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अवधारणाओं की कसौटी: आज का समाजशास्त्र क्विज

अवधारणाओं की कसौटी: आज का समाजशास्त्र क्विज

नमस्कार, समाजशास्त्र के जिज्ञासु साधकों! आज फिर हम लाए हैं आपके लिए एक नई और ज़बरदस्त चुनौती। अपनी अवधारणाओं की पकड़ को मज़बूत करने और विश्लेषणात्मक कौशल को पैना करने का समय आ गया है। आइए, इन 25 बहुविकल्पीय प्रश्नों के माध्यम से अपनी समाजशास्त्रीय यात्रा को एक नई दिशा दें और ज्ञान की गहराई को मापें।

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान की गई विस्तृत व्याख्याओं के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।

प्रश्न 1: कार्ल मार्क्स के अनुसार, समाज का सबसे बुनियादी तत्व क्या है जो सामाजिक संरचना और परिवर्तन को निर्धारित करता है?

  1. राजनीतिक शक्ति
  2. धार्मिक विश्वास
  3. आर्थिक उत्पादन प्रणाली (Modes of Production)
  4. सांस्कृतिक मूल्य

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: कार्ल मार्क्स ने अपने भौतिकवादी दृष्टिकोण में तर्क दिया कि समाज की नींव उसके आर्थिक उत्पादन प्रणाली (जैसे सामंतवाद, पूंजीवाद) में निहित है। यह ‘आधार’ (base) समाज के ‘अधिरचना’ (superstructure) जैसे कि राजनीति, कानून, धर्म और संस्कृति को निर्धारित करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद (Historical Materialism) सिद्धांत का केंद्रीय विचार है, जिसे उनकी रचनाओं जैसे “दास कैपिटल” और “कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो” में विस्तार से समझाया गया है।
  • गलत विकल्प: राजनीतिक शक्ति, धार्मिक विश्वास और सांस्कृतिक मूल्य मार्क्स के अनुसार अधिरचना के हिस्से हैं, जो अंततः आर्थिक आधार से प्रभावित होते हैं, न कि वे स्वयं समाज को निर्धारित करने वाले प्राथमिक तत्व हैं।

प्रश्न 2: मैक्स वेबर ने किस अवधारणा का प्रयोग उस सामाजिक क्रिया को समझने के लिए किया जिसमें कर्ता अपने कार्यों के लिए व्यक्तिपरक अर्थ (subjective meaning) जोड़ता है?

  1. अनॉमी (Anomie)
  2. वेरस्टेन (Verstehen)
  3. प्रतीकवाद (Symbolism)
  4. अलगाव (Alienation)

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: मैक्स वेबर ने ‘वेरस्टेन’ (Verstehen) शब्द का प्रयोग किया, जिसका अर्थ है ‘समझना’। यह समाजशास्त्रियों के लिए व्यक्तिपरक अर्थों को समझने की आवश्यकता पर जोर देता है जो लोग अपने कार्यों से जोड़ते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा उनके व्याख्यात्मक समाजशास्त्र (Interpretive Sociology) का मूल है और “अर्थशास्त्र और समाज” (Economy and Society) जैसी रचनाओं में विस्तृत है। यह दुर्खीम के प्रत्यक्षवादी दृष्टिकोण के विपरीत है।
  • गलत विकल्प: ‘अनॉमी’ दुर्खीम की अवधारणा है जो सामाजिक मानदंडों के कमजोर होने की स्थिति को दर्शाती है। ‘अलगाव’ मार्क्स की अवधारणा है जो पूंजीवाद में श्रमिक के उत्पादन से अलगाव को बताती है। ‘प्रतीकवाद’ एक व्यापक अवधारणा है।

प्रश्न 3: एमिल दुर्खीम ने किस अवधारणा का वर्णन समाज में तब किया जब सामाजिक नियम (social norms) कमजोर हो जाते हैं और व्यक्ति दिशाहीन महसूस करता है?

  1. अलगाव (Alienation)
  2. अ-सांस्कृतिकता (A-culturality)
  3. अनॉमी (Anomie)
  4. भूमिका संघर्ष (Role Conflict)

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: दुर्खीम ने ‘अनॉमी’ (Anomie) शब्द का प्रयोग सामाजिक विघटन की स्थिति का वर्णन करने के लिए किया, जहाँ सामूहिक चेतना (collective consciousness) कमजोर हो जाती है और सामाजिक नियंत्रण अपर्याप्त हो जाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा उनकी पुस्तक “आत्महत्या” (Suicide) में महत्वपूर्ण है, जहाँ वे बताते हैं कि कैसे अनॉमी आत्महत्या की दर को बढ़ा सकती है।
  • गलत विकल्प: ‘अलगाव’ मार्क्सवादी है। ‘अ-सांस्कृतिकता’ कोई स्थापित समाजशास्त्रीय अवधारणा नहीं है। ‘भूमिका संघर्ष’ तब होता है जब किसी व्यक्ति की विभिन्न भूमिकाएँ परस्पर विरोधी होती हैं।

प्रश्न 4: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा दी गई ‘संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा निम्नलिखित में से किससे संबंधित है?

  1. उच्च जातियों द्वारा निम्न जातियों के रीति-रिवाजों को अपनाना।
  2. निम्न जातियों या जनजातियों द्वारा उच्च जातियों के रीति-रिवाजों, कर्मकांडों और जीवन शैली को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाना।
  3. पश्चिमी संस्कृति के मूल्यों और जीवन शैली को अपनाना।
  4. आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में पारंपरिक संस्थाओं का पतन।

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: संस्कृतिकरण, एम.एन. श्रीनिवास की एक प्रमुख अवधारणा है, जो उस प्रक्रिया का वर्णन करती है जिसके द्वारा निम्न सामाजिक या धार्मिक समूह (अक्सर निम्न जातियों या जनजातियों) किसी उच्च (द्विज) जाति की प्रथाओं, अनुष्ठानों, विश्वासों और जीवन शैली को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाने का प्रयास करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: श्रीनिवास ने यह अवधारणा अपनी पुस्तक “Religion and Society Among the Coorgs of South India” में प्रस्तुत की थी। यह भारतीय जाति व्यवस्था में गतिशीलता का एक रूप है।
  • गलत विकल्प: (a) गलत है क्योंकि यह प्रक्रिया विपरीत दिशा में है। (c) ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) की अवधारणा है, न कि संस्कृतिकरण। (d) ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) एक व्यापक शब्द है।

प्रश्न 5: टैलकॉट पार्सन्स के ‘एजीआईएल’ (AGIL) मॉडल में ‘I’ (Integration) का क्या अर्थ है?

  1. किसी व्यवस्था को उसके लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम बनाना।
  2. व्यवस्था के विभिन्न भागों के बीच सामंजस्य और समन्वय बनाए रखना।
  3. पर्यावरण के साथ व्यवस्था के अनुकूलन को सुनिश्चित करना।
  4. व्यवस्था के भीतर व्यवस्था बनाए रखना और सदस्यों की भावनात्मक आवश्यकताओं को पूरा करना।

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: टैलकॉट पार्सन्स के सामाजिक व्यवस्था के चार प्रकार्यात्मक पूर्व-आवश्यकताओं (functional prerequisites) के मॉडल में, ‘I’ का अर्थ ‘एकीकरण’ (Integration) है। इसका तात्पर्य समाज के विभिन्न उप-प्रणालियों (जैसे कानून, अर्थव्यवस्था, परिवार) के बीच सामंजस्य और समन्वय स्थापित करना है ताकि वे एक साथ कार्य कर सकें।
  • संदर्भ और विस्तार: AGIL मॉडल सामाजिक प्रणालियों के सामने आने वाली आवश्यक समस्याओं को हल करने के लिए चार आवश्यक प्रकार्यों का वर्णन करता है: A (Adaptation – अनुकूलन), G (Goal Attainment – लक्ष्य प्राप्ति), I (Integration – एकीकरण), और L (Latency/Pattern Maintenance – अव्यक्तता/पैटर्न रखरखाव)।
  • गलत विकल्प: (a) G (Goal Attainment) से संबंधित है। (c) A (Adaptation) से संबंधित है। (d) L (Latency/Pattern Maintenance) से संबंधित है।

प्रश्न 6: रॉबर्ट मर्टन ने ‘प्रकट प्रकार्यों’ (Manifest Functions) और ‘अप्रकट प्रकार्यों’ (Latent Functions) के बीच अंतर किया। निम्न में से कौन सा एक ‘अप्रकट प्रकार्य’ का उदाहरण है?

  1. स्कूल का मुख्य उद्देश्य बच्चों को शिक्षित करना है।
  2. एक सरकारी पेंशन योजना का उद्देश्य नागरिकों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना है।
  3. शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक पार्कों की स्थापना का उद्देश्य नागरिकों को मनोरंजन के अवसर प्रदान करना है।
  4. शहर में एक बड़ा शॉपिंग मॉल खुलने से स्थानीय छोटे दुकानदारों का व्यवसाय मंद पड़ गया।

उत्तर: (d)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: अप्रकट प्रकार्य (Latent Function) वे अनपेक्षित और अक्सर अनजाने परिणाम होते हैं जो किसी सामाजिक संरचना या संस्थान से उत्पन्न होते हैं। मॉल खुलने से स्थानीय छोटे दुकानदारों का व्यवसाय मंद पड़ना एक अप्रत्याशित और अनपेक्षित नकारात्मक परिणाम है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह मर्टन के प्रकार्यवाद (Functionalism) के सिद्धांत का हिस्सा है, जो सामाजिक घटनाओं के अप्रत्यक्ष या अनपेक्षित परिणामों पर प्रकाश डालता है।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (c) सभी ‘प्रकट प्रकार्यों’ (Manifest Functions) के उदाहरण हैं, जो किसी सामाजिक संरचना या संस्थान के ज्ञात, इच्छित और स्वीकार्य उद्देश्य होते हैं।

प्रश्न 7: जॉर्ज सिमेल के अनुसार, दो व्यक्तियों के समूह (dyad) की विशेषता क्या है?

  1. समूह की स्थिरता अधिक होती है।
  2. सदस्यों के बीच व्यक्तिगत संबंध अधिक गहन हो सकते हैं, लेकिन समूह की अपनी पहचान कमजोर होती है।
  3. सदस्यों की संख्या बढ़ने पर समूह का कार्य अधिक कुशल हो जाता है।
  4. एक सदस्य के हटने पर भी समूह बना रहता है।

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: जॉर्ज सिमेल ने छोटे समूहों, विशेष रूप से द्वंद्व (dyad – दो व्यक्तियों का समूह) का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि द्वंद्व में, सदस्यों के बीच व्यक्तिगत संबंध अत्यंत गहन होते हैं, क्योंकि हर सदस्य दूसरे के लिए सर्वोपरि होता है। हालांकि, समूह की अपनी पहचान (group identity) कमजोर होती है क्योंकि यह पूरी तरह से दो व्यक्तियों पर निर्भर करती है।
  • संदर्भ और विस्तार: सिमेल ने तर्क दिया कि जैसे ही तीसरा व्यक्ति समूह में प्रवेश करता है (triad), समूह की गतिशीलता बदल जाती है; समूह की स्थिरता बढ़ सकती है, लेकिन सदस्यों के बीच अंतरंगता कम हो सकती है।
  • गलत विकल्प: (a) और (d) गलत हैं क्योंकि द्वंद्व कम स्थिर होता है; एक सदस्य के हटने पर समूह समाप्त हो जाता है। (c) गलत है क्योंकि सदस्यों की संख्या बढ़ने पर कार्यकुशलता हमेशा नहीं बढ़ती, बल्कि जटिलता बढ़ती है।

प्रश्न 8: इरावती कर्वे ने भारतीय समाज में नातेदारी (Kinship) को समझने के लिए किस दृष्टिकोण का प्रयोग किया?

  1. आर्थिक नियतिवाद
  2. संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक
  3. सांस्कृतिक सापेक्षवाद
  4. प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: इरावती कर्वे ने भारतीय समाज में नातेदारी व्यवस्था के अध्ययन के लिए संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक (Structural-Functional) दृष्टिकोण का प्रयोग किया। उन्होंने भारतीय समाज को एक “अखंड नातेदारी समाज” (a segmentary lineage society) के रूप में देखा, जहाँ नातेदारी संबंध सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को व्यवस्थित करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: उनकी पुस्तक “Kinship Organization in India” में, उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों की नातेदारी प्रणालियों की तुलनात्मक रूप से जांच की और दिखाया कि कैसे विवाह, वंश और पारिवारिक संबंध समाज के कामकाज को बनाए रखते हैं।
  • गलत विकल्प: (a) मार्क्सवादी विचार से जुड़ा है। (c) विभिन्न संस्कृतियों के मूल्यों को उनके अपने संदर्भ में समझने पर जोर देता है। (d) सूक्ष्म-स्तरीय सामाजिक अंतःक्रियाओं पर केंद्रित है।

प्रश्न 9: निम्नलिखित में से कौन सा समाजशास्त्रीय शोध पद्धति का गुणात्मक (Qualitative) तरीका नहीं है?

  1. साक्षात्कार (Interview)
  2. फोकस समूह (Focus Group)
  3. गणितीय मॉडलिंग (Mathematical Modeling)
  4. नृवंशविज्ञान (Ethnography)

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: गणितीय मॉडलिंग एक मात्रात्मक (Quantitative) शोध विधि है। यह चरों (variables) के बीच संबंधों को समझने और भविष्यवाणी करने के लिए गणितीय समीकरणों और सूत्रों का उपयोग करती है।
  • संदर्भ और विस्तार: गुणात्मक विधियाँ (जैसे साक्षात्कार, फोकस समूह, नृवंशविज्ञान, केस स्टडी) गैर-संख्यात्मक डेटा एकत्र करने और उनका विश्लेषण करने पर ध्यान केंद्रित करती हैं, जिसका उद्देश्य गहराई से समझ और व्याख्या प्राप्त करना होता है।
  • गलत विकल्प: साक्षात्कार (a), फोकस समूह (b), और नृवंशविज्ञान (d) सभी प्रमुख गुणात्मक शोध विधियाँ हैं जो लोगों के अनुभवों, दृष्टिकोणों और सामाजिक व्यवहारों की गहराई से पड़ताल करती हैं।

प्रश्न 10: एमिल दुर्खीम ने समाजशास्त्र को एक ‘विज्ञान’ के रूप में स्थापित करने के लिए किस प्रकार की इकाइयों को अध्ययन का मुख्य विषय माना?

  1. व्यक्तिगत प्रेरणाएँ और विचार
  2. सामाजिक क्रिया के व्यक्तिपरक अर्थ
  3. सामाजिक तथ्य (Social Facts)
  4. मानसिक अवस्थाएँ

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: दुर्खीम ने समाजशास्त्र का अध्ययन ‘सामाजिक तथ्यों’ (Social Facts) पर आधारित करने का प्रस्ताव दिया। उनके अनुसार, सामाजिक तथ्य ‘विचार करने, महसूस करने और कार्य करने के ऐसे तरीके हैं जो व्यक्ति के लिए बाहरी होते हैं और उनमें एक बाध्यकारी शक्ति होती है।’
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा उनकी पुस्तक “समाजशास्त्रीय विधि के नियम” (The Rules of Sociological Method) में स्पष्ट की गई है। दुर्खीम का मानना था कि समाजशास्त्र को व्यक्तियों के बजाय समाज की इन बाहरी, वस्तुनिष्ठ वास्तविकताओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि इसे एक विज्ञान बनाया जा सके।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (d) व्यक्तिगत स्तर के अध्ययन हैं, जिन्हें दुर्खीम समाजशास्त्र के अध्ययन के लिए पर्याप्त नहीं मानते थे। वेबर ‘व्यक्तिपरक अर्थों’ पर ध्यान केंद्रित करते थे।

प्रश्न 11: समाजशास्त्र में ‘सामूहिक चेतना’ (Collective Consciousness) की अवधारणा किस विचारक से सर्वाधिक जुड़ी है?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. एमिल दुर्खीम
  4. हरबर्ट स्पेंसर

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: ‘सामूहिक चेतना’ (Collective Consciousness) एमिल दुर्खीम की एक केंद्रीय अवधारणा है। यह किसी समाज के सदस्यों में साझा विश्वासों, विचारों, नैतिक दृष्टिकोणों और ज्ञान का योग है, जो एक सामूहिक अंतःचेतना का निर्माण करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम के अनुसार, सामाजिक एकजुटता (social solidarity) इसी सामूहिक चेतना पर आधारित होती है। आदिम समाजों में यांत्रिक एकता (mechanical solidarity) में यह प्रबल होती है, जबकि आधुनिक समाजों में यह कमजोर पड़ जाती है।
  • गलत विकल्प: मार्क्स आर्थिक नियतिवाद पर, वेबर व्यक्तिपरक अर्थों और नौकरशाही पर, और स्पेंसर सामाजिक विकास और ‘सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट’ पर केंद्रित थे।

प्रश्न 12: समाजशास्त्र में ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा किसने दी?

  1. विलियम ग्राहम समनर
  2. एल्बन वॉरेन
  3. रॉबर्ट पार्क
  4. चार्ल्स कर्टिस

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सत्यता: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा को एल्बन वॉरेन (Alvin Toffler ने अपनी पुस्तक “Future Shock” में इसे लोकप्रिय बनाया, लेकिन मूल अवधारणा विलियम ओगबर्न (William Ogburn) ने दी थी, और वॉरेन ने इसे विकसित किया। यदि ओगबर्न विकल्प में होता तो वह सही होता, लेकिन वॉरेन यहाँ सबसे उपयुक्त विकल्प है क्योंकि उन्होंने इस पर विस्तार से लिखा। (Note: While Ogburn coined the term, Toffler popularized and Warren expanded upon it in a sociological context, making it a common association for quiz purposes if Ogburn is absent. For accuracy in UPSC level, Ogburn is preferred. However, given the options, Warren is often accepted as a developer.) Let’s assume Ogburn is intended or Warren is accepted for the purpose of this quiz. To ensure accuracy for competitive exams, I will slightly rephrase the explanation assuming Ogburn as the primary source for this specific question’s context, but using Warren from the options. **Correction: William Ogburn is the correct person. Alvin Toffler popularized it. Warren is less common.** Let’s pick the *most accurate* widely accepted source, which is Ogburn. Since Ogburn is NOT an option, and Toffler is about “Future Shock” rather than the term itself, the question might be flawed or refer to a less common sociologist using the term. However, if forced to choose, and acknowledging Ogburn is the originator, then it’s a problem. Let’s *assume* the question implicitly means “popularized/developed” or there’s a mistake in the options. For the sake of moving forward and creating a valid quiz, I will proceed assuming **William Ogburn** is the intended answer, and since he’s not present, this question is problematic. Let’s regenerate a question that has clear options.

    **Re-generating Question 12:**
    प्रश्न 12: समाज में सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility) का अध्ययन करते समय, एक व्यक्ति की उस प्रक्रिया को क्या कहा जाता है जिसमें वह अपनी जन्मजात जाति से भिन्न किसी अन्य जाति के व्यवहारों को अपनाता है?

    1. पश्चिमीकरण (Westernization)
    2. धर्मनिरपेक्षीकरण (Secularization)
    3. संस्कृतिकरण (Sanskritization)
    4. आधुनिकीकरण (Modernization)

    उत्तर: (c)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: ‘संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा एम.एन. श्रीनिवास द्वारा दी गई थी। यह वह प्रक्रिया है जिसमें एक निम्न जाति या जनजाति उच्च जाति की प्रथाओं, अनुष्ठानों, कर्मकांडों और जीवन शैली को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति को सुधारने का प्रयास करती है।
    • संदर्भ और विस्तार: यह भारतीय जाति व्यवस्था के भीतर गतिशीलता का एक महत्वपूर्ण तंत्र है, जो सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन को दर्शाता है।
    • गलत विकल्प: ‘पश्चिमीकरण’ पश्चिमी जीवन शैली को अपनाने से संबंधित है। ‘धर्मनिरपेक्षीकरण’ धर्म के महत्व में कमी और दुनियावी (secular) दृष्टिकोणों के उदय से संबंधित है। ‘आधुनिकीकरण’ एक व्यापक प्रक्रिया है जिसमें तकनीकी, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन शामिल हैं।


    प्रश्न 13: जनजातीय समुदायों के अध्ययन में ‘अलगाव’ (Isolation) और ‘सामूहिकता’ (Collectivism) जैसे मुद्दों को किस समाजशास्त्री ने उजागर किया?

    1. एम.एन. श्रीनिवास
    2. जी.एस. घुरिये
    3. एन.के. बोस
    4. इरावती कर्वे

    उत्तर: (c)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: एन.के. बोस (N.K. Bose) ने भारतीय जनजातियों के अध्ययन में उनके अलगाव, मुख्यधारा के समाज के साथ उनके संबंध, और उनकी सांस्कृतिक पहचान पर बाहरी प्रभावों के प्रभाव पर विस्तार से लिखा। उन्होंने जनजाति और कृषि समाज के बीच अंतर और भारतीय समाज में उनके एकीकरण (या उसके अभाव) के मुद्दों को भी उठाया।
    • संदर्भ और विस्तार: उनकी रचनाएँ, जैसे “The Structure of Hindu Society” और जनजातियों पर उनके निबंध, इन विषयों पर महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
    • गलत विकल्प: एम.एन. श्रीनिवास संस्कृतिकरण के लिए जाने जाते हैं। जी.एस. घुरिये ने जाति और जनजातियों पर लिखा लेकिन बोस का दृष्टिकोण विशिष्ट था। इरावती कर्वे ने नातेदारी पर काम किया।

    प्रश्न 14: ‘जाति व्यवस्था’ में ‘जजमानी प्रथा’ (Jajmani System) क्या थी?

    1. जातियों के बीच विवाह संबंध स्थापित करने की प्रक्रिया।
    2. जमींदारों और किसानों के बीच भूमि स्वामित्व का वितरण।
    3. ग्रामीण भारतीय समाज में एक पारस्परिक सेवा-आदान-प्रदान प्रणाली जहाँ विभिन्न जातियों के शिल्पकार और सेवा प्रदाता (जैसे नाई, धोबी, कुम्हार) अपने ग्राहकों (जाजमानों) को वर्ष भर सेवाएँ देते थे और बदले में उन्हें अनाज या अन्य वस्तुओं के रूप में भुगतान मिलता था।
    4. सामाजिक बहिष्कार का एक रूप।

    उत्तर: (c)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: जजमानी प्रथा ग्रामीण भारतीय समाज में एक पारंपरिक आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था थी जहाँ सेवा प्रदाता जातियाँ (जैसे कुम्हार, नाई, बढ़ई, मोची) अपने ग्राहकों (जाजमानों) को वर्ष भर सेवाएँ प्रदान करती थीं और बदले में उन्हें फसल का एक निश्चित हिस्सा या अन्य भुगतान प्राप्त होता था।
    • संदर्भ और विस्तार: यह व्यवस्था एक जटिल पारस्परिक संबंध स्थापित करती थी और जातिगत पदानुक्रम में भूमिकाएँ स्पष्ट करती थी। डब्ल्यू.एच. विल्सन (W.H. Wiser) ने इस पर विस्तार से शोध किया।
    • गलत विकल्प: (a) विवाह संबंध ‘गोत्र’ या ‘जाति’ के भीतर हो सकते हैं, पर यह जजमानी नहीं है। (b) भूमि स्वामित्व का वितरण भिन्न हो सकता है। (d) यह सामाजिक बहिष्कार का प्रत्यक्ष रूप नहीं, बल्कि एक सेवा-विनिमय व्यवस्था है।

    प्रश्न 15: निम्नलिखित में से कौन सी समाजशास्त्रीय अवधारणा ‘सांस्कृतिक प्रसार’ (Cultural Diffusion) से सबसे निकटता से संबंधित है?

    1. अनुकूलन (Adaptation)
    2. आत्मसातकरण (Assimilation)
    3. सांस्कृतिक आत्मसात्करण (Acculturation)
    4. साम्परायिकता (Communalism)

    उत्तर: (c)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: ‘सांस्कृतिक आत्मसात्करण’ (Acculturation) वह प्रक्रिया है जिसमें एक संस्कृति के तत्व दूसरी संस्कृति के तत्वों के संपर्क में आने पर फैलते और मिश्रित होते हैं। यह सांस्कृतिक प्रसार का एक रूप है, जहाँ एक समूह या समाज के सदस्य दूसरी संस्कृति के तत्वों को अपनाते हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: यह सांस्कृतिक प्रसार से निकटता से संबंधित है, जहाँ एक संस्कृति के विचार, प्रथाएँ, या वस्तुएँ एक भौगोलिक क्षेत्र से दूसरे में फैलती हैं।
    • गलत विकल्प: ‘अनुकूलन’ पर्यावरण के अनुसार ढलना है। ‘आत्मसातकरण’ (Assimilation) एक ऐसी प्रक्रिया है जहाँ एक समूह दूसरी संस्कृति में पूरी तरह से समाहित हो जाता है, अक्सर अपनी मूल पहचान खो देता है। ‘साम्परायिकता’ धार्मिक या जातीय समूहों के बीच प्रतिस्पर्धा से संबंधित है।

    प्रश्न 16: एफ. टोनीज़ (Ferdinand Tönnies) ने किस अवधारणा का उपयोग पारंपरिक, घनिष्ठ सामुदायिक जीवन (जैसे गाँव) का वर्णन करने के लिए किया?

    1. गेसेलशाफ्ट (Gesellschaft)
    2. गेमाइनशाफ्ट (Gemeinschaft)
    3. बुर्जुआ समाज (Bourgeois Society)
    4. औद्योगिक समाज (Industrial Society)

    उत्तर: (b)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: फर्डिनेंड टोनीज़ ने ‘गेमाइनशाफ्ट’ (Gemeinschaft) शब्द का प्रयोग उन सामाजिक समूहों के लिए किया जो घनिष्ठ, भावनात्मक संबंधों, पारंपरिक मूल्यों और व्यक्तिगत संबंधों पर आधारित होते हैं, जैसे कि परिवार, पड़ोस या पारंपरिक गाँव।
    • संदर्भ और विस्तार: उन्होंने इसका विपरीत ‘गेसेलशाफ्ट’ (Gesellschaft) का प्रयोग किया, जो आधुनिक, औद्योगिक समाजों की विशेषता है, जहाँ संबंध अधिक अवैयक्तिक, औपचारिक और स्वार्थ-आधारित होते हैं।
    • गलत विकल्प: (a) गेसेलशाफ्ट आधुनिक, अवैयक्तिक समाज का वर्णन करता है। (c) और (d) समाज के प्रकार हैं, लेकिन टोनीज़ के विशिष्ट द्वंद्व का हिस्सा नहीं।

    प्रश्न 17: समाजशास्त्र में ‘भूमिका प्रतिमान’ (Role Set) की अवधारणा किसने विकसित की?

    1. रॉबर्ट मर्टन
    2. रॉल्फ लिंटन
    3. एमिल दुर्खीम
    4. टैलकॉट पार्सन्स

    उत्तर: (a)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: रॉबर्ट मर्टन ने ‘भूमिका प्रतिमान’ (Role Set) की अवधारणा विकसित की। यह एक सामाजिक स्थिति (status) से जुड़े विभिन्न भूमिकाओं (roles) के एक समूह को संदर्भित करता है। प्रत्येक स्थिति के साथ कई भूमिकाएँ जुड़ी होती हैं, और इन सभी भूमिकाओं के समूह को ‘भूमिका प्रतिमान’ कहा जाता है।
    • संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, एक ‘शिक्षक’ स्थिति के साथ कई भूमिकाएँ जुड़ी होती हैं: छात्रों को पढ़ाना, माता-पिता से बात करना, सहकर्मियों के साथ सहयोग करना, प्रशासकों को रिपोर्ट करना, आदि।
    • गलत विकल्प: रॉल्फ लिंटन ने ‘स्टेटस’ और ‘रोल’ की मूल अवधारणाएँ दीं। दुर्खीम और पार्सन्स सामाजिक संरचना और प्रकार्यों पर ध्यान केंद्रित करते थे।

    प्रश्न 18: भारतीय समाज में ‘धर्मनिरपेक्षीकरण’ (Secularization) की प्रक्रिया का क्या अर्थ है?

    1. सभी धर्मों का अंत हो जाना।
    2. समाज और राजनीति से धर्म के प्रभाव का क्रमिक अलगाव या कमी।
    3. धार्मिक सहिष्णुता का बढ़ना।
    4. सभी को एक ही धर्म अपनाने के लिए बाध्य करना।

    उत्तर: (b)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: भारतीय समाज के संदर्भ में, धर्मनिरपेक्षीकरण का अर्थ है समाज के विभिन्न क्षेत्रों, विशेष रूप से राजनीति, शिक्षा और सार्वजनिक जीवन से धर्म के प्रत्यक्ष प्रभाव का कम होना या अलगाव। यह धार्मिक मान्यताओं में कमी नहीं, बल्कि धर्म की सार्वजनिक भूमिका में कमी है।
    • संदर्भ और विस्तार: यह पश्चिमी समाजों में देखी जाने वाली प्रक्रिया से भिन्न हो सकता है, क्योंकि भारत में धर्म और राजनीति के बीच संबंध अधिक जटिल हैं।
    • गलत विकल्प: (a) और (d) गलत हैं। (c) धार्मिक सहिष्णुता ‘धर्मनिरपेक्षीकरण’ का एक संभावित परिणाम हो सकती है, लेकिन यह स्वयं धर्मनिरपेक्षीकरण की परिभाषा नहीं है।

    प्रश्न 19: निम्नलिखित में से कौन सा हर्बर्ट स्पेंसर के ‘सामाजिक डार्विनवाद’ (Social Darwinism) का मुख्य विचार है?

    1. समाज का विकास जैविक विकास के समानांतर होता है।
    2. समाज को जीवित रहने के लिए अपने सदस्यों को सहायता प्रदान करनी चाहिए।
    3. समाज की संरचनात्मक अखंडता को बनाए रखना सर्वोपरि है।
    4. केवल योग्यतम (fittest) व्यक्ति और समाज ही जीवित रहेंगे, और कमजोरों को प्रतिस्पर्धा से बाहर कर दिया जाएगा।

    उत्तर: (d)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: हर्बर्ट स्पेंसर, एक विकासवादी समाजशास्त्री, ने चार्ल्स डार्विन के ‘प्राकृतिक चयन’ (natural selection) के सिद्धांत को समाज पर लागू किया। उनका मानना था कि समाज भी एक जीव की तरह विकसित होता है, और जो समाज या व्यक्ति सबसे अनुकूलित (fittest) होंगे, वे ही सफल होंगे और जीवित रहेंगे।
    • संदर्भ और विस्तार: उन्होंने ‘योग्यतम की उत्तरजीविता’ (Survival of the Fittest) के विचार को समाज पर लागू किया, जो सामाजिक कल्याणकारी नीतियों और कमजोरों के लिए सहायता के विचार के विरुद्ध था।
    • गलत विकल्प: (a) गलत है, यह केवल एक समानता है। (b) स्पेंसर के विचारों के विपरीत है। (c) समाज की अखंडता महत्वपूर्ण है, लेकिन जीवित रहने का मापदंड ‘योग्यता’ है।

    प्रश्न 20: शहरी समाजशास्त्र (Urban Sociology) में ‘शहरीकरण’ (Urbanization) की प्रक्रिया से क्या तात्पर्य है?

    1. ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार।
    2. शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या की वृद्धि और विस्तार, जिसके परिणामस्वरूप लोगों के जीवन के तरीकों, सामाजिक संबंधों और संस्कृति में परिवर्तन होता है।
    3. पारंपरिक ग्रामीण संस्थाओं का विकास।
    4. प्रदूषण और भीड़भाड़ जैसी शहरी समस्याओं का समाधान।

    उत्तर: (b)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: शहरीकरण एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर जनसंख्या का प्रवासन, शहरों का भौतिक विस्तार और इन परिवर्तनों से उत्पन्न होने वाले सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिवर्तन शामिल हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: यह केवल जनसंख्या वृद्धि नहीं है, बल्कि लोगों के रहने, काम करने और बातचीत करने के तरीके में बदलाव भी लाता है।
    • गलत विकल्प: (a) और (c) शहरीकरण के विपरीत या असंबंधित हैं। (d) शहरीकरण की समस्याएँ हैं, समाधान नहीं।

    प्रश्न 21: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) के दृष्टिकोण के अनुसार, ‘स्व’ (Self) का विकास कैसे होता है?

    1. यह जन्मजात और अपरिवर्तनीय होता है।
    2. यह सामाजिक अंतःक्रियाओं और दूसरों की प्रतिक्रियाओं के माध्यम से सीखा और निर्मित होता है।
    3. यह केवल व्यक्तिगत अनुभव और चेतना से उत्पन्न होता है।
    4. यह सामाजिक संरचनाओं द्वारा पूरी तरह से निर्धारित होता है।

    उत्तर: (b)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद, विशेष रूप से जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) के कार्यों से प्रेरित, मानता है कि ‘स्व’ (Self) एक सामाजिक उत्पाद है। यह व्यक्ति की दूसरों के साथ प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) के माध्यम से होने वाली अंतःक्रियाओं के माध्यम से विकसित होता है, जहाँ वह दूसरों की नज़रों में खुद को देखता है और प्रतिक्रिया करता है।
    • संदर्भ और विस्तार: मीड ने ‘मैं’ (I) और ‘मी’ (Me) की अवधारणाएँ दीं, जहाँ ‘मी’ सामाजिककृत ‘स्व’ है और ‘आई’ उस पर प्रतिक्रिया करने वाला व्यक्तिपरक ‘स्व’ है।
    • गलत विकल्प: (a) गलत है क्योंकि ‘स्व’ गतिशील और सीखा हुआ है। (c) केवल व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित नहीं है, सामाजिक अंतःक्रियाएँ आवश्यक हैं। (d) सामाजिक संरचनाएँ महत्वपूर्ण हैं, लेकिन ‘स्व’ का निर्माण स्वयं अंतःक्रियाओं से होता है, न कि केवल संरचनाओं द्वारा।

    प्रश्न 22: समाजशास्त्रीय अनुसंधान में ‘विश्वसनीयता’ (Reliability) का क्या अर्थ है?

    1. यह मापता है कि कोई उपकरण वास्तव में क्या मापने का दावा करता है।
    2. यह सुनिश्चित करता है कि अनुसंधान निष्कर्ष समाज पर लागू होते हैं।
    3. यह मापता है कि यदि अनुसंधान को दोहराया जाए तो क्या परिणाम सुसंगत (consistent) रहेंगे।
    4. यह अनुसंधान के नैतिक मानकों के पालन को सुनिश्चित करता है।

    उत्तर: (c)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: समाजशास्त्रीय अनुसंधान में ‘विश्वसनीयता’ (Reliability) उस हद को संदर्भित करती है जिस तक एक माप या शोध उपकरण बार-बार उपयोग करने पर सुसंगत परिणाम देता है। दूसरे शब्दों में, क्या आपको हर बार समान या बहुत समान परिणाम मिलेंगे?
    • संदर्भ और विस्तार: यह ‘वैधता’ (Validity) से भिन्न है, जो यह मापता है कि कोई उपकरण वास्तव में क्या मापने का इरादा रखता है।
    • गलत विकल्प: (a) ‘वैधता’ (Validity) की परिभाषा है। (b) सामान्यीकरण (Generalization) या वैधता से संबंधित हो सकता है। (d) यह अनुसंधान नैतिकता (Research Ethics) से संबंधित है।

    प्रश्न 23: निम्नलिखित में से कौन सा सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) का एक प्रकार है?

    1. पारिवारिक विघटन
    2. आर्थिक असमता
    3. भूमिका प्रत्याशा
    4. अनुकूलन प्रक्रिया

    उत्तर: (b)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: सामाजिक स्तरीकरण समाज में व्यक्तियों और समूहों को उनकी संपत्ति, आय, सामाजिक स्थिति, शिक्षा या शक्ति के आधार पर पदानुक्रमित स्तरों में व्यवस्थित करने की प्रक्रिया है। आर्थिक असमानता (Economic inequality) इस स्तरीकरण का एक प्रमुख संकेतक और परिणाम है।
    • संदर्भ और विस्तार: स्तरीकरण के अन्य रूपों में जाति, वर्ग, लिंग आदि शामिल हैं।
    • गलत विकल्प: (a) पारिवारिक विघटन एक सामाजिक समस्या है। (c) भूमिका प्रत्याशा किसी भूमिका को निभाने से जुड़ी अपेक्षाएँ हैं। (d) अनुकूलन एक प्रक्रिया है।

    प्रश्न 24: समाज में ‘विचलन’ (Deviance) की व्याख्या करने वाले समाजशास्त्रीय सिद्धांतों में से कौन सा इस विचार पर जोर देता है कि विचलन एक सीखा हुआ व्यवहार है, जो अक्सर उन समूहों के साथ अंतःक्रिया के माध्यम से सीखा जाता है जो विचलन को सकारात्मक रूप से देखते हैं?

    1. तनाव सिद्धांत (Strain Theory)
    2. लेबलिंग सिद्धांत (Labeling Theory)
    3. विभेदक साहचर्य सिद्धांत (Differential Association Theory)
    4. सामाजिक नियंत्रण सिद्धांत (Social Control Theory)

    उत्तर: (c)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: विभेदक साहचर्य सिद्धांत (Differential Association Theory), जिसे एडविन सदरलैंड (Edwin Sutherland) ने विकसित किया था, बताता है कि लोग अपराध और विचलन सीखते हैं, ठीक उसी तरह जैसे वे अन्य व्यवहार सीखते हैं। यह दूसरों के साथ, विशेष रूप से निकटतम व्यक्तियों के साथ, अंतःक्रिया के माध्यम से होता है, जहाँ व्यक्ति अपराध करने के पक्ष या विपक्ष में तर्क सीखते हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत विचलन के लिए व्यक्तिगत मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियों के बजाय सामाजिक सीखने की प्रक्रियाओं पर जोर देता है।
    • गलत विकल्प: (a) तनाव सिद्धांत (जैसे मर्टन) बताता है कि जब व्यक्ति समाज के लक्ष्यों को प्राप्त करने के साधन से वंचित होते हैं तो विचलन उत्पन्न होता है। (b) लेबलिंग सिद्धांत का तर्क है कि विचलन तब उत्पन्न होता है जब किसी व्यक्ति को समाजीकृत किया जाता है और समाज द्वारा ‘विचलित’ के रूप में लेबल किया जाता है। (d) सामाजिक नियंत्रण सिद्धांत उन तंत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है जो लोगों को विचलित होने से रोकते हैं।

    प्रश्न 25: वैश्वीकरण (Globalization) के संदर्भ में, ‘संस्कृति का लोकतंत्रीकरण’ (Democratization of Culture) का क्या अर्थ हो सकता है?

    1. दुनिया भर में लोकलुभावन नेताओं का उदय।
    2. पारंपरिक सांस्कृतिक अभिजात वर्ग के नियंत्रण से मुक्ति और संस्कृति तक व्यापक पहुंच।
    3. सभी संस्कृतियों का एकरूप होकर पश्चिमी संस्कृति में विलय हो जाना।
    4. स्थानीय संस्कृतियों का क्षरण।

    उत्तर: (b)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सत्यता: वैश्वीकरण के संदर्भ में ‘संस्कृति का लोकतंत्रीकरण’ इस विचार को संदर्भित करता है कि प्रौद्योगिकी (जैसे इंटरनेट, सोशल मीडिया) और वैश्विक संचार के माध्यम से, उच्च संस्कृति (high culture) और लोकप्रिय संस्कृति (popular culture) के बीच की पारंपरिक सीमाएँ धुंधली हो रही हैं, और संस्कृति तक पहुँच पहले से कहीं अधिक लोगों के लिए संभव हो गई है। यह कुछ विशिष्ट समूहों के एकाधिकार को कम करता है।
    • संदर्भ और विस्तार: इसने संस्कृति को अधिक सुलभ, साझा और अक्सर सहभागी (participatory) बना दिया है।
    • गलत विकल्प: (a) राजनीतिक है। (c) ‘सांस्कृतिक समरूपता’ (cultural homogenization) या ‘पश्चिमीकरण’ का एक रूप हो सकता है, जो लोकतंत्रीकरण के बजाय अधिनायकवाद को दर्शाता है। (d) यह एक संभावित परिणाम हो सकता है, लेकिन लोकतंत्रीकरण का सीधा अर्थ नहीं है।

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