अर्थव्यवस्था की दिशा तय! RBI गवर्नर ने मौद्रिक नीति पर क्या कहा?
चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठकें हमेशा भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण घटना होती हैं। हाल ही में, RBI गवर्नर द्वारा मौद्रिक नीतियों पर किए गए बड़े एलान और उनके द्वारा दी गई विस्तृत जानकारी ने व्यापक ध्यान आकर्षित किया है। इन घोषणाओं का न केवल वर्तमान आर्थिक परिदृश्य पर बल्कि भविष्य की आर्थिक दिशा पर भी गहरा प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए, मौद्रिक नीति, इसके उपकरण, और RBI के निर्णय भारतीय अर्थव्यवस्था के कामकाज को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यह लेख RBI गवर्नर द्वारा की गई प्रमुख घोषणाओं, मौद्रिक नीति के विभिन्न पहलुओं, उनके निहितार्थों और UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से प्रासंगिक विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
RBI और मौद्रिक नीति: एक परिचय
भारतीय रिज़र्व बैंक, भारत का केंद्रीय बैंक, देश की मौद्रिक नीति के निर्माण और कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार है। मौद्रिक नीति का प्राथमिक उद्देश्य मूल्य स्थिरता (मुद्रास्फीति पर नियंत्रण) बनाए रखना है, साथ ही आर्थिक विकास को भी बढ़ावा देना है। इन दोहरे उद्देश्यों को संतुलित करना एक जटिल कार्य है, और RBI इसके लिए विभिन्न उपकरणों का उपयोग करता है।
मौद्रिक नीति समिति (MPC) का गठन उर्जित पटेल समिति की सिफारिशों के आधार पर 2016 में किया गया था। इसका मुख्य कार्य RBI अधिनियम, 1934 की धारा 45ZB के तहत मौद्रिक नीति निर्धारित करना है। MPC के छह सदस्य होते हैं – तीन RBI से (गवर्नर, डिप्टी गवर्नर इन चार्ज ऑफ मॉनेटरी पॉलिसी, और एक केंद्रीय बोर्ड द्वारा नामित अधिकारी) और तीन भारत सरकार द्वारा नियुक्त बाहरी सदस्य। MPC का मुख्य लक्ष्य मुद्रास्फीति को एक निश्चित लक्ष्य सीमा के भीतर रखना है, जिसे आमतौर पर सरकार द्वारा RBI के परामर्श से तय किया जाता है (वर्तमान में 2% के सहनशीलता बैंड के साथ 4% +/- 2%)।
“मौद्रिक नीति किसी देश की अर्थव्यवस्था के इंजन को सुचारू रूप से चलाने के लिए ईंधन की तरह है। यदि ईंधन की आपूर्ति बहुत अधिक है, तो अर्थव्यवस्था ‘ओवरहीट’ हो सकती है (मुद्रास्फीति), और यदि यह बहुत कम है, तो यह ‘ठहर’ सकती है (आर्थिक मंदी)। RBI गवर्नर और MPC इस ईंधन की सही मात्रा तय करने का प्रयास करते हैं।”
हालिया MPC बैठक के मुख्य एलान (संभावित – समाचार के विशिष्ट विवरण के आधार पर):
RBI गवर्नर द्वारा की गई घोषणाओं में आम तौर पर निम्नलिखित प्रमुख बिंदु शामिल होते हैं:
- रेपो दर (Repo Rate): यह वह ब्याज दर है जिस पर RBI वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक ऋण देता है। रेपो दर में परिवर्तन का सीधा असर बैंकों की उधार लेने की लागत पर पड़ता है, जो अंततः उपभोक्ताओं और व्यवसायों के लिए ऋण की लागत को प्रभावित करता है।
- रिवर्स रेपो दर (Reverse Repo Rate): यह वह ब्याज दर है जिस पर RBI बैंकों से अल्पकालिक उधार लेता है। यह बाजार में तरलता (liquidity) को अवशोषित करने में मदद करता है।
- स्थिरता जमा सुविधा (Standing Deposit Facility – SDF): यह बैंकों को बिना किसी संपार्श्विक (collateral) के RBI के पास अतिरिक्त नकदी जमा करने की अनुमति देता है, जो रेपो दर के समान ही काम करती है लेकिन संपार्श्विक की आवश्यकता नहीं होती।
- सीमांत स्थायी सुविधा (Marginal Standing Facility – MSF): यह वह दर है जिस पर बैंक आपात स्थिति में RBI से ओवरनाइट (एक रात के लिए) उधार ले सकते हैं, आमतौर पर रेपो दर से कुछ अधिक।
- नकद आरक्षित अनुपात (Cash Reserve Ratio – CRR): बैंकों को अपनी कुल जमा राशि का एक निश्चित प्रतिशत RBI के पास नकदी के रूप में रखना होता है। CRR में बदलाव से बैंकों की उधार देने की क्षमता प्रभावित होती है।
- वैधानिक तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio – SLR): बैंकों को अपनी जमा राशि का एक निश्चित प्रतिशत तरल संपत्तियों, जैसे सरकारी प्रतिभूतियों, में निवेश करना होता है।
- आर्थिक विकास अनुमान (GDP Growth Forecast): MPC चालू वित्तीय वर्ष के लिए भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के विकास दर का अनुमान जारी करती है।
- मुद्रास्फीति अनुमान (Inflation Forecast): MPC मुद्रास्फीति की दर का अनुमान भी लगाती है, जो नीतिगत निर्णयों को निर्देशित करता है।
- नीतिगत रुख (Policy Stance): MPC यह भी बताती है कि वह आगे चलकर मौद्रिक नीति को सख्त (tighten), ढीला (accommodative), या तटस्थ (neutral) रखेगा।
नीतिगत उपकरणों का विस्तृत विश्लेषण:
1. रेपो दर (Repo Rate):
- कार्यप्रणाली: जब RBI रेपो दर बढ़ाता है, तो बैंकों के लिए पैसा उधार लेना महंगा हो जाता है। इससे बैंक भी अपने ग्राहकों को दिए जाने वाले ऋणों पर ब्याज दरें बढ़ाते हैं। उच्च ब्याज दरें निवेश और उपभोग को हतोत्साहित करती हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में समग्र मांग कम होती है और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। इसके विपरीत, रेपो दर में कटौती से उधार लेना सस्ता हो जाता है, जो निवेश और विकास को प्रोत्साहित करता है, लेकिन इससे मुद्रास्फीति बढ़ने का खतरा भी होता है।
- UPSC प्रासंगिकता: मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (Inflation Targeting), आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए मौद्रिक नीति का उपयोग, ब्याज दरें और वित्तीय बाजार।
2. रिवर्स रेपो दर (Reverse Repo Rate) और स्थिर जमा सुविधा (SDF):
- कार्यप्रणाली: इन उपकरणों का उपयोग बैंकिंग प्रणाली से अतिरिक्त नकदी को अवशोषित करने के लिए किया जाता है। जब RBI इन दरों को बढ़ाता है, तो बैंकों के लिए RBI के पास पैसा जमा करना अधिक आकर्षक हो जाता है, जिससे बाजार में नकदी की उपलब्धता कम हो जाती है। यह भी मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने का एक तरीका है। SDF, संपार्श्विक-मुक्त होने के कारण, SDR (Standing Deposit Rate) का एक अधिक प्रभावी विकल्प बन गया है।
- UPSC प्रासंगिकता: बाजार में तरलता प्रबंधन, मुद्रास्फीति नियंत्रण की रणनीतियाँ।
3. नकद आरक्षित अनुपात (CRR) और वैधानिक तरलता अनुपात (SLR):
- कार्यप्रणाली: CRR में वृद्धि का अर्थ है कि बैंकों को अपनी अधिक जमा राशि RBI के पास रखनी होगी, जिससे उनकी उधार देने की क्षमता कम हो जाती है। यह अर्थव्यवस्था में धन आपूर्ति को कम करता है। SLR में वृद्धि का मतलब है कि बैंकों को सरकारी प्रतिभूतियों में अधिक निवेश करना होगा, जिससे उनके पास वाणिज्यिक क्षेत्र को उधार देने के लिए कम धन बचेगा। ये दोनों उपकरण मात्रात्मक (quantitative) मौद्रिक नीति उपकरण कहलाते हैं।
- UPSC प्रासंगिकता: मुद्रा आपूर्ति (money supply) पर नियंत्रण, बैंकिंग क्षेत्र की भूमिका, वित्तीय समावेशन (SLR के माध्यम से)।
4. नीतिगत रुख (Policy Stance):
- कार्यप्रणाली: ‘अकोमोडेटिव’ (Accommodative) रुख का मतलब है कि MPC आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए ब्याज दरों को कम रखने या तरलता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। ‘सख्त’ (Tight/Contractionary) रुख का अर्थ है कि मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरों को बढ़ाया जा रहा है या तरलता घटाई जा रही है। ‘तटस्थ’ (Neutral) रुख का अर्थ है कि नीति का कोई विशेष झुकाव नहीं है। यह भविष्य की नीति दिशा का एक महत्वपूर्ण संकेतक होता है।
- UPSC प्रासंगिकता: आर्थिक चक्र (economic cycles), मुद्रास्फीति और विकास के बीच ट्रेड-ऑफ (trade-off)।
5. आर्थिक विकास और मुद्रास्फीति अनुमान:
- कार्यप्रणाली: RBI द्वारा जारी ये अनुमान अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य और भविष्य की दिशा का एक स्नैपशॉट प्रदान करते हैं। यदि विकास दर कम रहने का अनुमान है, तो MPC ब्याज दरें कम करने पर विचार कर सकती है। यदि मुद्रास्फीति लक्ष्य से ऊपर रहने की आशंका है, तो दरें बढ़ाई जा सकती हैं। ये अनुमान वित्तीय बाजारों और व्यापारिक विश्वास को भी प्रभावित करते हैं।
- UPSC प्रासंगिकता: मैक्रोइकॉनॉमिक्स (macroeconomics), जीडीपी, मुद्रास्फीति, आर्थिक संकेतक।
हालिया एलान के संभावित निहितार्थ:
RBI गवर्नर द्वारा की गई घोषणाओं के कई दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं:
- आम आदमी पर: यदि ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो होम लोन, कार लोन और पर्सनल लोन महंगे हो जाएंगे, जिससे EMI (मासिक किस्त) बढ़ सकती है। वहीं, फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) और बचत खातों पर ब्याज दरें भी बढ़ सकती हैं, जिससे बचतकर्ताओं को लाभ होगा। इसके विपरीत, दरें कम होने पर EMI घटती है और FD पर रिटर्न भी कम होता है।
- व्यवसायों पर: उच्च ब्याज दरें व्यवसायों के लिए विस्तार या नए प्रोजेक्ट में निवेश करने हेतु ऋण लेना महंगा बना देती हैं, जिससे निवेश कम हो सकता है। कम ब्याज दरें निवेश को प्रोत्साहित करती हैं।
- शेयर बाजार पर: आमतौर पर, ब्याज दरों में वृद्धि को शेयर बाजार के लिए नकारात्मक माना जाता है, क्योंकि इससे कंपनियों की लाभप्रदता प्रभावित हो सकती है और इक्विटी की तुलना में बॉन्ड जैसे निश्चित आय वाले उपकरणों को अधिक आकर्षक बनाती है। ब्याज दरों में कटौती से बाजार को बढ़ावा मिल सकता है।
- सरकार पर: सरकार के लिए, ब्याज दरों में वृद्धि का अर्थ है उसके द्वारा लिए गए कर्ज पर ब्याज भुगतान में वृद्धि। वहीं, कम ब्याज दरें सरकार को कम लागत पर उधार लेने में मदद करती हैं।
- समग्र अर्थव्यवस्था पर: RBI के निर्णय मुद्रास्फीति, विकास, रोजगार और विनिमय दर (exchange rate) जैसे व्यापक आर्थिक संकेतकों को प्रभावित करते हैं।
“यह सोचना गलत है कि RBI केवल ब्याज दरें तय करता है। यह एक जटिल प्रणाली है जहाँ एक छोटे से बदलाव के भी कई तार अर्थव्यवस्था के विभिन्न कोनों से जुड़े होते हैं। यह पतंग उड़ाने जैसा है, जहाँ हवा के रुख (आर्थिक स्थिति) के अनुसार डोर (नीतियां) को समायोजित करना पड़ता है।”
UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बिंदु:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा के लिए, विशेष रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था (GS-III) और समसामयिक घटनाओं (GS-I, GS-II) के संदर्भ में, निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है:
- मौद्रिक नीति के उद्देश्य: मूल्य स्थिरता, आर्थिक विकास, वित्तीय स्थिरता।
- मौद्रिक नीति के उपकरण: मात्रात्मक (Repo, Reverse Repo, CRR, SLR, MSF, Bank Rate) और गुणात्मक (Margin Requirements, Moral Suasion)।
- मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के तरीके: RBI द्वारा अपनाई जाने वाली विभिन्न रणनीतियाँ।
- MPC की भूमिका और कार्यप्रणाली: इसका गठन, संरचना, निर्णय लेने की प्रक्रिया।
- आर्थिक संकेतक: GDP, मुद्रास्फीति (CPI, WPI), बेरोजगारी दर, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP)।
- वैश्विक आर्थिक प्रवृत्तियाँ: अंतरराष्ट्रीय केंद्रीय बैंकों की नीतियाँ और उनका भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव।
- वित्तीय समावेशन: मौद्रिक नीति के निर्णयों का वित्तीय समावेशन पर प्रभाव।
चुनौतियाँ और आगे की राह:
RBI और MPC को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:
- दोहरे उद्देश्य में संतुलन: विकास को बढ़ावा देते हुए मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना एक नाजुक संतुलन है।
- वैश्विक अनिश्चितताएं: भू-राजनीतिक तनाव, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, और वैश्विक मुद्रास्फीति का दबाव भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है।
- जलवायु परिवर्तन और हरित वित्त: इन नए क्षेत्रों का मौद्रिक नीति पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
- वित्तीय बाजारों की अस्थिरता: बाजार की अटकलें और वैश्विक वित्तीय रुझान नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन को प्रभावित कर सकते हैं।
- सरकारी राजकोषीय नीतियों का प्रभाव: RBI को अक्सर राजकोषीय घाटे (fiscal deficit) को प्रबंधित करने वाली सरकार की नीतियों के साथ तालमेल बिठाना पड़ता है।
आगे की राह में, RBI को इन चुनौतियों का सामना करते हुए अपनी नीतियों को लचीला और डेटा-संचालित रखने की आवश्यकता होगी। डिजिटल मुद्राओं (CBDCs) का उदय, फिनटेक का बढ़ता प्रभाव, और टिकाऊ विकास (sustainable development) के लक्ष्य भी भविष्य में मौद्रिक नीति के एजेंडे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
निष्कर्ष
RBI गवर्नर द्वारा मौद्रिक नीति पर की गई घोषणाएं केवल वित्तीय समाचार का हिस्सा नहीं हैं; वे भारतीय अर्थव्यवस्था की धड़कन का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन घोषणाओं और उनके पीछे के तर्क को समझना UPSC उम्मीदवारों के लिए न केवल परीक्षा की दृष्टि से बल्कि एक जागरूक नागरिक बनने के लिए भी अनिवार्य है। यह समझना कि कैसे ब्याज दरें, तरलता और नीतिगत रुख अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं, नीति-निर्माण को समझने और महत्वपूर्ण आर्थिक मुद्दों पर एक सुविचारित राय बनाने के लिए महत्वपूर्ण है। RBI अपनी मौद्रिक नीति के माध्यम से देश की आर्थिक यात्रा का मार्गदर्शन करता है, और MPC के निर्णय उस दिशा को आकार देते हैं।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
- प्रश्न 1: निम्नलिखित में से कौन भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा निर्धारित मौद्रिक नीति का मुख्य उद्देश्य नहीं है?
(a) मूल्य स्थिरता बनाए रखना
(b) आर्थिक विकास को बढ़ावा देना
(c) पूर्ण रोजगार सुनिश्चित करना
(d) वित्तीय स्थिरता बनाए रखना
उत्तर: (c)
व्याख्या: RBI का मुख्य उद्देश्य मूल्य स्थिरता (मुद्रास्फीति नियंत्रण) और विकास को बढ़ावा देना है। पूर्ण रोजगार भारतीय सरकार का नीतिगत लक्ष्य है, जिसे RBI अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक विकास को बढ़ावा देकर मदद कर सकता है, लेकिन यह सीधे तौर पर मौद्रिक नीति का प्राथमिक उद्देश्य नहीं है। - प्रश्न 2: RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. इसका गठन उर्जित पटेल समिति की सिफारिशों पर हुआ था।
2. इसमें RBI के 6 सदस्य और 3 बाहरी सदस्य होते हैं।
3. इसका मुख्य कार्य मुद्रास्फीति को 4% +/- 2% के लक्ष्य सीमा में रखना है।
उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
व्याख्या: कथन 1 सही है। कथन 2 गलत है; MPC में 6 सदस्य होते हैं, जिनमें 3 RBI से (गवर्नर, डिप्टी गवर्नर, एक अधिकारी) और 3 सरकार द्वारा नियुक्त बाहरी सदस्य होते हैं। कथन 3 सही है, यह RBI अधिनियम, 1934 की धारा 45ZB के तहत अनिवार्य है। - प्रश्न 3: यदि RBI रेपो दर (Repo Rate) बढ़ाता है, तो इसका संभावित परिणाम क्या होगा?
1. बैंकों के लिए धन उधार लेना महंगा हो जाएगा।
2. मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।
3. आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a)
व्याख्या: रेपो दर बढ़ने से उधार महंगा होता है, जिससे मांग कम होती है और मुद्रास्फीति नियंत्रित होती है। यह आमतौर पर आर्थिक विकास को धीमा करता है, इसलिए कथन 3 गलत है। - प्रश्न 4: RBI द्वारा बाजार से अतिरिक्त नकदी को अवशोषित करने के लिए निम्नलिखित में से किस उपकरण का उपयोग किया जा सकता है?
1. रिवर्स रेपो दर (Reverse Repo Rate)
2. स्थिर जमा सुविधा (Standing Deposit Facility – SDF)
3. नकद आरक्षित अनुपात (CRR)
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
व्याख्या: ये तीनों ही उपकरण (रिवर्स रेपो, SDF, और CRR में वृद्धि) बाजार से नकदी को अवशोषित करते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति कम होती है। - प्रश्न 5: RBI किस दर पर बैंकों से अल्पकालिक उधार लेता है, जिससे वह बाजार में तरलता को नियंत्रित करता है?
(a) रेपो दर (Repo Rate)
(b) बैंक दर (Bank Rate)
(c) रिवर्स रेपो दर (Reverse Repo Rate)
(d) सीमांत स्थायी सुविधा (MSF)
उत्तर: (c)
व्याख्या: RBI रिवर्स रेपो दर पर बैंकों से पैसा उधार लेता है। रेपो दर पर RBI बैंकों को उधार देता है। - प्रश्न 6: निम्नलिखित में से कौन RBI की मौद्रिक नीति का ‘गुणात्मक’ (Qualitative) उपकरण है?
(a) रेपो दर (Repo Rate)
(b) नकद आरक्षित अनुपात (CRR)
(c) ऋण का न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price for Credit) / ऋण का विवेकपूर्ण नियंत्रण
(d) वैधानिक तरलता अनुपात (SLR)
उत्तर: (c)
व्याख्या: रेपो दर, CRR, और SLR मात्रात्मक उपकरण हैं जो धन की मात्रा को प्रभावित करते हैं। ऋण का विवेकपूर्ण नियंत्रण (जैसे क्रेडिट को कुछ क्षेत्रों में सीमित करना) गुणात्मक उपकरण है जो धन के उपयोग की दिशा को प्रभावित करता है। - प्रश्न 7: ‘अकोमोडेटिव’ (Accommodative) मौद्रिक नीति रुख का क्या अर्थ है?
(a) ब्याज दरों में वृद्धि करना
(b) अर्थव्यवस्था में धन आपूर्ति बढ़ाना या ब्याज दरों को कम रखना
(c) मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना
(d) सरकारी खर्च को बढ़ाना
उत्तर: (b)
व्याख्या: ‘अकोमोडेटिव’ रुख का अर्थ है आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए मौद्रिक नीति को ढीला रखना, जो आमतौर पर ब्याज दरों को कम रखकर या तरलता बढ़ाकर किया जाता है। - प्रश्न 8: CPI (Consumer Price Index) और WPI (Wholesale Price Index) के बीच मुख्य अंतर क्या है?
(a) CPI थोक मूल्य स्तर पर मापती है, जबकि WPI खुदरा मूल्य स्तर पर।
(b) CPI उपभोक्ता द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन को मापती है, जबकि WPI थोक स्तर पर वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन को।
(c) CPI केवल सेवाओं की कीमतों को मापती है, जबकि WPI केवल वस्तुओं की।
(d) CPI और WPI दोनों एक ही चीज को मापते हैं।
उत्तर: (b)
व्याख्या: CPI अंतिम उपभोक्ताओं द्वारा खरीदे जाने वाले बास्केट की कीमतों में बदलाव को ट्रैक करता है, जबकि WPI थोक व्यापारियों के स्तर पर वस्तुओं की कीमतों में बदलाव को ट्रैक करता है। - प्रश्न 9: RBI की वित्तीय स्थिरता बनाए रखने की भूमिका के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. यह बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) का पर्यवेक्षण (supervision) करता है।
2. यह अंतिम ऋणदाता (Lender of Last Resort) के रूप में कार्य करता है।
3. यह बाजार में अटकलों को बढ़ावा देता है।
उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a)
व्याख्या: RBI बैंकों और NBFCs का पर्यवेक्षण करता है और वित्तीय प्रणाली में स्थिरता बनाए रखने के लिए अंतिम ऋणदाता के रूप में कार्य करता है। यह अटकलों को बढ़ावा नहीं देता, बल्कि उन्हें नियंत्रित करने का प्रयास करता है। - प्रश्न 10: यदि RBI मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए CRR (Cash Reserve Ratio) बढ़ाता है, तो अर्थव्यवस्था पर इसका क्या प्रभाव पड़ने की संभावना है?
(a) बैंकों के पास उधार देने के लिए अधिक धन उपलब्ध होगा।
(b) बाजार में तरलता (liquidity) बढ़ेगी।
(c) कुल मांग (aggregate demand) में कमी आ सकती है।
(d) ब्याज दरें कम हो जाएंगी।
उत्तर: (c)
व्याख्या: CRR बढ़ाने से बैंकों के पास उधार देने के लिए कम धन बचता है, जिससे बाजार में तरलता घटती है और संभवतः ब्याज दरें बढ़ती हैं, जिससे कुल मांग कम होती है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
- प्रश्न 1: भारतीय अर्थव्यवस्था में मूल्य स्थिरता और आर्थिक विकास के दोहरे उद्देश्यों को प्राप्त करने में RBI की मौद्रिक नीति की भूमिका का विस्तृत विश्लेषण करें। हाल के वर्षों में इन उद्देश्यों को संतुलित करने में RBI को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा है? (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न 2: मौद्रिक नीति के विभिन्न मात्रात्मक और गुणात्मक उपकरणों की व्याख्या करें और बताएं कि उनका उपयोग अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए कैसे किया जाता है। (250 शब्द, 15 अंक)
- प्रश्न 3: RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC) के गठन, शक्तियों और कार्यप्रणाली पर एक निबंध लिखें। मौद्रिक नीति निर्णय लेने की प्रक्रिया में इसकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन करें। (150 शब्द, 10 अंक)
- प्रश्न 4: हाल की मौद्रिक नीति घोषणाओं के आलोक में, भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों (जैसे बैंकिंग, कॉर्पोरेट, उपभोक्ता) पर इसके संभावित प्रभावों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। (250 शब्द, 15 अंक)