उत्तराखंड में प्रलय: उत्तरकाशी की विनाशलीला – कारण, प्रभाव और बचाव की कहानी
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले ने प्रकृति के विनाशकारी रूप का सामना किया। अनियंत्रित वर्षा के कारण आई भीषण बाढ़ ने तबाही मचाई, जिसमें कई होटल, घर और दुकानें बह गईं। इस प्राकृतिक आपदा में चार लोगों की जान चली गई, जबकि लगभग 70 लोग लापता बताए जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर वायरल हो रही भयावह तस्वीरें इस मंजर की गंभीरता को बयां कर रही हैं, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यह घटना हमें भारत जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन और अनियोजित विकास के गंभीर परिणामों की याद दिलाती है।
उत्तरकाशी की विनाशलीला: एक विस्तृत विश्लेषण (UttarKashi’s Devastation: A Detailed Analysis)
उत्तरकाशी, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है, आज एक भयावह आपदा का गवाह बना है। मूसलाधार बारिश ने स्थानीय नदियों को उफान पर ला दिया, जिसके परिणामस्वरूप व्यापक बाढ़ और भूस्खलन हुआ। इसका सीधा असर जनजीवन और संपत्ति पर पड़ा।
आपदा का पैमाना (Scale of the Disaster):
- सामुदायिक प्रभाव: स्थानीय नदी के जलस्तर में अप्रत्याशित वृद्धि ने तटीय क्षेत्रों में बने घरों, होटलों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को अपनी चपेट में ले लिया। कई संरचनाएं ताश के पत्तों की तरह ढह गईं।
- मानवीय क्षति: चार लोगों की दुखद मृत्यु की पुष्टि हुई है, जो इस आपदा के विनाशकारी प्रभाव का संकेत देते हैं। 70 से अधिक लोगों के लापता होने से स्थिति की भयावहता और बढ़ गई है। बचाव कार्य जारी है, लेकिन लापता लोगों को ढूंढना एक बड़ी चुनौती है।
- आर्थिक क्षति: स्थानीय अर्थव्यवस्था, जो काफी हद तक पर्यटन और छोटे व्यवसायों पर निर्भर है, को भारी झटका लगा है। इमारतों के नष्ट होने और बुनियादी ढांचे के क्षतिग्रस्त होने से लाखों रुपये का नुकसान होने का अनुमान है।
आपदा के मूल कारण (Root Causes of the Disaster):
इस तरह की विनाशकारी बाढ़ केवल एक दिन की बारिश का परिणाम नहीं है, बल्कि यह कई अंतर्निहित कारणों का एक जटिल मेल है। UPSC के दृष्टिकोण से, इन कारणों को समझना महत्वपूर्ण है:
1. जलवायु परिवर्तन और अत्यधिक वर्षा (Climate Change and Extreme Rainfall):
जलवायु परिवर्तन के कारण मौसमी पैटर्न में अनियमितता आ रही है। वैज्ञानिकों का मानना है कि वैश्विक तापन के कारण वायुमंडल में अधिक जलवाष्प धारण करने की क्षमता बढ़ जाती है, जिससे अत्यधिक वर्षा की घटनाएं अधिक तीव्र और बार-बार हो सकती हैं। मानसून के दौरान अत्यधिक वर्षा, जो अब असामान्य नहीं है, नदियों के जलस्तर को खतरनाक स्तर तक बढ़ा सकती है।
“जलवायु परिवर्तन प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का सीधा परिणाम है। जब हम पर्यावरण का संतुलन बिगाड़ते हैं, तो प्रकृति अपने तरीके से प्रतिक्रिया करती है।”
2. अनियोजित शहरीकरण और निर्माण (Unplanned Urbanization and Construction):
पहाड़ी इलाकों में विकास की दौड़ अक्सर पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी करती है। उत्तरकाशी जैसे पर्यटन स्थलों में, नदी किनारों पर या नाजुक ढलानों पर निर्माण की अनुमति दी जाती है। ऐसे निर्माण बाढ़ के पानी के प्रवाह में बाधा डालते हैं, जिससे उसका वेग बढ़ जाता है और कटाव तेज होता है।
- नदी तटीय अतिक्रमण: नदियों के किनारे अवैध निर्माण, जो बाढ़ के पानी के लिए प्राकृतिक आउटलेट के रूप में कार्य करते हैं, बाढ़ के प्रभाव को और बढ़ा देते हैं।
- पर्याप्त ड्रेनेज सिस्टम का अभाव: शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में वर्षा जल के प्रबंधन के लिए उचित ड्रेनेज सिस्टम का अभाव, जलभराव और बाढ़ का कारण बनता है।
3. वनों की कटाई और भू-उपयोग परिवर्तन (Deforestation and Land Use Change):
पहाड़ी इलाकों में वनों की कटाई मिट्टी के कटाव को बढ़ाती है। पेड़, अपनी जड़ों के साथ, मिट्टी को बांधे रखते हैं और वर्षा जल को धीरे-धीरे जमीन में रिसने में मदद करते हैं। वनों की कमी का मतलब है कि वर्षा का पानी सीधे नदियों में बह जाता है, जिससे बाढ़ की आशंका बढ़ जाती है।
- वनस्पति आवरण में कमी: निर्माण, सड़क चौड़ीकरण और अन्य विकास गतिविधियों के लिए पेड़ों को काटना, विशेष रूप से संवेदनशील पहाड़ी क्षेत्रों में, पारिस्थितिक संतुलन को बिगाड़ता है।
- भू-उपयोग परिवर्तन: कृषि या प्राकृतिक भूमि को निर्माण स्थलों में बदलना, जल अवशोषण क्षमता को कम करता है।
4. भूवैज्ञानिक संवेदनशीलता (Geological Vulnerability):
हिमालयी क्षेत्र स्वयं भूवैज्ञानिक रूप से अस्थिर है। यह क्षेत्र भूकंपीय रूप से सक्रिय है और इसमें भूस्खलन की उच्च प्रवृत्ति है। अत्यधिक बारिश इन अस्थिर ढलानों को और कमजोर कर देती है, जिससे भूस्खलन और मलबे की बाढ़ (debris flow) का खतरा बढ़ जाता है।
5. अपर्याप्त पूर्व चेतावनी प्रणाली (Inadequate Early Warning Systems):
हालांकि सरकारें पूर्व चेतावनी प्रणालियों में सुधार कर रही हैं, लेकिन अभी भी कई दूरदराज के पहाड़ी इलाकों में ये प्रणालियाँ उतनी प्रभावी नहीं हैं जितनी होनी चाहिए। समय पर और सटीक जानकारी न मिलने से बचाव और शमन के प्रयास बाधित होते हैं।
आपदा के प्रभाव (Impact of the Disaster):
इस आपदा के प्रभाव दूरगामी हैं:
1. मानवीय और सामाजिक प्रभाव (Human and Social Impact):
- जीवन की हानि: जानमाल का नुकसान एक अपूरणीय क्षति है। लापता लोगों के परिवार अनिश्चितता के दौर से गुजर रहे हैं।
- आजीविका का नुकसान: घर और दुकानें बह जाने से हजारों लोग बेघर हो गए हैं और उन्होंने अपनी आजीविका के साधन खो दिए हैं।
- मानसिक आघात: इस तरह की भयावह घटना से बचे लोगों और स्थानीय समुदायों पर गहरा मानसिक आघात हो सकता है।
2. पर्यावरणीय प्रभाव (Environmental Impact):
- भू-आकृतियों में परिवर्तन: बाढ़ और भूस्खलन से स्थानीय भू-आकृतियों में स्थायी परिवर्तन हो सकता है।
- जल स्रोतों का प्रदूषण: मलबा और गंदगी जल स्रोतों को प्रदूषित कर सकती है, जिससे पीने योग्य पानी की उपलब्धता प्रभावित हो सकती है।
- पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान: स्थानीय वनस्पतियों और जीवों को भी भारी नुकसान पहुँचता है।
3. आर्थिक प्रभाव (Economic Impact):
- पुनर्निर्माण की लागत: क्षतिग्रस्त बुनियादी ढांचे और घरों के पुनर्निर्माण में भारी लागत आएगी।
- पर्यटन पर प्रभाव: उत्तरकाशी जैसे पर्यटन स्थलों के लिए, इस तरह की घटनाएं भविष्य में पर्यटकों के विश्वास को हिला सकती हैं, जिससे पर्यटन क्षेत्र प्रभावित हो सकता है।
- आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान: सड़कों के टूटने से आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में बाधा आ सकती है।
बचाव और राहत कार्य (Rescue and Relief Operations):
आपदा के तत्काल बाद, बचाव अभियान शुरू कर दिए गए। भारतीय सेना, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) की टीमें मलबे में फंसे लोगों को निकालने और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर ले जाने के लिए अथक प्रयास कर रही हैं।
चुनौतियाँ (Challenges):
- खराब मौसम: लगातार बारिश और भूस्खलन की आशंका बचाव कार्यों में बाधा उत्पन्न कर रही है।
- पहुँच की समस्या: कई क्षेत्र सड़कों के टूटने के कारण दुर्गम हो गए हैं, जिससे राहत सामग्री और बचाव दल को पहुंचाना मुश्किल हो रहा है।
- संचार की बाधाएँ: संचार लाइनों के क्षतिग्रस्त होने से प्रभावित लोगों से संपर्क स्थापित करना और जानकारी एकत्र करना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
- लापता लोगों की तलाश: बड़े पैमाने पर लापता लोगों की तलाश एक जटिल और समय लेने वाली प्रक्रिया है।
आगे की राह: शमन और अनुकूलन (The Way Forward: Mitigation and Adaptation):
यह घटना हमें सिखाती है कि हमें भविष्य में ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए तैयार रहना होगा। इसके लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है:
1. एकीकृत आपदा प्रबंधन (Integrated Disaster Management):
आपदा प्रबंधन को केवल प्रतिक्रिया-आधारित न होकर, पूर्व-चेतावनी, शमन, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति जैसे सभी चरणों को एकीकृत करना चाहिए।
2. पर्यावरणीय रूप से जिम्मेदार विकास (Environmentally Responsible Development):
- कठोर भवन नियम: पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माण के लिए कड़े नियम बनाए जाने चाहिए और उनका सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। नदी तटीय क्षेत्रों में किसी भी निर्माण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
- भू-तकनीकी मूल्यांकन: किसी भी बड़े निर्माण परियोजना से पहले विस्तृत भू-तकनीकी मूल्यांकन अनिवार्य होना चाहिए।
- टिकाऊ पर्यटन: पर्यटन को बढ़ावा देते समय पर्यावरण के संरक्षण का ध्यान रखा जाना चाहिए। अवसंरचना विकास को पारिस्थितिक संवेदनशीलता के साथ संतुलित किया जाना चाहिए।
3. वनीकरण और संरक्षण (Afforestation and Conservation):
संवेदनशील क्षेत्रों में वनीकरण को बढ़ावा देना और मौजूदा वनों का संरक्षण भूस्खलन और मिट्टी के कटाव को कम करने में मदद कर सकता है।
4. मजबूत पूर्व चेतावनी प्रणाली (Robust Early Warning Systems):
ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों तक पहुँचने वाली प्रभावी पूर्व चेतावनी प्रणालियों का विकास और कार्यान्वयन महत्वपूर्ण है। इसमें स्थानीय समुदायों को शामिल करना और उन्हें प्रशिक्षित करना भी शामिल है।
5. जलवायु परिवर्तन अनुकूलन (Climate Change Adaptation):
हमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने की रणनीति बनानी होगी। इसमें जल प्रबंधन, कृषि प्रथाओं और बुनियादी ढांचे के डिजाइन में परिवर्तन शामिल हो सकते हैं।
6. सामुदायिक भागीदारी (Community Participation):
आपदा प्रबंधन में स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी महत्वपूर्ण है। उन्हें प्रशिक्षण, संसाधन और जानकारी प्रदान की जानी चाहिए ताकि वे स्वयं सुरक्षित रह सकें और दूसरों की मदद कर सकें।
7. बेहतर शहरी नियोजन (Better Urban Planning):
शहरी क्षेत्रों में, विशेष रूप से पहाड़ी इलाकों में, ड्रेनेज सिस्टम को मजबूत करना और जल निकासी को सुगम बनाना वर्षा जल से होने वाली क्षति को कम कर सकता है।
निष्कर्ष (Conclusion):
उत्तरकाशी की यह भयावह घटना एक वेक-अप कॉल है। यह स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि प्रकृति के साथ खिलवाड़ और अनियोजित विकास के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। UPSC उम्मीदवारों के लिए, इस घटना का विश्लेषण केवल वर्तमान समाचारों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसके मूल कारणों, प्रभावों और दीर्घकालिक समाधानों को समझना भी आवश्यक है। हमें ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए न केवल तैयार रहना होगा, बल्कि उन्हें रोकने के लिए सक्रिय कदम भी उठाने होंगे। पर्यावरण संरक्षण, टिकाऊ विकास और प्रभावी आपदा प्रबंधन को एक साथ लाकर ही हम अपने पर्वतीय क्षेत्रों को सुरक्षित रख सकते हैं और भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक बेहतर कल का निर्माण कर सकते हैं।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा कारक उत्तराखंड जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन और बाढ़ की घटनाओं को बढ़ा सकता है?
- वनों की कटाई
- अनियोजित निर्माण
- भारी वर्षा
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d) उपरोक्त सभी
व्याख्या: वनों की कटाई मिट्टी को ढीला करती है, अनियोजित निर्माण जल प्रवाह को बाधित करता है और वर्षा जल के संचय को बढ़ाता है, और भारी वर्षा नदियों के जलस्तर को बढ़ाती है, ये सभी कारक मिलकर भूस्खलन और बाढ़ की घटनाओं को बढ़ाते हैं। - प्रश्न: राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?
- प्राकृतिक आपदाओं के दौरान विशेष बचाव अभियान चलाना
- आपदा प्रबंधन के लिए नीतियां बनाना
- अंतरराष्ट्रीय आपदा सहायता प्रदान करना
- आपदा जोखिम मूल्यांकन करना
उत्तर: (a) प्राकृतिक आपदाओं के दौरान विशेष बचाव अभियान चलाना
व्याख्या: NDRF का मुख्य कार्य प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के दौरान विशेषीकृत बचाव और राहत कार्य करना है। - प्रश्न: जलवायु परिवर्तन का निम्नलिखित में से किस पर प्रभाव पड़ता है?
- वर्षा पैटर्न में अनियमितता
- समुद्र स्तर में वृद्धि
- चरम मौसमी घटनाएं
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d) उपरोक्त सभी
व्याख्या: जलवायु परिवर्तन वर्षा पैटर्न को अनिश्चित बनाता है, समुद्र स्तर बढ़ाता है और हीटवेव, बाढ़, सूखा जैसी चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता को बढ़ाता है। - प्रश्न: ‘भूस्खलन’ (Landslide) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. यह गुरुत्वाकर्षण के बल के तहत चट्टानों, मिट्टी या मलबे का पहाड़ी ढलान से नीचे की ओर सरकना है।
2. वनों की कटाई भूस्खलन के जोखिम को कम करती है।
3. तीव्र वर्षा या बर्फ पिघलना भूस्खलन का कारण बन सकता है।
निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है/हैं?- केवल 1
- 1 और 3
- 2 और 3
- 1, 2 और 3
उत्तर: (b) 1 और 3
व्याख्या: कथन 1 और 3 सही हैं। कथन 2 गलत है क्योंकि वनों की कटाई भूस्खलन के जोखिम को बढ़ाती है। - प्रश्न: सतत विकास (Sustainable Development) का सबसे अच्छा वर्णन क्या है?
- भविष्य की पीढ़ियों की अपनी जरूरतों को पूरा करने की क्षमता से समझौता किए बिना वर्तमान की जरूरतों को पूरा करना।
- पर्यावरण की कीमत पर आर्थिक विकास को प्राथमिकता देना।
- केवल औद्योगिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना।
- संसाधनों का अत्यधिक उपभोग करना।
उत्तर: (a) भविष्य की पीढ़ियों की अपनी जरूरतों को पूरा करने की क्षमता से समझौता किए बिना वर्तमान की जरूरतों को पूरा करना।
व्याख्या: यह सतत विकास की मानक परिभाषा है, जो आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय पहलुओं को संतुलित करती है। - प्रश्न: किसी क्षेत्र की भूवैज्ञानिक संवेदनशीलता (Geological Vulnerability) से क्या तात्पर्य है?
- उस क्षेत्र की भूकंप, ज्वालामुखी या भूस्खलन जैसी प्राकृतिक भूवैज्ञानिक घटनाओं के प्रति प्रवणता।
- उस क्षेत्र में खनिज संसाधनों की प्रचुरता।
- उस क्षेत्र में भूवैज्ञानिक अनुसंधान की सुविधा।
- उस क्षेत्र में मिट्टी का प्रकार।
उत्तर: (a) उस क्षेत्र की भूकंप, ज्वालामुखी या भूस्खलन जैसी प्राकृतिक भूवैज्ञानिक घटनाओं के प्रति प्रवणता।
व्याख्या: भूवैज्ञानिक संवेदनशीलता किसी क्षेत्र की आंतरिक भूवैज्ञानिक विशेषताओं के कारण प्राकृतिक भूवैज्ञानिक खतरों के प्रति भेद्यता को दर्शाती है। - प्रश्न: ‘मलबे की बाढ़’ (Debris Flow) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही नहीं है?
- इसमें पानी के साथ-साथ चट्टानें, मिट्टी और लकड़ी का मिश्रण होता है।
- यह आमतौर पर धीरे-धीरे बहने वाली घटना है।
- यह भूस्खलन का एक रूप है।
- यह अत्यधिक विनाशकारी हो सकती है।
उत्तर: (b) यह आमतौर पर धीरे-धीरे बहने वाली घटना है।
व्याख्या: मलबे की बाढ़ अक्सर बहुत तेज गति से बहती है और अत्यंत विनाशकारी होती है। - प्रश्न: भारत में मानसून की तीव्रता और वितरण में अनियमितताओं के पीछे मुख्य कारण क्या हो सकता है?
- प्रशांत महासागर में अल नीनो घटना
- हिमालय पर्वत श्रृंखला का प्रभाव
- जलवायु परिवर्तन
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d) उपरोक्त सभी
व्याख्या: अल नीनो, हिमालयी क्षेत्र और वैश्विक जलवायु परिवर्तन सभी भारत में मानसून पैटर्न को प्रभावित करते हैं। - प्रश्न: किसी आपदा के ‘शमन’ (Mitigation) से क्या तात्पर्य है?
- आपदा के बाद तुरंत राहत पहुँचाना।
- आपदा के प्रभाव को कम करने के लिए पहले से किए गए उपाय।
- आपदा के दौरान लोगों को निकालना।
- आपदा के बाद पुनर्निर्माण करना।
उत्तर: (b) आपदा के प्रभाव को कम करने के लिए पहले से किए गए उपाय।
व्याख्या: शमन का अर्थ है आपदा के संभावित नुकसान को कम करने के लिए सक्रिय उपाय करना। - प्रश्न: उत्तरकाशी जैसे पहाड़ी पर्यटन स्थलों के सतत विकास के लिए निम्नलिखित में से कौन सी रणनीति सबसे उपयुक्त होगी?
- नदी किनारों पर बड़े पैमाने पर होटल निर्माण।
- पर्यावरणीय नियमों को शिथिल करना।
- टिकाऊ पर्यटन प्रथाओं को अपनाना और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण।
- सार्वजनिक परिवहन को हतोत्साहित करना।
उत्तर: (c) टिकाऊ पर्यटन प्रथाओं को अपनाना और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण।
व्याख्या: टिकाऊ पर्यटन पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाए बिना पर्यटन का लाभ उठाने की अनुमति देता है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न: उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्यों में हाल के वर्षों में प्राकृतिक आपदाओं (जैसे बाढ़, भूस्खलन) की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि के कारणों का विश्लेषण करें। इन आपदाओं के सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभावों पर भी प्रकाश डालें। (250 शब्द)
- प्रश्न: भारत में आपदा प्रबंधन के संदर्भ में, ‘प्रतिक्रिया’ (Response) और ‘शमन’ (Mitigation) के बीच अंतर स्पष्ट करें। उत्तराखंड में आई हालिया बाढ़ जैसी घटनाओं को देखते हुए, भविष्य में ऐसे नुकसान को कम करने के लिए शमन उपायों के महत्व की विवेचना करें। (200 शब्द)
- प्रश्न: उत्तरकाशी में आई विनाशकारी बाढ़ को एक केस स्टडी के रूप में लेते हुए, चर्चा करें कि कैसे अनियोजित शहरीकरण और वनों की कटाई जैसी मानव-जनित गतिविधियाँ प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को बढ़ा सकती हैं। इसके समाधान के लिए किन टिकाऊ विकास मॉडल को अपनाने की आवश्यकता है? (250 शब्द)
- प्रश्न: भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का गंभीर आकलन करें। विशेष रूप से, इन क्षेत्रों में बाढ़, भूस्खलन और जल संसाधनों पर इसके संभावित प्रभाव पर चर्चा करें और अनुकूलन (Adaptation) रणनीतियों की रूपरेखा तैयार करें। (200 शब्द)