आपदा-ग्रस्त उत्तराखंड में दिवाली: सरकार, समाज और मीडिया की भूमिका पर एक गहरा विश्लेषण
चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
हाल ही में, उत्तराखंड के मजाड़ा गांव में एक मार्मिक दृश्य देखने को मिला। जहां एक ओर देश भर में दिवाली का उल्लास मनाया जा रहा था, वहीं दूसरी ओर इस गांव के लोग, जो हाल ही में एक गंभीर आपदा की चपेट में आए थे, मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी के साथ अपनी पीड़ा और आशाओं के बीच दिवाली मना रहे थे। अमर उजाला समाचार पत्र ने इस गांव की व्यथा को प्रमुखता से उठाकर सरकारी तंत्र और समाज का ध्यान आकर्षित किया था। यह घटना न केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी का प्रतीक है, बल्कि यह भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन, पुनर्वास, सरकारी प्रतिक्रिया और मीडिया की भूमिका जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक गहन विमर्श की आवश्यकता को भी रेखांकित करती है।
आपदा की दस्तक: मजाड़ा की कहानी (The Knock of Disaster: The Story of Majara)
उत्तराखंड, अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ, भूस्खलन, बाढ़, बादल फटने और भूकंप जैसी विनाशकारी आपदाओं का भी सामना करता रहता है। मजाड़ा गांव भी ऐसी ही एक त्रासदी का शिकार हुआ, जिसने न केवल लोगों के घरों को तबाह किया, बल्कि उनकी आजीविका और जीवन शैली को भी झकझोर दिया। कल्पना कीजिए, किसी परिवार के लिए, जिसने वर्षों की मेहनत से अपना घर बनाया हो, उसे एक पल में बहते पानी या गिरती चट्टानों में समाते देखना कितना हृदय विदारक होगा। दिवाली, जो रोशनी, खुशियों और परिवार के साथ मनाने का पर्व है, ऐसे में उन्हीं लोगों के लिए अत्यंत कठिन हो जाती है, जिनके पास इस पर्व को मनाने के लिए न तो सुरक्षित आश्रय होता है और न ही मन की शांति।
“जब हम अपने जड़ों से उखड़ जाते हैं, तो हर त्योहार, हर उत्सव, एक कड़वी याद बन जाता है।” – मजाड़ा के एक स्थानीय निवासी (काल्पनिक उद्धरण)
यह केवल मजाड़ा की कहानी नहीं है; यह भारत के कई ऐसे क्षेत्रों की कहानी है जो लगातार प्राकृतिक आपदाओं से जूझते रहते हैं। पर्वतीय राज्यों में, जहाँ भौगोलिक परिस्थितियाँ हमेशा चुनौतीपूर्ण रहती हैं, आपदाओं का प्रभाव अधिक गंभीर होता है और उनका प्रबंधन भी अधिक जटिल।
मुख्यमंत्री की उपस्थिति: आशा की एक किरण (The Chief Minister’s Presence: A Ray of Hope)
जब मुख्यमंत्री स्वयं आपदा-ग्रस्त क्षेत्र में जाकर, लोगों के साथ दिवाली मनाते हैं, तो यह एक शक्तिशाली संदेश देता है। यह न केवल पीड़ितों को यह महसूस कराता है कि वे अकेले नहीं हैं, बल्कि यह सरकार की प्रतिबद्धता और संवेदना को भी दर्शाता है। मुख्यमंत्री धामी की मजाड़ा में उपस्थिति, प्रतीकात्मक रूप से, उनके शासन के लोकाचार को दर्शाती है – ‘जनता की सेवा, सर्वोपरि’।
- सहानुभूति और समर्थन: यह दर्शाता है कि सरकार पीड़ितों के दर्द को समझती है और उनके साथ खड़ी है।
- जवाबदेही का प्रतीक: यह अधिकारियों को प्रभावित क्षेत्र की समस्याओं को सीधे जानने और उनके समाधान के लिए प्रेरित करता है।
- पुनर्निर्माण का संकल्प: ऐसे कदम भविष्य में पुनर्वास और पुनर्निर्माण के प्रयासों के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करते हैं।
हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि ऐसी उपस्थिति केवल एक प्रतीकात्मक कृत्य बनकर न रह जाए। इसके पीछे एक ठोस, प्रभावी और दीर्घकालिक पुनर्वास योजना होनी चाहिए।
अमर उजाला की भूमिका: मीडिया की कलम, समाज की आवाज़ (Amar Ujala’s Role: The Pen of Media, The Voice of Society)
अमर उजाला जैसे विश्वसनीय समाचार पत्रों की भूमिका इस संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। जब वे मजाड़ा जैसी जगहों की पीड़ा को उजागर करते हैं, तो वे केवल समाचार नहीं दे रहे होते, बल्कि वे:
- जवाबदेही तय करते हैं: सरकार और संबंधित एजेंसियों को उनकी जिम्मेदारियों का अहसास कराते हैं।
- जन जागरूकता बढ़ाते हैं: आम जनता को आपदाओं के प्रभाव और पीड़ितों की दुर्दशा से अवगत कराते हैं।
- नीतिगत बदलाव की वकालत करते हैं: ऐसे मुद्दे अक्सर नीति निर्माताओं को स्थायी समाधान खोजने के लिए प्रेरित करते हैं।
- पीड़ितों को मंच प्रदान करते हैं: उन्हें अपनी बात कहने और अपनी समस्याओं को व्यापक जनसमूह तक पहुँचाने का अवसर देते हैं।
यह ‘चौथी सत्ता’ का जीवंत उदाहरण है, जो समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में अपनी भूमिका निभाता है। जब मीडिया अपनी जिम्मेदारी निभाता है, तो वह न केवल सूचना का प्रसार करता है, बल्कि न्याय और करुणा की आवाज़ भी बनता है।
आपदा प्रबंधन: क्यों, क्या, और कैसे? (Disaster Management: Why, What, and How?)
मजाड़ा जैसी घटनाओं से हम आपदा प्रबंधन की प्रणाली पर विचार करने के लिए प्रेरित होते हैं। भारत में, आपदा प्रबंधन एक बहु-स्तरीय प्रक्रिया है, जिसमें रोकथाम, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति (Prevention, Preparedness, Response, and Recovery) शामिल हैं।
1. रोकथाम (Prevention):
यह आपदाओं के प्रभाव को कम करने या उन्हें होने से रोकने के उपाय हैं। इसमें शामिल हैं:
- जोखिम वाले क्षेत्रों का मानचित्रण और निगरानी।
- पर्यावरण-अनुकूल निर्माण नियमों का पालन।
- वनरोपण और भूस्खलन रोकथाम के उपाय।
- जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के प्रयास।
चुनौती: अक्सर, आर्थिक विकास की दौड़ में रोकथाम के उपायों को नजरअंदाज कर दिया जाता है, जिससे भविष्य में बड़े नुकसान का खतरा बढ़ जाता है।
2. तैयारी (Preparedness):
यह आपदाओं के घटित होने पर प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया देने के लिए पूर्व-नियोजित गतिविधियाँ हैं।
- आपातकालीन प्रतिक्रिया टीमों का गठन और प्रशिक्षण।
- सार्वजनिक जागरूकता अभियान और मॉक ड्रिल।
- सुरक्षित आश्रयों का निर्माण और आवश्यक सामग्री का भंडारण।
- संचार प्रणालियों को मजबूत करना।
उदाहरण: जापान जैसे देश अपनी तैयारी के लिए विश्व स्तर पर जाने जाते हैं, जहाँ भूकंपरोधी भवन और प्रभावी अर्ली-वार्मिंग सिस्टम आम हैं।
3. प्रतिक्रिया (Response):
यह आपदा घटित होने के तुरंत बाद की जाने वाली कार्रवाई है।
- तत्काल बचाव और राहत कार्य।
- चिकित्सा सहायता पहुँचाना।
- आवश्यक सेवाओं (जैसे पानी, भोजन, बिजली) की बहाली।
- सुरक्षित स्थानों पर लोगों को पहुंचाना।
चुनौती: अक्सर, जटिल भौगोलिक परिस्थितियों और बुनियादी ढांचे की कमी के कारण प्रतिक्रिया कार्य प्रभावित होता है, जैसा कि हिमालयी क्षेत्रों में अक्सर देखा जाता है।
4. पुनर्प्राप्ति (Recovery) और पुनर्निर्माण (Rehabilitation):**
यह सबसे लंबी और सबसे महत्वपूर्ण चरण है, जिसमें सामान्य स्थिति बहाल की जाती है।
- क्षतिग्रस्त घरों और बुनियादी ढांचे का पुनर्निर्माण।
- आजीविका के साधनों को फिर से स्थापित करना (जैसे कृषि, व्यवसाय)।
- मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करना।
- दीर्घकालिक पुनर्वास योजनाएं बनाना।
मजाड़ा का संदर्भ: यह वह चरण है जहाँ मजाड़ा के लोगों को सबसे अधिक सहायता की आवश्यकता है। यह केवल ईंट-पत्थर का निर्माण नहीं, बल्कि जीवन को पुनः पटरी पर लाने की प्रक्रिया है।
पुनर्वास और पुनर्निर्माण की चुनौतियाँ (Challenges in Rehabilitation and Reconstruction)
मजाड़ा जैसे गांवों में पुनर्वास और पुनर्निर्माण के मार्ग में कई बाधाएँ आती हैं:
- भौगोलिक बाधाएँ: पर्वतीय क्षेत्रों में निर्माण और परिवहन कठिन और महंगा होता है। दुर्गम स्थान राहत और पुनर्निर्माण दल के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करते हैं।
- वित्तीय बाधाएँ: पीड़ितों को मुआवजा देने और बड़े पैमाने पर पुनर्निर्माण के लिए भारी वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है। कई बार सरकारी बजट और आवंटित धन अपर्याप्त साबित होते हैं।
- पर्यावरणीय चिंताएँ: पुनर्निर्माण के दौरान, नए निर्माणों को टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल बनाना महत्वपूर्ण है। पुराने तरीकों का दोहराव भविष्य के लिए समस्याएँ पैदा कर सकता है।
- स्थानीय समुदायों की भागीदारी: पुनर्वास योजनाओं में स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। उनकी आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं को समझना आवश्यक है, न कि केवल ऊपर से थोपी गई योजनाएं लागू करना।
- भूमि अधिग्रहण और योजना: अक्सर, पुनर्वास के लिए नई भूमि की पहचान और अधिग्रहण एक जटिल प्रक्रिया होती है, जिसमें समय लगता है।
- स्थायी आजीविका: केवल घर बना देना काफी नहीं है; लोगों को उनकी आजीविका के साधन भी वापस दिलाने होंगे, चाहे वह कृषि हो, पशुपालन हो, या कोई अन्य व्यवसाय।
- भ्रष्टाचार और अक्षमता: दुर्भाग्य से, कई पुनर्वास परियोजनाओं में भ्रष्टाचार और अक्षमता भी बाधाएँ उत्पन्न करती हैं, जिससे संसाधनों का सही उपयोग नहीं हो पाता।
“आपदाएँ हमें कमजोर कर सकती हैं, लेकिन उनका सामना करने की हमारी क्षमता ही हमें मजबूत बनाती है। असली चुनौती इस क्षमता को सरकारी नीतियों और जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन में बदलना है।”
सरकार, समाज और मीडिया: एक सहक्रियात्मक दृष्टिकोण (Government, Society, and Media: A Synergistic Approach)
मजाड़ा की कहानी एक बार फिर इस बात पर जोर देती है कि आपदा प्रबंधन और पुनर्वास केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है। इसमें समाज के सभी वर्गों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है:
- सरकार: सरकार की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। उसे न केवल तत्काल राहत प्रदान करनी होती है, बल्कि दीर्घकालिक, टिकाऊ और समावेशी पुनर्वास नीतियां भी बनानी होती हैं। नीतियों का प्रभावी कार्यान्वयन, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना उसका कर्तव्य है।
- समाज: नागरिक समाज संगठन, गैर-सरकारी संगठन (NGOs), स्थानीय समुदाय और प्रत्येक नागरिक को भी इसमें अपनी भूमिका निभानी चाहिए। दान, स्वयंसेवा, और पीड़ितों के साथ भावनात्मक जुड़ाव महत्वपूर्ण हो सकता है।
- मीडिया: जैसा कि अमर उजाला ने किया, मीडिया को जमीनी हकीकत को सामने लाने, सवालों को उठाने और सरकारी कार्यों की निगरानी करने की अपनी भूमिका को लगातार निभाना चाहिए। यह जन जागरूकता पैदा करने और नीतिगत सुधारों को प्रेरित करने का एक शक्तिशाली माध्यम है।
जब ये तीनों शक्तियाँ मिलकर काम करती हैं, तभी हम मजाड़ा जैसे गांवों में वास्तविक और स्थायी बदलाव ला सकते हैं।
आगे की राह: स्थायी समाधान की ओर (The Way Forward: Towards Sustainable Solutions)
उत्तराखंड और भारत के अन्य आपदा-प्रवण क्षेत्रों के लिए, हमें निम्नलिखित पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए:
- आपदा-रोधी अवसंरचना (Disaster-Resilient Infrastructure): घरों, सड़कों, पुलों और अन्य महत्वपूर्ण अवसंरचनाओं का निर्माण इस तरह से किया जाना चाहिए कि वे प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर सकें।
- सामुदायिक-आधारित आपदा प्रबंधन (Community-Based Disaster Management): स्थानीय समुदायों को प्रशिक्षण और संसाधन प्रदान किए जाने चाहिए ताकि वे आपदाओं का सामना करने के लिए स्वयं तैयार रहें।
- अर्ली-वार्मिंग सिस्टम (Early-Warning Systems): नवीनतम तकनीक का उपयोग करके प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को विकसित और कार्यान्वित करना, ताकि लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया जा सके।
- पारदर्शी और कुशल राहत वितरण: यह सुनिश्चित करना कि सरकारी सहायता और मुआवजे सीधे जरूरतमंदों तक पहुँचें, और इसमें किसी भी प्रकार की लीकेज या भ्रष्टाचार को रोका जाए।
- पर्यावरणीय संवेदनशीलता: विकास और पुनर्निर्माण परियोजनाओं में पर्यावरण की सुरक्षा को प्राथमिकता देना, ताकि भविष्य में ऐसी आपदाओं की पुनरावृत्ति को रोका जा सके।
- जलवायु परिवर्तन अनुकूलन (Climate Change Adaptation): जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों को देखते हुए, हमें अपनी नीतियों और योजनाओं में अनुकूलन रणनीतियों को शामिल करना होगा।
- लचीली और अनुकूली नीतियाँ: ऐसी नीतियाँ बनाना जो बदलती परिस्थितियों के अनुकूल हो सकें और विभिन्न प्रकार की आपदाओं से निपटने में सक्षम हों।
मजाड़ा में मनाई गई दिवाली, भले ही दुःख और कठिनाई के बीच थी, लेकिन इसने हमें कई महत्वपूर्ण सबक सिखाए हैं। इसने हमें सरकार की भूमिका, मीडिया के महत्व और समाज के सामर्थ्य की याद दिलाई है। अब समय आ गया है कि हम इन पाठों को आत्मसात करें और उन लोगों के लिए एक सुरक्षित, स्थायी और गरिमापूर्ण भविष्य का निर्माण करें, जिन्होंने सब कुछ खो दिया है। यह केवल एक गांव की कहानी नहीं है, बल्कि यह भारत की सामूहिक जिम्मेदारी और क्षमता का प्रतीक है कि हम हर भारतीय को, चाहे वह कहीं भी रहता हो, सुरक्षा और गरिमा के साथ जीवन जीने का अवसर दें।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न: भारत में आपदा प्रबंधन से संबंधित निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की स्थापना आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत की गई थी।
2. NDMA का अध्यक्ष भारत का गृह मंत्री होता है।
3. राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) का गठन NDMA की तर्ज पर राज्यों में किया जाता है।
उपरोक्त में से कौन से कथन सही हैं?
(a) केवल 1
(b) 1 और 3
(c) 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
व्याख्या: कथन 1 सही है। कथन 2 गलत है, क्योंकि NDMA का अध्यक्ष प्रधान मंत्री होता है। कथन 3 सही है, जो NDMA की तरह राज्य स्तर पर कार्य करता है। - प्रश्न: आपदा प्रबंधन के ‘तैयारी’ (Preparedness) चरण में निम्नलिखित में से कौन सी गतिविधि शामिल है?
(a) तत्काल बचाव कार्य
(b) राहत शिविरों का आयोजन
(c) सार्वजनिक जागरूकता अभियान
(d) स्थायी आवास का निर्माण
उत्तर: (c)
व्याख्या: तैयारी चरण में जोखिमों के बारे में जागरूकता फैलाना, मॉक ड्रिल आयोजित करना और आपातकालीन योजनाओं का निर्माण शामिल है। तत्काल बचाव ‘प्रतिक्रिया’ (Response) का हिस्सा है, जबकि राहत शिविर और स्थायी आवास ‘प्रतिक्रिया’ और ‘पुनर्प्राप्ति’ (Recovery) के चरण में आते हैं। - प्रश्न: भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के तहत आपदा पीड़ितों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए राज्य सरकारों को निर्देश दिए जा सकते हैं?
(a) अनुच्छेद 275
(b) अनुच्छेद 282
(c) अनुच्छेद 300A
(d) अनुच्छेद 360
उत्तर: (b)
व्याख्या: अनुच्छेद 282, संघ या राज्य द्वारा अपने सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए अनुदान देने की शक्ति से संबंधित है। राज्य सरकारें अक्सर आपदा राहत के लिए केंद्र से अनुदान प्राप्त करती हैं या अपने स्वयं के धन का उपयोग करती हैं। अनुच्छेद 275 सामान्य प्रयोजनों के लिए अनुदान से संबंधित है, 300A संपत्ति के अधिकार से, और 360 वित्तीय आपातकाल से। - प्रश्न: ‘आपदा-रोधी अवसंरचना’ (Disaster-Resilient Infrastructure) से क्या तात्पर्य है?
(a) ऐसी अवसंरचना जो केवल प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिए डिज़ाइन की गई हो।
(b) ऐसी अवसंरचना जो भूकंप, बाढ़, चक्रवात आदि जैसी आपदाओं के प्रभाव को झेलने और सामान्य कार्यप्रणाली को बनाए रखने में सक्षम हो।
(c) ऐसी अवसंरचना जो केवल उच्च तकनीक वाली हो।
(d) ऐसी अवसंरचना जो केवल शहरी क्षेत्रों के लिए प्रासंगिक हो।
उत्तर: (b)
व्याख्या: आपदा-रोधी अवसंरचना का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वह आपदाओं के बावजूद कार्यात्मक बनी रहे या कम से कम नुकसान के साथ कार्यप्रणाली को पुनः प्राप्त कर सके। - प्रश्न: ‘राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल’ (NDRF) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. NDRF का गठन आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत किया गया है।
2. NDRF का नेतृत्व महानिदेशक (DG) रैंक का एक अधिकारी करता है।
3. NDRF को मुख्य रूप से प्राकृतिक आपदाओं और मानव निर्मित आपदाओं में विशेषीकृत बचाव कार्यों के लिए तैनात किया जाता है।
उपरोक्त में से कौन से कथन सही हैं?
(a) केवल 1
(b) 1 और 3
(c) 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
व्याख्या: तीनों कथन NDRF के संबंध में सही हैं। - प्रश्न: हाल के वर्षों में, उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्यों में भूस्खलन की घटनाओं में वृद्धि के लिए निम्नलिखित में से कौन से कारक संभावित रूप से जिम्मेदार रहे हैं?
1. अनियोजित शहरीकरण और निर्माण गतिविधियाँ।
2. वनों की कटाई और वन आवरण में कमी।
3. मानसून की तीव्रता में वृद्धि और अत्यधिक वर्षा।
4. भूकंपीय गतिविधि में अचानक वृद्धि।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) 1, 2 और 3
(c) 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (b)
व्याख्या: अनियोजित निर्माण, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा की तीव्रता में वृद्धि भूस्खलन के प्रमुख कारण हैं। हालांकि भूकंपीय गतिविधि भूस्खलन को ट्रिगर कर सकती है, लेकिन हाल के वर्षों में ‘घटनाओं में वृद्धि’ का मुख्य कारण पहले तीन कारक माने जाते हैं। - प्रश्न: ‘आपदा के बाद की मानसिक स्वास्थ्य सहायता’ (Post-Disaster Mental Health Support) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा सबसे महत्वपूर्ण है?
(a) केवल गंभीर रूप से पीड़ित व्यक्तियों को सहायता प्रदान करना।
(b) केवल तत्काल राहत के बाद सहायता देना।
(c) पीड़ितों को संवेदनशीलता, गोपनीयता और निरंतर सहायता के साथ मनोवैज्ञानिक प्राथमिक उपचार (Psychological First Aid) प्रदान करना।
(d) सहायता को केवल भौतिक पुनर्वास तक सीमित रखना।
उत्तर: (c)
व्याख्या: मनोवैज्ञानिक प्राथमिक उपचार (PFA) एक मानवीय, सहायक और सामाजिक दृष्टिकोण है जो संकट से प्रभावित लोगों की मदद करता है। यह गैर-दखलंदाजी, आदरपूर्ण और सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त होना चाहिए। - प्रश्न: ‘पुनर्प्राप्ति’ (Recovery) चरण में, निम्नलिखित में से किस पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाता है?
(a) आपदा को रोकना।
(b) तत्काल बचाव और राहत।
(c) सामान्य जीवन की बहाली और पुनर्निर्माण।
(d) आपातकालीन संचार की स्थापना।
उत्तर: (c)
व्याख्या: पुनर्प्राप्ति चरण का मुख्य उद्देश्य क्षतिग्रस्त समुदायों और अर्थव्यवस्थाओं को सामान्य स्थिति में वापस लाना और भविष्य की आपदाओं के लिए बेहतर ढंग से तैयार होना है। - प्रश्न: किसी राष्ट्र में मीडिया की ‘चौथी सत्ता’ (Fourth Estate) के रूप में भूमिका का क्या अर्थ है?
(a) यह सरकार का एक औपचारिक अंग है।
(b) यह जनता के प्रति सरकार की जवाबदेही तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(c) इसका मुख्य कार्य केवल मनोरंजन प्रदान करना है।
(d) यह हमेशा सरकार के फैसलों का समर्थन करता है।
उत्तर: (b)
व्याख्या: ‘चौथी सत्ता’ के रूप में मीडिया का कार्य सरकार की नीतियों और कार्यों की निगरानी करना, जनता को सूचित करना और जवाबदेही सुनिश्चित करना है। - प्रश्न: सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के संदर्भ में, आपदा प्रबंधन का निम्नलिखित में से किस लक्ष्य से सीधा संबंध है?
(a) SDG 1: कोई गरीबी नहीं।
(b) SDG 11: सतत शहर और समुदाय।
(c) SDG 13: जलवायु कार्रवाई।
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर: (d)
व्याख्या: आपदा प्रबंधन सीधे तौर पर गरीबी में कमी (SDG 1), सतत शहरों (SDG 11), और जलवायु कार्रवाई (SDG 13) जैसे लक्ष्यों से जुड़ा हुआ है, क्योंकि यह समुदायों को लचीला बनाने और झटकों से उबरने में मदद करता है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न: भारत में आपदा प्रबंधन एक बहु-आयामी चुनौती है। मजाड़ा जैसे आपदा-ग्रस्त क्षेत्रों में प्रभावी पुनर्वास और पुनर्निर्माण के लिए आवश्यक सरकारी नीतियों, सामुदायिक भागीदारी और मीडिया की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। (250 शब्द)
- प्रश्न: ‘आपदा-रोधी अवसंरचना’ (Disaster-Resilient Infrastructure) की अवधारणा की व्याख्या करें और इसके महत्व को उत्तराखंड जैसे भू-संवेदनशील क्षेत्रों के संदर्भ में उजागर करें। ऐसी अवसंरचना के निर्माण में प्रमुख बाधाएँ क्या हैं? (150 शब्द)
- प्रश्न: “मीडिया, विशेष रूप से प्रिंट मीडिया, को अक्सर ‘चौथी सत्ता’ के रूप में जाना जाता है। यह उपाधि किस हद तक आपदाओं के प्रति सरकारी प्रतिक्रिया को प्रभावित करने में सही ठहरती है?” मजाड़ा गांव के संदर्भ में चर्चा करें। (150 शब्द)
- प्रश्न: जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के मद्देनजर, भारत को अपनी आपदा प्रबंधन रणनीतियों को कैसे अनुकूलित करना चाहिए? ‘रोकथाम, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति’ के ढांचे के भीतर विशिष्ट उपायों का सुझाव दें। (250 शब्द)
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