अवलोकन विधि का महत्त्व या गुण

अवलोकन विधि का महत्त्व या गुण

 ( Importance or Merits of Observation Method )

 

अवलोकन विधि सभी वैज्ञानिक अन्वेषणों का आधार है । विज्ञान की शुरुआत अवलोकनों के द्वारा ही हुई है । सामाजिक अनुसंधान में अवलोकन विधि का विशेष महत्त्व है । यह विधि मानवीय व्यवहार व सामाजिक घटना को जितनी सरल पर निर्भर नहीं रहना पर से प्राप्त कर सकता है । इस वैतानिकता से प्रकट कर पाता है , उतनी अन्य कोई भी विधि नहीं कर पाती है । इस विधि के महत्त्वों या गुणा के दिनांकित रूप में समझा जा सकता है

  1. विस्तृत प्रचलन ( Wider Use ) : अवलोकन विधि का उपयोग लगभग सभी प्रकार के विज्ञानों में किया जाता है । जॉन मेज ( John Madge ) ने लिखा है , ” समस्त आधुनिक विज्ञान अवलोकन पर ही आधारित है । ” ( ” All modern science is rooted in observation ” ) आजकल न केवल सामाजिक सर्वेक्षणों में ही , बल्कि प्रयोगात्मक अध्ययनों में अवलोकन और भी अधिक प्रचलित होता जा रहा है ।
  2. सरलता ( Simplicity ) : अवलोकन विधि सबसे अधिक सरल मानी जाती है । साधारण प्रशिक्षण के द्वारा व्यक्ति अवलोकन करने में समर्थ हो सकता है । अन्य विधियों की भांति इसके प्रयोग में उतनी कठिनाइयाँ नहीं आती हैं । एक सामान्य व्यक्ति भी अपनी इन्द्रियों के प्रयोग के द्वारा घटना का अवलोकन कर सकता है । मानव इन्द्रियों के प्रयोग के द्वारा घटना का अवलोकन सर्वाधिक सरल है । । ( 8 ) वैज्ञानिक ज्ञान का आधार ( Basis of Scientific Knowledge ) : प्रायः सभी वैज्ञानिक मानते हैं कि अवलोकन सभा वैज्ञानिक अन्वेषणों का आधार है । विज्ञान की शरुआत अवलोकन के द्वारा ही हुई है । साथ ही सिद्धांतों की सत्यता का परीक्षा के लिए भी अवलोकन की जरूरत पड़ती है । जिस किसी विषय ( Discipline ) को विज्ञान का दर्जा पाना होता वह अधिक – से – अधिक अवलोकन के प्रयोग पर जोर देता है । उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट होता है कि अवलोकन विधि सामाजिक अनुसंधान की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विधि माना सा हा सी . ए . मोजर ( CAMoser ने लिखा है , ” अवलोकन वैज्ञानिक खोज की एक अत्यन्त उच्च कोटि की विधि । । सकता है । “MUST READ THISMUST READ THIS

3.अध्ययन की प्रत्यक्ष विधि ( Direct Method of Studi : अवलोकन विधि में अनसंधानकर्ता स्वयं घटनाआ । वलोकन कर स्थिति का जायजा ले सकता है । इसके अन्तर्गत अनुसंधानकर्ता को सुचनादाता के अनुभवों तथा उत्तरा  नहीं रहना पड़ता हा माजर का कहना है कि व्यक्तियों की दैनिक क्रियाओं का अवलोकन समाजशास्त्रियों का पकार के तथ्य प्रदान करन म सक्षम होता है , जो कि वह किसी अन्य साधन द्वारा कठिनाई से ही विश्वसनीय रूप कर सकता है । इस रूप में अवलोकन सर्वाधिक उपयोगी है ।

  1. स्वाभाविक व्यवहार का अध्ययन ( Studyof Natural Behaviour ) : अवलोकन विधि के द्वारा मानवीय व्यवहार – उनकी स्वाभाविक स्थिति म अध्ययन किया जाना सम्भव है , जो कि किसी अन्य विधि द्वारा नहीं किया जा सकता । जिन जीवन इतिहास तथा गहन साक्षात्कारों के द्वारा भी वह वास्तविकता नहीं आ पाती . जो कि अवलोकन के द्वारा आती है ।
  2. गहन अध्ययन ( Intensive Study ) : अवलोकन विधि गहराई के साथ घटना की व्याख्या में सहायक होता है । का मल कारण यह है कि अनुसंधानकर्ता स्वयं घटना स्थल पर उपस्थित रहता है । साथ ही वह केवल घटने वाला लाओं को ही नहीं देखता है , बल्कि उन घटनाओं के बीच पाए जाने वाले सम्बन्धों को भी समझने का प्रयास करता ऐसी स्थिति में अवलोकन द्वारा गहन अध्ययन स्वाभाविक रूप में हो जाता है ।
  3. यथार्थता और विश्वसनीयता ( Accuracy and Reliability ) : अवलोकन विधि द्वारा एकत्रित सूचनाएँ अन्य विधियों की तुलना में अधिक यथार्थ एवं विश्वसनीय होती हैं । अन्य विधियों में अनसंधानकर्ता को सूचनादाता पर निर्भर रहना पड़ता है । सुनी हुई घटना का वृत्तान्त गलत हो सकता है । लेकिन जिस घटना को अवलोकनकर्ता ने स्वयं देखा व परखा है , उसे गलत होने की सम्भावना नहीं के बराबर है । यही कारण है कि इस विधि द्वारा प्राप्त सूचनाएं अधिक यथार्थ एवं विश्वसनीय होती हैं ।
  4. प्राक्कल्पना के निर्माण में सहायक ( Helpful in the Formation of Hypothesis ) : विज्ञान की बहुत सी प्राक्कल्पनाओं का जन्म घटनाओं के अवलोकनों के द्वारा ही हुआ है । प्राक्कल्पनाओं का निर्माण वैज्ञानिक प्रक्रिया का प्रथम चरण है । इस निर्माण कार्य में अवलोकन विधि का विशेष महत्त्व है । इसका कारण यह है कि अवलोकन बार – बार करने से अनुसंधानकर्ता के अनुभव में वृद्धि होती है । इस अनुभव के आधार पर प्राक्कल्पनाओं का निर्माण करना सम्भव होता है ।

 

  1. MUST READ ALSOMUST READ ALSO

 

अवलोकन विधि की सीमाएँ या दोष

( Limitations or Demerits of Observation Method )

वलोकन विधि का सामाजिक अनसंधान में एक विशेष महत्त्व है , फिर भी इस विधि की अपनी कुछ सीमा हैं । इस विधि का दोष बन जाता है । इसकी सीमाओं का उल्लेख करते हुए पी०वी० यंग ( P . V . Young ) ने लिखा है । ” सभी घटनाए अवलोकन के लिए स्वतंत्र अवसर प्रदान नहीं करतीं . सभी घटनाएँ जिनका अवलोकन किया जा सकता ह , उस समय नहीं घटती जब अवलोकनकर्ता उपस्थित होता है , सभी घटनाओं का अध्ययन अवलोकन विधियों के दाम किया जाना सम्भव नहीं है । ” इस प्रकार अवलोकन विधि का प्रयोग प्रत्यक स्थिति में नहीं किया जा सकता है । इसके प्रमुख दोषों या सीमाओं को निम्नांकित रूप में समझा जा सकता है ।

  1. अमूर्त घटनाओं के लिए अनुपयुक्त : कुछ घटनाएँ अमूर्त होती हैं जिनका कि अवलोकन हो ही नहीं सकता । जैसे – व्यक्तियों के विचारों , विश्वासों , मनोवृत्तियों व मूल्यों आदि ऐसे विषय हैं जिन्हें देखा जाना सम्भव नहीं है । अत : ऐसे समस्याओं के अध्ययन में अवलोकन विधि अनुपयुक्त सिद्ध होती है ।

 2.अभिमति की सम्भावना : अवलोकन विधि द्वारा अध्ययन में अनुसंधानकर्ता स्वतंत्र – सा होता है । तथ्यों व घटनाओं को देखने में प्रत्येक व्यक्ति का नजरिया अलग – अलग हो सकता है । एक व्यक्ति जिस संस्कृति में पलता है , उसका प्रभाव उसके दृष्टिकोण पर पड़ता है । अत : अनुसंधानकर्ता के व्यक्तिगत अभिमति का प्रभाव अवलोकित तथ्य पर पड़ सकता है जो कि वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए हानिकारक है ।

  1. व्यवहारों में कृत्रिमता : साधारणतया ऐसा पाया जाता है कि जिन व्यक्तियों का अवलोकन किया जा रहा है , जब कभी उन्हें इस बात का आभास हो जाता है , तब वे जानबूझकर बनावटी व्यवहार प्रदर्शन करने का प्रयत्न करते हैं । ऐसी स्थिति में अवलोकन द्वारा उनके वास्तविक एवं स्वाभाविक व्यवहार का अध्ययन कठिन हो जाता है ।
  2. भ्रामक निरीक्षण : अवलोकन आँखों के प्रयोग पर निर्भर है । लेकिन आँखों द्वारा देखी हुई घटना का विवरण भ्रामक हो सकता है । अधिकांश अवलोकन चयनात्मक ढंग से किया जाता है । अतः एक घटना जो एक व्यक्ति के लिए महत्त्वपूर्ण होती है , सम्भव है वह दूसरे के लिए कोई महत्त्व नहीं रखती हो । इस प्रकार भ्रामक निरीक्षण अवलोकन विधि का दोष है ।
  3. अधिक समय लेनेवाली एवं खर्चीली विधि : अवलोकन विधि में अध्ययन की गति धीमी होती है । विश्वसनीय निरीक्षण जल्दबाजी में सम्भव नहीं है । इसके द्वारा अध्ययन में काफी समय लगता है । समय अधिक लगने के वजह से इसमें खर्च भी अधिक होते हैं । इस प्रकार अवलोकन विधि की अपनी कुछ सीमाएँ या दोष हैं । इसके बाबजूद यह सभी प्रकार के अनुसंधान – अध्ययनों की प्रारंभिक एवं आधारभूत विधि है । अधिकांश वैज्ञानिक ज्ञान का संचय इसी विधि के द्वारा किया गया है । यदि अनुसंधानकर्ता सूझ – बूझ व ईमानदारी के साथ इस विधि का उपयोग करे तो इसके दोषों से बचा जा सकता है ।
  4. अवलोकन की अनुमति नहीं : कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जिनका अवलोकन हेतु अनुसंधानकर्ता को अनमति प्राप्त नहीं होती है । जैसे – पारिवारिक जीवन में पति – पत्नी के सम्बन्ध का अवलोकन करने की अनुमति , अनुसंधानकर्ता को नहीं भी दी जा सकती है । इस प्रकार ऐसी घटनाओं का अध्ययन अवलोकन विधि द्वारा करना कठिन है ।
  5. घटनाओं की अनिश्चितता : कछ घटनाएं ऐसी होती हैं जो अनिश्चित होती हैं । ऐसी घटनाओं का अध्ययन अवलोकन विधि द्वारा सम्भव नहीं है । जैसे – कॉलेज में लड़ाई – झगड़े का अध्ययन अनुसंधानकर्ता करना चाहता है । हो सकता है कि जब अनुसंधानकर्ता कॉलेज में मौजूद हों तो घटना न घटे और जब अनुसंधानकर्त्ता न रहे , तो घटना घट जाए ।
  6. भूतकालीन घटनाओं का अध्ययन सम्भव नहीं : अवलोकन विधि द्वारा अनुसंधानकर्ता प्रत्यक्ष रूप में जो कुछ देखता है , उसी का अध्ययन करता है । इसलिए भूतकाल में जो घटनाएं घटी हों या जो स्थितियाँ उत्पन्न हुई हों , उसका अध्ययन अवलोकन विधि द्वारा नहीं किया जा सकता है ।MUST READ ALSOMUST READ ALSO

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top