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उत्तराखंड का भूकंप: नौ साल, 18,464 आपदाएं, 67 बादल फटने की घटनाएं – क्या है बड़ी तस्वीर?

उत्तराखंड का भूकंप: नौ साल, 18,464 आपदाएं, 67 बादल फटने की घटनाएं – क्या है बड़ी तस्वीर?

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हालिया आंकड़ों के अनुसार, उत्तराखंड राज्य ने पिछले नौ वर्षों में प्राकृतिक आपदाओं की एक अभूतपूर्व लहर का अनुभव किया है, जिसमें 18,464 से अधिक घटनाएं दर्ज की गई हैं। इनमें विशेष रूप से 67 बार बादल फटने की गंभीर घटनाएं शामिल हैं, जो राज्य के पहाड़ी और संवेदनशील भूगोल के लिए एक चिंताजनक प्रवृत्ति को दर्शाती हैं। पौड़ी जिले में ऐसी घटनाओं की सर्वाधिक संख्या दर्ज की गई है, जो इस गंभीर मुद्दे की विशिष्टता को उजागर करती है। यह स्थिति न केवल राज्य के लिए एक बड़ी चुनौती है, बल्कि UPSC परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए भू-प्रकृति, आपदा प्रबंधन, और विकास के अंतर्संबंधों को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर भी प्रदान करती है।

उत्तराखंड, अपनी सुरम्य हिमालयी घाटियों और पवित्र तीर्थस्थलों के लिए प्रसिद्ध, एक ऐसा राज्य है जो अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। यह ब्लॉग पोस्ट इस गंभीर मुद्दे की गहराई में जाएगा, इसके कारणों, प्रभावों, और भविष्य के लिए संभावित समाधानों पर प्रकाश डालेगा, विशेष रूप से UPSC उम्मीदवारों के लिए प्रासंगिक दृष्टिकोण से।

उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं का बढ़ता जाल: एक विस्तृत विश्लेषण

उत्तराखंड को “देवभूमि” के नाम से जाना जाता है, लेकिन हाल के वर्षों में यह “आपदाओं की भूमि” भी बनता जा रहा है। पिछले नौ वर्षों में 18,464 से अधिक प्राकृतिक आपदाओं का आँकड़ा, जिनमें 67 बार बादल फटने जैसी विनाशकारी घटनाएँ शामिल हैं, राज्य की भेद्यता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। पौड़ी जैसे जिले, जहाँ ऐसी घटनाओं की आवृत्ति अधिक है, गंभीर चिंता का विषय हैं। यह स्थिति हमें प्राकृतिक आपदाओं के मूल कारणों, उनके मानव निर्मित कारकों, और राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर इसके प्रबंधन की वर्तमान व्यवस्थाओं पर गहराई से सोचने के लिए मजबूर करती है।

आपदाओं की विस्तृत तस्वीर: बादल फटना, भूस्खलन, और बहुत कुछ

जब हम “प्राकृतिक आपदाओं” की बात करते हैं, तो यह एक व्यापक शब्द है जिसमें कई प्रकार की घटनाएँ शामिल होती हैं। उत्तराखंड के संदर्भ में, कुछ प्रमुख आपदाएँ इस प्रकार हैं:

  • बादल फटना (Cloudbursts): अचानक और अत्यधिक तीव्र वर्षा, जो कुछ घंटों या मिनटों में ही सामान्य वर्षा की मात्रा से कई गुना अधिक होती है। यह स्थानीयकृत लेकिन अत्यंत विनाशकारी बाढ़ का कारण बनती है। 67 बार बादल फटने की घटनाओं का आँकड़ा इस विशेष प्रकार की आपदा के बढ़ते खतरे को रेखांकित करता है।
  • भूस्खलन (Landslides): ढलानों से चट्टानों, मिट्टी और मलबे का खिसकना। भारी वर्षा, भूकंप, और मानव निर्मित गतिविधियाँ (जैसे निर्माण, वनों की कटाई) भूस्खलन के प्रमुख कारण हैं। उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके भूस्खलन के प्रति स्वाभाविक रूप से संवेदनशील हैं।
  • अचानक बाढ़ (Flash Floods): छोटी नदियों या जलमार्गों में अचानक और तेजी से जल स्तर का बढ़ना, जो अक्सर बादल फटने या भारी वर्षा के कारण होता है। 2013 की केदारनाथ बाढ़ इसका सबसे भयावह उदाहरण है।
  • भूकंप (Earthquakes): उत्तराखंड एक उच्च भूकंपीय क्षेत्र में स्थित है। हिमालयी क्षेत्र भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के अभिसरण के कारण लगातार दबाव में है, जिससे भूकंपों की आशंका बनी रहती है।
  • हिमस्खलन (Avalanches): बर्फ की विशाल मात्रा का पहाड़ी ढलानों से नीचे गिरना। यह उन क्षेत्रों में अधिक आम है जहाँ ऊँचाई अधिक है और भारी बर्फबारी होती है।
  • भूस्खलन-जनित बाढ़ (Debris Flows/Mudflows): भूस्खलन से उत्पन्न मलबा और मिट्टी का पानी के साथ मिलकर तेजी से नीचे की ओर बहना।

भौगोलिक संवेदनशीलता: देवभूमि की अभिशाप

उत्तराखंड का भूगोल इसकी प्राकृतिक सुंदरता का स्रोत है, लेकिन यही भूगोल इसे विभिन्न आपदाओं के प्रति अतिसंवेदनशील भी बनाता है:

  • पहाड़ी और खड़ी ढलानें (Hilly and Steep Slopes): ये ढलानें भूस्खलन और हिमस्खलन के लिए आदर्श स्थितियाँ बनाती हैं। थोड़ी सी भी गड़बड़ी, जैसे निर्माण या वनों की कटाई, इन ढलानों को अस्थिर कर सकती है।
  • हिमालयी भूविज्ञान (Himalayan Geology): हिमालय अभी भी युवा और अस्थिर पर्वत श्रृंखला है। भूगर्भीय गतिविधियों, जैसे टेक्टोनिक प्लेटों की गति, लगातार इन पर्वतों को नया आकार दे रही है, जिससे भूकंप और भूस्खलन का खतरा बना रहता है।
  • नदी घाटियाँ (River Valleys): राज्य से होकर बहने वाली नदियाँ, विशेष रूप से गंगा, यमुना, और उनकी सहायक नदियाँ, घाटियों के निर्माण और अक्सर तीव्र ढलानों वाली घाटियों से होकर बहती हैं। यह बादल फटने और भूस्खलन के कारण अचानक बाढ़ का एक मार्ग प्रशस्त करता है।
  • वनस्पति आवरण (Vegetation Cover): वनों की कटाई और भूमि उपयोग में परिवर्तन मिट्टी को स्थिर करने वाले पेड़ों की जड़ों को कमजोर करता है, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।

मानव निर्मित कारक: हम कैसे योगदान करते हैं?

यह मानना ​​गलत होगा कि ये सभी आपदाएँ विशुद्ध रूप से “प्राकृतिक” हैं। मानव हस्तक्षेप अक्सर इन प्राकृतिक घटनाओं की तीव्रता और विनाशकारी क्षमता को बढ़ाता है:

  • अनियोजित विकास (Unplanned Development): सड़कों, होटलों, बांधों और अन्य बुनियादी ढाँचे का निर्माण अक्सर संवेदनशील पहाड़ी ढलानों पर या नदी तटों के बहुत करीब किया जाता है। इससे भूमि अस्थिर हो जाती है और भूस्खलन व बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
  • वनोन्मूलन (Deforestation): वनों को कृषि, निर्माण या जलाऊ लकड़ी के लिए काटा जाता है। पेड़ मिट्टी को पकड़ने और पानी के बहाव को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनकी अनुपस्थिति में, मिट्टी ढीली हो जाती है और भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
  • अति-पर्यटन (Over-tourism): लोकप्रिय पर्यटन स्थलों पर बढ़ती भीड़ और अव्यवस्थित विकास से प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव पड़ता है और पारिस्थितिकी तंत्र में बाधा उत्पन्न होती है।
  • खराब निर्माण तकनीकें (Poor Construction Practices): अनधिकृत या निम्न-गुणवत्ता वाले निर्माण, विशेष रूप से पहाड़ी इलाकों में, इन संरचनाओं को प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अधिक कमजोर बनाते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन (Climate Change): यह एक महत्वपूर्ण वैश्विक कारक है जो स्थानीय आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता को प्रभावित कर रहा है। बदलता हुआ मौसम पैटर्न अत्यधिक वर्षा की घटनाओं (बादल फटने सहित) और तापमान में वृद्धि का कारण बन सकता है, जिससे ग्लेशियरों का पिघलना और भूस्खलन बढ़ सकता है।

पौड़ी में सबसे ज्यादा घटनाएं: एक विशिष्ट समस्या

पौड़ी गढ़वाल जिले में सबसे ज्यादा घटनाओं का दर्ज होना इस बात का संकेत है कि राज्य के भीतर भी कुछ क्षेत्र विशेष रूप से जोखिम में हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं:

  • स्थानीय स्थलाकृति (Local Topography): पौड़ी की विशेष भौगोलिक बनावट, जैसे खड़ी ढलानें, संकरी घाटियाँ, और विशिष्ट भूवैज्ञानिक संरचनाएं, इसे बादल फटने और भूस्खलन के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकती हैं।
  • मानव गतिविधियाँ (Human Activities): जिले में अनियोजित विकास, सड़कों का निर्माण, या वनों की कटाई की उच्च दर भी इन घटनाओं को बढ़ा सकती है।
  • वनस्पति का क्षरण (Degradation of Vegetation): क्षेत्र में वनस्पति आवरण में कमी भूस्खलन के जोखिम को बढ़ा सकती है।
  • डेटा संग्रह (Data Collection): यह भी संभव है कि पौड़ी में डेटा संग्रह अधिक प्रभावी हो, जिससे घटनाओं की अधिक रिपोर्टिंग हो। हालांकि, बड़ी संख्या में घटनाओं का मतलब है कि यह एक महत्वपूर्ण समस्या का संकेतक है।

आपदाओं का प्रभाव: केवल आँकड़ों से परे

18,464 प्राकृतिक आपदाएँ और 67 बादल फटने की घटनाएँ केवल संख्याएँ नहीं हैं। ये आँकड़े राज्य के निवासियों के जीवन, आजीविका और पर्यावरण पर विनाशकारी प्रभाव डालते हैं:

  • मानवीय क्षति (Human Casualties): सबसे प्रत्यक्ष और दुखद प्रभाव जानमाल की हानि है। ये घटनाएँ लोगों को मार सकती हैं, घायल कर सकती हैं, या उन्हें विस्थापित कर सकती हैं।
  • आर्थिक प्रभाव (Economic Impact):
    • बुनियादी ढाँचे का विनाश (Destruction of Infrastructure): सड़कें, पुल, घर, स्कूल, और अस्पताल नष्ट हो जाते हैं, जिससे पुनर्निर्माण पर भारी लागत आती है।
    • कृषि और पशुधन का नुकसान (Loss of Agriculture and Livestock): खेत नष्ट हो जाते हैं, फसलें बर्बाद हो जाती हैं, और पशुधन मारे जाते हैं, जिससे किसानों की आजीविका छिन जाती है।
    • पर्यटन पर प्रभाव (Impact on Tourism): उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था काफी हद तक पर्यटन पर निर्भर करती है। आपदाएँ पर्यटन को बाधित करती हैं, जिससे राज्य के राजस्व का नुकसान होता है।
    • पुनर्निर्माण लागत (Reconstruction Costs): सरकार और लोगों को पुनर्निर्माण और पुनर्वास के लिए भारी धन खर्च करना पड़ता है, जिससे विकासशील पहियों में बाधा आती है।
  • सामाजिक प्रभाव (Social Impact):
    • विस्थापन (Displacement): लोगों को अपने घरों से दूर, अस्थायी या स्थायी शिविरों में रहना पड़ता है।
    • मनोवैज्ञानिक आघात (Psychological Trauma): जीवित बचे लोगों और उन समुदायों को जो लगातार जोखिम में रहते हैं, गहरा मनोवैज्ञानिक आघात झेलना पड़ता है।
    • सामुदायिक विघटन (Community Disruption): आपदाएँ समुदायों को तोड़ सकती हैं, सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुँचा सकती हैं।
  • पर्यावरणीय प्रभाव (Environmental Impact):
    • भू-आकृतियों में परिवर्तन (Changes in Landforms): भूस्खलन और बाढ़ से जमीन की रूपरेखा बदल जाती है।
    • वनों का विनाश (Destruction of Forests): भूस्खलन और बाढ़ वन क्षेत्रों को नष्ट कर सकते हैं।
    • जल प्रदूषण (Water Pollution): मलबा और कचरा जल स्रोतों को दूषित कर सकता है।
    • जैव विविधता का नुकसान (Loss of Biodiversity): संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र नष्ट हो सकते हैं।

आपदा प्रबंधन: वर्तमान ढाँचा और चुनौतियाँ

भारत और विशेष रूप से उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन के लिए एक बहु-स्तरीय दृष्टिकोण अपनाया जाता है, जिसमें राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर विभिन्न एजेंसियां ​​और विभाग शामिल होते हैं।

प्रमुख राष्ट्रीय और राज्य निकाय:

  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA): आपदा प्रबंधन के लिए नीति, योजना और दिशानिर्देश बनाने वाला शीर्ष निकाय।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF): आपदाओं के दौरान बचाव और राहत कार्यों के लिए प्रशिक्षित और सुसज्जित बल।
  • राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA): राज्य स्तर पर NDMA के समान कार्य करता है, राज्य-विशिष्ट नीतियों और योजनाओं का निर्माण करता है।
  • राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF): NDRF की तरह, राज्य के अपने बचाव दल होते हैं।
  • जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA): जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन की योजना बनाने, समन्वय करने और कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार।
  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD): मौसम की भविष्यवाणी और चेतावनी जारी करने के लिए महत्वपूर्ण।
  • भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग (GSI): भूस्खलन और भूकंपीय गतिविधि की निगरानी करता है।

आपदा प्रबंधन के चरण:

आपदा प्रबंधन को आम तौर पर चार चरणों में विभाजित किया जाता है:

  1. निवारण (Mitigation): आपदाओं की संभावना या उनके प्रभाव को कम करने के लिए कदम उठाना (जैसे, भवन कोड लागू करना, वनीकरण)।
  2. तैयारी (Preparedness): संभावित आपदाओं का सामना करने के लिए योजना बनाना, प्रशिक्षण देना और संसाधन जुटाना (जैसे, आपातकालीन प्रतिक्रिया योजनाएँ, मॉक ड्रिल)।
  3. प्रतिक्रिया (Response): आपदा के दौरान और उसके तुरंत बाद जीवन बचाने, राहत प्रदान करने और क्षति को कम करने के लिए तत्काल कार्रवाई (जैसे, बचाव और राहत अभियान, चिकित्सा सहायता)।
  4. पुनर्प्राप्ति (Recovery): दीर्घकालिक पुनर्निर्माण और सामान्य स्थिति में लौटने के लिए सहायता प्रदान करना (जैसे, आर्थिक सहायता, पुनर्वास)।

चुनौतियाँ:

उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में आपदा प्रबंधन विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है:

  • भौगोलिक पहुँच (Geographical Accessibility): दूरदराज के पहाड़ी क्षेत्रों में प्रतिक्रिया टीमों और राहत सामग्री को पहुँचाना मुश्किल हो सकता है।
  • संचार की कमी (Lack of Communication): आपदाओं के दौरान संचार लाइनें अक्सर बाधित हो जाती हैं, जिससे समन्वय मुश्किल हो जाता है।
  • संसाधन की कमी (Lack of Resources): विशेष रूप से स्थानीय स्तर पर, प्रशिक्षित कर्मी, उपकरण और धन की कमी हो सकती है।
  • जागरूकता की कमी (Lack of Awareness): आम जनता के बीच आपदाओं के खतरों और सुरक्षा उपायों के बारे में जागरूकता का अभाव।
  • शहरीकरण और बसावट (Urbanization and Settlements): पहाड़ी ढलानों पर या नदी घाटियों के पास अनियोजित निर्माण और बसावट।
  • निगरानी और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Monitoring and Early Warning Systems): इन प्रणालियों को और मजबूत बनाने की आवश्यकता है, विशेष रूप से बादल फटने जैसी अचानक होने वाली घटनाओं के लिए।
  • अंतर-विभागीय समन्वय (Inter-departmental Coordination): विभिन्न सरकारी विभागों और एजेंसियों के बीच प्रभावी समन्वय सुनिश्चित करना।
  • नीति कार्यान्वयन (Policy Implementation): योजनाओं और नीतियों को जमीनी स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू करना।

“आपदाएं प्रकृति का प्रकोप नहीं हैं, बल्कि अक्सर हमारे अपने कार्यों और उपेक्षाओं का परिणाम होती हैं, खासकर जब हम अपने ग्रह के नाजुक संतुलन को अनदेखा करते हैं।”

भविष्य की राह: स्थायी समाधान की ओर

उत्तराखंड को प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए एक बहुआयामी और दीर्घकालिक रणनीति की आवश्यकता है। UPSC उम्मीदवारों को निम्नलिखित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए:

  1. मजबूत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Strengthening Early Warning Systems):
    • बादल फटने जैसी अचानक होने वाली घटनाओं के लिए डॉप्लर रडार और अन्य निगरानी प्रौद्योगिकियों का विस्तार।
    • स्थानीय समुदायों को प्रशिक्षित करना और उन्हें चेतावनी प्रसारित करने में शामिल करना।
    • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML) का उपयोग करके डेटा विश्लेषण में सुधार।
  2. सतत विकास और भू-संरक्षण (Sustainable Development and Geo-conservation):
    • निर्माण के लिए ऐसे स्थानों का चयन करना जो प्राकृतिक रूप से स्थिर हों।
    • पहाड़ी ढलानों पर वृक्षारोपण और वनीकरण को बढ़ावा देना।
    • पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में विकास को विनियमित करना।
    • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) को सख्ती से लागू करना।
  3. समुदाय-आधारित आपदा प्रबंधन (Community-based Disaster Management):
    • स्थानीय समुदायों को आपदाओं से निपटने के लिए प्रशिक्षित करना और सशक्त बनाना।
    • आपदा प्रबंधन समितियों का गठन और उन्हें सक्रिय करना।
    • पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं को एकीकृत करना।
  4. बुनियादी ढाँचे का उन्नयन (Upgradation of Infrastructure):
    • आपदा-प्रतिरोधी निर्माण तकनीकों का उपयोग करना।
    • संचार नेटवर्क को मजबूत बनाना।
    • आपदा राहत आश्रयों और आपूर्ति डिपो की स्थापना।
  5. नीति और शासन (Policy and Governance):
    • आपदा प्रबंधन के लिए स्पष्ट नीतियाँ और कानून बनाना।
    • अंतर-विभागीय समन्वय को सुव्यवस्थित करना।
    • आपदा राहत और पुनर्निर्माण के लिए पर्याप्त धन आवंटित करना।
    • सरकारी एजेंसियों, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs), और निजी क्षेत्र के बीच साझेदारी को बढ़ावा देना।
  6. जन जागरूकता और शिक्षा (Public Awareness and Education):
    • स्कूलों और कॉलेजों के पाठ्यक्रम में आपदा प्रबंधन को शामिल करना।
    • जनता के लिए नियमित जागरूकता अभियान चलाना।
    • आपदाओं के दौरान क्या करें और क्या न करें, इस पर जानकारी प्रदान करना।
  7. जलवायु परिवर्तन का अनुकूलन (Climate Change Adaptation):
    • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति राज्य की भेद्यता का आकलन करना।
    • अनुकूलन रणनीतियों को लागू करना, जैसे कि जल प्रबंधन, फसल विविधीकरण, और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली।

“प्रकृति का सम्मान करें, अन्यथा वह आपका सम्मान नहीं करेगी।”

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
    1. पिछले नौ वर्षों में 18,000 से अधिक प्राकृतिक आपदाएँ दर्ज की गई हैं।
    2. राज्य ने 67 बार बादल फटने की घटनाओं का अनुभव किया है।
    3. पौड़ी जिले में सर्वाधिक घटनाएँ दर्ज की गई हैं।
    उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
    (a) केवल 1 और 2
    (b) केवल 2 और 3
    (c) केवल 1 और 3
    (d) 1, 2 और 3
    उत्तर: (d)
    व्याख्या: दिए गए समाचार के अनुसार, तीनों कथन सही हैं। राज्य ने पिछले नौ वर्षों में 18,464 प्राकृतिक आपदाओं का सामना किया है, जिसमें 67 बार बादल फटने की घटनाएं शामिल हैं, और पौड़ी जिले में सबसे अधिक घटनाएं देखी गई हैं।
  2. प्रश्न 2: उत्तराखंड में भूस्खलन के लिए निम्नलिखित में से कौन सा एक प्रमुख कारण नहीं है?
    (a) खड़ी ढलानें
    (b) वनों की कटाई
    (c) भूकंपीय गतिविधि
    (d) समतल भूभाग
    उत्तर: (d)
    व्याख्या: समतल भूभाग भूस्खलन के लिए एक प्रमुख कारण नहीं है। खड़ी ढलानें, वनों की कटाई, और भूकंपीय गतिविधि सभी भूस्खलन को बढ़ावा देने वाले कारक हैं, खासकर उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में।
  3. प्रश्न 3: “बादल फटना” (Cloudburst) की घटना के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
    1. यह अचानक और अत्यधिक तीव्र वर्षा की एक छोटी अवधि की घटना है।
    2. यह आमतौर पर बड़े भौगोलिक क्षेत्रों को प्रभावित करती है।
    3. यह अचानक बाढ़ का कारण बन सकती है।
    उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
    (a) केवल 1
    (b) केवल 1 और 3
    (c) केवल 2 और 3
    (d) 1, 2 और 3
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: बादल फटना एक छोटी अवधि में अत्यधिक स्थानीयकृत वर्षा है, न कि बड़े भौगोलिक क्षेत्रों को प्रभावित करने वाली। यह अचानक बाढ़ का कारण बन सकती है।
  4. प्रश्न 4: आपदा प्रबंधन के किस चरण में “आपदा की संभावना या उसके प्रभाव को कम करने के उपाय” शामिल होते हैं?
    (a) तैयारी (Preparedness)
    (b) प्रतिक्रिया (Response)
    (c) निवारण (Mitigation)
    (d) पुनर्प्राप्ति (Recovery)
    उत्तर: (c)
    व्याख्या: निवारण (Mitigation) का अर्थ है आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए पहले से उपाय करना।
  5. प्रश्न 5: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
    1. यह भारत में आपदा प्रबंधन के लिए नीति और दिशानिर्देश बनाने वाली शीर्ष संस्था है।
    2. यह आपदाओं के दौरान बचाव और राहत कार्यों का संचालन करता है।
    3. इसके पास अपना प्रशिक्षित प्रतिक्रिया बल (NDRF) है।
    उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
    (a) केवल 1 और 2
    (b) केवल 1 और 3
    (c) केवल 2 और 3
    (d) 1, 2 और 3
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: NDMA नीति और दिशानिर्देश बनाता है और NDRF का संचालन करता है। प्रत्यक्ष बचाव और राहत कार्य NDRF और SDRF जैसे जमीनी बलों द्वारा किए जाते हैं।
  6. प्रश्न 6: उत्तराखंड की भौगोलिक संवेदनशीलता के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन असत्य है?
    (a) हिमालयी क्षेत्र अभी भी युवा और अस्थिर पर्वत श्रृंखला है।
    (b) राज्य में भारी वन आवरण भूस्खलन को कम करने में मदद करता है।
    (c) नदियों की घाटियाँ अचानक बाढ़ के लिए संवेदनशील हैं।
    (d) खड़ी ढलानें भूस्खलन के लिए आदर्श स्थिति बनाती हैं।
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: जबकि वन आवरण भूस्खलन को कम करने में मदद करता है, लेकिन उत्तराखंड में वनों की कटाई एक समस्या है, और कथन “भारी वन आवरण” को गलत तरीके से प्रस्तुत करता है। इसका सही उत्तर है कि “वनोन्मूलन” भूस्खलन को बढ़ाता है, न कि “भारी वन आवरण” से भूस्खलन कम होता है, बल्कि वनों की कमी भूस्खलन बढ़ाती है। यहाँ प्रश्न में “भारी वन आवरण” की बात की गई है, जो कि सच है, लेकिन वह भूस्खलन के प्रति “संवेदनशीलता” को कम करने के बजाय, वन आवरण की “कमी” संवेदनशीलता को बढ़ाती है। इसलिए, यह कथन इस संदर्भ में थोड़ा भ्रामक है, लेकिन अन्य विकल्प स्पष्ट रूप से सही हैं। सबसे सटीक उत्तर भूस्खलन के कारण के रूप में “भारी वन आवरण” को गलत बताना होगा, क्योंकि वनों की कमी भूस्खलन का कारण बनती है।
  7. प्रश्न 7: निम्नलिखित में से कौन सी मानव निर्मित गतिविधि उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को बढ़ा सकती है?
    1. अनियोजित विकास
    2. वनों की कटाई
    3. बांध निर्माण
    4. पर्यटक स्थलों पर अत्यधिक भीड़
    सही कूट का प्रयोग करें:
    (a) केवल 1, 2 और 3
    (b) केवल 1, 2 और 4
    (c) केवल 2, 3 और 4
    (d) 1, 2, 3 और 4
    उत्तर: (d)
    व्याख्या: ये सभी मानव निर्मित गतिविधियाँ उत्तराखंड जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम और प्रभाव को बढ़ा सकती हैं।
  8. प्रश्न 8: राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
    1. यह राज्य स्तर पर आपदा प्रबंधन के लिए नोडल एजेंसी है।
    2. यह राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के अधीन काम करता है।
    3. इसका प्रमुख राज्य का मुख्यमंत्री होता है।
    उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
    (a) केवल 1
    (b) केवल 1 और 2
    (c) केवल 1 और 3
    (d) 1, 2 और 3
    उत्तर: (c)
    व्याख्या: SDMA राज्य स्तर पर नोडल एजेंसी है और इसका प्रमुख आमतौर पर मुख्यमंत्री होता है। यह NDMA के दिशानिर्देशों का पालन करता है लेकिन एक स्वतंत्र इकाई के रूप में कार्य करता है, न कि उसके अधीन।
  9. प्रश्न 9: उत्तराखंड के संदर्भ में “आपदा की तैयारी” (Preparedness) चरण में निम्नलिखित में से क्या शामिल है?
    (a) भूस्खलन की आशंका वाले क्षेत्रों की पहचान करना।
    (b) आपदा प्रतिक्रिया टीमों को तैनात करना।
    (c) राहत सामग्री का वितरण।
    (d) पुनर्वास और पुनर्निर्माण।
    उत्तर: (a)
    व्याख्या: भूस्खलन की आशंका वाले क्षेत्रों की पहचान करना आपदा की तैयारी का हिस्सा है, जबकि (b) और (c) प्रतिक्रिया (Response) चरण में आते हैं, और (d) पुनर्प्राप्ति (Recovery) चरण में।
  10. प्रश्न 10: निम्नलिखित में से किस भूवैज्ञानिक प्रक्रिया के कारण हिमालयी क्षेत्र में भूकंप का खतरा अधिक है?
    (a) अपसारी प्लेट सीमा (Divergent plate boundary)
    (b) अभिसारी प्लेट सीमा (Convergent plate boundary)
    (c) रूपांतरित प्लेट सीमा (Transform plate boundary)
    (d) इनमें से कोई नहीं
    उत्तर: (b)
    व्याख्या: हिमालयी क्षेत्र भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के अभिसरण (टकराव) के कारण एक अभिसारी प्लेट सीमा पर स्थित है, जिसके कारण यहाँ भूकंप का खतरा अधिक है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1: उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता के कारणों का विश्लेषण करें। जलवायु परिवर्तन और मानवजनित गतिविधियों के प्रभाव पर विशेष ध्यान देते हुए, एक प्रभावी आपदा प्रबंधन रणनीति के लिए सिफारिशें प्रस्तुत करें। (250 शब्द)
  2. प्रश्न 2: “उत्तराखंड में 18,464 प्राकृतिक आपदाओं और 67 बादल फटने की घटनाओं” के आँकड़ों को देखते हुए, राज्य की भेद्यता को कम करने में समुदाय-आधारित आपदा प्रबंधन (CBDRM) की भूमिका पर चर्चा करें। राज्य सरकार और स्थानीय समुदायों के बीच प्रभावी सहयोग के लिए आवश्यक उपायों का सुझाव दें। (150 शब्द)
  3. प्रश्न 3: उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों (Early Warning Systems) की वर्तमान स्थिति का मूल्यांकन करें। बादल फटने जैसी अचानक होने वाली घटनाओं के लिए इन प्रणालियों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए किन तकनीकी और संस्थागत सुधारों की आवश्यकता है? (150 शब्द)
  4. प्रश्न 4: आपदा प्रबंधन के निवारण (Mitigation) चरण के महत्व पर प्रकाश डालें। उत्तराखंड के संदर्भ में, ऐसे कौन से नीतिगत और व्यावहारिक उपाय किए जा सकते हैं जो भूस्खलन और बाढ़ जैसी आपदाओं के दीर्घकालिक प्रभावों को कम कर सकें? (150 शब्द)

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