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उत्तरकाशी की आपदाएं: जब नदियाँ बदलें रास्ते – हिमालयी समुदायों के लिए चेतावनियाँ और आगे की राह

उत्तरकाशी की आपदाएं: जब नदियाँ बदलें रास्ते – हिमालयी समुदायों के लिए चेतावनियाँ और आगे की राह

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल ही में, उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में, विशेष रूप से धरली और उसके आसपास के क्षेत्रों में, बाढ़ और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं ने गंभीर स्थिति उत्पन्न की है। स्थानीय लोगों का जीवन, जैसा कि धरली में ‘कैलेन्डर बाढ़ से लिखा जाता है’, और खेर गैड जैसी उग्र जलधाराओं की गर्जना के बीच ‘घड़ी का टिक-टिक चलना’ – यह सब इस क्षेत्र में मानव-प्रकृति के जटिल और अक्सर विनाशकारी सह-अस्तित्व को दर्शाता है। ये घटनाएँ न केवल तत्काल जीवन और संपत्ति के लिए खतरा पैदा करती हैं, बल्कि हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की नाजुकता, जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव और इस क्षेत्र में अनियोजित विकास के दीर्घकालिक परिणामों पर भी प्रकाश डालती हैं। UPSC सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए, यह घटना भूगोल, पर्यावरण, आपदा प्रबंधन, और शासन जैसे विषयों के लिए एक महत्वपूर्ण केस स्टडी प्रस्तुत करती है।

परिचय: हिमालयी क्षेत्र – प्रकृति का कोप या मानव की चूक?

हिमालय, अपनी अद्भुत जैव विविधता और प्राकृतिक सुंदरता के साथ, एक ऐसी भूमि है जो लगातार परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। लेकिन यह परिवर्तन हमेशा कोमल नहीं होता। उत्तरकाशी जैसी घटनाओं से पता चलता है कि जब प्रकृति अपना प्रचंड रूप दिखाती है, तो मानव निर्मित व्यवस्थाएँ कितनी कमजोर साबित होती हैं। धरली में बाढ़ का इतिहास, जहाँ स्थानीय लोगों का जीवनचक्र बाढ़ के चक्र से जुड़ा हुआ है, और खेर गैड जैसी नदियों का उग्र व्यवहार, ये दोनों ही बताते हैं कि यह क्षेत्र प्राकृतिक शक्तियों से कितना अधिक प्रभावित है। यह ब्लॉग पोस्ट इन घटनाओं के मूल कारणों, उनके व्यापक प्रभावों, सामना की जा रही चुनौतियों और भविष्य की राह पर एक विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जो UPSC उम्मीदवारों के लिए अत्यंत प्रासंगिक है।

घटना का संदर्भ: उत्तरकाशी में क्या हुआ?

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में, विशेषकर भागीरथी नदी के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में, लगातार बारिश के कारण न केवल नदी का जलस्तर बढ़ा, बल्कि कई स्थानों पर भूस्खलन और चट्टानों के गिरने की घटनाएं भी हुईं। धरली, जो ऐतिहासिक रूप से भी बाढ़ से प्रभावित रहा है, इस बार फिर से जलमग्न हो गया। स्थानीय लोगों के लिए, बाढ़ का आना कोई नई बात नहीं है; यह उनके जीवन का एक हिस्सा है, जो उनके दैनिक दिनचर्या और यहाँ तक कि कैलेंडर को भी प्रभावित करता है। वहीं, खेर गैड जैसी सहायक नदियाँ, जो आम तौर पर शांत रहती हैं, मूसलाधार बारिश के कारण उग्र हो गईं, उनकी गर्जना जीवन की सामान्य धड़कन को बाधित कर रही थी।

मुख्य बिंदु:**

  • भारी वर्षा: मानसून के दौरान या उससे पहले सामान्य से अधिक वर्षा।
  • भूस्खलन और चट्टानें गिरना: तीव्र ढलानों पर मिट्टी और चट्टानों का सरकना।
  • नदी का जलस्तर बढ़ना: विशेषकर भागीरथी और उसकी सहायक नदियाँ जैसे खेर गैड।
  • स्थानीय प्रभाव: धरली जैसे क्षेत्रों में बाढ़, जो जीवनशैली का हिस्सा बन चुकी है।
  • बुनियादी ढाँचे को नुकसान: सड़कें, पुल, घर और अन्य महत्वपूर्ण संरचनाओं का क्षतिग्रस्त होना।

कारणों का विश्लेषण: प्रकृति का खेल या मानव का हस्तक्षेप?

उत्तरकाशी जैसी घटनाओं के लिए किसी एक कारण को जिम्मेदार ठहराना मुश्किल है। यह अक्सर कई कारकों का एक जटिल मिश्रण होता है:

1. जलवायु परिवर्तन और चरम मौसमी घटनाएँ:

विश्व स्तर पर, जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक वर्षा, अचानक बाढ़ और भूस्खलन जैसी चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है। हिमालयी क्षेत्र, अपनी ऊँचाई और भूवैज्ञानिक संरचना के कारण, इन परिवर्तनों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील है। वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण ग्लेशियरों का पिघलना भी जल स्रोतों के व्यवहार को बदल रहा है।

2. भूवैज्ञानिक संवेदनशीलता:

हिमालय एक युवा पर्वत श्रृंखला है, और इसकी भूवैज्ञानिक संरचना अभी भी अस्थिर है। कई क्षेत्र सक्रिय भूकंपीय क्षेत्रों में स्थित हैं, और लगातार टेक्टोनिक गतिविधि पृथ्वी की पपड़ी को अस्थिर करती है। ढलानों पर मिट्टी की परतें अक्सर पतली होती हैं, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है, खासकर भारी बारिश के दौरान।

3. मानवजनित कारक (Human Activities):

यह वह क्षेत्र है जहाँ हम, एक समाज के रूप में, महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं:

  • अनियोजित शहरीकरण और निर्माण: पहाड़ी क्षेत्रों में बिना उचित योजना के, ढलानों पर निर्माण, जंगलों की कटाई, और नालियों को अवरुद्ध करना भूस्खलन और बाढ़ की संवेदनशीलता को बढ़ाता है। सड़क निर्माण के दौरान पहाड़ियों को काटना भी अस्थिरता पैदा करता है।
  • वनोन्मूलन: पेड़ और वनस्पति मिट्टी को बांधे रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वनों की कटाई से मिट्टी की पकड़ कमजोर होती है, जिससे कटाव और भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
  • अनुपयुक्त कृषि पद्धतियाँ: कुछ पारंपरिक कृषि पद्धतियाँ, यदि वैज्ञानिक तरीके से न की जाएँ, तो मिट्टी के कटाव में योगदान कर सकती हैं।
  • बुनियादी ढाँचे का निर्माण: नदियों के पास या संवेदनशील ढलानों पर पुल, बाँध और अन्य निर्माण कार्य स्थानीय जलविज्ञान और भूविज्ञान को प्रभावित कर सकते हैं।

“पहाड़ों में जीवन प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने का नाम है। जब यह तालमेल बिगड़ता है, चाहे वह प्रकृति के कारण हो या मानव की भूल के कारण, परिणाम विनाशकारी होते हैं।”

प्रभाव: जीवन, आजीविका और पारिस्थितिकी तंत्र पर संकट

उत्तरकाशी में बाढ़ और भूस्खलन जैसी घटनाओं के प्रभाव बहुआयामी और दूरगामी होते हैं:

1. जीवन और संपत्ति का नुकसान:

सबसे प्रत्यक्ष और दुखद प्रभाव मानव जीवन की हानि और संपत्ति का विनाश है। घर, पशुधन, खेतों को भारी नुकसान होता है।

2. आजीविका पर प्रभाव:

हिमालयी क्षेत्रों में, आजीविका अक्सर कृषि, पशुपालन, पर्यटन और स्थानीय व्यवसायों पर निर्भर करती है। बाढ़ और भूस्खलन इन सभी क्षेत्रों को बाधित करते हैं। सड़कें टूटने से कृषि उत्पादों को बाजार तक पहुँचाना मुश्किल हो जाता है, पर्यटन ठप हो जाता है, और छोटे व्यवसाय बंद हो जाते हैं।

3. बुनियादी ढाँचे का विनाश:

सड़कों, पुलों, संचार लाइनों और बिजली आपूर्ति को नुकसान पहुँचने से राहत और बचाव कार्य बाधित होते हैं और पुनर्निर्माण में लंबा समय लगता है। यह क्षेत्र को बाहरी दुनिया से काट देता है।

4. पारिस्थितिकीय प्रभाव:

  • मिट्टी का क्षरण: भूस्खलन से उपजाऊ मिट्टी का ऊपरी परत बह जाती है, जिससे भूमि बंजर हो जाती है।
  • जल स्रोतों का प्रदूषण: मलबे और तलछट के नदी में मिलने से पानी दूषित हो जाता है, जिससे जल स्रोतों की गुणवत्ता गिर जाती है।
  • जैव विविधता का ह्रास: भूस्खलन और बाढ़ से वनस्पति नष्ट होती है, जिससे वन्यजीवों के आवास प्रभावित होते हैं और जैव विविधता का नुकसान होता है।
  • भू-आकृतियों में परिवर्तन: नदियों के रास्ते बदल सकते हैं, और नई भू-आकृतियाँ (जैसे कि झीलें या खड्ड) बन सकती हैं, जो भविष्य में और भी खतरे पैदा कर सकती हैं।

5. सामाजिक-आर्थिक प्रभाव:

लगातार आपदाओं का सामना करने वाले समुदायों में मनोवैज्ञानिक तनाव, विस्थापन और गरीबी बढ़ सकती है। यह क्षेत्र के समग्र विकास को बाधित करता है।

चुनौतियाँ: हिमालयी प्रबंधन की जटिलता

उत्तरकाशी जैसी आपदाओं से निपटना कई अनूठी चुनौतियों से भरा है:

  1. भौगोलिक दुर्गमता: कई प्रभावित क्षेत्र दुर्गम हैं, जिससे राहत और बचाव कार्य मुश्किल हो जाता है।
  2. मौसम की अप्रत्याशितता: पहाड़ी इलाकों में मौसम तेजी से बदलता है, जिससे पूर्व चेतावनी प्रणालियों की प्रभावशीलता सीमित हो सकती है।
  3. संसाधनों की कमी: हिमालयी राज्यों के पास अक्सर बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचे के पुनर्निर्माण और दीर्घकालिक आपदा तैयारी के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं होते हैं।
  4. जागरूकता और अनुपालन: स्थानीय समुदायों और निर्माणकर्ताओं के बीच आपदा-अनुकूल प्रथाओं के बारे में जागरूकता की कमी और मौजूदा नियमों का पालन न करना एक बड़ी चुनौती है।
  5. प्रशासनिक समन्वय: विभिन्न सरकारी विभागों, स्थानीय निकायों और गैर-सरकारी संगठनों के बीच प्रभावी समन्वय स्थापित करना अक्सर जटिल होता है।
  6. लगातार खतरा: यह खतरा केवल एक घटना नहीं है; हिमालयी भूभाग और जलवायु परिवर्तन के कारण यह एक निरंतर खतरा बना हुआ है।

समाधान और आगे की राह: एक एकीकृत दृष्टिकोण

उत्तरकाशी की स्थिति से निपटने और भविष्य की आपदाओं को कम करने के लिए एक बहु-आयामी और एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है:

1. आपदा पूर्व तैयारी और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली:

  • उन्नत मौसम पूर्वानुमान: स्थानीय स्तर पर सटीक और समय पर मौसम पूर्वानुमान के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग।
  • भूस्खलन और बाढ़ की निगरानी: भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और सेंसर का उपयोग करके संवेदनशील क्षेत्रों की निरंतर निगरानी।
  • सामुदायिक स्तर पर जागरूकता: स्थानीय लोगों को खतरों, सुरक्षित स्थानों और निकासी प्रक्रियाओं के बारे में शिक्षित करना।
  • नियमित मॉक ड्रिल: आपदा प्रतिक्रिया क्षमताओं का परीक्षण और सुधार करने के लिए नियमित अभ्यास।

2. स्थायी विकास और भूमि उपयोग योजना:

  • कठोर भवन नियम: पहाड़ी क्षेत्रों के लिए भूकंप और भूस्खलन प्रतिरोधी भवन कोड विकसित करना और उन्हें सख्ती से लागू करना।
  • वन संरक्षण और वृक्षारोपण: बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान चलाना और वनों की कटाई को रोकना, विशेषकर संवेदनशील ढलानों पर।
  • पर्यावरण-अनुकूल निर्माण: सड़क और अन्य बुनियादी ढाँचे के निर्माण में पर्यावरण-अनुकूल तकनीकों का उपयोग करना।
  • भूमि उपयोग का युक्तिकरण: उन क्षेत्रों में निर्माण पर प्रतिबंध लगाना जो भूस्खलन या बाढ़ के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं।

3. जल प्रबंधन:

  • नदी तटों का सुदृढ़ीकरण: संवेदनशील नदी तटों पर उपयुक्त निर्माण कार्य करना।
  • बाढ़ नियंत्रण उपाय: छोटी चेक-डैम और जल निकासी प्रणालियों का निर्माण, जहाँ आवश्यक हो।
  • नदियों के मार्ग का अध्ययन: नदियों के प्राकृतिक व्यवहार का अध्ययन और उनके मार्ग में अनावश्यक हस्तक्षेप से बचना।

4. नीति और शासन:

  • आपदा प्रबंधन के लिए एक मजबूत संस्थागत ढाँचा: राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर स्पष्ट भूमिकाओं और जिम्मेदारियों के साथ।
  • अंतर-विभागीय समन्वय: आपदा प्रबंधन, वन, पर्यावरण, जल संसाधन, और सड़क परिवहन जैसे विभिन्न विभागों के बीच प्रभावी समन्वय।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) और रिमोट सेंसिंग जैसी तकनीकों का उपयोग जोखिम मूल्यांकन और आपदा प्रबंधन के लिए।
  • दीर्घकालिक पुनर्वास योजनाएँ: विस्थापित समुदायों के लिए स्थायी पुनर्वास और आजीविका पुनर्स्थापना कार्यक्रम।

5. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और अनुसंधान:

हिमालयी क्षेत्र की अनूठी चुनौतियों को समझने और समाधान खोजने के लिए अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थानों और सरकारों के साथ सहयोग करना महत्वपूर्ण है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर निरंतर शोध और अनुकूलन रणनीतियाँ विकसित करना आवश्यक है।

निष्कर्ष: हिमालयी भविष्य के लिए एक साझा जिम्मेदारी

उत्तरकाशी में जो कुछ हुआ, वह केवल एक स्थानीय घटना नहीं है; यह हिमालयी क्षेत्र के सामने आने वाली व्यापक चुनौतियों का एक प्रतिबिंब है। ‘धरली में कैलेंडर बाढ़ से लिखा जाता है’ और ‘खेर गैड की गर्जना से घड़ी का टिक-टिक चलता है’ – ये वाक्यांश हमें याद दिलाते हैं कि इन पहाड़ों में जीवन प्रकृति की लय के साथ कितनी गहराई से जुड़ा हुआ है। लेकिन जब यह लय विनाशकारी बन जाती है, तो हमें अपनी भूमिका पर विचार करना होगा।

यह सुनिश्चित करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हिमालयी क्षेत्र के लोग सुरक्षित रहें, उनकी आजीविका सुरक्षित रहे, और इस अनमोल पारिस्थितिकी तंत्र को भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया जा सके। इसके लिए हमें विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाना होगा, विज्ञान-आधारित नीतियों को अपनाना होगा, और सबसे महत्वपूर्ण बात, प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर रहना सीखना होगा। UPSC उम्मीदवारों के लिए, इन मुद्दों की गहरी समझ न केवल परीक्षा में सफल होने के लिए, बल्कि एक जिम्मेदार सिविल सेवक के रूप में देश की सेवा करने के लिए भी महत्वपूर्ण है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: उत्तरकाशी क्षेत्र में हाल की आपदाओं के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
    1. हिमालयी क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं।
    2. अनियोजित शहरीकरण और वनों की कटाई भूस्खलन के जोखिम को बढ़ाती है।
    3. पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माण के लिए कठोर भू-तकनीकी मूल्यांकन आवश्यक है।
    उपरोक्त में से कौन से कथन सत्य हैं?
    (a) केवल 1 और 2
    (b) केवल 2 और 3
    (c) केवल 1 और 3
    (d) 1, 2 और 3
    उत्तर: (d) 1, 2 और 3
    व्याख्या: तीनों कथन सत्य हैं। हिमालयी क्षेत्र अपनी भूवैज्ञानिक प्रकृति और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण अत्यधिक संवेदनशील हैं। अनियोजित निर्माण और वनोन्मूलन भूस्खलन जैसी आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता को बढ़ाते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में किसी भी निर्माण से पहले विस्तृत भू-तकनीकी (geotechnical) मूल्यांकन अनिवार्य है।
  2. प्रश्न 2: ‘खेर गैड’ जैसी सहायक नदियाँ, जो उत्तरकाशी क्षेत्र में देखी गईं, आम तौर पर किस प्रकार की नदी प्रणाली का हिस्सा होती हैं?
    (a) प्रायद्वीपीय भारत की मैदानी नदियाँ
    (b) हिमालयी जलग्रहण क्षेत्र की हिमनदी या वर्षा-आधारित नदियाँ
    (c) तटीय क्षेत्रों की लैगून नदियाँ
    (d) रेगिस्तानी क्षेत्रों की मौसमी नदियाँ
    उत्तर: (b) हिमालयी जलग्रहण क्षेत्र की हिमनदी या वर्षा-आधारित नदियाँ
    व्याख्या: हिमालयी क्षेत्रों में ‘गैड’ या ‘खड्ड’ शब्द अक्सर छोटी, तेज़ बहने वाली सहायक नदियों के लिए प्रयोग किया जाता है जो मुख्य रूप से हिमनदों के पिघलने या भारी वर्षा से पोषित होती हैं।
  3. प्रश्न 3: निम्नलिखित में से कौन सा भूस्खलन के लिए एक मानवजनित (anthropogenic) कारण नहीं है?
    (a) ढलानों पर पेड़ों की कटाई
    (b) सड़कों के निर्माण के लिए पहाड़ियों को काटना
    (c) भारी वर्षा
    (d) सीवेज निपटान के लिए जल निकासी प्रणालियों का कुप्रबंधन
    उत्तर: (c) भारी वर्षा
    व्याख्या: भारी वर्षा भूस्खलन के लिए एक प्राकृतिक या पर्यावरणीय कारक है, न कि मानवजनित। अन्य विकल्प (a, b, d) सीधे तौर पर मानवीय गतिविधियों से जुड़े हैं जो भूस्खलन की संभावना को बढ़ाते हैं।
  4. प्रश्न 4: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की भूमिका के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा सबसे उपयुक्त है?
    (a) केवल आपदाओं के बाद राहत और पुनर्वास का समन्वय करना।
    (b) आपदाओं को कम करने, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति के लिए एक नीति ढाँचा विकसित करना और लागू करना।
    (c) केवल प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को स्थापित करना।
    (d) आपदा प्रभावित क्षेत्रों में सीधे बचाव अभियान चलाना।
    उत्तर: (b) आपदाओं को कम करने, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति के लिए एक नीति ढाँचा विकसित करना और लागू करना।
    व्याख्या: NDMA की भूमिका व्यापक है, जिसमें सभी चरणों (शमन, तैयारी, प्रतिक्रिया, पुनर्प्राप्ति) के लिए नीतियों और योजनाओं का निर्माण और कार्यान्वयन शामिल है।
  5. प्रश्न 5: धरली जैसे हिमालयी समुदायों के लिए बाढ़ के संबंध में ‘कैलेंडर बाढ़ से लिखा जाता है’ इस कथन का क्या अर्थ है?
    (a) समुदाय के लोग अपना कैलेंडर केवल बाढ़ की तारीखों के अनुसार बनाते हैं।
    (b) बाढ़ का आना समुदाय के जीवन चक्र, आजीविका और दैनिक गतिविधियों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है, जैसे कैलेंडर का समय निर्धारण।
    (c) बाढ़ के कारण केवल कुछ ही दिन जीने योग्य होते हैं।
    (d) समुदाय के लोग बाढ़ से बचने के लिए विशेष कैलेंडर का उपयोग करते हैं।
    उत्तर: (b) बाढ़ का आना समुदाय के जीवन चक्र, आजीविका और दैनिक गतिविधियों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है, जैसे कैलेंडर का समय निर्धारण।
    व्याख्या: यह कथन दर्शाता है कि बाढ़ इतनी बार और इतनी गंभीरता से आती है कि यह क्षेत्र के लोगों की जीवनशैली, कृषि चक्र और अन्य महत्वपूर्ण गतिविधियों को निर्धारित करती है, मानो उनका पूरा जीवन ही बाढ़ के इर्द-गिर्द घूमता हो।
  6. प्रश्न 6: हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की संवेदनशीलता का सबसे अच्छा वर्णन करने वाला शब्द कौन सा है?
    (a) आत्मनिर्भर (Self-sufficient)
    (b) भंगुर (Fragile)
    (c) स्थिर (Stable)
    (d) अछूता (Untouched)
    उत्तर: (b) भंगुर (Fragile)
    व्याख्या: हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र अपनी युवा भूविज्ञान, तीव्र ढलानों और विशिष्ट जलवायु के कारण अत्यंत भंगुर है, जो इसे पर्यावरणीय परिवर्तनों और मानव हस्तक्षेप के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है।
  7. प्रश्न 7: उत्तरकाशी जैसी आपदाओं से निपटने के लिए निम्नलिखित में से कौन सी रणनीति सबसे महत्वपूर्ण है?
    (a) केवल आधुनिक तकनीक का उपयोग करना।
    (b) केवल स्थानीय पारंपरिक ज्ञान पर निर्भर रहना।
    (c) आधुनिक तकनीक और स्थानीय ज्ञान का एकीकरण।
    (d) अंतर्राष्ट्रीय सहायता पर पूरी तरह निर्भर रहना।
    उत्तर: (c) आधुनिक तकनीक और स्थानीय ज्ञान का एकीकरण।
    व्याख्या: प्रभावी आपदा प्रबंधन के लिए, पारंपरिक ज्ञान (जैसे स्थानीय भूमि उपयोग की समझ) को आधुनिक वैज्ञानिक और तकनीकी उपकरणों (जैसे उपग्रह इमेजिंग, बेहतर पूर्वानुमान) के साथ जोड़ना सबसे प्रभावी होता है।
  8. प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन सी संस्था भारत में आपदा प्रबंधन से संबंधित है?
    (a) राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF)
    (b) राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)
    (c) राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA)
    (d) उपरोक्त सभी
    उत्तर: (d) उपरोक्त सभी
    व्याख्या: NDRF प्रतिक्रिया बल है, NDMA नीति-निर्माता और नीति-आधार है, और SDMA राज्य स्तर पर इसी तरह की भूमिका निभाता है। ये सभी भारत में आपदा प्रबंधन के एक एकीकृत ढाँचे का हिस्सा हैं।
  9. प्रश्न 9: उत्तरकाशी में खेर गैड जैसी नदियों का उग्र व्यवहार किसका सूचक हो सकता है?
    (a) केवल नदी के जल की उच्च गुणवत्ता।
    (b) जलग्रहण क्षेत्र में वनों की पर्याप्तता।
    (c) अत्यधिक वर्षा, तीव्र पिघलना, या जलग्रहण क्षेत्र में अव्यवस्थित भूमि उपयोग।
    (d) नदी के डेल्टा का विकास।
    उत्तर: (c) अत्यधिक वर्षा, तीव्र पिघलना, या जलग्रहण क्षेत्र में अव्यवस्थित भूमि उपयोग।
    व्याख्या: सहायक नदियों का उग्र व्यवहार आम तौर पर जल की मात्रा में अचानक वृद्धि के कारण होता है, जो अत्यधिक वर्षा, बर्फ/ग्लेशियर पिघलने या जलग्रहण क्षेत्र में भूस्खलन जैसे कारकों से जुड़ा हो सकता है।
  10. प्रश्न 10: हिमालयी क्षेत्र में वनोन्मूलन के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
    1. यह भूस्खलन और मिट्टी के कटाव को बढ़ाता है।
    2. यह स्थानीय जलवायु को ठंडा करता है।
    3. यह जैव विविधता के नुकसान का कारण बनता है।
    उपरोक्त कथनों में से कौन सा सत्य है?
    (a) केवल 1 और 2
    (b) केवल 1 और 3
    (c) केवल 2 और 3
    (d) 1, 2 और 3
    उत्तर: (b) केवल 1 और 3
    व्याख्या: वन वनों की कटाई भूस्खलन और मिट्टी के कटाव को बढ़ाती है और जैव विविधता के लिए आवास प्रदान करती है, इसलिए इसका नुकसान जैव विविधता के नुकसान का कारण बनता है। हालाँकि, वनों की कटाई से स्थानीय जलवायु पर तापन (warming) प्रभाव पड़ सकता है, न कि शीतलन।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1: उत्तरकाशी जैसी हालिया आपदाओं के आलोक में, हिमालयी क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं के लिए जलवायु परिवर्तन और मानवजनित कारकों के सहक्रियात्मक (synergistic) प्रभाव का विश्लेषण करें। इन जोखिमों को कम करने के लिए एक एकीकृत और स्थायी दृष्टिकोण का प्रस्ताव दें। (लगभग 250 शब्द)
  2. प्रश्न 2: “पहाड़ों में जीवन प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने का नाम है।” इस कथन के प्रकाश में, हिमालयी समुदायों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों और उनकी आजीविका पर आपदाओं के प्रभाव का वर्णन करें। आपदा प्रबंधन में स्थानीय ज्ञान और पारंपरिक प्रथाओं के महत्व पर चर्चा करें। (लगभग 150 शब्द)
  3. प्रश्न 3: भारत में आपदा प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की भूमिका और कार्यों का विस्तार से वर्णन करें। हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन और बाढ़ जैसी आपदाओं से निपटने में NDMA की नीतियों और पहलों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करें। (लगभग 250 शब्द)
  4. प्रश्न 4: हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन और बाढ़ के खतरों को कम करने के लिए, सरकार द्वारा उठाए जाने वाले विभिन्न निवारक (preventive), शमन (mitigative) और तैयारी (preparedness) उपायों की विस्तृत चर्चा करें। इसमें नीतिगत, तकनीकी और सामुदायिक-आधारित दृष्टिकोण शामिल होने चाहिए। (लगभग 250 शब्द)

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