आज की समाजशास्त्र चुनौती: अपनी समझ को धार दें
प्रतियोगी परीक्षाओं के समाजशास्त्र के धाँधलेबाज उम्मीदवारों! क्या आप अपनी अवधारणात्मक स्पष्टता और विश्लेषणात्मक कौशल को आजमाने के लिए तैयार हैं? प्रस्तुत है समाजशास्त्र के 25 चुनिंदा प्रश्नों का एक अनूठा दैनिक परीक्षण, जो आपको परीक्षा के लिए तैयार करने में मदद करेगा। आइए, अपनी तैयारी को नई ऊंचाइयों पर ले जाएं!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान की गई विस्तृत व्याख्याओं के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: “सांस्कृतिक विलंब” (Cultural Lag) की अवधारणा सर्वप्रथम किसने प्रतिपादित की, जो बताती है कि समाज के विभिन्न अंग विभिन्न गति से बदलते हैं?
- ए. आर. रैडक्लिफ-ब्राउन
- विलियम एफ. ओग्बर्न
- अल्बर्ट सैम्पसन
- ई. ई. ईवांस-प्रिचार्ड
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही उत्तर: विलियम एफ. ओग्बर्न ने अपनी पुस्तक “सोशल चेंज: एट.एल.” (Social Change: With Respect to Culture and Original Nature) में “सांस्कृतिक विलंब” की अवधारणा प्रस्तुत की। उन्होंने तर्क दिया कि भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) अभौतिक संस्कृति (जैसे सामाजिक मूल्य, कानून, संस्थाएं) की तुलना में तेजी से बदलती है, जिससे समाज में एक असंतुलन पैदा होता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह अवधारणा विशेष रूप से यह समझाने के लिए महत्वपूर्ण है कि समाज में परिवर्तन एक समान गति से नहीं होता। उदाहरण के लिए, इंटरनेट का तीव्र विकास हुआ, लेकिन इसके उपयोग से संबंधित सामाजिक नियम और नैतिकता (अभौतिक संस्कृति) इसके साथ तालमेल बिठाने में पीछे रह गए।
- गलत विकल्प: रैडक्लिफ-ब्राउन और ईवांस-प्रिचार्ड संरचनात्मक-प्रकार्यवाद (Structural-Functionalism) और मानवविज्ञान (Anthropology) से जुड़े हैं, जबकि सैम्पसन सामाजिक मनोविज्ञान से। “सांस्कृतिक विलंब” ओग्बर्न का विशिष्ट योगदान है।
प्रश्न 2: भारतीय समाज में “द्वितीयक संस्कृतिकरण” (Secondary Sanskritization) की अवधारणा किसने विकसित की?
- एम. एन. श्रीनिवास
- टी. के. उन्नीकृष्णन
- एन. के. बोस
- इरावती कर्वे
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही उत्तर: टी. के. उन्नीकृष्णन ने “द्वितीयक संस्कृतिकरण” की अवधारणा को विकसित किया। यह अवधारणा उन समाजों या समूहों पर लागू होती है जो पहले से ही कुछ हद तक संस्कृतिकृत हो चुके हैं, लेकिन फिर भी वे उच्च जातियों की प्रथाओं को अपनाकर अपनी स्थिति को और बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: जबकि एम. एन. श्रीनिवास ने “संस्कृतिकरण” (Sanskritization) की मूल अवधारणा दी, उन्नीकृष्णन ने इसे आगे बढ़ाते हुए उन समूहों के संदर्भ में इसका विश्लेषण किया जो हाशिए पर हैं या अपनी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए विभिन्न स्तरों पर उच्च जातियों की नकल करते हैं।
- गलत विकल्प: एम. एन. श्रीनिवास “संस्कृतिकरण” के लिए जाने जाते हैं। एन. के. बोस ने “संस्कृतिकरण” पर कार्य किया लेकिन “द्वितीयक” शब्द का प्रयोग नहीं किया। इरावती कर्वे ने भारतीय समाज और नातेदारी प्रणालियों पर महत्वपूर्ण कार्य किया, लेकिन यह विशिष्ट अवधारणा उनकी नहीं है।
प्रश्न 3: निम्नांकित में से कौन सी अवधारणा जॉन हावर्ड ग्रीन (John Howard Green) द्वारा प्रस्तुत की गई है, जो सामाजिक नियंत्रण के एक तंत्र के रूप में कार्य करती है?
- विभेदीय साहचर्य (Differential Association)
- सामुदायिक भावना (Sense of Community)
- अनुकूलन (Adaptation)
- सामाजिक एकात्मता (Social Cohesion)
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही उत्तर: जॉन हावर्ड ग्रीन ने “सामुदायिक भावना” (Sense of Community) की अवधारणा को विकसित किया। उनका मानना था कि समुदाय में व्यक्तियों के बीच एक मजबूत भावना, साझा मूल्यों और लक्ष्यों का होना सामाजिक नियंत्रण को बनाए रखने में मदद करता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: ग्रीन के अनुसार, जब लोगों को अपने समुदाय से जुड़ाव महसूस होता है, तो वे उन नियमों और मानदंडों का पालन करने की अधिक संभावना रखते हैं जो समुदाय को बनाए रखते हैं। यह अनौपचारिक सामाजिक नियंत्रण का एक रूप है।
- गलत विकल्प: विभेदीय साहचर्य एडविन सदरलैंड से जुड़ा है (अपराधशास्त्र में)। अनुकूलन एक सामान्य सामाजिक प्रक्रिया है। सामाजिक एकात्मता अधिक व्यापक शब्द है, जबकि ग्रीन ने विशेष रूप से “सामुदायिक भावना” पर जोर दिया।
प्रश्न 4: कार्ल मार्क्स के अनुसार, उत्पादन की शक्तियां (Forces of Production) और उत्पादन के संबंध (Relations of Production) मिलकर क्या बनाते हैं?
- बुर्जुआ वर्ग
- सर्वहारा वर्ग
- आर्थिक आधार (Economic Base)
- सामाजिक अधिरचना (Social Superstructure)
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सही उत्तर: कार्ल मार्क्स के अनुसार, उत्पादन की शक्तियां (जैसे श्रम, उपकरण, प्रौद्योगिकी) और उत्पादन के संबंध (जैसे स्वामित्व, श्रम विभाजन) मिलकर किसी समाज का “आर्थिक आधार” (Economic Base) या उत्पादन प्रणाली (Mode of Production) बनाते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: मार्क्सवादी सिद्धांत में, आर्थिक आधार समाज की अधिरचना (राजनीति, कानून, धर्म, संस्कृति) को निर्धारित करता है। यह उनकी द्वंद्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical Materialism) की व्याख्या का केंद्रीय बिंदु है।
- गलत विकल्प: बुर्जुआ और सर्वहारा वर्ग उत्पादन संबंधों में प्रमुख वर्ग हैं, न कि स्वयं आधार। अधिरचना आर्थिक आधार पर निर्मित होती है, न कि उसका हिस्सा।
प्रश्न 5: निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता “आदिम समाज” (Primitive Society) की नहीं है, जैसा कि एल. टी. हॉबहाउस (L.T. Hobhouse) ने वर्णित किया है?
- सरल प्रौद्योगिकी
- अविकसित श्रम विभाजन
- उच्च स्तर का व्यक्तिगतकरण
- विस्तृत नातेदारी व्यवस्था
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सही उत्तर: “उच्च स्तर का व्यक्तिगतकरण” आदिम समाज की विशेषता नहीं है। एल. टी. हॉबहाउस जैसे समाजशास्त्रियों ने आदिम समाजों को सामूहिक जीवन, मजबूत सामुदायिक बंधन और अल्प व्यक्तिगतकरण से जुड़ा हुआ माना है।
- संदर्भ एवं विस्तार: आदिम समाजों में, जीवन अक्सर समूह या कबीले के इर्द-गिर्द केंद्रित होता है, और व्यक्तिगत पहचान सामाजिक संरचना और नातेदारी से गहराई से जुड़ी होती है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता और स्वायत्तता का स्तर आधुनिक समाजों की तुलना में बहुत कम होता है।
- गलत विकल्प: सरल प्रौद्योगिकी, अविकसित श्रम विभाजन (अक्सर उम्र और लिंग पर आधारित), और विस्तृत नातेदारी व्यवस्था (जो सामाजिक संगठन का मुख्य आधार होती है) आदिम समाजों की प्रमुख विशेषताएं मानी जाती हैं।
प्रश्न 6: ‘डबल कॉन्सियसनेस’ (Double Consciousness) की अवधारणा, अफ्रीकी-अमेरिकी लोगों द्वारा अपने आप को श्वेत समाज के दृष्टिकोण से देखने की भावना का वर्णन करती है, किसने प्रस्तुत की?
- ई. बी. टायलर
- डब्ल्यू. ई. बी. डु बोइस
- हर्बर्ट स्पेंसर
- ऑगस्ट कॉम्ते
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही उत्तर: डब्ल्यू. ई. बी. डु बोइस (W.E.B. Du Bois) ने अपनी कृति “द सॉल्स ऑफ ब्लैक फोक” (The Souls of Black Folk) में “डबल कॉन्सियसनेस” की अवधारणा पेश की। यह अमेरिकी समाज में अफ्रीकी-अमेरिकियों द्वारा अनुभव किए जाने वाले आत्म-जागरूकता के दोहरेपन का वर्णन करती है – एक ओर वे अपनी पहचान महसूस करते हैं, और दूसरी ओर वे खुद को श्वेत समाज की नजरों में एक वस्तु के रूप में देखते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह अवधारणा नस्लवाद, पहचान और सामाजिक अलगाव के अध्ययन में मौलिक है। यह दर्शाती है कि कैसे हाशिए पर पड़े समूह अक्सर प्रमुख संस्कृति के मानकों से अपनी पहचान का मूल्यांकन करने के लिए मजबूर होते हैं।
- गलत विकल्प: टायलर, स्पेंसर और कॉम्ते विभिन्न अन्य समाजशास्त्रीय सिद्धांतों के लिए जाने जाते हैं (जैसे सांस्कृतिक विकास, सामाजिक डार्विनवाद, प्रत्यक्षवाद), लेकिन “डबल कॉन्सियसनेस” डु बोइस का विशिष्ट योगदान है।
प्रश्न 7: सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) का कौन सा सिद्धांत मानता है कि समाज में असमानताएँ आवश्यक हैं क्योंकि वे समाज की विभिन्न भूमिकाओं को भरने के लिए सबसे योग्य व्यक्तियों को प्रेरित करती हैं?
- संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)
- प्रकार्यात्मक सिद्धांत (Functional Theory)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
- समाजशास्त्रीय प्रत्यक्षवाद (Sociological Positivism)
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही उत्तर: प्रकार्यात्मक सिद्धांत (Functional Theory), विशेष रूप से डेविस और मूर (Davis and Moore) का योगदान, यह मानता है कि सामाजिक स्तरीकरण समाज के लिए कार्यात्मक है। उनका तर्क है कि सबसे महत्वपूर्ण भूमिकाओं के लिए सबसे अधिक सक्षम और कुशल व्यक्तियों को आकर्षित करने और उन्हें वह भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करने के लिए विशेषाधिकार और पुरस्कार (जैसे धन, प्रतिष्ठा) आवश्यक हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह सिद्धांत समाज को एक जीवित जीव के रूप में देखता है जहाँ प्रत्येक अंग (सामाजिक संस्था या वर्ग) का एक विशेष कार्य होता है जो पूरे समाज के अस्तित्व और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है।
- गलत विकल्प: संघर्ष सिद्धांत (मार्क्स, वेबर) असमानता को शक्ति और प्रभुत्व के परिणाम के रूप में देखता है। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद व्यक्तिगत स्तर पर सामाजिक अंतःक्रियाओं पर केंद्रित है। प्रत्यक्षवाद एक पद्धति है, न कि स्तरीकरण का सिद्धांत।
प्रश्न 8: निम्नलिखित में से किस समाजशास्त्री ने “यांत्रिक एकता” (Mechanical Solidarity) और “सावयवी एकता” (Organic Solidarity) के बीच अंतर किया?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- ई. ड्यूरखाइम
- एच. स्पेंसर
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सही उत्तर: ई. ड्यूरखाइम (Émile Durkheim) ने अपनी पुस्तक “द डिवीज़न ऑफ लेबर इन सोसाइटी” (The Division of Labour in Society) में “यांत्रिक एकता” और “सावयवी एकता” के बीच अंतर प्रस्तुत किया।
- संदर्भ एवं विस्तार: यांत्रिक एकता उन समाजों में पाई जाती है जहाँ लोगों के बीच समानता, साझा चेतना और समान विश्वास होते हैं (जैसे पारंपरिक या पूर्व-औद्योगिक समाज)। सावयवी एकता औद्योगिक समाजों में देखी जाती है जहाँ लोग अपनी विशेषज्ञता और परस्पर निर्भरता के कारण एक-दूसरे से जुड़े होते हैं, जैसे शरीर के विभिन्न अंग।
- गलत विकल्प: मार्क्स वर्ग संघर्ष पर ध्यान केंद्रित करते हैं, वेबर शक्ति और नौकरशाही पर, और स्पेंसर सामाजिक डार्विनवाद पर। एकता के इन विशिष्ट रूपों की ड्यूरखाइम द्वारा ही व्याख्या की गई है।
प्रश्न 9: भारतीय समाजशास्त्र में, “प्रभुत्वशाली जाति” (Dominant Caste) की अवधारणा किसने विकसित की, जो ग्रामीण भारत में राजनीतिक और आर्थिक शक्ति का प्रतीक है?
- एम. एन. श्रीनिवास
- आंद्रे बेतेई
- इरावती कर्वे
- डेविड पॉरिटर
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सही उत्तर: एम. एन. श्रीनिवास (M.N. Srinivas) ने “प्रभुत्वशाली जाति” की अवधारणा दी। उन्होंने इसे एक ऐसी जाति के रूप में परिभाषित किया जो ग्राम में संख्यात्मक रूप से प्रमुख हो, आर्थिक रूप से शक्तिशाली हो (भूमि का मालिक हो) और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली हो, और जो उच्च सामाजिक स्थिति भी रखती हो।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह अवधारणा भारतीय ग्राम अध्ययनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह बताती है कि ग्रामीण भारत में सत्ता संरचना कैसे कार्य करती है। प्रभुत्वशाली जाति अक्सर स्थानीय ग्राम पंचायत और सामाजिक निर्णयों को नियंत्रित करती है।
- गलत विकल्प: आंद्रे बेतेई और डेविड पॉरिटर ने भारतीय समाज पर महत्वपूर्ण कार्य किया है, लेकिन “प्रभुत्वशाली जाति” श्रीनिवास का विशिष्ट योगदान है। इरावती कर्वे नातेदारी और सामाजिक संरचना की माहिर थीं।
प्रश्न 10: निम्नांकित में से कौन सा कथन मैक्स वेबर के “आदर्श प्रारूप” (Ideal Type) की अवधारणा के बारे में सही है?
- यह एक आदर्श समाज का चित्रण है।
- यह वास्तविक दुनिया का एक अतिरंजित, वैचारिक निर्माण है जो अध्ययन के लिए एक उपकरण के रूप में कार्य करता है।
- यह वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए एक नैतिक मानक प्रदान करता है।
- यह केवल उन घटनाओं का वर्णन करता है जो अतीत में हुई हैं।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही उत्तर: मैक्स वेबर के अनुसार, “आदर्श प्रारूप” वास्तविक दुनिया का एक वैचारिक निर्माण है जो अध्ययन के तहत एक विशेष घटना की प्रमुख विशेषताओं को अतिरंजित करता है। यह एक उपकरण है जिसका उपयोग समाजशास्त्री सामाजिक वास्तविकता को समझने और उसका विश्लेषण करने के लिए करते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह एक “आदर्श” (perfect) मॉडल नहीं है, बल्कि एक “तार्किक” (logical) मॉडल है जो किसी अवधारणा की सारभूत विशेषताओं को स्पष्ट करता है, जैसे नौकरशाही या पूंजीवाद। यह विश्लेषण के लिए एक तुलनात्मक बेंचमार्क प्रदान करता है।
- गलत विकल्प: यह एक आदर्श समाज का चित्रण नहीं है, न ही यह कोई नैतिक मानक है। यह केवल अतीत की घटनाओं तक सीमित नहीं है; इसका उपयोग वर्तमान की घटनाओं के विश्लेषण के लिए भी किया जा सकता है।
प्रश्न 11: “समूह के अंदर” (In-group) और “समूह के बाहर” (Out-group) की अवधारणाओं को किसने विकसित किया, जो सामाजिक संबंधों के विश्लेषण में सहायक हैं?
- चार्ल्स एच. कूली
- विलियम ग्राहम समनर
- सोरोकिन
- ग्लिन एंडरसन
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सही उत्तर: विलियम ग्राहम समनर (William Graham Sumner) ने अपनी पुस्तक “फोकवेज” (Folkways) में “इन-ग्रुप” (अपने समूह) और “आउट-ग्रुप” (बाहरी समूह) की अवधारणाओं को प्रस्तुत किया।
- संदर्भ एवं विस्तार: इन-ग्रुप वह समूह होता है जिससे व्यक्ति पहचान रखता है और जिसके प्रति वह अपनेपन, सहयोग और वफादारी महसूस करता है। आउट-ग्रुप वह समूह होता है जिसे इन-ग्रुप का सदस्य बाहरी, अलग या कभी-कभी विरोधी मानता है। यह भेद पूर्वाग्रह, भेदभाव और समूह संघर्ष को समझने में महत्वपूर्ण है।
- गलत विकल्प: कूली “प्राथमिक समूह” के लिए जाने जाते हैं। सोरोकिन और एंडरसन ने समाजशास्त्र के अन्य पहलुओं पर कार्य किया।
प्रश्न 12: समाजशास्त्र में “प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद” (Symbolic Interactionism) का मुख्य प्रणेता किसे माना जाता है?
- अगस्ट कॉम्ते
- इमाइल ड्यूरखाइम
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड
- कार्ल मार्क्स
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सही उत्तर: जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) को प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का मुख्य प्रणेता माना जाता है। उन्होंने मानव व्यवहार और समाज को समझने के लिए प्रतीकों और अंतःक्रियाओं के महत्व पर जोर दिया।
- संदर्भ एवं विस्तार: मीड के अनुसार, व्यक्ति सामाजिक अंतःक्रियाओं के माध्यम से अपने “मैं” (Self) का विकास करता है, जहाँ वे दूसरों की भूमिकाएं निभाने और प्रतीकों के अर्थ को समझने का प्रयास करते हैं। उनके विचारों को उनके छात्रों, जैसे हर्बर्ट ब्लूमर ने व्यवस्थित रूप दिया, जिन्होंने “प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद” शब्द गढ़ा।
- गलत विकल्प: कॉम्ते प्रत्यक्षवाद के, ड्यूरखाइम प्रकार्यवाद के, और मार्क्स संघर्ष सिद्धांत के जनक हैं।
प्रश्न 13: भारतीय समाज में “जाति व्यवस्था” (Caste System) की कौन सी विशेषता इसे अन्य सामाजिक स्तरीकरण प्रणालियों से अलग करती है?
- बंधुआ मजदूरी (Serfdom)
- निर्वाचन द्वारा पद (Elected Status)
- जन्म आधारित सदस्यता और अंतःविवाह (Endogamy)
- कल्याणकारी राज्य की अवधारणा
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सही उत्तर: जाति व्यवस्था की सबसे अनूठी और केंद्रीय विशेषताएँ जन्म आधारित सदस्यता (किसी व्यक्ति की जाति जन्म से तय होती है) और अंतःविवाह (Endogamy – व्यक्ति अपनी ही जाति के भीतर विवाह करता है) हैं। ये विशेषताएँ इसे वर्ग या अन्य स्तरीकरण प्रणालियों से मौलिक रूप से भिन्न करती हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: जन्म से निर्धारित होने के कारण, जाति एक अत्यंत स्थिर व्यवस्था है, जिसमें ऊर्ध्वगामी गतिशीलता (upward mobility) बहुत सीमित होती है। अंतःविवाह व्यवस्था को बनाए रखने और जाति की शुद्धता (purity) की धारणा को बनाए रखने का एक तंत्र है।
- गलत विकल्प: बंधुआ मजदूरी एक आर्थिक व्यवस्था है जो विभिन्न समाजों में पाई जाती है। निर्वाचन द्वारा पद आधुनिक लोकतांत्रिक समाजों की विशेषता है। कल्याणकारी राज्य की अवधारणा भी आधुनिक है।
प्रश्न 14: निम्नांकित में से कौन सा समाजशास्त्री “सामाजिक संरचना” (Social Structure) को “सांस्कृतिक मूल्यों और जनसमूहों के एक स्थिर, अव्यक्त पैटर्न” के रूप में परिभाषित करता है?
- ए. आर. रैडक्लिफ-ब्राउन
- टी. पारसन्स
- एम. वेबर
- ई. ड्यूरखाइम
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- टी. पारसन्स (Talcott Parsons), एक प्रमुख प्रकार्यवादी, ने सामाजिक संरचना को “सामाजिक व्यवस्था के अव्यक्त पैटर्न” के रूप में परिभाषित किया, जिसमें सांस्कृतिक मूल्य और जनसमूह शामिल होते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: पारसन्स के अनुसार, सामाजिक संरचनाएँ समाज के सदस्यों के व्यवहार को व्यवस्थित और निर्देशित करती हैं। उन्होंने सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में भूमिकाओं, मानदंडों और मूल्यों के एकीकरण पर जोर दिया। उनके AGIL (Adaptation, Goal Attainment, Integration, Latency) मॉडल में, सामाजिक व्यवस्था को इन चार कार्यात्मक आवश्यकताओं को पूरा करना होता है।
- गलत विकल्प: रैडक्लिफ-ब्राउन “सामाजिक संरचना” को “प्रजातियों के बीच संबंधों का एक पैटर्न” मानते थे। वेबर ने सामाजिक क्रिया पर अधिक ध्यान केंद्रित किया। ड्यूरखाइम ने “सामाजिक तथ्य” और “सामूहिक चेतना” पर जोर दिया।
प्रश्न 15: “सामाजिक गतिशीलता” (Social Mobility) के अध्ययन के संबंध में, “प्रचलित समूह” (Prestige Group) की अवधारणा किसने प्रस्तुत की?
- कार्ल मार्क्स
- ई. ड्यूरखाइम
- मैक्स वेबर
- पियरे बॉर्डियू
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- मैक्स वेबर (Max Weber) ने सामाजिक स्तरीकरण को केवल आर्थिक वर्ग (मार्क्स की तरह) तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्होंने “वर्ग” (Class), “प्रतिष्ठा समूह” (Status Group) और “शक्ति” (Party) को समाज के तीन प्रमुख आयाम माना।
- संदर्भ एवं विस्तार: वेबर के अनुसार, प्रतिष्ठा समूह वे समूह होते हैं जो सामाजिक सम्मान, जीवन शैली और सामाजिक अलगाव के आधार पर एकीकृत होते हैं। किसी व्यक्ति की स्थिति केवल धन से नहीं, बल्कि उसकी प्रतिष्ठा, शिक्षा, पेशा और जीवन शैली से भी निर्धारित होती है।
- गलत विकल्प: मार्क्स का ध्यान मुख्य रूप से आर्थिक वर्ग पर था। ड्यूरखाइम ने श्रम विभाजन और एकता पर जोर दिया। बॉर्डियू ने “सांस्कृतिक पूंजी” और “आदतों” (Habitus) जैसी अवधारणाओं पर काम किया, लेकिन “प्रचलित समूह” वेबर का विशिष्ट योगदान है।
प्रश्न 16: भारतीय संदर्भ में, “नियोजित परिवार” (Planned Family) की अवधारणा किस सामाजिक परिवर्तन से जुड़ी है?
- कृषि का औद्योगिकीकरण
- शहरीकरण और शिक्षा का प्रसार
- जातिगत एकजुटता में वृद्धि
- ग्रामीण क्षेत्रों में पारंपरिक मूल्यों का पुनरुद्धार
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- “नियोजित परिवार” या परिवार नियोजन की अवधारणा मुख्य रूप से शहरीकरण, महिलाओं की शिक्षा में वृद्धि, बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और जीवन शैली में आए बदलावों से जुड़ी है।
- संदर्भ एवं विस्तार: जैसे-जैसे समाज शहरीकृत होता है, बच्चों का पालन-पोषण अधिक महंगा हो जाता है, और महिलाओं की शिक्षा और करियर के अवसर बढ़ते हैं, परिवार छोटे हो जाते हैं। शिक्षा के प्रसार से परिवार नियोजन के तरीकों के बारे में जागरूकता बढ़ती है, जिससे लोगों को सूचित निर्णय लेने में मदद मिलती है।
- गलत विकल्प: कृषि का औद्योगिकीकरण या जातिगत एकजुटता में वृद्धि सीधे तौर पर नियोजित परिवार की अवधारणा से नहीं जुड़ती। पारंपरिक मूल्यों का पुनरुद्धार अक्सर छोटे परिवारों के बजाय बड़े परिवारों को बढ़ावा दे सकता है।
प्रश्न 17: निम्नांकित समाजशास्त्रियों में से किसने “अराजकता” (Anomie) की अवधारणा का प्रयोग यह समझाने के लिए किया कि आधुनिक समाजों में सामाजिक मानदंड कमजोर हो जाते हैं?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- ई. ड्यूरखाइम
- जॉर्ज सिमेल
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- ई. ड्यूरखाइम (Émile Durkheim) ने “अराजकता” (Anomie) की अवधारणा का उपयोग यह बताने के लिए किया कि जब समाज में कोई स्पष्ट नियम, मानक या उद्देश्य नहीं रह जाते हैं, तो व्यक्ति दिशाहीन और अनिश्चित महसूस करता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: ड्यूरखाइम ने “द डिवीज़न ऑफ लेबर इन सोसाइटी” और “सुसाइड” (Suicide) जैसी अपनी कृतियों में अराजकता का विस्तृत विश्लेषण किया। उन्होंने तर्क दिया कि आधुनिक समाजों में, तीव्र सामाजिक परिवर्तन, श्रम का अत्यधिक विभाजन, और पारंपरिक सामाजिक बंधनों का क्षरण व्यक्ति में अराजकता की भावना पैदा कर सकता है, जिससे आत्महत्या दर बढ़ सकती है।
- गलत विकल्प: मार्क्स का केंद्रीय विषय वर्ग संघर्ष है, वेबर का शक्ति और नौकरशाही है, और सिमेल का शहरी जीवन और मुद्रा अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित है।
प्रश्न 18: “समाजशास्त्र” शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया?
- हरबर्ट स्पेंसर
- अगस्त कॉम्ते
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- अगस्त कॉम्ते (Auguste Comte), एक फ्रांसीसी दार्शनिक, को “समाजशास्त्र का जनक” कहा जाता है। उन्होंने 1838 में “समाजशास्त्र” (Sociology) शब्द गढ़ा।
- संदर्भ एवं विस्तार: कॉम्ते ने समाज का वैज्ञानिक अध्ययन करने के लिए एक नए अनुशासन की आवश्यकता महसूस की और इसे “समाजशास्त्र” नाम दिया। वे मानते थे कि सामाजिक घटनाओं को समझने के लिए प्रत्यक्षवादी (positivist) दृष्टिकोण का उपयोग किया जाना चाहिए।
- गलत विकल्प: स्पेंसर, मार्क्स और वेबर सभी प्रमुख प्रारंभिक समाजशास्त्री थे, लेकिन उन्होंने इस शब्द का प्रयोग नहीं किया।
प्रश्न 19: भारतीय समाज में “हरिजन” (Harijan) शब्द का प्रयोग किसने किया, जिसका अर्थ है “ईश्वर के लोग”?
- बी. आर. अम्बेडकर
- एम. के. गांधी (महात्मा गांधी)
- एम. एन. श्रीनिवास
- ज्योतिबा फुले
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- एम. के. गांधी (महात्मा गांधी) ने भारत में “अछूत” (Untouchables) माने जाने वाले समुदायों के लिए “हरिजन” शब्द का प्रयोग किया। उनका उद्देश्य इस शब्द के माध्यम से इन समुदायों के प्रति सम्मान और मानवतावादी दृष्टिकोण को बढ़ावा देना था।
- संदर्भ एवं विस्तार: गांधीजी ने जातिगत भेदभाव को समाप्त करने और दलितों के उत्थान के लिए अथक प्रयास किए। हालांकि, बाद में बी. आर. अम्बेडकर जैसे नेताओं और दलित समुदायों के सदस्यों ने स्वयं इस शब्द को अस्वीकार कर दिया और “दलित” (Dalit) शब्द को प्राथमिकता दी, जिसका अर्थ “कुचले हुए” या “दबे हुए” है, जो उनकी वास्तविक सामाजिक स्थिति को दर्शाता है।
- गलत विकल्प: अम्बेडकर ने “दलित” शब्द को लोकप्रिय बनाया। ज्योतिबा फुले ने “सत्यशोधक समाज” की स्थापना की और जाति विरोधी आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। श्रीनिवास ने “संस्कृतिकरण” जैसी अवधारणाएं दीं।
प्रश्न 20: सामाजिक अनुसंधान में “सांस्कृतिक सापेक्षवाद” (Cultural Relativism) का दृष्टिकोण क्या कहता है?
- सभी संस्कृतियाँ एक ही विकासवादी पथ का अनुसरण करती हैं।
- किसी संस्कृति को उसके अपने संदर्भ में समझा जाना चाहिए, न कि किसी बाहरी मानक से।
- पश्चिमी संस्कृति सभी संस्कृतियों का आदर्श प्रारूप है।
- मानव व्यवहार सार्वभौमिक रूप से समान है।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सांस्कृतिक सापेक्षवाद का दृष्टिकोण मानता है कि किसी भी संस्कृति की प्रथाओं, विश्वासों और मूल्यों को उस संस्कृति के अपने आंतरिक तर्क और संदर्भ में ही समझा जाना चाहिए। इसका अर्थ है कि किसी को भी किसी अन्य संस्कृति का मूल्यांकन अपनी संस्कृति के मानदंडों के आधार पर नहीं करना चाहिए।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह मानवशास्त्री फ्रैंज बोआस (Franz Boas) से जुड़ा हुआ है। यह “जातीय-केंद्रवाद” (Ethnocentrism) का विरोधी है, जिसमें व्यक्ति अपनी संस्कृति को श्रेष्ठ मानता है और दूसरों का मूल्यांकन उसी के आधार पर करता है।
- गलत विकल्प: विकल्प (a) विकासवाद से संबंधित है। विकल्प (c) जातीय-केंद्रवाद का उदाहरण है। विकल्प (d) सांस्कृतिक सापेक्षवाद के विपरीत है, जो संस्कृतियों के बीच भिन्नता पर जोर देता है।
प्रश्न 21: पीटर एल. बर्जर (Peter L. Berger) ने “समाज को एक अजनबी के रूप में” (The Sacred Canopy: Elements of a Sociological Theory of Religion) की बात करते हुए, धर्म को किस रूप में वर्णित किया?
- एक व्यक्तिगत अनुभव
- मानव निर्मित दुनिया का एक महान सुरक्षात्मक ढाँचा
- एक सामाजिक नियंत्रण का उपकरण
- विकासवादी प्रक्रिया का एक चरण
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- पीटर एल. बर्जर ने अपनी पुस्तक “द सेक्रेड कैनोपी” में धर्म को “मानव निर्मित दुनिया का एक महान सुरक्षात्मक ढाँचा” (a great protective shield of meaning) के रूप में वर्णित किया।
- संदर्भ एवं विस्तार: बर्जर के अनुसार, धर्म ब्रह्मांड को एक सुसंगत और अर्थपूर्ण ढाँचा प्रदान करके मानव को अराजकता, अनिश्चितता और मृत्यु के भय से बचाता है। यह समाज को एक सामूहिक चेतना और साझा अर्थ प्रदान करता है, जिससे एक “पवित्र कैनोपी” का निर्माण होता है।
- गलत विकल्प: यद्यपि धर्म व्यक्तिगत अनुभव, सामाजिक नियंत्रण और विकासवादी प्रक्रिया से जुड़ा हो सकता है, बर्जर का मुख्य जोर इसे एक सुरक्षात्मक, अर्थ-निर्माता ढाँचे के रूप में देखना था।
प्रश्न 22: भारतीय संदर्भ में, “रैयतवाड़ी प्रणाली” (Ryotwari System) क्या थी?
- एक सैन्य संगठन
- भूमि राजस्व प्रणाली जिसमें किसान सीधे राज्य को कर देते थे
- एक धार्मिक सुधार आंदोलन
- पारंपरिक ग्राम पंचायत की भूमिका
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- रैयतवाड़ी प्रणाली ब्रिटिश भारत में एक प्रमुख भूमि राजस्व प्रणाली थी। इसमें, भूमि का स्वामित्व और प्रत्यक्ष कर भुगतान का अधिकार किसानों (रैयत) के पास होता था, न कि जमींदारों के पास।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह प्रणाली मुख्य रूप से मद्रास, बॉम्बे और असम के कुछ हिस्सों में लागू की गई थी। इसका उद्देश्य भूमि पर प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित करना और राजस्व संग्रह को सुव्यवस्थित करना था, हालांकि इसने किसानों पर भारी बोझ भी डाला।
- गलत विकल्प: यह कोई सैन्य संगठन, धार्मिक सुधार या ग्राम पंचायत की भूमिका नहीं थी, बल्कि एक आर्थिक और प्रशासनिक व्यवस्था थी।
प्रश्न 23: निम्नांकित में से कौन सी अवधारणा रॉबर्ट के. मर्टन (Robert K. Merton) द्वारा प्रस्तुत की गई है?
- तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत (Rational Choice Theory)
- मध्यम-श्रेणी सिद्धांत (Middle-Range Theory)
- अभिजन सिद्धांत (Elite Theory)
- संरचनात्मक-कार्यवादी द्वंद्वात्मकता (Structural-Functional Dialectics)
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- रॉबर्ट के. मर्टन ने “मध्यम-श्रेणी सिद्धांत” (Middle-Range Theory) की अवधारणा प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि समाजशास्त्र को न तो अत्यधिक सामान्य (जैसे कॉम्ते के सिद्धांत) और न ही पूरी तरह से विशिष्ट (जैसे किसी विशेष घटना का विवरण) होना चाहिए, बल्कि मध्यम-श्रेणी के सिद्धांत विकसित करने चाहिए जो सामाजिक जीवन के विशेष पहलुओं की व्याख्या कर सकें।
- संदर्भ एवं विस्तार: मर्टन ने “प्रकट कार्य” (Manifest Function) और “अप्रकट कार्य” (Latent Function) जैसी अवधारणाएँ भी प्रस्तुत कीं, जो सामाजिक संस्थानों के इच्छित और अनैच्छित परिणामों का विश्लेषण करने में मदद करती हैं।
- गलत विकल्प: तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र में अन्य विद्वानों से जुड़ा है। अभिजन सिद्धांत मोस्का, पैरेटो, मिशेल से जुड़ा है। संरचनात्मक-कार्यवादी द्वंद्वात्मकता मर्टन के कार्य से सीधे नहीं जुड़ती।
प्रश्न 24: “सामाजिकरण” (Socialization) की प्रक्रिया में, व्यक्ति समाज के मानदंडों, मूल्यों और विश्वासों को कैसे आंतरिक बनाता है?
- जबरन थोपने के माध्यम से
- प्रतीकात्मक अंतःक्रिया और अनुकरण के माध्यम से
- केवल शिक्षा प्रणाली के माध्यम से
- आनुवंशिक निर्धारण के माध्यम से
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सामाजिकरण एक जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति प्रतीकात्मक अंतःक्रिया (जैसे भाषा, हाव-भाव) और अनुकरण (दूसरों के व्यवहार की नकल करना) के माध्यम से समाज के मानदंडों, मूल्यों और विश्वासों को सीखता और आंतरिक बनाता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: परिवार, स्कूल, सहकर्मी समूह और मीडिया जैसे एजेंट सामाजिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह एक सक्रिय प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति न केवल सीखता है बल्कि कभी-कभी सामाजिक मानदंडों को चुनौती भी देता है।
- गलत विकल्प: यद्यपि सामाजिक नियंत्रण के लिए कुछ हद तक जोर (न कि जबरन थोपना) हो सकता है, मुख्य प्रक्रिया सक्रिय सीखना है। शिक्षा प्रणाली सामाजिकरण का एक महत्वपूर्ण एजेंट है, लेकिन एकमात्र नहीं। आनुवंशिक निर्धारण (Genetics) सामाजिकरण से अलग है, जो सीखे हुए व्यवहार पर केंद्रित है।
प्रश्न 25: भारत में, “आदिवासी समाज” (Tribal Society) की एक महत्वपूर्ण विशेषता क्या है?
- अत्यधिक विकसित शहरी नियोजन
- समान आर्थिक और राजनीतिक संरचना
- सामुदायिक स्वामित्व और विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान
- उच्च स्तर की सामाजिक गतिशीलता
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- भारतीय आदिवासी समाजों की प्रमुख विशेषताओं में से एक उनका सामुदायिक स्वामित्व (जैसे भूमि, वन संसाधनों पर) और उनकी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान (जैसे भाषा, रीति-रिवाज, कला, धर्म) है, जो उन्हें मुख्यधारा के समाज से अलग करती है।
- संदर्भ एवं विस्तार: आदिवासी समुदाय अक्सर अपनी अलग जीवन शैली, सामाजिक संगठन और प्रकृति के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखते हैं। हालांकि, आधुनिकीकरण, वैश्वीकरण और विकास परियोजनाओं के कारण इन समाजों में महत्वपूर्ण परिवर्तन आ रहे हैं।
- गलत विकल्प: अधिकांश आदिवासी समाजों में अत्यधिक विकसित शहरी नियोजन नहीं होता। उनकी आर्थिक और राजनीतिक संरचनाएं अक्सर मुख्यधारा के समाजों से भिन्न और कम स्तरीकृत होती हैं। यद्यपि वे सामाजिक परिवर्तन का अनुभव करते हैं, उच्च स्तर की सामाजिक गतिशीलता हमेशा उनकी एक मूलभूत विशेषता नहीं रही है।