उत्तराखंड में बादल फटने की भयावहता: जीवन के लिए दौड़, UPSC के लिए एक गहरी समझ
चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल ही में उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में हुई मूसलाधार बारिश और उसके परिणामस्वरूप आई कई बादल फटने की घटनाओं ने राज्य के लोगों को भय और अनिश्चितता के माहौल में डाल दिया है। “भाग भाई भाग” का नारा केवल एक तात्कालिक प्रतिक्रिया नहीं थी, बल्कि प्रकृति के प्रचंड रूप के सामने मानव असहायता का एक मार्मिक चित्रण था। इन घटनाओं ने न केवल स्थानीय निवासियों के जीवन को खतरे में डाला है, बल्कि आपदा प्रबंधन, पर्यावरणीय गिरावट और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी प्रकाश डाला है, जो UPSC परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं।
उत्तराखंड, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और देवभूमि के रूप में ख्याति के बावजूद, भूवैज्ञानिक रूप से एक अस्थिर क्षेत्र में स्थित है। हिमालय की युवा पर्वत श्रृंखला होने के कारण, यह क्षेत्र भूकंप, भूस्खलन और अब, बढ़ते हुए बादल फटने की घटनाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। यह लेख इन घटनाओं के मूल कारणों, उनके विनाशकारी परिणामों, और UPSC सिविल सेवा परीक्षा के दृष्टिकोण से इन पर कैसे विचार किया जाए, इसका एक विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
बादल फटना: यह क्या है और क्यों होता है? (What is a Cloudburst and Why Does it Happen?)
बादल फटना एक ऐसी अत्यंत तीव्र वर्षा की घटना है जहाँ एक छोटे से भौगोलिक क्षेत्र में बहुत कम समय (आमतौर पर कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों तक) में अत्यधिक मात्रा में पानी गिरता है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, जब किसी विशेष क्षेत्र में एक घंटे के भीतर 100 मिमी (लगभग 4 इंच) से अधिक वर्षा होती है, तो इसे बादल फटना माना जाता है।
मुख्य कारण:
- पहाड़ी स्थलाकृति (Mountainous Topography): उत्तराखंड जैसे पहाड़ी इलाकों में, बादल अक्सर संकीर्ण घाटियों या ऊंचे पहाड़ों से घिरे क्षेत्रों में फंस जाते हैं। जब ये बादल अचानक नमी छोड़ते हैं, तो गुरुत्वाकर्षण के कारण पानी तेजी से नीचे की ओर बहता है, जिससे विनाशकारी बाढ़ आती है।
- वायुमंडलीय अस्थिरता (Atmospheric Instability): गर्म और आर्द्र हवा के तेजी से ऊपर उठने से बादलों का निर्माण होता है। यदि यह प्रक्रिया तीव्र हो जाती है, तो भारी मात्रा में पानी के बूंदें बनने लगती हैं जो एक साथ गिरती हैं।
- तापमान वृद्धि (Temperature Increase): जलवायु परिवर्तन के कारण, वायुमंडल की ऊपरी परतों की तुलना में निचली परतें तेजी से गर्म हो रही हैं। यह तापमान का अंतर वायुमंडलीय अस्थिरता को बढ़ाता है, जिससे बादलों में अधिक ऊर्जा का संचार होता है और बादल फटने की संभावना बढ़ जाती है।
- स्थानीय मौसम प्रणालियाँ (Local Weather Systems): कभी-कभी, स्थानीय मौसम की स्थितियाँ, जैसे कि निम्न दबाव प्रणाली या मानसून की सक्रियता, बादलों को एक विशेष क्षेत्र में केंद्रित कर सकती हैं, जिससे बादल फटने की घटनाएँ होती हैं।
एक उपमा: सोचिए एक प्रेशर कुकर की तरह। जब आप उसमें पानी डालकर उसे बंद कर देते हैं, तो भाप अंदर जमा होती रहती है। अगर उसमें से भाप निकलने का रास्ता बंद कर दिया जाए, तो अंदर दबाव बढ़ता जाएगा। अचानक जब सीटी बजती है, तो सारी भाप एक साथ निकलती है। बादल फटना कुछ ऐसा ही है, जहाँ बादल में पानी की बूंदों का जमावड़ा एक साथ फट पड़ता है।
उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाओं का इतिहास और वर्तमान परिदृश्य (History and Current Scenario of Cloudbursts in Uttarakhand)
उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएँ कोई नई बात नहीं हैं। राज्य की भौगोलिक स्थिति इसे प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील बनाती है। हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में इन घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि देखी गई है।
- 2013 की केदारनाथ बाढ़: यह उत्तराखंड में बादल फटने की सबसे विनाशकारी घटनाओं में से एक थी, जिसने हजारों लोगों की जान ले ली और बड़े पैमाने पर तबाही मचाई।
- हालिया घटनाएँ: पिछले कुछ वर्षों में, राज्य के विभिन्न जिलों जैसे पिथौरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी आदि में कई छोटी-बड़ी बादल फटने की घटनाएँ दर्ज की गई हैं, जिन्होंने सड़कों को अवरुद्ध किया, घरों को क्षतिग्रस्त किया और कई लोगों को विस्थापित किया।
वर्तमान स्थिति का विश्लेषण:
- विनाशकारी प्रभाव: बादल फटने से अचानक आने वाली बाढ़ (flash floods) और भूस्खलन (landslides) होते हैं, जो अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को बहा ले जाते हैं। इसमें मानव जीवन, पशुधन, कृषि भूमि, सड़कें, पुल और घर शामिल हैं।
- पहुँच में बाधा: इन घटनाओं के बाद, पहाड़ी इलाकों में परिवहन और संचार व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होती है, जिससे बचाव और राहत कार्यों में बाधा आती है।
- आर्थिक नुकसान: बुनियादी ढांचे को हुए नुकसान और कृषि पर प्रभाव से बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान होता है, जिससे उबरने में लंबा समय लगता है।
UPSC के दृष्टिकोण से प्रासंगिकता: मुद्दे और विश्लेषण (Relevance from UPSC Perspective: Issues and Analysis)
उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएँ UPSC परीक्षा के विभिन्न पत्रों के लिए महत्वपूर्ण हैं, जिनमें सामान्य अध्ययन पेपर I (भूगोल, समाज), सामान्य अध्ययन पेपर III (पर्यावरण, आपदा प्रबंधन, अर्थव्यवस्था) और निबंध शामिल हैं।
1. भूगोल (Geography – GS Paper I):
- पहाड़ी भूविज्ञान: हिमालयी क्षेत्र का भूवैज्ञानिक गठन, प्लेट टेक्टोनिक्स और उसकी संवेदनशीलता।
- मौसम विज्ञान: मानसून की कार्यप्रणाली, वायुमंडलीय दबाव, नमी का संकेंद्रण और बादल फटने की प्रक्रिया।
- जलविज्ञान (Hydrology): अचानक बाढ़ का गठन, जल निकासी पैटर्न पर प्रभाव।
2. पर्यावरण (Environment – GS Paper III):
- जलवायु परिवर्तन (Climate Change): तापमान वृद्धि, चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि, और बादल फटने पर इसका प्रभाव।
- वनोन्मूलन (Deforestation): वनों की कटाई से मिट्टी का कटाव बढ़ता है, जिससे भूस्खलन और बाढ़ की गंभीरता बढ़ जाती है।
- पर्यावरणीय असंतुलन: मानव गतिविधियों, जैसे कि अनियोजित पर्यटन विकास, निर्माण और अवैध खनन, से पर्यावरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव।
3. आपदा प्रबंधन (Disaster Management – GS Paper III):
- आपदा का वर्गीकरण: बादल फटना एक प्राकृतिक आपदा है, जिसे तीव्र (Rapid) आपदा की श्रेणी में रखा जाता है।
- जोखिम मूल्यांकन और शमन (Risk Assessment & Mitigation): संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान, पूर्व चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems), और जोखिम कम करने के उपाय।
- तैयारी और प्रतिक्रिया (Preparedness & Response): आपदा के दौरान और बाद में सरकार और स्थानीय समुदायों की भूमिका।
- पुनर्वास और पुनर्निर्माण (Rehabilitation & Reconstruction): प्रभावित लोगों को सहायता और क्षतिग्रस्त बुनियादी ढांचे का पुनर्निर्माण।
4. समाज (Society – GS Paper I):
- जनसांख्यिकी और भेद्यता (Demographics & Vulnerability): पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों की भेद्यता, उनकी जीवन शैली और आजीविका पर प्रभाव।
- विस्थापन (Displacement): आपदाओं के कारण समुदायों का विस्थापन और उसके सामाजिक प्रभाव।
- सामुदायिक भागीदारी (Community Participation): आपदा प्रबंधन में स्थानीय समुदायों की भूमिका।
5. निबंध (Essay – General Studies):
यह विषय निबंध के लिए एक उत्कृष्ट विषय हो सकता है, जहाँ उम्मीदवार जलवायु परिवर्तन, आपदा प्रबंधन, विकास बनाम पर्यावरण, या पहाड़ी क्षेत्रों में जीवन की चुनौतियों जैसे विषयों पर अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं।
चुनौतियाँ (Challenges)
उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में, इन घटनाओं से निपटना कई अनूठी चुनौतियों से भरा है:
- दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्र: कई प्रभावित क्षेत्र दुर्गम होते हैं, जिससे बचाव और राहत कार्यों में देरी होती है।
- सीमित संसाधन: पहाड़ी राज्यों के पास अक्सर बड़े राज्यों की तुलना में कम संसाधन होते हैं।
- पूर्व चेतावनी प्रणाली की सीमाएँ: बादल फटने जैसी अचानक होने वाली घटनाओं के लिए सटीक और समय पर पूर्व चेतावनी देना एक बड़ी चुनौती है।
- अनियोजित विकास: संवेदनशील क्षेत्रों में अनियंत्रित निर्माण, सड़क निर्माण और अन्य विकास परियोजनाएँ आपदाओं के जोखिम को बढ़ाती हैं।
- जलवायु परिवर्तन का अप्रत्याशित प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम के पैटर्न इतने अप्रत्याशित हो गए हैं कि भविष्यवाणियां करना कठिन हो गया है।
भविष्य की राह: समाधान और उपाय (The Way Forward: Solutions and Measures)
इस तरह की त्रासदियों को कम करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है:
- मजबूत पूर्व चेतावनी प्रणाली: मौसम विभाग को उन्नत तकनीक, जैसे कि रडार और सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग करके, और अधिक सटीक और स्थानीयकृत पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करनी चाहिए। स्थानीय समुदायों को इस प्रणाली का हिस्सा बनाना महत्वपूर्ण है।
- सतत पर्वतीय विकास (Sustainable Mountain Development): विकास परियोजनाओं को पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील होना चाहिए। निर्माण गतिविधियों के लिए सख्त नियम और पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) अनिवार्य होना चाहिए।
- वन संरक्षण और वृक्षारोपण: बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान और वनों के संरक्षण से मिट्टी के कटाव को रोका जा सकता है और भूस्खलन का खतरा कम किया जा सकता है।
- पारंपरिक ज्ञान का उपयोग: स्थानीय समुदायों के पास सदियों से पहाड़ी क्षेत्रों में रहने का अनुभव है। उनके पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं को आधुनिक तकनीकों के साथ एकीकृत करना प्रभावी हो सकता है।
- आपदा-लचीला बुनियादी ढाँचा (Disaster-Resilient Infrastructure): सड़कों, पुलों और घरों का निर्माण इस तरह से किया जाना चाहिए कि वे प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर सकें।
- जन जागरूकता और प्रशिक्षण: स्थानीय समुदायों को आपदाओं के बारे में शिक्षित करना, उन्हें प्रारंभिक प्रतिक्रिया और सुरक्षित आश्रय की जानकारी देना महत्वपूर्ण है। मॉक ड्रिल (Mock Drills) आयोजित की जानी चाहिए।
- जलवायु परिवर्तन से निपटना: वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों के साथ-साथ, स्थानीय स्तर पर अनुकूलन (Adaptation) रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
- नदी तल और ढलानों का प्रबंधन: नदी के किनारों और पहाड़ी ढलानों पर निर्माण पर प्रतिबंध लगाना और जल निकासी व्यवस्था को सुचारू रखना महत्वपूर्ण है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न 1: बादल फटने की घटना के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- यह एक ऐसे क्षेत्र में अत्यधिक तीव्र वर्षा है जहाँ एक घंटे में 100 मिमी से अधिक वर्षा होती है।
- पहाड़ी स्थलाकृति बादल फटने की घटनाओं को बढ़ा सकती है।
- जलवायु परिवर्तन बादल फटने की आवृत्ति और तीव्रता को कम करने में भूमिका निभाता है।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a)
व्याख्या: कथन 1 और 2 सही हैं। कथन 3 गलत है क्योंकि जलवायु परिवर्तन इन घटनाओं को बढ़ा रहा है, कम नहीं कर रहा। - प्रश्न 2: उत्तराखंड जैसे हिमालयी क्षेत्र निम्नलिखित में से किस प्राकृतिक आपदा के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील हैं?
- भूकंप
- भूस्खलन
- बादल फटना
- बाढ़
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (d)
व्याख्या: हिमालयी क्षेत्र भूवैज्ञानिक रूप से अस्थिर होते हैं और भूकंप, भूस्खलन, बादल फटने और अचानक आने वाली बाढ़ के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। - प्रश्न 3: भारत में आपदा प्रबंधन से संबंधित निम्नलिखित संस्थाओं पर विचार करें:
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)
- राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF)
- राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (NEC)
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत इनमें से किस/किन संस्था/संस्थाओं का गठन किया गया है?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a)
व्याख्या: NDMA और NDRF का गठन आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत हुआ है। NEC, NDMA की कार्यकारी शाखा के रूप में कार्य करती है। - प्रश्न 4: किसी क्षेत्र में बादल फटने की घटना के लिए निम्नलिखित में से कौन सा कारक महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है?
- वायुमंडलीय अस्थिरता
- संकीर्ण घाटियों में बादलों का फंसना
- अचानक तापमान में वृद्धि
- जंगल की आग
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(a) केवल 1, 2 और 4
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (a)
व्याख्या: वायुमंडलीय अस्थिरता, घाटियों में बादलों का फंसना और तापमान में वृद्धि महत्वपूर्ण कारक हैं। जंगल की आग का बादल फटने से सीधा संबंध नहीं है। - प्रश्न 5: भारत में “शहरी बाढ़” (Urban Flooding) के संबंध में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- यह अक्सर खराब जल निकासी प्रणाली के कारण होती है।
- पक्की सड़कों और इमारतों से पानी के अंतःस्यंदन (infiltration) की दर कम हो जाती है।
- बादल फटना शहरी बाढ़ का एक संभावित कारण है।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
व्याख्या: शहरी बाढ़ कई कारणों से होती है, जिसमें खराब जल निकासी, जल-अभेद्य सतहें और बादल फटने जैसी तीव्र वर्षा शामिल है। - प्रश्न 6: निम्नलिखित में से कौन सी नदी घाटी (River Valley) उत्तराखंड में हाल ही में बादल फटने की घटनाओं से सबसे अधिक प्रभावित हुई है?
- अलकनंदा घाटी
- भागीरथी घाटी
- धौलीगंगा घाटी
- मंदाकिनी घाटी
(यह प्रश्न हालिया घटनाओं पर आधारित है, विशिष्ट घटना के अनुसार उत्तर बदल सकता है। सामान्य ज्ञान के लिए, अलकनंदा और मंदाकिनी घाटियाँ 2013 की घटनाओं से बहुत प्रभावित हुई थीं। यदि हालिया घटनाएँ किसी विशिष्ट घाटी पर केंद्रित थीं, तो उसका उल्लेख प्रश्न में किया जा सकता है।)
उत्तर: (d) (2013 की केदारनाथ बाढ़ के संदर्भ में मंदाकिनी सबसे अधिक प्रभावित हुई थी। हालिया घटनाओं के आधार पर प्रश्न को अद्यतन किया जा सकता है।)
व्याख्या: 2013 की केदारनाथ आपदा, जो एक बड़े बादल फटने से शुरू हुई थी, ने मंदाकिनी नदी घाटी में भारी तबाही मचाई थी। - प्रश्न 7: आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अनुसार, भारत में आपदा प्रबंधन के लिए कौन जिम्मेदार है?
- केवल केंद्र सरकार
- केवल राज्य सरकारें
- केंद्र और राज्य सरकारों का संयुक्त प्रयास
- स्थानीय स्व-सरकारें
उत्तर: (c)
व्याख्या: आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005, आपदा प्रबंधन के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है, जिसमें NDMA एक प्रमुख भूमिका निभाता है। - प्रश्न 8: भूस्खलन (Landslides) के जोखिम को कम करने के लिए निम्नलिखित में से कौन सा उपाय सबसे प्रभावी है?
- पहाड़ी ढलानों पर बड़ी संख्या में पेड़ लगाना
- नदी तटों का चौड़ीकरण
- निर्माण गतिविधियों के लिए उच्च-गुणवत्ता वाली सामग्री का उपयोग
- पहाड़ी ढलानों पर निर्माण को विनियमित करना और वनों की कटाई को रोकना
उत्तर: (d)
व्याख्या: पहाड़ी ढलानों पर अनियंत्रित निर्माण भूस्खलन के मुख्य कारणों में से एक है। वनों की कटाई रोकने और ढलानों को स्थिर रखने के उपाय सबसे प्रभावी होते हैं। - प्रश्न 9: ‘जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन’ (Climate Change Adaptation) से क्या तात्पर्य है?
- ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना।
- जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से होने वाले नुकसान को स्वीकार करना।
- जलवायु परिवर्तन के मौजूदा और संभावित प्रभावों को समायोजित करने और प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए प्राकृतिक या मानव प्रणालियों में समायोजन करना।
- सौर ऊर्जा जैसी नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग बढ़ाना।
उत्तर: (c)
व्याख्या: अनुकूलन का अर्थ है जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए स्वयं को समायोजित करना, जबकि शमन (Mitigation) का अर्थ है इसके कारणों (जैसे ग्रीनहाउस गैसें) को कम करना। - प्रश्न 10: उत्तराखंड में इको-टूरिज्म (Eco-tourism) और पर्वतीय विकास के बीच संतुलन बनाने के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- पारंपरिक पर्यटन की तुलना में इको-टूरिज्म पर्यावरण पर कम प्रभाव डालता है।
- पहाड़ी क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का विकास, जैसे सड़कें और होटल, हमेशा पर्यावरण के अनुकूल होता है।
- स्थानीय समुदायों की भागीदारी इको-टूरिज्म की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c)
व्याख्या: इको-टूरिज्म का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण है। हालाँकि, बुनियादी ढांचे का विकास यदि अनियोजित हो तो पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकता है। स्थानीय समुदायों की भागीदारी इको-टूरिज्म की स्थिरता सुनिश्चित करती है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न 1: भारत में, विशेषकर हिमालयी राज्यों में, बादल फटने की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता के पीछे के कारणों का विश्लेषण कीजिए। जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में इन घटनाओं के दीर्घकालिक प्रभावों और उनसे निपटने के लिए प्रभावी आपदा प्रबंधन रणनीतियों पर चर्चा कीजिए। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न 2: उत्तराखंड में हाल की बादल फटने की घटनाओं ने प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में भारत की तैयारियों की सीमाओं को उजागर किया है। प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, बुनियादी ढाँचा विकास और सामुदायिक भागीदारी के संदर्भ में इन सीमाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें और इन कमजोरियों को दूर करने के लिए उपाय सुझाएं। (150 शब्द, 10 अंक)
- प्रश्न 3: “विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन” के विषय पर चर्चा करते हुए, उत्तराखंड जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में अनियोजित विकास गतिविधियों का प्राकृतिक आपदाओं, जैसे भूस्खलन और बाढ़, पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसका उदाहरण सहित वर्णन करें। (150 शब्द, 10 अंक)
- प्रश्न 4: भारत में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की भूमिका का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए, विशेष रूप से अल्पकालिक और अचानक होने वाली आपदाओं (जैसे बादल फटना) के प्रबंधन के संदर्भ में। (250 शब्द, 15 अंक)