आधुनिकीकरण
( Modernization ) :
परम्परात्मक समाजों में होने वाले परिवर्तनों या औद्योगीकरण के कारण पश्चिमी समाजों में आये परिवर्तनों को समझने तथा दोनों में भिन्नता को प्रकट करने के लिए विद्वानों ने आधुनिकीकरण को अवधारणा का जन्म दिया । एक तरफ उन्होंने परम्परात्मक समाज को रखा और दूसरी तरफ आधुनिक समाज को । इस प्रकार उन्होंने परम्परात्मक बनाम आधुनिकता को जन्म दिया । इसके साथ ही जब पाश्चात्य विद्वान उपनिवेशों एवं विकासशील देशों में होने वाले परिवर्तनों की चर्चा करते हैं तो वे आधुनिकीकरण की अवधारणा का सहारा लेते हैं । कुछ लोगों ने आधुनीकीकरण को एक प्रक्रिया के रूप में माना है तो कुछ ने एक प्रतिफल के रूप में । आईजन स्टैंड ने इसे एक प्रक्रिया मानते हुए लिखा हैं , “ ऐतिहासिक दृष्टि से आधुनिकीकरण उस प्रकार की सामाजिक , आर्थिक एवं राजनीतिक व्यवस्थाओं की ओर परिवर्तन की प्रक्रिया है जो सत्रहवीं से उन्नीसवीं शताब्दी तक पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका में और बीसवीं शताब्दी तक दक्षिणी अमेरिका एशियाई व अफ्रीकी देशों में विकसित हुई । ” आधुनिकीकरण की प्रक्रिया किसी एक ही दिशा या क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन को प्रकट नहीं करती वरन् यह एक बहु – दिशा वाली प्रक्रिया है । साथ ही यह किसी भी प्रकार के मूल्यों से भी बँधी हुई नहीं है । परंतु कभी – कभी इसका अर्थ अच्छाई और इच्छित परिवर्तन से लिया जाता है । उदाहरण के लिए जब कोई यह कहता है कि सामाजिक , आर्थिक और धार्मिक संस्थाओं का आधुनिकीकरण हो रहा है , तब उसका उद्देश्य आलोचना करना नहीं वरन् अच्छाई बताना है । आधुनिकीकरण की अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए अब तक कई पाश्चात्य और भारतीय विद्वानों ने समय – समय पर अपना विचार प्रकट किया है और इस अवधारणा को अनेक नामों से सम्बोधित किया है । आधुनीकिकरण पर अपने विचार प्रकट करने वाले विद्वानों में कुछ प्रमुख में हैं , वाईनर , एयटर लर्नर , बैक , एलेक्स इन्कालेक्स , ए ० आर ० देसाई , वाई सिंह , एम ० एन ० श्रीनिवासन , एडवर्ड शिल , डब्ल्यू ० सी ० स्मिथ आदि । आधुनीकिकरण शब्द के पर्यायवाची रूप में अंग्रेजीकरण , यूरोपीकरण , पाश्चात्यकरण , शहरीकरण , उद्विकास , विकास प्रगति आदि शब्दों का प्रयोग भी हुआ है । औद्योगीकरण , नगरीकरण एवं पश्चिमीकरण की तरह आधुनिकीकरण भी एक जटिल प्रक्रिया है ।
आधुनिकीकरण परिभाषा एवं अर्थ : अब तक विभिन्न विद्वानों ने आधुनिकीकरण पर बहुत कुछ लिखा है और इसे अनेक रूपों में परिभाषित किया है । यहाँ हम कुछ विद्वानों द्वारा प्रस्तुत परिभाषाओं एवं विचारों का उल्लेख , करेंगे । मैस्मिन जे ० लेवी ने आधुनिकीकरण को प्रोद्योगिक वृक्ष के रूप में परिभाषित किया है । मैं , इन दो तत्वों में से प्रत्येक को सातत्य का आधार मानता हूँ । उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि लेवी ने शक्ति के जड़ स्रोत जैसे पेट्रोल , डीजल , कोयला , जल – विद्युत और अणु – शक्ति और यन्त्रों के प्रयोग को आधुनिकीकरण के आधार के रूप में माना है । किसी समाज विशेष को कितना आधुनिक कहा जायेगा , यह इस बात पर निर्भर करता है कि वहाँ जड़ शक्ति तथा यन्त्रों का कितना प्रयोग हुआ है ।
डा ० योगेन्द्र सिंह ने बताया है कि साधारणतः आधुनिक होने का अर्थ ‘ फैशनेबल ‘ से लिया जाता है । वे आधुनिकीकरण को एक सांस्कृतिक प्रयत्न मानते हैं जिसमें तार्किक अभिवृति , सार्वभौम दृष्टिकोण , परानुभूति वैज्ञानिक विश्व दृष्टि , मानवता , प्रौद्योगिक प्रगति आदि सम्मिलित हैं । डॉ ० सिंह आधुनिकीकरण पर किसी एक ही जातीय समूह या सांस्कृतिक समूह का स्वामित्व नहीं मानते वरन् सम्पूर्ण मानव समाज का अधिकार मानते हैं ।
डेनियल लर्नर ने अपनी पुस्तक ‘ दी पासिंग आफ ट्रेडिसनल सोसायटी मॉर्डनइिजिंग दा मीडिल ईस्ट
‘ में आधुनिकीकरण को पश्चिमी मॉडल स्वीकार किया है । वे आधुनिकीकरण में निहित निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख करते हैं
( a ) बढ़ता हुआ नगरीकरण
( b ) बढ़ती हुई साक्षरता
( c ) बढ़ती हुई साक्षरता विभिन्न साधनों जैसे समाचार – पत्रों , पुस्तकों , रेडियो आदि के प्रयोग द्वारा शिक्षित लोगों के अर्थपूर्ण विचार – विनियम में सहभागिता को बढ़ाती है ।
( d ) इन सभी से मनुष्य की दक्षमता में वृद्धि होती है , राष्ट्र को आर्थिक लाभ होता है जो प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाने में योग देता है ।
( e ) यह राजनैतिक जीवन की विशेषताओं को उन्नत करने में सहायता देता है ।
लर्नर उपयुक्त विशेषताओं को शक्ति , तरुणाई , निपुणता तथा तार्किकता के रूप में व्यक्त करते हैं । वे आधुनिकीकरण को प्रमुखतः मस्तिक की एक स्थिति के रूप में स्वीकार करते हैं , प्रगति की अपेक्षा वृद्धि की ओर झुकाव तथा परिवर्तन के अनुरूप अपने को ढालने की तत्परता के रूप में मानते हैं । परानुभूति भी आधुनिकीकरण का एक मुख्य तत्व है जिसमें अन्य लोगों के सुख दुख में भाग लेने और संकट के समय उनको सहायता देने की प्रवृत्ति बढ़ती है । आइजनस्टैड ने अपनी पुस्तक आधुनिकीकरण : विरोध एवं परिवर्तन में विभिन्न क्षेत्रों में आधुनिकीकरण को निम्न प्रकार से व्यक्त किया है
( a ) आर्थिक क्षेत्र में : प्रौद्योगिकी का उच्च स्तर ।
( b ) राजनीतिक क्षेत्र में : समूह में शक्ति का प्रसार तथा सभी वयस्कों को शक्ति प्रदान करना ( मताधिकार द्वारा ) एवं संचार के साधनों द्वारा प्रजातंत्र में भाग लेना ।
( c ) सांस्कृतिक क्षेत्र में : विभिन्न समाजों के साथ अनुकूलन की क्षमता में वृद्धि तथा दूसरे लोगों की परिस्थितियों के प्रति परानुभूति में वृद्धि ।
( d ) संरचना के क्षेत्र में : सभी संगठनों के आकार का बढ़ना , उसमें जटिलता एवं विभेदीकरण की दृष्टि से वृद्धि ।
( e ) पारिस्थितिकीय क्षेत्र में : नगरीकरण में वृद्धि ।
डॉ ० राज कृष्ण ने आधुनिकीकरण एवं आधुनिकता में अंतर दिखाते हुए आधुनिकता को आधुनिकीकरण से अधिक व्यापक माना है । इसके अनुसार आधुनिकीकरण एक ऐसी सभ्यता की ओर इंगित करता है जिसमें साक्षरता तथा नगरीकरण का उच्च स्तर तथा साथ ही लम्बवत् और भौगोलिक गतिशीलता , प्रति व्यक्ति उच्च आय और प्रारम्भिक स्तर से उच्च स्तर की अर्थ – व्यवस्था जो कमी के स्तर ( उत्पन्न – बिंदु के परे जा चुकी हो ) समाविष्ट है । दूसरी ओर आधुनिकता , एक ऐसी संस्कृति को बताती है जिसकी विशेषता का निर्धारण तार्किकता , व्यापक रूप में उदार दृष्टिकोण , मतों की विविधता तथा निर्णय लेने के विभिन्न केन्द्र , अनुभव के विभिन्न क्षेत्रों की स्यायत्तता , धर्म – निरपेक्ष , आचार – शास्त्र तथा व्यक्ति के निजी संसार के प्रति आदर के रूप में होता है ।
सी ० ई ० ब्लेक ने आधुनिकीकरण को ऐतिहासिक रूप में स्वीकार किया है और इसे परिवर्तन की एक ऐसी प्रक्रिया माना है जो पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका में सत्रहवीं सदी में विकसित , सामाजिक , आर्थिक एवं राजनैतिक व्यवस्थाओं में बीसवीं सदी के अमेरिका तथा यूरोप आदि देशों की ओर अग्रसर हो सकी है । आधुनिकीकरण एक ऐसी मनोवृत्ति का परिणाम है जिसमें यह विश्वास किया जाता है कि समाज को बदला जा सकता है और बदला जाना चाहिए तथा परिवर्तन वांछनीय है । आधुनिकीकरण में व्यक्ति के संस्थाओं के बदलते हुए कार्यों के अनुरूप समायोजन करना होता है , इससे व्यक्ति के ज्ञान में वृद्धि होती है जिसके परिणामस्वरूप वह पर्यावरण पर नियन्त्रण प्राप्त कर लेता है । ब्लेक के अनुसार आधुनिकीकरण का प्रारम्भ तो यूरोप व अमेरिका से हुआ परंतु बीसवीं सदी तक इसका प्रसार संपूर्ण विश्व में हो गया और इसने मानवीय संबंधों के स्वरूप को ही परिवर्तित कर दिया ।
डॉ ० एस ० सी ० दुबे आधुनिकीकरण को मूल्यों से युक्त मानते हैं ।
( 1 ) मानव समस्याओं के हल के लिए जड़ – शक्ति का प्रयोग ।
( 2 ) ऐसा व्यक्तिगत रूप से न करके सामूहिक रूप से किया जाता है । परिणामस्वरूप जटिल संगठनों का निर्माण होता है । शिक्षा को आधुनिकीकरण का एक सशक्त साधन मानते हैं क्योंकि शिक्षा ज्ञान की वृद्धि करती है एवं मूल्यों तथा धाराओं में परिवर्तन लाती है जो आधुनिकीकरण के उद्देश्य तक पहुँचने के लिए बहुत आवश्यक है । डॉ ० एम ० एन ० श्रीनिवास ने ‘ सोशल चेन्ज इन मॉर्डन इंडिया ( 1966 ) तथा मार्डनाइजेशन : ए फ्यू क्यूरीज ‘ ( 1969 ) , में आधुनिकीकरण के संबंध में अपने विचार व्यक्त किये हैं । आप आधुनिकीकरण को एक तटस्थ शब्द नहीं मानते , आपके अनुसार आधुनिकीकरण का अर्थ अधिकांशतः ‘ अच्छाई ‘ से लिया जाता है । किसी भी पश्चिमी देश के प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्पर्क के कारण किसी गैर – पश्चिमी देशों में होने वाले परिवर्तनों के लिए प्रचलित शब्द आधुनिकीकरण है । आप आधुनिकीकरण में निम्नलिखित बातों को सम्मिलित करते हैं : बढ़ा हुआ नगरीकरण , साक्षरता का प्रसार , प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि , वयस्क माताधिकार तथा तर्क का विकास ।
डॉ ० श्रीनिवास ने आधुनिकीकरण के तीन प्रमुख क्षेत्र बताये हैं
- भौतिक संस्कृति का क्षेत्र ( इसमें तकनीकी भी सम्मिलित की जाती है )
- सामाजिक संस्थाओं का क्षेत्र , और
- ज्ञान , मूल्य एवं मनोवृत्तियों का क्षेत्र ।
ऊपरी तौर पर तो ये तीनों क्षेत्र भिन्न – भिन्न मालूम पड़ते हैं , परंतु ये परस्पर सम्बन्धित हैं । एक क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन दूसरे क्षेत्र को भी प्रभाविक करते हैं । बी ० वी ० शाह ने ‘ प्रोबलम आफ मॉर्डनाइजेशन आफ एजुकेशन इन इंडिया : ( 1969 ) ‘ नामक लेख में आधुनिकीकरण पर अपने विचार प्रकट किये हैं । शाह आधुनिकीकरण को बहूद्देशीय प्रक्रिया मानते हैं जो आर्थिक , सामाजिक , राजनैतिक आदि सभी क्षेत्रों में व्याप्त है । ( a ) आर्थिक क्षेत्र में आधुनिकीकरण का अर्थ है : औद्योगिकीकरण का बढ़ना , अधिक उत्पादन , मशीनीकरण , मुद्रीकरण व शहरीकरण में वृद्धि । व्यक्ति व सामूहिक सम्पत्ति में भेद किया जाता है । रहने और कार्य करने के स्थान अलग – अलग होते हैं , लोगों को व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता होती है । उनमें तर्क और गतिशीलता की वृद्धि होती है । आय , खरीद , बचत तथा पूँजी लगाने के क्षेत्र में नये दृष्टिकोण का विकास होता है । ( b ) राजनैतिक क्षेत्र में धर्म – निरपेक्ष व कल्याण राज्य की स्थापना होती है जो शिक्षा , स्वास्थ्य , मकान एक रोजगार की व्यवस्था करता । कानून के समक्ष सभी को समानता प्रदान की जाती है तथा सरकार के चुनने अथवा बदलने में स्वतंत्रता व्यक्त करने की छूट होती है ।
78 भारत में सामाजिक परिवर्तन : दशा एवं दिशा ( c ) सामाजिक क्षेत्र में संस्तरण की खुली व्यवस्था होती है । प्रदत्त पद के स्थान पर अर्जित पदों का महत्त्व होता है तथा सभी को अवसर की समानता दी जाती है , विवाह , धर्म , परिवार तथा व्यवसाय के क्षेत्र में वैयक्तिक स्वतंत्रता पर बल दिया जाता है । ( d ) वैयक्तिक क्षेत्र में सामाजिक परिवर्तन के लिए मानव प्रयत्नों में विश्वास किया जाता है । धर्म निरपेक्ष , तार्किक , वैज्ञानिक और विश्वव्यापी दृष्टिकोण का विकास होता है । सामाजिक समस्याओं के प्रति समानतावादी और स्वतंत्रात्मक दृष्टिकोण अपनाया जाता है । ए ० आर ० देसाई आधुनिकीकरण का प्रयोग केवल सामाजिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं बल्कि जीवन के सभी पहलुओं तक विस्तृत मानते हैं । बौद्धिक क्षेत्र में आधुनिकीकरण का अर्थ तर्क शक्ति का बढ़ना है । भौतिक व सामाजिक घटनाओं की तार्किक व्याख्या की जाती है । ईश्वर को आधार मानकर किसी भी घटना को स्वीकार नहीं किया जाता । धर्मनिरपेक्ष तार्किकता का परिणाम है जिसके फलस्वरूप अलौकिक जाति के स्थान पर इस दुनिया का दृष्टिकोण पनपता है ।
सामाजिक क्षेत्र में : ( a ) सामाजिक गतिशीलता बढ़ती है । पुरानी सामाजिक , आर्थिक , राजनैतिक तथा मनोवैज्ञानिक धारणाओं को तीव्र कर व्यक्ति नये प्रकार के व्यवहार को अपनाने को प्रस्तुत होता है । ( b ) सामाजिक संरचना में परिवर्तन – व्यक्ति के व्यावसायिक एवं राजनैतिक कार्यों में परिवर्तन आता है , प्रदत्त के स्थान पर अर्जित पदों का महत्त्व बढ़ता है । ( c ) समाज की केन्द्रीय कानूनी , प्रशासकीय तथा राजनैतिक संस्थाओं का विस्तार एवं प्रसार । ( d ) प्रशासकों द्वारा जनता की भलाई की नीति अपनाना ।
आर्थिक क्षेत्र में : ( a ) उत्पादन , वितरण , यातायात तथा संचार आदि में पशु और मानव शक्ति के स्थान पर जड़ शक्ति का प्रयोग करना । ( b ) आर्थिक क्रियाओं का परम्परात्मक स्वरूप से पृथक्करण । ( c ) मशीन , तकनीकी एवं औजारों का प्रयोग । ( d ) उच्च तकनीकी के प्रभाव के कारण उद्योग , व्यवसाय , व्यापार आदि में वृद्धि । ( 1 ) आर्थिक कार्यों में विशेषीकरण का बढ़ना , साथ ही उत्पादन उपभोक्ता विशेषता कह सकते हैं । ( 2 ) अर्थव्यवस्था में उत्पादन तथा उपभोग में वृद्धि ।
सांस्कृतिक क्षेत्र में : ( a ) बढ़ता हुआ औद्योगीकरण जिसे हम आर्थिक आधुनिकीकरण की प्रमुख विशेषता कह सकते हैं । पारिस्थितिकीय शास्त्रीय क्षेत्र में शहरीकरण की वृद्धि होती है । ( b ) शिक्षा का विस्तार तथा विशेष प्रकार की शिक्षा देने वाली संस्थाओं में वृद्धि । ( c ) नये सांस्कृतिक दृष्टिकोण का विकास जो उन्नति व सुधार , योग्यता सुख अनुभव व क्षमता पर जोर दे । ज्ञान का बढ़ना , दूसरों का सम्मान करता , ज्ञान व तकनीकी में विश्वास पैदा होना तथा व्यक्ति के उसके कार्य का प्रतिफल मिलना और मानवतावाद में विश्वास । ( d ) समाज द्वारा ऐसी संस्थाओं और योग्यताओं का विकास करना जिससे कि लगातार बदलती हुई माँगों और समस्याओं से समायोजन किया जा सके । इस प्रकार श्री देसाई ने आधुनिकीकरण को एक विस्तृत क्षेत्र के संदर्भ में देखा है जिसमें समान संस्कृति के सभी पहलू आ जाते हैं ।
आधुनिकीकरण पर भारतीय और पश्चिमी विद्वानों के उपर्युक्त विचारों से स्पष्ट है कि उन्होंने इस अवधारणा का प्रयोग परम्परात्मक , पिछड़े तथा उपनिवेश वाले देशों की पश्चिमी , पूँजीवादी एवं औद्योगीकरण व शहरीकरण कर रहे देशों के साथ तुलना करने के लिए किया है जो कि उनमें हो रहे नवीन परिवर्तनों की और इंगित करती है । बौद्धिक क्षेत्र में आधुनिकीकरण का अर्थ भौतिक एवं सामाजिक घटनाओं को तार्किक व्याख्या करना तथा उन्हें कार्य कारण के आधार पर स्वीकार करना है । सामाजिक क्षेत्र में आधुनिकीकरण होने पर गतिशीलता बढ़ती है , पुरानी प्रथाओं के स्थान पर नवीन मूल्य पनपते हैं , जटिल संस्थाओं का जन्म होता है , रक्त – संबंध आदि में शिथिलता आती है । राजनैतिक क्षेत्र में सेना को अलौकिक शक्ति ही देन परिवार नहीं माना जाता सत्ता का लोगों में विकन्द्रीकरण और वयस्क मताधिकार द्वारा सरकार का चयन होता है । आर्थिक क्षेत्र में मशीनों का . उपयोग बढ़ता है तथा उत्पादन जड़ – शक्ति के प्रयोग द्वारा होता है । यातायात के साधनों का विकास होता है और औद्योगीकरण बढ़ता है , परिस्थितिजन्य क्षेत्र में नगरीकरण बढ़ता है । सांस्कृतिक क्षेत्र में आधुनिकीकरण कारण का तात्पर्य नये सांस्कृतिक दृष्टिकोण का विकास और व्यक्ति में नवीन गुणों के प्रादुर्भाव से है । विभिन्न विद्वानों के उपर्युक्त विचारों से आधुनिकीकरण की निम्नलिखित विशेषताओं का पता चलता है घटनाओं की विवेकपूर्ण व्याख्या , सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि , धर्म – निरपेक्षता व लैकिकीकरण , वयस्क मताधिकार द्वारा राजनैतिक सत्ता का लोगों में हस्तान्तरण बढता हुआ नगरीकरण , वैज्ञानिक दृष्टिकोण , औद्योगीकरण , प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि शिक्षा का प्रसार , परानुभूति , जड़ शक्ति का प्रयोग , नवीन व्यक्तित्व का विकास , प्रदत्त के स्थान पर अर्जित पदों का महत्व , वस्तु – विनियम के स्थान पर द्रव्य – विनियम , व्यवसायों में विशिष्टता , यातायात एवं संचार व्यवस्था का विकास , चिकित्सा एवं स्वास्थ्य में वृद्धि तथा प्राचीन कृषि विधि के स्थान पर नवीन विधियों का प्रयोग । इस प्रकार हम देखते हैं कि आधुनिकीकरण एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें अनेक तत्वों का समावेश है तथा जो जीवन के भौतिक , आर्थिक , राजनैतिक , सामाजिक , धार्मिक एवं बौद्धिक सभी वस्तुओं से सम्बन्धित है । यह अवधारणा हमें परम्परात्मक समाजों में होने वाले परिवर्तनों को समझने में योग देती है । आज विश्व में कहीं परम्परात्मक समाज दिखलाई पड़ता है , तो कहीं आधुनिक समाज ।
इनकी तुलना करने तथा परिवर्तन की प्रकृति और दिशा को समझने में यह अवधारणा उपयोगी है । आधुनिकीकरण का प्रारूप ( Forms of Modernization ) : प्रश्न उठता है कि कौन – से परिवर्तन होने , कौन – सी स्थिति पैदा होने या कौन – सी प्रक्रिया प्रारम्भ होने पर उसे हम आप आधुनिकीकरण कहकर पुकारेंगे । साधारणतः आधुनिकीकरण के आदर्श पाश्चात्य देश एवं उनमें होने वाले परिवर्तन ही रहे हैं । जैसा कि बैनडिक्स कहते हैं “ आधुनिकीकरण से मेरा तात्पर्य उस किस्म के सामाजिक परिवर्तनों से है जो 1760-1830 में इंगलैण्ड की औद्योगिक क्रान्ति तथा 1789-1794 में फ्रांस की राजनैतिक क्रांति के दौरान उत्पन्न हुए । ” वर्तमान प्रजातंत्र , शिक्षा प्रणाली और औद्योगिक क्रान्ति का प्रारम्भ अधिकांशतः पश्चिमी देशों में ही हुआ । अतः यदि उन परिवर्तनों का जो सामाजिक , आर्थिक , राजनैतिक और अन्य क्षेत्रों में पश्चिमी देशो में हुए । दूसरे देशों में अनुकरण होता है तो वह आधुनिकीकरण के नाम से जाना जायेगा । अतः इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि प्रारम्भ में आधुनिकीकरण का प्रारूप पश्चिमी देश ही रहे हैं , अब चाहे रूप , चीन , जापान या अन्य देश में आधुनिकीकरण के आदर्श के रूप में हों , रूडोल्फक एवं फूट ल्फ ने भी इसी बात की पुष्टि की है । लर्नर का मत है कि पश्चिमी मॉडल केवल ऐतिहासिक दृष्टि से पश्चिमी है , समाजशास्त्रीय दृष्टि से विश्वव्यापी ।