अभिजनों का परिभ्रमण
( Circulation of Elites )
सामाजिक विचारधारा के क्षेत्र में ‘ अभिजनों के परिभ्रमण की अवधारणा ‘ परेटो की एक प्रमुख देन है । इस अवधारणा के द्वारा परेटो ने जहाँ एक ओर सामा जिक संरचना के अन्तर्गत विभिन्न वर्गों की प्रकृति को स्पष्ट किया . वहीं दसरी ओर उन्होंने विभिन्न वर्गों की स्थिति में होने वाले परिवर्तन के आधार पर सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया का भी विश्लेषण किया । इस प्रकार परेटो द्वारा प्रस्तुत ‘ अभि जनों के परिभ्रमण की अवधारणा सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त को स्पष्ट करती है । परेटो ने बतलाया कि प्रत्येक समाज में विभिन्न वर्गों के बीच ऊंच – नीच का एक स्पष्ट संस्तरण अवश्य विद्यमान होता है । इसमें सर्वोच्च वर्ग वह होता है जो अपनी चतुराई , कुशलता और प्रभाव के द्वारा सत्ता पर अपना अधिकार कर लेता है । इसे शासकीय अभिजात वर्ग ( Governing Elite ) कहते हैं । दूसरा स्थान उन अभिजनों का होता है जिनका अपने – अपने कार्यक्षेत्र में एक प्रतिष्ठित स्थान अवश्य होता है लेकिन शासन में उनकी कोई प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं होती ।
इसे गैर – शासकीय अभिजात वर्ग कहा जाता है । तीसरा वर्ग निम्न अथवा गैर – अभिजात वर्ग ( Non – clite ) होता है जिसमें श्रमिकों , सामान्य कर्मचारियों तथा अपनी मेहनत से जीवन – यापन करने वाले सामान्य व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है । वास्तव में जनसाधारण अथवा इस तीसरे वर्ग के व्यवहार अभिजात वर्ग की पहली दो श्रेणियों से ही प्रभावित होते हैं । इस प्रकार जब कभी भी एक अभिजात वर्ग का स्थान दूसरे अभिजात वर्ग द्वारा ले लिया जाता है तब समाज में परिवर्तन की प्रक्रिया स्पष्ट होने लगती है । दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि सत्ता अथवा शासन की दिशा में विभिन्न वर्गों की स्थिति में होने वाला परिवर्तन अभिजात वर्ग की श्रेणियों के बीच ही चलता है जिन्हें हम शासकीय तथा गैर – शासकीय अभिजन वर्ग कहते हैं ।
अभिजात वर्गों की स्थिति में होने वाला यही परिभ्रमण सामाजिक परिवर्तन की प्रकृति और कारण को स्पष्ट करता है । अभिजनों के परिभ्रमण के रूप में सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया को स्पष्ट करने के लिए परेटो ने चार तत्त्वों अथवा मान्यताओं को महत्त्व दिया । इन्हें परेटो ने स्वार्थ , विशिष्ट चालक , भ्रान्त तर्क तथा सामाजिक संस्तरण कहा है । हित ( Interest ) को स्पष्ट करते हुए उन्होंने बतलाया कि “ विभिन्न व्यक्तियों या समूहों के व्यवहार उन हितों के द्वारा संचालित होते हैं जिनके द्वारा वे उपयोगी और आनन्द दायी वस्तुओं को प्राप्त कर सकें । ” इसका अन्तिम उद्देश्य प्रतिष्ठा , सम्मान और शक्ति को प्राप्त करना होता है । विशिष्ट चालक वे प्रेरणाएं हैं जो काफी सीमा तक अभिजात वर्गों के परिभ्रमण को प्रभावित करती हैं । इन विशिष्ट चालकों में ‘ संयोजन के विशिष्ट चालक ‘ तथा ‘ सामूहिकता के स्थायित्व के विशिष्ट चालक ‘ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं । भान्त तर्क वे तरीके हैं जिनके द्वारा एक विशेष अभिजात वर्ग अपने आपको सत्ता में बनाये रखता है । जब कभी भी एक अभिजात वर्ग के स्थान पर दूसरा अभिजात वर्ग सत्ता अथवा शासन पर अपना अधिकार कर लेता है तब इन भ्रान्त तर्कों की प्रकृति में भी परिवर्तन देखने को मिलता है ।
अन्त में , सामाजिक संस्तरण इसलिए एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है कि सामाजिक संस्तरण के रूप में ही समाज विभिन्न वर्गों में विभाजित होता है तथा सत्ता और अधिकार प्राप्त करने के लिए इन वर्गों की स्थिति में परिवर्तन होता रहता है । इस प्रकार परेटो द्वारा प्रस्तुत अभिजात वर्गों के परिभ्रमण को समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि अभिजात वर्ग का अर्थ क्या है तथा सामाजिक संस्तरण के अन्तर्गत कौन से स्वार्थ तथा विशिष्ट चालक अभिजात वर्ग की विभिन्न श्रेणियों के बीच परिवर्तन और परिभ्रमण की दशा पैदा करते हैं ? श कार THI अभिजात वर्ग अथवा अभिजन ( Elite ) कौन है ? इसे स्पष्ट करते हए परेटो ने लिखा है , ” मानवीय गतिविधियों के किसी विशिष्ट क्षेत्र में जिन व्यक्तियों को सर्वाधिक अंक मिलें , उनका यदि एक वर्ग बनाया जाय तो उसी को अभिजात वर्ग कहा जायेगा । ” 10 इसका तात्पर्य है कि राजनीति , प्रशासन , व्यापार , कला तथा बौद्धिकता के क्षेत्र में जो व्यक्ति अपने समूह में सबसे अधिक योग्य , कुशल और सफल होते हैं , उन्हीं को ‘ अभिजन ‘ कहा जाता है । इस प्रकार अत्यधिक सफल और प्रतिष्ठित राजनीतिज्ञ . उद्योगति , कलाकार , लेखक और व्यवसायी समाज के अभिजात वर्ग का निर्माण करते हैं । इसी को स्पष्ट करते हए तिमाशेफ ( Timasheff ) ने लिखा है , ” अभिजात वर्ग के अन्तर्गत वे व्यक्ति आते हैं जो समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उच्चतम कार्यों का निर्वाह करते हैं अथवा अपने – अपने क्षेत्र में जिनकी स्थिति बहुत उच्च होती है । 11 रेमण्ड ऐरों ( R . Aron ) ने परेटो के विचारों के सन्दर्भ में लिखा है कि ” अभिजात वर्ग से हमारा तात्पर्य समाज के उस छोटे वर्ग से है जिसके सदस्य अपने से सम्बन्धित व्यावसायिक संस्तरण में उच्चतम स्थान प्राप्त करते हैं । ” परेटो ने यह स्वीकार किया कि अभिजात वर्ग सभी समाजों की एक अनिवार्य विशेषता है लेकिन अभिजात वर्ग में आने वाले सभी लोगों की विशेषताएं एक – दूसरे के पूर्णतया समान नहीं होतीं ।
इस आधार पर परेटो ने अभिजात वर्ग को दो भागों में विभाजित करके स्पष्ट किया – – शासकीय अभिजात वर्ग ( Governing Elite ) तथा अशासकीय अभिजात वर्ग ( Non – governing Elite ) । परेटो के अनुसार , शासकीय अभिजात दर्ग वह है जिसके सदस्य प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सरकार की गतिविधियों में भाग लेते हुए अपनी सत्ता का उपयोग करते हैं । यह लोग प्रति | ष्ठित पदों पर आसीन होते हैं तथा शासन की नीतियों को प्रभावित करते हैं । दूसरी ओर , अशासकीय अभिजात वर्ग में उन व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है जो न तो सरकार का अग होते हैं और न ही इनका प्रशासन से कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है लेकिन इसके बाद भी वे किसी न किसी रूप में शासन और सरकार पर अपना कुछ प्रभाव अवश्य बनाए रखते हैं । इस वर्ग में राजनैतिक , आर्थिक , बौद्धिक तथा सैनिक आदि सभी क्षेत्रों से सम्बनित उन व्यक्तियों का समावेश होता है जो सर्वोच्च पदों पर आसीन होते हैं । मैकाइविले ( Machiavellian ) से सहमत होते हुए परेटो ने बतलाया कि यद्यपि अभिजात वर्ग समस्त जनसाधारण को नियन्त्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता । है लेकिन यह नियन्त्रण या तो छल – कपट द्वारा स्थापित किया जाता है अथवा शक्ति के प्रयोग द्वारा । यदि इस दृष्टिकोण से विचार किया जाय तो शासकीय अभिजात अभिजात वर्ग शासकीय अभिजन अशासकीय अभिजन लोमड़ी शेर छल – कपट शक्ति द्वारा दबाब जनसाधारण पर नियन्त्रण का तरीका व्यवहार के बालक • संयोजन के विशिष्ट चालक सामूहिकता के स्थायित्व के विशिष्ट दालक स्वभाव अवसर और सम्भावना से लाभ उठाना ( सट्टेदार ) परम्पराओं और प्रथाओं में वास्था ( पैजी – मोगी ) वर्ग के सदस्यों की प्रकृति ‘ लोमड़ियों ‘ ( Foxes ) की तरह होती है जो सत्ता में आने के बाद छल – कपट के द्वारा अपनी शक्ति को बनाये रखने का प्रयत्न करते हैं तथा इसी की सहायता से अन्य वर्गों पर अपना नियन्त्रण स्थापित करते हैं । यह लोग ‘ संयोजन के विशिष्ट चालकों से प्रभावित होते हैं और इसलिए अवसर तथा सम्भावना से लाभ उठाने में विश्वास रखते हैं । इसी कारण आर्थिक क्षेत्र में इनकी प्रकृति सट्टे दारों ( Speculators ) की तरह होती है । यह वर्ग आदर्शवादी लक्ष्यों की अपेक्षा भौतिक सुख – सुविधाओं में अधिक रुचि लेता है और इसी कारण धीरे – धीरे इसमें अपने दायित्वों के प्रति उदासीनता और साहस की कमी उत्पन्न होने लगती है । इसके फलस्वरूप यह वर्ग धूर्ततापूर्ण प्रचार के द्वारा अपनी सत्ता को बनाए रखने का प्रयत्न करने लगता है । साथ ही राजनैतिक उद्देश्यों को अपने आर्थिक स्वार्थों से इस तरह जोड़ने लगता है जिससे सत्ता पर उसकी पकड़ मजबूत बन सके । दूसरी ओर , अशासकीय अभिजात वर्ग के सदस्यों की प्रकृति शेरों ( Lions ) की तरह होती है जो शक्ति के प्रयोग के द्वारा सत्ता को प्राप्त करने और उसे बनाये रखने का प्रयल करते हैं ।
यह लोग ‘ सामूहिकता के स्थायित्व के विशिष्ट चालकों ‘ से प्रभा होने के कारण अपने समूह की एकता में निष्ठा रखते हैं तथा वैयक्तिक सुख – सुविधाओं की तुलना में परम्पराओं और प्रथाओं में अधिक विश्वास रखते हैं । आर्थिक क्षेत्र में इनकी प्रकृति रूढ़िवादी ( Conservative ) होती है तथा यह लोग मुख्यतः पूंजी भोगी ( Rentiers ) होते हैं । इस प्रकार अभिजात वर्ग के अन्तर्गत शासकीय अभिजात वर्ग और अशासकीय अभिजात वर्ग , वे दो श्रेणियाँ हैं जिनके बीच सत्ता का परि भ्रमण चलता रहता है । शासकीय तथा गैर – शासकीय अभिजनों की स्थिति में नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे परिभ्रमण किस तरह होता है ? इसे स्पष्ट करते हुए परेटो ने बतलाया कि जब कोई अभिजन वर्ग एक लम्बे समय तक सत्ता में रह लेता है तब दो में से । एक दशा का उत्पन्न होना आवश्यक हो जाता है । पहली दशा यह है कि वह अपने वर्ग में गैर – शासकीय अभिजन वर्ग के उन लोगों को आने से रोक दे जो अधिक कुशल और प्रभावशाली होते हैं तथा दूसरी दशा यह है कि स्वयं सत्ता में बने रहने के लिए वह शक्ति का कम से कम उपयोग करना आरम्भ कर दे ।
शासकीय अभिजन वर्ग द्वारा इन दोनों में से चाहे किसी भी विधि का उपयोग किया जाये , इतना अवश्य है कि धीरे – धीरे इस वर्ग की रुचि विभिन्न प्रकार की कलाओं और भौतिक सुख – सुविधाओं में बढ़ने लगती है । कुछ समय बाद यह व्यक्ति अधिक सहनशील और उदार बनने लगते हैं । इसके अतिरिक्त , वे जनसामान्य के लिए शक्ति का उपयोग भी उस शासकीय अभिजन सीमा तक नहीं करते जो सामाजिक व्यवस्था के लिए आवश्यक है । शासकीय अभिजन वर्ग में जब यह परिवर्तन पैदा होते हैं तब गैर – शासकीय अभिजन ( शेर ) शासकीय अभिजनों ( लोमड़ियों ) के विरुद्ध जनसाधारण को प्रेरित और संगठित करने लगते हैं । यदि उन्हें जनसामान्य ( गैर अभिजन वर्ग ) का समर्थन मिल जाता है तो गैर – शासकीय ‘ सामूहिकता के स्थायित्व के विशिष्ट चालकों ‘ अभिजन की सहायता से गैर – शासकीय अभिजन वर्ग के 11 कुछ व्यक्ति शासकीय अभिजनों का स्थान ले लेते हैं तथा अनेक शासकीय अभिजन सत्ता निम्न वर्ग या गैर – अभिजन से अलग होकर नीची स्थिति में आ जाते हैं । परेटो ने पुनः यह स्पष्ट किया कि यदि शासकीय अभिजन समाज के निम्न वर्गों अथवा गैर – शासकीय अभि जनों के योग्य और प्रभावशाली व्यक्तियों को अपने वर्ग में आने से रोकते हैं तो न केवल समाज का सन्तुलन बिगड़ने लगता है बल्कि सामाजिक व्यवस्था में भी अवनति के लक्षण दिखाई देने लगते हैं ।
यह असन्तुलन तब तक बना रहता है जब तक शासकीय अभिजन अत्यधिक योग्य और प्रभावशाली .व्यक्तियों को अपने वर्ग में आने के अवसर नहीं दे देते । ऐसा चाहे तेजी से होने वाले सामाजिक परिवर्तन के कारण हो अथवा क्रान्ति के कारण , धीरे – धीरे पुराने शासकीय अभिजनों का स्थान नये योग्य व्यक्तियों द्वारा ले लिया जाता है । इस सम्बन्ध में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि जिस तरह शासकीय और गैर – शासकीय अभिजनों के बीच परिभ्रमण का यह चक्र चलता रहता है उसी तरह जनसाधारण अथवा गैर – अभिजन वर्ग में भी जो लोग बहुत कुशल , बुद्धिमान और योग्य होते हैं , वे भी धीरे – धीरे ऊपर की ओर उठते हुए पहले गैर – शासकीय अभिजन वर्ग के सदस्य बनते हैं और फिर शासकीय अभिजन वर्ग तक की श्रेणी में पहुँच जाते हैं । इसी प्रकार शासकीय अभिजन वर्ग के जो व्यक्ति सत्ता से अलग हो जाते हैं , वे वांछित गुणों की कमी के कारण जनसामान्य की श्रेणी तक भी पहुँच सकते हैं । इसी आधार पर परेटो ने लिखा है कि ” इतिहास कुलीनतन्त्रों का कब्रिस्तान है ” ( History is a graveyard of Aristocracies ) । इसका तात्पर्य है कि समाज में शासकीय अभिजनों के एक वर्ग का प्रादुर्भाव होता है , उसके प्रभुत्व में वृद्धि होती है , फिर उसका पतन होना आरम्भ होता है तथा अन्त में उसका स्थान कुछ दूसरे प्रगतिशील अभिजनों द्वारा ले लिया जाता है ।
शासकीय और गैर – शासकीय अभिजनों की इस स्थिति में होने वाले परिवर्तन को ही परेटो ने ‘ अभिजनों का परिभ्रमण ‘ ( Circulation of Elites ) कहा है । परेटो ने यह स्वीकार किया कि अभिजन वर्गों के परिभ्रमण का मुख्य कारण शासकीय अभिजनों में उन विशिष्ट चालकों के प्रभाव का कम हो जाना है जो उन्हें सत्ता में ले जाते हैं । इस तथ्य को परेटो ने राजनैतिक तथा आर्थिक क्षेत्र के उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया । विवाए ( मीर राजनैतिक क्षेत्र में विभिन्न अभिजन वर्गों के बीच परिभ्रमण अथवा चक्रीय परिवर्तन तब आरम्भ होता है जब ‘ सामुहिकता के स्थायित्व के विशिष्ट चालकों का प्रभाव शासकीय अभिजन वर्ग में कम होने लगता है तथा इनके स्थान पर उनके । व्यवहार ‘ संयोजन के विशिष्ट चालकों से अधिक प्रभावित होने लगते हैं । दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि प्रारम्भिक अवस्था में जो राजनैतिक अभिजना । ( Political Elite ) ‘ समूह के स्थायित्व के विशिष्ट चालकों द्वारा संचालित होकर शक्ति द्वारा सामाजिक व्यवस्था को स्थायी बनाते हैं , वे धीरे – धीरे चालाकी के द्वारा ( संयोजन के विशिष्ट चालक ) शासन कार्य करना आरम्भ कर देते हैं ।
शासक वर्ग में जैसे – जैसे चालाकी और छल – कपट बढ़ता जाता है , वैसे ही वैसे अशासकीय अभिजन वर्ग शेर की तरह इन चालाक लोमड़ियों पर आक्रमण करके सत्ता पर अपना अधि कार कर लेता है । इस तरह शेर और लोमड़ियों के बीच परिभ्रमण का चक्र सदैव चलता रहता है । परेटो ने योरोप के समाज का उदाहरण देते हुए बतलाया कि आज यहाँ सत्ता पर जिस वर्ग का प्रभुत्व है उनकी प्रकृति लोमड़ियों जैसी है । शासन में आज जिन भ्रष्ट राजनैतिक अभिजनों तथा चरित्रहीन वकीलों की बहलता है , वे अपनी सत्ता को छल कपट से बनाये हुए हैं तथा उनमें धीरे – धीरे शक्ति के उपयोग की क्षमता कम होती जा रही है । इसके साथ ही यहाँ एक ऐसे अभिजन घर्ग का भी उदय हो रहा है जिनके व्यवहार ‘ समह के स्थायित्व के विशिष्ट चालको स प्रभावित हैं तथा जो शक्ति के उपयोग के द्वारा सामाजिक व्यवस्था को सन्तुलन और स्थिरता प्रदान कर सकते हैं । स्पष्ट है कि यह नया अभिजन वर्ग लोमड़ियों का सत्ता को समाप्त करके उनका स्थान स्वयं ले लेगा । आर्थिक क्षेत्र में परिभ्रमण को स्पष्ट करते हुए परेटो ने लिखा कि जिस प्रकार राजनैतिक क्षेत्रों में परिवर्तन का चक्र लोमड़ियों और शेरों के बीच चलता है , उसी तरह आर्थिक क्षेत्र में यह चक्र सट्टेदारों ( Speculators ) तथा पूँजी – भोगी वर्ग ( Rentiers ) के बीच चलता है । अपने कथन को स्पष्ट करते हुए परेटो ने बतलाया कि प्रत्येक समाज में दो प्रकार के आर्थिक वर्ग होते हैं । एक को ‘ सट्टेदार तथा दूसरे को ‘ पूंजी – भोगी ‘ कहा जा सकता है । सट्टेदार वर्ग वह है जिसमें संयोजन के विशिष्ट चालकों की प्रधानता होती है । इसका तात्पर्य है कि यह वर्ग अवसरों और सम्भावनाओं से लाभ उठाने का प्रयत्न करता है तथा इसकी प्रवृत्ति अपने लिए अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने की होती है । पूंजी – भोगी वर्ग स्थायित्व के विशिष्ट चालकों से संचालित होता है तथा इसीलिए सट्टेदारों की सनक का विरोध करता रहता है ।
इस सन्दर्भ में परेटो ने बतलाया कि जब शासकीय अभिजन वर्ग कुछ समय तक सत्ता में रह लेता है , तब उसकी प्रकृति सट्टेदारों की हो जाती है । जब यह अपने लिए अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने लगते हैं तथा आर्थिक स्थायित्व को बनाए रखने का प्रयत्न नहीं करते , तब पूंजी – भोगी अभिजनों का आक्रामक वर्ग उन पर आक्रमण करके सत्ता पर अपना अधिकार करने लगता है । इस प्रकार शासकीय अभिजन वर्ग के बहुत से लोग गैर – शासकीय अभिजन वर्ग में तथा गैर शासकीय अभिजन वर्ग से बहुत से व्यक्ति शासकीय अभिजन वर्ग में पहुँचने लगते हैं । यही अभिजनों का परिभ्रमण है । परेटो ने प्रत्येक समाज में अभिजात वर्गों के परिभ्रमण की प्रक्रिया को एक अनिवार्य दशा के रूप में स्वीकार किया है । आपका कथन है कि एक स्थायी सामा जिक व्यवस्था के लिए यह आवश्यक है कि सर्वोच्च श्रेणी के अभिजनों में समूह के स्थायित्व के विशिष्ट चालकों तथा संयोजन के विशिष्ट चालकों का एक समुचित सन्तुलन बना रहे । इसका तात्पर्य है कि राजनैतिक क्षेत्र में जहाँ एक ओर शेर और लोमड़ियों का एक न्यायिक सम्मिश्रण होना जरूरी है , वहीं दूसरी ओर आर्थिक क्षेत्र में सट्टेदारों और पंजी – भोगियों के बीच इस तरह का सन्तुलन होना चाहिये जिससे सामाजिक व्यवस्था पर वांछित नियन्त्रण रखा जा सके । लेकिन व्यवहार में इस तरह का सम्मिश्रण नहीं हो पाता । अभिजन वर्गों के बीच होने वाला परिभ्रमण इसी दशा का परिणाम है । इस प्रकार परेटो का विश्वास है कि परिवर्तन न तो उद्विकास अथवा प्रगति के समान एक सीधी दिशा में होता है और न ही परिवर्तन की विवेचना किसी एक आर्थिक या सांस्कृतिक कारक के आधार पर की जा सकती है । बुनियादी तौर पर परिवर्तन का कारण विशिष्ट चालकों से प्रभावित व्यवहारों में परिवर्तन होना है तथा परिवर्तन की गति ‘ चक्रीय होती है । परेटो के अनुसार मानव समाज में इस चक्र की पुनरावृत्ति अनिवार्य है कि ‘ जो शासन शेरों द्वारा आरम्भ होता है , वह लोमड़ियों के शासन में बदलकर पुन : कुछ दूसरे शेरों के अधि कार में आ जाता है । इस प्रकार समाज में कुछ नया नहीं होता बल्कि राजनैतिक और आर्थिक सन्तुलन एक चक्रीय रूप में बनता – बिगड़ता रहता है ।
समालोचना ( Criticista ) – – यह सच है कि परेटो ने एक नए दृष्टिकोण के आधार पर अभिजनों के परिभ्रमण के रूप में सामाजिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धान्त प्रस्तुत किया लेकिन बाटोमोर ( Bottomore ) तथा कुछ अन्य विद्वानों ने इस सिद्धान्त के अनेक दोषों पर भी प्रकाश डाला है । सर्वप्रथम , इस सिद्धान्त के द्वारा परेटो ने यह स्पष्ट किया कि विशिष्ट चालक ही व्यत्तियों के विभिन्न व्यवहारों का निर्धारण करते हैं तथा यही अभिजन वर्गों के परिभ्रमण का कारण हैं । इसके बाद भी परेटो ने यह नहीं बतलाया कि स्वयं विशिष्ट चालकों में परिवर्तन क्यों और किस प्रकार होता है ? दूसरे , परेटो ने अपने सिद्धान्त में शासकीय अभिजन वर्ग तथा गैर – शासकीय अभिजन वर्ग के बीच ही परिभ्रमण पर बल दिया है । उन्होंने समाज के मध्यम और निम्न वर्ग की ओर से अभिजन वर्ग में सम्मिलित होने वाले व्यक्तियों पर विशेष ध्यान नहीं दिया । केवल इतना कहना कि ‘ निम्न स्तर के व्यक्तियों का ऊपर की ओर उठना भी समूह के स्थायित्व के विशिष्ट चालकों से प्रभावित एक प्रक्रिया के रूप में होता है ‘ पर्याप्त नहीं है । तीसरे , अभिजात वर्गों के उत्थान और पतन को परेटो ने जिन तथ्यों के आधार पर स्पष्ट किया , उन्हें अधिक तार्किक और प्रामाणिक नहीं कहा जा सकता । अन्त में , परेटो के सिद्धान्त से यही स्पष्ट होता है कि जब तक निम्न अथवा मध्यम वर्ग का कोई व्यक्ति अभिजन वर्ग का सदस्य नहीं बनता , तब तक वह शासकीय अभिजन वर्ग में नहीं पहुँच सकता । इसके विपरीत वर्तमान प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में निम्न अथवा मध्यम वर्ग का कोई व्यक्ति अभिजन की प्रतिष्ठा प्राप्त किए बिना ही सीधे मुख्य मन्त्री अथवा मन्त्री बनकर शासकीय अभिजन वर्ग में पहुंच सकता है । परेटो द्वारा प्रस्तुत सिद्धान्त इन बदली हुई दशाओं में अभिजन वर्गों के परिभ्रमण का कोई सन्तोषप्रद समाधान नहीं दे पाता ।
समालोचनात्मक मूल्यांकन
( Critical Evaluation )
एक मनोवैज्ञानिक समाजशास्त्री के रूप में परेटो ने जो अवधारणाएँ प्रस्तुत की , वे समाजशास्त्र के लिए उनका एक महत्त्वपूर्ण योगदान है । वास्तविकता यह है कि परेटो ने इटली मैकाइविले के सामाजिक और राजनैतिक सिद्धान्तों की परम्परा को कॉम्ट और स्पेन्सर जैसे प्रत्यक्षवादियों के विचारों से मिलाकर सामाजिक विचार धारा को नई दिशा देने का प्रयत्न किया मैकाइविले ( Machiavellian ) से प्रभा वित सामाजिक विचारधारा मनुष्य को सामाजिक सम्बन्धों से बंधा हुआ स्वतन्त्र सामाजिक प्राणी मानकर नहीं चलती बल्कि मानव की प्रकृति से सम्बधित आन्तरिक प्रेरणाओं को उसके व्यवहारों की कसौटी मानती है । दूसरी ओर प्रत्यक्षवादी विद्वान केवल अवलोकन और प्रयोग पर आधारित पद्धति के द्वारा ही मानवीय व्यवहारों का अध्ययन करने पर बल देते हैं ।
परेटो ने जहाँ मैकाइविले से प्रभावित होकर विशिष्ट चालकों और भ्रान्त तर्कों की अवधारणा प्रस्तुत की , वहीं उन्होंने ताकिक प्रयोगात्मक पद्धति द्वारा समाजशास्त्रीय अध्ययन को वैज्ञानिक बनाने का प्रयत्न किया । इस सम्बन्ध में सॉरोकिन का कथन है कि ‘ मानवीय क्रियाओं को ताकिक और अताकिक जैसी दो व्यवस्थित श्रेणियों में प्रस्तुत करके परेटो ने उन वास्त विकताओं को स्पष्ट किया जिनके आधार पर मानव व्यवहारों की अधिक तर्कसंगत व्याख्या की जा सकती है । ‘ अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि ‘ परेटो का चिन्तन एक फासिस्ट विचारक का चिन्तन है ‘ लेकिन वास्तविकता यह है कि परेटो द्वारा प्रस्तुत अनेक विचार उनके उदारतावादी जनतान्त्रिक मूल्यों को भी स्पष्ट करते हैं । उनके विचारों में उदारतावादी और अधिनायकवादी विचारों के समन्वय को स्पष्ट करते हुए रेमण्ड एरों का कथन है कि ” परेटो ने आर्थिक आधार पर जो अवधारणाएं प्रस्तुत की हैं , वे उदारतावादी हैं जबकि राजनैतिक अवधारणाओं की विवेचना में उनके विचार अधिनायकवादी दिखलाई देते हैं । ” 18 सच तो यह है कि समाजशास्त्र तथा अन्य सामाजिक विज्ञानों के लिए परेटो द्वारा प्रस्तुत विशिष्ट चालकों और भ्रान्त तर्को की अवधारणा उनका एक महत्त्वपूर्ण योगदान है ।
अभिजन वर्गों के परिभ्रमण के सिद्धान्त के द्वारा परेटो ने न केवल सरकार के उच्च स्तर – समूहों ( Strata ) की कार्यात्मक प्रकृति का विश्लेषण किया बल्कि उन चालकों और प्रेरणाओं पर भी प्रकाश डाला जिनके फलस्वरूप अभिजनों की स्थिति में परिवर्तन होता रहता है ।सम्भवत : इसीलिए बार्स ने लिखा है कि परेटो का योगदान एक वैचारिक युग का प्रतिनिधित्व करता है तथा यह किसी से भी तुलना के परे है । समाजशास्त्र के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान के बाद भी परेटो का चिन्तन अनेक दोषों से युक्त माना जाता है । उनके आलोचकों का कथन है कि एक ओर परेटो स्वयं यह मानते हैं कि तार्किक – प्रयोगात्मक पद्धति द्वारा व्यक्ति के अतार्किक व्यवहारों का अध्ययन करने के लिए हमें तटस्थ रहना चाहिए लेकिन यह परेटो का एक ऐसा कथन है जिसका अनुसरण उन्होंने स्वयं नहीं किया ।
उनकी पुस्तक ‘ ट्रीटीज ‘ ( Treatise ) में जो भी अवधारणाएँ प्रस्तुत की गयी हैं , वे भावनाओं तथा मूल्यां कनात्मक निर्णयों से प्रभावित है । केलवर्टन ( Kalverton ) ने लिखा है , ” परेटो जब भ्रान्त तर्कों की विवेचना करते हैं तब उनके चिन्तन की सम्पूर्ण प्रणाली स्वयं एक भ्रान्त तर्क की तरह दिखलाई देती है । ” उनकी ताकिक – प्रयोगात्मक पद्धति के सन्दर्भ में वाइन ( Vine ) का कथन है कि परेटो ने यद्यपि वैषयिकता को वैज्ञानिक चिन्तन का आधार माना है लेकिन उनके द्वारा प्रस्तुत पद्धतिशास्त्र में वैषयिकता का अभाव है । सॉरोकिन का यहाँ तक कथन है कि परेटो द्वारा प्रस्तुत विशिष्ट चालकों और भ्रान्त तर्क की जिस अवधारणा को समाजशास्त्र के लिए उनका सर्व प्रमुख योगदान माना जाता है , वह स्वयं में एक खूबसूरत धोखा है । यह ऐसी अवधारणाएँ हैं जिनकी प्रामाणिकता को स्वयं परेटो द्वारा प्रस्तुत तार्किक – प्रयोगात्मक पद्धति से नहीं जांचा जा सकता । ऐसा प्रतीत होता है कि परेटो ने स्वयं ही कुछ विशिष्ट चालकों का निर्माण करके उन्हें मनुष्य की अवधारणा में इस तरह रख दिया कि उनके द्वारा मनचाहे निष्कर्ष दिए जा सकें । इसे ‘ कल्पना को सजीवता का आवरण ‘ पहना देने के अतिरिक्त और कुछ नहीं कहा जा सकता । कुछ आलोचकों का विचार है कि परेटो द्वारा प्रस्तुत अभिजनों के परिभ्रमण का सिद्धान्त न केवल अपूर्ण है बल्कि यह अभिजनों की गलत श्रेणियों पर आधारित है । परेटो ने यह स्पष्ट नहीं किया कि स्वयं शासकीय और गैर – शासकीय अभिजन भी अनेक उप श्रेणियों में विभाजित होते हैं तथा उनकी स्थिति में होने वाला परिवर्तन किन दशाओं से प्रभावित होता है । वास्तविकता यह है कि किसी भी विचारक का चिन्तन त्रुटिरहित नहीं हो हो सकता । परेटो के चिन्तन में भी कुछ दोष अथवा कमियां हो सकती हैं लेकिन परेटो के आलोचक भी यह मानते हैं कि मनोवैज्ञानिक आधार पर सामाजिक संस्तरण तथा मानव व्यवहारों की विवेचना करके परेटो ने समाजशास्त्रीय चिन्तन को एक नई दिशा प्रदान की ।