडिया और आम जनता के बीच भी अटकलों का बाजार गर्म कर दिया है। यह घटनाक्रम ऐसे समय में आया है जब देश की सर्वोच्च राजनीतिक संस्थाओं में से एक, उपराष्ट्रपति पद की निष्ठा और कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न लगने की आहट सुनाई दे रही है। UPSC के उम्मीदवारों के लिए, यह घटनाक्रम भारतीय संविधान, संसदीय प्रणाली, राजनीतिक दलों की भूमिका और समसामयिक मुद्दों के विश्लेषण के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
पृष्ठभूमि: उपराष्ट्रपति पद और जगदीप धनखड़
उपराष्ट्रपति का पद भारतीय गणराज्य का दूसरा सर्वोच्च पद है। संविधान के अनुच्छेद 63 के अनुसार, “भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा।” उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति भी होता है (अनुच्छेद 64)। वे राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में, उनके पद ग्रहण करने तक, या राष्ट्रपति के पद रिक्त होने की स्थिति में, राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं (अनुच्छेद 65)।
श्री जगदीप धनखड़, वर्तमान उपराष्ट्रपति, एक अनुभवी विधिवेत्ता और राजनेता हैं। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, वे अक्सर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ टकराव के कारण सुर्खियों में रहे। राज्यपाल के रूप में उनके कार्यों और बयानों पर अक्सर राजनीतिक बहसें छिड़ती रही हैं। उपराष्ट्रपति चुने जाने के बाद भी, उनके कुछ निर्णयों और बयानों ने राजनीतिक चर्चा को जन्म दिया है।
खरगे का बयान: एक राजनीतिक पैंतरा या गंभीर आरोप?
मल्लिकार्जुन खरगे, जो संसद में प्रमुख विपक्षी दल, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, ने उपराष्ट्रपति के इस्तीफे की कथित अफवाहों पर प्रतिक्रिया देते हुए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक बयान दिया। उनके शब्दों का सार यह था कि यह मामला उपराष्ट्रपति धनखड़ और प्रधानमंत्री मोदी के बीच का है, और केवल वही इसका सच बता सकते हैं।
इस बयान के निहितार्थ:
- जिम्मेदारी का हस्तांतरण: खरगे ने अप्रत्यक्ष रूप से उपराष्ट्रपति के पद की गरिमा और निष्पक्षता पर सवाल उठाया है, और साथ ही जिम्मेदारी को सीधे प्रधानमंत्री की ओर मोड़ने की कोशिश की है। उनका आशय यह हो सकता है कि यदि उपराष्ट्रपति के पद पर कोई समस्या है, तो इसके लिए सत्तारूढ़ दल और उसके नेता (प्रधानमंत्री) जिम्मेदार हैं।
- विपक्ष की रणनीति: यह बयान विपक्ष की उस रणनीति का हिस्सा हो सकता है जिसके तहत वे सरकार पर संस्थाओं को कमजोर करने या उन पर नियंत्रण रखने का आरोप लगाते रहे हैं। उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद का दुरुपयोग या उन पर दबाव जैसी बातें विपक्ष के लिए सरकार पर हमला करने का एक बड़ा अवसर प्रदान करती हैं।
- राजनीतिक ध्रुवीकरण: यह बयान भारतीय राजनीति के बढ़ते ध्रुवीकरण को भी दर्शाता है, जहाँ संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों के कार्यों को भी अक्सर राजनीतिक चश्मे से देखा जाता है।
“यह मामला उपराष्ट्रपति (धनखड़) और प्रधानमंत्री (मोदी) के बीच का है। उन्हें ही बताना चाहिए कि क्या हुआ है।” – मल्लिकार्जुन खरगे
संभावित कारण और राजनीतिक अटकलें (The ‘Why’ Behind the Speculation)
जब भी किसी उच्च संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के इस्तीफे की बात उठती है, तो इसके पीछे कई संभावित कारण हो सकते हैं। हालांकि, श्री धनखड़ के मामले में, सार्वजनिक डोमेन में इस्तीफे की कोई आधिकारिक घोषणा या संकेत नहीं है। अटकलें सिर्फ खरगे के बयान से ही उठी हैं। इसके पीछे कुछ संभावित कारण (हालांकि ये केवल अटकलें हैं):
- संवैधानिक पदों का राजनीतिकरण: क्या उपराष्ट्रपति के पद पर बैठे व्यक्ति से सरकार द्वारा कोई ऐसा कार्य या बयान अपेक्षित था, जो उनके संवैधानिक दायित्वों के अनुरूप न हो, और इस पर कोई मतभेद हो?
- आंतरिक राजनीतिक दबाव: क्या उपराष्ट्रपति के कार्यकाल या कार्यप्रणाली को लेकर सत्ताधारी दल के भीतर ही कोई असहमति है?
- विपक्ष द्वारा मुद्दा बनाना: यह संभव है कि विपक्ष ने उपराष्ट्रपति के किसी हालिया बयान या कार्य को मुद्दा बनाकर उसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया हो, ताकि सरकार को घेरा जा सके।
- गलतफहमी या अफवाह: कई बार राजनीतिक हलकों में केवल गलतफहमी या आधारहीन अफवाहें भी ऐसे बयानों को जन्म दे सकती हैं।
संवैधानिक और राजनीतिक विश्लेषण
1. उपराष्ट्रपति की भूमिका और निष्पक्षता:
उपराष्ट्रपति का पद अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्हें राज्यसभा का संचालन निष्पक्ष रूप से करना होता है, और वे राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में देश के प्रमुख के रूप में कार्य करते हैं। इस पद पर बैठे व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि वह पूरी तरह से निष्पक्ष हो और किसी भी राजनीतिक दल से प्रभावित न हो, भले ही वे किसी राजनीतिक दल से चुनकर आए हों।
यदि खरगे का इशारा यह है कि उपराष्ट्रपति ने किसी राजनीतिक दबाव में काम किया है या उनके पद की निष्पक्षता पर कोई प्रश्न है, तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चिंता का विषय होगा।
2. प्रधानमंत्री की भूमिका और जवाबदेही:
प्रधानमंत्री देश के कार्यकारी प्रमुख होते हैं और सरकार की नीतियों के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार होते हैं। उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के संबंध में यदि कोई गंभीर मामला है, तो यह स्वाभाविक है कि उसकी जानकारी प्रधानमंत्री को होगी और वे इस पर प्रतिक्रिया देने के लिए अधिकृत होंगे। खरगे का बयान, प्रधानमंत्री को सीधे इसमें घसीटकर, यह दर्शाता है कि विपक्ष सरकार को, विशेषकर प्रधानमंत्री को, संस्थागत मुद्दों के लिए सीधे जिम्मेदार ठहराना चाहता है।
3. राज्यसभा का सभापति:
उपराष्ट्रपति, जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं। संसद के ऊपरी सदन का सुचारू और निष्पक्ष संचालन सुनिश्चित करना उनका प्राथमिक संवैधानिक कर्तव्य है। यदि उनके संचालन या निर्णयों पर कोई प्रश्न उठता है, तो यह सीधे तौर पर संसदीय कार्यवाही को प्रभावित कर सकता है।
4. विपक्ष का ‘चेक एंड बैलेंस’ का औजार:
विपक्ष का एक महत्वपूर्ण कार्य सरकार की नीतियों और कार्यों पर नजर रखना और उन्हें जवाबदेह ठहराना है। जब उन्हें किसी संवैधानिक संस्था या पद पर सरकार का हस्तक्षेप या अनुचित प्रभाव दिखता है, तो वे उसे उजागर करते हैं। खरगे का बयान इसी “चेक एंड बैलेंस” (नियंत्रण और संतुलन) की भूमिका का एक उदाहरण हो सकता है।
पक्ष और विपक्ष (Arguments For and Against)
कांग्रेस (विपक्ष) के पक्ष में तर्क:
- यह सरकार पर संस्थाओं को अपने नियंत्रण में रखने के आरोपों को बल देता है।
- उपराष्ट्रपति जैसे महत्वपूर्ण पद पर बैठे व्यक्ति के संभावित “पक्षपाती” व्यवहार पर सवाल उठाना विपक्ष का अधिकार है।
- यह लोगों का ध्यान आकर्षित करने और सरकार पर दबाव बनाने की एक प्रभावी राजनीतिक रणनीति है।
सरकार (सत्तारूढ़ दल) के पक्ष में संभावित तर्क (और विपक्ष के तर्कों का खंडन):
- यह सिर्फ विपक्ष द्वारा फैलाई गई अफवाहें हो सकती हैं, जिनका कोई तथ्यात्मक आधार नहीं है।
- उपराष्ट्रपति ने हमेशा संवैधानिक मर्यादाओं का पालन किया है, और इस तरह के आरोप निराधार हैं।
- विपक्ष केवल राजनीतिक लाभ के लिए संवैधानिक पदों का अपमान कर रहा है।
- यदि कोई विशेष मुद्दा था, तो कांग्रेस ने सीधे तौर पर उसे उठाने के बजाय इस तरह का बयान क्यों दिया?
चुनौतियाँ और आगे की राह
इस तरह की राजनीतिक बयानबाजी और अटकलें कई चुनौतियाँ खड़ी करती हैं:
- संवैधानिक संस्थाओं में विश्वास: जब राजनीतिक दल संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों को सीधे तौर पर राजनीतिक बहस में घसीटते हैं, तो जनता का इन संस्थाओं में विश्वास कम हो सकता है।
- सटीक सूचना का अभाव: बिना पुख्ता सबूत के आरोप लगाना या प्रतिक्रिया देना, जिससे जनता के बीच गलत सूचना फैलती है।
- संवैधानिक गरिमा का हनन: उपराष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च संवैधानिक पद की गरिमा पर अनुचित आक्षेप लगाने से उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचता है।
आगे की राह:
- पारदर्शिता: यदि कोई वास्तविक मुद्दा है, तो संबंधित पक्षों (उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कार्यालय) को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
- जिम्मेदार राजनीति: विपक्ष को आरोप लगाते समय तथ्यात्मक आधार प्रस्तुत करना चाहिए और सरकार को प्रतिक्रिया देते समय संवैधानिक मर्यादाओं का ध्यान रखना चाहिए।
- मीडिया की भूमिका: मीडिया को अफवाहों और तथ्यों के बीच अंतर करने और विश्वसनीय स्रोतों से जानकारी प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।
UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
यह घटनाक्रम UPSC सिविल सेवा परीक्षा के लिए कई मायनों में प्रासंगिक है:
- भारतीय राजव्यवस्था (GS Paper II): राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल, संसद, राजनीतिक दल, संवैधानिक संस्थाएं, शक्तियों का पृथक्करण, जाँच और संतुलन।
- समसामयिक मामले (Current Affairs): वर्तमान में चर्चा में रहे मुद्दे, राष्ट्रीय महत्व की घटनाएँ।
- विश्लेषणात्मक कौशल: किसी घटना के विभिन्न पहलुओं, उसके कारणों, प्रभावों और संवैधानिक निहितार्थों का विश्लेषण करने की क्षमता।
- राजनीतिक सिद्धांत: विपक्ष की भूमिका, सत्ता और विरोध के बीच संबंध।
UPSC उम्मीदवार को इस खबर को केवल एक राजनीतिक बयान के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि इसके पीछे की संवैधानिक संरचना, राजनीतिक गतिशीलता और संभावित दूरगामी प्रभावों का अध्ययन करना चाहिए।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
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प्रश्न 1: भारत के उपराष्ट्रपति के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. वह राज्यसभा का पदेन सभापति होता है।
2. वह राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन कर सकता है।
3. उसका निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है।
4. उसे केवल महाभियोग द्वारा ही हटाया जा सकता है।
उपरोक्त में से कौन से कथन सही हैं?
(a) 1, 2 और 3
(b) 2, 3 और 4
(c) 1, 2 और 4
(d) 1, 3 और 4
उत्तर: (a)
व्याख्या: उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है (अनुच्छेद 64)। राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में, वह उनके कर्तव्यों का निर्वहन कर सकता है (अनुच्छेद 65)। उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों (निर्वाचित और मनोनीत) द्वारा किया जाता है (अनुच्छेद 66(1))। उपराष्ट्रपति को हटाने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया नहीं है; उन्हें राज्यसभा द्वारा पारित प्रस्ताव से, जिसके पक्ष में तत्कालीन सभी सदस्य हों और लोकसभा द्वारा समर्थित हो, हटाया जा सकता है (अनुच्छेद 67)। इसलिए, कथन 4 गलत है। -
प्रश्न 2: भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में यह प्रावधान है कि “भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा”?
(a) अनुच्छेद 60
(b) अनुच्छेद 61
(c) अनुच्छेद 63
(d) अनुच्छेद 65
उत्तर: (c)
व्याख्या: अनुच्छेद 63 सीधे तौर पर कहता है कि “भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा।” -
प्रश्न 3: राज्यसभा के सभापति के रूप में, उपराष्ट्रपति के पास निम्नलिखित में से कौन सी शक्तियाँ या भूमिकाएँ नहीं होती हैं?
1. सदन की कार्यवाही का संचालन करना।
2. किसी विधेयक पर निर्णय लेना कि वह धन विधेयक है या नहीं।
3. सदन के सदस्यों को निलंबित करना।
4. सदन में किसी सदस्य को मतदान करने से रोकना।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 2
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (b)
व्याख्या: राज्यसभा का सभापति (उपराष्ट्रपति) सदन की कार्यवाही का संचालन करता है और सदस्यों को निलंबित कर सकता है (1 और 3 सही)। हालांकि, धन विधेयक होने या न होने का निर्णय लोकसभा अध्यक्ष का होता है (संविधान का अनुच्छेद 110(3)), और सभापति किसी सदस्य को मतदान से रोकने की शक्ति नहीं रखता है (4 गलत)। -
प्रश्न 4: यदि भारत के राष्ट्रपति का पद रिक्त हो जाए, तो उपराष्ट्रपति कब तक उस पद को संभाल सकते हैं?
(a) अधिकतम 6 महीने तक
(b) अधिकतम 1 वर्ष तक
(c) जब तक नया उपराष्ट्रपति नहीं चुना जाता
(d) जब तक नया राष्ट्रपति नहीं चुना जाता
उत्तर: (a)
व्याख्या: अनुच्छेद 65 के अनुसार, राष्ट्रपति का पद रिक्त होने की स्थिति में, उपराष्ट्रपति नए राष्ट्रपति के पदभार ग्रहण करने तक पदभार ग्रहण करेंगे। संविधान का अनुच्छेद 97 कहता है कि उपराष्ट्रपति तब तक पद पर नहीं रहेगा जब तक कि राष्ट्रपति के पद के रिक्त होने की दशा में, उसके द्वारा उन कर्तव्यों का पालन किया जा रहा हो, जब तक कि राष्ट्रपति के पद की रिक्ति को भरने के लिए नए राष्ट्रपति का चुनाव नहीं हो जाता, और नए राष्ट्रपति का इस प्रकार चुना गया व्यक्ति अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता। अनुच्छेद 62 (2) यह भी निर्धारित करता है कि राष्ट्रपति की मृत्यु, त्यागपत्र या अन्य कारणों से रिक्त हुई पद पर निर्वाचित होने वाले व्यक्ति का कार्यकाल पद ग्रहण करने की तारीख से पूरा कार्यकाल होगा, न कि शेष कार्यकाल। लेकिन, यदि राष्ट्रपति का पद खाली हो तो उपराष्ट्रपति उनका कार्य संभालेंगे, और नए राष्ट्रपति का चुनाव 6 महीने के भीतर होना आवश्यक है। अतः, उपराष्ट्रपति अधिकतम 6 महीने तक राष्ट्रपति का कार्य संभाल सकते हैं। -
प्रश्न 5: उपराष्ट्रपति के वेतन और भत्ते का निर्धारण कौन करता है?
(a) राष्ट्रपति
(b) संसद
(c) सर्वोच्च न्यायालय
(d) उपराष्ट्रपति स्वयं
उत्तर: (b)
व्याख्या: उपराष्ट्रपति का वेतन और भत्ते संसद द्वारा कानून द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। उपराष्ट्रपति के वेतन का भुगतान भारत की संचित निधि से किया जाता है। -
प्रश्न 6: निम्नलिखित में से कौन से कथन मल्लिकार्जुन खरगे के बयान के संदर्भ में सही हैं?
1. उन्होंने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे की बात को स्वीकार किया।
2. उन्होंने कहा कि मामला उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच है।
3. उन्होंने इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जवाबदेह ठहराया।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
व्याख्या: खरगे ने इस्तीफे की ‘अफवाहों’ का उल्लेख किया, न कि इसे स्वीकार किया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि मामला उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच है, जिसका अर्थ है कि वे (प्रधानमंत्री) इस पर जवाबदेही रखेंगे। -
प्रश्न 7: किस भारतीय उपराष्ट्रपति को “राष्ट्र का दूसरा नागरिक” कहा जाता है?
(a) भारत के वर्तमान उपराष्ट्रपति
(b) भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति
(c) वह उपराष्ट्रपति जिसने त्यागपत्र दिया हो
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: (a)
व्याख्या: “राष्ट्र का दूसरा नागरिक” कहकर भारत के वर्तमान उपराष्ट्रपति को संबोधित किया जाता है, क्योंकि वे राष्ट्रपति के बाद दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद पर होते हैं। -
प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन सा कथन भारतीय संविधान में उपराष्ट्रपति के पद के सृजन के उद्देश्य के बारे में सबसे सटीक है?
(a) राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में कार्यभार संभालने के लिए।
(b) राज्यसभा की अध्यक्षता करने और राष्ट्रमंडल संसदीय संघ में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए।
(c) उपर्युक्त दोनों, और साथ ही राष्ट्रपति की मृत्यु या त्यागपत्र जैसी परिस्थितियों में अस्थायी रूप से राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन करना।
(d) केवल राज्यसभा की अध्यक्षता करने के लिए।
उत्तर: (c)
व्याख्या: उपराष्ट्रपति का पद राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उनके कर्तव्यों को निभाने और राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्य करने के लिए बनाया गया है। इसमें राष्ट्रपति की आकस्मिक अनुपस्थिति या मृत्यु/त्यागपत्र की स्थिति में कार्यभार संभालना भी शामिल है। -
प्रश्न 9: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में कार्यकाल के दौरान, उनका किनके साथ अक्सर टकराव देखा गया?
(a) पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री
(b) पश्चिम बंगाल विधानसभा के अध्यक्ष
(c) कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
(d) पश्चिम बंगाल के पुलिस महानिदेशक
उत्तर: (a)
व्याख्या: जगदीप धनखड़ का पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ राज्यपाल के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान कई मुद्दों पर टकराव देखा गया था। -
प्रश्न 10: “चेक एंड बैलेंस” (नियंत्रण और संतुलन) की अवधारणा का भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में क्या महत्व है?
1. यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी एक अंग (विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका) अत्यधिक शक्तिशाली न हो जाए।
2. यह सरकार की पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाता है।
3. यह सरकार की तानाशाही प्रवृत्ति को रोकता है।
सही कूट का प्रयोग कर उत्तर चुनें:
(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
व्याख्या: “चेक एंड बैलेंस” की अवधारणा शक्तियों के पृथक्करण से जुड़ी है और यह सुनिश्चित करती है कि सरकार के तीनों अंग एक-दूसरे पर नियंत्रण रखें, जिससे तानाशाही को रोका जा सके और पारदर्शिता व जवाबदेही बनी रहे। विपक्ष की भूमिका भी इसी का एक हिस्सा है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न 1: “उपराष्ट्रपति के इस्तीफे की अफवाहों पर कांग्रेस अध्यक्ष के बयान ने भारतीय राजनीति में संस्थागत निष्पक्षता और राजनीतिक जवाबदेही पर बहस छेड़ दी है।” इस कथन का विश्लेषण करते हुए, वर्तमान उपराष्ट्रपति के पद की संवैधानिक भूमिका और राजनीतिक दल द्वारा उनके कार्यों पर की जाने वाली टिप्पणियों के निहितार्थों पर चर्चा करें। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न 2: भारत में उपराष्ट्रपति का पद, राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में एक महत्वपूर्ण संवैधानिक भूमिका निभाता है। इस पद की शक्तियों, कार्यों और सीमाओं को स्पष्ट करें। साथ ही, यह भी बताएं कि कैसे राजनीतिक विवाद इस पद की गरिमा को प्रभावित कर सकते हैं। (150 शब्द, 10 अंक)
- प्रश्न 3: भारतीय संसदीय प्रणाली में विपक्ष की भूमिका पर एक निबंध लिखिए। हाल के राजनीतिक घटनाक्रमों के आलोक में, बताएं कि कैसे विपक्ष संवैधानिक संस्थाओं पर सरकार के कथित प्रभाव को उजागर कर सकता है और इसके क्या संभावित लाभ और हानियाँ हैं? (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न 4: “लोकतांत्रिक व्यवस्था में, संवैधानिक पदों की निष्पक्षता सर्वोपरि होती है।” इस कथन के परिप्रेक्ष्य में, उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद को राजनीतिक बहसों में घसीटने के क्या संवैधानिक और राजनीतिक दुष्परिणाम हो सकते हैं? (150 शब्द, 10 अंक)