उत्तराखंड में प्रलय: धराली में बादल फटने से तबाही, 34 सेकंड में तबाह हुआ गांव, सैकड़ों घर-होटल मलबे में समाए
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित धराली नामक खूबसूरत गांव पर एक भयावह प्राकृतिक आपदा ने दस्तक दी। अचानक फटे बादल ने 34 सेकंड के भीतर पूरे गांव को मलबे के ढेर में बदल दिया। इस विनाशकारी घटना में सैकड़ों घर और होटल जमींदोज हो गए, जिससे 4 लोगों की दुखद मृत्यु हो गई और 50 से अधिक लोग लापता बताए जा रहे हैं। यह घटना न केवल स्थानीय लोगों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन गई है, जो हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ती जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं के जोखिमों को उजागर करती है।
यह ब्लॉग पोस्ट इस घटना के कारणों, इसके विनाशकारी परिणामों, संबंधित भौगोलिक और पर्यावरणीय पहलुओं, और भविष्य में ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए भारत सरकार और स्थानीय प्रशासन द्वारा उठाए जा सकने वाले कदमों पर एक विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है। यह UPSC परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पर्यावरण, आपदा प्रबंधन, भूगोल और सामाजिक-आर्थिक मुद्दों जैसे विषयों से जुड़ा हुआ है।
धराली में बादल फटने की घटना: एक विस्तृत विश्लेषण
बादल फटना क्या है? (What is Cloudburst?):**
बादल फटना एक अत्यंत तीव्र और स्थानीयकृत मौसम की घटना है जिसमें बहुत कम समय में, आमतौर पर कुछ मिनटों से लेकर एक घंटे के भीतर, असामान्य रूप से भारी मात्रा में वर्षा होती है। यह घटना तब होती है जब वातावरण में नमी की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है और ठंडी हवा की अचानक प्रवेश के कारण गर्म, नम हवा को तेजी से ऊपर उठने के लिए मजबूर किया जाता है। जब यह नम हवा ऊपर उठती है, तो यह ठंडी होती है और संघनित होकर बादल बनाती है। बादल में पानी की बूंदें इतनी भारी हो जाती हैं कि वे वायुमंडलीय समर्थन से अधिक हो जाती हैं और फिर अचानक नीचे गिर जाती हैं।
आमतौर पर, बादल फटने को तब परिभाषित किया जाता है जब एक घंटे के भीतर 100 मिमी (लगभग 4 इंच) से अधिक वर्षा होती है। हालांकि, हिमालय जैसे पहाड़ी इलाकों में, जहां ढलान तेज होते हैं और नदियाँ गहरी घाटियों से बहती हैं, बहुत कम वर्षा भी विनाशकारी बाढ़ का कारण बन सकती है। धराली में हुई घटना में, 34 सेकंड जैसी छोटी अवधि में हुई भारी वर्षा ने तबाही मचाई, जो इस घटना की चरम प्रकृति को दर्शाता है।
“बादल फटना केवल भारी बारिश नहीं है, बल्कि यह प्रकृति का एक अचानक और विनाशकारी क्रोध है, जो पहाड़ी पारिस्थितिक तंत्र की नाजुकता को दर्शाता है।”
भौगोलिक परिदृश्य और संवेदनशीलता: क्यों उत्तराखंड?
उत्तराखंड, अपनी ऊँची चोटियों, गहरी घाटियों और तेज बहने वाली नदियों के साथ, बादल फटने जैसी घटनाओं के प्रति स्वाभाविक रूप से संवेदनशील है। इसकी कुछ मुख्य भौगोलिक विशेषताएं इस प्रकार हैं:
- ऊबड़-खाबड़ इलाका: तीव्र ढलान वाले पहाड़ अचानक वर्षा के पानी को तेजी से नीचे की ओर धकेलते हैं, जिससे बाढ़ और भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
- संकीर्ण घाटियाँ: नदियाँ संकीर्ण घाटियों से होकर बहती हैं, जो पानी के जमाव और विस्तार के लिए कम जगह प्रदान करती हैं। इससे बाढ़ का पानी तेजी से फैलकर आबादी वाले क्षेत्रों को अपनी चपेट में ले लेता है।
- कमजोर भूविज्ञान: हिमालयी क्षेत्र अभी भी भूगर्भीय रूप से सक्रिय है, और चट्टानें और मिट्टी अक्सर कमजोर होती हैं, जिससे वे भारी वर्षा और अचानक बाढ़ के कारण आसानी से अस्थिर हो जाती हैं।
- वनस्पतियों का क्षरण: मानवीय गतिविधियों, जैसे वनों की कटाई और अनियोजित निर्माण, के कारण कई पहाड़ी ढलानों पर वनस्पति आवरण कम हो गया है। वनस्पति मिट्टी को बांधे रखने और वर्षा जल के बहाव को धीमा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अभाव में, मिट्टी का कटाव बढ़ जाता है और भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
धराली, जो उत्तरकाशी जिले में स्थित है, एक ऐसा ही पहाड़ी क्षेत्र है, जहाँ प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ प्राकृतिक आपदाओं का जोखिम भी अधिक है। अचानक फटने वाले बादल ने यहाँ की नाजुक पारिस्थितिकी पर गंभीर प्रहार किया।
घटना के संभावित कारण (Possible Causes of the Event):
धराली में बादल फटने की इस विशेष घटना के कई संभावित कारण हो सकते हैं, जिनमें से अधिकांश को जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों से जोड़ा जा सकता है:
- जलवायु परिवर्तन: वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण वायुमंडल अधिक नमी धारण कर सकता है। इसके परिणामस्वरूप, तीव्र वर्षा की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ सकती है। मौसम के पैटर्न में अचानक और अप्रत्याशित बदलाव, जैसे कि तापमान में तेज वृद्धि के बाद ठंडी हवा का अचानक प्रवेश, बादल फटने के लिए एक अनुकूल वातावरण बना सकता है।
- उच्च तापमान और आर्द्रता: घटना से पहले के दिनों में उच्च तापमान और उच्च आर्द्रता का स्तर, विशेष रूप से हवा के ऊपर उठने वाले क्षेत्रों में, बड़े और अस्थिर बादलों के निर्माण में योगदान कर सकता है।
- पहाड़ी इलाकों की विशिष्टता: हिमालयी क्षेत्र, अपनी जटिल स्थलाकृति के कारण, हवा के ऊर्ध्वाधर संचलन (vertical circulation) को बाधित कर सकते हैं, जिससे बादलों में बहुत अधिक पानी जमा हो सकता है।
- अनियोजित विकास और निर्माण: कई पहाड़ी क्षेत्रों में, विशेष रूप से उत्तराखंड में, अनियोजित निर्माण, सड़कों का चौड़ीकरण, और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए जंगल काटना जैसी मानवीय गतिविधियाँ भूस्खलन और बाढ़ के जोखिम को बढ़ाती हैं। नदियों के किनारों पर या ढलानों पर असुरक्षित निर्माण, जैसा कि धराली में हो सकता है, आपदा के प्रभाव को और बढ़ा देता है।
विनाशकारी प्रभाव (Devastating Impacts):
34 सेकंड में हुई इस तबाही के परिणाम अत्यंत गंभीर और दूरगामी हैं:
- मानव जीवन की हानि: 4 लोगों की तत्काल मृत्यु और 50 से अधिक लोगों के लापता होने से स्थानीय समुदाय पर गहरा सदमा लगा है। लापता लोगों के जीवित मिलने की उम्मीदें कम होती जा रही हैं।
- संपत्ति का विनाश: सैकड़ों घर और होटल, जो जीवन यापन का साधन थे, मलबे में दब गए। इससे लोगों के बेघर होने की स्थिति पैदा हो गई है और उन्हें रहने व खाने की तत्काल आवश्यकता है।
- बुनियादी ढांचे को नुकसान: सड़कें, पुल, बिजली लाइनें और संचार नेटवर्क बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए हैं। इससे बचाव और राहत कार्यों में बाधा आ रही है और प्रभावित क्षेत्र बाहरी दुनिया से कट गया है।
- आर्थिक क्षति: स्थानीय अर्थव्यवस्था, जो मुख्य रूप से पर्यटन और छोटे व्यवसायों पर निर्भर करती है, बुरी तरह प्रभावित हुई है। घरों और व्यवसायों के पुनर्निर्माण में भारी निवेश की आवश्यकता होगी।
- पर्यावरणीय क्षति: भूस्खलन और मलबे के बहाव से बड़े पैमाने पर मिट्टी का कटाव हुआ है। नदियों का मार्ग बदल सकता है और जल स्रोतों पर भी असर पड़ सकता है।
“यह केवल ईंट और गारे का नुकसान नहीं है; यह उन सपनों, यादों और आजीविका का विनाश है जिन्हें बनाने में सालों लगे।”
UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
यह घटना UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विभिन्न चरणों और विषयों के लिए महत्वपूर्ण प्रासंगिकता रखती है:
- भूगोल (Geography): बादल फटना, भूस्खलन, नदियाँ, घाटियाँ, स्थलाकृति, मौसम प्रणाली (मौसम विज्ञान)।
- पर्यावरण (Environment): जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, पारिस्थितिकी तंत्र का क्षरण, वनों की कटाई, जैव विविधता पर प्रभाव।
- आपदा प्रबंधन (Disaster Management): प्राकृतिक आपदाएं, जोखिम मूल्यांकन, शमन रणनीतियाँ, पूर्व चेतावनी प्रणाली, आपातकालीन प्रतिक्रिया, राहत और पुनर्वास।
- शासन (Governance): सरकारी नीतियां, योजना, बुनियादी ढांचे का विकास, विनियमन, सामुदायिक भागीदारी।
- अर्थव्यवस्था (Economy): आपदाओं का आर्थिक प्रभाव, पुनर्निर्माण और पुनर्वास की लागत, स्थानीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव।
- सामाजिक मुद्दे (Social Issues): विस्थापन, आजीविका का नुकसान, समुदाय पर प्रभाव, सामाजिक सुरक्षा।
आपदा प्रबंधन: भारत का दृष्टिकोण
भारत ने प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाया है, जिसमें राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) जैसी संस्थाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
1. पूर्व चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems):
बादल फटने जैसी घटनाओं के लिए सटीक और समय पर पूर्व चेतावनी प्रणाली का विकास अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें शामिल हैं:
- मौसम निगरानी: अत्याधुनिक मौसम रडार, उपग्रह इमेजरी और जमीनी अवलोकन का उपयोग करके वर्षा की मात्रा और गति की लगातार निगरानी।
- क्षेत्रीय मॉडलिंग: ऐसे मॉडल विकसित करना जो विशिष्ट पहाड़ी इलाकों में वर्षा के पैटर्न और संभावित जोखिमों का अनुमान लगा सकें।
- संचार: चेतावनी संदेशों को प्रभावी ढंग से स्थानीय समुदायों, विशेषकर दूरदराज के और संवेदनशील क्षेत्रों तक पहुंचाना। इसमें मोबाइल अलर्ट, लाउडस्पीकर और स्थानीय नेताओं के माध्यम से सूचना का प्रसार शामिल है।
2. शमन और निवारण (Mitigation and Prevention):**
आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए:
- भूमि उपयोग योजना: संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण पर सख्त नियम लागू करना, जैसे कि नदियों के किनारे या अस्थिर ढलानों पर।
- वन संरक्षण और वृक्षारोपण: पहाड़ी ढलानों पर वनस्पति आवरण बढ़ाना ताकि मिट्टी का कटाव रोका जा सके और बाढ़ के पानी के बहाव को धीमा किया जा सके।
- बुनियादी ढांचे का सुदृढ़ीकरण: बाढ़-प्रतिरोधी पुलों और सड़कों का निर्माण, और मौजूदा बुनियादी ढांचे को मजबूत करना।
- अनियोजित निर्माण पर रोक: स्थानीय निकायों द्वारा निर्माण पर सख्त नियम लागू करना और नियमों का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई करना।
3. प्रतिक्रिया और राहत (Response and Relief):**
आपदा के बाद:
- त्वरित बचाव अभियान: NDRF और अन्य बचाव दलों की त्वरित तैनाती।
- चिकित्सा सहायता: घायलों के लिए तत्काल चिकित्सा सुविधाएं और सहायता।
- आश्रय और भोजन: बेघर हुए लोगों के लिए अस्थायी आश्रय, भोजन, पानी और अन्य आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति।
- पुनर्वास और पुनर्निर्माण: दीर्घकालिक पुनर्वास योजनाएं, जिसमें घरों और आजीविका का पुनर्निर्माण शामिल है।
“आपदा प्रबंधन केवल प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि यह तैयारी, शमन और लचीलापन बनाने की एक सतत प्रक्रिया है।”
चुनौतियाँ (Challenges):
आपदा के बाद:
- त्वरित बचाव अभियान: NDRF और अन्य बचाव दलों की त्वरित तैनाती।
- चिकित्सा सहायता: घायलों के लिए तत्काल चिकित्सा सुविधाएं और सहायता।
- आश्रय और भोजन: बेघर हुए लोगों के लिए अस्थायी आश्रय, भोजन, पानी और अन्य आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति।
- पुनर्वास और पुनर्निर्माण: दीर्घकालिक पुनर्वास योजनाएं, जिसमें घरों और आजीविका का पुनर्निर्माण शामिल है।
“आपदा प्रबंधन केवल प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि यह तैयारी, शमन और लचीलापन बनाने की एक सतत प्रक्रिया है।”
चुनौतियाँ (Challenges):
भारत, विशेष रूप से उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में, आपदा प्रबंधन में कई चुनौतियों का सामना करता है:
- भौगोलिक बाधाएँ: दुर्गम इलाका बचाव और राहत कार्यों को जटिल बनाता है।
- जनसंख्या घनत्व: कई संवेदनशील क्षेत्रों में घनी आबादी, जो आपदाओं के प्रति अधिक असुरक्षित है।
- संसाधन की कमी: विशेष रूप से दूरदराज के पहाड़ी क्षेत्रों में प्रभावी पूर्व चेतावनी प्रणाली और बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए पर्याप्त संसाधनों की कमी।
- जागरूकता का अभाव: स्थानीय समुदायों में आपदाओं के जोखिमों और बचाव उपायों के बारे में जागरूकता की कमी।
- अनियोजित विकास: विकास की आवश्यकता और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाने में विफलता, जो अक्सर अनियोजित निर्माण की ओर ले जाती है।
- जलवायु परिवर्तन का अप्रत्याशित प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के बढ़ते और अप्रत्याशित प्रभाव, जो पारंपरिक भविष्यवाणी मॉडल को और भी कठिन बना देते हैं।
भविष्य की राह (Way Forward):
धराली जैसी घटनाओं से सबक लेते हुए, भारत को भविष्य के लिए अपनी आपदा प्रबंधन रणनीतियों को और मजबूत करने की आवश्यकता है:
- जलवायु-अनुकूल विकास: विकास परियोजनाओं को इस तरह से डिजाइन और क्रियान्वित किया जाना चाहिए जो जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीला हो और पर्यावरणीय स्थिरता को प्राथमिकता दे।
- स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना: समुदायों को आपदाओं के प्रति अधिक जागरूक और प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, उन्हें स्थानीय स्तर पर प्रारंभिक चेतावनी और बचाव में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग: बेहतर मौसम निगरानी, डेटा विश्लेषण और संचार के लिए उन्नत तकनीक (जैसे AI, IoT) का अधिकतम उपयोग किया जाना चाहिए।
- अंतर-एजेंसी समन्वय: विभिन्न सरकारी विभागों, सैन्य बलों, स्वयंसेवी संगठनों और स्थानीय प्रशासनों के बीच प्रभावी समन्वय सुनिश्चित करना।
- पुनर्वास पर ध्यान: प्रभावित समुदायों के पुनर्वास और उनकी आजीविका को बहाल करने के लिए दीर्घकालिक योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना।
- अनुसंधान और विकास: बादल फटने जैसी विशिष्ट घटनाओं के लिए भविष्यवाणी मॉडलों में सुधार और पहाड़ी पारिस्थितिकी तंत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर निरंतर शोध को बढ़ावा देना।
उत्तराखंड की यह हालिया त्रासदी एक गंभीर अनुस्मारक है कि प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। हिमालयी क्षेत्र, अपनी सुंदरता के साथ-साथ अपनी भेद्यता के लिए भी जाने जाते हैं। धराली में हुई तबाही हमें सिखाती है कि हमें विकास की दौड़ में पर्यावरण को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए अधिक तैयार रहना चाहिए। यह समय है कि हम सामूहिक रूप से इन चुनौतियों का सामना करें और एक सुरक्षित भविष्य का निर्माण करें।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न 1: बादल फटने की घटना के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- यह एक अत्यंत तीव्र और स्थानीयकृत घटना है जिसमें बहुत कम समय में असामान्य रूप से भारी वर्षा होती है।
- हिमालय जैसे पहाड़ी इलाकों में, थोड़ी सी वर्षा भी विनाशकारी हो सकती है।
- इस घटना में आमतौर पर 100 मिमी से अधिक वर्षा एक घंटे में होती है।
- केवल a और b
- केवल b और c
- केवल a और c
- a, b और c
उपरोक्त में से कौन से कथन सत्य हैं?
उत्तर: (d)
व्याख्या: तीनों कथन बादल फटने की घटना के संदर्भ में सही हैं। यह एक तीव्र, स्थानीयकृत घटना है जिसमें भारी वर्षा होती है, और पहाड़ी क्षेत्रों में कम वर्षा भी विनाशकारी हो सकती है। इसकी मानक परिभाषा एक घंटे में 100 मिमी से अधिक वर्षा है। - प्रश्न 2: उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्यों में बादल फटने और भूस्खलन की घटनाओं के लिए निम्नलिखित में से कौन सा कारक सबसे महत्वपूर्ण है?
- अनियोजित शहरीकरण
- तीव्र ढलान वाली स्थलाकृति और कमजोर भूविज्ञान
- वनस्पतियों का तीव्र क्षरण
- इनमें से सभी
उत्तर: (d)
व्याख्या: तीव्र ढलान, कमजोर भूविज्ञान, अनियोजित निर्माण और वनों की कटाई सभी मिलकर हिमालयी क्षेत्रों को बादल फटने और भूस्खलन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बनाते हैं। - प्रश्न 3: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- यह आपदा प्रबंधन के लिए एक शीर्ष वैधानिक निकाय है।
- इसका उद्देश्य आपदा प्रबंधन के लिए एक “संपूर्ण-सरकार” दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है।
- यह आपदाओं के लिए पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- केवल a और b
- केवल b और c
- केवल a और c
- a, b और c
उपरोक्त में से कौन से कथन सत्य हैं?
उत्तर: (d)
व्याख्या: NDMA भारत में आपदा प्रबंधन के लिए एक शीर्ष निकाय है, जो एक संपूर्ण-सरकार दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है और पूर्व चेतावनी प्रणाली सहित विभिन्न पहलुओं में सक्रिय भूमिका निभाता है। - प्रश्न 4: जलवायु परिवर्तन का बादल फटने की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
- तापमान में वृद्धि के कारण वायुमंडल अधिक नमी धारण कर सकता है, जिससे तीव्र वर्षा की संभावना बढ़ जाती है।
- मौसम के पैटर्न में अप्रत्याशित बदलाव, जैसे ठंडी हवा का अचानक प्रवेश, बादल फटने के लिए अनुकूल हो सकता है।
- जलवायु परिवर्तन का बादल फटने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
- केवल a और b
उत्तर: (d)
व्याख्या: जलवायु परिवर्तन के कारण वायुमंडल में अधिक नमी हो सकती है और मौसम के पैटर्न में बदलाव आ सकता है, जिससे तीव्र वर्षा और बादल फटने की घटनाओं में वृद्धि की संभावना बढ़ जाती है। - प्रश्न 5: निम्नलिखित में से कौन सी संस्था भारत में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए तैनात की जाती है?
- राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF)
- भारतीय सेना
- राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC)
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
व्याख्या: NDRF विशेष रूप से आपदा प्रतिक्रिया के लिए प्रशिक्षित है, जबकि भारतीय सेना और NCC भी आवश्यकता पड़ने पर बचाव और राहत कार्यों में सहायता कर सकते हैं। - प्रश्न 6: शमन (Mitigation) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा उपाय बादल फटने के प्रभाव को कम करने में सहायक हो सकता है?
- पहाड़ी ढलानों पर वृक्षारोपण
- नदी किनारों पर अनियोजित निर्माण
- वनस्पतियों का क्षरण
- तीव्र शहरीकरण
उत्तर: (a)
व्याख्या: पहाड़ी ढलानों पर वृक्षारोपण मिट्टी के कटाव को रोकता है और पानी के बहाव को धीमा करता है, जिससे भूस्खलन और बाढ़ का खतरा कम होता है। - प्रश्न 7: निम्नलिखित में से किस प्रकार का भूविज्ञान बादल फटने और संबंधित भूस्खलनों के प्रति अधिक संवेदनशील है?
- ठोस और स्थिर ग्रेनाइट संरचनाएं
- ढीली तलछट और अपक्षयित (weathered) चट्टानें
- ज्वालामुखी चट्टानें
- इनमें से कोई नहीं
उत्तर: (b)
व्याख्या: ढीली तलछट और अपक्षयित चट्टानें पानी को अवशोषित करके भारी हो जाती हैं और आसानी से अस्थिर होकर भूस्खलन का कारण बन सकती हैं। - प्रश्न 8: उत्तराखंड में हाल की बादल फटने की घटना में, 34 सेकंड की अवधि में विनाश के लिए कौन सा कारक जिम्मेदार हो सकता है?
- अत्यधिक तीव्र वर्षा दर
- तेज ढलान वाले इलाके में मलबे का तेजी से बहाव
- स्थानीय नक्काशी (stream channels) की संकीर्णता
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
व्याख्या: बादल फटने की तीव्रता, पहाड़ी ढलानों की प्रकृति, और संकीर्ण घाटियों में पानी का तेजी से प्रवाह – इन सभी कारकों ने 34 सेकंड में इतनी भयानक तबाही मचाई। - प्रश्न 9: भारत में आपदा प्रबंधन के लिए “संपूर्ण-सरकार” दृष्टिकोण से क्या तात्पर्य है?
- केवल केंद्रीय सरकार की जिम्मेदारी
- आपदा प्रबंधन में सभी सरकारी मंत्रालयों और विभागों का समन्वयित प्रयास
- केवल राज्य सरकारों की भागीदारी
- निजी क्षेत्र की पूरी तरह से उपेक्षा
उत्तर: (b)
व्याख्या: “संपूर्ण-सरकार” दृष्टिकोण का अर्थ है कि आपदाओं से निपटने के लिए केंद्र, राज्य और स्थानीय स्तरों पर सभी सरकारी संस्थाएं एक साथ मिलकर काम करती हैं। - प्रश्न 10: हिमालयी क्षेत्र में अनियोजित विकास के क्या परिणाम हो सकते हैं?
- भूस्खलन और बाढ़ का खतरा बढ़ना
- पारिस्थितिक तंत्र का क्षरण
- स्थानीय समुदायों की भेद्यता में वृद्धि
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
व्याख्या: अनियोजित विकास, जैसे वनों की कटाई और पहाड़ी ढलानों पर निर्माण, सीधे तौर पर भूस्खलन, बाढ़, पारिस्थितिक क्षति और स्थानीय समुदायों के लिए जोखिमों को बढ़ाता है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न 1: भारत में, विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्रों में, बादल फटने की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता के पीछे जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के योगदान का विश्लेषण करें। इस संदर्भ में, प्रभावी शमन और अनुकूलन रणनीतियों पर चर्चा करें। (250 शब्द)
- प्रश्न 2: उत्तराखंड में हाल ही में हुई बादल फटने की घटना को ध्यान में रखते हुए, भारत में आपदा प्रबंधन प्रणाली की शक्तियों और कमजोरियों का मूल्यांकन करें। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की भूमिका की विवेचना करें। (200 शब्द)
- प्रश्न 3: “आपदाएँ अक्सर प्राकृतिक होती हैं, लेकिन उनका प्रभाव मानवीय गतिविधियों और कमजोरियों से बढ़ जाता है।” इस कथन के आलोक में, धराली जैसी घटनाओं के प्रबंधन में पूर्व चेतावनी प्रणालियों, सामुदायिक भागीदारी और टिकाऊ भूमि उपयोग योजना के महत्व पर प्रकाश डालें। (150 शब्द)
- प्रश्न 4: हिमालयी क्षेत्र में अनियोजित विकास किस प्रकार प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को बढ़ाता है? सरकार द्वारा ऐसे क्षेत्रों में टिकाऊ विकास सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए? (150 शब्द)